Author Topic: Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य  (Read 360908 times)

Bhishma Kukreti

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                    चलो  हरीश रावत की   काट,  क्रिटिसाइज  करे जाव अर सरकार तैं नगी करे  जाव !
                       
                                                 चबोड़ , चखन्यौ , घचकाण ::: भीष्म कुकरेती

घरवळि -तुम से भलो तो वी छौ जु हर बात का विरोध करदु छौ।
मि -क्या ?
घरवळि -बुबा जी त तयार इ छया पर मि अर ब्वे तयार नि हुयां निथर आज मि बि   विरोध का सुख पांदु ……
मि -ह्यां कु , क्या अर कैक विरोध ?
म्यार नौनु - पापा ! ममी देहरादून में वो अंकल हैं ना  जिन्हे हम विरोधी अंकल से पुकारते हैं।
मि -अच्छा वु जैक पैलि नौन ह्वे त वैन अपड़ कज्याणिक काट कार कि नौनि किलै नि ह्वे अर जब दुसर दैं कन्या  पैदा ह्वे तो अपण घरवळि विरोध मा  धरना मा बैठी गे कि  बेटा पैदा किलै नि ह्वे।
नौनु - हाँ पापा !  वही अंकल जो अपने स्वयं के सिगरेट पीने के विरोध में घटाघर में भूखहड़ताल पर बैठ गए थे।
घरवळि -हाँ त क्या ह्वाइ वूं तैं विरोध करण त आंद च।  एक तुम छंवां जु अफु तैं व्यंग्यकार बुल्दां पर अबि तलक तुमन हरीश रावतक आलोचना नि कार , अबि तक हरीश रावत पर व्यंग्य बाणु बरखा नि कार , हरीश रावतक बेज्जती नि कार।
मि -याँ ! ह्वाइ क्या च जु मि मुख्यमंत्रीक व्यंग्यों से धुलाई कौरु ,धज्जी उडौं,  सरकार तैं बीच बजार मा नंगी कौरु ? आखिर हरीश रावत जीन  क्या गुनाह कार कि मि रावत जीक छट्यूं पर मांस गाडु ?
घरवळि -द ल्या बल , अब लगावो बल सुंगरुँ दगड़ मांगळ ! भाजपा अर भाजपा का भोम्पू सरा  दुन्या मा हरीश रावत जीक लत्था लीणा छन , हरीश रावत पर भाला , तलवार अर तोप नपाणा छन अर तुम गढ़वाली का व्यंग्यकार पुछ्णा छा कि हरीश रावत कु जघन्य गुनाह क्या च कि हरीश रावत पर व्यंग्यात्मक थमाळी की मार करे जाव ?
मि - हाँ ! भाजपा क त क्या च , कुछ बि बात पर हरीश रावत की काट कर सकदन , क्रिटिसाइज कर सकदन , हरीश रावत कु जीणो हराम करी सकदन।  मि साहित्यौ चबोड़्या , चखन्यौर्या,  व्यंग्यकार छौं। . क्वी राजनीतिक चमचा-करछी -बेलचा  नि छौं कि वेवजह कैक बि कपड़ा उतार द्युं !
घरवळि -ह्यां इथगा बड़ी  घटना क्या अपशकुन ह्वे गे अर तुम फिर बि बुलणा  छंवां कि हरीश रावत की आलोचना कु मुद्दा क्या च ?
मि -मुद्दा त बथा कि हरीश रावतन क्या पाप कार ?
घरवळि -क्या नि कार ? केदारनाथ मा इथगा बड़ु बेमतबलौ , धधकर्या झलसा कार , केदारनाथ मा इथगा बड़ु खौत -पौतौ दिखलौटी, बनौटी , छद्मयुक्त   प्रदर्शनी लगाई , केदारनाथ धाम मा कैबिनेट की बैठक कार अर तुम बुलणा छंवां कि हरीश रावत तैं थींचणो मुद्दा क्या च ?
मि -अरे इखम तो हरीश रावत जी की बड़ै करणै समय च प्रशंसा करणो बात च, रावत जी पर पुष्प वर्षा कु अवसर च ना रावत जी तैं  लुड्याणो ,  डंड्याणो या घमकाणो समय।
घरवळि -तुम बि ना ! केदारनाथ मा मंत्रिमंडल की बैठक करिक हरीश जीन  कौन सा लंका जीत आल।  सब ड्रामा च।
मि -केदारनाथ मा कैबिनेट मीटिंग कु अर्थ च कि केदारनाथ तैं एक  अलग महत्व दीण , केदारनाथम मंत्रिमंडल बैठक कु मतबल च बल आपदा का बाद केदारनाथ की धूमिल हुईं छवि तैं जगा मा लाण , केदरानाथम मंत्र्युं जमघट कु सही मंतव्य च ग्रामीण अर पर्यटक क्षेत्रों तैं आदर दीण।
घरवळि -यी सब शौमैनशिप च , नाटक च , सिम्बोलिक पॉलिटिकल ड्रामा  च।
मि -यां मंदिर , मस्जिद , मठ , चर्च , गुरुद्वारा, ब्यौ -काज , जीमण सब कुछ बि नि छन बल्कि लोगुं  वास्ता प्रतीकात्मक स्थल या कार्य ही छन। प्रतीक भौत सा इन संदेश पौंछे दींदन जु आम कार्यों से अंसंभव हूंदन।
घरवळि -हैं ऊना विरोधी पार्टी हरीश रावत पर बिलकणा  छन अर तुम व्यंग्यकार ह्वेक बि तुम उत्तराखंड कैबिनेट मीटिंग तैं सही ठैराणा छंवां ?
मि -देखो राजनीति को आधार ही स्वार्थ, पक्षपात ,  हूंद जब कि व्यंग्यकार कु आधार ही स्वर्थहीनता , पक्षपातहीनता हूंद तो मि फोकट मा सही कार्य की आलोचना नि कर सकुद।
घरवळि -केदारनाथम कैबिनेट मीटिंग से क्या फायदा ?
मि -देख ! केदारनाथम मंत्रीमण्डल बैठक से भौत सा समूह , समाजुं  तैं संदेश , रैबार , मेसेज पौंछाणो एक सही कदम च कि केदारनाथ अब सुरक्षित च , केदारनाथ की यात्रा ह्वे सकद च अर दगड़ मा ग्रामीण उत्तराखण्ड्यूं तैं बि संदेश च कि सरकार ग्रामीण परिवेश तैं महत्व दींदी।
घरवळि -कुज्याण , कुज्याण , कुज्याण ! व्यंग्यकार सरकार की प्रशंसा करद मीन पैल बार द्याख।
मि -देख ! व्यंग्यकार ना तो एकअंख्या कवा च , ना ही भाट -चारण -तोता च,  ना ही फोकट का आलोचक कर्रें च।  व्यंग्यकार एक समदर्शी आँख च तो मि हरीश रावत जी की प्रशसा करणु छौं जॉन केदारनाथम् मंत्री मंडल की बैठक कार।

Copyright@  Bhishma Kukreti  22 /10 /2014     
*लेख में  घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख  की कथाएँ , चरित्र व्यंग्य रचने  हेतु सर्वथा काल्पनिक है

 
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Bhishma Kukreti

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                                        नमक कहे मैं जो नहीं सब ही  चीज हैं कम !

                                                               भीष्म कुकरेती
 

  नाम -   अजी ! मेरि समिण क्वी नी च , म्यार अग्वाड़ी क्वी नी च , मि नि हों त कुछ बि नि ह्वे सकद। वेद , गणित , इतिहास , व्याकरण , अर्थ आदि सब मि छौं.। बगैर नाम का क्वी कुछ नि जाण सकद   , मेरी पूजा हूण चयेंद।
   वाणी  - अहा ! घर मा ना धेला अर नाम च गुमान  सिंग रौतेला ! भारी आई अफु तैं बडु बतौण वळु ! यदि मि जि नि हूँ त वेद , ज्ञान -अज्ञान, सत्य -असत्य तैं    कु  विज्ञापित कारल ?   मे से ही धर्म -अधर्म कु ज्ञान हूंद। पूजा तो मेरी हूण    चयेंद।
मन - हाहाहा ! यदि मनिख स्वाच ना तो क्यांक नाम अर क्यांक वाक् ? म्यार कारण मनिख वाक् बुलद अर तब नाम कु नाम लींद।   कामना मीम जनम लींद। इलै मी इ लोक छौं , मी हि आत्मा छौं अर मी इ ब्रह्म छौं। उपासना तो मेरी हूण चयेंद।
संकल्प - ही ही ही! बाप ना मार सकु  मेंढकी अर बेटा बुल्दु मि छौं कमाल ! हाथ ना हिलाये तो पेट कैसे भरेगा ! मि नि हूँ  त क्वी बि संकल्प नि कर सकद , अर क्वी संकल्प नि कारल तो मनमा कनै कुछ बि गंठ्याल ? मि नि हूँ त मन की बात मन मा इ रै जालि।  पूजा तो संकल्प की ही हूण चयेंद।
चित्त -भितर नी आलण अर भैरम नाचणी बादण ! मनिखम चेतना नि आवो तो संकल्प कनकै ल्याल ? चेतना से संकल्प पैदा हूंद , संकल्प से वाणी पैदा हूंद अर वाणी नाम लींद।  पूजा का हकदार त मि छौं।
ध्यान -  गुड बुलण से मुख मिठु नि ह्वे सकद , हथेली मा राइ नि उगाये जांद,गधा से घ्वाड़ा कु काम नि लिए जै सक्यांद ।  यदि मनिख या क्वी बि ध्यान से नि स्वाचल तो एक साथ हजारों संकल्प लेकि पागल ह्वे जालो।  इलै मि याने  ध्यान ही तुम सब मादे श्रेष्ठ छौं।
विशिष्ठ ज्ञान - विशिष्ठ ज्ञान से ही मनिख ध्यान कर सकुद, विशष्ठ तर्क मनिख माँ ध्यान लांद , विशष्ठ ज्ञान ही मनिख तैं अनुशासित करद।    अतः ब्रह्म रूप मा पूजा कु असली अधिकारी मि छौं, मेरी ही पूजा हूण बेहतर च।
बल /तागत -तन सुखी त मन सुखी ! तागत नी च त सब स्याणी , गाणी , ध्याणी धर्यां का धर्यां रै जांदन।  तागत से ही छुट से छुट -बड़ु से बड़ु कार्य सम्पादन हून्दन।  तागत ही भगवान च ! तागत ही ब्रह्म च।
अन्न - हल्दीक जलड़ मील अर मूसन दुकान खोलि दे , अधभर गगरी छलकत जाय , गधा तैं झुल्ला पैराण से गधा घ्वाड़ा नि ह्वे सकद।  क्या तागत असमान  बटें टपकदि ? क्या छड़ी घुमाण से  ताकत ऐ जांदी ? बगैर अन्न खयाँ तागत कखन आलि ? तबि त बुले जांद बल अन्न ही ब्रह्म च।
जल /पाणी - वो तो अब गंगू तेली बि राजा भोज की गद्दी सम्बाळणो ख्वाब दिखणु च।  मि नि हूँ त अन्न कखन उगल /उपजल ? पाणी ही अमृत च , पाणि ही पूज्य च , जल ही ब्रह्म च।
ऊर्जा - द ल्या !बैलगाड़ी तौळौ   कुकुर समझणु कि बैलगाड़ी उ चलाणु च!  कुवा मिडुक समझणु कि कुवा से भैर क्वी संसार नी च ! काठै बिरळि मैं बणौलु पर म्याउ कु करलु ? बगैर ऊर्जा का , बगैर तेज का , बिना ऊर्जा का गर्मी , बरखा , हिंवळि कखन होलु ? अर गर्मी , बरखा , हिंवळि नि होला तो जल कखन आलु ? इलै मि याने तेज ब्वालो या ऊर्जा ब्वालो ही ब्रह्म च।
शून्यता , रिक्तता या आकाश - बड़ो ऐन अफु तैं अफिक बड़ा साबित करण वाळ ? आँख बंद करिक क्लास मा  मास्टर नि दिख्यावु त यांक मतबल यु नी च कि क्लास मा मास्टर नी च , नाक बंद करिक सड्याण खतम नि हूंद , गरम कपड़ा पैरण से वातावरणौ  तापमान नि बढ़द।  रिक्तता नि हो त ऊर्जा कु उपयोग कनै होलु ? आकास याने रिक्तता नि हो तो समय चक्र , वायु चक्र , जल चक्र , सूर्य -चन्द्र आदि ग्रहऊँ  चक्र चली नि सकद। इलै बुले जांद कि शुन्य ही ब्रह्म च।
स्मरण /यादास्त - तेल करे छम , नमक कहे मी जि ना  तो सब इ चीज छ कम्म ! ये स्मरण शक्ति ही नि हो त मनिख मनन ही नि कर सकद तो फिर क्यांक संसार अर क्यांक अन्न जल ? इलै स्मरण ही ब्रह्म बुले जांद।
आशा - द लगा बल सुंगरुँ दगड़ , मुसाक नौनु दीवान नि हूँदु , पिपळा डाळम बैठ्युं गरुड़ बि घमंड करद कि पूजा वैकि हूणी च।  यदि मि  आशा ही नि   हूं त मनिख कुछ बि स्मरण नि कारु।  इलै त बुले जांद बल आशा: ब्रह्मास्ति।
आकाशवाणी - ये अपजितो (ईर्ष्यालु ), अपर अफि प्रशंसको  ! प्राण क्या च ? प्राण का बारा मा तुमर क्या बुलण च ?
सबि नतमस्तक ह्वेक - प्राण ही माता च , प्राण ही पिता च , प्राण ही आशा कु जन्मदाता च , प्राण ही म्यार जन्मदाता च , प्राण ही शक्ति च , प्राण ही ब्रम्हांड च , प्राण ही सब कुछ च।  याने प्राण ही सत्य मा ब्रह्म च। 
( छान्दोगेय उपनिषद सप्तम अध्याय    (१-१५ खंड  )   की व्याख्या )                   

Copyright@  Bhishma Kukreti  23  /10 /2014       

Bhishma Kukreti

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                                           बौड़ पैटाण अर माया काका पर मार पड़णो  याद
                                                        आपकी आत्मकथा , भाग -1
                                                                कथा वाचक :::  भीष्म कुकरेती

           आज से मि आपकी याने जौन सन 1980 तक गढ़वाळ मा वचपन विताइ , स्कूल मा मार खाई अर फिर भागिक प्रवास मा नौकरी पाई वळु आत्मकथा लिखणो पुठ्याजोर (कोशिस ) लगौल।
  आत्मकथा याने समळौण , संस्मरण अर वी बताण जै तैं मि महत्व दींदु।
अब द्याखो ना ! बड़ा , नामी गिरामी , वुद्धिजीवी लिख्वार आत्मकथा मा सबसे पैल अपण परिवार , ममी -पापा अर कूड़ो जिकर करदन अर मि बौड़ पैटाण से आपकी आत्मकथा शुरू करणु छौं।  असल मा आपकी आर्थिक दशा  की धुरी गौड़ -बौड़ ,ब्वेइ -बौ अर बरखा-सूखा  पर टिकीं छे तो सर्वप्रथम यी सब याद आल कि ना ?
    जन भारत मा खासकर हरियाणा मा बेटी पैदा हूणै बान क्वी प्रार्थना , इबादत , गाणी -स्याणी नि करद उनि गढ़वाळ मा बौड़ पैदा हूणै कामना लेक नागर्जा मंदिर क्वी नि जांद छौ , आज बि नि जांद ना ही क्वी भोळ जाल ।  सब तैं कुखलिम नौनु चयेंद छौ अर सन्निम /छनिम /गौशालाम बाछी चयेंद छौ।  किंतु भगवान साल द्वी सालम हरेक मौ तैं बौड़ अर बेटी देइ दींद छौ।
    यदि तुमर एक जोड़ी बल्द ह्वावन तो द्वी जोड़ी बल्द आर्थिक गणित का हिसाबन रखण मूर्खता ही माने जाली जन शायद पीएमओ मा राज्य मंत्री एकी हूंद।  तो यदि तुमर बल्दुं जोड़ी हो अर इन मा  बौड़ पैदा ह्वे जाव तो बि वै बौड़ तैं जल्दी बिचे नि जांद।  बगैर ट्रेनिंग का मजदूर अर बगैर पटयुं (हल लगाने लायक ट्रेंड ) बौड़ की क्वी कीमत नि हूंदी।  जन खांड्युं से पत्थर गडण वाळ ट्रेंड मजदूर की ध्याड़ी आम मजदूर से अधिक हूंद छे ऊनि बगैर पटयूं बौड़ तैं औना -पौना दाम ना बल्कण मा फोकट मा बिचण पड़द छौ अर पटयूं बौड़ तैं खरीदणो बान रोज क्वी ना क्वी हळया तुम तैं सलाम ठुकणो आंद रै होला।  झूट बुलणु हूँ तो तुमि ब्वालो ! हैं , नि बोल जाण ?
       दादा जी मोरणो बाद हमन कबि अपण गुठ्यारम बल्दुं जोड़ी नि देखि अर मीन क्या म्यार बडा  जी अर बुबा जीन बल्द  नि जोतिन  किन्तु म्यार बडा जीन , म्यार बुबा जीन अर मीन बौड़ अवश्य ही पैटयां (ट्रेनिंग दीण ) छन। बौड़ु ठीक से कीमत मिल जावो का बाना हम तैं बौड़ पैटाण इ पड़दा छा। 
  हमर कूड़ो  बगल मा आम रस्ता तौळ एक मौक़ा चार पांच जरा चौड़ सि पुंगड़ छा तो हर साल यि पुंगड़ पांच छै बौड़ु ट्रेनिंग सेंटर अवश्य बणदा छा। तो बचपन याने तीन चार सालक रै होलु तबी बिटेन हर साल बौड़ पैटाण दिखद -दिखद समझ मा ऐ गे छे कि बौड़ कन पैटाये जांदन।
 
            बौड़ पैटाणो जब बि छ्वीं लगदन मि तैं जोगी दादा (भैजि )  कु ट्याड़ु सिँग्या बौड़ौ बड़ी याद आंद अर जनि ये ट्याड़ -सिंग्या बौड़ै याद आवो तो स्वयमेव माया काका बि याद ऐ जांद।
         हौळ लगाणो हिसाब से बौड़ तीन चार प्रकार का हूंदन।  एक उत्साही बौड़ हूंद जु पैलि दिन से हौळ -ज्यु लैक हूंद याने इन बौड़क काँध मा ज्यु धौरो तो इन बौड़ बितक़द नी च अर द्वी चार दिनम पैटाण लैक ह्वे जांद अर एक मैना बाद हौळ लगाण लैक बि ह्वे जांद जन कि राजनीति मा ज्योतिराव सिंधिया , मिलिंद दीक्षित , अमित देशमुख , नागपुर का बीजेपी नेता फड़नवीस , हिमाचल का भूतपूर्व  मुख्यमंत्री क नौनु अनुराग ठाकुर आदि।  इन बौड़ अर पुत्र बड़ी मुस्किल से पैदा हूंदन।
  दुसर किस्मौ बौड़ इन हूंदन जु ज्यु काँध मा धारो ना अर जोर जोर से बितकण , कुतकी मारण , उठा पटक करण लग जांदन। इन बौड़ तैं ज्यु से या तो कुतगळी लगद   होली या अभ्यास नि हूण से यी बदहवास ह्वे जांदन।  इन बौडूँ काँध मा गौळ धरण पोड़द।   गौळ ज्यु जन ही हूंद किन्तु अकेला ज्यु अर यु भारी हूंद।  बौड़क काँध मा चार से सात आठ दिन तक रात दिन गौळ बंध्युं रौंद अर जब इन बौड़ ज्यु धरण से कुतगी नि मरदन त समझे जांद कि बौड़ अभ्यस्त ह्वे गे।  फिर बि आना कानी कारो तो ज्यादा दिन तक बौड़ तैं गौळ बुकण पड़द। राजनीति मा इन बौड़ छैं छन जन कि नवीन पटनायक , लालू प्रसाद यादव का सपूत अर रामविलास पासवान का पुत्र।  यी राजपुत्र राजनीति मा नि आणा छा किन्तु गौळ बुकणो बाद झूट बुलण से लेकि जातीय भाषण दीण मा यी जल्दी ही प्रवीण ह्वे गेन।
 तिसर किस्मौ बौड़ हूंदन गळया बौड़ जन कि राजनीति मा राहुल गांधी , महाराष्ट्र का भूतपूर्व मुख्यमंत्री वसंत दादा पाटिल का सुपुत्र । कथगा बि गौळ ब्वाकन राजनीति युंक बस कि नि हूंदी। शायद के सी पंत बि इनि जबरदस्ती का राजनीतिज्ञ छया। फिल्मों मा बि इन बौड़ हूंदन जन कि सिल्वर जुबली किंग राजेन्द्र कुमार सुपुत्र गौरव कुमार ; राजकपूर पुत्र राजीव कपूर आदि।
       जोगी दादा का ट्याड़ु सिँग्या बौड़ तिसर किस्मौ बौड़ छा।  शायद तीन चार मैना तलक ये बौड़न गौळ बोकि ह्वाल।  जब बि जोगी दादा ये गळया बौड़   तैं ट्रेनिंग द्या तो उखम सरा गांक जमघट लग जांद छौ।
   जोगी दा ये ट्याड़ु सिँग्याबौड़ौ दगड़ कबि ढब्यूं बौड़ ज्वात तो कबि बल्द।  हैंक बौड़ या बल्द अग्नै बड़द छौ त ट्याड़ु सिँग्या बौड़ पैथर सरकद छौ।  ट्याड़ु सिँग्या बौड़ तैं अग्वाड़ी बढ़ानो बान जोगि दा वैक पूठ पर मुंड लगाओ , पूछ मरोड़ो पर ट्याड़ु सिँग्या बौड़ टस से मस नि हूंद छौ।  कथगा ही सोटी , डंडा अर फण्यटों से ट्याड़ु सिँग्या बौड़ पिटे गे  किन्तु ट्याड़ु सिँग्या बौड़ हौळ लगाण नि सीख। जिंदगी मा मीन जानवरूं की इन निर्दयी पिटाई नि देखि जन ट्याड़ु सिँग्या बौड़ की पिटाई द्याख।  यांसे पैल जोगिदान पचासेक बौड़ पटै छा , ट्रेंड कौर छा।  अब त उल्टां ट्याड़ु सिँग्या बौड़ का जोड़ीदार बौड़ अर बल्द जब गळया हूण शुरू ह्वे गेन तो जोगी दान ट्याड़ु सिँग्या बौड़ ही ना कै बि बौड़ तैं ट्रेनिंग नि दीणै कसम खै देन।
             अब एकी विकल्प बच्युं छौ कि ये बौड़ कि निफल्टी लगाये जावो याने बिचे जाव।  जोगी दान ट्याड़ु सिँग्या बौड़ हैंक गामा कै हळया तैं ब्याच अर पांच दिन बाद ऊ हळया गाळी दींद दींद ट्याड़ु सिँग्या बौड़ तैं जोगी दाक छनिम बाँधि गे अर अपर रुपया वापस ली गे।  इन करद करद जोगी दान पांच दैं ट्याड़ु सिँग्या बौड़ मुकदान लगै याने ये बौड़ तैं ब्याच किन्तु हरेक बौड़  तैं वापस करिक ही गे। सरा क्षेत्र मा ट्याड़ु सिँग्या बौड़ ना जोगी दा कुप्रसिद्ध , बदनाम  ह्वे गे कि जोगी दा अपड़ इ  लोगुं तैं ठगद।  अब तै बौड़ तैं संडा बि नि छोड़ि सकदा छा किलैकि संडा याने शिव रूप अर शिव रूप तो अछूत ही हूण चयेंद छौ जब कि ट्याड़ु सिँग्या बौड़ पर ज्यु सरयूं युं छौ।  भौत सा बार बिचारा ट्याड़ु सिँग्या बौड़ तैं जंगळ खद्याड़ कि बाग़ खै द्याल किन्तु शायद बाग बि हड़ताल मा चली गे छा अर ट्याड़ु सिँग्या बौड़ द्वी चार दिनम घौर ऐ जांद छौ।  फिर एक दिन जोगी दाक भागन एक नजीबाबादी घुड़ेत आई अर वै बौड़ तैं एक भिल्ली बदल लीगे।  फिर वै गळया  बौड़ो क्या ह्वाइ हवाई क्या नि ह्वाइ कुछ नि पता।
***भोळ पढ़िए कि  माया काका को मार क्यों पड़ी और ट्याड़ु सिँग्या बौड़  माया काका की मार से क्या संबंध था ?
                                         
               

Copyright@  Bhishma Kukreti  25  /10 /2014     
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                               बौडौ गळया हूण अर माया काका कु मार खाण

                                          आपकी , अपणी  आत्मकथा , खुदेणो कथा , भाग -2       

                                              कथा वाचक :::  भीष्म कुकरेती
           

                     माया काका कु बि आम गढ़वळि तरां बुबाजी छा , ब्वे छे , भाई -बैणि छे पर वैन अपण ददि -ददा नि देखि छा। माया काकाक बुबाजी याने सचिदा दादा जीक बि आम गढ़वळि  किसाणु  तरां गौड़ , बल्द , ढिबर -बखर छा पर भैंस नि छौ पर  कव्वा - कुत्तौं  तैं खाणो खिलान्द छा। आम गढ़वळयुं तरां चौक बि साफि रौंद छौ , रुस्वड़ साफ़ छौ अर पाणि भांडु  तौळ खौड़ रौंद छौ।  आम गढवळयुं तरां सचिदा दादा जीक बड़ो परिवार छौ।

              माया काकाक जनम   ना तो ग्रहण  , ना मूळ नक्षत्र मा ह्वे छौ अर साधारण नक्षत्र मा ह्वे छौ तो माया काका का नक्षत्रुं  से सचिदा दादा जी,  दादी अर तीन बड़ा भाई बैण्यूं का नक्षत्रुं   तैं  क्वी खतरा नि छौ तो माया काका की बि  पूछ नि छे । वै बगत हरेकाक द्वी नाम हूंद छा एक नाम पंडित नक्षत्रुं हिसाब से धरद छौ अर दुसर नाम ददि -ननि -ब्वे -बाब  बचणो बान , दाग नि लगो , घात नि लगो का बान धरदा छा जन कि घुत्ता , गुन्दरू , मख्वा , जोगी आदि आदि अर तिसर नाम मनिखौ कार्यकलाप से गाँ -गौळ पैथर धरदो छौ । चूंकि माया काका से बड़ा तीन हौर बच्चा बच्यां छा तो घूरा दादी जी तैं माया काका तैं बचाणो क्वी बड़ी चिंता नि छे तो माया काकाक बचणो बान अलग से नामकरण नि ह्वे बल्कि जन्मपत्री कु नाम से ही माया काका तैं पुकारे जांद छौ।  हाँ गाँ वळ घूरा दादीक पीठ पैथर माया काका कुण दुमुंड्या बुल्दा छा किलैकि मया काका कु मुंड  शरीरो अनुपात से बड़ु छौ।

          गढ़वळि बच्चो समान , दुमुंड्या काका मळयो;, बाड़ी -पळयो ;  सचिदा दादा -घूरा दादीक श्रुति से जमा कर्याँ शब्दकोश मा  जथगा बि गाळी  रै होलि ऊँ सदाबहार गाळयुं बेहिचक  सेवन करिक , खूब  मार खैक बड़ु ह्वे गे। खांद -पींद मवाशौ नाता ना ; बामण हूणों नाता ना बल्कण मा वै बगतौ रिवाजौ डौरन सचिदा दादा जी तैं दुमुंड्या काका तैं माया से मायाराम घोषित करण जरूरी ह्वे गे याने माया काका तैं चौकल दीण जरूरी ह्वे गे छौ। चौकल दीण से ही माया काका स्कूलम भर्ती ह्वे सकद छौ अर सचिदा काकाक बखर छया कि जु माया काका तैं चौकल दीण से रुकणा छा।  यदि माया काका तैं चौकल दीण तो समस्या बखर चराणो जि आणि छे। खैर वै बगतौ रिवाजन सचिदा काका तैं विवश कार कि माया काका तैं स्कुल भिजे जावो तो सचिदा दादा तैं चौकल दीणो दिन निकाळणो बान बामणम जाण ही पोड़। 

           कुछ पूजा या श्लोक वाचन का बाद बामण बि तयार छौ , चौकल बि तयार छौ , लाल माटु   बि चकाचक तयार छौ बस दूल्हा याने मायाराम जी की इंतजारी छे।  जब तक चौकल नि सज छौ तब तलक माया काका नया  मलेसिया का कुर्ता -सुलार मा फर्र फर्र करिक घौरम हि फुदकुणु छौ पर जनि माया काकन चौकल मा माटु द्याख , अर तयार बामणो अंगुळि  द्याख कि माया काका तैं पिसाब लग गे।  पिसाब करणो बान माया काका गौं फिरणो हि चलि गे , बड़ी मुस्किल से काका की बड़ी बैणि माया काका तैं खेंचिक लायी।  जनि बामण जीन सरस्वती पूजा का श्लोक ब्वाल कि माया काका तैं झाड़ा लग गे। दादा जीन गाळी से अर एक थप्पड़ से काका तैं रुकणो  बोल , किन्तु शायद झाड़ा कुछ ही ज्यादा लगीं छे कि माया काका तैं टट्टी करणो इजाजत दिए गे।  झाड़ा करणो शिल्पकारुं मुहल्ला तौळ जाण पड़द छौ त माया काका हुस्यर बाड़ाक अणसाळ जिना चलि गे।  अब जब बिंडी देर ह्वे गे अर माया काका नि ऐ तो द्वी दूत भिजे गेन।  दूतुं आँख चंख लगि गेन जब उंन द्याख कि बामणु छ्वारा याने माया काका ल्वार  हुस्यर बाडा दगड़ बैठिक दाथी पळयाणु च।  खैर दूत माया काका तैं खैंचिक ड्यार चौक मा लैन, पाणी बरताणो अभिनय बि ह्वे। फिर जनि माया काका चौकल का समिण आई अर फिर वै तैं पिशाब लगी गे।  अबै दै सचिदा दादान अफिक माया काका क बाळ पकड़िक पिशाब करायी।

           

खैर जब माया काका चौकल का समिण बैठ तो लिखणो बान निर्देशिका अंगुळि  खुलणो जगा काका अंगुळी  टेढ़ी कर द्यावो।  बड़ी मुस्किल से मार पीटिक बामण जीक कोशिस से माया काकान ऊँ अर न ही ल्याख।  किन्तु भगवान की दया से चौकल दीणो कर्मकांड सुखी शान्ति से निपटि गे।  यद्यपि बामण जी तैं मोरद दैं  बि मलाल छौ कि जिंदगी मा युइ नौनु छौ जै तैं पूरा ऊँ , न , म , सि , ढ़ंग नि सिखै सकिन।

  अब सात साल कु ढाँट तैं धके -धकैक स्कूल बि भिज्याण लग गे।   माया काका कु स्कूल से मास्टरुं गाळी दीणै आवृति मा आशातीत वृद्धि हूंद गे , मास्टरुं पिटणो रचनाधर्मिता मा अंदादुंद विकास हूंद गे।   मास्टरुं समिण  चैलेन्ज , एक चुनौती छे , एक चिंता कु विषय छौ कि माया काका तैं शिक्षा कनै दिए जाव।  माया काका तैं सिखणम इंट्रेस्ट ही नि आंद छौ।  पर ड्यारम माया काका छुटि उमर मा बि कील , निसुड़ी बणै दींद छौ , पैगुड़ी , ज्यूड़ , नाड़ु आदि बणाण मा प्रवीण ह्वे गे।  स्कूलम पता नी कथगा बेंत , कथगा लाठी खपिन धौं किन्तु क्वी बि मास्टर माया काका मा पढणो वास्ता आकर्षण पैदा नि कौर साक। माया काका अर मास्टरों मार दुसरो पर्यायवाची शब्द बण गे छा।

        चूँकि रिवाज पढ़ाणो छौ तो माया काका तैं स्कूल भिजे ही जांद छौ अर दर्जा पांच तक आंद आंद कथगा ही मास्टर रिटायर ह्वेन , स्कूल का बड़ा बड़ा पत्थर बि हाई स्कूल का पत्थर बणी गे छा किन्तु माया काका अबि तलक दर्जा पांच तक ही पौंछ।  हरेक कक्षा पास करण मा कम से कम द्वी साल लगांद छौ फिर बि माया काकन कबि बि घमंड नि कार।  दर्जा पांच मा जब माया काका तिसर दै इमतान दीणो गे तो सब डिप्टी इंस्पेक्टर साब भगवती प्रसाद पांथरी जीन  सचिदा दादा तैं बुलाइ अर दादा जीक  खुट मा मुंड धरिक प्रार्थना कार कि मास्टरों कु जानो  ख्याल कारो।  असल मा हमर आधारिक विद्यालय मा क्वी बि अध्यापक , इख तलक कि मरखुड्या से मरखुड्या मास्टर बि आणो तयार नि छा। तो एक समझौता का तहत पांथरी जीन माया काका तैं पास कार अर सचिदा दादान सौं घटि छौ कि माया काका की पढ़ाई बंद करे जाली। तो माया काका तैं छटी क्लास मा नि भिजे गे।

               चूँकि तब रिवाज ऐ गे छौ कि कृषि कार्य एक निसप्रिय , हीन , जयूँ -बित्युं कार्य च तो माया काका कृषि कार्य मा विशेषज्ञ  हूणों उपरान्त बि माया काका तैं सचिदा दादा जीक गद्दी नि मील अपितु ऊँ तैं दिल्ली भिजे गे अर माया काका तैं एक गैरेज मा काम मिल गे।  चूँकि यु काम माया काका की प्रवृति से मेल खांद छौ तो माया काका की प्रोग्रेस गति पूर्वक ह्वे।  आज माया काका तीन बड़ा गैरेजों मालिक च अर पढ्या -लिख्यां काकाक तौळ काम करदन।  भारत क्या अधिसंख्य देसुं मा बच्चों तैं ऊंक प्रवृति, प्रकृति ,  मति का हिसाब से शिक्षा नि दिए जांद तो इन मा माया काका सरीखा चरित्र पैदा हूंदन अर मे सरीखा लिख्वारो बान संस्मरण कु एक चरित्र बणदन।

Copyright@  Bhishma Kukreti  26  /10 /2014     
*लेख में  घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख  की कथाएँ , चरित्र व्यंग्य रचने  हेतु सर्वथा काल्पनिक है

 
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Bhishma Kukreti

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                                गौं मा हम नेतृत्व गुण कनै सिखदा छा !

                                       आपकी , अपणी  आत्मकथा , खुदेणो कथा , भाग -2       

                                              खुदेड़  :::  भीष्म कुकरेती

             हमर टैम पर सरकार नेतृत्व गुण सिखाणो बान चिंतित नि छे , फिकरमंद नि छे , शायद कॉंग्रेसी जवाहर लाल नेहरू से बड़ो नेता पैदा नि करण चाणा होला।  इलै नेतृत्व गुण सिखणो , लीडरशिप क्वालिटी  सिखणो या हेडशिप सिखणो क्वी संस्थान , संस्था , सभ्यता हमर गौं इ ना पौड़ी , टिहरी,  मा बि नि छे अर  कमिश्नरी कुमाऊं मा बि नि छे । चूँकि ब्वे-बाब अर काका -बाडा स्वतंत्रता का बाद बि राजा ,  पधानचारी अर पटवारीगिरी मा विश्वास करदा छा तो समाज मा नेता पैदा हूणों द्वार बंद ही छया।

     बचपन मा हमन जु बि गुण सीखेन वु सब दैब दत्त प्रकृति से ही सीखेन।

             हमर कूड़ो  चार पांच फांग तौळ एक बड़ो याने गांकी चवद्दी मा सबसे बड़ो डाळ सिमळौ डाळ छौ।  हर समय यु डाळ हम तैं याद रौंद छौ।  त म्यार दादा जी से लेकि अर मेरी साखी /जनरेसन तलक का बच्चोंन सिमळौ डाळ से अफिक सीख कि यदि तुम बड़ो ह्वेल्या तो लोग तुम तैं

हर समय याद कारल।  इलै हमर गांवक बच्चा अपण ऊंचाई बढ़ाणो बान रोज सुबेर बि अर श्याम बि कामना करदा छा कि गां मा सबसे ऊंचो मनिख ह्वे जौं।  चूँकि क्वी इन नि सिखांद छौ कि केवल इच्छा से ही मनिख ऊंचो नि ह्वे जांद अर इच्छा पूर्ति वास्ता काम करण पोड़द तो चैक बि हमर गांमा कैक बि उंचाई छै फिट तो छवाड़ो पांच फिट आठ इंच से अळग नि गे। 

     पल्ली सारि ना उल्ली सारी मा ही एक बेडुक  बड़ो ऊंचो डाळ छौ पर वै डाळ पर बेडु दाण आदि नि लगद छा अर थोड़ा दूर एक छुट बेडुक डाळ छौ जैपर झक्क फल लगदा छा।  वीं जगाक नाम छौ बेडुक सारि अर यु नाम वै बड़ा बेडुक डाळौ नाम पर ही पोड़ , किन्तु यु बेडुक डाळ रोज गाळी बि खांद छौ कि इथगा बड़ों डाळ ह्वैक बि हमर काम नि आंद।  अर जु छुट बेडुक डाळ छौ वैक प्रति सब्युंक आदर छौ कि छुट ह्वैक बि हमतैं फल खूब दींदु।  हम बच्चों मध्य ये पर बड़ी बहस हूँदि छे कि फलहीन ऊंचो /बड़ो हूण अधिक फायदामन्द हूंद कि छुट ह्वैक फलदार हूण अधिक सही हूंद।  या बहस हमेशा अंतहीन बहस हूंदी छे , किलैकि वै बेडुक ऊंचा हूण से वीं जगाक नाम बेडुक सारि पोड़ किन्तु सब लोग बड़ै तो छुट बेडुकी ही हूंद छे जु फल दींदो छौ।  पर कुछ समय बाद हमर समझ मा ऐ गे कि फल द्यावो ना या द्यावो किन्तु बड़ो हूण जरूरी च।  डिस्ट्रिक्ट बोर्ड की सड़क छे तो हमर गाँसे दुसर गां तक कु रस्ता का नाम रखे गे फिरोज गांधी मार्ग।  हमर बुबाजी तो छोडो हमर नात्यूं तैं बि नी पता कि फिरोज गांधी कु छौ अर फिरोज गांधीन हमर गाँवकुण कार क्या च कि जु वैक नाम से हमर गांवक सड़कौ नाम फिरोज गांधी मार्ग धरे गे ? फिरोज गांधी मार्ग से हम मानी गेवां कि फल द्यावो या नि द्यावो किन्तु यदि तुम बड़ा छा तो तुमर नामसे सारिक नाम या सड़क कु नाम पौड़ी जालो।  अब ऊंचो हूण चयेंद कि फलदार हूण चयेंद की बहस नि हूंदी।

         फिर हमन पौढ़ कि वै ताड़क डाळक क्या फैदा जु पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर।  किन्तु सच्ची बताऊं तो में सरीखा गढ़वाळी तैं या कविता बिलकुल समज मा नि आंदी , बिलकुल पसंद नी च , कुज्याण किलै या बेकार कविता स्कूलों सिलेबस मा रखे गे धौं ! चूँकि हम तैं ,परिवार  समाज नेतृत्व गुण पैदा करणो गुर नि सिखान्द छा तो हम प्रकृति से ही नेतृत्व का गुण सिखदा छा।  हमन प्रकृति से ही सीख कि  फल जथगा दूर ह्वावन , फल तुड़न मा जथगा मसुकिल हो , फल पाण माँ भयंकर परेशानी हो तो हम वै डाळ अर फल तैं अधिक महत्व दींदा छ।  जरा तुमि घड्यावदी , स्वाचदी , विश्लेषण कारदि कि   हम अखोड़ , बेडू , तिमलू , किनग्वड़ , हिसर , काफ़ळ , लिम्बु आदि फलों तैं अधिक तबज्जो , महत्व , इज्जत इलै दींदा किलैकि यूंक फल तुड़न , कट्ठा करण सरल नी हूंद।  फलों का सरताज श्रीफल की पूजा ही इलै हूंद कि श्रीफल तुड़न अति कठण हूंद।  जब कि खैणुक फल ग्वाळ पर ही लगदन अर डम्फु (बेरी ) तैं तुम भीम बैठ्याँ ही तोड़ सकदा तो आज तक हमर लोक गीतों , लोक कथाओं अर आधुनिक काव्य -कथाओं मा खैणु , डंफु कु उदाहरण नि मिलद। त हम बच्चौं तैं बचपन से ही पता चल गे छौ कि यदि तुमन बड़ु आदिम बणन तो कैक बि सौ सहायता सुद्दी , सरल , बेवजह ढंग से नि करण चयेंद अपितु अहसान दिखैक , जोर जोर से हल्ला कौरिक , लज्जित करिक ही सहायता करण चयांद।  तबि त आजकल बड़ो नेता वी माने जांद जु गायब रावो, जु कार्यालय, घौर या कखिम बि मुश्किल से मीलो,  अर जु बहुत देर से आपकी मांग पूरी कारो। 

अजकाल कॉंग्रेसी मोदी की काट , मोदीकी आलोचना करदन  , मोदी तैं फंडधुळया बतौंदन किलैकि मोदी छुटि से छुटि घटना तैं इवेंट मैनेजमेंट का द्वारा बड़ो सिद्ध करी दींद।  कॉंग्रेस्यूं का मोदी पर आरोप च , उंकी नरेंद्र भाई पर भगार लगाईं च , अर कॉंग्रेस्यूंन हार बि मान याल  कि नरेंद्र मोदीकी मार्केटिंग प्रभावकारी च।   हमन अपण बचपन मा मोदी स्टाइल मा मार्केटिंग सीखि आल छे पर हमर कॉंग्रेसी जन कि अपणा हड़क सिंग आदि अब बिसरी गेन।  हमर आस पास छोया या झरना फुटदा छा।  बहुत सा झरनौ मा पाणि भौत बगद पर हल्ला भौत इ कम हूंद किन्तु अधिकतर झरनों मा पाणी थोड़ा ही बगद किन्तु स्वीँसाट , फुंफ्याट इथगा जादा हूंद जन बुलया यु झरना ही असली गंगा हो।  जरा देव प्रयाग मा जावदी तो भगीरथी क्या आवाज करदी अर अलकनंदा बिलकुल शांत पर अर इनमा भगीरथी की पूछ अधिक हूंद।  त हमन बचपन से ही सीख ऐ छौ कि पाणी कम बि हो तो बि स्वीँसाट -फुंफ्याट , हल्ला गंगा से अधिक कारो।  मार्केटिंग का यी गुर हमन अपण झरनो से ही सीखि आल छौ।  चूँकि राहुल बाबा देवप्रयाग नि गेन तो ऊंन नि सीख कि पॉलिटिकल मार्केटिंग मा हल्ला बि जरूरी च।

रिक , बाग़ , स्याळ आदि जानवरों से बि हमन नेतृत्व की आवश्यकता जाणी। 

 हमन प्रकृति से ही नेतृत्व गुण सीखेन , प्रकृति से अग्नै आणो गुर सीखेन किन्तु फिर भी हम पिछलग्गू ही छंवां।

*** भोळ पढ़िए कि हमें नेतृत्व गुण न पनपें हेतु क्या क्या आवश्यक कार्यवाही या सवधानी बरती जातीं थीं

Copyright@  Bhishma Kukreti  27  /10 /2014     
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                          समाज मा नेता/नेतृत्व /लीडरशिप पैदा नि करणो  तरकीब

                                         आपकी  अपणी  आत्मकथा , खुदेणो कथा , भाग -4       

                                              खुदेड़  :::  भीष्म कुकरेती

 ब्रिटिश काल ना स्वतंत्रता का भौत बाद बि हमर गांवुं मा नेतृत्व विकास रुकणो भौत सा साधन , भौत सा तरीका अर भौत सा पाख -पख्यड़ छया।

 मुस्लिम आक्रांता राज का बाद भारत मा हरेक राजान इन नियम , इन रिवाज अर इन कार्यक्रम चलैंन कि स्थानीय नेतृत्व पैदा नि , स्थानीय नेतृत्व पैदा ह्वै  बि जा तो वैको विकास नि हो , स्थानीय नेतृत्व  विकसित बि हो तो भी वो राजा का जनमजात गुलाम ही रावो।

अब द्याखो ना जब हमर बूड़ ददा का बूड़ ददा बुल्दा ह्वावन कि राजा याने "बोल्दो बद्रीनाथ" तो अवश्य ही हमर बूड़ ददा कु झड़नाती कुझड़नाती याने भीष्म कुकरेती कु बुबा बि राजा बणणो नि सोची सकदो छौ। इन मा नेतृत्व जन्मणो सब रास्ता ही खतम करे गे छा।  जरा सामयिक हिसाब से तो द्याखो आम कॉंग्रेसी नांदेड  ( अशोक चौहाण कु चुनाव क्षेत्र ), लातूर (विलासराव पुत्र अमित ), सोलापूर (शिंदे कु चुनाव क्षेत्र ) टिहरी ( बहुगुणा कु क्षेत्र ) मा सांसद बणनो ख्वाब देखि नि सकद।

लालू यादव ऐंड कम्पनी का कार्यकर्ता प्रधान मंत्री बणनो सुपिन नि देख सकदन किलै कि प्रधान मंत्री कुर्सी पर त यादव परिवार ही बैठ सकद।

मुलायम सिंह यादव का राज मा मुख्यमंत्री अर प्रधान मंत्री की कुर्सी पर तो मुलायम परिवार  कु एकाधिकार सर्वमान्य च।

इनि डीएमके मा करुणानिधि परिवार , उड़ीसा मा पटनायक परिवार , पंजाब मा बादल कु राज , शिवसेना पर ठाकरे परिवार कु एकछत्र कब्जा , कश्मीर मा अब्दुला अर सय्यद लोगुं बपौती सब इन जनकजोड च कि आम लोगुं मध्य नेतृत्व पैदा नि हो.

   हमर गांवुं मा बि पधानचारी क्या छे ? परिवार वाद तैं बढ़ावा अर स्थानीय नेतृत्व बाढ़ की सदा सदा का वास्ता मौत।

फिर जब बि क्वी युवा कुछ नया करणो सोच्दु बि छौ तो  परम्परा की दुहाई देकि वैकि रचनाधर्मिता की डंडलि सजाये जांद छे , रचनाधर्मिता की चिता सजाये जांद छौ , युवा का अरमानो तैं परम्परा का लखड़ों  मा खुलेआम जळाये जांद छे.

यदि फिर बि युवा अपणी रचनाधर्मिता पर टिक्यूँ रावो तो वै तैं समझाये जांद छौ कि ----यु काम असंभव च , यु काम यीं दुनिया मा त ह्वेई नि सकद , यदि संभव हूंद तो पैलि नि ह्वे जांद। हमर गांवुं मा वी बड़ो ऋषि , बड़ो मुनि , बड़ो सयाणा माने जांद छौ जु ह्वे सकद च छोड़िक कतै नि ह्वे सकद की शिक्षा द्यावो।

हमर अड़ाण वाळ छुटि से छुटि गलती पर डंड दीण, गाळी दीण , पिटण -थिंचण  मा अग्वाड़ी रौंद था।  जब हमम ग़लती करणो साहस हि नि ह्वावो तो अवश्य ही हमम कुछ नया करणो हिम्मत ही नि रौंदि छे अर जब कुछ अभिन्न , कुछ विशेष , कुछ अलखणी नि हो तो नेतृत्व पैदा कखन हूण छौ ?

  नेता  पैदा करण, नेता कु विकास करण  , नेतृत्व करणो समाज तैं पळण -पुषण , नेतृत्व गुण कु फलण -फुलण मा सौ सहायता करण जरूरी हूंद। किन्तु हमर समाज एक दुसरो सौ सहायता मा पैथर नि रै होलु  तो बि अग्वाड़ी त नि छयो।  नेतृत्व पैदा करण माने गैर परम्परा तैं अंगीकार करण पर हमन हमेशा , हरसंभव गैरपरम्परा की हंसी उड़ाई , गैर परम्परा कु उत्थान तैं हराइ लीक से हठणै कोशिस नि कार।  आज बि हम परम्परा तैं सहायता दींदा अर गैरपरम्परा तैं सहायता नि दींदा।  कैक दादाक श्राद्ध, बुबा की तिरैं या ब्वेक सप्ताह वास्ता लाख रुपया उधार दे द्योला , किन्तु जरा क्वी ब्वालो कि मि तैं दुकान खुलणो बान कुछ हजार रुपया दे द्यावो तो हम एक धेला उधार तो छ्वाड़ो हम वै गैरपरम्परावादी तैं आशीर्वाद बि नि दींदा।  हम आज बि बिजिनेसमैन तैं बेटी दीण मा आनाकानी करदां।  गैरपरम्परा तैं हम सहायता नि दींद छा अर नेतृत्व क्षमता तो गैरपरम्परा से ही आंद।

हम हमेशा ब्याळै औजारूँ पुजारी रौवां अर इनमा हमर समाजन  नेतृत्व याने नया प्रकार का नेतृत्व का वास्ता खड्ढा ही खोदिन।

   हमर जातीय व्यवस्था बि नया तरां नेतृत्व पैदा करणो विरोधी ही छे।

नया काम कारो तो समाज टोकाटोकी करदो छौ त इन माँ नेतृत्व पैदा हूणों सब संभावनाएं बंद ही छया।

बस अपण पुटुक भौरों तक ही हमर समाज सीमित छौ तो इन मा नया  तरह का नेतृत्व जनमण कठण ही छौ।

एक फरमा पर चलण वाळ समाज नेतृत्व पैदा नि करद अपितु नेतृत्व पैदा करणो खांडियूँ (खान , Mines ) विनास करदु।

मि जब छुटू छौ तो  समाज मा नेता ही  पैदा नि ह्वावन की हर संभव कोशिस समाज करदो छौ।

Copyright@  Bhishma Kukreti  28  /10 /2014     
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Bhishma Kukreti

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                                             मोदी जी ! यि त ग्यूं बि खते गेन अर नांग बि दिखे गेवां

                                                  चबोड़्या , चखन्यौर्या , घपरोळया :::: भीष्म कुकरेती 

  आजकलौ समौ मा नरेंद्र मोदी सबसे होस्यार राजनेता , सबसे पॉपुलर लीडर छन अर ऊंक भाग्यरेखा मा एकआधिकारवाद त छैं इ च। अच्काल मोदी जी जै  पर हथ लगाणा छन वु मुख्यमंत्री बण जाणु च ,  जै काम तैं हथ मा लीन्दन वै काम की बड़ै , प्रशंसा , वै कार्य की वाही वाही मिल्दी बस सुप्रीम कोर्ट मा विदेशों मा काळा धन का मामला मा बड़ी मात ही नि खै गेन अपितु इन सि ह्वे गे जन बुल्यां - ग्यूं बि खतेन अर स्या वा नांग बि दिखे गे।

                       जब बिटेन नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री बणिन पिछली सरकार की पकयीं घीपक खिचड़ी खाणा छन , कॉंग्रेसी सरकार घोटिं  भांग पीणा छन अर कॉंग्रेस का कपड़ा पैरिक फर्र फर्र घूमिक देस ही ना  विदेश मा बि नाम कमाणा छन।

              अब द्याखो ना जब दिल्ली से माँ वैष्णो देवी ,जम्मू का वास्ता विशेष ट्रेन ट्रैक आरम्भ करणै बारी आई त हुस्यार नरेंद्र मोदीन शुभारम्भ की हरी झंडी दिखाइ इन लग जन बुल्यां इथगा कठिन काम मोदी जीन करी होलु जब कि काम तो मनमोहन सरकार कु पूरो कर्युं छौ।

                      जन धन बैंक योजना तो यूपीए सरकार मा  चलणि ही छे वु त बिचारु राहुल गांधी का दुर्भाग्य छौ जो  यीं योजना तैं गति नि मील , सफल मार्केटिंग नि ह्वे अर मोदी जीन सरा दुनिया मा ढोल बजै दे कि जन -धन योजना मोदी जीक खोज च।

            एक योजना बहुत दिनों से चलणि छे राजीव गांधी या फिरोज गांधी या कैफणी गांधी स्वच्छ ग्राम योजना।  बस मंथर गति से चलणि छे। मोदी जीन सांसद आदर्श ग्राम योजना नाम देकि यीं योजना तैं गति दे अर लोग समझणा छन , मी बि समजणु छौं अर इख तक कि राहुल गांधी हीन भावना से ग्रसित ह्वै गेन कि कास ! या प्रशंसा युक्त योजना प्रणव मुखर्जी , चिदंबरम जी बणादा।  जी  हाँ ! राहुल गांधी जी बि   मानिक बैठी गेन कि या योजना मोदी जीक मौलिक योजना च।

                       जयराम रमेश जी याने भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री की दुकान मा एक बोर्ड लग्युं छौ 'देवालय से पहले शौचालय ' नरेंद्र मोदी जीक सुनामी मा यु बोर्ड उड़दो उड़दो मोदीजीक दुकानिम चलि गे।  मोदी जीन बड़ा बड़ा रंगीन बल्ब लगैक बोर्ड चमकै दे अर हो हल्ला करिक जापनी प्रधानमंत्री , अमेरिकी राष्ट्रपति तैं चकाचक , झकाझक , झिलमिल बोर्ड क्या दिखाई कि जय रमेश ही ना सोनिया गांधी बि मनणि च कि 'हर परिवार को एक शौचालय ' योजना महान विचारक नरेंद्र मोदी जी की च ।

             मंगल ग्रह मा मंगलयान पठाणै , भिजणै सोच , योजना , कार्य कॉंग्रेस की छे।  पर जब मंगलयान मंगल ग्रह  की चौहद्दी मा पौंच तो मोदी जीन इन डुगडुगी बजाई,  इन ढोल बजाई अर जोर जोर से अपण पीठ अफिक थपथपाई कि इसरो का वैज्ञानिक बि समजण लगिन कि मगल ग्रह मा मंगलयान यीं सदी को महान नायक नरेंद्र भाई की वजह से ही पौंछ।

               इनि जब नरेंद्र मोदीजीन भौत सा यूपीए सरकार का कामुँ तैं अपण बताई तो भारतवास्युं तैं क्वी दुख नि ह्वे, क्वी परेशानी नि ह्वे , क्वी किंक्वळि  बि नि लग किलैकि नरेंद्र भाई की मनशा बढ़िया छे , जनकल्याण की दिल से आयीं इच्छा छे , ख्वाइस छे। जब इच्छा , मनशा , ख्वाइस मा खोट नि हो तो लोग 35 -45 रुपया किलो अल्लु, 140 रुपया राजमा , सौ रुपया किलो हरड़ खरीदद बगत बि सरकार या प्रधानमंत्री तैं गाळी नि दींदन , श्राप नि दींदन उल्टां मुआफ कर दींदन।

             किन्तु जब भाई नरेंद्र मोदीन देस -विदेश माँ व्याप्त काळो धन पर चुप्पी साधिं राइ तो लोगुं तैं नरेंद्र मोदी की मनशा पर शक हूण लग गे अर जब सुप्रीम कोर्ट मा विदेशी बैंको मा काळो धन का खातेदारों नाम बताण मा सरकारन  आनाकानी कार तो लोग समजी गेन कि नरेंद्र भाई का मन मा खोट च , दाळ मा कुछ काळो च , नरेंद्र भाई विदेशुं मा धर्युं काळु धन तो जाणि द्यावो देस मा जु ब्लैक मनी च वै ब्लैक मनी का बारा मा बि नि सुचणा छन। नरेंद्र भाई भूली गेन कि लोगुं आसा तो अब बि च कि देस -विदेश कु काळो धन भारत तैं मिल जावो।  पर छै इ मैना मा नरेंद्र मोदी  की मनशा पर सवालिया निशान लगल  त   महान धर्मनिरपेक्ष दिग्विजय सिंह , यीं दशाब्दी का महान कॉमरेड यचुरी अर यीं सदी का स्वघोषित  समाजवादी नीतेश कुमार तैं बि  उम्मीद नि छे कि काळो धन का मामला मा नरेंद्र मोदी की मनशा पर प्रश्न चिन्ह लगल ।

               वित्त मंत्री अरुण जेटली कु इंटव्यू कि विदेसी बैंकुं मा काळा धन का खातेदारुं नाम उजागर हूण से कॉंग्रेस शर्मसार होली से तो मोदी सरकार की पोल खुलि गे कि मोदी सरकार विदेसूं अर देस मा काळा धन भैर लाणो बारा मा कतई बि गंभीर नी च।  अरुण जेटलीक इन्टरव्युंन सरकार की गलत मनशा की ही कलई खोल दे। 

             ब्याळि  28  /10 /2014  कुण सुप्रीम कोर्टन विदेशो मा जमा काळो धन का मामला मा जनता की तरफ से   मोदी सरकार पर चमाटा मार , थप्पड़ मार , खैड़ा लगैन।   नरेंद्र मोदी सरकार पर या चमकताळ , थप्पड़ अर खैड़ा की गूंज साफ़ साफ़ धै लगाणी च  कि मोदी जी !  ग्यूं बि खतेन अर  आपकी नीयत , आपकी मनशा, आप  नांगी ह्वे गेन।

 

Copyright@  Bhishma Kukreti  29  /10 /2014     
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                    मैंगा अल्लु  का तीन यार - बणिया जमाखोर , अधिकारी घूसखोर  अर हरामी नेता

                                          चबोड़ , चखन्यौ , घपरोळ ::: भीष्म कुकरेती

टीवी ऐंकर - आज हम जगप्रसिद्ध भाजी /भुज्जि /सब्जी से मुखाभेंट करला अर मालुमात करला कि आखिर क्या कारण च कि अल्लु भुज्ज्युं राजा किलै च ?

टीवी दर्शक - आज भारत मा मैंगो  च इलै अल्लु भुज्ज्युं राजा च

ऐंकर - अल्लु जी ! आपको जनम स्थान कख च ?

अल्लु -दक्षिण अमेरिका पेरू  क्षेत्र मा अर आठ दस हजार साल पैलि मनिख मेरी खेती करण सीखि गे छा।

दर्शक -यां इतिहास जाणिक म्यार रुस्वड़म अल्लु थुका ऐ जाल !

ऐंकर -आप यूरोप मा कनै ऐ ह्वाला ?

अल्लु -स्पेनी लोग मि तैं पेरू बिटेन यूरोप लैन अर सोलहवीं सदी मा मेरी खेती  यूरोप मा शुरू ह्वे गे छे।  सत्तरहवीं अर अठारवीं सदी मा  मेरि गणत  यूरोपौ मुख्य भुज्युं मा हूण लग गे छे।

दर्शक -यां यीं जानकारी से म्यार पुटुक थुका भर्याल !
ऐंकर -भारत मा कब प्रवेश ह्वे होलु ?

अल्लु -सत्तरहवीं सदी मा ब्रिटिश मिसिनरी वळ मि तैं भारत लैन। आज भारत कु स्थान आलू उत्पादन मा  चीन का बाद दुसरर  स्थान च।

दर्शक -यां ब्रिटिश लोगुं बाराम बुले जांद कि ब्रिटिशर प्यार बि व्यापार का वास्ता करदन।

ऐंकर -उत्तराखंड मा आपक प्रवेश कनकैक अर कै समौ पर ह्वे होलु

अल्लु -1838 का करीब मेजर यंग न मेरी खेती देहरादून का पहाड्यूं मा शुरू करी छे।

दर्शक -हाँ पर आज पहाड़ी लोग बि पहाड़ी अल्लु वास्ता तरसणा छन। 
ऐंकर -आपकी क्या खासियत च , याने

अल्लु -याने ! न्युट्रिसनल वैल्यू क्या च ?

दर्शक -ठीक  भै एक मनुष्य जिंदगी  केवल अल्लु पर ज़िंदा रै सकद पर आज भारत मा अल्लु दिखेणा कख छन ?

ऐंकर -जी अल्लु जी ! न्युट्रिसनल वैल्यू !

अल्लु -इनर्जी च , कर्बोहाइड्रेट छन , मिनरल्स याने ट्रेस मेटल्स छन , लवण छन अर विटामिंन्स छन।

दर्शक -ठीक च पर ऐन टैम पर त महंगा ह्वे जांद
ऐंकर -इन बुले जांद बल अल्लु मा फैट याने वसा भौत हूँद ?

अल्लु -जी नही! यु लोग अज्ञानता का बस समझदन कि अल्लु मा फैट हूंद। मीमा मुंगरी , चौंळ , ग्यूं , सोयाबीन से बि कम फैट हूंद।

दर्शक -सस्तो हो तो  बिंडी फैट बि चलल।

ऐंकर -एक बात बताओ कि जब कि भारत मा 41 . 4 मिलियन मैट्रिक टन अल्लु हूंद फिर बि अल्लु इथगा मंहगा किलै च ?

अल्लु -कुछ मूलभूत  कारण छन।

दर्शक -इकै करिक  बता !
ऐंकर -जरा बथावदी।

अल्लु -सबसे पैल त या च कि किसान योजनाबद्ध खेती नि करदन।  जन कि ये साल अल्लु मंहगा ह्वे गे तो दुसर साल अधिकतर किसान अल्लु बुणो पैथर पोड़  जांदन अर एक साल अल्लु सस्ता ह्वेना कि दुसर साल बूंदि इ  नि छन.

दर्शक -द ल्या फिर से सरा दोष किसानो पर।
ऐंकर -दुसर कारण ?

अल्लु -किसानो तै पैदावार /प्रोडक्टिविटी/यील्ड  बढ़ाणो बान ट्रेनिंग की कमी। अधिसंख्य  किसानुं तैं पता इ नी च कि कैं जातिक अल्लु बोण , कथगा खाद आदि दीण आदि आदि

दर्शक -यां जै देस मा ट्रेनिंग तैं आफत समजे जावो  तो उख यी हाल होलु।
ऐंकर -हैंक कमी ?

अल्लु -फिर जब अल्लु निकाळे जांदन तो खुदाइ मा ध्यान नि हूण से बीस -पचीस टका अल्लु चोटिला ह्वे जांदन। अर बर्बादी अधिक हूंद

दर्शक -इखमा मा बि ट्रेनिंग चयेंद।  जै मजदूर तैं द्वी टैमौ भोजन नि मिल्द वै तैं समुचित औजार अर ट्रेनिंग कु द्यालु ?
ऐंकर -और ?

अल्लु -स्टोरेज  भण्डारीकरण  समुचित व्यवस्था नि हूण से हमर ड्यूरेबिलिटी कम ह्वे जांदी अर बर्बादी प्रतिशत बढ़ जांद।

दर्शक -पर भण्डारीकरण व्यवस्था की जिम्मेदारी कैक च ?
ऐंकर -आप अचाणचक  मंहगा किलै ह्वे जाँदा ?

अल्लु -जमाखोर बणियों की जमाखोरी, सरकारी अधिकार्युं घूसखोरी अर कमीना नेताओं द्वारा जमाखोर अर घूसखोरो तैं प्रोत्साहन दीण से।

दर्शक -मोदी जी ! अच्छा दिन कब आला ?

Copyright@  Bhishma Kukreti  30  /10 /2014     
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                    दाळ  इथगा ऐड़ाट -भुभ्याट किलै करणी च  ?
                          चबोड़ इ चबोड़म खेल गिंदवा ::: भीष्म कुकरेती



ब्याळि दाळ जोरूं से रुणि छे , ऐड़ाट -भुभ्याट करणी छे अर भयंकर सोग मा छे।
मीन पूछ -ये दाळ क्या भंगुल जाम ? किलै इथगा जोरूं से रुणि छे ?
दाळ -ह्यां पैल यी ब्यापरिक अखबारुं भाषा से परेशान थौ अब सि तुम पहाड्यूंन बि दिक कर याल।
मि -व्यापारिक अखबारु भाषा से तू परेशान ?
दाळ -हाँ ! जब मेरी बुवै हुणि हो त व्यापरिक खबर हूंदी बल उड़द अधिक बिकवाली से उछली असमान में ; जब मेरी निरै -गुड़ै समौ ह्वावो त समाचार छपद बल - ग्राहकों की उदासीनता से उड़द नरम पड़ी अर जब कुटै हुणि हो तो खबर आंद बल अधिक आवक से  उड़द लुढ़की।
मि -ओहो ! यी व्यापार्युं अपणी आपसै   भाषा च।  त्वे तैं यूँ शब्दों तैं गंभीरता से नि लीण चयेंद।  देख शाही इमाम कु आमंत्रण तैं जन क्वी गंभीरता से नी लीणु च तनि तू यूँ मंडी का गुप्त शब्दों तैं गम्भीरतापूर्बक नि ले.
दाळ -यां इन शब्द त्वैकुण प्रयोग ह्वावन तब दिखुल मि कि त्वै पर कन्न चिर्री पोड़द धौं !
मि -ह्यां ! रुण बंद कौर यी कारोबारी हिंदी भाषा च।  तू अंग्रेजी अखबार पढ़ा कर।
दाळ -अंग्रेजीम कम अन्याय हूंद जब मेरी फसल मंडी मा जांद तो अंग्रेजी अखबार छपदन कि उड़द इज ग्राउंडेड या उड़द इज नौट  शाइनिंग।
मि -मीन ब्वालना तू कारोबारी भाषाक लंग-लफड़ा मा नि पोड।  इन बता कि बिचारा पहाड्यूं से किलै रुसयीं छे , क्रोधित छे , पहाड्यूं पैथर हथ ध्वेक किलै पड़ीं छे ?
दाळ -अरे  कारोबारी भाषा त सये बि जांदी  किंतु तुम  निकज्जों उत्तराखंडी पहाड्यूं करतूत त बिलकुल असह्य च।
मि -ह्यां अब त प्रवासी अर निवासी पहाड़ी कुछ करदा इ नि छंवां तो जब  पहाड़ी ही परेशान नि छंवां त त्वै तैं क्यांक दुःख , क्यांक परेशानी , क्यांक अबजाळ (दुविधा ) ?
दाळ -अरे भारत तैं दाळ आयात करण पोड़द त मि तैं बुरु नि लगण ?
मि -इखमा बुरु लगणो बात क्या च जब हम दिवाळि मनाणो वास्ता द्यू -दिया, लक्ष्मी माटो मूर्ति आयत करिक बि नि शर्मांदा तो दाळ इम्पोर्ट करण मा क्यांक शरम , क्यांक लाज , क्यांकि बेज्जती ?
दाळ -तुम हिन्दुस्तान्यूं तैं शरम ल्याज नी च पर हम दाळु तैं त इन्सल्ट फील हूंद कि इण्डिया दाळ इम्पोर्ट करदो।
मि -ह्यां पर इखमा उत्तराखंड का पहाड्यूं क्या दोष ?
दाळ -पता च ? उत्तराखण्ड  का पहाड़ों माँ कथगा धरती बांज पड़ीं च ?
मि -हाँ , तकरीबन तीन चौथाई खेती लैक पुंगड़ -पटळ बांज पड़ीं छन।
दाळ -यदि पहाड़ी बांज पड़ीं धरती मा फसल उगावन तो ?
मि -भाषण दीण सौंग हूंद , बुलण सरल हूंद किंतु  करण कठण हूंद। 
दाळ -क्यांक कठण ?
मि -अरे गांऊं मा गूणी -बांदर , सुंगर छन तो फसल पात कनै करे जावो ?
दाळ -वै प्रवासी गढ़वाळी कैतै छै बेबकूफ बणानि ?
मि -क्या मतबल ?
दाळ -निकज्जा झूठ भौत बुल्दन।  उड़द , गहथ , तोर, मसूर  तैं गूणी बांदर नि खांदन अर सुंगरुँ कामै चीज दाळ नि हूंद।
मि -तो ?
दाळ -निकज्जा की सोच हुँचि हूंद।  तो क्या तुम पहाड़ी यदि पहाडुं मा दाळ की खेती करिल्या तो भारत तैं दाळ आयात करणै जरूरत बि नि होलि धौं !
मि -ह्यां पर दाळ उगाणो वास्ता आदिमुँ जरूरत नि पड़दी ?
दाळ -निकज्जों तैं बहाना चयेंद। जब तुम रोड , कूड़ बणानो वास्ता मजदूर आयात कौर सकदां तो पंजाब जन खेती वास्ता मजदूर इम्पोर्ट नि कर सकदां क्या ?
मि -हाँ पर तीन चौथाई लोग तो प्रवासी छन इनमा खेती कनकै ह्वे सकदी ?
दाळ -निकज्जा हमेशा रचनाधर्मिता से भागद।  सहकारिता से खेती नि ह्वे सकदी क्या ?
मि -कनकै ?
दाळ -निकज्जों मा नकारत्मक सोच की भरमार हूंद।  प्रवासी अर पहाड़ वासी सहकारिता से मजदूर बुलावो अर दाळ कि खेती कारो।
मि -पर ?
दाळ -नकज्जा  किंतु, परन्तु , इन नि ह्वे सकुद आदि का   गुलाम हूंदन।  सहकारिता से या  जमीन लीज पर द्यावो अर पहाड़ों मा दाळ उगाओ।
मि -पर एक समस्या च।
दाळ -निकज्जो हमेशा समस्याओं बोझ उठैक चलणु रौंद अर समाधानो बड़ो दुसमन हूंद।
मि -देखो ! हमर इख एक बड़ी दुखदायी समस्या च।  सूण त ले
दाळ - निकज्जा कहींका बोल !
मि -यदि प्रवासी पहाड़ वास्युं तैं क्वी सलाह मशबरा द्यावन तो पहाड़वासी बुल्दन बल अच्छा ! अब हम तैं मुंबईं -दिल्ली वाळ ज्ञान द्याल ?
दाळ -तो तुम प्रवासी पहाड़वास्युं की सूणो।
मि -यदि पहाड़वासी प्रवास्युं तैं राय द्यावन तो पता च प्रवासी क्या बुल्दन ?
दाळ -क्या ?
मि -प्रवासी बुल्दन बल अच्छा ! अब यूँ जयूँ -बित्युं आदिवास्युं बात सुणन हमन ?
दाळ -ठीक च।  यदि तुम प्रवासी -वासी  एक दुसर से सहकार नि करिल्या तो कुछ दिन बाद गढ़वाल गढ़वाल्युं नि रालो।  गढ़वाल कै हौरुं ह्वे जाल !


Copyright@  Bhishma Kukreti  31  /10 /2014     
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                                जरूर आप अध्यापक ही ह्वेल्या यदि   ….

                                      इना उना बिटेन ::: भीष्म कुकरेती

यदि आप सुबेर सुबेर , श्याम दैं या कखिम बि अपण घरवळि समिण गप मारदा कि तुमकुण इथगा ज्यादा छ्वारों ब्वे -बुबाऊं रोज फोन आंदन।
यदि तुमर रिस्तेदार आपकी जीमण मा शामिल नि हूंदन किलैकि वीं जीमण मां तुमर मित्र मास्टर ट्रांसफर , डीए , टीए की ही छ्वीं लगांदन।
आप अपण बिल्डिंग मा या गाँ मा जुपुक जुपुक इन हिटदा /घुमदा जन बुल्यां तुम परीक्षा हाल मा छंवां अर परीक्षार्थी द्वारा नकल करण रुकणा छंवां।
तुम ऊँ सब्युं से चिढ़दां जु चुइंगम खाणा रौंदन।
यदि तुम अपण दिन भरौ दिनचर्या सुणाणो हुवाँ अर तुमर घरवळि अखबार पढ़ण मा व्यस्त हो।
आप अपण चाबी , नेम प्लेट , कुर्सी , किताबुं  मा सलीका से अपण नाम लिखदाँ तो अवश्य ही आप अध्यापक छन।
जब क्वी कोचिंग या ट्युसन की काट कारो तो आप वै तैं भद्र या अभद्र गाळी दीण शुरू कौर दींदा।
यदि आप अपण घरवळि बणयीं  रुटि मा दोष ढूँडदा कि रुटि गोळ नी च तो आप कला अध्यापक ही ह्वेल्या।
यदि आप ब्यौ -बरातिक जीमण की प्रतिक्रिया मा ब्वालो कि पूरी आयताकार , त्रिभुजाकार छन या छे तो आप अवश्य ही ज्यामिति  अध्यापक छन।
आप तैं क्वी पूछो कि आजौ हाल क्या छन या आपक हाल क्या छन अर आपक जबाब हो कि आज सूरज तीन मिनट जल्दी आई , अदा सेंटीमीटर बरखा ह्वे तो आप भूगोल अध्यापक ही ह्वेल्या।
यदि आपन अपण समाज मा सही जबाबुं  तैं बदतमीजी मा दियां टिप्पणी मानो तो।
यदि आपक हथ खड़िया से भर्यां ह्वावन तो आप प्राइमरी अध्यापक छन अर यदि प्राइमरी अध्यापक ह्वेक बि चौक से हथ नि भर्यां ह्वावन तो आप गढ़वाल का कै स्कूलम मास्टर छंवां याने एक छात्र द्वी मास्टर !
आपक पैंट पर खड़िया  , धूळ लगीं हो तो आप प्राइमरी टीचर छन।
आप नरेंद्र मोदीक भाषणो मादे व्याकरणीय गलती खुज्यांदा
जब आप सोनिया गांधीक भाषण सुणदा अर बुल्दा जैन सीं तैं हिंदी सिखाई उ/वा  अवश्य मद्रासी होलु या ह्वेलि 
  Bhishma Kukreti  1  /11 /2014     

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