शेर दा अनपड़ यह एक बहुत अछी कविता है जिसे बिष्ट साब ने आपनी किताब शेर दा अनपड़ संचयन में लिखा है! कविता शीर्षक है तुम और हम
तुम और हम
तुम भया ग्वाव गुसै
हम भयां निगाव गुसै!
तुम सुख में लोटी रैया
हम दुःख में पोती रैया!
तुमि हरी काकाड जास!
हम सुकी लकाड़ जास !
तुम आज़ाद छोड़ी जत्ती (भैसा) जास
हम गोठाई बाकर जास!
तुम स्वर्ग, हम नरक
धरती में, धरती आसमान क फरक!
तुमार थाइन सुनुक रुवाट
हमरी था इन टुवाट टुवाट !
तुम धुकवे चार खुश!
हम जिबाई भितेर मुस!
तुम तड़क भड़क में
हम बीच सड़क में !
तुम सिहासन भै रैया
हम घर घाट है भै रैया!