Author Topic: शेर दा अनपढ -उत्तराखंड के प्रसिद्ध कवि-SHER DA ANPAD-FAMOUS POET OF UTTARAKHAND  (Read 91456 times)

Rajen

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श्री शेर सिंह बिष्ट "शेरदा" को श्रधांजलि देते श्री चन्द्र सिंह राही:





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Rajen

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विनोद सिंह गढ़िया

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फणींद्र अनुज कर दे इन्हें निर्मूल

नम आंखों से हम करते तुम्हें अलविदा।
प्यारे जन कवि प्रात: स्मरणीय शेर दा।
तुम्हारी रचनाओं में थी पहाड़ की सी टीस।
तुम्हें झुकाता उत्तराखंड का जन-जन शीश।
पहाड़ के पर्याय थे तुम यों जाने-माने।
हास्य व्यंग के थे एकमात्र अनूठे खजाने।
देवभूमि का किया तुमने यो उच्च भाल।
बन चले तुम कुमाऊंनी भाषा की सुमिशाल।
जन मानस से हो न सकते तुम कभी विदा।
हे प्यारे न्यारे कुमाऊंनी साहित्यकार शेर दा।
तुम्हें पाकर धन्य हो गई जन्मदात्री महतारी।
हो तुम एकमात्र जन-जन की श्रद्धांजलि की अधिकारी।
परलोक में चुभने न पावे कभी यमराज के शूल।
फणींद्र अनुज कर दे इन्हें प्रभावहीन निर्मूल।

फणींद्र कुमार पांडेय
ग्राम-सल्ला, चंपावत।

विनोद सिंह गढ़िया

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बड़ दु:ख हैगो, शेरदा ल्हैगो,

बात सांची न हो शेरदा ल्हैगो।
हंसी बहार नेपा-लद्दाख क पार,
दु:ख दर्द सब कैगो।
बड़ दु:ख हैगो शेरदा ल्हैगो
बात सांची न हो शेरदा ल्हैगो
बुवारी बुलबुल च्यैले लटी
बखता तेरी बैले ल्यून
शेरदा कै गो। बड़ दु:ख.....
पहाड़क शेरदा पहाड़ ज जीगो
पहाड़क मीठी भाषा हंसी-हंसी कैगो
बड़ दु:ख हैगो शेरदा ल्हैगो
सासुक ख्वारन बुवारी घुस
हड़पियन पड़ि मुसेमुस
शेरदा कैगो, बड़ दु:ख....
बखता तेरी बैले ल्यून
शेरदा कैगो
बड़ दु:ख है गो शेरदा ल्हैगो
बात सांची न हो शेरदा ल्हैगो।

सुशील कुमार मेहता
डीनापानी, अल्मोड़ा

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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शेर दा अनपड़ यह एक बहुत अछी कविता है जिसे बिष्ट साब ने आपनी किताब शेर दा अनपड़ संचयन में लिखा है! कविता शीर्षक है तुम और हम

तुम और हम

तुम भया ग्वाव गुसै
हम भयां निगाव गुसै!

तुम सुख में लोटी रैया
हम दुःख में पोती रैया!

तुमि हरी काकाड जास!
हम सुकी लकाड़ जास !

तुम आज़ाद छोड़ी जत्ती (भैसा)  जास
हम गोठाई बाकर जास!

तुम स्वर्ग, हम नरक
धरती में, धरती आसमान क फरक!

तुमार थाइन सुनुक रुवाट
हमरी था इन टुवाट टुवाट !

तुम धुकवे चार खुश!
हम जिबाई भितेर मुस!

तुम तड़क भड़क में
हम बीच सड़क में !


तुम सिहासन भै रैया
हम घर घाट है भै रैया!


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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तुम और हम

तुम भया ग्वाव गुसै
हम भयां निगाव गुसै!

तुम सुख में लोटी रैया
हम दुःख में पोती रैया!

तुमि हरी काकाड जास!
हम सुकी लकाड़ जास !

तुम आज़ाद छोड़ी जत्ती (भैसा)  जास
हम गोठाई बाकर जास!

तुम स्वर्ग, हम नरक
धरती में, धरती आसमान क फरक!

तुमार थाइन सुनुक रुवाट
हमरी था इन टुवाट टुवाट !

तुम धुकवे चार खुश!
हम जिबाई भितेर मुस!

तुम तड़क भड़क में
हम बीच सड़क में !

तुम सिहासन भै रैया
हम घर घाट है भै रैया!


तुमरि कुड़ी छाजी रै
हमरी कुड़ी बाँजी है रै!

तुमर गाउन घियुंकी तौहाड़
हमर गावन आंसू क तौहाड़!

तुम बेनामिक रुवाट खान्या
हम ईमान क ज्वात खान्या!

तुम पेट फुलूण में लागा!
हम पेट लुकूंण में लागा!

तुम समजाक इज्जतदार!
हम समजाक भेद गवार!

तुम मरी ले जियुनै  भया
हम जियूंन ले मरिये रैया!

तुम मुलुक कै मारण में छा
हम मुलुक पर मरण में छा!

तुमुल मौक सुनुक महल बनै  दी!
हमुल मौक पा गर्दन चडै दी!

लोग कूनी एक्कै माइक च्याल छाँ
तुम और हम
अरे ! हम भारत मैक छा!
और साओ! तुम कैक छा!



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भुर-भुर उज्याव जसि जाणी रात्ति-ब्याण
भेकूवे सेकड़ि कसि उड़ी जै निसाण
खित्त कने हसण और झऊ कने चान...
मिशिर हबे मीठि लागी, कार्तिके मौ छे तू!
पूसकि पालनि जसि, ओ खणयूँणी को छे तू !!
(sher da)

 

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