Author Topic: शेर दा अनपढ -उत्तराखंड के प्रसिद्ध कवि-SHER DA ANPAD-FAMOUS POET OF UTTARAKHAND  (Read 91558 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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By - गोपाल सिंह नेगी

 हास्य कवि शेर सिंह बिष्ट  "शेरदा "अनपढ़" जी की संक्षिप्त जीवनी
 ===================================
 
 कुमाउनी भाषा के जाने माने हास्य कवि शेर सिंह बिष्ट "अनपढ" जी का जीवन सफर इतना रोचक है कि उस पर पूरा एक पुस्तक लिखा जा सकता है।वे कभी स्कूल नहीं गये, पर स्कूल जाने वाले बड़े बड़े बुद्धिजीवी भी उनकी कविता मे निहित सादगी,गांभीर्य और हास्य को देखकर हतप्रभ रह जाते है।शेरदा के स्वभाव मे बचपन से ही एक मस्ती है और इसी मस्ती मे उन्होने पहाड़ मे एक रचना कर्म किया है उसमे इतना वैविध्य और चुटीलापन है कि कोई भी उनकी कविता सुन कर दाद दिये बिना रह नहीं सकता है। वे अपनी बचपन के दिनो को इस प्रकार कविता मे व्यक्त करते है :-
 
 "गुच्ची खेलण मे बचपन बीतौ आल्माड गौ माल मे।
 बुदापा हल्द्वानी काटॉ जवानी नैनीताल मे।
 आब शरीर पंचर ह्वे गो चीमड़ पड़ गयी गाल मे।
 शेरदा सवा शेर छि पर फस गो बडुवा जाल मे।
 
 शेरदा कहते थे कि उन्हे उनका जन्म तिथि भी पता नहीं थी बाद मे फ़ौज (बॉय कम्पनी) मे भर्ती होने के समय उनका जन्म तिथि ०३ अक्टूबर १९३३ लिखा गया.उनका जन्म अल्मोड़ा बाज़ार से २-३ किलोमीटर दूर माल गाव मे हुआ था, जब वे चार साल के थे उनके पिता का देहांत हो गया था। घर की माली हालत खराब हो गयी. यहा तक कि जमीन मां का जेवर सब गिरवी रखना पड़ा. उन्हे बस इतना पता है कि वे अपने ही गाव के एक व्यक्ति के घर पर रहते थे। वे दो भाई थे बड़े भाई का नाम भीम सिंह बिष्टक था.उनके बचपन के दिन काफी परेशानी मे गुजरे.उन्हे गाव मे किसी के भैस चरने और बच्चे खिलाने का काम करना पड़ा. बाद मे अपने इन्ही अनुभवो को कविता मे व्यक्त किया :-
 
 पांच सालक उमर गौ मे नौकरी करण फैटू, काम छि नान भौ डाल हल्कू ण
 नान भौ ले दाड़ नी मारछि द्विनुक भल है रौछि मन बहलूण.
 
 इस काम के बदले उन्हे आठ आने मिलते थे।
 
 जैसा कि हम जानते है कि वे कभी स्कूल नहीं गये पर उन्हे अक्षर ज्ञान कैसे हुआ? उन्होने बताया कि जब वे आठ साल के थे तो वे शहर आ गये थे जहा उन्होने एक मास्टरानी जिनका नाम बचूली था उनके घर मे नौकरी क़ी. उस मास्टरनी ने घर के काम के साथ उन्हे घर मे ही पढ़ाया. कुछ ही दिनो मे उन्हे अखबार पढ़ना आ गया। फिर वे बारह साल क़ी उम्र मे अपने बड़े भाई के साथ आगरा आ गये उन्के बड़े भाई रोजगार ऑफीस मे चपरासी थे। वहा रहने क़ी दिक्कत नहीं थी सो  छोटी मोटी नौकरी करने लगे. फिर एक दिन भर्ती दफ्तर मे फ़ौज क़ी भर्ती थी (बॉय कम्पनी क़ी) वे भी लाइन मे लग गये और ऑफीसर ने पूछा कि पढ़ना लिखना जानते हो और उस ऑफीसर ने उन्हे अखवार पढ़ने को दिया। उन्होने अखबार थोड़ा थोड़ा पढ़ के बताया और वे बॉय कम्पनी के लिये छांट लिये गये. वे बताते है कि उन्हे वह दिन अच्छी तरह याद है ३१ अगस्त १९५०.
 
 भर्ती होने के बाद उन्हे मेरठ भेज दिया गया।बड़ा अच्छा लगा सभी लोग बड़े अच्छे थे। उस खुशी को उन्होने ने इस कविता मे व्यक्त किया.
 
 "म्यार ग्वेल गनगनाथ मीह्यू दैड है पड़ी, भान माजड़ी हाथों मे रौफल ऐ पड़ी."
 
 १७-१८ साल की उम्र मे सिपाही बना दिया और मोटर ड्राइवर ट्रेड दे कर उन्हे गाड़ी चलना सिखाया  उनकी पहली पोस्टिंग झासी हुई. बाद मे जम्मू कश्मीर पोस्टिंग हो गयी वहा १२ साल रहे और फिर स्वास्थ्य खराब होने के कारण उन्हे पूना मे पोस्टिंग कर दिया। वहा उन्होने "दीदी बेणी" लिखा जो खास उन बैनियों के लिये था जिन्हे कुछ लोग बहला फुसला कर पूना के कोठों मे बेच देते थे. उनकी उस कविता के कुछ अंश ये है:-
 
 सुण लियो भाल मैसो पहाड़ रुणौ रौ
 नान ठूल सबै सुणो ये म्यारा कुरेदो
 दीदी बैनी सुनि लिया अरज करनू
 चार बाता पहाडा का तुम संग करनू
 चार बाता लिखी दिनु जो म्यारा दिलम
 आज कल पहाड़ मे है रौ छ जुलुम
 नान ठूल दीदी बैणी भाजण फै गई
 कतुक पहाड़क बैणी देश मे एगई
 भाल घर कतुक है गई आज बदनाम
 जाग जाग एक नई, एक नई काम.
 
 फिर क्या था उन्हे कविता करने का जो चस्का लगा फिर पीछे नहीं देखा।
 १९६३ की बात है उनके पेट मे अल्सर होने के कारण वे फ़ौज से मेडिकल ग्राउंड से रिटाइर हो गये। २४-२५ साल के बाद वे जब घर पहुचे तो उस समा को उन्होने इन शब्दों मे व्यक्त किया :-
 
 आहा. पूजि गयो अलमाड़ गौ माल, तब चाखो मील अलमाड़क चमड़ी बाल.
 
 गाव मे बहुत बदलाव आ गया था कोई भी जान पहचान दिखाई नहीं देता था एक दिन एक कोलेज के मासाब चारू चन्द्र पाण्डेय जी से उनकी मुलाकात हो गयी. शेरदा जी ने उन्हे अपनी कविताओ की किताब दिखाई तो पाण्डेय जी बहुत खुश हुये और उन्हे बिजेन्द्र लाल साह जी से मिलवाया। साह जी ने शेरदा जी को सनडे को मिलने को कहा. सॅनडे को शेरदा जी ने उन्हे एक कविता सुनाई जिसके मुखड़े इस प्रकार है :-
 
 नैहे घाघरी नहे सुरयाव  कसी कटु ह्वून हिंगाव"
 
 सुन कर साह जी बहुत खुश हुए और कहने लगे कि शेरदा तुम्हारा शब्द चयन बहुत ही उच्च कोटि का है। फिर उन्होने शेरदा को होली के समारोह जो राम जे सभागार मे होता था, मे अपनी कविता सुनने को कहा. वहा शेरदा ने होली पर अपनी ये कविता सुनाई :-
 
 "होई घमिक रै चैत मे और सैणी लॅटिक रै मैत मे" सुनाई तो सभी ने खूब सराहा. रिस्पॉन्स भी अच्छा मिला फिर साह जी कहा कि नैनीताल मे एक सांक्रतिक सेंटर "गीत एवम् नाट्य प्रभाग" खुल रहा है और शेरदा ने भी अप्लाई कर दिया और ५० लोगों के साथ उनका भी चयन हो गया।
 बस यही से शेरदा "अनपढ़" के नाम से उनका नया सफर शुरू हुआ. अयारपाटा मे दफ्तर खुला। गीत कॅंपोज़ होने लगे कविताए बनने लगी. अधिकारी गण कहने लगे कि शेरदा तो हमारे पहाड़ के "रवीन्द्रनाथ टेगोर" हैं. ये सब सुनकर उन्हे अच्छा लगता और मन मे कुछ करने की चाहत  जागती. वहा उन्होने कुछ कविताये साहित्य के लिये तो कुछ मंच के लिये लिखी. मंच का कोई मतलब नहीं था कुछ ख़ास महफिलों मे ही शेरदा सुनाते थे.
 
 नौजवानो को अपने संदेश मे शेरदा जी ने ये शब्द कहे :-
 
 "मन मे लगन तो मुठि मे गगन"
 
 स्व० शेरदा "अनपढ़" जी ने निम्न काव्य रचनाए की:-
 १.  दीदी-बैणी
 २.  हसणे बहार
 ३.  ह्‌मार मै-बाप
 ४.  मेरी लटि-पटि
 ५.  जाठीक घुंगुर
 ६.  फ़ॅचैक
 ७.  शेरदा सामग्र
 8.  "को छै तू".
 
 फिलहाल विश्व विध्यालयो मे उन पर पांच शोध कार्य चल रहा है । जो व्यक्ति कभी स्कूल नहीं गया वे विश्व विध्यालायो मे पढाए जा रहे है, इससे बडकर और क्या सौभाग्य हो सकता है। हसणे बहार और पन्च म्याव नामक दो केसैट भी बाजार मे उपलब्ध है।   कुमाउनी हास्य कवि शेरदा "अनपढ" जी को मेरा शत-शत नमन.
 
 संयोजन : गोपाल सिंह नेगी.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मैं कसिक रुंल ?

दातुलि कुटैली हाथ कसिक थामूँल ,
दुःख - सुख हिरदै का कैहयणि कूँल ,
तू सुवा परदेश जालै , मैं कसिक रूंल ?

उठन उमर मेरी ,
यो भरी जौवन ,
हौंसिया दगाड निभै ,
झुरी जालो मन ॥

चतुर चौमास आलो कैक मुख चूँल ,
धीरज पराणि मज कसिक धरूँल ,
तू सुवा परदेश जालै , मैं कसिक रूंल ?

ल्यूने रूंनी दिनमास ,
ऋतुनैकि बहार ।
हंसि खेलि , दिन म्यारा ,
लागि जाला धार ॥

म्याल -ख्याल दिन आला कै दगडि जूंल ,
फुन चुडि यो घवेलि के हुणि छजुल ,
तू सुवा परदेश जाले , मैं कसिक रूंल ?

कैक संग कूंल बैरी ,
पिरीतै कि बात ।
कसिक काटूँल पापी
यो दिन यो रात ॥

जो बाटी परदेस न्है गे तै बाटी चै रूंल ,
मुखन अनवार तेरी छुटंण चितूँल ,
तु सुवा परदेश जालै , मैं कसिक रूंल ?

- शेरसिंह बिष्ट " अनपढ़ "

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 दुनियाक जै मुख चाना
 
 
 दुनियाक जै मुख चाना सुख भाजना द्वे कदुक टाड,
 पराई जै आपुण हुना किलै मारन आपणाहूँ डाड़ ll
 
 जागिजा ! जागिजा ! कैबेर दगौड़ नि हून,
 म्योर छू म्योर छू  कैबेर आपण नि हुन,
 आँखां बटिकै आँसू ऊनी,
 घुना बटिक जै के च्वीनी !
 
 घुना बटिक जै आँसू च्वीना के नि बगी रुना गाड़ ?
 पराई जै आपुण हुना किलै मारन आपणाहूँ डाड़ ll
 
 मनखी रर्वेनौ बोत्ये ल्हीन मन कसिक बोत्याई,
 दूनियाक दगाड़ रैबेर लै ऐकलै जो चिताई,
 द्वि घड़ि रात लै ठुलि लागनी वर्ष है बेर,
 को धन कैं ठुल बतूछां हर्ष है बेर l
 
 हर्ष लै वर्ष काटीनी कुरे दल घोईनी हाड़,
 पराई जै आपुण हुना किलै मारन आपणाहूँ डाड़ ll
 
 यो दुनियाक ह्याव हणी हम दुनी में आयाँ किलै ?
 अरे मनखिया एकनसै छी फिरि आपुणा में माया किलै ?
 कुंछा जै, आपुणी पराणि नि हुनि याँ और आपुण हूणी को छ ?
 आपुणै शरीर है ज्यादा आपूं कैं दुःख दिणी को छू ?
 
 दुःख लै दुःख व्यउमूना दिन लागना धार l
 पराई जै आपुण हुना किलै मारन आपणाहूँ डाड़ ll
 
 चै चै बेर अड्वाव नि हालौ खून में के फरक छू ?
 अन्वार लै तूमरि नि होली ज्युनि में के फर्क छू ?
 अरे ! शरीर कैं लुकै लै ध्याला एक दिन बाटै चैल,
 सुनाङण लै ढकै देला  छोपुं हूणी माटै चैल  ?
 
 त्यर मनखियाँ क ब्यौहार देखी मीर हँसनई हाड़,
 दुनियाक जै मुख चाना सुख भाजना द्वे कदुक टाड,
 पराई जै आपुण हुना किलै मारन आपणाहूँ डाड़ llSee Translation
दुनियाक जै मुख चाना दुनियाक जै मुख चाना सुख भाजना द्वे कदुक टाड, पराई जै आपुण हुना किलै मारन आपणाहूँ डाड़ ll जागिजा ! जागिजा ! कैबेर दगौड़ नि हून, म्योर छू म्योर छू  कैबेर आपण नि हुन, आँखां बटिकै आँसू ऊनी, घुना बटिक जै के च्वीनी ! घुना बटिक जै आँसू च्वीना के नि बगी रुना गाड़ ? पराई जै आपुण हुना किलै मारन आपणाहूँ डाड़ ll मनखी रर्वेनौ बोत्ये ल्हीन मन कसिक बोत्याई, दूनियाक दगाड़ रैबेर लै ऐकलै जो चिताई, द्वि घड़ि रात लै ठुलि लागनी वर्ष है बेर, को धन कैं ठुल बतूछां हर्ष है बेर l हर्ष लै वर्ष काटीनी कुरे दल घोईनी हाड़, पराई जै आपुण हुना किलै मारन आपणाहूँ डाड़ ll यो दुनियाक ह्याव हणी हम दुनी में आयाँ किलै ? अरे मनखिया एकनसै छी फिरि आपुणा में माया किलै ? कुंछा जै, आपुणी पराणि नि हुनि याँ और आपुण हूणी को छ ? आपुणै शरीर है ज्यादा आपूं कैं दुःख दिणी को छू ? दुःख लै दुःख व्यउमूना दिन लागना धार l पराई जै आपुण हुना किलै मारन आपणाहूँ डाड़ ll चै चै बेर अड्वाव नि हालौ खून में के फरक छू ? अन्वार लै तूमरि नि होली ज्युनि में के फर्क छू ? अरे ! शरीर कैं लुकै लै ध्याला एक दिन बाटै चैल, सुनाङण लै ढकै देला  छोपुं हूणी माटै चैल  ? त्यर मनखियाँ क ब्यौहार देखी मीर हँसनई हाड़, दुनियाक जै मुख चाना सुख भाजना द्वे कदुक टाड, पराई जै आपुण हुना किलै मारन आपणाहूँ डाड़ ll height=320

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तुम और हम !


तुम भया ग्वाव गुसैं,
हम भया निग्वाव गुसैं !

तुम सुख में लोटी रया,
हम दुःख में पोती रयां !

तुम हरी काकड जास,
हम सुकी लाकाड़ जास !

तुम आजाद छोड़ी जती जास,
हम गोठ्याई बकार जास !

तुम स्वर्ग, हम नरक,
धरती में, धरती आसमानौ फरक !

तुम सिंघासन भै रया,
हम घर घाट है भै रयां !

तुमरि थाइन सुनुक र्र्वट,
हमरि थाइन ट्वाटे– ट्वट !

तुम ढडूवे चार खुश,
हम जिबाई भितेर मुस !

तुम तड़क भड़क में,
हम बीच सड़क में !

तुमार गाउन घ्युंकि तौहाड़,
हमार गाउन आसुंकि तौहाड़ !

तुम बेमानिक र्र्वट खानया,
हम इमानांक ज्वात खानयाँ !

तुम पेट फूलूंण में लागा,
हम पेट लुकुंण में लागाँ !

तुम समाजाक इज्जतदार,
हम समाजाक भेड़-गंवार !

तुम मरी लै ज्युने भया,
हम ज्युने लै मरिये रयाँ !

तुम मुलुक कें मारण में छा,
हम मुलुक पर मरण में छाँ !

तुमुल मौक पा सुनुक महल बणैं दीं,
हमुल मौक पा गरधन चङै दीं !

लोग कुनी एक्कै मैक च्याल छाँ,
तुम और हम,
अरे ! हम भारत मैक छा,
ओ साओ ! तुम कैक छा ?

Hisalu

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Listen Sherda Poem "Both Hariya Heero Ka Hara.." here..

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यों हमार स्वर्गीय शेरदा क भौत भली कविता छू। सुख दुःख आपुन पराय पर। एक दम हिरदय स्पर्शी कविता छू। उम्मीद छो आपुन के जरुर पसंद आली। कविता लम्बी छो मीके टाइप कारन में टैम लगा थोडा।।


दुनियाक जै मुख चाना

दुनियाक जै मुख चाना सुख भाजना दवे कदुक टाड
पराय जै आपुण हुन किलै मारन आपणाहूँ  डाड़!!

           जागिजा! जागिजा!! कबैर दगौड़ नि हूँ,
           म्योर छू, म्योर छू, कबैर आपण नि हुन,
           आंखां बाटिक आंसू उनी
           घुन बटिक जै के च्वीनी!

घुना बटिक जै आंसू च्वीना के नि बगी रूनी गाड़ ?
पराय जै आपुण हुन किलै मारन आपणाहूँ  डाड़!!

      मनखी  रवेनौ बौत्यै ल्हीन मन कसिक बौत्याई,
      दुनिया दगाड रैबैर ले एकलै जौ चिताई,
      द्वि घडी रात लै ठुल लागनी वर्ष है बेर
      को धन कै ठुल बतून्छा हर्ष है बेर!

हर्ष ले वर्ष काटीनी कुरे दल घोएनी हाड!
पराय जै आपुण हुन किलै मारन आपणाहूँ  डाड़!!

         यो दुनियाक हयाव हुणी हम दुनी में आयाँ किले?
         अरे मनखिया एक्नसै छि फिरि आपुणा में माया किले ?
          कूंछा जै, आपुणी पराणि नि हुनी, याँ और आपुण हुणी को छ?
         आपुण शरीर है ज्यादा आपु  कै  दुःख दिणी  को छु ?

दुःख लै दुःख ब्यऊमूना  दिन लागना धार!
पराय जै आपुण हुन किलै मारन आपणा हूँ  डाड़!!

    चै-चै बेर अडवाव नि होलो खून में के फरक छू ?
    अन्वार ले तुमरि नि होली ज्यूनि में के फरक छु ?
    अरे ! शरीर लुकै लै ड्याला एक दिन बाटे चैल,
    सुनाडण ले ढकै देला छोपूं हुनी माट चैल!

त्यर मनखियांक ब्योहार देखि म्यार हसंई हाड़ ,
दुनियाक जै मुख चाना भाजना दवे कदुक टाड!
पराय जै आपुण हुन किलै मारन आपणाहूँ  डाड़!!
   
 

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पहाड़ाक  हाड़ : शेर दा "अनपढ़"
 
 म्यर पहाड़ा्क ढुंग डाव, धुर जगंलू बोट डा्व,
 गोठकि थूमि पाखैकि धुरि लुटै बेर
 द्वै पितरोंकि घर कुड़ी बज्यै बेर
 बांज बुरूँशिक जाड़्
 सल ड्यारांक खुंम्- खाड़्
 अध्यार-गध्यार
 अच्छ्याट-कच्छयाट
 उजंन, बुजंन
 रुजंन-भिजंन
 वरकनै-फरकनै
 मरनैं-मुचनै
 लोटीनैं-डोईनैं
 सिबौ !
 घुरी एै गईं गाड़ l     
 
 गाड़क गल्लोडूँ दगै
 नौं पुराँण् दगडूँ दगै
 कैं हैं दुखि
 कैं हैं सुखि
 कैं है नरै
 कैं हैं भुकि
 कैं हैं असल
 कैं हैं कुशल
 कैं हैं ज्युजाग
 कैं हैं पैलाग
 अगांव् हालंण है पैली
 ओ इजो !
 पड़िगै डड़ाडाड़ l
 
 आंसुक लगिलोंल जो लगै लग्याव
 गाड़ा्क गल्लोडूँ में पड़ि गे टूक्याव
 नौं ढुंग डावाँ में
 चड़ि गो नौतार
 हाड़ खुनां आँखां बै
 भिनेरा ड़ंगार
 तऊपूरै गाड़ में बौई गो उमाव
 उमाव कैं देखि बेर
 टूक्याव कैं सुणि बेर
 लुकंण फै गईं
 भाजंण फै गईं
 पहाड़ चुसंणी स्याव, धुर जन्ग्लूं काव्
 और हमा्र 
 गाड़ा्क गल्लोड़
 मरिबेर कुनईं  टूक्याव
 खबरदार !
 आ्ब क्वेनि बगौल गाड़
 आ्ब क्वेनि मारौल डाड़
 आई ज्यूनै छन
 ज्युनै रर्वाल
 हमार् पहाड़ाक हाड़ l

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बोटों में बसूँ म्योर पहाड़ा
 
 बोट हरीया हीरों का हारा, पात सूनूँ का चुड़,
 बोटों में बसूँ म्योर पहाड़ा, झन चलाया छुर ll
 
 आँखों म जा आँसु ल्यौनी, बुरुंशीं फूल,
 पहाड़ उधरि जालौ,हम कथाँ जूल ll
 
 दिदि बाचाला डाई-बौटों कैं, दाद बचाला धुर,
 जथकै हमार धुर-जंगला, उथकै हमौर सुर  ll
 
 बोट हरीया हीरों का हारा,पात सूनूँ का चुड़,
 बोटों में बसूँ म्योर पहाड़ा, झन चलाया छुर ll



 

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