Author Topic: शेर दा अनपढ -उत्तराखंड के प्रसिद्ध कवि-SHER DA ANPAD-FAMOUS POET OF UTTARAKHAND  (Read 91603 times)


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0



विनोद सिंह गढ़िया

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 1,676
  • Karma: +21/-0
"बोटों में बसूं म्यर पहाड़"
« Reply #154 on: October 07, 2013, 12:58:09 PM »
[justify] उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध हास्य कवि श्री शेर सिंह बिष्ट जी की एक कविता "बोटों में बसूं म्यर पहाड़"।

वे अपनी कविता के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का सन्देश देते हुए कह रहे हैं हरे पेड़ हीरों की हार की तरह हैं और इनकी पत्तियाँ सोने के कंगन की तरह हैं। हमारा पहाड़ तो पेड़ों में ही बसता है अर्थात पेड़ों के बिना हमारे पहाड़ का अस्तित्व ही नहीं है इसलिए इन पेड़ों पर कभी आरी मत चलाना (पेड़ मत काटना)।

[/justify]

विनोद सिंह गढ़िया

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 1,676
  • Karma: +21/-0
क्यूं दोस्तो सो गये? ???
« Reply #155 on: October 07, 2013, 04:36:34 PM »
क्यूं दोस्तो सो गये? ???

1994 के उत्तराखण्ड आन्दोलन में अचानक विराम लगने से उत्पन्न व्यथा को कुमाऊनी कवि शेरदा "अनपढ" ने इन शब्दों में व्यक्त किया।
इस दौर में भी इस कविता की प्रासंगिकता कम नही हुई है, जब राज्य बने 12 साल बीत चुके हैं और आम जनता नेताओं और पूंजीपतियों के द्वारा राज्य को असहाय होकर लुटता देख रहे हैं। कहीं भी विरोध की चिंगारी सुलगती नही दिख रही है. उम्मीद है कि शेरदा "अनपढ" की यह कविता युवा उत्तराखण्डियों को उद्वेलित जरूर करेगी।



चार कदम भी नही चले और तुम थक गये, क्यूं दोस्तों सो गये?
पर्वत तुम्हें आवाज लगा रहे हैं. सारा गांव तैयार हो चुका है और तुम बैठ गये?
क्यूं दोस्तों सो गये?

क्या भूल गये वो बन्दूक की गोलियां?
भाई बहनों की चीरी गयी छातियां. भूल गये क्या इज्जतें लूटी गयी थी?
तुम्हारी माँ बहनें मरीं थीं. हिमालय के शेर हो तुम. किस बिल में घुस गये?
क्यूं दोस्तों सो गये?

(हिन्दी अनुवाद: श्री हेम पन्त जी)


विनोद सिंह गढ़िया

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 1,676
  • Karma: +21/-0

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
मुर्दाक् बयान
 
 जब तलक बैठुल कुनैछी, बट्यावौ- बट्यावौ है गे
 पराण लै छुटण निदी, उठाऔ- उठाऔ है गे  ll
 
 जो दिन अपैट बतूँ छी
 वी मैं हूँ पैट हौ,
 जकैं मैं सौरास बतूँ छी
 वी म्यौर मैत हौ l
 माया का मारगाँठ आज
 आफी-आफी खुजि पड़ौ,
 दुनियल् तरांण लगै दे
 फिरलै हाथ हैं मुचि पड़ौ  l
 अणदेखी बाट् म्यौर ल्हि जाऔ- ल्हिजाऔ है गे l
 पराण लै छुटण निदी, उठाऔ- उठाऔ है गे  ll
 
 जनूँ कैं मैंल एकबट्या
 उनूँलै मैं न्यार करूँ,
 जनू कैं भितेर धरौ
 उनूँलै मैं भ्यार धरुं  l
 जनू कैं ढक्यूंणा लिजि
 मैंल आपुँण ख्वौर फौड़,
 निधानै घड़ि मैं कैं
 उनुलै नाँगौड़ करौ  l
 बेई तक आपण आज, निकाऔं  निकाऔं है गे  l
 पराण लै छुटण निदी, उठाऔ- उठाऔ है गे  ll
 
 ज्यूंन जी कैं छग निदी
 मरी हूं सामोउ धरौ,
 माटौक थुपुड़ हौ
 तब नौ लुकुड़ चड़ौ  l
 देखूं हूं कै कांन चड़ा
 दुनियैल् द्वी लाप तक,
 धूं देखूं हूं सबैं आईं
 आपुंण मैं-बाप तक l
 बलिक् बाकौर जस, चड़ाऔ है गे l
 पराण लै छुटण निदी, उठाऔ- उठाऔ है गे ll
 
 जो लोग भ्यारा्क छी ऊं
 दुखूं हूँ तयार हैईं,
 जो लोग भितेरा्क छी ऊं
 फुकूं हूं तयार हैईं l
 पराई पराई जो भै
 ता्त पाणि पिलै गईं,
 जनूं थैं आपुंण कूंछी
 वीं माट में मिलै गई l
 चितक छारण तलक बगाऔ-बगाऔ है गे l
 पराण लै छुटण निदी, उठाऔ- उठाऔ है गे  ll
 
 यो रीत दुनियैंकी चलि रै
 चलण जरूरी छू
 ज्यूंन रुंण जरूरी न्हैं
 मरण जरूरी छू l
 लोग कुनई दुनि बदलिगे
 अरे दस्तूर त वीं छन,
 छाति लगूणी न्हैं गईं यां बै
 आग् लगूंणी वीं छन l
 जो कुड़िक लै द्वार खोलीं, वैं लठ्याऔ- लठ्याऔ है गे l
 पराण लै छुटण निदी, उठाऔ- उठाऔ है गे l
 जब तलक बैठुल कुनैछी, बट्यावौ- बट्यावौ है गे ll

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Sher Da,,,


बोटों में बसूँ म्योर पहाड़ा

बोट हरीया हीरों का हारा, पात सूनूँ का चुड़,
बोटों में बसूँ म्योर पहाड़ा, झन चलाया छुर ll

आँखों म जा आँसु ल्यौनी, बुरुंशीं फूल,
पहाड़ उधरि जालौ,हम कथाँ जूल ll

दिदि बाचाला डाई-बौटों कैं, दाद बचाला धुर,
जथकै हमार धुर-जंगला, उथकै हमौर सुर ll

बोट हरीया हीरों का हारा,पात सूनूँ का चुड़,
बोटों में बसूँ म्योर पहाड़ा, झन चलाया छुर ll

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
फस्की यार

नेताज्यू बोटैकि ओट में चट्णि चटै गई l
यौ-ऊ मिलौल कै सौ गिन्ती रटै गई ll

जो हम निमूँल कूँछी हमरि पेटै आग l
और जै अनाड़ ऊँ हमार ततै गई ll

सौ सुखूँल भरि दयुँल कूँछी जो हमर फोचिन l
जे लै छि फोचिन में उ लै टपकै खै गई ll

नौ हौवाक बल्द कूँछी कुड़ि -कुड़ि रिटाल l
आब मालम पड़ौ लाटाँ कैं घुत्ती दिखै गई ll

घर-घर बरसुँल कुँछी बादलों चार l
आसमान चाँन-चाँनै आँख जै पटै गई ll

का्न में हाथ धरि कुँछी हमैं छाँ तुमर l
तौ तुमरि दिल्ली में ऊ हमा्र हरै गई ll

चुथरौव जौ मुखौ्ड़ छी उनर बड़ुवा जा टाँग l
को्प कुनाँछी आ्ब ऊँ फुल्की जा उसै गई ll

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22