Author Topic: शेर दा अनपढ -उत्तराखंड के प्रसिद्ध कवि-SHER DA ANPAD-FAMOUS POET OF UTTARAKHAND  (Read 101829 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भिखारी ?

कोड़ि नैं
काँण नैं
लुल नैं
लंगण नैं
डुन नैं ठुन नैं
घुन नैं मुन नैं
खौ्व-खौ्व लै
चव-चव लै
ग्वर उज्यौव लै
देखींणक लै
चाँणक लै
तौउ पुरै सयाँण लै
मोटै बेर भैंस
ठुल घरौकौ मैंस
सौ-सौक नौट माँगणी
शेर दा !
तौ कस भिखारि छू ?
अरे यौ प्राईवेट नैं
सरकारी छू l

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पहाड़ाक  हाड़ : शेर दा "अनपढ़"
 
 म्यर पहाड़ा्क ढुंग डाव, धुर जगंलू बोट डा्व,
 गोठकि थूमि पाखैकि धुरि लुटै बेर
 द्वै पितरोंकि घर कुड़ी बज्यै बेर
 बांज बुरूँशिक जाड़्
 सल ड्यारांक खुंम्- खाड़्
 अध्यार-गध्यार
 अच्छ्याट-कच्छयाट
 उजंन, बुजंन
 रुजंन-भिजंन
 वरकनै-फरकनै
 मरनैं-मुचनै
 लोटीनैं-डोईनैं
 सिबौ !
 घुरी एै गईं गाड़ l     
 
 गाड़क गल्लोडूँ दगै
 नौं पुराँण् दगडूँ दगै
 कैं हैं दुखि
 कैं हैं सुखि
 कैं है नरै
 कैं हैं भुकि
 कैं हैं असल
 कैं हैं कुशल
 कैं हैं ज्युजाग
 कैं हैं पैलाग
 अगांव् हालंण है पैली
 ओ इजो !
 पड़िगै डड़ाडाड़ l
 
 आंसुक लगिलोंल जो लगै लग्याव
 गाड़ा्क गल्लोडूँ में पड़ि गे टूक्याव
 नौं ढुंग डावाँ में
 चड़ि गो नौतार
 हाड़ खुनां आँखां बै
 भिनेरा ड़ंगार
 तऊपूरै गाड़ में बौई गो उमाव
 उमाव कैं देखि बेर
 टूक्याव कैं सुणि बेर
 लुकंण फै गईं
 भाजंण फै गईं
 पहाड़ चुसंणी स्याव, धुर जन्ग्लूं काव्
 और हमा्र 
 गाड़ा्क गल्लोड़
 मरिबेर कुनईं  टूक्याव
 खबरदार !
 आ्ब क्वेनि बगौल गाड़
 आ्ब क्वेनि मारौल डाड़
 आई ज्यूनै छन
 ज्युनै रर्वाल
 हमार् पहाड़ाक हाड़ l

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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एकौक बाब एक

तू मुस मैं बिराऊ
तू बिराऊ मं ढडू
तू ढडू मैं बन्ढाडु

तू मसाँण मैं खबीस
तु दस नम्बरी
मं चार सौ बीस

जड़ बटी टुक तक
देलि बटी दिल्ली तक
एक है एक जोरदार
बच्चीराम होल्दार

छूं कुनाँ हरेक
च्यल क्वे नैं
एकौक बाब एक !

विनोद सिंह गढ़िया

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शेर सिंह बिष्ट "शेरदा अनपढ़" का यह बहुत ही प्रसिद्ध कविता है।

चौमास क ब्याव

भादव भिन्न निझूत कनई, साई पौणिक चाव।
इन्द्रानी नौली हलानी हौल के अडाव।
डाना काना काखिन हसणी, चौमास क ब्याव।।

छलके हैलो अगास ले आपुन खबर क भान।
धुर जंगल खकोई गयी, पगोई गयी डान।।
गाव-गाव तलक डूबी गयी, खेत स्यार सिमार।
नटु गध्यार दगे बमकाण फैगो गाड़।।
गोठक पिरुल चवीने दाज्युक सुरयात।
डाना काना काखिन हसणी, चौमास क ब्याव।।

बौड़ी भूल रुपौल गैनई हंसी खेली दिनमान।
दबाब लागी बेर त्वाय मरनायी बादव बेमान।।
हाव बजे मुरुली सीवे दे का क मुरकली।
गिज भितेर गिज ताणनयी रुपली दुगुरली।।
कोणिक बलाड़ नाचनई इचाव निसाव।
मडुवा हाड़नहु दिनौ झुडर मुन्याव।।

संण संण संण सौण तड़ तड़ तड़ तड़ात।
द्न्यारे बंधार पूछने घरकी कुशल बाद।।
ओ दीदी ओ आम कुनै जोड़न जौ हाथ।
ज्यू जाग पैलाग हरै सार दिन पूरी रात।।
दूध जस पानी बगनी कराड़ी महाव।
खोई पटाड़न नाचनई चुपताव खाव।।

भुज तुमाड़ी तैड राडा खुसखुसाट।
चु उगाव तिल थमनायी भडरि बुबू हाथ।।
चमेली फूल छपेली गैनई गुल्डोरी चांचरी।
रंगली देवरों दगे नाचने हाँजरी।।
घौंत, भट्ट, मास, रैंस हालनई अड़ाव।
नाई माण, टुपार फारु मरनायी उछाव।
डाना काना काखिन हसणी, चौमास क ब्वाव।।

गडू, चिचन, लौकी, तोरई ठासी रेई ठदार।
पातो हौ आन, काथ कुनाई रात में ककाड़।।
प्याड़ जा नाशपती है रई महव जानी म्याव।
बेडू, आडू, घिंगाडू ओ ईजा! जाणी मिसिरी गवाव।।
खुंडी ओहरी ब्येरे बिगौत फराव।
डाना काना काखिन हसणी, चौमास क ब्याव

रंगली डाना टाक पैरनई धोती लगुनयी धार।
मखमली पिछौड़ी ओढ़नयई तलि मलि द्वि सार।।
सौणि धरतिल बने हाली नौणी जै गात।
बौलल जा दिन देखनई ब्योली जै रात।।
छवै नैयक पाणी फुटना छिपक जौ उमाव।
छाती में कुरकाती लागूना सुवक दी रुमाव।
डाना काना काखिन हसणी, चौमास क ब्याव।।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mahi Singh Mehta
 

उत्तराखंड के प्रसिद्ध जन कवि स्वर्गीय शेर सिंह बिष्ट (शेर दा 'अनपढ़') ने व्यग्यात्मक रूप में जनतंत्र के लिए यह कविता लिखी थी:-

जां बात बात में, हात मारनी
वै हैती कूनी, ग्राम सभा
हिंदी ( जहाँ बात बात में हाथ चलते है उसे कहते है ग्राम सभा)

जां हर बात में, लात मारनी
वै हैती कूनी, विधान सभा,
हिंदी - जहाँ हर बात में लात चलती है, उसे कहते है विधान सभा )

जां एक कूँ , सब सुननी
वै हैती कूनी, शोक सभा
हिंदी - जहाँ एक कहता और सब सुनते है, उसे कहते है शोक सभा)

जां सब कूनी , और क्वे नई सुणन
वै हैती कूनी, लोक सभा
हिंदी - जहाँ सब कहते है और कोई नहीं सुनता है, उसे कहते है लोक सभा)

इंटरनेट प्रस्तुति
एम एस मेहता (मेरापहाड़ फोरम डॉट कॉम)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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शेर दा का जवाब नहीं - अनपढ़ होने के बाद भी उनकी कविताओ का कोई मुकाबला नहीं -

१) तुम भया ग्वाव गुसै
हम भया निगाव गुसै

२) तुम सुख में लोटी रैया
हम दुःख में पोती रैया

३) तुम हरी काकड़ जास
हम सुकी लकाड जास

४) तुम आज़ाद छोड़ी जति (भैसा) जास
हम गोठाई बाकर जास

इंटरनेट प्रस्तुति - एम एस मेहता

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जीवन पाठक
April 18 at 12:23pm
सासू ब्वारिक वार्तालाप
(ब्वारी आपुण सास कैं धमकौने)
.......................................
सौरज्यू म्यारा भान माजाल,
और चूल लिपेली सास।
कचकच नी कर रंकरा,
बखत एरा यस।
आंग रेशमी साड़ी बिलोजा,
खुट चपल्ला काल।
कसकै हालुं आंग्वे सासू,
त्येर गूबराक डाल।
कसकै काटू घा लाकाड़,
धुर जंगला मांज।
कसकै कमु तेरी जमीन,
कसके पालुं बांज।
कसकै जा मे हांग भीड़ा में,
कसके गोडु खेत।
कसकै फूंकु चूल ओ सासू,
कसके चीरु पेट।
(शेरदा)

 

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