शेर सिंह बिष्ट "शेरदा अनपढ़" का यह बहुत ही प्रसिद्ध कविता है।
चौमास क ब्याव
भादव भिन्न निझूत कनई, साई पौणिक चाव।
इन्द्रानी नौली हलानी हौल के अडाव।
डाना काना काखिन हसणी, चौमास क ब्याव।।
छलके हैलो अगास ले आपुन खबर क भान।
धुर जंगल खकोई गयी, पगोई गयी डान।।
गाव-गाव तलक डूबी गयी, खेत स्यार सिमार।
नटु गध्यार दगे बमकाण फैगो गाड़।।
गोठक पिरुल चवीने दाज्युक सुरयात।
डाना काना काखिन हसणी, चौमास क ब्याव।।
बौड़ी भूल रुपौल गैनई हंसी खेली दिनमान।
दबाब लागी बेर त्वाय मरनायी बादव बेमान।।
हाव बजे मुरुली सीवे दे का क मुरकली।
गिज भितेर गिज ताणनयी रुपली दुगुरली।।
कोणिक बलाड़ नाचनई इचाव निसाव।
मडुवा हाड़नहु दिनौ झुडर मुन्याव।।
संण संण संण सौण तड़ तड़ तड़ तड़ात।
द्न्यारे बंधार पूछने घरकी कुशल बाद।।
ओ दीदी ओ आम कुनै जोड़न जौ हाथ।
ज्यू जाग पैलाग हरै सार दिन पूरी रात।।
दूध जस पानी बगनी कराड़ी महाव।
खोई पटाड़न नाचनई चुपताव खाव।।
भुज तुमाड़ी तैड राडा खुसखुसाट।
चु उगाव तिल थमनायी भडरि बुबू हाथ।।
चमेली फूल छपेली गैनई गुल्डोरी चांचरी।
रंगली देवरों दगे नाचने हाँजरी।।
घौंत, भट्ट, मास, रैंस हालनई अड़ाव।
नाई माण, टुपार फारु मरनायी उछाव।
डाना काना काखिन हसणी, चौमास क ब्वाव।।
गडू, चिचन, लौकी, तोरई ठासी रेई ठदार।
पातो हौ आन, काथ कुनाई रात में ककाड़।।
प्याड़ जा नाशपती है रई महव जानी म्याव।
बेडू, आडू, घिंगाडू ओ ईजा! जाणी मिसिरी गवाव।।
खुंडी ओहरी ब्येरे बिगौत फराव।
डाना काना काखिन हसणी, चौमास क ब्याव
रंगली डाना टाक पैरनई धोती लगुनयी धार।
मखमली पिछौड़ी ओढ़नयई तलि मलि द्वि सार।।
सौणि धरतिल बने हाली नौणी जै गात।
बौलल जा दिन देखनई ब्योली जै रात।।
छवै नैयक पाणी फुटना छिपक जौ उमाव।
छाती में कुरकाती लागूना सुवक दी रुमाव।
डाना काना काखिन हसणी, चौमास क ब्याव।।