Author Topic: SUMITRA NANDAN PANT POET - सुमित्रानंदन पंत - प्रसिद्ध कवि - कौसानी उत्तराखंड  (Read 173585 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कविता संग्रह / खंडकाव्य
उच्छ्वास / सुमित्रानंदन पंत
पल्लव / सुमित्रानंदन पंत (1926)
वीणा / सुमित्रानंदन पंत (1927)
ग्रन्थि / सुमित्रानंदन पंत (1929)
गुंजन / सुमित्रानंदन पंत (1932)
ग्राम्‍या / सुमित्रानंदन पंत
युगांत / सुमित्रानंदन पंत
युगांतर / सुमित्रानंदन पंत
स्वर्णकिरण / सुमित्रानंदन पंत
स्वर्णधूलि / सुमित्रानंदन पंत
कला और बूढ़ा चाँद / सुमित्रानंदन पंत
लोकायतन / सुमित्रानंदन पंत
सत्यकाम / सुमित्रानंदन पंत
मुक्ति यज्ञ / सुमित्रानंदन पंत
तारापथ / सुमित्रानंदन पंत
मानसी / सुमित्रानंदन पंत
युगवाणी / सुमित्रानंदन पंत
उत्तरा / सुमित्रानंदन पंत
रजतशिखर / सुमित्रानंदन पंत
शिल्पी / सुमित्रानंदन पंत
सौवर्ण / सुमित्रानंदन पंत
अतिमा / सुमित्रानंदन पंत
पतझड़ / सुमित्रानंदन पंत
अवगुंठित / सुमित्रानंदन पंत
ज्योत्सना / सुमित्रानंदन पंत
मेघनाद वध / सुमित्रानंदन पंत
चुनी हुई रचनाओं के संग्रह
युगपथ / सुमित्रानंदन पंत (1949)
चिदंबरा / सुमित्रानंदन पंत
पल्लविनी / सुमित्रानंदन पंत
स्वच्छंद / सुमित्रानंदन पंत (2000)
अनूदित रचनाओं के संग्रह
मधुज्वाल / सुमित्रानंदन पंत (उमर ख़ैयाम की रुबाइयों का फारसी से हिन्दी में अनुवाद)
अन्य कवियों के साथ संयुक्त संग्रह
खादी के फूल / सुमित्रानंदन पंत (बच्चन जी के साथ संयुक्त संग्रह)
कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ
प्रथम रश्मि / सुमित्रानंदन पंत
अनुभूति / सुमित्रानंदन पंत
परिवर्तन / सुमित्रानंदन पंत
अमर स्पर्श / सुमित्रानंदन पंत
यह धरती कितना देती है / सुमित्रानंदन पंत
मछुए का गीत / सुमित्रानंदन पंत
श्री सूर्यकांत त्रिपाठी के प्रति / सुमित्रानंदन पंत
प्रार्थना / सुमित्रानंदन पंत
सांध्य वंदना / सुमित्रानंदन पंत
लहरों का गीत / सुमित्रानंदन पंत
घंटा / सुमित्रानंदन पंत
वायु के प्रति / सुमित्रानंदन पंत
याद / सुमित्रानंदन पंत
महात्मा जी के प्रति / सुमित्रानंदन पंत
गंगा / सुमित्रानंदन पंत
विजय / सुमित्रानंदन पंत
आ: धरती कितना देती है / सुमित्रानंदन पंत
चींटी / सुमित्रानंदन पंत
खोलो, मुख से घूँघट / सुमित्रानंदन पंत
द्वाभा के एकाकी प्रेमी / सुमित्रानंदन पंत
सन्ध्या / सुमित्रानंदन पंत
तितली / सुमित्रानंदन पंत
ताज / सुमित्रानंदन पंत
मानव / सुमित्रानंदन पंत
बापू के प्रति / सुमित्रानंदन पंत
अँधियाली घाटी में / सुमित्रानंदन पंत
मिट्टी का गहरा अंधकार / सुमित्रानंदन पंत
ग्राम श्री / सुमित्रानंदन पंत
छोड़ द्रुमों की मृदु छाया / सुमित्रानंदन पंत
काले बादल / सुमित्रानंदन पंत
पर्वत प्रदेश में पावस / सुमित्रानंदन पंत
वसंत / सुमित्रानंदन पंत
संध्‍या के बाद / सुमित्रानंदन पंत
जग जीवन में जो चिर महान / सुमित्रानंदन पंत
भारतमाता ग्रामवासिनी / सुमित्रानंदन पंत
पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालीस / सुमित्रानंदन पंत
नौका-विहार / सुमित्रानंदन पंत
गृहकाज / सुमित्रानंदन पंत
चांदनी / सुमित्रानंदन पंत
तप रे! / सुमित्रानंदन पंत
ताज / सुमित्रानंदन पंत
द्रुत झरो / सुमित्रानंदन पंत
दो लड़के / सुमित्रानंदन पंत
धेनुएँ / सुमित्रानंदन पंत
ग्राम श्री / सुमित्रानंदन पंत
नहान / सुमित्रानंदन पंत
गंगा / सुमित्रानंदन पंत
चमारों का नाच / सुमित्रानंदन पंत
कहारों का रुद्र नृत्य / सुमित्रानंदन पंत
भारतमाता / सुमित्रानंदन पंत
चरख़ा गीत / सुमित्रानंदन पंत
महात्मा जी के प्रति / सुमित्रानंदन पंत
राष्ट्र गान / सुमित्रानंदन पंत
ग्राम देवता / सुमित्रानंदन पंत
संध्या के बाद / सुमित्रानंदन पंत
खिड़की से / सुमित्रानंदन पंत
रेखा चित्र / सुमित्रानंदन पंत
दिवा स्वप्न / सुमित्रानंदन पंत
सौन्दर्य कला / सुमित्रानंदन पंत
स्वीट पी के प्रति / सुमित्रानंदन पंत
कला के प्रति / सुमित्रानंदन पंत
स्त्री / सुमित्रानंदन पंत
आधुनिका / सुमित्रानंदन पंत
मज़दूरनी के प्रति / सुमित्रानंदन पंत
नारी / सुमित्रानंदन पंत
द्वन्द्व प्रणय / सुमित्रानंदन पंत
१९४० / सुमित्रानंदन पंत
सूत्रधार / सुमित्रानंदन पंत
संस्कृति का प्रश्न / सुमित्रानंदन पंत
सांस्कृतिक हृदय / सुमित्रानंदन पंत
भारत ग्राम / सुमित्रानंदन पंत
स्वप्न और सत्य / सुमित्रानंदन पंत
बापू / सुमित्रानंदन पंत
अहिंसा / सुमित्रानंदन पंत
पतझर / सुमित्रानंदन पंत
उद्बोधन / सुमित्रानंदन पंत
नव इंद्रिय / सुमित्रानंदन पंत
कवि किसान / सुमित्रानंदन पंत
वाणी / सुमित्रानंदन पंत
नक्षत्र / सुमित्रानंदन पंत
आँगन से / सुमित्रानंदन पंत
याद / सुमित्रानंदन पंत
गुलदावदी / सुमित्रानंदन पंत
विनय / ग्राम्या / सुमित्रानंदन पंत
आत्मा का चिर-धन / सुमित्रानंदन पंत
आजाद / सुमित्रानंदन पंत
मैं सबसे छोटी होऊँ / सुमित्रानंदन पंत
वे आँखें / सुमित्रानंदन पंत
मोह / सुमित्रानंदन पंत
बाँध दिए क्यों प्राण / सुमित्रानंदन पंत
बापू के प्रति / सुमित्रानंदन पंत
पाषाण खंड / सुमित्रानंदन पंत
जीना अपने ही में / सुमित्रानंदन पंत
बाल प्रश्न / सुमित्रानंदन पंत
फैली खेतों में दूर तलक मखमल की कोमल हरियाली / सुमित्रानंदन पंत
वह जीवन का बूढ़ा पंजर / सुमित्रानंदन पंत
धरती का आँगन इठलाता / सुमित्रानंदन पंत
आओ, हम अपना मन टोवें / सुमित्रानंदन पंत
बापू / सुमित्रानंदन पंत
जय जन भारत जन मन अभिमत / सुमित्रानंदन पंत
सोनजुही / सुमित्रानंदन पंत
धूप का टुकड़ा / सुमित्रानंदन पंत

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हाय! मृत्यु का ऐसा अमर, अपार्थिव पूजन?
जब विषण्ण, निर्जीव पड़ा हो जग का जीवन!
संग-सौध में हो शृंगार मरण का शोभन,
नग्न, क्षुधातुर, वास-विहीन रहें जीवित जन?

मानव! ऐसी भी विरक्ति क्या जीवन के प्रति?
आत्मा का अपमान, प्रेत औ’ छाया से रति!!
प्रेम-अर्चना यही, करें हम मरण को वरण?
स्थापित कर कंकाल, भरें जीवन का प्रांगण?
शव को दें हम रूप, रंग, आदर मानन का
मानव को हम कुत्सित चित्र बना दें शव का?

गत-युग के बहु धर्म-रूढ़ि के ताज मनोहर
मानव के मोहांध हृदय में किए हुए घर!
भूल गये हम जीवन का संदेश अनश्वर,
मृतकों के हैं मृतक, जीवतों का है ईश्वर!

रचनाकाल: अक्टूबर’१९३५

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उस फैली हरियाली में,
कौन अकेली खेल रही मा!
वह अपनी वय-बाली में?
सजा हृदय की थाली में--

क्रीड़ा, कौतूहल, कोमलता,
मोद, मधुरिमा, हास, विलास,
लीला, विस्मय, अस्फुटता, भय,
स्नेह, पुलक, सुख, सरल-हुलास!
ऊषा की मृदु-लाली में--
किसका पूजन करती पल पल
बाल-चपलता से अपनी?
मृदु-कोमलता से वह अपनी,
सहज-सरलता से अपनी?
मधुऋतु की तरु-डाली में--

रूप, रंग, रज, सुरभि, मधुर-मधु,
भर कर मुकुलित अंगों में
मा! क्या तुम्हें रिझाती है वह?
खिल खिल बाल-उमंगों में,
हिल मिल हृदय-तरंगों में!
 
रचनाकाल: मार्च १९१८

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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(१)
अहे निष्ठुर परिवर्तन!
तुम्हारा ही तांडव नर्तन
विश्व का करुण विवर्तन!
तुम्हारा ही नयनोन्मीलन,
निखिल उत्थान, पतन!
अहे वासुकि सहस्र फन!
लक्ष्य अलक्षित चरण तुम्हारे चिन्ह निरंतर
छोड़ रहे हैं जग के विक्षत वक्षस्थल पर !
शत-शत फेनोच्छ्वासित,स्फीत फुतकार भयंकर
घुमा रहे हैं घनाकार जगती का अंबर !
मृत्यु तुम्हारा गरल दंत, कंचुक कल्पान्तर ,
अखिल विश्व की विवर
वक्र कुंडल
दिग्मंडल !

(२)
आज कहां वह पूर्ण-पुरातन, वह सुवर्ण का काल?
भूतियों का दिगंत-छबि-जाल,
ज्योति-चुम्बित जगती का भाल?
राशि राशि विकसित वसुधा का वह यौवन-विस्तार?
स्वर्ग की सुषमा जब साभार
धरा पर करती थी अभिसार!
प्रसूनों के शाश्वत-शृंगार,
(स्वर्ण-भृंगों के गंध-विहार)
गूंज उठते थे बारंबार,
सृष्टि के प्रथमोद्गार!
नग्न-सुंदरता थी सुकुमार,
ॠध्दि औ’ सिध्दि अपार!
अये, विश्व का स्वर्ण-स्वप्न, संसृति का प्रथम-प्रभात,
कहाँ वह सत्य, वेद-विख्यात?
दुरित, दु:ख, दैन्य न थे जब ज्ञात,
अपरिचित जरा-मरण-भ्रू-पात!


(३)
अह दुर्जेय विश्वजित !
नवाते शत सुरवर नरनाथ
तुम्हारे इन्द्रासन-तल माथ;
घूमते शत-शत भाग्य अनाथ,
सतत रथ के चक्रों के साथ !
तुम नृशंस से जगती पर चढ़ अनियंत्रित ,
करते हो संसृति को उत्पीड़न, पद-मर्दित ,
नग्न नगर कर,भग्न भवन,प्रतिमाएँ खंडित
हर लेते हों विभव,कला,कौशल चिर संचित !
आधि,व्याधि,बहुवृष्टि,वात,उत्पात,अमंगल
वह्नि,बाढ़,भूकम्प --तुम्हारे विपुल सैन्य दल;
अहे निरंकुश ! पदाघात से जिनके विह्वल
हिल-इल उठता है टलमल
पद दलित धरातल !

(४)
जगत का अविरत ह्रतकंपन
तुम्हारा ही भय -सूचन ;
निखिल पलकों का मौन पतन
तुम्हारा ही आमंत्रण !
विपुल वासना विकच विश्व का मानस-शतदल
छान रहे तुम,कुटिल काल-कृमि-से घुस पल-पल;
तुम्हीं स्वेद-सिंचित संसृति के स्वर्ण-शस्य-दल
दलमल देते,वर्षोपल बन, वांछित कृषिफल !
अये ,सतत ध्वनि स्पंदित जगती का दिग्मंडल
नैश गगन - सा सकल
तुम्हारा हीं समाधि स्थल !



रचनाकाल: १९२४

Darius Sr

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Namaste,

Could someone help me to understand this poem?
Rough English translation?

घंटा / सुमित्रानंदन पंत

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

नभ की है उस नीली चुप्पी पर
घंटा है एक टंगा सुन्दर,
जो घडी घडी मन के भीतर
कुछ कहता रहता बज बज कर।
परियों के बच्चों से प्रियतर,
फैला कोमल ध्वनियों के पर
कानों के भीतर उतर उतर
घोंसला बनाते उसके स्वर।
भरते वे मन में मधुर रोर
"जागो रे जागो, काम चोर!
डूबे प्रकाश में दिशा छोर
अब हुआ भोर, अब हुआ भोर!"
"आई सोने की नई प्रात
कुछ नया काम हो, नई बात,
तुम रहो स्वच्छ मन, स्वच्छ गात,
निद्रा छोडो, रे गई, रात!


Respectfully,
Darius

 

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