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दुदबोलि : एक वार्षिक पत्रिका

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हेम पन्त:
पिछले सप्ताह "दुदबोलि" नामक एक वार्षिक पत्रिका पढने का मौका मिला. यह पत्रिका कुमाउंनी भाषा में प्रकाशित होती है. साथ ही इसमें गढवाली तथा नेपाली भाषा में भी सामग्री होती है. बडे जतन से इसके संपादक श्री मथुरा दत्त मठपाल जी विगत 7-8 सालों से सामान्य जनमानस के बीच कम प्रयुक्त होती जा रही कुमाउंनी भाषा को बचाने का एक भगीरथ प्रयास कर रहे हैं.

लेकिन अर्थाभाव के कारण इस त्रैमासिक पत्रिका को वार्षिक करना पडा. यह पत्रिका कुमाउंनी भाषा को बचाने का एक सशक्त माध्यम बन सकती है. आप पत्रिका के संपादक से निम्नलिखित पते पर सम्पर्क कर सकते हैं.

दुदबोलि
संपादक- श्री मथुरा दत्त मठपाल
पम्पापुरी, रामनगर
नैनीताल उत्तराखण्ड

आप का सहयोग कुमाउंनी भाषा के उत्थान के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा.

Rajneesh:
Very good Info Bhai ji


--- Quote from: हेम पन्त on October 27, 2007, 05:56:28 PM ---पिछले सप्ताह "दुदबोलि" नामक एक वार्षिक पत्रिका पढने का मौका मिला. यह पत्रिका कुमाउंनी भाषा में प्रकाशित होती है. साथ ही इसमें गढवाली तथा नेपाली भाषा में भी सामग्री होती है. बडे जतन से इसके संपादक श्री मथुरा दत्त मठपाल जी विगत 7-8 सालों से सामान्य जनमानस के बीच कम प्रयुक्त होती जा रही कुमाउंनी भाषा को बचाने का एक भगीरथ प्रयास कर रहे हैं.

लेकिन अर्थाभाव के कारण इस त्रैमासिक पत्रिका को वार्षिक करना पडा. यह पत्रिका कुमाउंनी भाषा को बचाने का एक सशक्त माध्यम बन सकती है. आप पत्रिका के संपादक से निम्नलिखित पते पर सम्पर्क कर सकते हैं.

दुदबोलि
संपादक- श्री मथुरा दत्त मठपाल
पम्पापुरी, रामनगर
नैनीताल उत्तराखण्ड

आप का सहयोग कुमाउंनी भाषा के उत्थान के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा.


--- End quote ---

Anubhav / अनुभव उपाध्याय:
Kya information khoj ke laaye ho Bhai +1 karma aapko.


--- Quote from: हेम पन्त on October 27, 2007, 05:56:28 PM ---पिछले सप्ताह "दुदबोलि" नामक एक वार्षिक पत्रिका पढने का मौका मिला. यह पत्रिका कुमाउंनी भाषा में प्रकाशित होती है. साथ ही इसमें गढवाली तथा नेपाली भाषा में भी सामग्री होती है. बडे जतन से इसके संपादक श्री मथुरा दत्त मठपाल जी विगत 7-8 सालों से सामान्य जनमानस के बीच कम प्रयुक्त होती जा रही कुमाउंनी भाषा को बचाने का एक भगीरथ प्रयास कर रहे हैं.

लेकिन अर्थाभाव के कारण इस त्रैमासिक पत्रिका को वार्षिक करना पडा. यह पत्रिका कुमाउंनी भाषा को बचाने का एक सशक्त माध्यम बन सकती है. आप पत्रिका के संपादक से निम्नलिखित पते पर सम्पर्क कर सकते हैं.

दुदबोलि
संपादक- श्री मथुरा दत्त मठपाल
पम्पापुरी, रामनगर
नैनीताल उत्तराखण्ड

आप का सहयोग कुमाउंनी भाषा के उत्थान के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा.


--- End quote ---

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Hem Da,

This is god news for all of us. A effort by the magazine to promote our language.

हेम पन्त:
दुदबोलि-2006 से साभार
लेखक- श्री बहादुर बोरा ग्राम गढतिर, बेरीनाग (पिथौरागढ)

तोss र गाड़ाक ढीक बै, पूss र डानाक अदम तक फैंली
म्यार गौंक, गाड खेत
क्वै चौड चकाल, क्वै चार हात एक बैत
आहा कस अनौख लागनीं?

ग्यौं, जौं, सरच्यंक पुडांड
मडुवा, इजर, धानाक स्यार
कै में भट-गहत
कैमें चिण-गन्यार
अहा! कस रंग-बिरंग छाजनीं?

किल्ल-महलाक जास,
खुटकण, शिवज्यू मन्दिराक जास सीढि
काला क दिन बै कायम
खानदान जास पीढि-दर-पीढि!
अहा! देख बेरि मन में स्वीण जामनीं!!

लेकिन यो खालि खेतै न्हैतिन
यो स्मारक छ, यादगार छन!
एक-एक कांध मेहनत कि काथ
और संघर्षकि व्याथा बाँचनी!

तोss र गाड़ाक ढीक बै, पूss र डानाक अदम तक फैंली
म्यार गौंक गाड खेत
आहा कस अनौख लागनीं?

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