Author Topic: मध्य हिमालयी कुमाउनी,गढ़वाळी एवं नेपाली भाषाओं व्याकरण का तुलानाम्त्क अध्ययन  (Read 16596 times)

Bhishma Kukreti

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Grammar of Nepali Language
Grammar of Mid Himalayan Languages



                                                    मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -10



 ( Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali Grammar and Nepali Grammar ,Grammar of Mid Himalayan Languages-Part-10 )



                                                                    सम्पादन : भीष्म कुकरेती


                                        Edited by : Bhishm Kukreti

                                                                  नेपाली विशेषण विधान

                                           Nepali Adjectives

                    प्राय: नेपाली में विशेषण शब्द -ओ से अंत होते हैं . यथा

ठुलो (बडी)

पुरानो (पुराना/पुरानी)

लामो (लम्बा)

किन्तु वचन व लिंग के अनुसार शब्दांत में स्वर बदल जाते हैं .यथा

एकवचन पुल्लिंग ---------------एकवचन स्त्रीलिंग --------------------------बहुवचन (पु.स्त्री) 

राम्रो (अच्छा )-------------------------राम्री ------------------------------------राम्रा

बाठो------------------------------------बाठी--------------------------------------बाठा

लाटो -----------------------------------लाटी -------------------------------------लाटा

कालो -----------------------------------काली -------------------------------------काला

मानो --------------------------------------मानी ----------------------------------माना

ठुलो ---------------------------------------ठुली ----------------------------------ठुला

  नेपाली में संकृत की तरह उभयलिंगी  विशेषण का भी  प्रयोग होता है, जैसे

असल केटो

असल केटी

असल केटोहरु   

असल केटीहरु

नेपाली भाषा में तुलनात्मक विशेषण बि पाए जाते हैं

                                                                      नेपाली विशेषण सम्बंधित कुछ नियम 

१- संज्ञा या सर्व नामों पर इनो  या इलो लगाकर विशेषण बनाये जाते हैं , जैसे

रस= इलो = रसिलो

हान्स =हँसिलो

२- विशेषण संज्ञा से पाहिले लगाये जाते हैं , जैसे

पुरानो मंदिर

राम्रो शहर

३- दशा सूचक विशेषण  प्रकार हैं

यो,  (यो किताब )

त्यो ( त्यो आइमाई )

४- सम्बन्ध बोधक विशेषण

मेरो  (मेरा)

हाम्रा (हमारा )

तिम्रो (तुम्हारा )

विशेषण संज्ञा के हिसाब से आचरण  करते हैं

 ५- संज्ञा के वचनों के हिसाब से विशेषण भी वचन बदल लेते, जैसे

ठुलो राजा ( एक वचन संज्ञा व एक वचन विशेषण )  व ठुला राजाहरू ( बहुवचनीय संज्ञा व विशेषण )

पुरानो मंदिर व पुराना मंदिरहरू

६- जब कोई विशेषण दोहराया जाता है तो इसका अर्थ है की यह बहुवचन है

त्यो पसल मा असल असल माल छ

अन्य उदहारण

सानसाना (छोटा  )

ठुलठुला ( बड़ा )

७- तुलनात्मक स्तिथि में कोई स्मबंध्कार्क शब्द प्रयोग होता है जैसे भन्दा

मुंबई दिल्ली भन्दा ठुलो छ ( मुंबई  दिल्ली  से बड़ा है )

सब का भी प्रयोग होता है

शहर को सब पसल बन्द छ  ( शहर  की सब दुकाने बन्द हैं ) 

८- प्रश्नात्मक विशेषणों में कहां (कहाँ ) , के  (क्या ) , कौं (कौं), कति  जैसे विशेषणों  का प्रयोग होता है






संदर्भ :



१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली

२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल


३- डा. भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद

४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून


५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला

६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून


७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत

८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत


९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ


१० - भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल

११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल






Comparative Study of Kumauni Grammar , Garhwali Grammar and Nepali Grammar (Grammar of , Mid Himalayan Languages ) to be continued ........



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                                                 मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -11

                                                                                                                                                                                                                                                                                        (Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali Grammar and Nepali Grammar ,Grammar of Mid Himalayan Languages-Part-11 )

                                                                                         सम्पादन : भीष्म कुकरेती     
                                            Edited by : Bhishm कुकरेती

                                                               

                                                Caes in Kumauni



                                                                  कुमाउंनी में कारक

 


२- संज्ञा समबन्धित कारक

प्रतिपादक अन्त्य बहुवचन

___________________________________________________

(एक वचन अविकारी कारक ) -----विकारी कारक----- संबोधन कारक



-आ; -----------------------------------आन --------------- --औ

भाया--------------------------------------भायान------------------ भाय्औ !

ओ ---------------------------------------आन ---------------- --औ

चेलो---------- -------------------------- च्यालान-------------- च्यालौ

-इ; -ए, -ऐ, -ऐं ------------------------, -ईन----------------- -औ

चेलि -----------------------------------चेलीन--------------------- चेलिऔ

मैं ----------------------------------------------------मैंईन - (प्राणी वाचक)

शै -----------------------------------------------------शैईन - (अप्राणी वाचक )

व्यंजनान्त - उ  -औ -------------------ऊन -------------------औ

गोरु --------------------------------गोरुऊन---------------- गोरौ

उगौ ------------------------------------------------------उगौऊन ---(अप्राणी वाचक )

बैग ----------------------------- बैगऊन------------------ बैगौ

बात् --------------------------------------- बात्ऊन ---(अप्राणी वाचक )

 

२- सर्वनाम व कारक

अविकारी कारक एकवचन व वहुवचन सर्वनाम
 

कुमाउंनी में अविकारी कारक एक वचन बहुवचन में परिवर्तित होता है . किन्तु दुसरे के अंतर्गत एक वचन और वहुवचन के रूप समान रहते हैं .

बहुवचन में परिवर्तन होने वाले सर्वनाम

वे जो एकवचन में स्वरांत होते हैं व बहुवचन में ब्यंजनांत हो जाते है - एक वचन क बहुवचन कक में, एकवचन अ बहुवचन अक में बदल जाता है. वैसे हम और हमि भी इसी कोटि में आते हैं जो smay, jati bhed के मुक्त परिवर्तन के उदाहरण

हम -उत्तम पुरुष बहुवचन द्योतक सर्वनाम है

तुम माध्यम पुरुष बहुवचन द्योतक है



----------------------------------- एक वचन --------------------------------------------------बहुवचन

----------------------------------उ (वह) --------------------------------------------------------उन (वे)

---------------------------------यो (यह) --------------------------------------------------------इन (ये)

--------------------------------तो (सो)----------------------------------------------------------तिन, तन

-------------------------------को----------------------------------------------------------------कन

---------------------------------जो --------------------------------------------------------------जन

कुछ अन्य नियमों के उदहारण



कुछ, शप, आफु

हम , हमुन

तुम , तुमन

उन , उनुन

इन , इनून

हमूनले (हमने ), हमून (हमको)

हमुंका (हमारा) , हमुश (हमको) , हमुकैं (हमको) , हमुकणि

आपुनान (अपनों को )

शबोका (सबका ) , शबाका (सबके) , शबकि (सबकी)

हमोरो, हमारा , हमरी , तुमोरो, तुमारा , तुमरी , इनोरो , इनारा, उनोरी , उनारा, उर्नार,

हम लोगून, हम शब्, हम शबुन , शब् जन, शब जनून

मेरवे (मेरा ही ) , तेर्वे (तेरा ही) , तुमी ((तुम ही) , मैंइ (मै ही ) , उनि (वे ही ) इनी (ये ही ) , हमई (हम ही ) , , उनीर्वे (उनका ही ) , इनौर्वे (इनका ही )

 

                                          ३-   कुमाउंनी में विशेषण व कारक

प्रतिपादक ----------------------------------------------विकारी कारक -------------------------------
निको -------------------------एक वचन --------------------बहुवचन

कर्ता कारक (ले)---------------निकाले --------------------निकानले

कर्मकारक (आश )----------निकाश -------------------निकान

करण ----------------------निकाक्पिति ---------------निकानक्पिति

सम्प्रदान -----------------निकाखिन-----------------निकानखिन

अपादान --------------------निकाबटे ----------------निकानबटे

छटी -------------------------निकाको ----------------निकानको

अधिकरण ------------------निका --------------------निकान में

सम्बन्ध --------------------निक-आ ! ---------------निकौ !

इसी प्रकार व्यंजनान्त विकारी बहु वचन में ऊन के पश्चात् कारक परसर्ग जुड़ते हैं

 

                                                             

 

संदर्भ :



१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली

२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल


३- डा. भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद

४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून


५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला

६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून


७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत

८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत


९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ


१० - भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल

११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल






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                                             मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -12

                                       (Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali Grammar and Nepali Grammar ,Grammar of Mid Himalayan Languages-Part-12 )


                                                                                  सम्पादन : भीष्म कुकरेती

                                              Edited by : Bhishm Kukreti
                                               Cases in Garhwali  Language

                                                                              गढ़वाळी   में कारक


कारक ----------------------------------परमर्ग या विभक्ति

१- कर्ता------------------------------- न

२-कर्म -------------------------------- तैं, थैं, सणि. सन,

३-करण ------------------------------न, से

४-  सम्प्रदान --------------------------कु, कुतैं, कुणि, कुण, खुणि

५- आपादान --------------------------- बटि,बटिन, बिटेन , मुंगै, न, चे, चुले

६- सम्बन्ध ---------------------------कु, को, का, कि, रो, रा, रि , ऐ, अ, इ,

७-अधिकरण-------------------------- मा, मद्ये , मांज, मन्जेंन, मुं , पर, उदै, जनै, जथैं,तनै 

८- संबोधन ----------------------------हे, हलो, ह्यल़े, ह्याजि, अजि !         
     

संदर्भ :

१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली

२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल


३- डा. भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद

४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून


५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला

६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून


७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत

८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत


९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ


१० - भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल

११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल

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                                                               मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -13
 

              ( Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali Grammar and Nepali Grammar ,Grammar of Mid Himalayan Languages-Part-13 )

                                                         सम्पादन : भीष्म कुकरेती

                                Edited by : Bhishm kukreti

 
 
                                                                 नेपाली कारक
                               
                                         Cases  in Nepali 
 
 

कारक----------------------एकवचन  ---------------------बहुवचन

कर्ता ------------------------ -------------------------------- हरु
 
कर्म -------------------------लाइ ----------------------------हरुलाई

करण ------------------------ल़े ------------------------------ हरुले
 
सम्प्रदान -------------------लाई ----------------------------हरुलाई

अपादान -------------------- बाट------------------------------ हरुबाट

संबंध ------------------------को -------------------------------हरुको 
 
अधिकरण-------------------मा -------------------------------हरुमा   

 


संदर्भ :





१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली

२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल


३- डा. भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद

४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून


५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला

६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून


७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत

८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत


९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ


१० - भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल

११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल






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                                              मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -14

                             ( Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali Grammar and Nepali Grammar ,Grammar of Mid Himalayan Languages-Part-14)


                                                            सम्पादन : भीष्म कुकरेती


                                   Edited by : Bhishm kukreti

 

                                                  कुमाउंनी भाषा में संधि


     संधि दो ध्वनियों का जुड़ कर  एक हो जाना है.

 कुमाउंनी में दो तरह की संधियाँ  पाई जाती हैं -

अ- स्वर संधि

ब- व्यंजन संधि

                                                  स्वर संधि के उदहारण
१- आन , इन, उन आदि का प्रयोग

च्याला = आन = च्यालान (आ+ आ = आ)

चेलि + इन = चेलिन  (इ+ ई = ई )

गोरु = उन = गोरून  (उ + ऊ = ऊ )

२- औट का प्रयोग

ओ + ओ = औ

तलौटो ( तलो + औ + ओ )

डलौटो ( डलो +औट +ओ )

                                                         व्यंजन संधि के उदाहरण

१- यदि पहले पद का ग् हो और दूसरा पद आदि ध्वनि ह् हो तो ग्  और  ह् = घ

आग् + हाल्नो = अघानो

२- लघु रूपता

अ- रुपिमिक अवस्था से प्रतिबंधित के पूर्णांक  गणनात्मक संख्या वाचक रुपिमो के परस्पर जुड़ने पर -

तीन +  बीस = तेईस

चार = बीस = चौबीस

ब- महाप्राण 'ठ' के पश्चात ह्रस्व ह आने से जोड़ शब्द में ह लोप  हो जाता है

कांठा +हाल्नो = कांठान्नो

स- पहले पद  का  द्वित व्यंजन के दुसरे व्यंजन के आदि नजन के जोड़ में कभी कभी द्वी तत्व नही रह जाता है

अन्न +जल = अंजल

द- नासिक्य स्पर्श युक्त संख्या वाचक विशेषणों में विशेषण व्युत्पादक पर प्रत्यय अथवा स्वतंत्र रु से जुड़ने पर नासिक्य का लोप हो जाता है

तीन + बीस = तेईस

तीन + तीस =तैंतीस

ध- पूर्णांक गणनात्मक संख्या के साथ -गुण प्रत्यय जुड़ने से ध्वनि लोप  है या कहीं ह्र्स्वी करण विद्यमान रहता है

१- तीन +गुनो= तिगिनो

चार + गुनो = चौगुनो

२- सात + गुनो =सतगुनो 

आठ +गुनो = अठगुनो 

न--  दो स्वतंत्र रूपिम समीप आंयें  तो  जुड़ने  पर पहले के अन्त्य स्वर का लोप हो जाता है

 गाड़ा+ ख्याता = गाड़ख्याता   

गोरु + बकरा = गोरबकरा

ठुला + नाना = ठुल्नाना 

प- यदि पहले पद का व्यंजनान्त और दुसरे पद  का आदि व्यंजन समान  हों  तो   तो एक का लोप हो जाता है

नाक = कटि   =नकटि

नाक =कटो = नकटो

फ- ह्र्स्वीकरण और प्रतिस्पथान में लाघुरुप्ता हो जाती है

सात +ऊँ =  सतूं

तेरा = ऊँ = तेरुं

भ- व्यंजन का अंत प्रतिपादक के उपरान्त यदि प्रत्यय आदी व्यंजन हो तो संयोग में प्रतिपादक व्यंजन ह्रस्व हो जाता है

कम + नि  = कम्नि   

म- ध्वनात्मक  समानता -

रुपिमिक अवस्था से प्रतिबंधित सीमा में गणनात्मक संख्यावाचक प्रतिपादक जैसे चालीस, तीस पहले उन जुड़ने से परवर्ती व्यंजनध्वनि लोप हो जाती है

उन + चालीस-= उन्तालिस (उनचालीस)

गं - विस्तार

योगिक क्रिया में विस्तार हो

द्वि + सरो = दुसोरो 

तीन + सरो = तिसोरो


संदर्भ :





१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली

२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल


३- डा. भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद

४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून


५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला

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८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत


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११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल






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                               मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -15


( Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali Grammar and Nepali Grammar ,Grammar of Mid Himalayan Languages-Part-15)


                                                                        सम्पादन : भीष्म कुकरेती

                                      Edited by : Bhishm kukreti
 

                                                                                गढ़वाली भाषा में संधि


डा भवानी दत्त उप्रेती ने जहाँ कुमाऊंनी भाषा में दो प्रकार की संधियों के बारे में पुष्टि की वहीं अबोध बंधु बहुगुणा ने गढ़वा ळी में तीन प्रकार की संधियों के उदहारण सहित व्याखा की है

श्रीमती रजनी कुकरेती ने संधियों का विभागीकरण न कर केवल उदहारण दिए हैं.

बहुगुणा अनुसार की संधि इस प्रकार हैं

१- स्वर संधि
 
२- व्यंजन संधि

३- वि:सर्ग संधि

                                            गढ़वाली में स्वर संधि
 
         

गढ़वाली भाषा के महानतम विद्वान् व लेखक अबोध बंधु बहुगुणा ने स्वर संधियों में किया

अ- दीर्घ स्वर संधि :
 
झट +आदि = झट्टदि

झट् + ट् = झट्ट

गंध + अक्षत = गंधाक्षत
 


ब- गुण स्वर संधि:

सुर +इंद्र = सुरेन्द्र

सुख + इच्छा = सुखेच्छा

बड़ो + उड़्यार = बड़ोड़्यार


स- वृद्धि स्वर संधि


जण + एक  = जणेक, जणैक                     

तंत = उखद = तंतोखद



द- यण स्वर संधि 

 भैजी + आदि = भैज्यादि

बौजि  + औरु = बौज्योरू



इ- अयादी चतुष्टय संधि



ने + अन = नयन

पो + इतर = पवितर

                                         २- गढ़वाली में व्यंजन संधि



वाक् + ईस

दिक् + गज = दिग्गज



                                          ३- गढ़वाली में विस:र्ग संधि



दु: + कर्म =  दुस्कर्म

अध्: + गति = अधोगति

शुरुवाती आधुनिक गढ़वाली के  कवि चंद्रमोहन रतूड़ी  की कविताओं में कुछ विशेष संधि युक्त शब्द भी मिलते हैं 

पैर + टेक = पैर्टेक

बढ़दि + और   = बढ़द्यौर

बुंदुन  + यख + इंद्र= बुंदुन्यखेंद्र 

मृग + और + अन्द्कार = मृगौरंधकार

आतुर - और + स्वास = आतुरोर्स्वास   

   

                                      गढ़वाली में संधि व परसर्ग विलोपन


 गढ़वाली में संधि व परसर्ग विलोपन भी होता है और कई एक जैसे उच्चारण वाले शब्दों की रचना हो जाती है. श्रीमती रजनी कुकरेती ने निम्न उदहारण दिए हैं


 लिखित रूप -------------------उच्चारण ----------------------------वास्तविक अर्थ


तक्खौ -------------------------तखौ ----------------------------------- तख़ च

तख़ औ -----------------------तखौ -------------------------------------तख़ औ

तखौ --------------------------तखौ -------------------------------------तख़ कु

तखै----------------------------तखै---------------------------------------तख कि

तख ऐ ------------------------तखै----------------------------------------  तख ऐ 

तख आ ----------------------तखा ----------------------------------------  तख आ

तखाS -----------------------तखा ---------------------------------------तख का

स्यै --------------------------- स्यै ----------------------------------------स्या इ

स्वी ---------------------------स्वी ----------------------------------------स्यू इ

वै ------------------------------वै -------------------------------------------वा इ

वी ------------------------------वी ----------------------------------------- वु इ

त्वी -----------------------------त्वी-----------------------------------------तू इ 

जखी --------------------------जखी --------------------------------------- जख इ

तखी --------------------------- तखी  --------------------------------------तख इ

सीतै ----------------------------- सीतै---------------------------------------- सीता इ

मिनी ---------------------------मिनी ----------------------------------------मिं इ

तन्नि-----------------------------तन्नि ---------------------------------------तन इ

रामी ------------------------------रामी -----------------------------------------राम इ

रामि का अर्थ गाय/भैंस का भूतकाल का राम्भना  भी होता है  यथा या गौड़ी किलै रामि होली ? 



 
 


संदर्भ:





१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली

२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल


३- डा. भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद

४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून


५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला

६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून


७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत

८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत


९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ


१० - भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल

११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल

१२- चन्द्र मोहन रतूड़ी , गढ़वाली कवितावली ( सं. तारा दत्त गैरोला, प्र. विश्वम्बर दत्त चंदोला) , १९३४, १९८९





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                                              मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -16


            ( Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali Grammar and Nepali Grammar ,Grammar of Mid Himalayan Languages-Part-16)


                                                                 सम्पादन : भीष्म कुकरेती

                                    Edited by : Bhishm Kukreti


                                                                     नेपाली में संधि विधान
१- अनियमित  सन्धि विधान


सु + आगत = स्वागत  ( उ का लोप होना, स स् में परिवर्तित होना, आ  का वा में बदल जाना )

खा + आई = खवाई   

भन् + आई = भनाई

गर् + आइ = गराइ


२- नियमित संधि विधान


अ- व्यञ्जनान्त मे  अ होने से इ  के जुड़ने पर इ क   ई मे बदलना

शहर + इ = शहरी

ब- इ का इय या इया हो जाना

उदाहरण = इय = उदाहरणीय 

शहरी +इया  =  शहरीया

स- यदि व्यंजनान्त में अ हो तो ए के जुड़ने से ए ही रहता है

अंगार + ए = अंगारे

विकास + ए = विकासे

ड़- व्यनाज्नंत में ओ हो और ए जुड़े तो परिवर्तन भिन्न  होता है

कालो = ए = काले

तीतो + ए = तीते




संदर्भ:





१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली

२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल


३- डा. भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद

४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून


५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला

६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून


७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत

८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत


९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ


१० - भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल

११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल

१२- चन्द्र मोहन रतूड़ी , गढ़वाली कवितावली ( सं. तारा दत्त गैरोला, प्र. विश्वम्बर दत्त चंदोला) , १९३४, १९८९

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                                                मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -17


                      ( Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali Grammar and Nepali Grammar ,Grammar of Mid Himalayan Languages-Part-17)

                                                                    सम्पादन : भीष्म कुकरेती
 

                                      Edited by : Bhishm Kukreti



                                                                     कुमाऊंनी भाषा में समास प्रक्रिया                                                           

                                                                   

                                                                   Compound in Kumauni Language



                         जब दो या दो से अधिक शब्दों के मध्य आपसी सम्बन्ध बताने वाले शब्दों अथवा प्रत्ययों के लोप हो जाय तो इस प्रकार निर्मित शब्दों को सामासिक शब्द कहा जाता है अथवा इस प्रकार के स्वतंत्र शब्द निर्माण को समास खा जाता है.

१- कुमाउंनी में शब्द स्तर के समास

शाग-पात

कमर-ज्योडि

बाल-गोपाल

बोट-डाळा

 

२- कुमाउंनी में  सर्वनाम समास प्रक्रिया

ज्वे - क्वे

शब् -क्वे


3- कुमाउंनी में विशेषण समास प्रक्रिया

घर -घुग्गु

मन-मौजि

४- क्रिया

घुश-पैठ

चल-फिर

५-- क्रिया विशेषण

शैज-शैज

माठुमाठु 

घडि -घडि (डि को छोटी डि पढ़ें)


 
संदर्भ:





१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली (  Structure of Garhwali Grammar)

२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल  (Structure of Nepali Grammar)


३- डा. भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद  (Study of Kumauni Language Grammar)

४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून ( Grammar of Garhwali Language)


५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला (Garhwali- Hindi Dcitionary)

६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून (Garhwali hindi Dictionary )


७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत

८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत


९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ


१० - भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल (Briefs on Nepali Grammar)

११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल  (Nepali Grammar)

१२- चन्द्र मोहन रतूड़ी , गढ़वाली कवितावली ( सं. तारा दत्त गैरोला, प्र. विश्वम्बर दत्त चंदोला) , १९३४, १९८९





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                             मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -18

                           ( Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali Grammar and Nepali Grammar ,Grammar of Mid Himalayan Languages-Part-18)


                                         सम्पादन : भीष्म कुकरेती

                           Edited by : Bhishm Kukreti



                                             गढ़वाली में समास प्रक्रिया

               

                                           Compounds in Garhwali

 

  जंहाँ रजनी कुकरेती ने गढ़वाली समासों को चार भागों में विभाजित किया है वहीं अबोध बंधु बहुगुणा ने छ भागों में विभाजित किया है.

पाठकों की सहूलियत हेतु बहुगुणा का विभाजन लाभप्रद होगा

१- अव्ययीभाव-

  यथाशक्ति , फी-अदिम, निजडु, सुनिंद , दूरंगि

२- तत्पुरुष

क- कर्म तत्पुरुष - पाणि-पिन्दारो, तमाखु-दिंदारि, डंड-बोक्को (सणि  , तैं )

ख- करण तत्पुरुष- पणभिजो (से) ,हांळ -मरो  (न ), हतातोड़ (न )

ग- सम्प्रदान तत्पुरुष - घ्वड़साल, ग्वर्बटों (को)

घ- अपादान तत्पुरुष - घर-निकाळी, भेळलमड्यूँ (से)   

ज्ञ-  संबन्ध तत्पुरुष  - टीरी-रज्जा,  घ्वाड़ा-खाळ

च- अधिकरण तत्पुरुष- घमसुखा (पर ) , गडवगा  (गाड में वहा)  , ध्यानमगन (मा)

३- कर्मधारय तत्पुरुष- कळमुख, मळमॉस

४- द्विगु तत्पुरुष  - तिरजुगी, चौमासो , बारोमासा, दुबटो   

५- बहुब्रीहि तत्पुरुष- पुडुखझड़ो, रूमझड़ो , दुमुख्या, मुंडारो   

६- द्वंद्व  तत्पुरुष -    भै- बैणा, ब्वेबाब , ग्वील-जसपुर, हथनुड़ -कुठार       


 
 
 
संदर्भ:





१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली ( Structure of Garhwali Grammar)

२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल (Structure of Nepali Grammar)


३- डा. भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद (Study of Kumauni Language Grammar)

४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून ( Grammar of Garhwali Language)


५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला (Garhwali- Hindi Dcitionary)

६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून (Garhwali hindi Dictionary )


७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत

८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत


९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ


१० - भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल (Briefs on Nepali Grammar)

११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल (Nepali Grammar)

१२- चन्द्र मोहन रतूड़ी , गढ़वाली कवितावली ( सं. तारा दत्त गैरोला, प्र. विश्वम्बर दत्त चंदोला) , १९३४, १९८९





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                                      मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -19


                   ( Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali Grammar and Nepali Grammar ,Grammar of Mid Himalayan Languages-Part-19)
                                                                         सम्पादन : भीष्म कुकरेती

                                              Edited by : Bhishm Kukreti
 
 

                                                                      Adverbs in Kumauni

                                                                      कुमाउंनी में क्रिया विशेषण रूप

                              कुमाउंनी में भी क्रिया विशेषण वाक्य में विशेषण एवम क्रिया के पूर्व आते हैं. अर्थ व कार्यानुसार क्रिया विशेष णो के निम्न भेद कुमाउंनी में  पाए  जाते हैं 
 
१- स्थान वाचक क्रिया विशेषण

.सार्वनामिक अंगों के साथ प्रत्यय संयोंग से स्थान वाचक क्रिया विशेषण की उत्पति होती है . यथा

याँ, वां, जां, तां , काँ ,

अघिल, नजिक , टाड़,

मलि, तलि

माला

पछा , अघा,

इथकै, उथकै, कथकै   

 

२- कालवाचक क्रिया विशेषण

आज, भोल, भोव, बेलि, पोरखी,पोबेलि,
 
आब, तब, कब, बाद,

 

३- रीति वाचक क्रिया विशेषण

 इश्शये, उश्शये, कश्शये, शैजले, माठूमाठु 
 
 

  ४- परिमाण वाचक क्रियाविशेषण

इतकु, , भौत, खूब, थ्वाड़ा,कुछ, शब , मनैं , मणि, कुल, जाम्मै, बांकि, बाहिक,

 

५-  निषेधात्मक  क्रिया विशेषण

नै, जन, मत,
 


सन्दर्भ   






१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली ( Structure of Garhwali Grammar)

२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल (Structure of Nepali Grammar)


३- डा. भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद (Study of Kumauni Language Grammar)

४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून ( Grammar of Garhwali Language)


५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला (Garhwali- Hindi Dcitionary)

६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून (Garhwali hindi Dictionary )


७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत

८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत


९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ


१० - भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल (Briefs on Nepali Grammar)

११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल (Nepali Grammar)

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