Author Topic: मध्य हिमालयी कुमाउनी,गढ़वाळी एवं नेपाली भाषाओं व्याकरण का तुलानाम्त्क अध्ययन  (Read 16595 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मध्य हिमालयी  कुमाउनी , गढ़वाळी एवं नेपाली  भाषाओं    व्याकरण का तुलानाम्त्क अध्ययन

(Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan  Languages )

 दोस्तों,
 
 मेरापहाड़ फोरम में उत्तराखंड के संस्कृति, भाषा, लोक संगीत, इतिहास आदि को बढावा देने के लिए हमारे वरिष्ठ सदस्य श्री भीष्म कुकरेती जी एक बहुत ही सराहनीय कार्य कर रहे है ! इस पोर्टल में भीष्म जी ने काफी रोचक एव ज्ञानवर्धक सूचनाये पोस्ट की है और हमें पाठको से उनके इस कार्य के लिए काफी सराहनीय प्रतिक्रिया भी मिल रहे है! हम भीष्म जी को इस कार्य  लिए बहुत -२ धन्यबाद देते है!
 
 भीष्म जी ने इस बार मध्य हिमालयी  कुमाउनी , गढ़वाळी एवं नेपाली  भाषाओं    व्याकरण का एक तुलनात्मक अध्ययन पर एक बहुत अच्छी जानकारी तैयार  की है जिसे वो स्वयं इस टोपिक में पोस्ट करंगे! हमें उम्मीद है आपको भीष्म जी यह प्रयास जरुर पसंद आएगा !

 
 एम् एस मेहता
 


Bhishma Kukreti

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                                                                  मध्य हिमालयी  कुमाउनी , गढ़वाली  एवं नेपाली  भाषा-व्याकरण का तुलानाम्त्क अध्ययन 

 

                                  (Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan  Languages )

 

 

                                                                                               भीष्म कुकरेती

                                                     Bhishm Kukreti


 

                      (इस लेखमाला का उद्देश्य  मध्य हिमालयी कुमाउनी, गढ़वाळी एवम नेपाली भाषाओँ के व्याकरण का शास्त्रीय  पद्धति कृत  अध्ययन  नही है अपितु परदेश में बसे नेपालियों, कुमॉनियों व गढ़वालियों में अपनी भाषा के संरक्षण हेतु प्रेरित करना अधिक है.  मैंने व्याकरण या व्याकरणीय शास्त्र  का कक्षा बारहवीं तक को छोड़ कभी कोई औपचारिक शिक्षा  ग्रहण नही की ना ही मेरा यह विषय/क्षेत्र रहा है. अत: यदि मेरे अध्ययन में शास्त्रीय  त्रुटी मिले तो मुझे सूचित कर दीजियेगा जिससे मै उन त्रुटियों को समुचित  ढंग से सुधार कर लूँगा. वास्तव में मैंने इस लेखमाला को अंग्रेजी में शुरू किया था किन्तु फिर अधिसंख्य पाठकों की दृष्टि से मुझे हिंदी में ही इस लेखमाला को लिखने का निश्चय करना पड़ा . आशा है यह लघु कदम  मेरे उद्देश्य पूर्ति हेतु एक पहल माना जायेगा. मध्य हिमालय की सभी भाषाएँ ध्वन्यात्म्क हैं और  कम्प्यूटर में प्रत्येक भाषा  की विशिष्ठ लिपि न होने से कहीं कहीं सही अक्षर लिखने की दिक्कत अवश्य आती है किन्तु हम कुमाउनी, गढवालियों व नेपालियों को इस परेशानी को दूसरे  ढंग से सुलझानी होगी ना की फोकट की विद्वतापूर्ण बात कर नई लिपि बनाने पर फोकटिया बहस करनी चाहिए. ---- भीष्म कुकरेती )

 

                                         मध्य हिमालयी कुमाउनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलानाम्त्क अध्ययन  भाग -१

                     (Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan Languages-Part-1 ) 


                                                                             कुमाउनी, गढ़वाळी  व नेपाली भाषा  वर्णमाला व लिपि

 

                                                     भाषा शाखा

                            कुमाउनी, गढ़वाली व नेपाली इंडो आर्यन भाषाएँ हैं और अधिकतर भाषा वैज्ञानिकों ने इन तीनो भाषाओँ को ' मध्य हिमालय की 'पहाड़ी ' भाषाएं  कहकर वर्गीकृत  किया है.

                                                                                               लिपि

                   

                                नेपाली, कुमाउनी व गढ़वाली भाषाओँ की लिपि संस्कृत, हिंदी, मराठी , ब्रज, भोजपुरी, मैथली, अवधि,राजस्थानी भाषाओँ  की तरह 'देवनागरी' लिपि है. दसवीं या ग्यारहवीं सदी से पहले नेपाली, कुमाउनी व गढ़वाली भाषाओँ की लिपि ब्राह्मी थी.

                                                                                              वर्णमाला

 

                                   अबोध बंधु बहुगुणा, की 'गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा',  रजनी कुकरेती की 'गढ़वाली भाषा का व्याकरण ', डा.भवानी दत्त उप्रेती की 'कुमाउनी भाषा का अध्ययन ' व बाल कृष्ण बाल की अंग्रेजी पुस्तक ' स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली  ग्रैमर' के अध्ययन से ज्ञात होता है कि कुछेक अपवाद छोड़ तीनो भाषाओँ की वर्णमाला, , संस्कृत, हिंदी भाषाओँ के अनुसार ही  हैं. 

 
 
                                                                                                कुमाउनी वर्णमाला

 

 डा. उप्रेती लिखते हैं कि कुमाउनी भाषा में १४ स्वर व ३३ व्यंजन हैं तथा २ अर्धस्वर हैं . इनके अतिरिक्त १० खंडेतर  स्वनिम (फोनेमिक  ) हैं

खंडेतर  स्वनिम

कुमाउनी भाषा के स्वर
:

ई, इ, ए, एं, ऐ, ऐं, अ, आ , आ , औ, ओ, ओ, उ, ऊ, सभी मूल स्वर हैं . डा उप्रेती के अनुसार ऐ/औ मूल स्वरतव   के साथ साथ संयुक्त स्वर्त्व रूपों के भी प्रतीक हैं 


कुमाउनी भाषा में स्वर मात्राओं का उदहारण

क, का, कि, की, कु, कू , के , कै , को, कौ , कं , क:
 
कुमाउनी भाषाई व्यंजन:

 प्, फ़्, ब्,  भ्,

त्,  थ्, द्, ध् ,

ट्, ठ (अधि) , ड्, ढ (आधा ),

क्,  ख्,  ग् ,  घ्, 

च्, छ (आधा ), ज्,  झ्,   

म्, म्ह, न्, न्ह् , ण (आधा) ,ड (ग्यं ),

र्

ड्, ढ (आधा)

ल्,  ल्ह

श् , ह्     

अर्ध स्वर्     

य्, व्

गढ़वाली व्याकरणवेत्ता   डा. अचलानंद ने डा उप्रेती के इस अध्याय में  चिन्हांकित  किया है कि ऐसा लगता है कुमाउनी में 'स' व्यंजन नही मिलता है .

कुमाउनी में स्वर लिपि हिंदी संस्कृत समान ही है

 श्र, श्री , द्य , , न्य आदि अक्षर  कुमौनि भाषा मे  प्रयोग होते हैं           

                                                 गढ़वाली भाषा वर्णमाला  

                       जहाँ डा भवानी दत्त उप्रेती ने अपने ग्रन्थ में कुमाउनी वर्णमाला व बाल कृष्ण बाल ने 'स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर ' ग्रन्थ में नेपाली वर्णमाला का  विस्तार से निरिक्षण किया है वहीं श्री अबोध बंधु बहुगुणा की पुस्तिका में वर्णमाला का कोई उल्लेख नही है.

श्रीमती रजनी कुकरेती ने अपनी पुस्तक  ' गढ़वाली भाषा का व्याकरण' में वर्णमाला का वर्णन इस प्रकार किया है   

गढ़वाली भाषा के स्वर :

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ , (ऋ) , ए, ऐ, ओ, औ , अं, अ:   

गढ़वाली भाषा की  मात्राएँ :

संस्कृत व हिंदी की मत्राए सभी गढ़वाली में हैं ।

गढ़वाली भाषाई स्वर मात्राओं का उदहारण

 क, का, कि, की, कु, कू , के , कै , को, कौ , कं , क:

गढ़वाली की विशिष्ठ मात्राएँ ;

 ~ , उल्टा ' ४'या ^ , 's ' . ( स =आधा अ )

'`'  या  ' ~'  कम्पन का सूचक है जैसे - का ~ळी = लाटी , बो ~लि =कहा

' ^' (उल्टा ४ ) शब्दांत में प्रयोग होता है और विभक्ति विलोपन के कारण अंतिम अक्षर की मात्रा का  विस्तार सूचक है

' s  ' हलन्त अ है और अ +उ मात्राओं का संधि चिन्ह है यथा -- जगSण , बणSण , आदि

गढ़वाली भाषा के व्यंजन :

क, ख, ग, घ, ड.(गं)

च, छ, ज, झ, ञ   

ट, ठ, ड, ढ, ण

त, थ, द,ध, न् , न

 प, फ,  ब, भ, म्, म   

य,र्,  र, ल,  ल (उर्दू कि तरह नीचे बिन्दु वाला ल  ), (हलन्त ) ळ, ळ  व

श ष , स , ह,

अबोध बंधु बहुगुणा का कथन अधिक सटीक है कि ख को ष लिखा जाता था. यानी कि ष वर्ण अक्षर गढ़वाली में नही था. यही कारण है कि पौड़ी गढ़वाल का उदयपुर पट्टी का रिख्यड गाँव वास्तव में   'ऋषयड'   था (ऋषियों का अड्डा).

गढ़वाली भाषा में  संस्कृत, हिंदी , की तरह क्ष , त्र, ज्ञ अक्षर भी प्रयोग किये जाते हैं जिसका उल्लेख श्रीमती कुकरेती ने नही किया है

गढ़वाली  भाषा के हलन्त अक्षर

प्, फ़्, ब्, भ्,
त्, थ्, द्, ध् ,

ट्, ठ (अधि) , ड्, ढ (आधा ),

क्, ख्, ग् , घ्,

च्, छ (आधा ), ज्, झ्,

म्, म्ह, न्, न्ह् , ण (आधा) ,ड (ग्यं ),

र्

ड्, ढ (आधा)

ल्, ल्ह

श् , ह् , स्

अर्ध स्वर्

य्, व्
 
श्र, श्री , द्य , , न्य आदि अक्षर  सभी मध्य हिमालयी भाषाओँ में प्रयोग होते हैं

 

 

                                                        नेपाली भाषा वर्णमाला

 

     श्री बाल कृष्ण बाल के अनुसार नेपाली में ११ स्वर व ३३ व्यंजन होते हैं

 नेपाली भाषा के ११ स्वर :

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ , (ऋ) , ए, ऐ, ओ, औ

स्वर मात्राएँ

नेपाली मे भी स्वर मत्राएँ संस्कृत कि भांति  प्रयोग की जाती हैं


नेपाली भाषा के स्वर मात्राओं का उदहारण

क, का, कि, की, कु, कू , के , कै , को, कौ , कं , क:
 
 

नेपाली भाषा के ३३  व्यंजन :

 


क, ख, ग, घ,

च, छ, ज, झ,  ञ

ट, ठ, ड, ढ,  ण

त, थ, द,ध, , न

प, फ, ब, भ,  म

य,  र, ल,    व

श ष , स , ह,

 

नेपाली भाषा में भी संस्कृत, हिंदी , की तरह क्ष , त्र, ज्ञ अक्षर प्रयोग किये जाते हैं

 

नेपाली भाषा के हलन्त अक्षर :

प्, फ़्, ब्, भ्,
त्, थ्, द्, ध् ,

ट्, ठ (अधि) , ड्, ढ (आधा ),

क्, ख्, ग् , घ्,

च्, छ (आधा ), ज्, झ्,

म्, म्ह, न्, न्ह् , ण (आधा) ,ड (ग्यं ),

र्

ड्, ढ (आधा)

ल्, ल्ह

श् , ह्

अर्ध स्वर्

य्, व्


श्र, श्री , द्य , , न्य आदि अक्षर नेपाली मे भी  प्रयोग होते हैं

                               

 

                               कुमाउनी, गढ़वाली व नेपाली भाषाओं  में  विसर्ग


विसर्ग का चिन्ह : है . प्राय यह देखा गया है कि नेपाली. गढ़वाली व कुमाउनी सभी भाषाओँ में विसर्ग : बहुत कम स्थानों में प्रयोग होता है. नेपाली, कुमाउनियों ,गढ़वालियों के हिंदी साहित्य से अत्त्याधिक संसर्ग से विसर्ग : का प्रचलन भी बध गया है . हाँ गढवाल, कुमाओं में संस्कृत ज्ञान्ता ब्राह्मणों की भाषा में संस्कृत प्रभाव के कारण विसर्ग : का प्रयोग यदा कदा होता था.   बाल कृष्ण बाल जी ने नेपाली भाषा के सम्बन्ध में लिखा है कि प्राय: बोलते समय विसर्ग की उपेक्षा की जाती है . कुमाउनी व गढ़वाली भाषा में भी  बोलते समय विसर्ग की उपेक्षा की जाती है .

                                                         गढ़वाली ,  कुमाउनी, व नेपाली भाषाओं में  हलन्त चिन्ह  का प्रयोग     

 मध्य हिमालय की सभी भाषाओं व इनकी सभी उपभषाओं मे हलन्त अक्षरों  का प्रयोग अत्यावश्यक है। हलन्त चिणः ` है जो अक्षरों  के नीचे लगता है जैसे

प्, फ़्, ब्, भ्,
त्, थ्, द्, ध् , 

ट्, ठ (अधि) , ड्, ढ (आधा ), 

क्, ख्, ग् , घ्,

च्, छ (आधा ), ज्, झ्,

म्, म्ह, न्, न्ह् , ण (आधा) ,ड (ग्यं ),

र्

ड्, ढ (आधा)

ल्, ल्ह

श् , ह्

अर्ध स्वर्

य्, व्

इसके अतिरिक्त आर्या जैसे शब्द मे हलन्त र् को उपर लिखा जाता है ।

 

 

                                       अर्धचन्द्रविन्दु व  अनुस्वर  /सिरविन्दु /मुंडोविंद्वा/मुंड ~विंद्वा 

 

यद्यपि  अर्धचन्द्र विन्दु व अनुस्वर विन्दु का प्रयोग संस्कृत सिद्धांतो के अनुरूप ही उचित है , किन्तु देखा गया है कि गढ़वाळी व कुमाउनी साहित्य में अर्धचन्द्र व अनुस्वर विन्दु में कुछ विशेष सावधानी नही वरती जाती है.नेपाली भाषा में भी अर्ध चन्द्र विन्दु व अनुस्वरविन्दु का प्रयोग नियम अस्थिर ही हैं . डा उप्रेती ने कुमाउनी व्याकरण में अनुस्वर व दीर्घ  अनुस्वरों की समुचित व्याख्या की है यथा गौंत ऊँ, ऊं ,श्युंड़ो (अर्ध्चंद्र विन्दु  )     

 उद्धरण :

चाँद, अर्धचन्द्र विन्दु

चंद - अनुस्वर विन्दु

 

                                                    विराम चिन्ह एवम अन्य चिन्ह

                         गढ़वाली के प्राचिन साहित्य व गावों  मे  पाए गए  मन्त्र साहित्य के अध्ययन से पता चलता है कि  प्राचीन काल  मे विराम चिन्हों का प्रयोग कम ही होता था. आज मध्य हिमालय की तीनो भाषाओं मे हिन्दी, अंग्रेजी के सभी विराम चिन्ह प्रयोग मे आते हैं व कम्प्युटर उपयोग से तो अंग्रेजी के विराम चिन्ह प्रयोग करना तर्कसंगत व अनिवार्य भी हो गया है .

I = चार विराम

.  = चार विराम

, कौमा

" " इन्वर्टेड कौमा

! संबोधन सूचक चिन्ह

? प्रश्न वाचक चिन्ह;

= बराबर

; सेमीकोलन

: विस्तार सूचक

( ), { }, [ ]   कोष्ठ

*  अर्थात्मक/दिसा मूलक चिन्ह

/अथवा चिन्ह

< तुलना में कम

> तुलना में  अधिक 

/  स्लैश 

मुख्यत : प्रयोग होते हैं 


संदर्भ् :

१- अबोध बंधु  बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली

२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़  नेपाली   ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल

३- भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउनी भाषा  अध्ययन, कुमाउनी समिति, इलाहाबाद

४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण,  विनसर पब्लिशिंग कं. . 


शेष मध्य हिमालयी कुमाउनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलानाम्त्क अध्ययन  भाग - २ में .....

 Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan Languages to be continued ..Part-2 


 

. @ मध्य हिमालयी भाषा संरक्षण समिति

 

Bhishma Kukreti

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            मध्य हिमालयी  कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलानाम्त्क अध्ययन


              (Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan Languages )

 



                                                                         सम्पादन: भीष्म कुकरेती

 

                                        Edited by :   Bhishm Kukreti





(इस लेखमाला का उद्देश्य मध्य हिमालयी कुमाउंनी,  गढ़वाळी एवम नेपाली भाषाओँ के व्याकरण का शास्त्रीय पद्धति कृत अध्ययन नही है अपितु परदेश में बसे नेपालियों, कुमॉनियों व गढ़वालियों में अपनी भाषा के संरक्षण हेतु प्रेरित करना अधिक है. मैंने व्याकरण या व्याकरणीय शास्त्र का कक्षा बारहवीं तक को छोड़ कभी कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नही की ना ही मेरा यह विषय/क्षेत्र रहा है. अत: यदि मेरे अध्ययन में शास्त्रीय त्रुटी मिले तो मुझे सूचित कर दीजियेगा जिससे मै उन त्रुटियों को समुचित ढंग से सुधार कर लूँगा. वास्तव में मैंने इस लेखमाला को अंग्रेजी में शुरू किया था किन्तु फिर अधिसंख्य पाठकों की दृष्टि से मुझे हिंदी में ही इस लेखमाला को लिखने का निश्चय करना पड़ा . आशा है यह लघु कदम मेरे उद्देश्य पूर्ति हेतु एक पहल माना जायेगा. मध्य हिमालय की सभी भाषाएँ ध्वन्यात्म्क हैं और कम्प्यूटर में प्रत्येक भाषा की विशिष्ठ लिपि न होने से कहीं कहीं सही अक्षर लिखने की दिक्कत अवश्य आती है किन्तु हम कुमाउनी, गढवालियों व नेपालियों को इस परेशानी को दूसरे ढंग से सुलझानी होगी ना की फोकट की विद्वतापूर्ण बात कर नई लिपि बनाने पर फोकटिया बहस करनी चाहिए. ---- भीष्म कुकरेती )

 

 

                                                     मध्य हिमालयी कुमाउंनी  , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलानाम्त्क अध्ययन भाग -2

       

                                           (Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan Languages-Part-2 )   

                                 

                                                                             संज्ञा
                            अबोध बंधु बहुगुणा अनुसार संज्ञा उस विकारी शब्द को कहते हैं जिससे नाम का बोध हो.    श्रीमती रजनी कुकरेती ने संज्ञा की परिभाषा देते लिखा कि  किसी व्यक्ति , वस्तु , स्थान तथा भाव के नाम को संज्ञा कहते हैं जैसे ब्याला, थाळी, बजार, भलै  आदि. वहीं डा भवानी दत्त उप्रेती ने संज्ञा की परिभाषा न देकर लिखा की संज्ञा से तात्पर्य संज्ञाएँ तथा संज्ञावत् प्रयुक्त होने वाले कृदंत रूपों से है. 

                                                           
 
                                                                                    कुमाउंनी भाषा में संज्ञा रूप

               
              डा भवानी दत्त ने लिखा है कि संज्ञा रूप-सारणी में संज्ञा मूल  अथवा संज्ञा व्युत्पन्न प्रतिपादकों के पश्चात् लिंग, वचन, तथा कारक के अनुसार कुमाऊंनी भाषा में प्रत्यय जुड़ते हैं

डा भवानी  दत्त  उप्रेती ने लिखा कि अधिकाँश पुल्लिंग संज्ञा व्युत्पन्न प्रातिपदिक ओकारांत और स्त्रीलिंग संज्ञा व्युत्पन्न प्रातिपदिक  इकारांत हैं . इस तरह पाते हैं कि कुमाउंनी भाषा में ओकारांत संज्ञाएँ सभी पुल्लिंग हैं. और कुमाउंनी में ओकारांत के साथ साथ अपवाद छोड़कर औकारान्त, उकारांत , तथा एकारान्त संज्ञाएं  भी अधिकतर पुल्लिंग होती हैं. यद्यपि संख्या न्यूनतम  है किन्तु कुमाउंनी भाषा में कुछ इकारांत संज्ञाएँ भी पुल्लिंग होती  हैं.  कुमाउंनी भाषा में लिंग दृष्टि से अकारांत, व्यंजनान्त,  ऐकारांत और ऐंकारांत  संज्ञाएँ पुल्लिंग व स्त्रीलिंग दोनों प्रकार कि पाई जाती हैं .

                                                                        व्यंजनान्त संज्ञाएँ   

 

  पुल्लिंग - वन्, घाम्  , पात् 

 स्त्रीलिंग   - बात्, ठार, खाट

 

                                      स्वरांत  संज्ञाएँ   

 

                                          पुल्लिंग                               स्त्रीलिंग

आकारांत                           कतुवा                                 माला, इजा

इकारांत                              आदिमि, पानि                   छाति, बानि

 उकारांत                               गोरु , आरू                        ---

एकारांत                                दुबे                                   ज्वे

ऐंकारांत                              दै                                    मैं 

ऐकारांत                             भैं                                   शै

ओकारांत                           चेलो , बाटो , लाटो             ----- 

औकारांत                           द्यौ , मौ , उगौ                -----

 कुमाउनी भाषा में अंत्य ध्वनि मुक्ति के कारण कई संयुक्त व्यंजनान्त  और उत्क्षिप्त प्रतिपादिक वस्तुत : व्यंजनान्त नही होते और स्वरांत कोटि में रखे जाते हैं

यथा - - बल्द, घट्ट, गूड़  (हिंदी अर्थ - बैल पनचक्की, गुड़)  जो सभी एकवचन अविकारिकारक हैं

                                    कुमाउनी संज्ञा लिंग भेद

१- कुमाउनी में अधिकतर पुल्लिंग एक बचन संज्ञाएँ ओकारांत होती हैं और अधिकतर स्त्रीलिंग एकवचन इकारांत होती हैं . यथा :

  पुल्लिंग                        स्त्रीलिंग

अ- चेलो (लड़का )             चेली (लडकी )

ब- थोरो (भैंस का बच्चा ) ,  थोरी  (भैंस  की बच्ची )

स- पारो (लकड़ी का विशेष पात्र  ) ,     पारी (काठ  का पात्र)

ड़- बाछो ( बछडा ) ,                     बाछि  (बछिया)

२- औकारान्त्क प्रत्यय भी ओकारान्तक की भांति एकवचन पुल्लिंग संज्ञा का द्योतक होते हैं 

 संज्ञा व्युत्पन्न में लिंग निर्णय

 

अ- ओ - निम्न संज्ञाओं में व्यंजनों के पश्चात ओ लगाने से  पुल्लिंग का निश्चय होता है यथा

चेलो (चेल  = ओ ) =लडका

बातो (बात = ओ) =  बत्ती

 गल्ओ  (गल्+ओ)  =गला

ब- औ - निम्नप्रकार के संज्ञाओं में  'औ' प्रत्यय लगाने से पुल्लिंग बन जाता है . यथा

 भौ (भ +औ )   = शहद

द्यौ (द्य् +औ ) = वर्षा

स- उ- संज्ञा पर 'उ' प्रत्यय जुड़ने से पुल्लिंग का भास होता है . यथा

गोरु (गोर + उ ) = गाय

आरू (आर = उ ) = आड़ू

 द - ए -  ए प्रत्यय कुछ विशेष स्थानों में प्रयोग होता है जैसे दुबे, चौबे , खुलबे आदि किन्तु यह जातिवाचक संज्ञा होने से नाम के आगे भी लगता है
                                   स्त्रीलिंग के विशेष सिद्धांत

१- यद्यपि स्त्रीलिंग हेतु कोई निश्चित स्थिति नही मिलती है अपितु अधिकाँश स्त्रीलिंग संज्ञाएँ 'इ' प्रत्यय से संयुक्त होती हैं . यथा .चेली (चेल =इ ) = लडकी

कोई व्यंजन आ, ए, ऐ, से भी युक्त होती हैं , यद्यपि ऐसे कुछ व्यंजन पूलिंग से भी सम्बद्ध होते हैं

क-- 'इ':---  निम्न कोटि की  संज्ञाओं में 'इ' रहता है

चेल + इ = चेली

राँ =इ = रानी

वान = इ = वाणी

ख- -नि :- आगत संज्ञा प्रतिपादकों या व्युत्पुन्न प्रतिपादकों में 'र्' ध्वनि के बाद मिलता है यथा

 मास्टर् + नि = मास्टरनी

शुबेदार्' +नि = शुबेदारनी 

शूनार् = नि = शूनारनी

यद्यपि  अन्य ध्वनियों के बाद भी नि लगने से स्त्रीलिंग बनता है जोग + नि = जोगनी

ग -  -आनि  :- कुमाउनी में अघोष स्पर्शी ध्वनियों के पश्चात् स्त्रीलिंग में 'आनि' मिलता है

पंडित +आनि = पंडितानी

जेठ +आनि = जेठानी

घ-  -आनि का प्रयोग ध्वनि परिवर्तन के साथ स्घोस ध्वनि के अप्श्चत भी मिलता है . यथा

कोल + आनि = कोल्य =आनि = कोल्यानी

धोबि + आनि = धोब्यानी

च -  आनि/यानि के  विकल्प में आन भी लगता है. यथा     

; द्योर + आन  =द्योरान या द्योर +आनि = द्योरानी

छ- - आ निम्न कोटि की  संज्ञाओं में लगता है . यथा

माल् +आ = माला

इज + आ = इजा

ज- - ऐ : कहीं , कहीं 'ऐ' क प्रयोग होता है , यथा

म + ऐ = मै (कृषि उपकरण )

क् + ऐ = कै (वमन) 

झ-  श +ऐ = शै (दीवार)

गाय का स्त्रीलिंग ' गै'  है जब कि गोरु पुल्लिंग है

व्यंजनान्त व अन्य स्वरांत का लिंग विधान

व्यंजनान्त व अन्य स्वरांत का लिंग विधान में लिंग निर्णय सन्दर्भ व वाक्य धरातल पर होता है

अ- पुल्लिंग:-   घाम मंदों छ , नाक टेड़ी छ,

आ- स्त्रीलिंग :- बात निकिछ , गाड़ में आद हुनो

ओकारांत और औकारान्त संज्ञाएँ बहुवचन में विकारी रूप प्राप्त होती हैं

            एक वचन                     वहुवचन

              चेलो                           च्याला

               घोड़ो                          घ्वाड़ा 

उपरोक्त संज्ञाओं का लिंग निर्णय वाक्यानुसार होता है   

 च्याला ऐं ग्यान/गईं (लडके आया गए )

घ्वाड़ा  दौड़ला (घोड़े दौड़ेंगे )

 पृथक पृथक लिंग                                               

 बहुत सी संज्ञाओं में लिंग पृथक prithak  होते हैं 
 पुल्लिंग       स्त्रीलिंग


 बाबा (पिता)                           इजा (माँ )   

बल्द (बैल)                              गोरु (गाय)

बैग (पुरुष )                              श्यैनी
                   भेदहीन   लिंग   

 
 कुछ शब्द दोनों लिंगो का प्रतिनिध्वत्व करते हैं

मैश (स्वामी )

उ कशि मैश छ ((स्त्रीलिंग )

उ कशो मैश छ (पुल्लिंग) 

                                      कारक
 अ- - कुमाउनी संज्ञाओं ओकारांत एक वचन संज्ञाए वहुवचन में आकारांत हो जाती हैं

ब१-- कुछ इकारांत संज्ञाओं में एकवचन व वहुवचन इकारांत ही रहती हैं

ब२- -अन्य इकारांत संज्ञाओं में एकवचन -इ वहुवचन में - इन में बदला जाती है

दोनों का प्रयोग विकल्पात्मक रूप से होता है . यद्यपि इकारान्तक अप्राणीवाचक संज्ञाओं के वहुवचन में अन्त्य सिर्फ -इ रहता है और  अन्यत्र एक वचन तथा वहुवचन ए रूप एकसमान होते हैं
    एक वचन      बहुवचन                   लिंग


ए-                 चेलो (लडका )         च्याला (लड़के )                                      पुल्लिंग

                घोड़ो (घोड़ा )                            घ्वाड़ा  (घोड़े)                       पुल्लिंग

               बाटो (रास्ता )                            बाटा (रास्ते )                     पुल्लिंग

बी१ -          चेलि  (लड़की )                            चेलि  (लड़कियां  )                         स्त्रीलिंग

 घोडि (ड़ +इ ) (घोड़ी)              घोडि  (छोटी  ड़ी)  (घोड़ियाँ )              स्त्रीलिंग   

 बैनि (छोटी बहिन  )                बैनि (छोटी बहिनें  )                       स्त्रीलिंग

 

बि २ -      तालि (ताली )                   तालि ( तालियाँ )                            स्त्रीलिंग

       बालि (अनाज की बाल )               (अनाज की बालें )                   स्त्रीलिंग 

सी१  -      बन्   (वन )                             बन् (वन )     
               पुल्लिंग

               पात् (पत्ता )                                 पात् (पत्ता )
              पुल्लिंग

               बात् (बात )                                   बात् (बात )                                     पुल्लिंग

सी २-      घट्ट ( पनचक्की )              घट्ट ( पनचक्कियां  )                         पुल्लिंग

               बल्द (बैल)                बल्द (बैल)                                          पुल्लिंग

डी -      ब्याला (कटोरा )                ब्याला  (कटोरे )                            पुल्लिंग   

           माला (माला )                                   माला (मालाएं)                                स्त्रीलिंग

           इजा (माता )                     इजा (माताएं )                               स्त्रीलिंग

 इ-          गोरु (गाय )                  गोरु (गायें )                               पुल्लिंग 

             आरू (आड़ू)                                      आरू (आड़ू )                                पुल्लिंग

ऍफ़ -      कै (वमन )                                      कै (वमन )                                 स्त्रीलिंग

जी-        भै (भाई )                                        भै  (भाइ  )                                  स्त्रीलिंग

            शै   (दीवार )                                   शै (दीवारें )                                  स्त्रीलिंग

एच -      उगौ (कृषि उपकरण )                     उगौ                                         पुल्लिंग

             खल्यौ   (लकड़ी का ढेर )                खल्यौ (लकड़ी के ढेर )                  पुल्लिंग                                                     

 

 

                            कुमाउनी संज्ञाओं में  वचन सम्बन्धी तालिका

 तिर्यक अथवा विकारी करक में बहुवचन के रूप बदलते रहते हैं. एक वचन तिर्यक में भी ओकारांत व कुछ औकारान्तक संज्ञाएँ कारकीय स्तिथि में बदलती रहती हैं और बदला हुवा रूप एक वचनीय संज्ञाओं के बहुवचन अविकारी के समान होते  हैं . ओकारांत तथा औकारान्त  को छोड़ अन्य शेष संज्ञाओं का वचन वाक्य स्तरपर होता है.

वचन सम्बन्धी तालिका से यह स्पष्ट हो जाता है

संज्ञा  एक वचन                                               अविकारी कारक                        विकारी कारक             बहुवचन  रूप साधक पर प्रत्यय

 -ओकरान्तक और औकारान्तक                              -------------                           -आ                                      --आ

अन्य संज्ञाएँ                                                       -------------                             -------                                ------

       संज्ञाएँ एक वचन विकारी रूप कारक   

 

               संज्ञा एक वचन                           अविकारी कारक                                        विकारी कारक

                    चेलो                                      चेलो खांछ                                             च्यालो ले खाछ

                    खल्यौ                                    खल्यौ नान्छ                                         खल्यौ बै लाल्यूं

                   चेलि                                        चेलि  खान्छि                                        चेलि ले खाछ

                   पात्                                         पात् हरिया छ                                       पात् में खाछ

                    बल्द                                         बल्द बालो                                           बल्द ले बाछ

                    इजा                                        इजा खान्छि                                        इजा ले खाछ

                   गोरु                                          गोरु चर्छ                                             गोरु ले  चरछ्य   

                    दुबे                                           दुबे खान्छ                                           दुबेले खाछ

                   कै                                               कै भैछ                                              कै में ल्वे छियो

                   शै                                               शै  शफेद छ                                       शै बै खितीछ

       

                                     समान विकारीकारक  रूप


         कुमाऊंनी भाषा में सभ कारकीय स्तिथियों में विकारीकारक रूप एक समान होते हैं

 च्याला ले खाछ (लड़के ने खाया)                         

  च्याला कैं  दिय ( लड़के को दो )

च्यालाक्पिति  भ्योछ  (लड़के के द्वारा हुआ ) 
 
च्यालाक् दादा  (लड़के का भाई  ) 

च्याला में खोट छ (लड़के में दोष है )

ओ च्याला !   ९अरे लड़के !

  कुमाउंनी में प्रतिपादकों के अन्त्यों के अनुसार ही विकारी कारक का रूप बनता है . ओकारांत तथा कुछ औकारान्त एकवचन संज्ञाएँ  बहुवचन में पुन्ह विकारी हो जाते हैं

१- आकारांत में - आ के स्थान पर  -आन

२--इ, -ए, -ऐ तथा -ऐं    अन्त्ययुक्त बहुबचन  परिवर्तित हो -ईन हो जाता है 

३- व्यंजनान्त के पश्चात विकारी कारक में -ऊन जुड़ जाता है

प्रतिपादक अन्त्य                 बहुवचन

                           ____________________________________________

(एक वचन अविकारी कारक )                   विकारी कारक             संबोधन कारक     

 

-आ;                                                         -आन                             --औ                                                                                                                                                         

  भाया                                                         भायान                            भाय्औ !             

ओ                                                            -आन                               --औ   
 
चेलो                                                            च्यालान                       च्यालौ

-इ; -ए, -ऐ, -ऐं ,                                             -ईन                             -औ     
 
चेलि                                                         चेलीन                          चेलिऔ

मैं                                                            मैंईन                              - (प्राणी वाचक)

शै                                                             शैईन                              - (अप्राणी वाचक ) 

व्यंजनान्त - उ ; -औ                                     -ऊन                             -औ   
 
गोरु                                                            गोरुऊन                       गोरौ 

उगौ                                                           उगौऊन                        ---(अप्राणी वाचक )
 
बैग                                                           बैगऊन                              बैगौ

 बात्                                                           बात्ऊन                       ---(अप्राणी वाचक )
 
                                            बहुवचन बोधक संज्ञाएँ


अ- -आ पुल्लिंग ओकारांत संज्ञा के -ओ के स्थान पर  बहुवचन में -आ आ jata  है

एक वचन                        बहुवचन

चेलो                              च्याला

चल्लो                           चल्ला

बाटो                            बाटा

घोड़ो                          घ्वाड़ा   

ब-  - होर : अधिकतर - होर का प्रयोग सम्बन्ध सूचक संज्ञाओं में होता है

एक वचन                                  बहुवचन

दादा                                       दादाहोर 

काका                                     काकाहोर

भाया                                     भायाहोर

काखि                                   काखिहोर 

स- ईं: इकारांत स्त्रीलिंग संज्ञा में -इ के स्थान पर -ई हो जटा है

एकवचन                                     बहुवचन

चेलि                                           चेलीन (लडकियां )

 श्यैनि                                       श्यैनीन 

 

द- -औ : औ सम्बोधन बोधक है और केवल प्राणी वाचक संज्ञाओं के साथ प्रयोग होता है

च्यालौ 

श्यैनिऔ                           
 


शेष , मध्य हिमालयी  कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलानाम्त्क अध्ययन भाग - 3 में .....

 Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan Languages to be continued ..Part-3 

 

संदर्भ् :
१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली

२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल

३- भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद

४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून

@ मध्य हिमालयी भाषा संरक्षण समिति

Bhishma Kukreti

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                                              मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन- Part 3

                       (Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan Languages )- Part 3

 



                                                           सम्पादन : भीष्म कुकरेती



                                  Edited by : Bhishm Kukreti




(इस लेखमाला का उद्देश्य मध्य हिमालयी कुमाउंनी, गढ़वाळी एवम नेपाली भाषाओँ के व्याकरण का शास्त्रीय पद्धति कृत अध्ययन नही है अपितु परदेश में बसे नेपालियों, कुमॉनियों व गढ़वालियों में अपनी भाषा के संरक्षण हेतु प्रेरित करना अधिक है. मैंने व्याकरण या व्याकरणीय शास्त्र का कक्षा बारहवीं तक को छोड़ कभी कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नही की ना ही मेरा यह विषय/क्षेत्र रहा है. अत: यदि मेरे अध्ययन में शास्त्रीय त्रुटी मिले तो मुझे सूचित कर दीजियेगा जिससे मै उन त्रुटियों को समुचित ढंग से सुधार कर लूँगा. वास्तव में मैंने इस लेखमाला को अंग्रेजी में शुरू किया था किन्तु फिर अधिसंख्य पाठकों की दृष्टि से मुझे हिंदी में ही इस लेखमाला को लिखने का निश्चय करना पड़ा . आशा है यह लघु कदम मेरे उद्देश्य पूर्ति हेतु एक पहल माना जायेगा. मध्य हिमालय की सभी भाषाएँ ध्वन्यात्म्क हैं और कम्प्यूटर में प्रत्येक भाषा की विशिष्ठ लिपि न होने से कहीं कहीं सही अक्षर लिखने की दिक्कत अवश्य आती है किन्तु हम कुमाउंनी , गढवालियों व नेपालियों को इस परेशानी को दूसरे ढंग से सुलझानी होगी ना की फोकट की विद्वतापूर्ण बात कर नई लिपि बनाने पर फोकटिया बहस करनी चाहिए. ---- भीष्म कुकरेती )





                                             मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -3



                                           (Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan Languages-Part-3 )

 

       

                                                                      गढ़वाली संज्ञा विधान

 
१- व्यक्तिवाचक संज्ञायें:

अबोध बंधु बहुगुणा  अनुसार गढ़वाली में व्यक्तिवाचक संज्ञाए प्राय: किसी आधार को लिए होती हैं . यथा

अ- कोई शिशु जिस मास , मौसम, परिस्थिति या समय में पैदा होता है तो उसका नाम उसी अनुसार रखा जाता है, जैसे -

महीने के अनुसार नाम :-चैतु, बैशाखू,जिठवा, असाडु, सौणा, भद्वा, कतिकु , फगुण्या

वार अनुसार ; स्वांरु , मंगल़ू , मगला नन्द , बुधि सिंह/बुद्धू आदि 

मौसमअनुसार नाम : हिंवां   

शारीर बनावट  अनुसार  नाम ; पुन्वां,  डंफ़्वा, डंफा

शारीरिक आचरण/प्रकृति  अनुसार - मुताडु, हगाड़ू, हुकमु , उजलू, काळया, भूर्या, भूरी गौड़ी , चौंरी (गाय का नाम )    आदि

यद्यपि प्राचीन समय में जातियों के नाम से जाती का पता चलता था जैसे रामप्रसाद, राम सिंह, या राम दास  जाती सूचक नाम थे. अब नाम जाति सूचक कम पाए जाते हैं   

नेपाल की श्रीमती शकुंतला देवी व भरत सिंग व कुमाऊं की श्रीमती   हीरा देवी की बातचीत से पता चलता है  कि नेपाल व कुमाऊं में भी नाम रखने का संस्कार नेपाल व कुमाऊं में  गढ़वाली जैसे ही था

२- जातिवाचक संज्ञाएँ :

जिन शब्दों से एक प्रकार के प्रत्येक पदार्थ का बोध हो उसे जाती वाचक संज्ञां कहते हैं . गढ़वाल में अन्य बहुत से क्षेत्रों की तरह जातिवाचक संज्ञाएँ स्थान से सम्बन्धित भी है जैसे थापली से थपलियाळ , पोखरी से पोखरियाळ.

यथार्थवाची जाती वाचक संज्ञाएँ - जैसे भरोई, भुर्त्या , मुंडखा   ९पेद के ताने को काटने के बाद जमीं के अन्दर वाला भाग ना ही तना है ना ही जड़ इसलिए उसे मुंडखा (मुंड खंडित ), कुंडको (धान की लवाई के बाद कुंडलित  ढेर ), अपनाई (हुक्के की नली, याने पानी ल़े जाने  वाली नली ) 

३- भाववाचक संज्ञायें :

 जिन शब्दों से गुण दशा, या व्यापर का बोध होता है . आण, आली, ळी आदि प्रत्यय लगाने से इस प्रकार की संज्ञाएँ बन जाती है

                           भाववाचक संज्ञाएँ बनाने के उदाहरण

 

 १- जातिवाचक संज्ञाएँ -----------------------------------भाववाचक संज्ञा

पंडित ----------------------------------------------------पन्डितै

दुस्मन ---------------------------------------------------दुस्मनै

छोकरा/छुकरा  ------------------------------------------छोकर्यूळ/छुकरैळ

मौ --------------------------------------------------------मवार

भै ----------------------------------------------------------भयात

हल्दु ---------------------------------------------------------हळद्याण

२- सर्वनाम -------------------------------------------------भाववाचक संज्ञा

अपणो---------------------------------------------------अपणऐस

३-विशेषण ------------------------------------------------भाववाचक संज्ञा

मूर्ख -----------------------------------------------------मूरखपन

लाटो  ---------------------------------------------------- लटंग 

काचो-----------------------------------------------------कच्याण 

गिजगिजो-----------------------------------------------गिग्जाट

चकडैत -------------------------------------------------चकडैती

कडु /कड़ो -----------------------------------------------कडैस

निवतु----------------------------------------------------निवाति

चचगार---------------------------------------------------चचगरि     

४-क्रिया --------------------------------------------------भाववाचक संज्ञा 

हिटणो---------------------------------------------------हिटऐ

बर्जण--------------------------------------------------बरजात

झुन्नो (झुरण/णो )------------------------------------झुराट

मरोड़नी------------------------------------------------मरोड़

५-अव्यय ------------------------------------------------भाववाचक

बराबर -------------------------------------------------बराबरी

ढीस ---------------------------------------------------  ढिस्वाळ 

उंदी /उन्दों ---------------------------------------------उंदार /उन्धार

अबोध बंधु लिखते हैं - बिखल़ाण , परज, कतोल़ा-कतोळ, पाण, गाणी, स्याणी, जकबक  , टंटा,रौंका-धौंकी, खैरी , क ळकळी, रगुड़ात, फिरड़ाफिरड़ी, गब्दाट आदि भाववाचक  शब्द गढवाली में विशेष हैं     

 

                                गढ़वाली भाषा में लिंग विधान        
 
   हिंदी की भांति गढ़वाली में दो लिंग होते हैं . यद्यपि बहुगुणा व रजनी कुकरेती उभय लिंग की भी वकालात करते हैं.   

 

१- एक ही वस्तु का  समय, काल, वर्ग (प्यार  में, गुस्से में आकार में ) लिंग परिवर्तन विधान

स्त्रीलिंग --------------------------------------------------पुल्लिंग

गौड़ी (लघु  इ ) ------------------------------------------ गौडु /गौड़

आंखि-------------------------------------------------------आंखु 

ओंठडि (ड़+ लघु इ ) --------------------------------------ओंठ   

भूज्जि------------------------------------------------------भुजलू
 
बंठी --------------------------------------------------------बंठा 

थकुलि  ---------------------------------------------------थकुल

           

२- पुल्लिंग से स्त्रीलिंग परिवर्तन विधान

 २अ- पुल्लिंग  अकारांत, इकारांत, इकारांत के अ, ए, इ, को हटाकर   'आण' .'याण '', वाण',   प्रत्यय लगाने से 

पुल्लिंग------------------------------------------------स्त्रीलिंग

द्यूर --------------------------------------------------द्यूराण

सेठ ----------------------------------------------------सेठ्याण 

कजे/कजै ----------------------------------------------कज्याण

बामण -------------------------------------------------बमेंण /बमणि

जिठणु ------------------------------------------------जिठाण

२ब- अकारांत , आकारांत, उकारांत शब्द से अ, आ, उ हटाकर इ लगाने से पुल्लिंग स्त्रीलिंग में बदल जता है

पुल्लिंग------------------------------------------------स्त्रीलिंग

देव ---------------------------------------------------देवी

दास---------------------------------------------------दासी

बोडा --------------------------------------------------- बोदी (ताई)

काका---------------------------------------------------काकी (चाची )

घ्वाडा---------------------------------------------------घोडि  (यहाँ पर घ्वा भी घो में बदल जाती है )   

नौनु ---------------------------------------------------नौनी (लडकी )

भादु ----------------------------------------------------भादी
 
भदलु/भद्यल------------------------------------------भद्यलि  (कढाई)

प्यारु --------------------------------------------------प्यारि  (प्रिय )

कणसु (ऊम्र में छोटा )-------------------------------कणसि (छोटी) 
 
२स - पुल्लिंग शब्दों में अ, इ, ए, को बदलकर 'एण' लगाना

पुल्लिंग------------------------------------------------स्त्रीलिंग

नाती --------------------------------------------------नतेण

मनखि (मनुष्य)   -------------------------------------मनखेण

बद्दि (बादी )  --------------------------------------------बदेण 

समदि (समधी )---------------------------------------समदेण/समदण    २द

कुमै (कुमाउंनी जाती का पुरुष) -----------------------कुमैण /कुमैणि

 २द - ओकारांत पुल्लिंगी के ओ को इ में परिवर्तन करने से

पुल्लिंग------------------------------------------------स्त्रीलिंग

स्यंटुल़ो  -----------------------------------------------स्यंटुळी (एक पक्षी)

नौनो ---------------------------------------------------नौनि (लड़की)

घोड़ो ---------------------------------------------------घोडि  (घोड़ी)

स्याल़ो---------------------------------------------------स्याळी (लि) (साली)

छोरो -----------------------------------------------------छोरि 

२इ- रकारांत में 'नी'  लगाकर

पुल्लिंग------------------------------------------------स्त्रीलिंग

ग्वेर (ग्वाला) ------------------------------------------ग्वेर्नी, ग्वेरण 

सुनार --------------------------------------------------सुनारन, सुनारण

मास्टर ------------------------------------------------मास्टरनी, मास्टर्याण

डाक्टर -------------------------------------------------डाक्टरनी, डाकटर्याण, डाकटनी   

३- किन्ही प्राणीवाचक संज्ञाओं में  पुल्लिंग व स्त्रीलिंग पृथक पृथक होते हैं

पुल्लिंग------------------------------------------------स्त्रीलिंग

बुबा /बाबा (पिता) -------------------------------------ब्व़े (मा )

ढडडू (बिल्ला ) ----------------------------------------बिरलि ( बिल्ली )

 डंडवाक् , चुड़ोऊ-------------------------------------- चुडैण (सर्पणी  )

ब्योला (दुल्हा) ---------------------------------------ब्योली (दुल्हन ) 

गदनो (नद ) -----------------------------------------गाड (नदी ) 
 
दिदा (भाई ) -----------------------------------------बौ (भाभी)

ससुर ----------------------------------------------सास , सासु

४- वस्तुओं के परिमाण , आकार के अनुसार लिंग भेद भी होता है

पुल्लिंग------------------------------------------------स्त्रीलिंग

चौंरो(चत्वर ०-----------------------------------चौंरी

 दाण/ दाणो ------------------------------------------ दाणी (आमो दाण दिखादी. डंफु दाणी चखणो बि नि मील)
 
 दाण ( bigger  testicle )---------------------दाणि (smaller testicle ) 

नाक -------------------------------------------- नकुणि

मट्यंळ  (बड़ा छलना ), चंल़ू (मध्यम आकार )----- छणि (छलनी)
 
५- कुछ अप्राणीवाचक संज्ञाए केवल पुल्लिंगी होते हैं

कोदू, झंग्वरु ,

 ल़ूण , खौड़ , ब्वान

आम, बेडु, तिमलू

गिलास, चिमटा

६- कुछ अप्राणीवाचक संज्ञाए केवल स्त्रीलिंग होती है

मुंगरी , मसूर, उड़द , चंडी, चूड़ी, हंसुळी , मर्च, हळदि, दै, हैजा
 
७- कुछ संज्ञाए दोनों लिंगों में एक जैसे रहते है 

काखड़, जुंवो, इस्कुल्या, घसेर

८- वो, यो, को, स्यो, जो आदि पुल्लिंग वा, या, क्वा, स्या, ज्व़ा आदि स्त्रीलिंग रूप धारण कर लेती हैं.
 
किन्तु विकारी रूपों में कभी कभी अंतर   आ जाता है यथा - जैन  पुल्लिंग  जेंन  (जै+ ञ + न) व वैन पुल्लिन्ग वींन स्त्रीलिंग में बदल जाता है. 
 
 

                                          गढ़वाली भाषा  वचन विधान    

संज्ञा या अन्य विकारी शब्दों के जिस रूप में उसके वाच्य पदार्थ की संख्या का ज्ञान होता है उसे वचन खते हैं .

हिंदी की  भांति गढवाली में भी वचन दो प्रकार के होते हैं- एकवचन व बहुवचन   

१- विभक्ति रहित उकारांत , इकारांत ओकारांत पुल्लिंग शब्दों के अन्त्य उ, इ  'ओ' को 'आ' कर देने से बहुवचन बन जाता है 

एकवचन--------------------------------बहुवचन

पुंगड़ो -----------------------------------पुंगड़ा 

ड़ाल़ो------------------------------------ डाल़ा 
 
कैंटो  -------------------------------------कैंटा

हँसुळी -----------------------------------हँसुल़ा

बंसथ्वल़ू --------------------------------बंसथ्वल़ा

नथुली   ----------------------------------नथुला

किन्तु कर्मकारक में एक वचन में  उनका बहुवचन रूप ही रहता है जैसे 'तै ठन्गरा घौट)

२- जिन शब्दों के अंत में अ, आ, इ, उ और ओ हो तो उनके रूप प्राय: दोनों वचनों में एक से ही रहते हैं

भेळ , अदाण, परेक, खल्ला, माल़ा, डून्डी, मल्यौ, सलौ

२अ- कुछ अनाज बहुवचन की भांति प्रयोग होते हैं - चौंळ, ग्यूं

२ब- कुछ अनाज जैसे कोदू, मर्सू, झंग्वरु एक वचन जैसे प्रयोग होते हैं isi tarh कुछ dhatuyen एक वचन में प्रयोग hoti   
 
३- इकारांत में इ को ए में बदलने से

एकवचन--------------------------------बहुवचन

दरि--------------------------------------दरे , दरयों

ब्वारी --------------------------------ब्वारे (बहुएं ) ब्वारयों

कीडि (ड़ ) --------------------------------कीडे  (ड़ ) , कीड़यों

फैडि (सीढ़ी) ------------------------------फैडे (सीढियां ) फैड़यों 
 
४- उपसर्ग लगाने से वचन परिवर्तन

एकवचन--------------------------------बहुवचन 

एक- माबत ----------------------------------द्वी  माबत , तिन्नी माबत
 
५- आदर सूचक वाक्यों में संज्ञा बहुवचन होते हैं यथा मास्टर जी आणा छन 

६- कौंक से कौंका परिवर्तन से एक वचन बहुबचन में बदल जाता है यथा  सुदामा कौंक ड़्यार, सुदामा कौंका पुंगडा

७- औरु : औरु शब्द भी वहुवचन द्योतक है - भैजी औरु

८ 'करौं ' शब्द भी बहुवचन द्योतक है जैसे घ्याल़ू करौं . 

संदर्भ् :
१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली

२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल

३- भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद

४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून

५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार,  में लम्बी लेखमाला 

६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून

७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत

८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा)   , मुंबई  से कुमाउंनी  शब्दों के बारे में बातचीत

९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र,  , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ


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                      मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -4



                          (Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan Languages-Part-4 ) 

 



                                        सम्पादन : भीष्म कुकरेती




                   Edited by : Bhishm Kukreti





(इस लेखमाला का उद्देश्य मध्य हिमालयी कुमाउंनी, गढ़वाळी एवम नेपाली भाषाओँ के व्याकरण का शास्त्रीय पद्धति कृत अध्ययन नही है अपितु परदेश में बसे नेपालियों, कुमॉनियों व गढ़वालियों में अपनी भाषा के संरक्षण हेतु प्रेरित करना अधिक है. मैंने व्याकरण या व्याकरणीय शास्त्र का कक्षा बारहवीं तक को छोड़ कभी कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नही की ना ही मेरा यह विषय/क्षेत्र रहा है. अत: यदि मेरे अध्ययन में शास्त्रीय त्रुटी मिले तो मुझे सूचित कर दीजियेगा जिससे मै उन त्रुटियों को समुचित ढंग से सुधार कर लूँगा. वास्तव में मैंने इस लेखमाला को अंग्रेजी में शुरू किया था किन्तु फिर अधिसंख्य पाठकों की दृष्टि से मुझे हिंदी में ही इस लेखमाला को लिखने का निश्चय करना पड़ा . आशा है यह लघु कदम मेरे उद्देश्य पूर्ति हेतु एक पहल माना जायेगा. मध्य हिमालय की सभी भाषाएँ ध्वन्यात्म्क हैं और कम्प्यूटर में प्रत्येक भाषा की विशिष्ठ लिपि न होने से कहीं कहीं सही अक्षर लिखने की दिक्कत अवश्य आती है किन्तु हम कुमाउंनी , गढवालियों व नेपालियों को इस परेशानी को दूसरे ढंग से सुलझानी होगी ना की फोकट की विद्वतापूर्ण बात कर नई लिपि बनाने पर फोकटिया बहस करनी चाहिए. ---- भीष्म कुकरेती )






                         
 

                                                 नेपाली भाषा में संज्ञां विधान     

           नेपाली में भी गढ़वाली, कुमाउंनी भाषाओँ की तरह ही संज्ञा बोध होता  है .  नेपाली में भी स्थान, व्यक्ति या दशा के नाम की अभिव्यक्ति को संज्ञा कहते हैं .

 

                                                      नेपाली  संज्ञा प्रकार

 
 
नेपाली में संज्ञाएँ तीन तरह की होती हैं 

 

व्यक्ति वाचक संज्ञाएँ :

किसी व्यक्ति, स्थान के विशेष नाम को व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं . जैसे

काठमांडु , जंग बहदुर सिंग , आदि

 

सामान्य वाचक संज्ञाएँ  :

नेपाली व्याकरण विशेषग्य पराजुली के अनुसार जो संज्ञा ना तो व्यक्तिवाचक हो और ना ही भाव वाचक संज्ञा हो उसे सामान्य वाचक संज्ञा कहते हैं जैसे

कलम, घर फूल , मनिस (मनुष्य) आदि

 

भाववाचक संज्ञा :

भाव वाचक संज्ञाएँ किसी गुण, दशा या कृत्तव का नाम बताती हैं. जैसे

दया, केटोपन, भनाई, चाकरी, अग्लाई, नीलोपन आदि

 

                              नेपाली में  भाव वाचक संज्ञा  बनाने के सिद्धांत 

१- जातिवाचक संज्ञा  से भाव वाचक संज्ञा बनाने का विधान

  जातिवाचक संज्ञा ----------------------------------------भाव वाचक संज्ञा

केटो (बच्चा , लडका  ) ------------------------------------केटोपन ( बचपन,लड़कपन ) 

चाकर ------------------------------------------------------चाकरी

चोर --------------------------------------------------------चोरी

 
 
२- मूल क्रिया से भाव वाचक संज्ञा बनाने का विधान

 

मूल क्रिया -----------------------------------------------भाव वाचक संज्ञा

पढ़-------------------------------------------------------पढे  (ढ पर ऐ की मात्रा ) (पढ़ाई )

भन (कहना )-------------------------------------------भनाऊ (कथन )

हांस-----------------------------------------------------हाँसाई ( हंसी )

 

३- विशेषणों से भाववाचक संज्ञा बनाने के नियम

विशेषण -----------------------------------------------भाव वाचक संज्ञा

 

नौलो-----------------------------------------------------नौलोपन (नयापन)

रातो ----------------------------------------------------रातोपन (ललाई )

अग्लो -------------------------------------------------अग्लाई (उंचाई )

 

                                      नेपाली भाषा में लिंग विधान

 
 
नेपाली व्याकरणाचार्यों जैसे पराजुली के मतानुसार नेपाली में चार प्रकार के लिंग पाए जाते हैं.

 
१- पुल्लिंग

२- स्त्रीलिंग

३- नपुसंक लिंग ; अप्रानी वाचक पदार्थ, भाव, विचार नपुंसक लिंग में आते हैं यथा:

घर, पुस्तक, रुख, विचार आदि

कवि, कीरा (कीड़ा) , चरा (चिड़िया) , देवता आदि

३- सामान्य लिंग : जिस किसी में दोनों लिंगों की संभावनाएं होती है . यथा

 

जब कि व्याकरण शास्त्री जय राज आचार्य  मानते हैं कि दो ही लिंग होते हैं .

जय आचार्य के अनुसार संज्ञा में लिंग क्रिया अनुसार अभिव्यक्त होता है णा कि संज्ञा से , जैसे

शारदा जान्छा  (शारदा जाता है )

शारदा जान्छे (शारदा जाती है )

दुर्गा गयो (दुर्गा गया )

दुर्गा गई (दुर्गा गई)   

 

 

१- शब्द से पहले लिंग सूचक शब्द जोड़ने से

पुल्लिंग  ---------------------------------------स्त्रीलिंग 

 

लोग्ने मान्छे---------------------------------स्वास्नी मान्छे

पुरुष देवता ----------------------------------स्त्री देवता 

भाले कमिला-------------------------------पोथी कमिला (चींटी ) 

२- आनी, इनी, इ, एनी प्रत्यय लगाकर पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बदलना     

पुल्लिंग ---------------------------------------स्त्रीलिंग

ऊँट --------------------------------------------ऊंटनी

कुकुर -----------------------------------------कुकुर्नी (कुत्ती )

घर्ती-----------------------------------------घर्तीनि

डाक्टर --------------------------------------डाक्टरनी

 

३- नेपाली के पृथक पृथक पुल्लिंग व स्त्रीलिंग शब्द

नेपाली में भी अन्य भाषाओँ कि तरह पृथक पुल्लिंग शब्द व पृथक स्त्रीलिंग का विधान मिलता है

पुल्लिंग ---------------------------------------स्त्रीलिंग

बुवा (पिता) ----------------------------------आमा  (मां )

दाजू (भाई)-----------------------------------बहिनी  (बहिन) 

सांढे गोरु (बैल) -----------------------------------गाई (गाय) 

 

                         नेपाली में वचन विधान

 
 
 नेपाली में गढ़वाली व कुमाउंनी भाषाओँ के बनिस्पत वचन विधान सरल है

   १- हरु प्रत्यय जोड़ कर बहुवचन बनना :

संज्ञा के अंत में हरु जोड़ने से संज्ञा बहुवचन हो जात है , जैसे

एकवचन ---------------------------------------बहुवचन

 

राजा -------------------------------------------राजाहरू

मान्छे (एक व्यक्ति ) ------------------------- मान्छेहरु (कई व्यक्ति )
 
किताब -----------------------------------------किताबहरु 

देस ----------------------------------------------देसहरू

 २- सूचनार्थ शब्दों से वचन सूचना

यो एवम त्यो 'यी' और 'ती' में  बदल जाते हैं

एकवचन ---------------------------------------बहुवचन

यो मान्छे ---------------------------------------यी मान्छेहरु

 

३- संख्या को संज्ञा से पहले लगाने से वचन बादल जाता है

एकवचन ---------------------------------------बहुवचन
 
एक दिन ----------------------------------------दुई दिन , पांच दिन

 

४- कुछ संज्ञाओं में संज्ञा शब्द (जो जाती वाचक संज्ञाएँ बहुत सा, बहुत से बिबोधित हो पाती हैं  ) से पहले  धेरै लगाने से भी एकवचन बहुवचन बन जाता है

एकवचन ---------------------------------------बहुवचन

किताब ----------------------------------------धेरै किताब

यद्यपि  धेरै किताबहरु भी प्रयोग किया जाता है

५-  कारक  को  शब्द बहुवचन में का में बदल जाता है

एकवचन ---------------------------------------बहुवचन

नेवार को मान्छे -----------------------------नेवार का मान्छेहरु  (नेवार के (कई) मनुष्य )
 
छोरा को किताब -----------------------------छोरा का किताबहरु (पुत्र की किताबें ) 

     

 
 

संदर्भ् :
१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली

२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल

३- भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद

४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून

५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला

६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून

७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत

८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत

९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ

१० - भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल

११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४,  राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल





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                                                मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -5





                                                          (Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan Languages-Part-5 )

 

 

                                                              सम्पादन : भीष्म कुकरेती

                                    Edited by : Bhishm Kukreti                  


इस लेखमाला का उद्देश्य मध्य हिमालयी कुमाउंनी, गढ़वाळी एवम नेपाली भाषाओँ के व्याकरण का शास्त्रीय पद्धति कृत अध्ययन नही है अपितु परदेश में बसे नेपालियों, कुमॉनियों व गढ़वालियों में अपनी भाषा के संरक्षण हेतु प्रेरित करना अधिक है. मैंने व्याकरण या व्याकरणीय शास्त्र का कक्षा बारहवीं तक को छोड़ कभी कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नही की ना ही मेरा यह विषय/क्षेत्र रहा है. अत: यदि मेरे अध्ययन में शास्त्रीय त्रुटी मिले तो मुझे सूचित कर दीजियेगा जिससे मै उन त्रुटियों को समुचित ढंग से सुधार कर लूँगा. वास्तव में मैंने इस लेखमाला को अंग्रेजी में शुरू किया था किन्तु फिर अधिसंख्य पाठकों की दृष्टि से मुझे हिंदी में ही इस लेखमाला को लिखने का निश्चय करना पड़ा . आशा है यह लघु कदम मेरे उद्देश्य पूर्ति हेतु एक पहल माना जायेगा. मध्य हिमालय की सभी भाषाएँ ध्वन्यात्म्क हैं और कम्प्यूटर में प्रत्येक भाषा की विशिष्ठ लिपि न होने से कहीं कहीं सही अक्षर लिखने की दिक्कत अवश्य आती है किन्तु हम कुमाउंनी , गढवालियों व नेपालियों को इस परेशानी को दूसरे ढंग से सुलझानी होगी ना की फोकट की विद्वतापूर्ण बात कर नई लिपि बनाने पर फोकटिया बहस करनी चाहिए. ---- भीष्म कुकरेती )

 

                                                                                     कुमाउंनी भाषा में सर्वनाम विधान

   अबोध बन्धु बहुगुणा ने लिखा है की संज्ञाओं के बदले प्रयुक्त होने वाले शब्दों को सर्वनाम कहा जाता है.

 

                       कुमाउंनी भाषा में सर्वनाम में दो लिंग, दो वचन और विकारी (Declinable )  एवम  अविकारी (Indeclinable ) कारक (Cases   )  प्रत्ययों से युक्त होते हैं . यह देखा गयी है कि सर्वनामों में संबोधन कारक नही होते हैं. चूँकि लिंग, वचन व कारक तत्व अभिभाज्य होते हैं , इसलिए कुमाउंनी व्याकर्णाचार्य  डा. भवानी दत्त उप्रेती ने सर्वनाम अध्ययन हेतु  लिंग, वचन व कारक का अध्ययन साथ ही होना अनिवार्य माना है   

 

           कुमाउंनी भाषा में लिंग भेद दो स्तरों पर किया जाता है

१- लिंग व्युत्पादकों पर लगाया  हुआ प्रत्यय

२-   वाक्यस्तर में लिंग भेद   

                                          कुमाउंनी  सर्वनाम- लिंग -वोधक प्रत्यय

                 

सर्वनाम में दो ही लिंग होते हैं

१- पुल्लिंग  सर्वनाम  पर लगा प्रत्यय

२- स्त्रीलिंग सर्वनाम पर लगा प्रत्यय

                                            अ - -ओकारांत का -ओ -

                               पुल्लिंग वोधक जहां निजवाचक सर्वनाम में न्  और सम्बन्ध वाची सर्वनाम में र् अथवा क् के पश्चात लगता है . इसके दो रूप मिलते हैं -ओ और -आ

 
 
 क--ओ= ओ प्रत्यय एक वचन पुल्लिंग या सम्बन्ध वाचक सर्वनाम के ओकारांत रूपों में मिलता है .यथा

  आपुन् +ओ  = आपुनो (अपना )

 वीक् + ओ=वीको  (उसका)

तेर् + ओ = तेरो (तेरा )

 

ख - ओकारांत का -आ: ओकारांत सर्वनाम सभी बहुवचन रूप में ही मिलते हैं. यथा

 आपुन् = आ =आपुना  (अपने )

वीक् = आ = वीका (उसके )

त्यार् + आ= त्यारा  (तेरे )   

 हमोर् + ओ =हमोरो (हमारे )

 

                                                ब- -इ : सर्वनामों मे इ
 
 

                    सर्वनामों मे इ  प्रत्यय स्त्रीवोधक  है . इ का प्रयोग एक वचन व बहुवचन में एक समान होता  है

आपुन् + इ = आपुनि (अपनी)

वीक् + इ = वीकि (उसकी )

तेर् =इ = तेरि  (तेरी )

मेर् + इ = मेरि (मेरी )

हमार् + इ = हमारि (हमारी )

 

                                        कुमाउंनी भाषा मे   विशेषण व क्रिया से सर्वनाम का लिंग बोध

 

                       जब भी कोई लिंग  विशेषण या क्रिया पर आधारित हो तो कुमाउंनी भाषा मे वाक्य स्तर पर सर्वनाम का लिंग बोध क्रियाएं व विशेषणों के  लिंग से  होता है

 

वाक्य स्तर पर विशेषण आधारित लिंग बोध

 

१- -ओ प्रत्यय से स्त्रीलिंग का बोध होता है - यथा

मैं कालो छूं  (मै काला हूं ),

तैं  बड़ो निको  छै (तू बड़ा अच्छा है )

२- -इ प्रत्यय से स्त्रीलिंग का बोध होता है . जैसे

मैं कालि छूं (मै काली हूं )

तैं बड़ी निकि छै   (तू  बड़ी अच्छी  है )

 

वाक्य स्तर पर क्रिया  आधारित लिंग बोध

 

क्रिया के अंत में जुड़े हुए पुल्लिंग या त्रिलिंग वोधक पर प्रत्ययों से सर्वनाम की लिंग निर्णय होता है .यथा

तैं खांछै (तू खता है )

तैं खांछि (तू खाती है )

वु खान्छ (वह खता है )

वु खान्छी (वह खाती है )

                   कुमाउंनी में   उत्तम पुरुष सर्वनाम का लिंग बोध केवल विशेषण द्वारा सम्भव है क्योंकि उत्तम पुरुष में क्रिया लिंग समान पाए जाते हैं

 

                                                     सर्वनाम वचन व कारक रूप

 

                                                        उत्तम पुरुष वाचक सर्वनाम 


                                      एक वचन------------------------------------------- बहुवचन

                             अविकारी------------विकारी ------------------------अविकारी ----------विकारी

                                 मैं-----------------मैं -------------------------------हम्-----------------हम्

                                म -----------------मी----------------------------------------------------हमू, हमुन

 

                                                  मध्यम पुरुष वाचक सर्वनाम

 ----------------------   एक वचन  ------------------------------------------------बहुवचन

 ----------------------- अविकारी --------विकारी----------------------------------अविकारी --------विकारी

 मध्य पुरुष वाचक ----------------------- ऐ ----------------------------------------------------------- -उ

 मध्य पुरुष वाचक------------------------इ ------------------------------------------------------------ -इ

मध्य पुरुष वाचक------------------------ए--------------------------------------------------------------ऊन 

मध्य पुरुष वाचक------------------------या ----------------------------------------------------------------

मध्य पुरुष वाचक ----------------------ऊँ----------------------------------------लोग---------------लोगून, लोगन 

मध्य पुरुष आदरसूचक--- तैं  -----------तैं-----------------------------------------तुम -----------------तुम्   

मध्य पुरुष आदरसूचक---तु -------------त्वी ------------------------------------तिमि ------------------तुमु

मध्य पुरुष आदरसूचक --- -------------ते ----------------------------------------तम--------------------तिमि

  मध्य पुरुष आदरसूचक----------------त्या--------------------------------------------------------------तुमुन

मध्य पुरुष आदरसूचक-----------------त्वे ------------------------------------------------------------------

मध्य पुरुष आदरसूचक- आपूं---------आपूं ------------------------------------आपूं लोग -------------आपूं लोगुन/आपूं लोगन (आप कुमाउंनी  शब्द नही है )

 

                                                              अन्य पुरुष निश्चय वाचक  सर्वनाम   

 

  ---------------------------- एक वचन ------------------------------------------------बहुवचन
------------------------- --अविकारी --------विकारी----------------------------------अविकारी --------विकारी

१- दूरवर्ती द्योत्तक--- -   उ ---------------वी --------------------------------------- उन् --------------उन्, ऊन, उनु

२- निकटवर्ती द्योत्तक --वो---------------ये------------------------------------------इन ---------------इन, इन्, इनु, इनूं

आदर सूचक -------------आफु -------------आफु ------------------------------------आफु----------------आफूं /आफून

आदर सूचक -------------आफ -------------आफ-------------------------------------आफ---------------- आफून /आफूँ

निश्चय वाचक सर्वनाम एक वचन में -ई , तथा बहुवचन  में ऐ जुड़ता है. योई, (यही ) , उई (वही ) , इनै (ये ही ), उनै (वे ही ) 

 

                                                            प्रश्न वाचक सर्वनाम       

                           

----------------------------------- एक वचन --------------------------------------------------बहुवचन
------------------------- --अविकारी --------विकारी----------------------------------अविकारी --------विकारी 

प्राणी वोधक ---------------को --------------कै ----------------------------------------कन---------------कन् , कनु , कनूं

अप्राणी वोधक-------------के ----------------के -----------------------------------------------------------कनूं (क+न् +उन  ) 

 

                                                   अनिश्चय वाचक सर्वनाम

 

----------------------------------- एक वचन --------------------------------------------------बहुवचन
------------------------- --अविकारी --------विकारी-------------------------------अविकारी --------विकारी

प्राणी वोधक -------------कवी, कोई ------- के ------------------------------------क्वे ------------ कन , कनु कनूं

परिमाण वोधक-----------कुछ -------------कुछ ----------------------------------कुछ ---------कुछ, कुछून 

परिमाण वाचक व

सम्पूर्णता द्योतक ------शब्---------------शब् ------------------------------------शब्------------शबून 

----------------------------शप्  -------------शप्---------------------------- -------- शप्----------- शप्पैन

 

                                      सम्बन्ध वाचक सर्वनाम

 

----------------------------------- एक वचन --------------------------------------------------बहुवचन
------------------------- --अविकारी --------विकारी-------------------------------अविकारी --------विकारी

सम्बन्ध वाचक ----------जो----------------जै --------------------------------------जन ------------जनूं (जन + उन)

नित्य सम्बन्धी ---------शो ----------------तै -------------------------------------------------------तनु , तिनु

 नित्य सम्बन्धी---------तो ---------------------------------------------------------तन, तिन -------तनु , तिनु , तिनूं

 

                                           परस्परता वोधक  सर्वनाम

परस्परता वोधक सर्वनाम केवल बहुवचन में होते हैं

------------------------- --अविकारी --------विकारी

परस्परता वोधक -------- आपश------------आपशून 

 

                                          निजवाचक वोधक सर्वनाम

 

----------------------------------- एक वचन --------------------------------------------------बहुवचन
------------------------- --अविकारी --------विकारी-------------------------------अविकारी --------विकारी

--------------------------आपुन ------------आपुना--------------------------------आपुना -----------आपुनान

 

                                   अविकारी कारक एकवचन व वहुवचन सर्वनाम

 

कुमाउंनी में अविकारी कारक एक वचन बहुवचन में परिवर्तित होता है . किन्तु दुसरे के अंतर्गत एक वचन और वहुवचन के रूप समान रहते हैं .

बहुवचन में परिवर्तन होने वाले सर्वनाम

वे जो एकवचन में स्वरांत होते हैं व बहुवचन में ब्यंजनांत हो जाते है - एक वचन क बहुवचन कक में, एकवचन अ बहुवचन अक में  बदल जाता है. वैसे हम और हमि भी इसी कोटि में आते हैं जो smay, jati bhed के मुक्त परिवर्तन के उदाहरण 

हम -उत्तम पुरुष बहुवचन द्योतक सर्वनाम है 

तुम माध्यम पुरुष बहुवचन द्योतक है

 

----------------------------------- एक वचन --------------------------------------------------बहुवचन

----------------------------------उ (वह) --------------------------------------------------------उन (वे)

---------------------------------यो (यह) --------------------------------------------------------इन (ये)

--------------------------------तो (सो)----------------------------------------------------------तिन, तन

-------------------------------को----------------------------------------------------------------कन

---------------------------------जो --------------------------------------------------------------जन

                            कुछ अन्य नियमों के उदहारण

 

कुछ, शप, आफु

हम , हमुन
 
तुम , तुमन

उन , उनुन

इन , इनून

हमूनले (हमने ), हमून (हमको)

हमुंका (हमारा)  , हमुश (हमको) , हमुकैं (हमको) , हमुकणि   

आपुनान (अपनों को )

शबोका (सबका  ) , शबाका (सबके) , शबकि (सबकी)   

हमोरो, हमारा , हमरी  , तुमोरो, तुमारा  , तुमरी  , इनोरो , इनारा, उनोरी , उनारा, उर्नार, 

हम लोगून,  हम शब्, हम शबुन  , शब् जन, शब जनून 

 मेरवे (मेरा ही )  , तेर्वे (तेरा ही) , तुमी ((तुम ही) , मैंइ (मै ही ) , उनि (वे ही )  इनी (ये ही )  , हमई (हम ही ) , , उनीर्वे (उनका ही ) , इनौर्वे (इनका ही )                                   

 

 


 संदर्भ् :



१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली
 
२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल


३- भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद

४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून


५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला

६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून


७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत

८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत


९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ


१० - भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल

११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल






Comparative Study of Kumauni Grammar , Garhwali Grammar and Nepali Grammar (Grammar of , Mid Himalayan Languages ) to be continued ........



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                                                   मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -6




        (Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali Grammar and Nepali Grammar ,Grammar of  Mid Himalayan Languages-Part-6 )





                                                                   सम्पादन : भीष्म कुकरेती


                                       Edited by : Bhishm Kukreti


इस लेखमाला का उद्देश्य मध्य हिमालयी कुमाउंनी, गढ़वाळी एवम नेपाली भाषाओँ के व्याकरण का शास्त्रीय पद्धति कृत अध्ययन नही है अपितु परदेश में बसे नेपालियों, कुमॉनियों व गढ़वालियों में अपनी भाषा के संरक्षण हेतु प्रेरित करना अधिक है. मैंने व्याकरण या व्याकरणीय शास्त्र का कक्षा बारहवीं तक को छोड़ कभी कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नही की ना ही मेरा यह विषय/क्षेत्र रहा है. अत: यदि मेरे अध्ययन में शास्त्रीय त्रुटी मिले तो मुझे सूचित कर दीजियेगा जिससे मै उन त्रुटियों को समुचित ढंग से सुधार कर लूँगा. वास्तव में मैंने इस लेखमाला को अंग्रेजी में शुरू किया था किन्तु फिर अधिसंख्य पाठकों की दृष्टि से मुझे हिंदी में ही इस लेखमाला को लिखने का निश्चय करना पड़ा . आशा है यह लघु कदम मेरे उद्देश्य पूर्ति हेतु एक पहल माना जायेगा. मध्य हिमालय की सभी भाषाएँ ध्वन्यात्म्क हैं और कम्प्यूटर में प्रत्येक भाषा की विशिष्ठ लिपि न होने से कहीं कहीं सही अक्षर लिखने की दिक्कत अवश्य आती है किन्तु हम कुमाउंनी , गढवालियों व नेपालियों को इस परेशानी को दूसरे ढंग से सुलझानी होगी ना की फोकट की विद्वतापूर्ण बात कर नई लिपि बनाने पर फोकटिया बहस करनी चाहिए. ---- भीष्म कुकरेती )





                                                                   गढ़वाली में सर्वनाम विधान



 पुरुष वाचक सर्वनाम: गढवाली में कुमाउनी की तरह स्त्रीलिंग व पुरुषवाचक संज्ञाओं का पृथक सत्ता है. हिंदी के पुर्श्वचक अन्य पुरुष सर्वनाम 'वह' के लिए गढ़वाली में स्यू/स्यो व स्त्रीलिंग में स्या है. बहुवचन में पुल्लिंग व स्त्रीलिंग एक समान हो जाते हैं 'वै' 'वूं' हो जटा है और वा भी 'वूं' हो जाता है 

                    गढवाली भाषा- व्याकरण वेत्ता अबोध बंधु बहुगुणा व लेखिका  रजनी कुकरेती ने गढ़वाली सर्वनामों को प्रयोगानुसार पाँच भागों में विभक्त किया है

१-पुरुष वाचक सर्वनाम -  मैं, तू, मि 

२-निश्चय वाचक सर्वनाम - या, यू, वा, वु, स्या, स्यू

३- सम्बन्ध वाचक -जु , ज्वा

४-प्रश्न वाचक - कु, क्वा, क्या,

५- अनिश्य वाचक - क्वी

 अबोध बंधु ने जहाँ सर्वनामों को तालिका बद्ध कर उदहारण दिए हैं वहीं रजनी ने करक अनुसार तालिका दी है.  नेपाली, कुमाउनी व गढ़वाली व्याकरण के तुलनात्मक अध्ययन हेतु रजनी कुकरेती की दी हुयी तालिका विशष महत्व रखती है, यद्यपि बहुगुणा की तालिका का महत्व कम नही आंका जा सकता 

                           बहुगुणा द्वारा बिभाजित सर्वनाम तालिका



---------------------------------------पुल्लिंग ----------------------------स्त्रीलिंग

पुरुषवाचक -------------एकवचन ---------वहुवचन ---------------एकवचन --------बहुवचन

उत्तम पु.-----------------मि/मै ----------- हम ---------------------मि ----------------हम

माध्यम पु. ---------------तु ----------------तुम --------------------तु ------------------तुम

अन्यपुरुष ----------------उ/ओ ------------वु -----------------------वा -----------------वु

२- निश्चय वाचक --------वी ---------------वी ---------------------वै /वई---------------वी

----------------------------स्यो -------------स्यि------------------स्या ------------------ स्यि

----------------------------यो --------------यि /इ ------------------या-------------------यि /इ

३- अनिश्चय वाचक ------क्वी -------------क्वी -------------------क्वी ----------------क्वी

------------------------------------------------कति ---------------------------------------कति

------------------------------------------------कुछ -----------------------------------------कुछ

४-सम्बन्ध वाचक ---------जु ----------------जु --------------------ज्वा ----------------  जु

-----------------------------ते -----------------तौं ---------------------तैं -------------------तौं

-----------------------------ये ------------------यूँ ---------------- यीं/ईं --------------------यूँ

५- प्रश्न वाचक ------------को ----------------कु -------------------क्वा -----------------  कु

 --------------------------क्या ----------------क्यक्या-------------क्या -----------------क्यक्या                                         


रणजी कुकरेती ने मै, तेरा,तुमारा, स्यू/स्या, वु/वा , यू/या, जु/ज्वा क्वा/कु को कारक अनुसार तालिका बढ कर विश्लेषण किया है  . कुछ उदाहरण निम्न हैं


                                         मैं/मि उभय लिंगी सर्वनाम तालिका


कारक---------विभक्ति ----------------------------------एकवचन --------------------------बहुवचन

  ------------------------------------------------------------  मैं/मि  -------------------------------हम   

करता ----------न ------------------------------------------मिन--------------------------------हमन/हमुन 

कर्म ------------सन/सणि/तैं/ सैञ -------------------में /मै -सणि/सन/तैं/सैञ---------------हम - सन/ सणि/तैं / सैञ 

करण ----------से ---------------------------------------मेंसे /मैसे ----------------------------------हमसे

सम्प्रदान -----कुण/कुणि/खुण/खुणि/कुतैं--------- में /मै कुण/कुणि/खुण/खुणि/कुतैं------हमकुण/कुणि/खुण/खुणि/ हमूंतैं     

अपादान ------बिटी ----------------------------------में/मै बिटी-------------------------------------हमबिटी

छटी ----------म/ मू ------------------------------------मीम , मैमू ---------------------------------हमम /हममू

अधिकरण-----मा--------------------------------------- मीमा /मैमा ---------------------------------- हममा       



                                    तु उभयलिंगी सर्वनाम तालिका



कारक---------विभक्ति ----------------------------------एकवचन -----------------------------------बहुवचन

   --------------------------------------------------------------तु------------------------------------------तुम -----

करता ----------न -------------------------------------- ----- तिन /तीन --------------------------------तुमन 

कर्म ------------सन/सणि/तैं/ सैञ--------------------------त्वेसन/सणि/तैं/सैञ--------------------------तुमसणि/सन /तैं/  सैञ   

करण ----------से---------------------------------------------त्वेसे ---------------------------------------तुमसे 

सम्प्रदान ------कुणि/कुण/कुतैं/ खुणि --------------------- त्वेकुणि/कुण/कुतैं/ खुणि -------------------तुमकुणि/कुण/कुतैं/ खुणि   

अपादान ------बिटी ------------------------------------------त्वेबिटि-------------------------------------तुमबिटि 

छटी ----------म/मू--------------------------------------------तीम /त्वेमू  -----------------------------------तुममू

अधिकरण- /मा-------------------------------------------------- तीमा, त्वेमा-----------------------  तुममा   

                         

इस प्रकार हम पाते हैं कि गढ़वाली सर्वनाम का  लिंग व वचन भेद क्रिया, विशेषण व स्थान  आदि से भी सम्बन्ध है


संदर्भ  :

१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली

२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल


३- भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद

४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून


५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला

६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून


७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत

८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत


९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ


१० - भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल

११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल






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                                    मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -7

                                                                                                               

                        ( Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali Grammar and Nepali Grammar ,Grammar of Mid Himalayan Languages-Part-7 )


                                                                          सम्पादन : भीष्म कुकरेती

                                            Edited by : Bhishm Kukreti


इस लेखमाला का उद्देश्य मध्य हिमालयी कुमाउंनी, गढ़वाळी एवम नेपाली भाषाओँ के व्याकरण का शास्त्रीय पद्धति कृत अध्ययन नही है अपितु परदेश में बसे नेपालियों, कुमॉनियों व गढ़वालियों में अपनी भाषा के संरक्षण हेतु प्रेरित करना अधिक है. मैंने व्याकरण या व्याकरणीय शास्त्र का कक्षा बारहवीं तक को छोड़ कभी कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नही की ना ही मेरा यह विषय/क्षेत्र रहा है. अत: यदि मेरे अध्ययन में शास्त्रीय त्रुटी मिले तो मुझे सूचित कर दीजियेगा जिससे मै उन त्रुटियों को समुचित ढंग से सुधार कर लूँगा. वास्तव में मैंने इस लेखमाला को अंग्रेजी में शुरू किया था किन्तु फिर अधिसंख्य पाठकों की दृष्टि से मुझे हिंदी में ही इस लेखमाला को लिखने का निश्चय करना पड़ा . आशा है यह लघु कदम मेरे उद्देश्य पूर्ति हेतु एक पहल माना जायेगा. मध्य हिमालय की सभी भाषाएँ ध्वन्यात्म्क हैं और कम्प्यूटर में प्रत्येक भाषा की विशिष्ठ लिपि न होने से कहीं कहीं सही अक्षर लिखने की दिक्कत अवश्य आती है किन्तु हम कुमाउंनी , गढवालियों व नेपालियों को इस परेशानी को दूसरे ढंग से सुलझानी होगी ना की फोकट की विद्वतापूर्ण बात कर नई लिपि बनाने पर फोकटिया बहस करनी चाहिए. ---- भीष्म कुकरेती )




                                             नेपाली भषा में सर्वनाम विधान Pronouns in Neplai Grammar


                       नेपाली में भी सर्वनाम संज्ञा या सर्वनाम की जगह प्रयोग होता है

 कृष्ण प्रसाद पराजुली व  कृष्ण प्रसाद पराजुली ने  नेपाली सर्वनामों को छ भागो में विभाजित किया है

१- पुरुष वाचक ; 

-------------------------------एक वचन --------------------------------------बहुवचन-----

 

१-प्रथम पुरुष ----------------म ---------------------------------------------हामी (हरु) -------

मध्यम पु.-----------------------तं/तपाई -----------------------------------------तिमीहरु/ तपाई हरु --

अन्य पु. ------------------------उ -----------------------------------------------उनिहरु /तिनिहरू   

२-दर्शक वाचक ----------------यो ----------------------------------------------- यी

दर्शक वाचक-------------------त्यो -----------------------------------------------ती

 दर्शक वाचक------------------यहाँ /त्यहाँ -----------------------------------------

३-सम्बन्धवाचक --------------------------केही/ कोहि, जे , जेसुक्कै ---------------------------- वचन निर्धारण   अन्य आधार करते हैं

४& ५ प्रश्न वाचक ------------------ ------------जो, जस्ले,जे, जुन --------------------------------वचन निर्धारण  अन्य  आधार करते हैं

नेपाली मे भी  सर्वनाम लिंग  भेद क्रिया से होता है

बाल कृष्ण बाल कहते हैं कि यह देखा गया है कि नेपाली में सर्वनाम में कारकों व संख्याओं  का प्रयोग अधिकतर अनियमित होते हैं

 सर्वनाम में लिंग भेद के उदहारण :

उ ( वह,  पुल्लिंग )

तिनी (वह , स्त्रीलिंग)

उस्को (उसका , पुल्लिंग)

तिनको (उसकी , स्त्रीलिंग )

उस्लाई ( उसको पुल्लिंग )

तिनलाई (उसको, पुल्लिंग)

जी.जी. रोजर्स (१९५१)  'कोलोक्वियल नेपाली ' पुस्तक में लिखते हैं कि गढ़वाली व कुमाउंनी भाषाओँ कि तरह ही सर्वनामों को आदरसूचक भी बनया जाता है . यथा

सर्वनाम -----------आदर देने हेतु परिवर्तित

म ------------------------मऐ

तं--------------------------तैं

उ -------------------------उई 

   


संदर्भ :




१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली

२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल


३- भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद

४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून


५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला

६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून


७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत

८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत


९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ


१० - भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल

११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल






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. @ मध्य हिमालयी भाषा संरक्षण समिति

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                                           मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -8

                       

 ( Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali Grammar and Nepali Grammar ,Grammar of Mid Himalayan Languages-Part-8 )



                                                         सम्पादन : भीष्म कुकरेती 
                               Edited by : Bhishm Kukreti

                                                    कुमाउंनी में विशेषण विधान  (Adjectives in Kumauni Language

                           संज्ञा की भांति  कुमाउंनी  में विशेषण दो वचनों व लिंगो से प्रयुक्त होते हैं

              कुमाउंनी में विशेषण निम्न प्रकार से पाए जाते हैं

१- गुणवाचक विशेषण

२- प्रणाली वाचक विशेषण

३-परिमाण वाचक विशेषण

४-संख्यावाचक विशेषण

५- सार्वनामिक विशेषण

कुछ विशेषण रूपान्तरयुक्त  होते हैं व शेष रूपांतर मुक्त होते हैं

 

                                                        १-  कुमाउंनी में गुणवाचक विशेषण


                                                      १ अ-   रूपांतरमुक्त गुण वाचक विशेषण

                       रूपांतरमुक्त गुण वाचक विशेषण मूल प्रतिवादक व व्युत्पुन प्रतिपादक दोनों होते हैं

मूल प्रतिपादक रुपंतारमुक्त  गुण वाचक विशेषण : मूल प्रतिपादक गुण वाचक विशेषण अधिकतर व्यंजनान्त तथा लिंग-वचन से अप्रभावित होते हैं

दक्ष (चतुर )

च्ल्लाक (चालाक )

शुन्दर (सुन्दर)

व्युत्पन्न प्रतिपादक रुपंतारमुक्त गुण वाचक विशेषण

गुलिया (मीठा)

मरियल ( दुर्बल )

 

                                         १ब- रूपांतरयुक्त गुण वाचक विशेषण

                      रूपांतरयुक्त गुण वाचक विशेषण लिंग व वचन अनुसार परिवर्तित होते हैं

1 रूपांतरयुक्त गुण वाचक विशेषण में पुल्लिंग एकवचन अविकारी कारक में ओ (उड़- निको, शारो ) , पुल्लिंग बहुवचन में आ ( निका, शारो )   , तथा स्त्रीलिंग में इ  (निकी, शारी ) जुड़ता है

                   

                            १स- गुणवाचक विशेषण की तीन अवस्थाएं

१- सामान्य - निको  (अच्छा)

२- अधिक्य वोधक- वी है निको  (उससे अच्छा)

३-अतिशय वोधक - शब् है निको (सबसे अच्छा )

 

                                                         २- कुमाउंनी में प्रणाली वाचक विशेषण
कुमाउंनी में प्रणाली वाचक विशेषण में दो प्रकार के विशेषण होते हैं

१- पुल्लिंग प्रणाली वाचक विशेषण - पुल्लिंग प्रणाली वाचक विशेषण के रूप एक वचन व कारको के अनुसार व्यवहार करते हैं

पुल्लिंग एक वचन में इस प्रकर के विशेषणों में अंत में -ओ तथा बहुवचन में -आ प्रत्यय लगता है . जैसे

इशा (ऐसा), इशा  (ऐसे);

उशो (वैसा) , कशो

उशा (वैसा) , कशा

२- स्त्रीलिंग प्रणाली वाचक विशेषण - स्त्रीलिंग प्रणाली वाचक विशेषण दोनों वचनों व कारकों में अपरिवर्तित रहते हैं

इशी (ऐसी)

उशी (वैसी)

कशी (कैसी)

                                                  ३- कुमाउनी में परिमाण वाचक विशेषण

 

              कुमाउनी में परिमाण वाचक विशेषण दो प्रकार के पाए जाते हैं

३ अ  पुल्लिंग परिमाण वाचक विशेषण

३ ब - स्त्रीलिंग परिमाण वाचक विशेषण-  स्त्रीलिंग परिमाण वाचक विशेषण मूल प्रतिपादक के अतिरिक्त व्युत्पन्न प्रतिपादक भी है

मूल प्रतिपादक परिमाण वाचक विशेषण  - शब , कम, भौत

व्युत्पन्न प्रतिपादक परिमाण वाचक विशेषण -

अत्थ्वे (पूरा का पूरा) ,

शप्पै (सब के सब )

मनें (थोड़ा ), मणि (थोडा ) आदि .

इस प्रकार के विशेषण रूपान्तर मुक्त हैं . किन्तु रूपान्तर युक्त परिमाण वाचक विशेषण में लिंग, वचन व कारक के अनुसार परिवर्तन का विधान है .यथा

इतनो (इतना )

इतना (इतने )

इतुनी (इतनी )

उतुनो (उतना )   

उतुना (उतने )

उतनी (उतनी )

                                      ४- कुमाउनी में  संख्या वाचक विशेषण

 

संख्या वाचक विशेषण  के दो भेद हैं

४अ- अनिश्चित वाचक संख्या वाचक विशेषण - गणनात्मक संख्यावाचक विशेषण के साथ विशेषण व्युत्पादक पर प्रत्यय लगाकर अनिश्चय संख्या वाचक विशेषण की प्राप्ति होती है

शैकड़ों

एकाध

दशेक

शौएक

कुमाउंनी में कभी कभी गणनात्मक संख्या वाचक विशेषण  की जगह संज्ञा का प्रयोग होता है . जैसे

बर्शेक

दिनेक

 

कुछ केवालात्मक विशेषण भी  संख्या वाचक विशेषण की कोटो में पाए जाते हैं . यथा

एकोलो-दुकोलो

एकाला-दुकाला

इकली- दुकली

 

४ब- निश्चय संख्या वाचक विशेषण

 

निश्चय संख्या वाचक विशेषण  सात कोटि के होते हैं १- गणना वाचक, २- क्रम वाचक विशेषण , ३- गुणात्मक वोधक , ४- समूह वोधक, ५- ५- प्रत्येक बोधक ६-ऋणात्मक बोधक ७-  केवालात्मक

१- गणना वाचक निश्चय संख्या वाचक विशेषण
 
 गणना वाचक निश्चय संख्या वाचक विशेषण  दो प्रकार के होते हैं

१अ -पूर्णांक बोधक : पूर्णांक बोधक  दो प्रकार के होते हैं

क- मूल प्रतिपादक - एक, द्वी, तीन. चार, पाँच, छै  शात 

ख- व्युत्पन्न - उन्नीश , उन्तीश , द्वी शौ, दश हजार

१ब-  अपूर्णांक वोधक गणना वाचक विशेषण - अपूर्णांक वोधक गणना वाचक विशेषण  दो प्रकर के होते हैं

ब क- मूल प्रतिपादक

पौ

आद्धा

पौन

शवा

डेढ़

बख- व्युत्पन्न अपूर्णांक वोधक गणना वाचक विशेषण 

पौनेद्वी

शवाद्वी

शाढ़े तीन

२- क्रम वाचक विशेषण

क्रम वाचक विशेषण दो प्रकार के होते हैं

२अ- रूपांतर उक्त क्रम वाचक विशेषण

पैञलि (पहली ) ,पैञलो (पहला ),पैञला  (पहले )

दुशरि, दुशोरी , दुशारा

तिशरि , तिशोरी, तिशारा

चौथि , चौथो, चौथे

२ब् रूपान्तर मुक्त क्रम वाचक विशेषण

रूपान्तर मुक्त कर्म वाचक विशेषण मे पाञ्च के बाद कर्म  द्योतक विशेषणों मे कर्म  द्योतक पर-प्रत्यय के रूप मे ऊँ  रहता है व दोनों लिंगों, कारकों व वचनों में अपरिवर्तित रहता है

पंचुं

छयुं

शतुं

अठुं 

नवुं 

 दशुं

शौउं 

हजारूं

 

३- गुणात्मकता  वोधक निश्चय संख्या वाचक विशेषण

गुणात्मकता  वोधक निश्चय संख्या वाचक विशेषण में पूर्णांक गणनात्मक  संख्या वाचक विशेषण के साथ गुणात्मकता बोधक प्रत्यय -गुन तथा लिंग वचन द्योतक प्रत्यय -ओ (पुल्लिंग एक वचन) , -आ,  (पुल्लिंग बहुवचन  ) तथा -इ  (स्त्रीलिंग) संलग्न रहते हैं   .

दुगुनो, दुगुना ,दुगुनि

तिगुनो,तिगुना, तिगुनि

स्त्रीलिंग एक वचन व बहुवचन में एक रूप होता है और -इ प्रत्यय ही रहता है

 
 
४- समूह वोधक  निश्चय संख्या वाचक विशेषण 

 पूर्णांक  गणनात्मक संख्या वाचक विशेषण के साथ प्रत्यय -ऐ तथा ऊँ जोड़ने से  समूह वोधक निश्चय संख्या वाचक विशेषण रूप बनता है

दिय्यै

तिन्नें  (न्न + ऐं  ) 

पचाशें

द्शुं

बीशुं

५- प्रत्येक बोधक  निश्चय संख्या वाचक विशेषण   

५- प्रत्येक बोधक निश्चय संख्या वाचक विशेषण में कुछ मूल प्रतिपादक हैं तथा शेष व्युत्पन्न  प्रतिपादक हैं

मूल प्रतिपादक - हर (प्रत्येक) , हर मैश (प्रत्येक व्यक्ति )

व्युत्पन्न  प्रतिपादक - पूर्णांक गणनात्मक वाचक विशेषणों की द्विरुक्ति  से व्युत्पन्न  प्रतिपादक बनते हैं - एकेक, चार- चार

अपुर्नात्मक गन्ना वाचकों की  द्विरुक्ति से भी ब्युत्पन्न प्रतिपादन बनते हैं - आधा -आधा , पौवा -पौवा

६- ऋणात्मक बोधक  निश्चय संख्या वाचक विशेषण   

इस प्रकार के विशेषणों दो गणनात्मक संख्या वाचक विशेषणों के मध्य काम लगाने से बनते हैं . यथा द्विकम पचाश, पांच कम शौ

७- केवालात्मक निश्चय संख्या वाचक विशेषण   

केव्लात्मक विशेषण दो प्रकार के होते हैं

रूपांतर युक्त  - एकोलो , एकाला , एकली

रूपांतर मुक्त - इन विशेषणों के साथ -ऐ प्रत्यय जुड़ा होता है पर समूह बोधक से भिन्न भी है जैसे -एक्कै (केवल एक ), द्विय्ये  (केवल दो), तिन्नैं

 

                                        विशेषण रूप सारिणी

चूँकि विशेषणों के लिंग बोधक पर प्रत्यय विशेष्य के लिंग बोधक पर प्रत्ययों के अनुसार रुपतारिंत होते हैं इसलिए रूपांतरणो  पर वाक्य स्तर पर विचार किया जाता है.

१- ओकारांत संज्ञाओं की भांति ही वाक्यन्तार्गत ओकारांत विशेषण सर्वत्र पुल्लिंग बोधक होते हैं

२- इकारांत विशेषण सर्वत्र स्त्रीलिंग होते हैं

३- व्यंजनान्त पुल्लिंग संज्ञाएँ  एकवचन में -ओ  तथा बहुवचन में - आ  प्रत्यय्युक्त विशेषणों द्वारा पुर्वगामित होती हैं

४-  आकारांत , एकारांत  तथा ऐकारांत संज्ञाओं (दोनों लिंग) के विशेषणों में पुल्लिंग में -ओ व आ और स्त्रीलिंग में -इ हो जाते हैं

५- यद्यपि बहुत थोड़ी ही पुल्लिंग संज्ञाएँ इकारांत होती हैं इस प्रकार की इकारांत संज्ञाओं के विशेषण में अन्त्य -ओ व -आ पुल्लिंग में होता है

६-  -उ, -ए, -औ अन्त्य्युक्त संज्ञाएँ जो केवल पुल्लिंग होती हैं इनके साथ भी विशेषणों में - एकवचन -ओ तथा बहुवचन में -आ रहता है 
 
प्रातिपदिक मूल-------एक वच.पु.----------बहु .वच.पु. ------------- स्त्रीलिंग , एक.बच, तथा बहु.वच.
 
  काल -------------------कालो ---------------काला ----------------------कालि

नान---------------------नानो -----------------नाना ----------------------नानि
 
निक ----------------------निको ------------निका ------------------------निकि

 ७- पुल्लिंग ओकारांत , इकारांत, उकारांत , इकारांत , ऐकारांत , औकारांत संज्ञाओं के पूर्व विशेषण ओकारांत रहते हैं

८- पुल्लिंग बहुवचन में आकारान्त तथा स्त्रीलिंग दोनों वचनों में व्यंजनान्त आकारान्त, एकारांत, ऐकारांत, तथा ऐकारांत संज्ञाओं के पूर्व विशेषण इकारांत होते हैं

निकि बात

निको घर

ठुलि  माला

ठुलो ब्याला

नानि चेलि   

नानो आदिम

काचो आरू

ठुलो चौबे

नानि मै

निको दै
 
ठुलि   शै

पाको केलो

मंदों द्यौ

निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि ---
 
कुमाउनी में विशेषणों के पुल्लिंग व स्त्रीलिंग संज्ञाओं के साथ रूपान्तर युक्त आबद्ध रूपों -ओ, -आ, (क्रमश: पुल्लिंग व स्त्रीलिंग एक वचन व बहुबचन ) एवम -इ (स्त्रिलिन्ग एक वचन में ) से युक्त होते हैं

 

                           विशेषण लिंग बोधक रूपिम

 {-ओ} - विशेषण पुल्लिंग बोधक रूपिम के दो रूप होते हैं -ओ व -आ

क- -ओ :  विशेषण पुल्लिंग बोधक ; एक वचन ओकारांत विशेषण के अन्त्य रूप में आता है

कालो

नानो

शारो
 
ख- - आ:  विशेषण पुल्लिंग बोधक अन्त्य रूप में अन्यत्र आता है

श्याता

ठुला

चुकिला

क्यारा

{-इ} - इ विशेषण स्त्रीबोधक है . इ केवल स्त्रीबोधक है जो स्त्रीवाचक विशेषणों में अन्त्य रूप में अन्यत्र आता है

ठुलि

निकि

कालि

शारि

                                 विशेषण , वचन व कारक रूप 
 
 

 कुमाउंनी में वचन, प्रत्ययों का लिंग वाचकों से सम्बन्ध होता है

१- अविकारी करक में -ओ युक्त प्रत्यय एक वचन का बोधक है , यथा निको और -आ प्रत्यय युक्त बहुवचन का बोधक है , यथा निका

२- -इ प्रत्यय लिंग निर्णय स सम्बंद्ध है और एक वचन व बहुवचन दोनों में समरूप प्रयुक्त होता है , यथा निकि

                        लुप्त  विशेषणों में कारक

विशेषण प्रातिपदिक --------------------------------एक वचn. -------------------------बहुवचन  -------------

-----------------------------------------अविकारी -----------विकारी -------------------अविकारी -----------विकारी

ओकारांत -----------------------------ओ----------------------आ -----------------------आ --------------------आन

इकारांत ------------------------------इ-------------------------इ-------------------------इ--------------------ईन
 
उदहारण

---------------------------------------कालो -----------------काल़ा -----------------------काला ---------------कालान

---------------------------------------भौत ------------------भौत -------------------------भौत ----------------भौतान
 
---------------------------------------नानि ------------------नानि ----------------------नानि -------------------नानीन 

-------------------------------------बड़िया-------------------बड़िया--------------------बड़िया ------------------बड्यान 


 
 प्रतिपादक ----------------------------------------------विकारी कारक -------------------------------

निको -------------------------एक वचन --------------------बहुवचन

कर्ता कारक (ले)---------------निकाले --------------------निकानले

कर्मकारक  (आश )----------निकाश -------------------निकान

करण ----------------------निकाक्पिति ---------------निकानक्पिति   

सम्प्रदान -----------------निकाखिन-----------------निकानखिन 

अपादान --------------------निकाबटे ----------------निकानबटे

छटी -------------------------निकाको ----------------निकानको

अधिकरण ------------------निका --------------------निकान में

सम्बन्ध --------------------निक-आ ! ---------------निकौ  !

इसी प्रकार व्यंजनान्त विकारी बहु वचन में ऊन के पश्चात् कारक परसर्ग जुड़ते हैं

 

 

 
 
ञ = अनुस्वरीक  बिंदु

 
 
संदर्भ :



१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली

२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल


३- डा. भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद

४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून


५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला

६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून


७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत

८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत


९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ


१० - भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल

११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल






Comparative Study of Kumauni Grammar , Garhwali Grammar and Nepali Grammar (Grammar of , Mid Himalayan Languages ) to be continued ........



. @ मध्य हिमालयी भाषा संरक्षण समिति

Bhishma Kukreti

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                                            मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -9

                                                                 

                                          ( Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali Grammar and Nepali Grammar ,Grammar of Mid Himalayan Languages-Part-9 )



                                                           सम्पादन : भीष्म कुकरेती

                                Edited by : Bhishm Kukreti

 

                                                     गढ़वाली भाषा  में विशेषण विधान

 

                              Adjectives in Garhwali Language

       

                       अबोध बंधु बहुगुणा ने गढ़वाली में चार प्रकर के विशेषणों की व्याख्या की है

१- गुणवाचक -

छाल़ो,

काजोळ,

डर्खु ,

रमाळ,

सेल़ोमंद,

चलमलो,

हौन्सिया,

लमडेर,

सवादी,

चकडैत,  आदि

२- परिमाण वाचक -

बिंडी,

बिंडे, उ
 
थगा,

इथगा

इच्छि ,

 इच्छे ,

 कति ,   

३- संख्या वाचक -   

 एक बीसी,

दुयेक, दुय्ये ,

चारेक

४- संकेतात्मक -
 
 इ,

उ,

कति

रजनी कुकरेती ने गढ़वाली विशेषणों को पांच भागों में बांटा है

 
 
                                          १- सार्वनामिक विशेषण 

 

जो सर्वनाम अपने सार्वनामिक रूप में संज्ञा की विशेषता बताते हैं  और रजनी कुकरेती ने उन्हें चार भागों में विभाजित किया है

१ क- निश्चय अथवा संकेतवाचक - वु, या

१ख - अनिश्चय वाचक - कै, कु

१ग - प्रश्न वाचक -  क्या, कै

१घ- सम्बन्ध वाचक - जु, सौब
 
 

                                    २- गुणवाचक विशेषण

रजनी ने लिखा है कि संज्ञा के गुण दोष रंग, काल, स्थान, गंध, दिशा, अवस्था, आयु, दशा एवम स्पर्ष का बोध कराने वाले शब्द गुण वाचक विशेषण कहलाते हैं जैसे
 
तातु

पुरणि

चिलखण्या

मलमुलख्या

चिफळण्या

रजनी कुकरेती अपने नोट में लिखती हैं

अ- - जब गुण वाचक विशेषण लुप्त होते हैं तो उनका पर्योग संज्ञा समान होता है

सयाणा ठीकि बुल्दन

ब-- गुणवाचक विशेषण के बदले अधिकांस संज्ञाओं व सर्वनामों के साथ कु/कि /का एवम रि/रा प्रस्र्गों के संयोग से बाना रूप प्रयुक्त होता है जैसे

घर्या घी   ,
 
 बण्या  तैडु

                                 ३- संख्या वाचक विशेषण

जो विशेषण संज्ञा व सर्वनाम कि संख्या का बोध कृते हैं उन्हें संख्या वाचक विशेषण कहते हैं

क- निश्चित संख्यात्मक जैसे

छै

चार

ख- अनिश्चित वाचक

हजारु

लक्खु 

रजनी ने स्पष्ट भी किया कि संख्याएं सात प्रकार कि होती हैं

 अ- गणना वाचक- दस, बीस, पचास

ब- अपूर्ण संख्या वाचक - अधा, त्याई, सवा
 
स- क्रमवाचक - पैलू, दुसरू

ड़- आवृति वाचक - दुगुणु , तिगुणु

इ- समुदायवाचक - चौकड़ी , तिकड़ी, जोळी (जोड़ी)
 
ऍफ़. सम्मुचय वाचक - दर्जन, चौक बिस्सी, सैकड़ा

जी- प्रत्येक बोधक - एकेक , द्विद्वी , हरेक,   

 

                                ४- परिमाण वाचक विशेषण
 
रजनी ने परिमाण वाचक संज्ञाओं को दो भागों में विभाजित किया

४ क- निश्चित परिमाण वाचक विशेषण जैसे

तुरांक,

पथा

खंक्वाळ   

४ ख-   अनिश्चित परिमाण वाचक विशेषण जैसे

बिंडि 

थ्वड़ा

बिजां

भौत

४ग- समासयुक्त परिमाण वाचक विशेषण  जैसे

थ्वड़ा-भौत

कम-जादा

४घ- आवृति  परिमाण वाचक विशेषण  जैसे

भौत- भौत

जरा-जरा

                                    ५- विशिष्ठ विशेषण
रजनी कुकरेती ने कुछ विशिष्ठ विशेषणों का भी उल्लेख किया है यथा-
 
द्वियाद्वी 

तिन्या तिन्नी

चर्याचरी 

                            न्यूनता, व आधिक्य बोधक विशेषण

 अबोध बंधु बहुगुणा ने यद्यपि अपने बिभाजन मे न्यूनता व आधिक्य बोधक विशेषणों को अलग नही बताया किन्तु लिखा की गढ़वाली मे कई विशेषण गुण की न्यूनता व आधिक्य प्रकट करते हैं . यथा

झंगरेणो- झंगरेणो सी

ललांगो -लाल 

भली मनखेण आदि

रजनी कुकरेती ने भी लिखा की गढ़वाली मे विशेषण की उत्तरावस्था एवम उत्तमावस्था बताने वाले शब्द प्रयोग नही किये जाते हैं

किन्तु रजनी स्पष्ट करती हैं कि गढ़वाली मे इस उद्देश्य हेतु पर-विशेषणों का उपयोग किया जटा है. जैसे

उच्चू, वैसे उच्चू , हौरू उच्चू, सबसे उच्चू, निसु, हौर निसु आदि

आगे रजनी स्पष्ट करती हैं कि विशेषणों के मध्याक्षरों पर संहिता यथा लम्म+ बु , छोट्टु , मत्  + थि से गुण कि अधिकता प्रकट कि जाति है।

गध्वलि मे द्विरुक्ति जैसे -

काळु-काळु,

भूरु -भूरु एवं भूरण्या   

                              गढ़वाली भाषा में  विशेषण  बनाने कि नियम 

 

 १- संज्ञा शब्दों के अंत में वल़ो, वळी, दरो , दरी ,   जोड़ने से विशेषण बनते हैं    जैसे

भारावळी, गढवळी

जसपुर वल़ो , कुमाऊ वल़ो   

हैंसदरि 

पढंदरो

२- संज्ञा शब्दों के अंत में या जोड़ने से यथा

जस्पुर्या, दिपरग्या , इस्कुल्या , सरबट्या

३- संज्ञा के अंत में आन, वान  या मान जोड़ने से

भग्यान,

बुद्धिमान

४- संज्ञा शब्द के अंत में री जोड़ने से , जैसे

पुजारी , फुलारी, जुवारी

५- क्रिया शब्दांत में  दो या दी जोड़ने से

उठदो, बैठदो     

खांदी -पींदी

अबोध बंधु  ने सरलतम तरीका अपनाया वहीँ रजनी  कुकरेती ने नियमों को अधिक स्पष्टता के साथ तालिका बद्ध किया है और बगैर रजनी के उद्धरणो  के गढवाली व्याकरण /विशेषणों का तुलनात्मक अध्ययन  पूरा नही माना जा सकता है

१- गढवाली में मूल विशेषण :

१-क खाने का सवाद - मिट्ठू,  गळगल़ू , घळतण्या , सळसल़ू ,

१ख मनुष्य प्रकृति - अळगसि,  फोंद्या, क्वांसी, मुन्जमुन्जू, चंट

१ग- द्रव्य विशेषताएं - चचगार, ठंडो, तातु , खिडखिडु

१घ- पेड सम्बन्धी - कुंगळी, झपनेळी     

१च- मात्र - छौंदु , बिंडी, बेजां, इच्छी

                               सर्वनामो से विशेषण बनाने के नियम

सर्वनाम------------------------------------------विशेषण

मूल सर्वनाम-----------------पुल्लिंग एक वचन-----------स्त्री. ए.व.----- -------बहुवचन ,

मै/मि--------------------------म्यार/मेरु/मेरो --------------मेरि---------------------मेरा

तख --------------------------तखौ--------------------------तखै----------------------तखा

त्वे -------------------------तेरो/ तेरु /त्यारु/त्यारो---------तेरी -----------------------त्यारा/तेरा

कख -------------------------कखौ -------------------------कखै-------------------------कखा

जख ---------------------------जखो ----------------------जखै-------------------------जखा

हम --------------------------हमारू/ /हमारो--------------हमारि -----------------------हमारा

कु -----------------------------कैकु ---------------------कैकी --------------------------कैका

वु /वा --------------------------वैकु/वैको ---------------वींक/वींकी-----------------------वीन्का   



                         क्रिया से विशेषण  बनाने के  कुछ  उदाहरण

क्रिया --------------------------विशेषण

खंडऔण -----------------------खंडऔण्या

बौल़ेण ---------------------------बौळया               

 

 
संदर्भ :
१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली

२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल


३- डा. भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद

४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून


५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला

६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून


७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत

८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत


९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ


१० - भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल

११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल






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