कच्ची
(72)
दिन मा बामण, जजमान, दलित
अलग-अलग रन्दी सच्ची,
राति गर्र कट्ठा हुन्दी
पीणा खुण ईं कच्ची,
जाँत-पाँत दूर करान्द
भयात बढ़ान्द य सच्ची,
मिल बैठी पिंदी सब्बि
जब राति मेरि ईं कच्ची।
(73)
न ईंकि क्वी जुबान चा
न क्वी पछ्याण सच्ची,
फिर्भी ढकणी खुल्दी ईंकि
बिरणा अपणा ह्वे जंदी सच्ची,
न रिस्ता द्यखदी, न नातु
न जाती द्यखदी, न थाती,
एक घूंट मा कना-कन्नो थै
मिला दीन्द य कच्ची।
(74)
पलभर मा दोस्त थै दुश्मन
दुश्मन थै दोस्त बणान्द सच्ची,
द्वी बूंद उतरदी जिकुड़ी मा
सब-कुछ भुला दीन्द य सच्ची,
कभि स्वसुर-ब्वारि मा घमासान
कभि लड़िक-ब्वारि मा रण-मंडाण,
दिन मा कत्गै दा रिस्तों थै
त्वड्द – ज्वड्द या कच्ची।
क्रमश...