Author Topic: Articles & Poem on Uttarakhand By Brijendra Negi-ब्रिजेन्द्र नेगी की कविताये  (Read 28782 times)

Brijendra Negi

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कच्ची


    (103)

गरम-गरम पक्वड़ि तैलि कि
दगड़ एक गिलास मा कच्ची,
काचु प्याज अर लूणा गारि,
खाँदम धैर दीण सच्ची।

नरक रिंगणी रैलि आत्मा
तरसणी रैलि कच्ची खुण,
स्वर्ग पौंछली यूंकि आत्मा
खाँदम धर्दी एक पव्वा कच्ची।


    (104)

कच्ची यूंकि खाणि-पीणि
कच्ची यूंकि दवै सच्ची,
जिकुड़ी मा रैन्द कच्ची यूंकि
सांस चल्दीं पेकि कच्ची।

कमान्दा छीं कच्ची खुण
जीवन खर्च कच्ची खुण,
बच्याँ छीं कच्ची खुण
म्वरण यूंल पेकि कच्ची।

..............


Brijendra Negi

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मैं निशब्द हूँ

(19)

मानव की निष्ठा में
नित पनपते छल-कपट से
                    स्तब्ध हूँ
              मैं निशब्द हूँ।

छल-कपट की निष्ठा में
नित बढ़ती धूर्तता से
               स्तब्ध हूँ
         मैं निशब्द हूँ।


(20)

व्यक्ति के अनुराग  में
नित पनपती छद्मता  से
                 स्तब्ध हूँ
           मैं निशब्द हूँ।

छद्मता के अनुराग में
नित बढ़ते अपराध से
              स्तब्ध हूँ
         मैं निशब्द हूँ।

क्रमश-------

Brijendra Negi

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मैं निशब्द हूँ


(21)

मानव की सहनशीलता में
नित बढ़ती शिथिलता से
                  स्तब्ध हूँ
             मैं निशब्द हूँ।

शिथिल सहनशीलता में
नित घटती   चेतना  से
                   स्तब्ध हूँ
             मैं निशब्द हूँ।


(22)

व्यक्ति   के   धर्म     में
नित बढ़ती धर्मांधता से
                 स्तब्ध हूँ
           मैं निशब्द हूँ।

धर्मांधता के धर्म में
नित बढ़ते अधर्म से
             स्तब्ध हूँ
        मैं निशब्द हूँ।


क्रमश....

Brijendra Negi

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मेरा पहाड़



मेहता जी तेरे-मेरे पहाड़ के,
दर्शन “मेरे पहाड़” में ।
बस इतना ही बचा अब,
तेरे-मेरे पहाड़ में ।


इंसान सारे बह गए,
शहरों की बयार में।
शैतानो का वास रहा गया,
तेरे-मेरे पहाड़ में ।


रिक्ख-बाघ-सुअर-बंदरों से
हर गाँव-गली त्रस्त है।
तेरी-मेरी टूटी घर-गौशालाओं में,
अपनी उत्पत्ति में मस्त हैं। 


मेहता जी तेरे-मेरे पहाड़ के,
दर्शन “मेरे पहाड़” में ।
बस इतना ही बचा अब,
तेरे-मेरे पहाड़ में ।


Brijendra Negi

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मैं निशब्द हूँ।


(23)

व्यक्ति के उपकार में
नित बढ़ते स्वार्थ से
             स्तब्ध हूँ
        मैं निशब्द हूँ।

स्वार्थ के  उपकार में
नित बढ़ती अपेक्षा से
              स्तब्ध हूँ
        मैं निशब्द हूँ।


(24)

व्यक्ति के प्रतिकार में
नित  बढ़ते  घात से
            स्तब्ध हूँ
        मैं निशब्द हूँ।

घात  के  प्रतिकार  में
नित बढ़ती नृशंसता से
                स्तब्ध हूँ
           मैं निशब्द हूँ।

क्रमश....


Brijendra Negi

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जय देवभूमि, जय उत्तराखण्ड[/color]

जय देवभूमि, जय उत्तराखण्ड,
जगमग ज्योति तेरी अखण्ड।
है अचल शुभ्र हिमालय, शुशोभित जिसके शीश में,
पापनाशनी पवित्र गंगा, सुरसरित जिसकी कोख से,
क्रोड़ से अविरल झरती,  जिसकी असंख्य सर-सरिताएं,
हे भारत माता के शुभ्र मुकुट, देवभूमि जय हे।
जय देवभूमि, जय उत्तराखण्ड,
जगमग ज्योति तेरी अखण्ड।


गंगोत्री, यमनोत्री, बद्री, केदार, और पर्वत कैलाश जहाँ,
देव, रुद्र, कर्ण, नन्द, विष्णु, हैं पुण्य प्रयाग जहाँ,
हरिद्वार में अमिय छलक़ी, मिली विष्णुपद हर की पैड़ी,
मनुष्य-योनि की मोक्षदायिनी, पुण्य भूमि जय हे।
जय देवभूमि, जय उत्तराखण्ड,
जगमग ज्योति तेरी अखण्ड।


मुमुक्ष योगी, संत स्वामी, ऋषि-महर्षि गए जहाँ,
पवित्र गीता, वेद-पुराण, शास्त्रों का सृजन जहाँ,
विभिन्नता में एकता संग, धर्म-ध्वजा की रक्षा जहाँ,
निष्कपट, निश्छल व निर्मल, देवभूमि जय हे,
जय देवभूमि, जय उत्तराखण्ड
जगमग ज्योति तेरी अखण्ड


अति सुगंधित ब्रह्मकमल और रक्तिम बुरांश तरु,
दुर्लभ खग-मृग मोनाल-कस्तूरी, हैं राज्य प्रतीक जहाँ,
जीवन दायिनी जड़ी-बूटियाँ, मनमोहक फूलों की घाटी,
हरे खेत, गाद-गधेरे निर्झर, निर्मल भूमि जय हे।
जय देवभूमि, जय उत्तराखण्ड,
जगमग ज्योति तेरी अखण्ड।


सर्पाकार सड़कों में बिखरी, छवि अनुपम गिरि-घाटी की,
नैनीताल में शीतल नैनी, अनाशक्ति है कौशानी,
अल्मोड़ा की नन्दा देवी, परिलोक मसूरी रानी,
गुरु द्रोण की नगरी दून, दिव्य-भूमि जय हे।
जय देवभूमि, जय उत्तराखण्ड,
जगमग ज्योति तेरी अखण्ड।



भण्डारी माधो, गढ़ सुम्याल, वीरांगना तीलू जनी,
बलिदानी श्रीदेव सुमन, चन्द्रसिंह गढ़वाली साहसी धनी,
कला, संगीत, साहित्य के, जहाँ अनूठे आख्यान  है,
बछेंद्रि, प्रसून, सुमित्रा नन्दन की, जन्म भूमि जय हे।
जय देवभूमि, जय उत्तराखण्ड,
जगमग ज्योति तेरी अखण्ड।


पर्यावरण की अलख जगाई, चिपको आंदोलन से,
शांति-अहिंसा का पाठ पढ़ाया, जन-जन के आंदोलन से,
अखिल विश्व में लहराई पताका, योग क्रांति की जिसने,
दिया विश्व को संदेश अलौकिक, देवभूमि जय हे।
जय देवभूमि, जय उत्तराखण्ड,
जगमग ज्योति तेरी अखण्ड।


मस्तक धर माटी तेरी, वंदना करूँ कर जोड़,
हर जन्म में मिले मुझे, बस तेरी ही क्रोड़,
कभी न तेरी छाँव से, अवमुक्त हूँ मै,
अनुपम, अप्रतिम, अपरिमित, देवभूमि जय हे।
जय देवभूमि, जय उत्तराखण्ड,
जगमग ज्योति तेरी अखण्ड।
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Brijendra Negi

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1
न मैला हुआ उजला, न  उजला मैला कभी
निश्छल और कपटी, परस्पर न जुड़ पाए कभी
मुंह में राम और बगल में, छुरी रखतें हैं जो
ऐसे शुभचिंतक, छुप न पाए कभी।


Brijendra Negi

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मुक्तक
1
मै पास हूँ तेरे, या तू पास है मेरे,
ये है हकीकत या भ्रम के फेरे,
पड़ी जब भीड़ मुझ पर देख ली मैने,
पास रहकर भी खड़े दूर थे सारे।

2
 न खास है कोई न गैर है कोई,
न मित्र, बंधु-बांधव, न शत्रु है कोई,
डोर रिस्ते की निभाते स्वार्थ मे है सभी,
की बक्त के साथ संग बदलता है आज हर कोई।

 

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