Author Topic: Articles & Poem on Uttarakhand By Brijendra Negi-ब्रिजेन्द्र नेगी की कविताये  (Read 28788 times)

Brijendra Negi

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अपवाद (विपरीत पक्ष भी)

बेटियाँ

माँ ने बेटी को जना
परिवार ने खुशियाँ मनाई
दो बेटों के पीछे लक्ष्मी है आई
कन्यादान के लिए भगवती है पाई
खेलते-कूदते जवानी लहलहाई
पढ़ाई-लिखाई, उच्च शिक्षा दिलाई
साथ ही कन्यादान कि बेला गंवाई।
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Brijendra Negi

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फेसबुक

‘फेसबुक’ की आइ॰डी॰ से,
‘फेस’ उनका लुक हो गया।
एक सुंदर ‘फेस’ से फिर,
‘फेस’ उनका ‘बुक’ हो गया।

रात-दिन की ‘चेटिंग’ से,
‘हार्ट कनेक्ट’ होता गया।
‘मिसकाल’ और ‘एस॰एम॰एस॰’ से,
हर समय जुड़ता गया। 

‘पास्ट’ और ‘प्रजेंट’,
सब ‘शेयर’ होता गया।
‘फ्यूचर कनैक्शन’ का,
हर तार जुड़ता गया। 

‘फ़ेस-टु-फ़ेस मीटिंग’ की,
‘वेटिंग’ होती रही ।
हर ‘डेटिंग’ से पहले,
नई ‘वेटिंग’ मिलती रही।

‘वेटिंग-वेटिंग’ की ‘डेटिंग’ पर,
जब वे फ़ेस-टु-फ़ेस हुये।
‘पास्ट-प्रजेंट’ गुल हुये,
‘कनैक्शन’ सारे ‘डिस्कनेक्ट’ हुये,

न ‘फ़ेस बुक’ का ‘फ़ेस’ था,
न ‘एस॰एम॰एस॰’ का ‘ग्रेस’ था। 
फ़्रौड और चीटिंग का,   
एक नया केस था।
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Brijendra Negi

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मन .....रे ....गा ...

मनरेगा,  म .न .रे .गा ., मन ....रे .....गा ....
सौ  रुपलट्टी   खुण, नाक-मुंड - थुन्थुरु  रेचा
आन -बान -शान -मान,  सम्मान     बेचा
कभी  पधनु  कु  अग्वाड़ी,    कभी    नेता
बिकासौ  जग्गा, उत्तराखंड कु  विणास   कैज़ा।
मनरेगा,  म .न .रे .गा ., मन ....रे .....गा .....।
 
पुंगड़ा  - पट्टला,  बाड़ा -सग्वाडा  बांज़ा  कैज़ा
रिक्क-बाग़ , गूणी -बांदर, स्याळ  -सुंगर गुठ्यार  पौंछा
कच्ची-पक्की, सुल्पा-गाँजा, नशा-नसेड़ी कु  दैण ह्वेजा
निकज्जू  मनिख्युं  का ,   खड़ा   घुंज्जा     कैज़ा।
मनरेगा,     म .न .रे .गा .,    मन ....रे .....गा ....।
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Brijendra Negi

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(पितृ पक्ष (शराद) पर विशेष)

'पितर'

(1)   

जिंदगी भर उठें ऊंल कष्ट
पैल लड़िक थै सैतणम
फिर लिखाण-पड़ाणम 
पर ब्या करदी
वो ब्वारिकू ह्वेग्या
ब्वे-बाबु खुण बिरुणु ह्वेग्या
ज्यून्दा रैन्द द्वी रोटी नि दया
गति खुण कभी झुल्ला नि द्या
पर म्वरदी वो 'पितर' ह्वेगीं
मुक्दान कैकी स्वर्ग तैरगीं
वे खुण सदनी कु द्य्ब्ता ह्वेगीं

अब हर साल आंदी जब 'सराद'
दूध-खीर खान्द मा चढ़ांद
दयु जलांद, धुपाणु कर्द
मुंड टिकाकी हाथ ज्वर्द
भिकर्युं  तरै याचना कर्द
हे 'पितरो'  दैण ह्वे जाओ
म्यारा सब्या कष्ट मिटा ध्यावो।

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Brijendra Negi

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देवता

(2)
दुःख, बिमरी, गरीबी, कष्ट
रोग और पीड़ा से तिरयाँ
म्वना का बाद
पूज्य ह्वेगीं
आण वलि पीडी खुण
देवता  बणगीं
बच्यां माँ जौंथै
कबी कुछ नि द्याई
म्वना का बाद मंगदी
धन, दौलत, सुख, शांति
साल-क-साल
जब आंदी  'शराद'
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बहुत सुंदर कविताये लिखी भाई जी! जारी रखियेगा




Brijendra Negi

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पित्र दोष

(३)

पित्र दोष की डैर ल 
पित्रू थै खुश कनु
वर्तमान थै दुःख देणु
ऊँ थई झिर्कुणु-धमकाणु
तुम खुणु ल्योंलू
कौपी-पिनसन ‘सरादुं’ का बाद
तुम थै त जर्वत प्वर्दा
सर्या साल बारा-मैना
अर 'सराद' आंदी
सर्या साल मा एक-मैना

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Brijendra Negi

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सराद
(4)

कैमा मांगी उधार
कैमा पगाल
ब्वल्द  भोल च
मेरी ब्वे कु 'सराद'
बच्यां मा द्यावल नि ध्यावल
पर अब पित्र ह्वेग्या
त दिणु जरुरी चा। 
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Brijendra Negi

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कोल-गेट

गरीबूँ का
चुल्लों का क्वेलों ला
दन्तपालि चमकीं
जौं कि,

करोड़ो रुप्या कु
‘कोल-गेट’ (क्वेला) ला
दंतुड़ी कल्यें
तौं कि।   
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Brijendra Negi

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'उयार"

घड़ुयाल  धरा
दूध-फूल चड़ा
धुपांणा करी
उच्याणा गड़ी
फिर भी नि प्वाडू
जब फर्क
तब
जागरी व्वाडा व्वन बैठ
बेटा
तुमल नि चड़ा 'किल्सार'
इल्ले
देबता ल
नि सुणी पुकार
फिर
कनुखै  हुणु छा
'उयार"


 ‘किलसार’ – बलि के लिए बकरा

 

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