Author Topic: Articles & Poem on Uttarakhand By Brijendra Negi-ब्रिजेन्द्र नेगी की कविताये  (Read 28789 times)

Brijendra Negi

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प्रौढ़ शिक्षा  

सार्या साल
प्रौढ़ शिक्षा  मा
पढ़ना कु बाद
पुछन बैठ व
हे नौनी---!
जरा
वे आखर सिखादी
ज्यान्से
'यूंक' नाम आन्द।   
---

Brijendra Negi

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(कुछ परिभाषा इनी भि)
(1)

मर्द

मार खाकी
निह्वा दर्द।
गाली सूणी
नि प्वाडु फर्क।
दारू कु ह्वा
जैफर मर्ज।
छकै ह्वा
वैफर कर्ज।
द्वी-चार
मुकदमा भी दर्ज।
इनै-उनै जा
अप्णि गर्ज।
जैकु निह्वा
क्वी भी फर्ज।
वी ह्वा
असली मर्द।
..

Brijendra Negi

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(2)
कज्याण

कर्ज ल्हेकि
जै थै ल्ह्याण।
अगाल-पगाल
कैकि खवाण।
आठ-दसूँ कि
ह्वा घिमसाण।
काम-धाम कु
कै कणाण। 
गाली-गलौज मा
गाँ गंज्या।
बत्था-बत्थौ मा
घात-घत्या।
स्वारा-भारों कु
मुख उस्या।
वी ह्वा
असली क्ज्याण।
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Brijendra Negi

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(3)
रुमुक

रुमुक प्वाड़ली
सीं मवासि खुण 
कभि देन्दा छा
जो गाली
आज वी
रुमुक प्वड़ना कु
दिन जग्वलदी
किल्लैकि ---?
रुमुक प्वड़दी
दारू पेकी
वो
अफु तै
सबसे जादा
भग्यान समझदी। 
...

Brijendra Negi

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(उत्तराखण्ड मे बादल फटने के कारण बरबादी पर कविता तो लिखी परंतु इसमे मेरी आप लोगो से विनती है की इसमे संसोधन कर मुझे कृथार्थ करे)

मेघ विष्फोट

उमड़-घुमड़-श्यामल जलधर,
घनघोर-सघन-प्रचंड-प्रबल।
उन्माद-क्रोध-क्रीड़ा-कौतूहल
दामिनी दहक रही हर-पल।

निर्मम-निष्ठुर-गर्जन-तर्जन,
नृशंश-निरंकुश-तांडव नर्तन।
वसुधा के वक्ष:स्थल पर,
विकल-वेदना-करुण-विवर्तन।

मेघ-विष्फोट-घात-प्रतिघात,
प्रतिफल भीषण-जल-संघात।
छितिज-क्षीण, धरा-विचलित,
अवशेष-न-शेष धरणी चिर-संचित।

चर-अचर नष्ट अति बेग,
नगर-गाँव के निशां-न-शेष।
जीवन-करुण-कथा-विशेष,
धरती डोली देख-अवशेष।
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Brijendra Negi

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मान्योंडर

प्रकृतिक संसाधनु से परिपूर्ण
पर सौ-सुबिधों से अपूर्ण
उत्तराखंड कु यकुलु
मजबूर, असहाय बृध
झुकीं कमर, हताश मुखिड़ी
रकर्यान्द सक्स्यांद, तंगत्यांद
उकलि-उंदरी कु बाटु पर
रुफड़ान्द, रबड़ान्द, बबड़ान्द
रोज डाखाना आंद-जांद
कि पतनि मान्योंडर
कै दिन आ जान्द।
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Brijendra Negi

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मलै चटणा छीं लुण्ड

चुनौ मा बुलै जो उण्ड
चुनौ बाद खिस्कै फुण्ड
अफु देहरादूण मा टिकै कि मुंड
विकास योजनों का उडै फंड
उत्तराखंड थै कैकि उतणदंड
मलै चटणा छीं लुण्ड।
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Brijendra Negi

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बल

‘बल’ चुनौ का नौ सुणदी
कपाल ऐंचा प्वड़ि ‘बल’
पर जातिगत ‘बल’ से
चुनौ मा इन्नु मीलू ‘बल’
कि अब फजल-ब्यखुनि
वूँकु निच्वड़नु ‘बल’।
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Brijendra Negi

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जनतंत्र

जनतंत्र में
जनता द्वारा
जनता के लिए
नेता का शासन है
जनतंत्र में नेता जी स्वतंत्र है
जनता चुनाव उपरांत परतंत्र है
चुप रहना ही मूलमंत्र है
अन्यथा एक षड़यंत्र है
जिस पर टूटता पूरा राजतंत्र है।

Brijendra Negi

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मै हार गया उसी क्षण

मैं विजेता था उस क्षण तक
मतदान नहीं किया था जब तक
मै हार गया उसी क्षण
बिन सोचे मतदान किया जिस क्षण।
किस्मत को अपनी किया बंद
नेता जी को किया स्वछन्द
किए विकास के रास्ते कुंद
जाती-धर्म को किया बुलंद 
मै हार गया उसी क्षण
बिन सोचे मतदान किया जिस क्षण।

बार-बार आया यह क्षण
हर बार मगर मै चूका हूँ
कभी जाती, कभी धर्म
कभी छेत्रवाद मे उलझाया हूँ
भूख, गरीबी, भ्रष्टाचार को
चुनाव के दिन भुलाया हूँ
मै हार गया उसी क्षण
बिन सोचे मतदान किया जिस क्षण।
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