Author Topic: Articles & Poem on Uttarakhand By Brijendra Negi-ब्रिजेन्द्र नेगी की कविताये  (Read 28787 times)

Brijendra Negi

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दुध-भत्ति

मनरेगा, एनआरएचएम जन्नि योजनों की,
रल्ला    कै  बणाणा  छी  दुध-भत्ति।
नेता  –  अफसर  –  बाबू  -  चपड़सी,
खूब    सप्वड्ना    छी    द्वी-हत्ती।
अनुदान,   सब्सडी   अर  निधि  थै,
उड़ा   दीणा   छी    मत्थी-मत्थी ।
क्य    कन्न    तब ...? बल.......,
भष्टाचार    बैठ्यू      पत्ती- पत्ती।
...

Brijendra Negi

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अनुगामी

ई॰वी॰एम॰ से उत्पन्न नेता
जिन्न की तरह
हँसते, दहाड़ते बाहर आया
फिर पाँच साल तक खूब छकाया
भारी भ्रष्टाचार किये
कलुषित कदाचार किये
जघन्य अपराध किये
घाल-मेल-घोटाले किये
बेहिसाब बेरोजगारी फैलाई
गजब की गरीबी बढ़ाई
भयंकर भुकमरी फैलाई
सुप्त जातियां जगाई
धर्मांन्धता फैलाई
खोया छेत्रवाद ढूंढवाया
वैमनस्य-विद्वेष बढाया
भड़काऊ भाषण दिये
बेतुके बयान दिये 
अत्यधिक आश्वाशन दिये
झूठे आँसू गिराये
मीठे बोल सुनाये
मतदाता भावुक बनाये
और पुनः ई॰वी॰एम॰ से गुजर कर
स्वयं को पाक-साफ पाया
सुंदर-स्वछ पाया
बेकसूर-बेदाग पाया
निर्मल-निष्कलंक पाया
निरापराध-निर्दोष पाया
भरष्टाचार मुक्त पाया
इसीलिये
उसी कर्म का
उसी धर्म का
उसी मार्ग का
उसी राग का
उसी राह का 
पुनः अनुगामी हो पाया।

Brijendra Negi

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पुतला दहन

नेताजी के पुतले का, जैसे ही किया दहन,
नभ-जल-थल-पाताल में, फैलने लगी अगन।

अकुलाये ब्रहमान्ड में, चर-अचर सनातन,
फेल हुआ विज्ञान भी, और यंत्र अग्नि-शमन।


शांत न कर पाये जब, पुतले की तपन,
स्मरण किए तेतीस करोड़, नेतानी-नेता जन।

इस संकट से हमें उबारो, अर्पण तन-मन-धन,
निरर्थक सारे जतन हुये, कर-कर प्रयास गहन।
 
प्रकट भये नेता जी गरजे, क्यों फूके देश रतन..?
जानते हो नेता बनते है, करके बहुत जतन।

फिर भी तुमको मार्ग बताते, ऐसा करो प्रयत्न,
उर्वशी स्वरूपी अप्सरा लाओ, अर्पित करो सब जन।
 
भ्रष्टाचार का घोल बनाओ, मिलाओ काला धन,
बेगहीं मारो इस पुतले पर, बौछार अति-सघन।
        ...

Brijendra Negi

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जग्वाल

बग्त जग्वल्द
रास्ता ह्यर्द
भुखि रैकि वा।

दारू पेकि
लटकेंद आन्द
अधा राति वो।

हडका त्वड़द
गाली दीन्द
भिटुल खैन्चि वो।

मार खान्द
गाली सुणद
फिर्भी बग्त जग्वल्द वा।

Brijendra Negi

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उत्तराखण्ड आंदोलन के दौरान प्रवासियों पर लिखी कविता

याद नि आ वे दिन...?

आज
छिल्ला बालिकि
मशाल जगाकि
फजल-ब्यखुनि
सार्यूँ-सार्यूँ
डांड-गाड़
भ्याला-पाखों
रौला-बौलों
चिल्लाणा छौ
किराणा छौ
नारा लगाणा छौ
उत्तराखण्ड दो .....
उत्तराखण्ड दो .....
पर
जै दिन तुम
अप्णि पुरण्योकि
कूड़ि पर
ताला डालिकि
पुंगड़ी-पटली
बांजि कैकि
सट्को स्यकुंद
उत्तराखण्ड कि याद
नि आ तुम थै
वे दिन....?

Brijendra Negi

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नेता बणा दे

सुलार-कुर्ता सिला दे, फतुखी एक दिला दे,
मुंड मा ट्वप्ला धरा दे, मिथै नेता बणा दे।
पढ़े-लिखै बस की नी, इस्कोल मिल जाणु नी,
खैरि काम कन्नु नी, बिना कमया भि रैणु नी।
सुलार-कुर्ता सिला दे, फतुखी एक दिला दे,
मुंड मा ट्वप्ला धरा दे, मिथै नेता बणा दे।

शरम-ल्याज मी जम्मा नी, अकल की जर्वत नी,
भल्लि सीरत चैन्दी नी, स्वाणी सूरत जरूरी नी। 
गाली तेरि सिखईं छी, चुगली कन्न आंदी चा,
बचन त्वड्ना जणदु छौ, कज्याण मेरी छ्वड़ि चा।
सुलार-कुर्ता सिला दे, फतुखी एक दिला दे,
मुंड मा ट्वप्ला धरा दे, मिथई नेता बणा दे।

चंदा ल्हीणु जणूदु छौ, झूठु रूणु आँदू चा,
रामलीला मा कतगै दा, बिलाप म्यारु कर्यू चा।
कभि पधानुकु टिकिट ल्य्होलु, कभि ब्लॉक कु चुनाव द्यखुलु,
कभि राज्य कु चुनाव ह्यलु, कभि संसद कु चुनाव लड़लु।
साल भर कु काम यो, बारा मैना कु धाम यो,
हींग चा न फिटकरी, रंग स्वाणु-स्वाणु यो। 
सुलार-कुर्ता सिला दे, फतुखी एक दिला दे,
मुंड मा ट्वप्ला धरा दे, मिथै नेता बणा दे।

Brijendra Negi

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बृध यकुला पहाड़ मा

गंगा-जमुना कु मैत मा,
बद्रि-केदार कि छाया मा,
देवभूमि कि काया मा,
बृध, यकुला पहाड़ मा। 

पूत सपूत प्रवास मा,
खोज-न-खबर उल्लास मा,
झूठा मान समान मा,
बृध, यकुला पहाड़ मा।

दुख-दर्द-पीड़ा मा,
आधि-ब्याधी-बिपत्ति मा
झूठी आस-औलाद मा,
बृध, यकुला पहाड़ मा।
    ...

Brijendra Negi

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क्षणिकाएं   

राहत

सूखा राहत
वातानुकूलित गाड़ियों की यात्रा।
बाढ़ राहत
हैलिकैप्टर की हवाई यात्रा॥

   
राजनीति

उनकी राजनीति,
रंग ला रही है।
राज्य से हार कर वे,
केंद्र में आ रहे हैं।।
   

परोपकार

परोपकार की नीति ने
कुछ ऐसा रंग दिखाया
चन्दा लेने पैदल निकले थे
वापस अपनी कार से आये।


पर्सनल्टी

हर रोज बॉस के साथ,
पर्सनल-टी लेती है।
इसलिए कार्यालय में,
उनकी अलग पर्सनल्टी है।

Brijendra Negi

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गिलासुन्द जब सजेन्दि

बोतलुन्द जब तक रैन्दि,
दिन-रात टक्क लगी रैन्दि।
गिच्चकु लालु नि थमेन्दु,
गिलासुन्द जब सजेन्दि॥

एक घूंट भितर जान्दी,
खैरि-वैरि सब मिटान्दि ।
एक अध्या जब पियेन्द,
भलु-बुरु सब भुलान्दि ।।
 
सर्या बोतल जब सड़केन्द,
अकाश-पताल तब घुमान्दि।
जिकुड़ी मा झर-झर करान्दि,
हत्थी-खुट्टी लतलत्यान्दि।।

बरमण्ड-बुद्धि इन घुमान्दि,
अप्णा-बिरणा भुला जान्दी। 
आंखी-सांकी फर-फरान्दि,
सर्ग-टंग्गा लगा जान्दी ।।
 
कर्ज-पात ल्हेकि आन्दी,
पुंगड़ी-पटली बेची पान्दी ।
कज्यणिक गैणा बिकान्दी,
पीन्द-पीन्द सब गंवान्दी॥
 
जिकुड़ी सर्या फुका जान्दी,
खड़ा घुंजा करा जान्दी।
वक्त से पैलि अचांणचक
तू मड़घट पौछा जान्दी।
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Excellent Rawat ji.

Keep posting . I am sure people must be appreciating your poems.

 

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