Author Topic: उत्तराखंड दिवस की शुभकामनाओं के ...प्रस्तुत है एक कविता... डॉ. राजेश्वर उनियाल  (Read 1364 times)

DR. RAJESHWAR UNIYAL

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उत्तराखंड दिवस की शुभकामनाओं के साथ...प्रस्तुत है एक कविता...

बीत गया दशक

बीत गया दशक, रह गई कसक,     मेरा बचपन क्यों व्यर्थ गया
जब नहीं पाल सकते थे पापा तुम, मुझको अपनो से क्यों जुदा किया ?

मैंने सोचा था पापा तुम,    मेरा बचपन महकाओगे
तकदीर बदलकर मेरी तुम, दुनिया में जगमगाओगे ।

मैंने सोचा था पापा तुम , मुझसे विश्वास जगाओगे
अपनी ही धरती में रह,  अपना भाग्य बनाओगे ।

मैंने सोचा था पापा तुम,  मेरा मान बढाओगे
सुंदर तो हूं धरा पर मैं,  समृध्द भी मुझे बनाओगे ।

पर बचपन तो मेरा व्यर्थ गया,  अब यौवन भी यूं ही गंवाओगे
ताज बदलते रहे पापा तुम, मुझको कब तक भरमाओगे ।

पापा अब इस धरती पर, संत भी डगमगाने लगे
गंगा को तुमने बांध दिया, पर मुझे ना बांध पाओगे ।

इसलिए इस धरती पर पापा, टिकती नहीं जवानी या पानी
अब तो मुझको लिखनी होगी, अपने हाथों से नई कहानी ।

दशक एक और मैं देखूंगा, तब युवा भी हो जाऊंगा
महका न सके अगर मुझको तुम, तो फिर बहक मैं जाऊंगा ।

शांत झेल रहा अब तक मैं,  पर फिर अशांत हो जाऊंगा
महकाने अपने जीवन को, वक्त बदल मैं डालूँगा ।

- डॉ. राजेश्वर उनियाल, मुंबई
मो. 9869116784
uniyalrp@yahoo.com

 

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