भावनायें
भावनायें
तुझ से ना कुछ कहती है
ना तुझ से कुछ पूछती है
बस पटल पर उभरती है
अंकुरति मन सा टहलती रहती है
भावनायें बदलती रहती हैं
जी भर के
जी ना पाए हम इन्हे
बिलकुल इन्हे समझ भी
ना पाए हम
बस बहती रहती है
भावनायें बदलती रहती हैं
रहती नहीं है
एक पल भी वो एक छोर पे
ना ही ठहरती ना संभल पाती है
इन आँखों के कोर पे छोर पे
बस वो आगे बढ़ती रहती है
भावनायें बदलती रहती हैं
संतुलित इन्हे
हम क्यों नहीं कर पाते है
इनके आवेग में हम बह जाते हैं
अपने आप से ही हम
अब पलयान कर जाते है
भावनायें बदलती रहती हैं
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/http://www.merapahadforum.com/में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित