काकेश दा की लेखनी का मैं भी प्रशंसक हूँ. "परूली" सीरीज तो वास्तव में सराहनीय थी. (हालांकि अंत जल्दी हो गया था कहानी का).
सभी लोगों से अनुरोध है कि काकेश दा के ब्लोग्स पर टिप्पणी के द्वारा अपने विचारों से उन्हें जरूर अवगत करायें. जिससे उन्हें लगे कि पहाड के लोग उनके इस प्रयास को पसंद करते हैं.