Author Topic: Poet Gumani - लोककवि गुमानी : साहित्य का विलक्षण लेकिन गुमनाम व्यक्तित्व  (Read 34864 times)

हेम पन्त

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गुमानी जी ने समाज में व्याप्त कुरीतियों को आधार बना कर कविताएं लिखी हैं. निम्न कविता में गुमानी जी ने पूजा-पाठ, कर्मकाण्ड करने वाले ब्राह्मणों पर तीखा व्यंग किया है.

जजमान भोला परपंचि नारी.
द्वी भुड़ गडेरी में दयो पुजा सारी.
रिसानी खिसानी विशा ज्यू रिसानी.
यो वृत्ति देखी मन में गिलानी.
हरि ओम तच्छत कै पुन्तुरी थामी.
नमः शिवायेति समर्पयामी.


हेम पन्त

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गुमानी जी के कुमाऊनी, नेपाली, संस्कृत व खडी बोली में रचित पदों की बानगी आप देख ही चुके हैं. बृजभाषा में रचित होली पर आधारित इस गीत को पढ़कर इस महान कवि की बहुभाषा ज्ञान की प्रतिभा का लोहा मानना ही पढता है...

होरी- श्याम कल्याण

का विध फाग रचायो मोहन मन लीनी मोहन
या मुरुली नागिन सौं


ब्रजवासी मोसे बावरी कहत है
अब हम जानी बावरो भयो नन्दलाल
सुमिरन के प्रभु गिरधर नागर
कहत गुमानी दरस तिहारो पायो

hem

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गुमानी जी का  गाँव उपराड़ा गंगोली (गंगावली) क्षेत्र में है | गंगोली में अकाल पड़ा था | तब का वर्णन :

आटा का अणचालिया, खशखशा रोटा बड़ा  बाकला |
फानो भट्ट गुरुंश और गहत को, डुबका बिना लूण का ||
कालो साग जिनो बिना भुटण को, पिनालु का नौल को |
ज्यों त्यों पेटभरी अकाल काटनी, गंगावली रौणियाँ ||           

अकाल बीतने के बाद का वर्णन :

केला, निम्बु, अखोड़, दाड़िम, रिखू, नारिंग, आदो, दही |
खाशोभात जमाली को, कलकलो भूना गडेरी गवा||
च्यूड़ा सद्य उत्योल, दूध बाकलो,घ्यू गाय को दाणोदार |
खानी सुंदर मौणियाँ धपड़ुवा, गंगावली रौणियाँ ||           

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Aati Sunder Hem Da.. (1 karma for this to u).

The poet has very described the situation of draught affected that too specially in pahad.

गुमानी जी का  गाँव उपराड़ा गंगोली (गंगावली) क्षेत्र में है | गंगोली में अकाल पड़ा था | तब का वर्णन :

आटा का अणचालिया, खशखशा रोटा बड़ा  बाकला |
फानो भट्ट गुरुंश और गहत को, डुबका बिना लूण का ||
कालो साग जिनो बिना भुटण को, पिनालु का नौल को |
ज्यों त्यों पेटभरी अकाल काटनी, गंगावली रौणियाँ ||           

अकाल बीतने के बाद का वर्णन :

केला, निम्बु, अखोड़, दाड़िम, रिखू, नारिंग, आदो, दही |
खाशोभात जमाली को, कलकलो भूना गडेरी गवा||
च्यूड़ा सद्य उत्योल, दूध बाकलो,घ्यू गाय को दाणोदार |
खानी सुंदर मौणियाँ धपड़ुवा, गंगावली रौणियाँ ||           

hem

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काफल और हिसालू जैसे पहाड़ी फलों पर भी गुमानी जी की लेखनी चली है :

खाणा लायक इन्द्र का , हम छियाँ भूलोक आई पड़ाँ |
पृथ्वी में लग यो पहाड़ हमारी थाती रचा दैव लै |
योई चित्त विचारी काफल सबै राता भया क्रोध लै |
कोई बुड़ा ख़ुड़ा शरम लै काला धुमैला भया |


हिसालू की जात बड़ी रिसालू , जाँ जाँ जाँछे उधेड़ि खाँछे |
यो बात को क्वे गटो नी माननो, दुद्याल की लात सौणी पड़ंछ |


hem

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गोर्ख्याली राज के अत्याचार से पीड़ित होने पर भी कुमय्यों की साहिष्णुता का वर्णन गुमानी जी के शब्दों में :



दिन-दिन खजाना का भार बोकना लै , शिव -शिव चुलि में बाल नैं एक कैका |
फ़िर लै मुलुक तेरो छोड़ि नैं कोई भाजा , इति बदति गुमानी धन्य गोर्खाली राजा ||


पंकज सिंह महर

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काफल और हिसालू जैसे पहाड़ी फलों पर भी गुमानी जी की लेखनी चली है :

खाणा लायक इन्द्र का , हम छियाँ भूलोक आई पड़ाँ |
पृथ्वी में लग यो पहाड़ हमारी थाती रचा दैव लै |
योई चित्त विचारी काफल सबै राता भया क्रोध लै |
कोई बुड़ा ख़ुड़ा शरम लै काला धुमैला भया |


हिसालू की जात बड़ी रिसालू , जाँ जाँ जाँछे उधेड़ि खाँछे |
यो बात को क्वे गटो नी माननो, दुद्याल की लात सौणी पड़ंछ |




अति सुन्दर हेम दा!

hem

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नगर अल्मोड़ा का वर्णन गुमानी जी ने अलग अलग अंदाज़ में किया है :

सिर टोपी मुगलानी चपकन फिन अम्माला देते हैं
माथे पर ना टीका चंदन पठ्ठे दाढ़ी धरते हैं |
अल्मोड़े के लोग सभी अब लफ्ज़ फारसी कहते हैं
मुसलमान या हिंदू हैं ये  नहीं समझ में परते हैं ||       


और :

खासे कपड़े सोने के तो बने बनाये तोड़े लो |
पश्मीने गजगाह चंवर वो भोट देश के घोड़े लो ||
बड़े पान के बीड़े खासे बढ़ के शाल दुशाले लो |
कहै गुमानी नग्दी है तो सभी चीज अल्मोड़े लो || 


एक और :

आये गोरे, ना रही  राजगद्दी ; झूठे, रिश्वत्तखोर, मुन्शी, मुसद्दी |
ना पैदा है अन्न, धोरे न नद्दी ; अल्मोड़े से दूर को खेंच लद्दी ||               

hem

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गुमानी जी का जन्म काशीपुर में हुआ और वह काशीपुर के तत्कालीन राजा गुमान सिंह देव के दरबार में कवि रहे. गुमानी जी द्वारा काशीपुर के बारे में लिखे गये अनेक पदों मे से एक यह है

यहाँ ढेला नद्दी उत बहत गंगा निकट में
यहाँ भोला मोटेश्वर रहत विश्वेश्वर वहाँ
यहाँ सण्डे दण्डे कर धर फिरें शाँडउत ही
फरक क्या है काशीपुर शहर काशी नगर में?

अति सुन्दर हेम दा,
गुमानी जी वास्तव में हमारे गौरव हैं, मैंने कहीं पढा़ है कि वह बाद में काशीपुर आकर बस गये थे और उन्होंने काशीपुर के बारे में भी काफी लिखा है।


काशीपुर पर ही गुमानी जी ने यह भी लिखा है :

जहाँ पूरी गरमा गरम तरकारी चटपटी
दही बूरा दोने भर भर भले ब्राह्मण छकें |
छहे न्यूते वारे सुनकर अठारे बढ़ गए
अजब देखा काशीपुर शहर सारे जगत में ||       


 

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