Author Topic: Poet Gumani - लोककवि गुमानी : साहित्य का विलक्षण लेकिन गुमनाम व्यक्तित्व  (Read 34796 times)

hem

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गुमानीजी ने कुमाउनी लोकोक्तियों को संस्कृत पदों के अन्तिम चरण के रूप में भी प्रयुक्त किया है :

रैवत कन्या प्राग् जनितानुः
सा परिणीता सौरभृर्तानुः |
सोभूदस्याः स्वयमाजानुः
ज्वे जै ठुलि खसम जै नानु |

{रैवत कन्या (रेवती) भूमिस्थ मनुष्यों से आयु में बड़ी थी, उसका विवाह बलराम से हुआ था जो उसके कमर तक ही लंबे थे | जोरू तो बड़ी और पति छोटा | }

पंकज सिंह महर

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गुमानीजी ने कुमाउनी लोकोक्तियों को संस्कृत पदों के अन्तिम चरण के रूप में भी प्रयुक्त किया है :

रैवत कन्या प्राग् जनितानुः
सा परिणीता सौरभृर्तानुः |
सोभूदस्याः स्वयमाजानुः
ज्वे जै ठुलि खसम जै नानु |

{रैवत कन्या (रेवती) भूमिस्थ मनुष्यों से आयु में बड़ी थी, उसका विवाह बलराम से हुआ था जो उसके कमर तक ही लंबे थे | जोरू तो बड़ी और पति छोटा | }


वाह-वाह हेम दा +१ कर्मा आपको, लेकिन आप गुमानी जी से हमारा परिचय कराते रहिये।

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Thanks Hem Da is jaankaari ke liye +1 karma aapko.

गुमानीजी ने कुमाउनी लोकोक्तियों को संस्कृत पदों के अन्तिम चरण के रूप में भी प्रयुक्त किया है :

रैवत कन्या प्राग् जनितानुः
सा परिणीता सौरभृर्तानुः |
सोभूदस्याः स्वयमाजानुः
ज्वे जै ठुलि खसम जै नानु |

{रैवत कन्या (रेवती) भूमिस्थ मनुष्यों से आयु में बड़ी थी, उसका विवाह बलराम से हुआ था जो उसके कमर तक ही लंबे थे | जोरू तो बड़ी और पति छोटा | }

हेम पन्त

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गुमानी जी पहाडों में प्रारंभिक अंग्रेजी शासन काल के प्रत्यक्षदर्शी थे. अंग्रेजों की बढती शक्ति के लिये वह हिन्दुस्तान के राजाओं की अशक्तता व कम समझदारी को कोसते हैं. वह कहते हैं कि यदि राजा लोग आपस में बैर-भाव न रखते तो लाख वर्षों में भी अंग्रेज भारत को वश में न कर पाते.

विद्या की जो बढती होती, फूट ना होती राजन में.
हिन्दुस्तान असंभव होता, वश करना लख वर्षन में.
कहे गुमानी अंग्रेजन से, कर लो चाहे जो मन में.
धरती में नहिं वीर-वीरता तुम्हें दिखाता रण में.

हेम पन्त

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अंग्रेजों की दासता से मुक्ति के लिये आमजन के बीच झटपटाहट थी. गुमानी जी को पूर्ण विश्वास था कि एक दिन जरूर अंग्रेजों को यह देश छोड़ कर भागना पड़ेगा. गुमानी जी की निम्न पंक्तियां देखें-

जा दिन मेघ घटा धरती पर, ऊपर से बल खाय गिरंगी.
वा दिन जानि गुमानी कहे, इत छोड़ि विलायत जाय फिरंगी.

hem

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संभवतः गुमानीजी के जीवन काल के अन्तिम दिन विपन्नता में गुजरे और उन्हें अंग्रेजों से विनती करनी पडी :

हुनर्गाह कीना न विर्सा महीना न दौलत महीना तलपना न घरवर |
लगी कर्जदारी यही मर्जभारी हरो अर्ज सारी सुनो बंदिपरवर ||
मुझे खूब रोजी इनायत करो जी खुशी से लशिन्गटन कमिश्नर बहादुर |
बड़े आप दानी करें दुआ बानी हमेशा गुमानी खडा होय हाज़िर |

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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हेम पन्त

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गुमानी जी के पैतृक इलाके गंगावली/ गंगोली (वर्तमान में गंगोलीहाट) में एक बार भीषण अकाल पङा. अकाल के दिनों में अभाववश गंगोलीवासी बिना छाने मोटे आटे की रोटियां,गहत,गुरुंश,और भट्ट का फाना,बिना नमक के डुबुके,बिना घी या तेल में भुनी पिनालु (अरबी)की सब्जी खाकर किसी तरह अपने दिन ब्यतीत करने को विवश थे. गुमानी जी ने इस पीङा का अपनी कविता में वर्णन किया है.

आटा का अण चालिया खसखसा.
रोटा बड़ा बाकला,
फानो गहत गुरुंश और भट्ट को,
डुबुका बिना लून का,
खानी साग बिना भूटण को,
पिंडालू का नौल को,
ज्यों त्यों पेट भरी अकाल काटनी,
गंगावाली रोणियां ..

खीमसिंह रावत

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pahale ke kaviyo ne jindagi ko kafi kasto se bitae/

aaj ke kaviyo me sampanta kafi hai/

मोहन जोशी

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Bahut Bahut Danyabad GUMANI Juek baar main lekhna lijee, Hai Sagal to Shri Shailesh Matiyaani Ji baat main le ke lekhiya de Barechnna wal.
Mohan Joshi

 

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