Author Topic: मेरा पहाड़ सदस्यों द्वारा रचित गढ़वाली/कुमाऊंनी कविताये,लेख व रचनाये  (Read 10416 times)

jagmohan singh jayara

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Mera pahad ka sabbi bhai bandhu,

Sending my two poems written on "pahad".  I hope, u will get the message through these poems.

एक लंगोट्या यार बोन्न बैठि, ढुगां सरख्या मनख्यों फर भित लिख कुछ भैजि "जिग्यांसू".  मैन बोलि वैकु
"हे चुचा ढुंगा न बोल" .....

 "हे चुचा ढुगां न बोल" .....

अपणु एक लंगोट्या यार, बोन्न बैठि,
भैजि "जिग्यांसू",
आपन सब्बि धाणी फर लिख्यलि,
जरा ढुगां सरख्या मन्ख्यौं फर भि लिखा,
किलै नि लिखि, अजौं तक?

मेरा मुख बीटि छट छुटि,
हे लाठ्याळा यनु न बोल,
मन्ख्यौं सी गुणवान छन,
मुख्याळा अर् प्यारा ढुगां.

यार फिर बोन्न बैठि,
यनु कनुकै ह्वै सकदु,
ढुगां जैं कुंगळा होन्दा,
ता स्याळ भूखा किलै मरदा.

तब मैं बोलि सुण,
ढ़ुगौं मां छन बड़ा गुण....

चार धाम, पञ्च बद्री, पञ्च केदार,
पित्र कूड़ा, कूड़ी भांडी, पैरि पगार,
जान्दरी, ऊख्ल्यरि,डांडी कांठी,   
घट्ट, देवतों का मंडुला, छान,
यथ्गा कि टीरी कू डाम,
सब ढुगौं का बणयां छन,
क्य, मन्ख्यौं फर छन यना गुण.

जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसू
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
24.2.2009  को रचित
दूरभाष: ९८६८७९५१८७
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)


All the poems are published....

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Young Uttarakhand Kavi Samelan 2009 :- Result and Award(gold)


पहाड़ का दर्द कौन करेगा दूर, जिस उत्तराखण्ड को लिया था पहाड़वासियों ने, देखो और पढो इस कविता को, उनके और अपने सपने हो रहे हैं चूर-चूर.........

"छुटदु जाणु छ"

लड़ि भिड़िक लिनि थौ जू,
हाथु सी छुटदु जाणु छ......

बित्याँ बीस सालु बिटि,
बारा लाख उत्तराखंडी,
पलायन करि-करिक,
रोजगार की तलाश मां,
देश का महानगरू जथैं,
अपणी जवानी दगड़ा लीक,
बग्दा पाणी की तरौं,
कुजाणि क्यौकु सरक-सरक,
प्यारा उत्तराखण्ड त्यागि,
आस अर औलाद समेत,
कूड़ी पुन्गड़ि पाटळि छोड़ि,
कूड़ौं फर द्वार ताळा लगैक,
कुल देवतौं से दूर देश,
नर्क रूपी नौकरी कन्नौ,
दूर भाग्दु जाणु छ.

बलिदानु का बाद बण्युं,
प्यारु उत्तराखण्ड राज्य,
हाथु सी छुटदु जाणु छ.....
   
आंकडों का अनुसार बल,
राज्य विधान सभा मां,
पलायन की परिणति का कारण,
पहाड़ की आठ घट्दि सीट,
घट्दु पहाड़ कू प्रतिनिधित्व,
हम तैं, यनु बताणु छ.
लड़ि भिड़िक लिनि थौ जू,
हाथु सी छुटदु जाणु छ......

खान्दि बग्त टोटग उताणि,
मति देखा मरदु जाणी,
बिंगि लेवा हे लठ्याळौं,
छौन्दा कू भि होयिं गाणि,
अब नि जावा घौर छोड़ि,
जख छ, छोया ढ़ुंग्यौं कू पाणी.

समळि जावा अजौं भी,
बग्त यू बताणु छ,
लड़ि भिड़िक लिनि थौ जू,
हाथु सी छुटदु जाणु छ......
   
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसू
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
2.3.2009  को रचित
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
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jagmohan singh jayara

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 "पहाड़ी गाँव"

प्रकृति का आवरण ओढे,
सर्वत्र हरियाली ही हरियाली,
प्रदूषण से कोसों दूर,
कृषक हैं जिसके माली.
 
पक्षियों के विचरते झुण्ड,
धारे का पवित्र पानी,
वृक्षों पर बैठकर,
निकालते सुन्दर वानी.

घुगती घने वृक्ष के बीच बैठकर,
दिन दोफरी घुर घुर घुराती,
सारी के बीच काम करती,
नवविवाहिता को मैत की याद आती.

सीढीनुमा घुमावदार खेत,
भीमळ और खड़ीक की डाळी,
सरसों के फूलों का पीला रंग,
गेहूं, जौ की हरियाली.

पहाड़ की पठाळ से ढके घर,
पुराणी तिबारी अर् डि़न्डाळि, 
चौक में गोरु बाछरु की हल चल,
कहीं सुरक भागती बिराळि.

आज देखने भी नहीं जा पाते,
लेकिन, आगे बढ़ते हैं पाँव,
कल्पना में दिखते हैं प्रवास में,
अपने प्यारे "पहाड़ी गाँव"

सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास:संगम विहार,नई दिल्ली
(23.4.2009 को रचित)
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Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Kya baat hai Jagmohan ji bahut hi badhiya kavitaen hain aapki.

jagmohan singh jayara

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प्रिय अनुभव उपाध्याय जी,

प्रतिक्रिया एवं उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद.  विषय वस्तु मेरी पहाड़ की ही होती हैं.  जन्मभूमि का कर्ज कैसे चुकाऊँ, कल्पना में खोकर कलम से लिखता जाता हूँ, सोचता हूँ ये एक कदम हो सकता है जन्मभूमि का कर्ज चुकाने का.

जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
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निवास:संगम विहार,नई दिल्ली
 

jagmohan singh jayara

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"पर्वतों ने घेरा"

कवि उत्तराखंड भ्रमण पर थे,
पर्वतों की सुन्दरता रहे निहार,
कहीं पक्षियों का कोलाहल,
बह रही हवा की ठंडी बयार.

बांज, बुरांश और काफल के पेड़,
खूब सूरत हरियाली आच्छादित वन,
स्वर्ग जैसा सुखद अहसास,
प्रफुल्लित हो रहा चंचल मन.

दूर दिखती बहती अलकनन्दा,
लग रही जैसे हरी टेढी मेढ़ी लकीर,
कवि जिग्यांसू को हो रही अनुभूति,
देवभूमि में जन्म लिया धनी है तकदीर.

सब कुछ जो था पहाड़ पर,
ने मन को कुछ इस कदर मोहा,
संवाद हुआ पत्थरों से भी,
पहाड़ की पगडंडियौं को जोहा.

इधर उधर सर्वत्र मेरे था,
प्रिय पर्वतों का घेरा,
मूक हैं फिर भी इशारों से,
पूछा हाल चाल मेरा.

कहा जाओगे जब दूर दिल्ली,
प्रवासी उत्तराखंडियौं को कहना,
आशीष हमारा तुम सबको है,
आपस में मिलजुलकर रहना.

हो सके कभी कभी,
उत्तराखण्ड अपने गाँव आना,
हम आपके अपने ही हैं,
ऐसा न हो भूल जाना.

जिस पथ से होकर आप गए थे,
सड़क मार्ग में बदल गया है,
विकास के आगोश में,
आज सब कुछ नयाँ नयाँ है.

सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
२५.५.२००९

Vidya D. Joshi

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(This is the Nepali story  “Naasoo  ( others  property have to be returned ) “ which is translated here in to Baitada dilect that is spoken around Baitadi-Darchula area of Nepal and Askot- Dharchula area of India  . )

   
1
                       
घर माइ चन्चल् लच्छमी होइ  बटि (बरे)  लै देवी रमण का सन्तान नाइ थ्या. सन्तन होइ झौ भुणि बरे भय-भरो उपाय गरयो, चौपातो चिण्यो, बाटो खण्यो, पशुपति माइ बातो बाल्यो पोरका वर्ष हरिबन्श पुराण पाड़यो,  तभ लै सुभद्रा की कोख नाइ भरीइ . दगडियान सङ्ग धन, बल , अक्कल, सप्पै  कुरडी (बात) बठे देवि रमण की जीत  त हुन्थी लेकिन   “ अपुतो” भण्या सुणन ज्याइ उइ को घमड चुरो चुरो हुन् थ्यो, पुरना बिचारा मान्स थ्या बिन सन्तान आफ़नो वैभव तुच्छ ठारन् थ्या .
विचारि सुभद्रा लै खिन्न थी. पडौसा पुतारिन (स्वानीन) ले चेला चेली खेलायो धेकी बरे उइ लाइ लै रहड लागन्थी , सान्तान कि आश ले सोजी पुतार्या बानि की हुनु ब्यार  चेलो होइ झौ भुणि बरे  उइ ले धामी बगौलिन की बुटि जन्तर बाद्या, देवी-देवतन को भाकल गर्यो, तिर्थ वर्त, पुजा पाठ लै गर्यो. उइ बटि लै भगवानुन ले नसुणी दिया  कै को के लाग्दे भैछ .
जोतिक राठ देवी रमण थाइ अर्खो ब्या गद्या (गारद्या)  सल्लाह दिन थ्या . उ भण्या सुभद्रा को मन्जुरी नल्ही बटि केइ गददु नाइ  सकन थ्यो . सुभद्रा लै  बौस्या कि अधी सेवा गरद्या पुतारि थी . आज लङ (आज तक) उइ ले कभै देवी रमण को चित नाइ दुखाइ , मन की  बात  जाणी बरे  सेवा गरन थी.  सुभद्र ब्यौली होइ बरे आया बखत की डरलाइनो दुख इन्ज्या लाङ लै देवि रमण का आखान ऐतिर रिटि रै थ्यो . तै बकत की याद औन्ज्याइ आख  भर्री आश ढोलिन थ्या . सुख दुख की साथी होइ बरे कङाल देविरमण लाइ सुभद्रा ले  सम्पन्न बनायी , ऐले सन्तान की लेखा सौता ल्याउनु पसि रै थ्यो

2
फ़ागुन मैना की रात्त्नी (पर्भात्तै) को बतास कल्जोइ छेडलो भणे झो थ्यो . देवी रमण शाला (मण्डप) माइ बसी रै थ्यो . नौली ब्यौली लै आसन माइ बासी रै थी .वामन राठ ………………….
continue

Vidya D. Joshi

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बामन राठ ॠचा पाडी बरे आगा माइ होम पसि रै थ्या. प्रालब्द ले उइ लाइ आजी ब्यौलो बनायो. एक दिन इसि रित ले उइ ले सुभद्रा का हात थमाइ थ्यो, सुभद्रा की सहमति पाइ बरे हो या  न पाइ बरे हो, आज् उइले ऐतिरकै काम दोहरायो ये बठे उइ को निको गट्टो के हुने हो ये को उइ लाइ लै पत्तो नाइ थ्यो. बार वर्ष कि अबोध नान्तिनो बठे ले बरे उ रित्ता आकास माइ कल्पनातीत मनो-मन्दिर बनौन् खोजन थ्यो, शायद व्रम्हावादी इसै थाइ मिर्ग त्रिष्णा भुण्डे ऱ्यान कि कसब !
जि भ्या लै बाध्यता ले हो वा भितरी मन बठे हो ? उइ ले ब्या को विधि पुरा गरयो. ब्यौली बट्यौने बकत भै,ब्यौली तिरका मान्सौन ले रुना-रुनाइ ब्यौली लाइ डोली माइ हाल्यो. ब्यौली लै डोली भितरी रुन् पसि उन्ज्या देवी रमण लाइ गट्टो लाग्यो, बाटा मुण लै बर्याती आपस माइ गावल्या मजाक गरि बरे खुब हासन्थ्या , लेकिन देवी रमण का मन माइ आर्खाइ विचारुन को दोन्द हुन पै रै थ्यो.
मन मनै सुच्यो " सुभद्रा ले साचा मन ले सलाह दिइ हो कि नाइ हो, यदि हो भुणे मन्जुरी दिनु ब्यार आर्खा तिर फर्की बटि हुन्छ क्या कि भुण्यो, मेरा हठ धेकी बरे भुणे की त नाइ हो ..? मान्स आफुनि तिब्र इच्छा माइ आर्खान कस्या तानन्छ ! छिः सुभद्रा की जिन्दगि भर की सेवा कि इसोइ फल हो ? मुइ लाइ लै कि दोष ? सन्तान न भ्या सर्ग को बाटो छेकिन्छ भुण्डे हिन्दु धर्मै जाणौ ! भोग लालसा ले नाइ हो .. धर्म की रित की लेखा ब्या गरया हु.. "
cont..

Vidya D. Joshi

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...इसाइ तर्क गरि बरे चित्त बुजौन्या कोशिस गरन थ्यो. बऱ्याती देवी रमण का घर खाइ पुजी. गवल्या पडौसी चौपता  माइ बसी बरे रमौल हेरी ऱ्याका ऱ्यान् देवी रमण ले सपै नी निक्करी हेर्यो, तै हुल माइ सुभद्रा लाइ नाइ धेक्यो. तै पाछा उइ को छाती बठे ढुङा पन्सियो आज देवी रमण की गति उसाइ बालख कि जनी थ्यो जो अघिल्ला दिन् को पाठ् विसरी बरे गुरु खाइ देर पुजन्छ या उइ अपराधीन कि जनि जो पछ्याणे का मान्स धेकि बटि लुक्द खोजन्छ.
पडौसिन दगडा बात गरदे न्यौरा ले उ मनाइ पाछा ऱ्यो . झान्छ त ब्यौली भितऱ्यी सकि बरे सुभद्रा दमाइन (ढोलिन), डोल्यान लाइ रुप्पया दिनु पसि रै की भै छ, ये धेकि बरे देवी रमण खुश भ्यो. मन्मनै भण्यो..



Vidya D. Joshi

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"...सुभद्रा त स्वर्ग की देवी हो खनी शङ्का  गरया, धत् ! मान्स आफनु कामुन ले आफुइ कस्या डरदान "
पौनान परकोइ बरे देवी रमण थ्वाडा देर पैतिर कोठा माइ पुज्यो, पानस माइ तेल को बातो बलि रै थि. नौलि ब्यौलि खाट  का तल्लि सि रै थि. देवी रमण खाट माइ पड्यो. उत्ते लाइ सुभद्रा को दिस्यान नाइ धेक्यो. आघा सुभद्रा को दिस्यान खाट्टै थाइ हुन थ्यो. आज उइ ठौर न धेकि बरे बिसुन वर्ष बठे सीन्या गरयो कोठ लै देवी रमण लाइ बिरानो लाग्यो.  सुभद्रा कोठा माइ गै, देवी रमण को खुटा चेप्दु पसी. यो उइ को रोज को काम थ्यो, सुभद्रा ये माइ कभै त्रुटि हुन् नाइ दिन्थी. देवी रमण ले भुण्यो-
" सानु, तेरो दिस्यान काँ हाले? "
" पल्ला कोठा माइ छ "
" पल्ला कोठा क्या कि सारे ? "
" भोल एकादशी हो, रात्तनि हड धुन झनौ "
मुइ लै वाँइ सीनौ."
हैः याँइ सीय लै हुन्छ."
थकि बरे आया देवी रमण लाइ झट्टै निन लागी. आफुनो बौस्या सौता थाइ छाडि बरे सुभद्रा पल्ला कोठा माइ गै.
मन्द बत्ति कि धमोलो उजाला माइ नौलि घर्ति पात गाँस्सु पसी रै थी. नौलि देवी रमणो पुरानो नौकरानी हो. नौलि की उमर सुभद्रा इ जति  थ्यो. बयासि (वि.स.1982) साल माइ स्वर्ग बासि महाराज चन्द्र सम्सेर को क्रिपा ले दासी जिवन बठे छुट्कारा पायि  थी. घर कि पुरानि नौकरानि भयो हुनु ब्यार दीवी रमण ले नौलि को मोल नाइ ल्हियो. आफना खुशी ले भ्या लै नौलि ले घर नाइ छाड्यो..

jagmohan singh jayara

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"छूटिगि छबिलु रंगीलु पहाड़"

जख गोरु चरैन,
खैणा तिम्ला खैन,
देळि देळ्यौं मा चैत,
फ्योंलि का फूल चढैन,
घरया बल्दुन उबरी,
पुंगड़ा भी बैन, 
ह्यूंद का मैनों,
कोदा की रोठी खैन,
बग्वाळि का मैना,
रंगमत ह्वैक तब,
जग्दा भैला भिरैन,
बणु बणु मा बैठि,
बाँसुळि बजैन,
चोरी चोरिक कबरी,
काखड़ी मुंगरी भी खैन,
आमू की डाळ्यौं मा,
ढुंग चाड़ु लगैन,
भत्त भ्वीं मा पड्यां,
आम खूब खैन,   
ब्वै बाब जब,
बाटु हेरदु रैन,
घौर नि पौन्छ्यौं,
तब ऊ गौं मा भटेन,
अब ऊ दिन कख गैन,
जन्म जू अग्नै भी होलु,
प्यारा उत्तराखण्ड मा,
नि ह्वै सकदी छन,
यी बात........
 
अहसास होंणु आज भूलौं,
अपणा हाथु सी छट छूटिगी,
पराणु सी प्यारु,
ऊ छबिलु रंगीलु पहाड़.....

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जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
27.5.2009     
 
 
 

 

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