Author Topic: Universities in Uttarakhand,उत्तराखंड के विश्वविद्यालय  (Read 7139 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
उत्तराखंड  राज्य के गठन के पूर्व विविध श्रैनिन्यों के  ७ विश्वविद्यालय थे !  दोस्तों यहाँ पर हम  उत्तराखंड के विश्वविद्यालयों  के बारे में जानकारियाँ उपलब्ध करायेगें, ज्ञान-सम्पदा के इस युग में उच्च शिक्षा विकास का एक महत्वपूर्ण कारक है।

  विकास के इस दौर में सक्रिय भागीदारी निभाने के लिए हमें शिक्षार्थियों की संख्या दोगुनी करनी होगी-  इस सत्य को अनेक योजनाकारों, आयोगों एवं चिन्तनशील व्यक्तियों द्वारा स्वीकार किया गया है। राष्ट्रीय ज्ञान आयोग नें राष्ट्र के समग्र विकास में उच्च शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका के सन्दर्भ में अनेक मूल्यवान दस्तावेज़ प्रकाशित किये हैं।

  इस सन्दर्भ में मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा की भूमिका महत्वपूर्ण है। सम्पूर्ण विश्व का अनुभव बताता है कि दूरस्थ शिक्षा समाज के उन विभिन्न वर्गो के सशक्तिकरण का एक प्रभावशाली माध्यम है, मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा के व्यापक दर्शन की पृष्ठभूमि पर उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना वर्ष 2005 में उत्तराखण्ड शासन अधिनियम संख्या 23 द्वारा इस उद्देश्य से की गयी कि तमाम ज्ञान और कला-कौशल की ‘स्वयं सीख पाने’ की विविध विधाओं द्वारा सक्षमता लोगों तक पहुँचायी जा सके।

 उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय अपनें अनेक नूतन, समसामयिक एवं उपयोगी शैक्षणिक कार्यक्रमों को सम्प्रेषण के नवीनतम प्रयोगों तथा सम्पर्क सत्रों द्वारा अधिक सुदृढ़ बनाता रहा है। विश्वविद्यालय का मुख्य  उद्देश्य इस राज्य के त्वरित विकास एवं उन्नयन हेतु प्रशिक्षित एवं विभिन्न कौशलों में दक्ष उपयोगी मानव संसाधनों का विकास करना है।
    इस विश्वविद्यालय का उद्देश्य रहा है कि शिक्षा की गुणवत्ता से कभी भी किसी भी स्तर पर कोई समझौता न किया जाय। व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा में तीव्रता से हो रहे बदलाव को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय नें अपने पाठ्यक्रमों को इस प्रकार पुनर्गठित किया है कि रोज़गार एवं स्व-रोज़गार के नित नये द्वार खुल सकें।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
जी बी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्विद्यालय पंतनगर उत्तराखंड

देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 17 नवंबर 1960 में पंतनगर विश्विद्यालय को देश के पहले कृषि विश्वविद्यालय को राष्ट्र को समर्पित किया था। इस विश्विद्यालय ने अपनी स्थापना के बाद से ही देश में हरित क्रांति लाने के साथ शोध के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय कार्य किए।
 
 देश में कृषि पैदावार बढ़ाने के लिए विश्विद्यालय ने अब तक अनाज की 2१५ से अधिक प्रजातियां विकसित की हैं। विश्वविद्यालय में वर्तमान में 26२ शोध परियोजनाओं पर कार्य चल रहा है। विश्वविद्यालय में स्थापित दर्जनों रिसर्च सेंटर किसानों को पोल्ट्री, डेयरी, फल, सब्जी व औषधीय पौधो तथा बीज उत्पादन के लिए समय-समय पर उन्नत किश्म के शोध करते रहते हैं। जिसे विश्वविद्यालय के 18 बाहरी परिसरों के माध्यम से किसानों तक पहुंचाया जा रहा। 
 
  वर्तमान में विश्वविद्यालय में 10 कालेज चल रहे हैं। इन कालेजों में स्थित 7२ विभागों में 135 पाठ्यक्रमों में विद्यार्थियों को शिक्षा दी जा रही है। विश्वविद्यालय ने वैश्विक प्रतिस्पर्धा को ध्यान मंे रखते हुए इंटरनेशलन स्कूल आफ एग्रीकल्चर की स्थापना की है। इस इंटरनेशनल कालेज में वर्तमान में मालदीव देश के विद्यार्थियों को उच्चतकनीक कृषि पर आधारित डिप्लोमा पाठ्यक्रम शुरु किया है।
 
  इसके साथ ही विश्वविद्यालय ने शिक्षा के आधुनिकीकरण व वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, आस्ट्रेलिया व हंगरी के शिक्षण संस्थानों से विद्यार्थियों व संकाय सदस्यों के आदान-प्रदान के लिए करार किया है।
 
  पंतनगर विश्विद्यालय में लगे किसान मेले में भी काफी संख्या में छात्र इंटरनेशनल स्कूल आफ एग्रीकल्चर के पाठ्यक्रमों के बारे में जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। साथ ही विश्वविद्यालय की वेबसाइट के माध्यम से भी विदेशी छात्र इंटरनेशनल कालेज के बारे में जानकारी प्राप्त कर रहे हैं।


Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार



गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय भारत के उत्तराखण्ड राज्य के हरिद्वार शहर में स्थित है। इसकी स्थापना सन् १९०२ में स्वामी श्रद्धानन्द ने की थी। इस संस्था की स्थापना का उद्देश्य मैकाले की शिक्षा नीति के विरुद्ध स्वदेशी विकल्प प्रस्तुत करना था

 जो वैदिक साहित्य, भारतीय दर्शन भारतीय संस्कृति, आधुनिक विज्ञान एवं अनुसंधान के क्षेत्रों में शिक्षा दे सके। सन् १९६२ में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने इसे समविश्वविद्यालय (Deemed university) का दर्जा दिया।

जब मै पहाड़ से दीखने वाले महात्मा मुंशीराम जी के दर्शन करने और उनका गुरुकुल देखने गया , तो मुझे वहाँ बड़ी शांति मिली । हरिद्वार के कोलाहल और गुरुकुल की शांति के बीच का भेद स्पष्ट दिखायी देता था । महात्मा ने मुझे अपने प्रेम से नहला दिया । ब्रह्मचारी मेरे पास से हटते ही न थे । रामदेवजी से भी उसी समय मुलाकात हुई और उनकी शक्ति का परिचय मै तुरन्त पा गया ।

यद्यपि हमे अपने बीच कुछ मतभेद का अनुभव हुआ , फिर भी हम परस्पर स्नेह की गाँठ से बँध गये । गुरुकुल मे औद्योगिक शिक्षा शुरु करने की आवश्यकता के बारे मै रामदेव और दूसरे शिक्षकों के साथ मैने काफी चर्चा की । मुझे गुरुकुल छोड़ते हुए दुःख हुआ ।


http://hi.wikipedia.org

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
19वीं शताब्दी में भारत में दो प्रकार की शिक्षापद्धतियाँ प्रचलित थीं। पहली पद्धति ब्रिटिश सरकार द्वारा अपने शासन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विकसित की गई सरकारी स्कूलों और विश्वविद्यालयों की प्रणाली थी और दूसरी संस्कृत, व्याकरण, दर्शन आदि भारतीय वाङ्‌मय की विभिन्न विद्याओं को प्राचीन परंपरागत विधि से अध्ययन करने की पाठशाला पद्धति।


दोनों पद्धतियों में कुछ गंभीर दोष थे। पहली पद्धति में पौरस्त्य (पूर्वी) ज्ञानविज्ञान की घोर अपेक्षा थी और यह सर्वथा अराष्ट्रीय थी। इसके प्रबल समर्थक तथा 1835 ई. में अपने सुप्रसिद्ध स्मरणपत्र द्वारा इसका प्रवर्तन करानेवाले लार्ड मेकाले (1800-1859 ई.) के मतानुसार 'किसी अच्छे यूरोपीय पुस्तकालय की आल्मारी के एक खाने में पड़ी पुस्तकों का महत्व भारत और अरब के समूचे साहित्य के बराबर' था।


अत: सरकारी शिक्षा पद्धति में भारतीय वाङ्‌मय की घोर उपेक्षा करते हुए अंग्रेजी तथा पाश्चात्य साहित्य और ज्ञान विज्ञान के अध्ययन पर बल दिया गया। इस शिक्षा पद्धति का प्रधान उद्देश्य मेकाले के शब्दों में 'भारतीयों का एक ऐसा समूह पैदा करना था, जो रंग तथा रक्त की दृष्टि से तो भारतीय हो, परंतु रुचि, मति और अचार-विचार की दृष्टि से अंग्रेज हो'।


इसलिए यह शिक्षापद्धति भारत के राष्ट्रीय और धार्मिक आदर्शों के प्रतिकूल थी। दूसरी शिक्षा प्रणाली, पंडितमंडली में प्रचलित पाठशाला पद्धति थी। इसमें यद्यपि भारतीय वाङ्‌मय का अध्ययन कराया जाता था, तथापि उसमें नवीन तथा वर्तमान समय के लिए आवश्यक पश्चिमी ज्ञान विज्ञान की घोर उपेक्षा थी। उस समय देश की बड़ी आवश्यकता पौरस्त्य एवं पाश्चात्य ज्ञान विज्ञान का समन्वयय करते हुए दोनों शिक्षा पद्धतियों के उत्कृष्ठ तत्वों के सामंजस्य द्वारा एक राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली का विकास करना था। इस महत्वपूर्ण कार्य का संपन्न करने में गुरुकुल काँगड़ी ने बड़ा सहयोग दिया।
गुरुकुल के संस्थापक महात्मा मुंशीराम पिछली शतब्दी के भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण में असाधारण महत्व रखनेवाले आर्यसमाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद (1824-1883 ई.) के सुप्रसिद्ध ग्रंथ 'सत्यार्थ-प्रकाश' में प्रतिपादित शिक्षा संबंधी विचारों से बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने 1897 में अपने पत्र 'सद्धर्म प्रचारक' द्वारा गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के पुनरुद्वार का प्रबल आंदोलन आरंभ किया। 30 अक्टूबर, 1898 को उन्होंने इसकी विस्तृत योजना रखी।

नवंबर, 1898 ई. में पंजाब के आर्यसमाजों के केंद्रीय संगठन आर्य प्रतिनिधि सभा ने गुरुकुल खोलने का प्रस्ताव स्वीकार किया और महात्मा मुंशीराम ने यह प्रतिज्ञा की कि वे इस कार्य के लिए, जब तक 30,000 रुपया एकत्र नहीं कर लेंगे, तब तक अपने घर में पैर नहीं रखेंगे। तत्कालीन परिस्थितियों में इस दुस्साध्य कार्य को अपने अनवरत उद्योग और अविचल निष्ठा से उन्होंने आठ मास में पूरा कर लिया। 16 मई, 1900 को पंजाब के गुजराँवाला स्थान पर एक वैदिक पाठशाला के साथ गुरुकुल की स्थापना कर दी गई।
किंतु महात्मा मुंशीराम को यह स्थान उपयुक्त प्रतीत नहीं हुआ। वे शुक्ल यजुर्वेद के एक मंत्र (26.15) 'उपह्वरे गिरीणां संगमे च नदीनां। धिया विप्रो अजायत' के अनुसार नदी और पर्वत के निकट कोई स्थान चाहते थे।

इसी समय नजीबाबाद के धर्मनिष्ठ रईस मुंशी अमनसिंह जी ने इस कार्य के लिए महात्मा मुंशीराम जी हो 1,200 बीघे का अपना कांगड़ी ग्राम दान दिया। हिमालय की उपत्यका में गंगा के तट पर सघन रमणीक वनों से घिरी कांगड़ी की भूमि गुरुकुल के लिए आदर्श थी। अत: यहाँ घने जंगल साफ कर कुछ छप्पर बनाए गए और होली के दिन सोमवार, 4 मार्च, 1902 को गुरुकुल गुजराँवाला से कांगड़ी लाया गया।

गुरुकुल का आरंभ 34 विद्यार्थियों के साथ कुछ फूस की झोपड़ियों में किया गया। पंजाब की आर्य जनता के उदार दान और सहयोग से इसका विकास तीव्र गति से होने लगा।


1907 ई. में इसका महाविद्यालय विभाग आरंभ हुआ। 1912 ई. में गुरुकुल कांगड़ी से शिक्षा समाप्त कर निकलने वाले स्नातकों का पहला दीक्षांत समारोह हुआ। इस समय सरकार के प्रभाव से सर्वथा स्वतंत्र होने के कारण इसे चिरकाल तक ब्रिटिश सरकार राजद्रोही संस्था समझती रही। 1917 ई. में वायसराय लार्ड चेम्ज़फ़ोर्ड के गुरुकुल आगमन के बाद इस संदेह का निवारण हुआ।


1921 ई. में आर्य प्रतिनिधि सभा ने इसका विस्तार करने के लिए वेद, आयुर्वेद, कृषि और साधारण (आर्ट्‌स) महाविद्यालयों को बनाने का निश्चय किया। 1923 ई. में महाविद्यालय की शिक्षा और परीक्षा विषयक व्यवस्था के लिए एक शिक्षापटल बनाया गया। देश के विभिन्न भागों में इससे प्ररेणा ग्रहण करके, इसके आदर्शों और पाठविधि का अनुसरण करनेवाले अनेक गुरुकुल स्थापित हुए।

24 सितंबर, 1924 ई. को गुरुकुल पर भीषण दैवी विपत्ति आई। गंगा की असाधारण बाढ़ ने गंगातट पर बनी इमारतों को भयंकर क्षति पहुँचाई। भविष्य में बाढ़ के प्रकोप से सुरक्षा के लिए 1 मई, 1930 ई. को गुरुकुल गंगा के पूर्वी तट से हटाकर पश्चिमी तट पर गंगा की नहर पर हरिद्वार के समीप वर्तमान स्थान में लाया गया। 1935 ई. में इसका प्रबंध करने के लिए आर्य प्रतिनिधि सभा, पंजाब के अंतर्गत एक पृथक विद्यासभ का संगठन हुआ।




Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
 गुरुकुल शिक्षा पद्धति की प्रमुख विशेषताएँ हैं- विद्यार्थियों का गुरुओं के संपर्क में, उनके कुल या परिवार का अंग बनकर रहना, बह्मचर्यपूर्वक सरल एवं तपस्यामय जीवन बिताना, चरित्रनिर्माण और शारीरिक विकास पर बौद्धिक एवं मानसिक विकास की भाँति पूरा ध्यान देना, शिक्षा में संस्कृत को अनिवार्य बनाना, वैदिक वाङ्‌मय के अध्ययन पर बल देना!
शिक्षा का माध्यक मातृभाषा हिंदी को बनाना, संस्कृत, दर्शन, वेद आदि प्राचीन विषयों के अध्ययन के साथ आधुनिक पाश्चात्य ज्ञान विज्ञान और अंग्रेजी की पढ़ाई तथा राष्ट्रीयता की भावना। आजकल ये विशेषताएँ सर्वमान्य हो गई हैं, किंतु इस शताब्दी के आरंभ में ये सभी विचार सर्वथा क्रांतिकारी, नवीन और मौलिक थे।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड



गढ़वाल विश्वविद्यालय की स्थापना श्रीनगर में १९७३ में हुई थी,१९८९ में इसका नाम परिवर्तित कर "हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय" कर दिया गया था !विश्वविद्यालय के तीन परिसर -बिडला परिसर श्रीनगर गढ़वाल मुख्लाया है !

डाक्टर वी गोपाल रेड़ी परिसर पौड़ी एवं स्वामी रामतीर्थ बादशाही थौल परिसर टिहरी है,गढ़वाल विश्वविद्यालय १५ जनवरी २००९ को केन्द्रीय विश्वविद्यालय के रूप में अस्तित्व में आया है !केन्द्रीय विश्वविद्यालय बन जाने के बाद यहाँ के युवाओं को बेहतर शिक्षा सुविधाएँ मुहेया हने की उम्मीद बढ़ गयी थी !

विश्वविद्यालय में कला,बाणिज्य,विज्ञान,किर्शी ,शिक्षा एवं अंतर विध्यावरतीअनोपचारिक शिक्षाएं के अंतर्गत स्नातक ,स्नातककोतर शिक्ष्ण एवं सौधकार्य किये जा रहे हैं !इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय में कई महत्वपूर्ण एवं ब्यापारिक पाढ्य कर्म चलाये जा रहे हैं !

जिनमें बी फार्मा,यम बी ऐ ,यम टी ऐ,यम सी ऐ,यम ऐ,मॉस कमुनिकेसन बी टेक इन्स्र्युमेंतेसन  इंजीनियरिंग,बी लिब एवं आई यस सी, तथ पर्यटन बायोटेक्नोलोजी,बायोमेडिकल,लैबौटरी तकनीक,योग में डिप्लोमा आदि प्रमुख हैं !

रोजगार परक पाठयकर्मो के तहत विश्वविध्यालय में कुछ महत्वपूरण पाठ्यकर्म बी यस सी उद्यानिकी बी यस सी वानिकी,औसधी एवं सुन्घंधित पोधों की जैब तकनिकी में डिप्लोमा एवं सर्टिफिकेट कोर्स,विज्ञापन,विक्रय स्वर्धं एवं प्रबंधन में डिप्लोमा एवं यम बी ऐ पर्यटन संचालित हैं !

अध्यनरत छात्र-छात्राओंके बहुमुखी विकास हेतु विश्वविद्यालय में सेवा योजना सूचना एवं मंत्रणा केंद्र अखिल भारतीय सेवाएँ प्राम्भिक परीक्षा एवं कोचिंग केंद्र की सुविधाएँ भी उपलब्ध है !


Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
किसी भी स्ट्रीम में स्नातक द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण छात्र-छात्राएं इस पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सकते हैं। बिड़ला परिसर में संचालित हो रहे इस पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए छात्रों को प्रवेश परीक्षा देनी पड़ती है। प्रवेश परीक्षा की मैरिट के आधार पर छात्र प्रवेश ले सकते हैं।

श्रीनगर। सामाजिक कार्यों में रुचि है तो एमएसडब्लू (मॉस्टर ऑफ सोशल वर्कर) की डिग्री आपके लिए एक बेहतर विकल्प है। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विवि के बिड़ला परिसर में संचालित हो रहे इस द्विवर्षीय पाठ्यक्रम को करने के बाद समाज कार्य के क्षेत्र में रोजगार के अवसरों की कोई कमी नहीं है। सरकारी और प्राइवेट सेक्टर में एमएसडब्लू डिग्री धारकों की बड़ी मांग है।

एमएसडब्लू कोर्स की काफी डिमांड है। एनजीओ से लेकर, मेडिकल व साइकोलॉजिकल सेक्टर में इस कोर्स को करने के बाद रोजगार की असीम संभावनाएं हैं। इसके अलावा विभिन्न क्षेत्रों में एमएसडब्लू डिग्री धारी छात्र बतौर काउंसलर अपना भविष्य बना सकते हैं।

 एनआरएचएम जैसे सरकारी उपक्रम में भी इस डिग्री को करने वाले छात्रों की भारी मांग है। कम्यूनिटी सेक्टर में कार्य करने वाले संस्थानों की समाज कार्यों की तरफ बढ़ रहे रुझान को देखते हुए छात्रों के पास बेहतर अवसर हैं।






Amarujal
 

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
16 से शुरू की जाएगी प्रवेश्‍ा प्रक्रिया 31 जुलाई तक जमा कराए जा सकते हंै आवेदन फार्म

श्रीनगर। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विवि के शैक्षणिक सत्र 2012-13 में प्रवेश प्रक्रिया की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। विवि ने बिड़ला, चौरास और पौड़ी परिसरों के लिए प्रवेश विवरणिका प्रकाशित कर दी है। तीनों कैंपसों में बीए, बीएससी और बीकॉम प्रथम वर्ष में प्रवेश के लिए 16 जुलाई से आवेदन फार्म मिलने शुरू हो जाएंगे। फार्म जमा करने की अंतिम तिथि 31 जुलाई निर्धारित की गई है।

 16 अगस्त तक शुल्क कालेज में जमा करना होगा।
गढ़वाल केंद्रीय विवि का शैक्षणिक सत्र 23 जुलाई से शुरू होने जा रहा है। स्नातक प्रथम वर्ष की कक्षाओं में प्रवेश के लिए छात्रों को आवेदन फार्म उपलब्ध करा दिए जाएंगे। 16 जुलाई से छात्र अपने-अपने परिसरों के अधिष्ठाता छात्र कल्याण कार्यालय से आवेदन फार्म ले सकते हैं।

 31 जुलाई के बाद मेरिट लिस्ट जारी कर प्रवेश के लिए काउंसलिंग आयोजित की जाएगी। स्नातक द्वितीय, तृतीय और स्नातकोत्तर द्वितीय वर्ष में प्रवेश के लिए आवेदन फार्म जमा करने की अंतिम तिथि तीस अगस्त रखी गई है। 30 तारीख तक पूर्व परीक्षा के अंक पत्र निर्गत न होने की स्थिति में अंक पत्र निर्गत होने के 20 दिन के अंदर आवेदन फार्म जमा करना जरूरी है।

शुल्क का विवरण

एमएससी(फार्मा कैमिस्ट्री) 40,000(वार्षिक)एमएससी माइक्रोबायोलॉजी 20,000(प्रतिसेमेस्टर)एमएससी(रिमोट सेंसिग)   20,000(प्रतिसेमेस्टर)बीए/बीएससी/बीकॉम    1500-2200 वार्षिकएमए/एमएससी/एमकॉम   2000-3000 वार्षिकएमए मॉस कॉम 3,000(प्रतिसेमेस्टर)एमबीए(पर्यटन) 10,000( प्रतिसेमेस्टर)बीफार्मा35,000(वार्षिक)एमफार्मा 50,000(प्रति सेमेस्टर)बीटेक    11,000(प्रतिसेमेस्टर)एमबीए    40,000(वार्षिक)बीपीएड 35,000(वार्षिक)बी.लिब    12,000(वार्षिक)बीएचएम 30,000(वार्षिक)एमएसडब्लू 7,500(वार्षिक)एमए योगा 15,000(वार्षिक)एमसीए    10,000(प्रतिसेमेस्टर)

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
श्रीनगर। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के उपकुलसचिव परीक्षा डा. जेके सिंह व उपकुलसचिव प्रशासन डा. रोहन राय ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है। वहीं, मनीष कुमार शर्मा ने बतौर उपकुलसचिव पदभार ग्रहण कर लिया है। शर्मा इससे पूर्व काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च    (सीएसआईआर) नई दिल्ली में वित्त एवं लेखाधिकारी के पद पर कार्यरत थे।


फरवरी माह में हुए साक्षात्कार के बाद विवि में तीन उपकुलसचिव नियुक्त किए गए थे। इनमें से डा. राय व डा. सिंह ने मार्च में ज्वाइनिंग दी थी। डा. सिंह को परीक्षा तथा डा. राय को प्रशासन जैसे महत्वपूर्ण दायित्व सौंपे गए थे। दोनों उपकुलसचिव के इस्तीफा देने के कारण विवि में कामकाज प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है। हालांकि, मनीष कुमार शर्मा की ज्वाइनिंग से विवि ने राहत की सांस ली है।

 डा. जेके सिंह व डा. रोहन राय ने इस्तीफे के लिए पारिवारिक कारणों को वजह बताया है। विवि ने डा. जेके सिंह को रिलीव कर दिया गया है, जबकि डा. राय इसी सप्ताह रिलीव हो सकते हैं। कुलसचिव डा. यूएस रावत का कहना है कि दो उपकुलसचिवों के इस्तीफा के कारण विवि के कामकाज पर असर पड़ना स्वाभाविक है।





Sabhar Amarujala
 

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22