Author Topic: Uttarakhand Folk Literature -Uttarakhand लोक साहित्य में उपनिषद व्याख्या  (Read 6039 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
Folk Literature of Kumaun and Garhwal
     Fodi Bayali Mantra of Uttarakhand and Vedic Mamntra
     फोड़ी बायाळी /ततार दीण मंत्र और वैदिक मंत्र
   
(Mantra Tantra of Garhwal Kumaun, Mantra Tantra in Himalaya)
                      Bhishma kKukreti
  वैदिक मंत्र किसी देवता या भगवान निर्मित मंत्र नही हैं अपितु स्थानीय भाषाओँ में उपलब्ध साहित्य को ग्यानी ऋषियों ने
वैदिक संस्कृत में रचे और श्रुतियों द्वारा हजारों सालों तक सुरक्षित रखा .
 गढवाल कुमाओं में कई स्थानीय आवश्कता हेतु मंत्र रचे गये . फोड़ी बयाळी या ततार दीण वला मंत्र एक चिकित्सा मंत्र है . सीट पीत शरीर पर आने पर भी इसी तरह का मंत्र पढ़ा जाता है जिसमे मान्त्रिक या तांत्रिक घाव  पर दूब या सिंवळ /सिंयारू ( बोयमीरिया मैक्रोफिला ) के पत्तों को पाणी में भिगोकर घाव या फोड़ी पर धीरे धीरे स्पर्श करता है . पाणी अधिक गिराया जाता है. सिंयारू के पत्ते वास्तव में एंटी वाइरल  या एंटी बैकटी रियल  पत्ते हैं  . साथ साथ मान्त्रिक फोड़ी ब्याली का मंत्र भी पढ़ता है . यदि गाव प गया हो तो गरम सुई से उसे छेदा  जाता है और पीप बाहर निकाला जाता है
   फोड़ी बयालि मंत्र नरसिंग वाली मन्त्रावली  का एक भाग है  जिसमे ७० पंक्ति हैं जो इस प्रकार है
      ॐ नमो आदेस मोट पीर का आदेस मर्दाने पीर को आदेस ......माता मन्दोगीरी की दुद्दी खाई : इस पिण्डा की रखल करी ... ॐ नमो आदेस : आदेस पर्थमे ड़ोंकी ड़ोंकी की सौंकी सोंकी की मदोगीरी : मन्दोगीरी की सात बैण कुई बैण , फोड़ी की बयाळी ; कु डैण : कुई टाणगेणा : कुई चुडळी , कुई बैण चमानी, ......रक्त फोड़ी , अनुन फोड़ी ...जल फोड़ी , थल फोड़ी , वरणफोड़ी , सीत , पीत खतम करे माराज .............इस पिंड की रखल करी .... सिर चढ़ी पेट पढ़ी श्री राजा रामचन्द्र की दूवाई फोर्मन्त्र इसुरोवाच यो च फोड़ बयालि  को मंत्र
                       वैदिक मंत्र
   अथर्व वेद में इसी भाँति कई मंत्र मिलते हैं अथर्व वेद की एक संहिता में दूब की प्रशंशा इस प्रकार है (अध्याय एक, संहिता सात )
                        पिशाचादी से उत्पन पाप , विप्र श्राप  आदि को नाश करने वाली देव निर्मित बीरुष जड़ी मुझको हर प्रकार के शापों से मुक्त कर .......
हे मणे ! नीचा मुख करके फैली हुयी जड़ के समान उपर उठी हुयी सैकड़ों ग्रन्थि वाली " दुर्बा " द्वारा तुम हमे श्राप मुक्त करो .......
                          इस तरह कहा जा सकता है की जल , जड़ी बूटी के साथ साथ मंत्र के योग से चिकित्सा प्ध्हती भारत में वेदों से भी पहले रही है
मंत्र जहां मानसिक बल प्रदान करते हैं वहीं जड़ी बूटी भौतिक चिकत्सा में सहायक होती थीं
Copyright Bhishma Kukreti bckukreti@gmail.com
       
 


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
Folk Literature of Kumaun and Garhwal
     Fodi Bayali Mantra of Uttarakhand and Vedic Mamntra
     फोड़ी बायाळी /ततार दीण मंत्र और वैदिक मंत्र
   
(Mantra Tantra of Garhwal Kumaun, Mantra Tantra in Himalaya)
                      Bhishma kKukreti
  वैदिक मंत्र किसी देवता या भगवान निर्मित मंत्र नही हैं अपितु स्थानीय भाषाओँ में उपलब्ध साहित्य को ग्यानी ऋषियों ने
वैदिक संस्कृत में रचे और श्रुतियों द्वारा हजारों सालों तक सुरक्षित रखा .
 गढवाल कुमाओं में कई स्थानीय आवश्कता हेतु मंत्र रचे गये . फोड़ी बयाळी या ततार दीण वला मंत्र एक चिकित्सा मंत्र है . सीट पीत शरीर पर आने पर भी इसी तरह का मंत्र पढ़ा जाता है जिसमे मान्त्रिक या तांत्रिक घाव  पर दूब या सिंवळ /सिंयारू ( बोयमीरिया मैक्रोफिला ) के पत्तों को पाणी में भिगोकर घाव या फोड़ी पर धीरे धीरे स्पर्श करता है . पाणी अधिक गिराया जाता है. सिंयारू के पत्ते वास्तव में एंटी वाइरल  या एंटी बैकटी रियल  पत्ते हैं  . साथ साथ मान्त्रिक फोड़ी ब्याली का मंत्र भी पढ़ता है . यदि गाव प गया हो तो गरम सुई से उसे छेदा  जाता है और पीप बाहर निकाला जाता है
   फोड़ी बयालि मंत्र नरसिंग वाली मन्त्रावली  का एक भाग है  जिसमे ७० पंक्ति हैं जो इस प्रकार है
      ॐ नमो आदेस मोट पीर का आदेस मर्दाने पीर को आदेस ......माता मन्दोगीरी की दुद्दी खाई : इस पिण्डा की रखल करी ... ॐ नमो आदेस : आदेस पर्थमे ड़ोंकी ड़ोंकी की सौंकी सोंकी की मदोगीरी : मन्दोगीरी की सात बैण कुई बैण , फोड़ी की बयाळी ; कु डैण : कुई टाणगेणा : कुई चुडळी , कुई बैण चमानी, ......रक्त फोड़ी , अनुन फोड़ी ...जल फोड़ी , थल फोड़ी , वरणफोड़ी , सीत , पीत खतम करे माराज .............इस पिंड की रखल करी .... सिर चढ़ी पेट पढ़ी श्री राजा रामचन्द्र की दूवाई फोर्मन्त्र इसुरोवाच यो च फोड़ बयालि  को मंत्र
                       वैदिक मंत्र
   अथर्व वेद में इसी भाँति कई मंत्र मिलते हैं अथर्व वेद की एक संहिता में दूब की प्रशंशा इस प्रकार है (अध्याय एक, संहिता सात )
                        पिशाचादी से उत्पन पाप , विप्र श्राप  आदि को नाश करने वाली देव निर्मित बीरुष जड़ी मुझको हर प्रकार के शापों से मुक्त कर .......
हे मणे ! नीचा मुख करके फैली हुयी जड़ के समान उपर उठी हुयी सैकड़ों ग्रन्थि वाली " दुर्बा " द्वारा तुम हमे श्राप मुक्त करो .......
                          इस तरह कहा जा सकता है की जल , जड़ी बूटी के साथ साथ मंत्र के योग से चिकित्सा प्ध्हती भारत में वेदों से भी पहले रही है
मंत्र जहां मानसिक बल प्रदान करते हैं वहीं जड़ी बूटी भौतिक चिकत्सा में सहायक होती थीं
Copyright Bhishma Kukreti bckukreti@gmail.com
       
 


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
Culture and Spiritual Philosophy of Kumaun and Garhwal'
                                  Uttarkashi : The Prominet Centre  of Mantra and Tantra Creation 
                             चौडिया मसाण मंत्र
                                  (Mantra Tantra in Kumaun, Tantra Mantra in Garhwal, Mantra tantra in Himalaya
                                          Bhishma Kukreti
    Uttarkashi region  being the source place of Ganga and Yamuna reverend rivers had been the place where many spiritual concepts were created  in Sanskrit and in local languages.
 Many Mantras of Kumaun-Garhwal were also created in Uttarkashi region and it seems Uttarkashi was also a prominent centre of Mantrik Tantrik institutions
according to the research of Dr Vishnu Datt Kukreti, Chaudiya Beer Masan Mantra and tantra were created in Uttarkashi along with many more Mantras and Tantrik performances too.
Chaudiya Beer Masan is a Mantra Booklet wherein there are more than 150 lines in 21 pages of 19x12 centemeters . Dr Vishnu datt kukreti found the manuscript in the collection of late Mahesha Nand Baluni , village Uttinda, Dhangu, Pauri Garhwal.  . It is to be note that Balunis of Uttind Bagon were famous mantriks and Tantriks of Dhangu area and their working area was more famous in Langur (Gumkhal area)  and easter Dabralsyun (Chailusain area)
 Chaudiya Beer Masan is from Narsing sect of Nathpanth and whose mother was Mahakali and father was Khaprachor . He is one of the brothers of Narsing
It seems he was born in Gangotri area as Bhakta asks him to full his desire other wise Chaudiya masan will have problem in source of Bhagirathi
 श्री गणेशाय नमह , ॐ नमो गुरु जी को आदेस, बैरागणि माता को आदेस : अंत पौन कु आदेस, चंद सुर्ज को आदेस ; प्रथमे नाद बुद भैरों को आदेस , पिंगळी जटा को आदेस.........
........ दाई दुश्मन को बाण उखेल,  भाट बामण को बाण उखेल : ठाडा ठडसेरी  को बाण उखेल : मौनी तपेसी को बाण उखेल : छोटा बड़ा भाई की घात उखेल : इतना बाण कु उखेली नी लायी तो भागीरथी मूल को बासो नी पाई :......
Chaudiya masan is described as who changes colour according to direction, was expert of eight Asans , was well aware  of eighteen Dhyans and definitely the creator of this Mantra was from Uttarkashi area
 Dr Purushottam Dobhal also indicated that once, Uttarkashi was prominent centre of Mantra - Tantra Vidya of Garhwal -Kumaun
This author is witness that around 1960-1961 Fikwal of Gangotri Dham used to come in Salan area (South Pauri Garhwal )and used to preform many tantrik aided by Mantras for their disciples

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
Culture of Garhwal Kumaun
                Bairi Binas Mantra and Yantra : Effect of Islamic Culture
                 बैरी बिणास  मंत्र एवम यंत्र जिसमे मुसलमानी सभ्यता झलकती है
 
             (Mantra Tantra of Kumaun , Mantra Tantra of Garhwal , Mantra Tantra of Himalaya )
               Commentry and Presentation by Bhishma Kukreti
             Collected and Edited by Abodh Bandhu Bahuguna
               Gad Matyeki Ganga  is a historical book in Garhwali Prose literature . Abodh bandhu Bahuguna edited the book and he also presented chronological history of Garhwali language prose literature . Abodh presented a few Mantra, Dhol Sagar, Damu sagar in its concluding part . Abodh bandhu Bahuguna called this literature as Adi Gady . This author opposed naming this literature as Adi gady because it is not pure Garhwali of any time but created in Braj/Rajashthani language with mixing Garhwali words .
   Bairi Binas is a mantra and it is also having a Yantra . The mantra seems to be part of Narsingwali, indicates a few tantrik material requirement with mantra and definitely with philosophy and psychological aspects
                                     ॐ नमो आदेस गुरु को आदेस : उंज काला क्न्काला : बजुरमुखी बाण नाचे : : लग्न ऩा नाचे चौसठ मसाण नाचे : आट मारग कि जड़ नाचे : समसाण घाट को कुइलो नाचे : बेताल घाट को बेताल नाचे : छुर्की का अक्षत नाचे : घोर अघोर लग्न नाचे : डुकुर बोल  नि बोले तो : तिन पाल कनिडु करे तो काली कलिन्द्रा कि द्वाई . फिर रे बोल बोल रे ब्यादी बियादी  . लाया लगाया . तोई दूं अष्ट बली . कंकाली कंकाली . किल किल किलक्वार . औटे लग्न बाके मसाण नाचे निबोले नि नाचे तो कलचेरी कि .फुर मंच फटे स्वाहा .
                            अथ लग्न थमौण को मंत्र : ॐ नमो काली कंकाली बर्मा कि बेटी रूद्र कि साळी लठगण का मुख मार्रो ताळी . जो बक दारे सो मरे . उसी का बाण उसी का घर जावे . तोई काली दयून्लू काल़ा बानुर का मुख .कि बळी , ब्यादी बियादी ताका सिर मारो बज्र कि सिला . जा वि मारो लुब्बा कि कील  श्रव काली ह्रीं ह्रीं लं लं हं हं त्रं त्रं पं पं श्रव व्याधि नसावे : फटे स्वाहा ये मंत्रल लगे डुकराण : सतनाजा  को लगण करणु . छुरकी क  साठी समसाण को कुइलो लगण का पेट धरणो : उड़द चौंळ मन्त्रिक लग्न पर ताड़ो मारणो  स्टे . ॐ नमो आदेस . गुरु को जुहार . तो आयो बिर नरसिंग वायु नरसिंग वर्ण नरसिंग . मेरा जिय रख जंत रंग प्राण रख . अष्टन्गुली  आत्मा रख .
                          मेरो बैरी को भख . दडी दुश्मन कि कलेजी चख . फुर मंत्र इस्स्रो वाच . सातर कि विभूति मन्त्रिक अपणा सिर ल़ाणी , तब लग्न को मंत्र करणो . ॐ नमो गुरु को आदेस गुरु को चड़े गेरू में सात गुदडि का देमड़ा . कालिका का पूत चेड़ा खादा औंदा नाड़ तोडि कपाळ फोड़ी चले सत्रु का घर सिव का बाण नाचे कुदेक लवानिवु के ताल हाडिक घुळ मसाण  हवया. गाडो मंगाल बार बिर पथर पड़े . मेरा सत्रु के घर फुर मंत्र एसुरी  वाच . येई मन्त्रण शयीराड़ो मड़घाट कि विभूति १०८ बेरी मंत्र कनु कुड़ अ का आसपास धरी देणु
    ॐ नमो आदेस गुरु को : कालुर देस का कालुरी बिर दानो बिर धुन्दवा बिर सुन्द्रिका बिर लड़तिउं चले भगता लात मारते चले. खटंग बिर खितग ताल चले . सात सबद मार पेखंत खेलता चले . बिर चल चलूंडंति  दानौ मार. बजुर गोला बाण ते चलाऊं तब ब्रिछ  लडाऊं . राम्च्न्दरी बाण चलाऊं . बजुर बाण तेलग लागे . थातिया बिर लडाऊं गुम्बर गुबर नि लदे तो खेल नि खेले तो फेर सात त्रिपर कि दुबाई. फिरेसते चंद्रा बुतिणि बिर कि दुबाई फेरे  सहि. इस मंत्र न मुसलमान  को कब्र कि मटि . ७ जोड़ा लौंग ८ सूत को धागों करणो .एका ब्रिछ बंधणो . आफु अलग राणु , नजर मारणि : ७ चिक्ला मंत्र सूते लड़दि लकड़ी बज्र छीनती कि लकड़ी मुर्दा बोकण कि लकड़ी तीनो लकड़ी घुसाणो ब्रिछु पर छेद दिणि
     ॐ नमो आदेस गुरु  को इंद्रजाल हंकारो जिमजाळ हंकारो काल जिम हंकारो  मेढक जाल हंकारो . उमड़े नही जाहाँ चलाऊं थान चलाऊं . दि चले त ह्न्कारनात भैरों कलुआ ध्यावन छूटे . गेदों सि फूटे डोरी सि टूटे  , रुई को सिमडे लोट सि तड़े. जिम कि सभा नि बैठाई तो काला कलुआ तेरी आण  पड़े . जो इंद्र कि सभा नि बैठाई तो नौ नौरतो कि पूजा नि पाई . देखो परचो उंकी नात भैंरों मेरा बैरी तेरा भक . जम कि सभा नि लग तो तिन  नरग जाई . तिन घडी तिन पहर मड़घट नि ल्याई तो हंकार नात भैरों गुटा जाई तो मिटा खाई . बैण भांजा का पाप जाई ., चांडा बोग्सा कि जाटा तोड़ खाई . जांजी बोगसा उतरी जाई . मेरी भक्ति गुरु कि सती फुर मंत्र फटे स्वाहा . यई मंत्र तिघर कि लाल पिंगळी  पिठाइ २ घर का ज्युंदाळ साड़े तीन हात को धागों नापणो धरणो . सत्रु का घर मा फुकणो ९  सत्रु मरे १८ बेरी काम करणु
  ॐ नमो उस्ताद बैठे पास काम अवे रास . मेरा कलुवा एसा बिर जैसा हो तिर . जिम का मुहा पे बैठी कल़ेजी खाई , छाती पैराडि भैर निकळ आई . भोगे खाई भोगे का आड़ा दे मैं देवा क्रूर वारि करू ढाडा कलुवा कामड़ घाट बैठे ख़ुबाट कूद आवे मुर्दा के घाट. बारा घटी सोला बकरा खाई . असी कासकिदी ड़करे . सोटी ब्यानपे खावे ॐ काल भैरों कंकाल पाटी चन्द्र भैरों दुष्ट कि छ्यती. मेरा बैरी तेरा भक  काट कल़ेजा कर चबट . मेरी बात नि माने त माता कालिका का दांत गीद्लिया . २१ जोड़ा लौंग .
   
अथ घट बंथण को :
तै  बिट में कौं बिर बैठे . बिगठ मै बिर हणमंत रड़ बैठेउर हट्टी आगे दिया . उबैठे वबरी मैं महाकाली बैठे चार बिर घट के पेट में बैठे बंद बंदन भवन बंद पाणी का नागला . चरकी का घेर बंद चलदा घराट बंद .बोल बोल बंद  बंद करी त्याई तो बिर हणमंत तेरी द्वाई . फुट ह्न्मन्त बीर तेरी दवाई . बर्ज मुख का कोइला मंत्रणा . उइरा गेरी देण घरात बंद होई
 अथ उखेल मंत्र :
  ॐ नमो आदेस गुरु का : बिगत बिरात कौं बिर उखेल बिगत बिट हणीमंत्र उखेल द्विखिं आगे दरिया उखेल. चार बीर घट के पेट में उखेल . घट उपरी महाकाली उखेल . उखेल उखेल लखेल करी नि त्याई त : बिर हणमंत तेरी द्वाई . तेरी आण पड़ी . फुर बरुवा अनजानी का पूत हनुमंत उखेल . फुर मंत्र इस्रोवाच पंच गारा मंत्रणा या तीन बेरी या सात बेरी ॐ नमो गुरु को आदेस गुरु को काली काली महाकाली . कंकाली माता गडदेवी या बर्मा कि बेटी . गर्भ ते छुटी  रगत नि लेटी भैं माता कर्यो तेरो सुमरिण वेदी वोलाऊं औसान की बेला माता चली आयी . माता हंकारी ल़े मेरा बैरी सन्तान का जिए खाई .तुम मेरी बैणी मै तेरा भाई .  मेरा बैरी का पेट काट ल्याई . मैदान का बाठा ल्याई रक्त निकाल ल्याई . नाक नकुआ उपाई अंक पाड़ो काल़ो उपाई . तुम मेरी बैणा मै तेरा भाई . तुम बैरी घडी तीसरा पहर तीसरा दिन बरपाई मेरा बैरी का बत्तीस दंत खाई . ताल़ू जिभ्या लाइ . सौ हात आन्द्ड़ो खाई. मेरा बैरी को जितमो फोड़ी खाई फबसो कल़ेजी फोड़ी खाई . मेरा पढ़ायियां नि जाई त अपणा भाई बाप का x x न जाई. तू मेरी बैणा मै तेरा भाई मेरा पठायाँ नि जाई त अपणा गुरु को मांश खाई पाए बिट सिर जाई . मेरा बैरी ढाई पहर ढाई घडी फ़ट जाई . छ्न्चर का दिन न्यूती मात . ऐतवार का दिन हंकार पठाई . आगे नि जाई पीछे रही त अपणा गुरु का मॉस खाई . कैसा फिराआं फिरि आई त भाई बाप का अफु नि जाई . नौ नौती पूजा नि पाई . तोई द्विल नरसिंग कि दुबाई . . अब तो माता किल्कन्ति आई . मेरा बैरी भकनडि आई कं कं किलकन्त जाई  . मेरा बैरी भाकान्ति आई . खं खं खडख प्रले ल़े चली आई . मेरा बैरी तुरंत खाई . घं घं घं घोरंती जाई . मेरा बैरी तुरंत खाई ढं ढं ढं ढाल ल़े जाई . मेरा बैरी बैद हो तो बिदा खाई . सुता हो त सुतो खाई . मेरा बैरी रूसो होव तो मनाई खाई . मेरा बैरी कि डाँडि नदी तिर लाइ . नि ल्याई त अपणा भाई बाप का कुबोल जाई . नौ नारसिंग सोल़ा कलुवा असी मण चौरासी चेड़ा . चौसठ भैरों चौसठ जोगणि रथ बेरथ सुन बे -सुन बैरी का घर घाली तब चलो बाबा काल भैरों . गोल मैमंदा बिर मेरा बैरी का घर सुन बे-सुन घाली मेरा बैरी तीसरा दिन तीसरी पहर तीसरी धीवर ऩा खाई त बाबा सुन्गर हलाल कर खाई . अब मेरा बैरी खाईलो त तेरी पूजा देयून्लू लाल ल्वारण मॉस का बीड़ा कठ गई मठगढ़ बारा भोजन छतीस प्रकार देउलूं . कुखडी मेडा कि बली मद कि धार दयून्लू मेरी चलाई ऩा चली तो नी जाई त नौ नारसिंग बर्मा बिसनु मादेव पारबती  कि आण पड़ी . हणमंत  बिर कि आण पड़ी मेरी भगती गुरु कि सगती फीर मंत्र फटे स्वाहा . कागा कि पाग चित्रि का क्षर मड़ा हाड राता दयेपड़ा को क्षर नूर उंगुल को त्रिसुल करणो  १०८ बेरी मंत्र करणो सबु नाम ल़ेणु
   The literature is obvious that the literature is also informing the material requirement for Tantra performance
There is sole effect on this mantra from  an Islamik Peer mantra .as the mantra states about Halal Sungar (Pig killed by halal process)
The mantra is having mixture of philosophies of Nathpanth , Sakt , Vaishn sects together
The language is also mixture of Braj, Khadi Boli, Urdu and Shrinagrya Garhwali
It seems the mantra is created around eighteenth century or early ninteenth century
सन्दर्भ : अबोध बन्धु बहुगुणा गाड मटयेकि गंगा :
गोकुल देव बहुगुणा ग्राम झाला , पौरी गढवाल से प्राप्त पांडुलिपि से उद्घृत
Copyright @ Bhishma Kukreti bckukreti@gmila.com
           

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22