Author Topic: Uttarakhand Folk Literature -Uttarakhand लोक साहित्य में उपनिषद व्याख्या  (Read 6017 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

We are sharing some exclusive information about Uttarakhand Folk Literature here.

Hope you will like the information.

Regards..

M S Mehta
गढ़वाली लोक साहित्य में उपनिषद व्याख्या                           भीष्म कुकरेती     गढ़वाली लोक साहित्य विशेषत गोरखपंथी या नाथ संप्रदायी लोक साहित्य व घडेल़ा जागर दर्शन शास्त्रों से सब तरह से प्रेरित हैं . इसी लिए इस साहित्य में हमे उपनिषद की कई व्याख्याएं मिलती हैं वृहदकारणय  उपनिषद के छठे ब्राह्मण में गार्गी व याज्ञवल्क्य के सम्वांड हैं गार्गी पूछती है , " हे याज्ञवल्क्य ! यह जो कुछ है सब जल में ओतप्रोत है . जल किस में ओत प्रोत है ?" यागव्ल्क्य उत्तर देते हैं , " हे गार्गी वायु में " गार्गी , " वायु किस्मे ओतप्रोत है ?" यागव्ल्क्य , " अंतरिक्स लोक में " गार्गी < " अन्त्रिक्स  लोक किस्मे ओत प्रोत    है " याज्ञवल्क्य , " गंधर्व लोक में " गार्गी , " गंधर्व लोक किस्मे ओतप्रेत है ? याज्ञवल्क्य , " आदित्य्लोक में " इस तरह इस उपनिषद के गार्गी -याज्ञवल्क्य संवाद भाग में कई लोकों (मान व भौतिक लोक ) का वर्णन आता है ऊँ लोकों की मनोवैज्ञानिक व्याख्या भी होती है इसी तरह गढ़वाळी रखवाळी में भी कई लोकों की व्याख्या बृहदकारेणय उपनिषद के अनुसार इस तरह हो पायी है

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भूत उतारने की रख्वाळी


ओम नमो रे बाबा गुरु को आदेस , जल मसाण
जल मसाण को भयो थल मसाण

थल मसाण को भयो वायु मसाण

वायु मसाण को भयो वर्ण मसाण

वर्ण मसाण  को भयो बहुतरी मसाण 

बहुतरी मसाण को भयो चौडिया मसाण
चौडिया मसाण को भयो मुंडिया
मुंडिया मसाण को भयो सुनबाई
सुनबाई मसाण को भयो बेसुनबाई मसाण 
लेटबाई मसाण  , दरद बाई मसाण  , मेतुलो मसाण

 तेतुलो मसाण , तोप मसाण , ममड़ादो मसाण
बबड़ान्दो मसाण धौण तोड़ी मसाण
तोड़दो मसाण , घोर मसाण, अघोर
मन्तर दानो मसाण , तन्त्र दानौ 
बलुआ मसाण कलुआ मसाण  , तातु मसाण आदि

स्रोत्र : अबोध बंधु बहुगुणा , धुंयाळ , पृष्ठ ७५

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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तैत्तरीयो उपनिषद के ब्रम्हानंद वल्ली का प्रथम अनुवाक भाग क में आत्मा की व्याख्या या आत्म जागरण की विधि इस प्रकार है :
             तस्मात् वै अत्स्माद आत्मन : आकाश सम्भूत :
              आकाशात वायु , वायो अग्नि , अग्ने : आप :
             अद्रिव्ह्य पृथ्वी :, पृथ्व्या औषधय , औद्सधिभ्य अन्नं
              अन्नत रेत :, रेतस : पुरुस :, स : एष पुरुष अन्न रसमय :
अब ज़रा एक घ ड़या ल़ो के शब्दों पर गौर कीजिये जो सभी तरह से तैत्त रीयो उपनिषद की व्याख्या  ही करता है

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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घड़ेल़ा में जागरण मन्तर या गीत
परभात का परब जाग , गौ सरूप पृथ्वी जाग
धर्म्सरूप आकाश जाग, उदयकारी कांठा जाग
 भानुपंखी गरुड जाग , सतलोक जाग
मेघ्लोक जाग , चन्द्रलोक जाग
इन्द्रलोक जाग , सूर्य लोक जाग
पवन लोक जाग, तारा लोक जाग
जन जीवन जाग , हरो भरो संसार जाग
.....
इस तरह हम पाते हैं कि गढवाली लोक साहित्य में उपनिषदों , सभी दर्शनों की व्याख्या स्थानीय परिस्थिति व स्थानीय मनुष्यों की भाषागत समझ के हिसाब से की गयी है

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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If a person is effected by unsatisfied soul of any Musalman the Jhadkhandi or Jagri start worshiping the unsatisfied soul of Muslman an dstart the ritual of Saidwali . The unsatisfied soul is offered Tobacco and the Jhadkhandi reads the Mantra   
 
      बाबा आलम को सलाम
       हव्वा अम्मा को सलाम
      कलवा बाबा सैद को सलाम
      रहिमन मुकुलकिशोर पठान तख़्त को सलाम
      फूलपरी बहन को सलाम
       हे मेरे मेहरबान, मेरे पे हो जाओ मेहरबान
       सलाम भाई सलल्म , सलाम
While Abodh Bandhu Bahuguna (Dhunyal page, 72) states the Saidwali as follows
काला कलुवा कालो कलुवा , काली राति
त्वे हंकारु रे कलुवा रे आधी राति
 हाथ मा गोसा को दीमड़ लीजै
तुरंत मेरो काज कर दीजै
मेरा सतूर बैरी का मुख बैधे
चोरु का हाथ पाऊं बैधे
जा नली गली को बैंधे 
मेरा बैरी का चार पहर बैंधे
ओम नमो गुरु को हथपाली
रे मेरो राम  करो रखवाली
लुब्बा की कोठडी बजूर को ताली
देवघटा  को  कर दे सुणताली
मेरा सतूर की कंदड्यो कर दे सुणताली
मेरा सतूर की आशीष कर दे सुणताली
मेरा सतूर को जिम्पा  कर दे लाटी
 मेरा जिभ्या सणि कर दे तू छाली
फुर फुर माता कलिका का पुतर
नारसिंग तुमारो भाई 
एक कोसा बुलाऊं सौ कोसा ना जाई 
खीरखंड का भोजन ना पाई
ओंकार नरसिंग तेरो दुहाई
फुंकार नरसिंग तेरो दुहाई
मुसलमान अकबर को सल्लाम पौंछे
अलेकदम इब्बिबा तासौ कु सल्लाम पौंछे
जल धरती को सल्लाम पौंछे
उपर कतरी को सल्लाम पौंछे
उपिज वारि करम की गति को सल्लाम पौंछे
बिब बादल बैयागड़ को सल्लाम पौंछे
बै णि बिस्ल्या को सल्लाम पौंछे
पंच पितरूं   को  सल्लाम पौंछे
There are Ghadela or Jagar for Saidwali (keshav Anuragi , Nad Nadnai unpublished)
मुख्य जागरी के कथन ----------------------------- सहायक जागरी की भौण
सल्लाम वाले कम                                    सल्लाम वाले कम   
त्यारा वै गौड़ गाजिना                               सल्लाम वाले कम 
म्यारा मियाँ रतनागाजी                             सल्लाम वाले कम   
तेरी वो बीबी फातिमा                                   सल्लाम वाले कम   
तेरी वो कलमा कुरआन                              सल्लाम वाले कम     
 These Mantras or Jagar work as the narration of Krishna worked for enhancing the self esteem of Arjun that he developed self confidence before Arjun goes for great battle . The subject feels self assurance, self confidence and that confidence /assurance induct the physical changes and psychological changes into body-mind of the effected one positively
 
Refrences
Dr Shiva Nand Nautiyal Garhwal ke Nrity geet , page 157-159 

(Courtesy - Bhishma Kukreti)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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           घटथापना : गढवाळी लोक साहित्य में आध्यात्म का उदाहरण
      इंटरनेट  प्रस्तुति : भीष्म कुकरेती
(श्री विष्णु दत्त कुकरेती कि पुस्तक नाथ पन्थ : गढवाल के परिपेक्ष  में
मूल पाण्डुलिपि : पंडित मणि राम गोदाल कोठी वाले )
    १-  अतः घड थापना लेषीणते  . श्री गनेसाएंम : श्री जल बन्धनी : जल बंदनी जुग पंच पयाल : स्मपति  जुग रंची रे स्वामी   : जुग बार, : मन्स्यादेवी अर्दंगे : रुड माला पैरंती  जुग ते रं : नीवारनी , वर पैरन्ति, जुग सुल : जुग सौल : आसण बैसण प्राणमंत अंत काले कु जुग बीस : आसण बैसण जुग छतीस : ऊं उंकार ल़े  ल़े रे स्वामी स्वर्ग मंच पाताल : रात्री न दीन : समुद्र ना प्रर्थ में सूं तोला : विवर्जित : अंत का उद्पना
२- भेल रे स्वामी : श्री अप्रम प्रनाथ : मधे ल़े रे स्वामी : परम्सुन परमसून मधे रे स्वामी :परमहंस : परमहंस मधे रे स्वामी : चेतना चेतना मधे रे स्वामी  उद्पना : गोदर ब्रह्मा जोजनी तीन थानम : ॐ अं डं नं डं डं नं : प्रगारेत नंग सैत नंग : श्रीकृष्ण इजईती : उद्पना भैले रे स्वामी : श्री इश्वर  आदिनाथ    :कमनघट : नीरघट : षीरघट : रजघट : ब्रिजघट : वाईघट : ये पंच घट : थापंती जतीर सती : बाला ब्रह्मचारी : जटा
३- सौरी वळी ब्रह्मचारी : श्री गुरुगोरषजती    : कानन सुणि  वातन्ता : षोजंती   थावरे जक्र मेवा : एक ब्रह्मा न विश्णु इंद्र नंग : चन्द्र नंग वाई न श्रिश्थी : न दीपक : कोपालंक : कस्य ध्यानम मुरती :  वेद न  चारि होम न यग्य : दान न  :देते : जीत न काला : नाद न वेद : ये घट मेवा : ये घट औग्रा दंग : दीन दाई दीनचारी : नीना औरषवंग : करता पुर्क्म आकासंग आकासेघट  : ब्रह्मा पाताले घट ; वीषनुघट मदेघट ; महेसुर सोनाघट  :पारवती त्रीयोदेवा एक मुरती : ब्रह्मा विशनु महेसुर ; नाना भा :
४- बाती :मन हो रे जोगी : बसपति पातालम : सम्पति पातालं : ऊपरी सत : सत उपरी जत : जत उपरी धरम : धरम ऊपरी कुरम : कुरम उपरी बासुगी : बासुगी ऊपरी अगनि   : : अगनि उपरी क्रीती मही  : क्रीती मही उपरी मही क्रीती : मही क्रीती उपरी  राहू : राहू उपरी सम्पति गज : सम्पति गज उपरी धज : धज उपरी सम्पति समोदर : सम्पति समोदर उपरी : कमन कमन समोदर : बोली जै रे स्वामी : एक समोदर उपरी   सोल समोदर : सोर समोदर उपरी : तालुका समोदर : तालुका
५- समोद्र उपरी ; भालू का समोदर ; उपरी खारी समोद्र उपरी : रतनाग्री समोद्र रतनाग्री समोद्र उपरी : दुधा समोद्र : दुधा समोद्र ऊपरी डालु समोद्र ; डालु समोद्र उपरी मही दुधि समोद्र : मि समोद्र उपरी मही समोद्र ; मही समोद्र ये ससत समोद्र की वार्ता बोली जै रे स्वामी : कमन कमन दीप बोली जै रे स्वामी ; एक दीप : एक दीप उपरी सात दीप सास ; दीप उपरी सजवो दी :
६- प जवो दीप उपरी : जजणी  दीप : जजणी दीप उपरी : बासुकणी दीप  : बासुकणी दीप उपरी अहोड़ दीप : उपरी थमरी दीप उपरी नेपाली बासमती दीप  ; नेपाली भस्मती प उपरी : कणीक दीप : कणीक दीप उपरी : ये सात दीप बोली जै रे स्वामी : नौ खंड वार्ता बोली जै रे स्वामी : कमन कमन षंड वेक षंड : एक षंड : एक षंड उपरी हरी षंड ; हरी षंड उपरी भरत षंड : भरत षंड उपरी आला भरत षंड : भरत षंड उपरी बुद्धि का मंडल : बुद्धि का (षंड = खंड )
७- मंडल उपरी झैल षंड ब्र्न्हंड :झैलषंड :ब्रह्मंड उपरी :ब्रह्मापुरी ब्रह्मापुरी उपरी :सीवपुरी : सीवपुरी उपरी : आनन्द पुरी : आनन्द पुरी उपरी : उपरी ते ल  का तला  : तेल पी डा : ब्रह्म उपरी तत : अवुर जन वु त कु मारी जा :घातुक मारी जा : मही मंडल : सूरज घट मधे उद्पना वर राशी  का घट :मधे उद्पना वार मा से घट : मधे उद्पना त्र्यष्ठ षंड : ये नौ षंड :बोली जा रे स्वामी
८- ये नौ षंड उपरी : वाये मंडल वा ये मंडल उपरी छाया मंडल : छाया मंडल उपरी गगन मंडल : गगन मंडल उपरी मेघ मंडल : मेघ मंडल उपरी : सूरज मंडल : सूरज मंडल उपरी चंदर मंडल : चंदर मंडल उपरी :तारा मंडल : तारा मदनल उपरी :दूधी मंडल : छाय कोटि मेघ माला : वार मा  से घट : घट मधे उद्पना : वार रासी का घट :घट मधे उद्पना : अठार वार वणसापती  : घट मधे उद्पना ताल
९- बेताल : घट मधे उद्पना काल वे का ल : घट मधे उद्पना : नौ करोड़ घट : घट रहे थीर : घट थापंती : श्री अनादी नाथ बुद बीर भैरो : गौ हंडी पृथवी प्रथमे सोढ़ी कीया : जल अयिले : ऋष बाहन चढ़े : राजा हंस आई ल़े : गरुड वाहन चढ़े : राजा गणेष आयिले मुसा वा हान चढ़े : गंगा गौरिज्या आई ल़े मंगला पिंगोला वाहन चढ़े : अनं
१० - त सीधा : मिलकर कै बैठा ध्यान : घट थापन्ति : कमन कमन थान : श्री हं समती    म्समती माई : श्री घटथापंती  कमन कमन थानं : सती जुग मध्ये ल़े रे स्वामी : श्री यसुर आदिनाथ : आचार जगै : अरदगै गौरिजा देवी : षीर  ब्रिष गजा कटार : आसण बैसण सींगासण : छत्र : पत्र : डंडा ड़वौरु : सती जुग मधे ल़े रे स्वामी : कीतने ताल पुरषा : कीतने ताल अस्त्री : कीतने ब्रस की मणस्वात की औस्या बोली जै रे स्वामी सती जुग मध्ये ल़े रे स्वामी : बतीस ताल

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          Spirituality in Garhwali Folk Literature -3
                       Presented by Bhishma Kukreti
(Curtsey by Dr Vishnu datt Kukreti : Nathpanth : Garhwal ke Paripeksh men , Manuscript : Pundit Maniram Godal Kothiwale )
                        घट थापना -३
ष = ख़
         १४- त्र पत्र डंडा डोंरु सेली सींगी : त्रिशूल मुद्रा : झोली मेषला : उड़ाण की छोटी : फावड़ी : सोकंती : पोक्न्ति : सुणती भणती : आकाश : घट थाप्न्ती या तो रे बाबा दुवापर की वारता बोली जै रे स्वामी : ईं अवतार कन्च मंच का : त्रिथा जुग मधे ल़े जा रे स्वामी : श्री मछिंदर आदिणाट : आचार जंगे अदंगे : फरसराम राम : महाराम करणी    : भीमला देवी : षीर   ब्रिष गजा कंठ : आसण त्रिथा जुग मधे ल़े जा रे स्वामी : कीतन ताल पुरषा कितने ताल अस्त्री : कितने बर्स
१५- की मणस्वात की औषया बोली जै रे स्वामी : आठ ताल  पुरुषा : सादे छै ताल अस्त्री : हजार बरस की मणस्वात बोली जै रे : स्वामी : त्रिथा जुग मध्ये ल़े रे स्वामी : एक बेरी बोणों तीन बेरी लौणो : आठ पल चौंल : पांच पल गींऊ : मणस्वात को तीन मण को हार : त्रिथा जुग मधे ल़े रे स्वामी : तामा के घट : तामा के पाट : तामा
१६- के वारमती : तामा के आसण ; बासण सिंगासण : छत्र पत्र डंडा डोंरु : सेली सींगी : त्रिसुल मुद्रा : झोली मेषला : उड़ाण कछोटी : फावड़ी : सोक्न्ती : पोषंती : सुंणती  : भणती आकाशम : घट थाप्न्ती : या तौ  रे बाबा त्रिथा जुग की वार्ता बोली जा रे स्वामी : तीन औतार कन्च मंच का : तब कली जुग मधे ल़े रे स्वामी : श्री गुरु गोरषनाथ : आचार जंगे कलिका देवी : बीर बृषभ गजा कटार : आसण "
शब्दार्थ :
अस्त्री : स्त्री
आसण = आसन
औतार = अवतार
षारी = खारी  , नमकीन
गींऊ = गेंहू
चौल = चावल
त्रिथा : त्रेता युग
जुग : युग
ताल : अंगूठा व मध्यमा अंगुली के बीच की दूरी
पाट = दरवाजे
बोण= बोना
लौण = काटना (फसल )
औषया  = अवस्था
पुरुषा = पुरुष
बासण : बर्तन / भांडे
बेरी = बार, दफे    (period time )
थापना : स्थापना

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गढवाली लोक साहित्य में मन्त्र व तंत्र विद्या - १
        गंगासलाण के दो प्रसिद्ध छाया पूजक : श्री चैतराम डबराल व श्री मंगला नन्द बडथ्वाल
                                      भीष्म कुकरेती
मेरे द्वार प्रेषित नाथ सम्प्रदायी साहित्य के प्रति मिली जुली प्रतिक्रिया हुयी . मेरे मित्र श्री कुण्डलिया जी ने सुझाव दिया कि अन्धविश्वाश को प्रोत्साहन नही मिलना चाहिए
इसी प्रकार की मित्रों ने कहा कि चूँकि यह साहित्य ब्रज भाषा में है तो इसे गढवाली नही कहा जा सकता . किसी मित्र ने कहा कि ऐसे साहित्य का औचित्य ही नही नही है
किसी ने लिखा कि उत्तरांचल के विकास की बात की जाय . सभी आपने आपने दृष्टीकोण में सही हैं
किन्तु एक बात साफ़ है की नाथपंथी साहित्य (अधिकतर तन्त्र मन्त्र , झाड फूंक ) गढवाल में एक सच्चाई है . यह साहित्य छटी सदी में भी था , बारहवीं सदी में भी था और इक्कसवीं सदी में भी ज़िंदा है . जब सभी भौतिक दवाईयां  डाक्टर , कुछ भी ऩा कर सकें तो मनुष्य तन्त्र मन्तर और ईश्वर  की शरण में जा ही लेता है . अतः इस साहित्य का विश्लेष्ण हॉट ही रहेगा
  इस फोरम में श्री पी एस नेगी जी ने एक प्रश्न किया की छाया पूजन क्या होता है . चूंकि छाया पूजन या अन्य मान्त्रिक पूजन सार्ब्ज्निक रूप से नही किये जाते इसलिए सभी को इसकी जानकारी नही हो सकती . मै गाँव में कम ही रहा हूँ अतः मेरी जानकारी भी उतनी नही होगी . मैंने अपनी मा जी श्रीमती दमयंती कुकरेती से कुछ जानकारी हासिल की .और कुच्छ हद्द तक मै छाया ज्ञान के बारे में बता सकने में सफल हूँगा ऐसी मुझे उम्मीद है
                                                       छाया
                 छाय शब्द से ही पता चलता है की यह किसी अतृप्त या बुरी आत्मा की छाया से सम्बधित शब्द है . छाया केवल औरतों पर ही लगती है . किसी औरत या कन्या पर छाया लग जाती है तो कहा जाता था की उस पर कुछ किसम की बिप्दायें आती है जैसे बच्चे ना होना या बच्चों का ना बचना या पीटीआई /परिवार में अनबन आदि छाया कहीं भी लग सकती है
  छाया की जानकारी बाकी/पुछेर  / भविष्यवक्ता  ही देता है छाया पूजन की ही तरह का होता है हाँ यह अधिकतर बंद कमरे में या किसी घने पेड़ के नीचे निर्जन स्थान में ही होता है. बच्चों को पास नही आणा दिया जाता है . कोशीश यह भी होती ऐ की इसकी सूचना अन्य जनों को ना हो
दूध फूल पूजा :सरल रूप से पूजना होता है तो दूध फूल पूजा होती है . मान्त्रिक - तांत्रिक दूध फूल माध्यम से  पश्वा (जिस औरत पर छाया लगी है ) के सामने दूध फूल का  मन्तर पढ़ता है
नग जाड/दरिया /डोल गड्डी : यदि दूध फूल पूजा से कोई षी फल ना मिले तो फिर कई अन्य प्रकार के छाया पूजन होता है जैसे दरियावली / नग जाड/डोल  गड्डी  आदि . इसमें गिगुड , कुख्द आदि भी छ्धाये जाते है  . भुने सात अनाज , खिचडी , भुज्य्लू आदि का प्रयोग पूजा में होता है
मन्तर नाथपंथी ही होते हैं
नग जाड में औरत को निर्जन स्थान में नंगे पूजा करणी होती है और पाने कपड़े वहीं छोड़ आने होते है
   
छ महीने तक की तरह का टिट बिट करना होता है
                                     c गंगासलाण के दो प्रसिद्ध छाया पूजक : श्री चैतराम डबराल व श्री मंगला नन्द बडथ्वाल
बीसवीं सदी में गंगा सलाण में श्री श्री चैतराम डबराल (ग्राम अलमोडी, पट्टी डबराल स्यूं ) व श्री मंगला नन्द बडथ्वाल (ग्राम गड़मोला , पट्टी बिछ्ला ढागु  )  प्रसिद्ध मान्त्रिक तांत्रिक हुए जो की छाया पूजन के दक्ष माने जाते थे
 
                               

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Tantra Mantra in Garhwal-Kumaun (Hills of Uttarakhand)
                        Vibhuti Mantra -  Apraksha Mantra
                         विभूति मंत्र अथवा आपरक्षा मन्तर
         
          Web Presentation: Bhishma Kukreti 
           Collected and  Edited by Abodh Bandhu Bahuguna

(कृपया  किसी भी मन्तर को अपने आप अनुष्ठान नही करना चाहिए . बगैर गुरु के अनुष्ठान नही किया जाता है )
      ॐ नमो गुरूजी को आदेस गुरु को जुवार विद्वामाता को नमस्कार : विभूति माता विभूति पिता विभूति तीन लोक तारणी अंतर सीला मौन प्रवात सुमरी मै . श्री गोरख ऊँ दर्शन पैरो मै तुमरे नाऊँ ज्ञान खड्ग ल़े मै काल सन्गारो जब मरों तब डंक बजाऊं डंकण   शंकण मै हाफिर खाऊं रोग पिंड विघिन बिनास ण जावै कचा घडा तरवे  पाणि : डाडा  वस्त्र गये कुआर शंकर स्वामी करले विचार : गल मै पैरो  मोती  हार : अमर दूदी पिउन धीर : बजरन्ग्या  सादी ल़े रे बाबा श्री गोरखबीर : गोरख कुञ्जळी  चारन्ति अर विचारती श्री गुरुपा काय नमस्तुते : घट पर गोष छेने रुतहा के वस्त्र नाथ का वचन : सीदा जने ना मा रि भय दुत :   धर्म धात्री तुम को आरि : वंदि  कोट तुमकौ आरि: वालारो वै फन्तासुर दाड़ी ईस  पिंड का असी मसाण ताड़ी :बावन बीर ताड़ो छ कड़ दैत्र तोड़ो ताड़ी अग्नि पठ देउन उज्याळी ताड़ी ताड़ी माहा ताड़ी ईस पिंड का सब्बा सौ बाण दियुं ढोळी प्र्च्चेद का बाण दिऊँ ढाळी प्रभेद को बाण दिऊँ ढाळी प्रजन्त्र को बाण दिऊँ ढाळी प्रमन्त्र को बाण दिऊँ टाळी ल्यूं बाण दिऊँ टाळी लग्वायुं वां दिऊँ टाळी  वायुं बाण दिऊँ ढाळी बाप बीर हणमंत चार डांडा पुरवी तोड्न्तो लायो : बाप बीर हणमंत चार डांडा पसीमी तोडंतो ल्याओ : बाप बीर हणमंत चार डांडा दखणी तोड्न्तो लायो बाबा बाप हणमंत चार डांडा उतरी तोड्न्तो ल्यायो : बाबा बीर बापबीर हणमंत जोधा चार दिसा का चार बाण तोड्न्तो ल्यायो : चार बाण औदी का तोड्न्तो ल्यायो बापबीर हणमंत जोधा से क्वा क्वा लंकाण  बाण झंकाण बाण उखेल : बाबा बापबीर हणमंत खायु बाण उखेल लायुं बाण लग्वायुं बाण उखेल , कौं कौं बाण उखेल कवट को बाण उखेल छल को बाण उखेल छिद्र को बाण उखेल , लस्ग्दो बाण उखेल चस्गदो  बाण उखेल , नाटक चेटक को बाण उखेल ,: ईस पिंड को आब्र्ट भैरों को बाण उखेल , धौण तोड्दा भैरों का बाण उखेल , मौण मोड़दा भैरों का बाप उखेल बापबीर हणमंत जोधा दृष्टि भैरों का बाण उखेल , घोर  भैरों का बाण उखेल अघोर भैरों का बाण उखेल, कच्च्या भैरों को  बाण उखेल , निच्या भैरों को बाण उखेल , खंकार भैरों को बाण उखेल , हंकार भैरों को बाण उखेल , लोटण भैरों को बाण उखेल , लटबटा भैरों का बाण उखेल , . सुसा भैरों का बाण उखेल , चौसठ भैरों का बाण उखेल , नौ नरसिंगुं ,बाण उखेल , .प्रथम  सुन भैरोंकी बाणी को बाण उखेल , बसून  भैरों की बाणी को बाण उखेल   घोर भैरिओं की बाणी को बाण उखेल , अघोर भैरों की बाणी को बाण उखेल चौसठ भैरों की बाणी को बाण उखेल : बापबीर हणमंत जोधा दूना भैरों को बाणी को बाण उखेल , पोसण भैरों की बाणी को बाण उखेल, धौण तोड्दा भैरों की बाणी को बाण उखेल , मौण तोड्दा भैरों की बाणी को बाण उखेल , बाबा अठावन सौ कलुवा का बाण उखेल , बाप  बीर हणमंत नि उखेली खाई त सात भाई चमारिका हात को पाणी पी : सुई का रंगत नायी: गै काच्डा दांत लगाई : नरम जाई : जागजंत्र  लागतन्त्र : फुर मन्तर इश्वरो वाच : या रखवाळी विभूति मंत्रणि की छ : अपणा वास्ता आप रक्षा की छ और उखेल का काम कु सीध छ : शुभम :
 


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Regards
B. C. Kukreti                   

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Culture of Kumaun and Garhwal
                     Mantra for Curing Various Kinds of Fever and Mantra in Atharva Ved
                         गढवाल -कुमाऊँ  के ज्वर मंत्र एवम अथर्व वेद में ज्वर मंत्र
 
                     (Mantra tantra in Kumaun, Tantra Mantra in Garhwal, Mantra Tantra in Himalaya )
                          Bhishma Kukreti
       dr Pitambar datt Barthwal initiated to collect and analyze the nathpanthi Mantras from Garhwal-Kumaun  . Abodh Bandhu Bahuguna , Dr Chatak , Dr Shiva Nand Nautiyal made advancement in the researhces on mantra and Tantra of Kumaun -Garhwal . However, Dr Vishnu Datt Kukreti took the reaserches exclusively and he found hundreds of Mantra' and Tantra manuscripts from various parts of Garhwal.
 Dr Kukreti got two manuscripts of Ganit Prakash while he was busy in his research on Nathpanth which is very significant folk literature of hills of Himalaya
  the size of   Ganit Paraksh manuscript (from the collection of late Ram Krishn Kukreti, village Barsudi, Dwarikhal, Pauri Garhwal) is 21x13 centimeters and having 84 pages . the copying of manuscript from other manuscript is 1900 Ad by late tara datt Kukreti
    first part is about curing various diseases 9upto 44 pages) and second part is about Numerology (from 45 to 84 page)
    The manuscript starts as
  लीषतो पोस्तक्म निम्नाथ के श्री उमा पारोबती महादेवी बछ श्री भगवान् जी चित्र रेखा बाछ श्री भेमाता कथी तो नारदो वाछ: इति श्रीमुनिनाथ जोझ्ण वाले के पौस्तक गणित प्रकाश काहै ......
 In first part there are description of various fever, and tens of  diseases , stomach aches etc and there is description of herbal treatment too
        In Ganit Parakash there is mantras Nadbud or Rakhwali , In Ganit Prakash there is description of characteristics of various fevers as
   पिथ जर , बिस्म पिथ जर . , कफ जर , सीट जर , शन्निपात जर,
    जडो लागे देहि कामे रोग होए मुख टापि होव देहि का जमाई लागन सीर बाजि होव जांगू फट्टा पीड़ा होव फलाऊँ होव त्रिखा होव आखा तापन गीचो करणों होव .....
ॐ नमो गुरु को आदेस इस पिंड का दुःख बंध करी विमाता .... ह्न्मन्त का जाप खाली न जावे .........
Now let us read a  mantr of Athrva Ved
                                 अथर्व वेद, अध्याय एक   , मंत्र २५
(ऋषि ; भ्रिग्व्गिरा , देवता यक्ष्मनशनो , छंद - त्रिष्टुप , अनुष्टुप       
         हे कष्टदायक ज्वर ! धर्मपालक तथा धर्मवान विद्वान् जिस अग्नि का हवन करते हैं उस अग्नि को तेरा जन्म कहा जाता है तू अपने कारण अग्नि को भली प्रकार समझ कर हमारे उष्ण जल से हमारे अंग व शरीर को छोड़ कर अग्नि के साथ बाहर हो जा
       हे जीवन को दुखमय बनाने वाले ज्वर तू वाट रूप उष्णता से युक्त है ...... इसके अतिरिक्त तू पुरुष शरीर को पीतवर्ण बना देते हो. .. हमारे शरीर से बाहर आ.......
        शीत को उत्पन करने वाले शीत ज्वर के लिए मेरा नमस्कार .. दुसरे दिन आने वाले ज्वर को नमस्कार .... तीसरे दिन आने वाले ज्वर को नमस्कार ......
 if we analyze both the mantras we shall find that in both case there is description of characteristics of various types of FEVER and in Veda , there is no curing tactics but in Ganit Prakash, there is curing methodlogy too

 

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