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Uttarakhand Folk Literature -Uttarakhand लोक साहित्य में उपनिषद व्याख्या

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Dosto,

We are sharing some exclusive information about Uttarakhand Folk Literature here.

Hope you will like the information.

Regards..

M S Mehta
गढ़वाली लोक साहित्य में उपनिषद व्याख्या                           भीष्म कुकरेती     गढ़वाली लोक साहित्य विशेषत गोरखपंथी या नाथ संप्रदायी लोक साहित्य व घडेल़ा जागर दर्शन शास्त्रों से सब तरह से प्रेरित हैं . इसी लिए इस साहित्य में हमे उपनिषद की कई व्याख्याएं मिलती हैं वृहदकारणय  उपनिषद के छठे ब्राह्मण में गार्गी व याज्ञवल्क्य के सम्वांड हैं गार्गी पूछती है , " हे याज्ञवल्क्य ! यह जो कुछ है सब जल में ओतप्रोत है . जल किस में ओत प्रोत है ?" यागव्ल्क्य उत्तर देते हैं , " हे गार्गी वायु में " गार्गी , " वायु किस्मे ओतप्रोत है ?" यागव्ल्क्य , " अंतरिक्स लोक में " गार्गी < " अन्त्रिक्स  लोक किस्मे ओत प्रोत    है " याज्ञवल्क्य , " गंधर्व लोक में " गार्गी , " गंधर्व लोक किस्मे ओतप्रेत है ? याज्ञवल्क्य , " आदित्य्लोक में " इस तरह इस उपनिषद के गार्गी -याज्ञवल्क्य संवाद भाग में कई लोकों (मान व भौतिक लोक ) का वर्णन आता है ऊँ लोकों की मनोवैज्ञानिक व्याख्या भी होती है इसी तरह गढ़वाळी रखवाळी में भी कई लोकों की व्याख्या बृहदकारेणय उपनिषद के अनुसार इस तरह हो पायी है

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
भूत उतारने की रख्वाळी


ओम नमो रे बाबा गुरु को आदेस , जल मसाण
जल मसाण को भयो थल मसाण
थल मसाण को भयो वायु मसाण
वायु मसाण को भयो वर्ण मसाण
वर्ण मसाण  को भयो बहुतरी मसाण 

बहुतरी मसाण को भयो चौडिया मसाण
चौडिया मसाण को भयो मुंडिया
मुंडिया मसाण को भयो सुनबाई
सुनबाई मसाण को भयो बेसुनबाई मसाण 
लेटबाई मसाण  , दरद बाई मसाण  , मेतुलो मसाण

 तेतुलो मसाण , तोप मसाण , ममड़ादो मसाण
बबड़ान्दो मसाण धौण तोड़ी मसाण
तोड़दो मसाण , घोर मसाण, अघोर मन्तर दानो मसाण , तन्त्र दानौ 
बलुआ मसाण कलुआ मसाण  , तातु मसाण आदि

स्रोत्र : अबोध बंधु बहुगुणा , धुंयाळ , पृष्ठ ७५

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
तैत्तरीयो उपनिषद के ब्रम्हानंद वल्ली का प्रथम अनुवाक भाग क में आत्मा की व्याख्या या आत्म जागरण की विधि इस प्रकार है :
             तस्मात् वै अत्स्माद आत्मन : आकाश सम्भूत :
              आकाशात वायु , वायो अग्नि , अग्ने : आप :
             अद्रिव्ह्य पृथ्वी :, पृथ्व्या औषधय , औद्सधिभ्य अन्नं
              अन्नत रेत :, रेतस : पुरुस :, स : एष पुरुष अन्न रसमय :
अब ज़रा एक घ ड़या ल़ो के शब्दों पर गौर कीजिये जो सभी तरह से तैत्त रीयो उपनिषद की व्याख्या  ही करता है

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
घड़ेल़ा में जागरण मन्तर या गीत
परभात का परब जाग , गौ सरूप पृथ्वी जाग
धर्म्सरूप आकाश जाग, उदयकारी कांठा जाग
 भानुपंखी गरुड जाग , सतलोक जाग
मेघ्लोक जाग , चन्द्रलोक जाग
इन्द्रलोक जाग , सूर्य लोक जाग
पवन लोक जाग, तारा लोक जाग
जन जीवन जाग , हरो भरो संसार जाग
.....
इस तरह हम पाते हैं कि गढवाली लोक साहित्य में उपनिषदों , सभी दर्शनों की व्याख्या स्थानीय परिस्थिति व स्थानीय मनुष्यों की भाषागत समझ के हिसाब से की गयी है

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
If a person is effected by unsatisfied soul of any Musalman the Jhadkhandi or Jagri start worshiping the unsatisfied soul of Muslman an dstart the ritual of Saidwali . The unsatisfied soul is offered Tobacco and the Jhadkhandi reads the Mantra   
 
      बाबा आलम को सलाम
       हव्वा अम्मा को सलाम
      कलवा बाबा सैद को सलाम
      रहिमन मुकुलकिशोर पठान तख़्त को सलाम
      फूलपरी बहन को सलाम
       हे मेरे मेहरबान, मेरे पे हो जाओ मेहरबान
       सलाम भाई सलल्म , सलाम
While Abodh Bandhu Bahuguna (Dhunyal page, 72) states the Saidwali as follows
काला कलुवा कालो कलुवा , काली राति
त्वे हंकारु रे कलुवा रे आधी राति
 हाथ मा गोसा को दीमड़ लीजै
तुरंत मेरो काज कर दीजै
मेरा सतूर बैरी का मुख बैधे
चोरु का हाथ पाऊं बैधे
जा नली गली को बैंधे 
मेरा बैरी का चार पहर बैंधे
ओम नमो गुरु को हथपाली
रे मेरो राम  करो रखवाली
लुब्बा की कोठडी बजूर को ताली
देवघटा  को  कर दे सुणताली
मेरा सतूर की कंदड्यो कर दे सुणताली
मेरा सतूर की आशीष कर दे सुणताली
मेरा सतूर को जिम्पा  कर दे लाटी
 मेरा जिभ्या सणि कर दे तू छाली
फुर फुर माता कलिका का पुतर
नारसिंग तुमारो भाई 
एक कोसा बुलाऊं सौ कोसा ना जाई 
खीरखंड का भोजन ना पाई
ओंकार नरसिंग तेरो दुहाई
फुंकार नरसिंग तेरो दुहाई
मुसलमान अकबर को सल्लाम पौंछे
अलेकदम इब्बिबा तासौ कु सल्लाम पौंछे
जल धरती को सल्लाम पौंछे
उपर कतरी को सल्लाम पौंछे
उपिज वारि करम की गति को सल्लाम पौंछे
बिब बादल बैयागड़ को सल्लाम पौंछे
बै णि बिस्ल्या को सल्लाम पौंछे
पंच पितरूं   को  सल्लाम पौंछे
There are Ghadela or Jagar for Saidwali (keshav Anuragi , Nad Nadnai unpublished)
मुख्य जागरी के कथन ----------------------------- सहायक जागरी की भौण
सल्लाम वाले कम                                    सल्लाम वाले कम   
त्यारा वै गौड़ गाजिना                               सल्लाम वाले कम 
म्यारा मियाँ रतनागाजी                             सल्लाम वाले कम   
तेरी वो बीबी फातिमा                                   सल्लाम वाले कम   
तेरी वो कलमा कुरआन                              सल्लाम वाले कम     
 These Mantras or Jagar work as the narration of Krishna worked for enhancing the self esteem of Arjun that he developed self confidence before Arjun goes for great battle . The subject feels self assurance, self confidence and that confidence /assurance induct the physical changes and psychological changes into body-mind of the effected one positively
 
Refrences
Dr Shiva Nand Nautiyal Garhwal ke Nrity geet , page 157-159 

(Courtesy - Bhishma Kukreti)

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