Author Topic: उत्तराखंड पर लिखी गयी विभन्न किताबे - VARIOUS BOOKS WRITTEN ON UTTARAKHAND !  (Read 130212 times)

Saket Bahuguna

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" गढ़वाली मांगळ गीत "
 संपादक - श्री तोताराम ढौंडियाल 'जिज्ञासु' 
प्रकाशक - विनसर पब्लिशिंग कंपनी, देहरादून
पैलो संस्करण - बसंत पंचमी , २००४
मोल - १५ रुप्या मात्र 




Saket Bahuguna

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" गढ़वाली लोकगीत "
 संकलन तथा हिंदी अनुवाद  - श्री गोविन्द चातक
प्रकाशक - आदिवासी भाषा साहित्य प्रकल्प , साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली
प्रथम आवृत्ति - २०००
पुनर्मुद्रण - २००६
मूल्य - १०० रु मात्र






Saket Bahuguna

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" हारुल " (जौनसार बावर के पौराणिक लोकगीत )
 संकलन तथा हिंदी अनुवाद  - श्री लक्ष्मीकान्त जोशी
प्रकाशक - विनसर पब्लिशिंग कंपनी , देहरादून
प्रथम संस्करण - 2007
मूल्य - 160 रु मात्र




Saket Bahuguna

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" Proverbs and Folklore of Kumaun and Garhwal "
Collected and Edited by - Pandit Ganga Datt Upreti

First published - 1894
New Edition - 2003

Publishers - Indira Gandhi National Centre for the Arts,
                  Central Vista Mess, Janpath, New Delhi- 110001
                   and
                  Concept Publishing Company,
                  A/15-16, Commercial Block, Mohan Garden,
                  New Delhi - 110059
                  phone no - 25351460,25351794

This book portrays our rich cultural heritage and is the first of its kind.



Saket Bahuguna

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" आर्यों का आदि निवास - मध्य हिमालय  "
 लेखक - श्री भजन सिंह 'सिंह'
प्रकाशक -भागीरथी प्रकाशन गृह , सुमन चौक , टिहरी , उत्तराखंड
प्रथम संस्करण - 1986
मूल्य - 48 रु मात्र





Saket Bahuguna

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" गढ़वाल और गढ़वाल " (इतिहास - पुरातत्व - भाषा - साहित्य - संस्कृति )
संपादक - श्री चंद्रपाल सिंह रावत
प्रकाशक -विनसर पब्लिशिंग कंपनी , १२६ विकास मार्ग ,पौड़ी गढ़वाल
प्रथम संस्करण - 1997
मूल्य - 250 रु मात्र





Saket Bahuguna

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Risky Pathak

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Winsar Publications is one of the leading publishing houses of Uttarakhand and largest book distributor. It is engaged in dissemination of information about the Uttarakhand on various spheres of activity to facilitate the task of national integration by promoting greater awareness and understanding of the different regions and of the people adhering to various faiths and beliefs. It publishes and sells books & journals at affordable prices

Some of the important book published by Winsar Publication are “Uttarakhand Year Book” , Uttaranchal Me Udyamita Vikas, and many others In addition Winsar Publication is participated in all important book Fairs and book exhibitions in India .

It has so far published more than 500 titles. The division has published the ever highest copies of - "Uttarakhand Year Book" - in Hindi and English.

Website: http://www.uttarakhandyearbook.com/index.html


List of books: http://www.uttarakhandyearbook.com/Booklist.zip

 

Devbhoomi,Uttarakhand

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ठेले पर हिमालय




धर्मवीर भारती   
पृष्ठ   :    163
मूल्य   :    $7.95 
प्रकाशक   :    भारतीय ज्ञानपीठ
प्रकाशित   :    अगस्त १७, १९९९
Book Id   :   1346



‘ठेले पर हिमालय’-खासा दिलचस्प शीर्षक है न ! और यकीन कीजिए, इसे बिलकुल ढूँढ़ना नहीं पड़ा। बैठे-बिठाए मिल गया। अभी कल की बात है, एक पान की दूकान पर मैं अपने एक गुरुजन उपन्यासकार मित्र के साथ खड़ा था कि ठेले पर बर्फ की सिलें लादे हुए बर्फ वाला आया। ठण्डे, चिकने चमकते बर्फ से भाप उड़ रही थी। मेरे मित्र का जन्म-स्थान अल्मोड़ा है, वे क्षण भर उस बर्फ को देखते रहे, उठती हुई भाप में खोए रहे खोए-खोए-से ही बोले, ‘यही बर्फ तो हिमालय की शोभा है।’ और तत्काल शीर्षक मेरे मन में कौंध गया, ‘‘ठेले पर हिमालय’।

पर आपको इसलिए बता रहा हूँ कि अगर आप नये कवि हों तो भाई, इसे ले जाएँ और इस शीर्षक पर दो-तीन सौ पंक्तियाँ, बेडौल, बेतुकी लिख डालें-शीर्षक मौजूँ हैं, और अगर नयी कविता से नाराज हों, सुललित गीतकार हों तो गुंजाइश है, इस बर्फ को डाटे, उतर आओ। ऊँचे शिखर पर बन्दरों की तरह क्यों चढ़े बैठे हो ? ओ नये कवियों ! ठेले पर लदो। पान की दूकानों पर बिको।

ये तमाम बातें उसी समय मेरे मन में आयीं और मैंने अपने गुरुजन मित्र को बतायीं भी। वे हँसे भी, पर मुझे लगा कि वह बर्फ कहीं मेरे मन को खरोंच गयी है और ईमान की बात यह है कि जिसने 50 मील दूर से भी बादलों के बीच नीले आकाश में हिमालय की शिखर रेखा को चाँद-तारों से बात करते देखा है, चाँदनी में उजली बर्फ को धुँधले हल्के नीले जाल में दूधिया समुद्र की तरह मचलते और जगमगाते देखा है, उसके मन पर हिमालय की बर्फ एक ऐसी खरोंच छोड़ जाती है जो हर बार याद आने पर पिरा उठती है। मैं जानता हूँ, क्योंकि वह बर्फ मैंने भी देखी है।

सच तो यह है कि सिर्फ बर्फ को बहुत निकट से देख पाने के लिए ही हम लोग कौसानी गये थे। नैनीताल से रानीखेत और रानीखेत से मझकाली के भयानक मोड़ों को पार करते हुए कोसी। कोसी से एक सड़क अल्मोड़े चली जाती है, दूसरी कौसानी। कितना, कष्टप्रद, कितना सूखा और कितना कुरूप है वह रास्ता ! पानी का कहीं नाम-निशान नहीं, सूखे-भूरे पहाड़, हरियाली का नाम नहीं।

 ढालों को काटकर बनाए हुए टेढ़े-मेढ़े रास्ते पर अल्मोड़े का एक नौसिखिया और लापरवाह ड्राइवर जिसने बस के तमाम मुसाफिरों की ऐसी हालत कर दी कि जब हम कौसी पहुँचे तो सभी के चेहरे पीले पड़ चुके थे। कौसानी जाने वाले सिर्फ हम दो थे, वहाँ उतर गये। बस अल्मोड़े चली गयी। सामने के एक टीन के शेड में काठ की बेंच पर बैठकर हम वक्त काटते रहे।

तबीयत सुस्त थी और मौसम में उमस थी। दो घण्टे बाद दूसरी लारी आकर रुकी और जब उसमें से प्रसन्न-बदन शुक्ल जी को उतरते देखा तो हम लोगों की जान में जान आयी। शुक्ल जी जैसा सफर का साथी पिछले जन्म के पुण्यो से मिलता है। उन्होंने हमें कौसानी आने का उत्साह दिलाया था और खुद तो कभी उनके चेहरे पर थकान या सुस्ती दिखी ही नहीं, पर उन्हें देखते ही हमारी भी सारी थकान काफूर हो जाया करती थी।


 

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