Uttarakhand > Utttarakhand Language & Literature - उत्तराखण्ड की भाषायें एवं साहित्य
VOCABULARY OF KUMAONI-GARHWALI WORDS-कुमाऊंनी-गढ़वाली शब्द भण्डार
Bhishma Kukreti:
गढ़वाली भाषा की शब्द शक्ति
By Mahesha Nand
गढ़वाली भाषा की शब्द शक्ति अनुपम व अतुलनीय है.
#घातु अर्थात् शब्द का वह मूल रूप जिससे क्रिया बनती है।
#हड़्याण धातु से बनने वाले क्रिया तथा अन्य शब्द.........
हड़बड़ाँ (क्रि0वि0)- तिरछे में/बाजु के बल. हड़ब्यड़ाँ
हड़ाँ (क्रि0वि0)- बाजु के सहारे/बाजु के बल.
हड़ु-हड़ु (क्रि0वि0)- कई जगह से/जगह-जगह से/इस बाजु की तरफ से, उस बाजु की तरफ से.
हड़्ययूँ (वि0)- आँच में तपायी हुई वस्तु/जिस रोटी के तलों को सेका गया हो #हड़्ययीं (स्त्री0) #हड़्ययाँ (ब0व0)
हड़्यांद (क्रि0)- किसी वस्तु को आँच में तपाते हुए/रोटी के तलों को सेकते हुए. #हड़्यांदु (ए0व0) #हड़्यांदि (स्त्री0) #हड़्यांदा (ब0व0)
हड़्याण (क्रि0)- किसी वस्तु को आँच में तपाना/रोटी के तलों को सेकना.
हड़्याणु (क्रि0)- किसी वस्तु को आँच में तपा रहा/रोटी के तलों को सेक रहा. #हड़्याणि (स्त्री0) #हड़्याणा (ब0व0)
हड़्यालु (क्रि0भवि0)- किसी वस्तु को आँच में तपाएगा/रोटी के तलों को सेकेगा. #हड़्यालि (स्त्री0) #हड़्याला (ब0व0)
हड़्ये यालि (क्रि0भूत0)- किसी वस्तु को आँच में तपा लिया/रोटी के तलों को सेक लिया.
हड़्यौंदरु (वि0)- किसी वस्तु को आँच में तपाने वाला/रोटी के तलों को सेकने वाला. #हड़्यौंदरि (स्त्री0) #हड़्यौंदरा (ब0व0)
हड़्यौ (क्रि0आज्ञ0)- किसी वस्तु को आँच में तपा/रोटी के तलों को सेक.
हड़्यौण्य (पु0)- किसी वस्तु को आँच में तपाने की क्रिया/रोटी के तलों को सेकने का काम.
हौड़ (पु0)- तल/करवट/बगल/बाजू. { सदनि दैंणा हौड़ सींण चयेंद.}
हौड़-हौड़ (वि0)- सभी तल/दोनों बाजू. { हौळ लगै कि म्यारा हौड़-हौड़ दुख्णा छन.}
लोकोक्ति--
हड़ु-हड़ु डड्ये ग्या बल किड़ांण कथैं आ।
मुहावरे---
हड़ु-हड़ु लमडंण- अनेक विपत्तियों से गुजर जाना.
हड़ु-हड़ु लमडांण- बुरी स्थिति में पहुँचा देना या/ अनेक विपत्तियों में पहुँचा देना.
हौड़ आण- रोटी के तल का पक जाना.
Copyright@ Mahesha Nand
Bhishma Kukreti:
भरच्यांद , भड्यांद तून लगांद , पित्यांद अंग्रेजी-शब्द - गढ़वाली में परिभाषित करते व्यंग्य शब्दकोश B - 80
(English -Garhwali Dictionary of Satire , Sarcasm, Aggravating , Galling , Roasting Definitions )
(गढ़वाली , व्यंग्य, हंसी, जोक्स , चिढ़ाते , धृष्टता करते ,ठट्टा लगाते , ताना मारते , झिड़कते शब्द -परिभाषा शब्दकोश , व्यंग्यकोश )
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संकलन - भीष्म कुकरेती
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Volunteer , स्वयंसेवक = चूसक
Vote वोट = इथगा तागतवर नि हूंद जथगा समजे जांद
Voter वोटर - ढिबरुं की अलग जाति
Voucherवाउचर = बौगाणो कागज जु बेवकूफ बणान बरोबर ही हूंद
Vulture गिद्ध = जु बि विज्ञापन से जुड्युं हो
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Copyright@ Bhishma Kukreti , 2020
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Bhishma Kukreti:
Lost Garhwali words and their meaning
चळयां गढवाली शब्द या कठिन शब्द अर माने मतबल
[size=12pt] महेशा नन्द [/size][/color]
By Mahesha Nand
असौंगा सब्द-
ब्येया-माँ के।
उबड्याँ-उत्पन्न किए हुए।
म्याला-बीज (शब्द)।
फुरफुरा-स्वस्थ व अच्छी तरह से सुखाए हुए।
भुतगिला-छोटे पेड़ जो पत्तों-शाखाओं से लदे हों।
अंगर्येनि-अंग-प्रत्यंगों से (शाखा-उपशाखाओं) लदे।
सगंढ-विशाल। घड़मड़ा-जिसने अपने आप को चारों तरफ से किसी वस्त्र या रजाई से ढका हो तथा अधिक जगह घेरी हो।
खुरक्यूँन्-खुंदक खाने वालों ने, बैर भावना रखने वालों ने।
दमळैनि-आधा चबाए और फेंक दिए।
च्वैलि-छीलकर।
कठब्यड़ि-काठ का बना सामान रखने का बक्सा।
सारा-स्वस्थ, गिरीदार।
छिछैनि-नष्ट हो गए।
उडणौन-उड़ने वाले छोटे जीव (हल्की-फुल्की मानसिकता वाले।)
छुल्येनि-दोनों हाथों से इधर-उधर बिखेर दिए।
दळ्ये-दल-दल में समा गए, दल दिए।
चळ्ये-खो गए।
दुब्द-दुब्द-छुप-छुपकर पीछा करते हुए। निसता-सारहीन। सैरि-फैल। पुणयाँ-पणयाँ- सार-फटक कर साफ किए हुए। गब्त-दफन।
Copyright@ Mahesha Nand 2020
Bhishma Kukreti:
विलुप्त होतेहुए कुछ गढ़वाली शब्द
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संकलन – महेशा नन्द गढवाली के प्राचीन शब्दों के ज्ञाता
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#कंप्यरु (पु0)- जमीन से बाहर निकला हुआ नुकीला पत्थर.
#कछ्वळा (पु0)- आमाश्य.
#खांड्यूँ (पु0)- अत्यन्त उपजाऊ भूमि.
#गबदाट (पु0)- अनेक लोगों का एक साथ बोलने-बतियाने का अस्पष्ट शोर/पंजों से किया जाने वाला मर्दन या नोचन/दोनों हाथों से सामान को टटोल कर किया जाने वाला निरीक्षण.
#घत्वड़ु (पु0)- तरल पदार्थ के अधिक मात्रा में लगातार पिए जाने की क्रिया.
#घिंघऽघ्यळि (स्त्री0)- ऐसे शिशुओं का समूह जो खुद चल-फिर नहीं सकते/रोकर अपनी ओर आकर्षित करते हुए शिशुओं का समूह.
#चटक्वांस (स्त्री0)- किसी वस्तु की भारी कमी.
#चड़ऽ (पु0)- जाँघ.
#छूपुण (पु0)- चूल्हे में रखे बर्तन के पानी को जल्दी उबालने के लिए उसमें डाला गया मंडवे का आटा/ओड़ा जाने वाला झीना कपड़ा/ढकने या आच्छादित करने वाला झीना कपड़ा.
#छैतु (पु0)- कुछ समय के लिए उधार माँगा गया सोना या चाँदी का गहना. (बीस-तीस साल पहले यह परम्परा थी. जो गरीब लोग होते थे वे जब अपने बेटे के लिए बहु माँगने जाते थे तब अपने सक्षम हितैषी से सोना या चाँदी का गहना माँगते थे. वह गहना माँगी गयी बहु को पहनाया जाता था. जब शादी हो जाती थी तब वह गहना लौटा दिया जाता था.)
#जुख्यला (पु0)- बीज/अखरोट की गिरी.
#झिड़बिड़ि (स्त्री0)- घृणा/घिन.
Bhishma Kukreti:
उलणा और जळतुंगा के पौधे.....
(बिलुप्त होते या होने वाले -गढवाली शब्द श्रृंखला )
महेशा नन्द (भाषा विशेषग्य )
जब पहाड़ों का जीवन सीधा प्रकृति से जुड़ा था तब इन पौधों की बहुत मान्यता थी। इन प्रकृति प्रेमियों ने प्रकृति से सीखकर अपना जीवन सरल बनाया।
आज स्थिति यह है कि लोग इन पौधों के नाम तक नहीं जानते होंगे। ये दोनों पौधे नम स्थानों में होते हैं।
1- #उलणा- यह एक फर्न की प्रजाति है। फर्न की पहाड़ों में मुख्य तीन प्रजातियाँ हैं
(a)- #लिंगुड़ा- लिंगुड़ा छायादार नम स्थानों में होता है। मुख्यता यह पौधा गधेरों में, पानी के नम छायादार स्थानों में होता है। बरसात में इसके कोमल तने लम्बे होकर गोल घंड़ी के आकार जैसे हो जाते हैं जो सब्जी बनाने के काम आते हैं।
(b)- #कुथड़ा- कुथड़ा भी फर्न प्रजाति का है जो चीड़ या बाँज के जंगल के नमीदार स्थानों में होता है। इसके तनों की भी सब्जी बनायी जाती है। इसके तने भी लिंगुड़ा जैसे होते हैं किन्तु वे बारीक होते हैं। लिंगुड़ा और कुथड़ा के स्वाद में यदि तुलना करें तो लिंगुड़ा अधिक स्वादिष्ट होता है।
(c)- #उलणा- यह फर्न की मुख्य प्रजाति है। उलणा बाँज के जंगल में नम किन्तु किसी भी स्थान में कहीं भी उग जाता है। यह #जहरीला पौधा है। इसका उपयोग पहाड़ों के कच्चे घरोंं की छतों को छाने के लिए किया जाता था। क्यों किया जाता है ? फिर कभी....
2- #जळतुंगा- जळतुंगा चारा देने वाला पौधा तो है ही, साथ ही इसके तने से मिट्टी, गोबर, पत्थर आदि ढोने के कण्डे बनाए जाते थे। इस कला के माहिर थे रुड़िया। इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि रुड़िया लोग उत्तराखण्ड के मूल निवासी हैं जो बाँस, रिंगाळ से कुन्ने, डुखरे आदि बनाते थे। इन शिल्पियों को मै हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
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