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hum kyun nahi sikhate apne bacchon ka pahari

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Author Topic: Why Do We Hesitate in Speaking our Language? अपनी भाषा बोलने में क्यों शरमाते हम  (Read 43728 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दोस्तों,

भारत विभिन्नताओ का देश है यहाँ करीब -२ हर राज्य की भाषा एव संकृति अलग-२ है फिर भी भारत एक है ! आमतौर से हम देखते जब भी किसी भी राज्य के लोग देश की किसी भी हिस्से भी मिलते है वे अपनी ही भाषा में बात करने में comfortable करते है !

परन्तु उत्तराखंडईयो मे यह कम देखा गया है लोग अपनी भाषा जानने के बाद भी आपस अपनी भाषा मे बात नहीं करते है !

यहाँ तक को उत्तराखंडी कार्यकर्म में भी अपनी भाषा नहीं बोली जाती है ! हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है हमे इसका सम्मान करना चाहिए !परन्तु क्षेत्रीय भाषाओ का भी अपना महत्व है !

उत्तराखंड में देखा गया वोट मागने के लिए जो राजनीतिक पार्टियों के नेता भी अपनी भाषा में भाषण नहीं देते है !

आएये इस विषय पर चर्चा करे !

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एम् एस मेहता

umeshbani

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इसका एक कारण यह  भी है मेहता जी की हमारे यहाँ लगभग सभी लोग हिंदी भी जानते है  बाकि कुछ प्रदेश जहाँ लोग हिंदी समझते भी नहीं है ................ रही बात सरमाने की ऐसा मुझे नहीं लगता कि ऐसा कुछ है ...... .... हिंदी भी उत्तरांचल कि  मुख्य भाषा है जिसका प्रयोग हमारे यहाँ सभी सरकारी संस्थानों    में  होता है ........ कही भी कुमाउनी या गढ़वाली भाषा में कुछ भाई नहीं लिका है जेसा कि महाराष्ट्र ,गुजरात , पंजाब या साउथ के राज्यों में ......... जहाँ सरकार संस्थान में उस भाषा को हिंदी के साथ उप भाषा के रूप में   प्रयोग किया जाता है .......... एक पञ्जाबी CM,DSP jese log panjabi  भी  मे इंटरव्यू देता है .........     अगर हमारे उत्तरांचल में भी ऐसा हो तो केसी को भी सरम जेसा आपने लिका है नहीं होगी हमारे यहाँ भी ऐसा हो तो शायद सरम वरम नहीं होगी ...........




दोस्तों,

भारत विभिन्नताओ का देश है यहाँ करीब -२ हर राज्य की भाषा एव संकृति अलग-२ है फिर भी भारत एक है ! आमतौर से हम देखते जब भी किसी भी राज्य के लोग देश की किसी भी हिस्से भी मिलते है वे अपनी ही भाषा में बात करने में comfortable करते है !

परन्तु उत्तराखंडईयो मे यह कम देखा गया है लोग अपनी भाषा जानने के बाद भी आपस अपनी भाषा मे बात नहीं करते है !

यहाँ तक को उत्तराखंडी कार्यकर्म में भी अपनी भाषा नहीं बोली जाती है ! हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है हमे इसका सम्मान करना चाहिए !परन्तु क्षेत्रीय भाषाओ का भी अपना महत्व है !

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एम् एस मेहता


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Umesh ji,

Issue is not of script. There many languages in India which do not have script like ours but people whenever they meet, very use speak in their own language.

For example : whenever a Punjabi fellow meet a Punjabi, he speaks in Pujabi only. Similaly, south indian, Bengali etc.

Most astonishing, several times during the uttarkahndi programme anchor speaks in hindi wherewas programe run in garwali & kumoani.



इसका एक कारण यह  भी है मेहता जी की हमारे यहाँ लगभग सभी लोग हिंदी भी जानते है  बाकि कुछ प्रदेश जहाँ लोग हिंदी समझते भी नहीं है ................ रही बात सरमाने की ऐसा मुझे नहीं लगता कि ऐसा कुछ है ...... .... हिंदी भी उत्तरांचल कि  मुख्य भाषा है जिसका प्रयोग हमारे यहाँ सभी सरकारी संस्थानों    में  होता है ........ कही भी कुमाउनी या गढ़वाली भाषा में कुछ भाई नहीं लिका है जेसा कि महाराष्ट्र ,गुजरात , पंजाब या साउथ के राज्यों में ......... जहाँ सरकार संस्थान में उस भाषा को हिंदी के साथ उप भाषा के रूप में   प्रयोग किया जाता है .......... एक पञ्जाबी CM,DSP jese log panjabi  भी  मे इंटरव्यू देता है .........     अगर हमारे उत्तरांचल में भी ऐसा हो तो केसी को भी सरम जेसा आपने लिका है नहीं होगी हमारे यहाँ भी ऐसा हो तो शायद सरम वरम नहीं होगी ...........




दोस्तों,

भारत विभिन्नताओ का देश है यहाँ करीब -२ हर राज्य की भाषा एव संकृति अलग-२ है फिर भी भारत एक है ! आमतौर से हम देखते जब भी किसी भी राज्य के लोग देश की किसी भी हिस्से भी मिलते है वे अपनी ही भाषा में बात करने में comfortable करते है !

परन्तु उत्तराखंडईयो मे यह कम देखा गया है लोग अपनी भाषा जानने के बाद भी आपस अपनी भाषा मे बात नहीं करते है !

यहाँ तक को उत्तराखंडी कार्यकर्म में भी अपनी भाषा नहीं बोली जाती है ! हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है हमे इसका सम्मान करना चाहिए !परन्तु क्षेत्रीय भाषाओ का भी अपना महत्व है !

उत्तराखंड में देखा गया वोट मागने के लिए जो राजनीतिक पार्टियों के नेता भी अपनी भाषा में भाषण नहीं देते है !

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एम् एस मेहता


अरुण भंडारी / Arun Bhandari

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Mera Vichar.....

Ye sach hai ki pata nahi ham logo mein se kuch logo ko apni bhasa mein baat karna aacha nahi lagta..........Mehta ji ki baat bhi sahi hai ki programs mein bhi anchor hindi mein hi bolte hai......Mein kud in cheezo k khilaf hu..........Mein ne apni bhasa k jitne bhi program attend kiye hai usmein mera hamesh yahi mat raha hai ki anchor ko bhi apni bhasa mein hi bolna chaiye..........per esa koi nahi karta.......esa kyo hota hai, esa ka mujhe pata nahi????????

Sabhi log apni sanskiri ko bachane mein lage hai esa bolte hai sabhi per.....apni bhasa mein hi program ya bolte hi nahi jab ki ye to sabse pahli or mukhye cheez hai........

Mujhe yaad hai ki jab CU walo ka Gaharwal Bhawan mein program ho raha tha tab Mr. Heera Singh Rana Ji stage per aaye the or ve jo bhi bole hamari bhasa mein hi bole to mere sath jo bhi log baithe the mein ne unko kaha ki ab lag raha hai ki ham kisi pahadi program mein aaye hai ......

 

अरुण भंडारी / Arun Bhandari

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Es liye hame sabse pahle apni bhasa ka aage badana chahiye.....Mujhe esa lagta hai...

umeshbani

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आप सही कह रहे है  मगर उत्तरांचल में हर १० km में भाषा में बहुत अंतर है शायद मे अपने गाँव से १०-२० km  दूर की भाषा नहीं समझ पाओं ........ सही बताओं तो मुझे गढ़वाली भाषा भी समझ मे नहीं आती ............ तो जब दो उत्तराखंडी एक गह्र्वाली और एक कुमाउनी भाई आपस मे बात करेंगे तो शायद निशित्ति ही   माध्यम हिंदी ही होगा ................ 
हाँ ये अलग बात है की अगर एक कुमाउनी दुसरे कुमाउनी से हिंदी मे बात करता है तो कारण यही होता है जो मेने ऊपर दिया  है हर कुछ दुरी के बाद भाषा मे अन्तर है ......................रही बात किसी  उत्तराखंडी  कार्यकर्म की तो आप समझ  सकते है वही भाषा मे अंतर ..................या तो हर उत्तराखंडी दोनों भाषाओं का ज्ञानी हो ......... जो शायद सभी लोगों के लिया संभव नहीं ....
नहीं तो मैने अकसर देखा हे की एक  कुमाउनी दुसरे कुमाउनी से  कुमाउनी मे ही बात करता है ........... हिंदी मिक्स करने का भी यही कारण है ..................




Umesh ji,

Issue is not of script. There many languages in India which do not have script like ours but people whenever they meet, very use speak in their own language.

For example : whenever a Punjabi fellow meet a Punjabi, he speaks in Pujabi only. Similaly, south indian, Bengali etc.

Most astonishing, several times during the uttarkahndi programme anchor speaks in hindi wherewas programe run in garwali & kumoani.




एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Most importantly, during the election also. These politician come for vote, they never deliver their speech in any of the uttarakhandi languages in their respective constituecies.

 

अरुण भंडारी / Arun Bhandari

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उमेश जी,

में आप की बातो से सहमत हु पर शायद आप ने कभी ओरो की भाषा के बारे में जाना नहीं है, जेसा हमारे यहाँ होता है वेसा वहा भी होता है मतलब की १०-२० कम में भाषा में थोडा सा अंतर, पर मूल रूप वही रहता है

आप ने खुद भी देखा होगा की चाहे हम लोग मासी के हो या देघाट के पर भाषा तो समझ में आ ही जाती है.....शब्दों का थोडा बहुत हेर फेर होता है बस.....

इसलिए परेशानी ये नहीं है, परेशानी केवल अपनी भाषा में बात करने की है.......

Pratap Mehta

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Dear M. S. Mehta Ji

Myor bichar or anubhav  anusaar yesh ke baat nahati biradro, myor company mai 70% log pahari (Uttrakhanddi) hai, hum log sab pahari ya gharwali bhassa (language) mai baat kanu halaki ek dusrko bhassa samjan mi paresani jarur hunch par bulanu chahe phir humar samne humar sr. officer kilegna ho koi ne sarman (nobody shy)

Pratap Mehta

Mukesh Joshi

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उमेश दा,
 अगर आप तै कोई भी एक भाषा (गढ़वाली या कुमाउनी) की   बढ़िया जानकारी च आप निसंदेह दूसरी भाषा समझ
सकदा,
कुछ एक शब्दों म और उचारण म  अंतर हवे सकद
लेकिन कुछ लोग अपनी भाषा मा बात करना मा संकोच करदी जबकि भाषा हमारी पछ्याण च और हमारी पछ्याण
बहुत बढ़िया च .

 

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