Author Topic: Joins us to Help Uttarakhandi Landslide Victims On 02 & 03 Oct 2010  (Read 16537 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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Re: Joins us to Help Uttarakhandi Landslide Victims On 02 & 03 Oct 2010
« Reply #50 on: October 03, 2010, 07:27:32 AM »
दोस्तों आपके इस महान कार्य के लिए देवभूमि उत्तराखंड के दैवीय आपदाओं से झूझते हुए लोगों की दुवाएं मिलेगी, और इस महान काम केलिए आप सभी बधाई के पात्र है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रसिद्ध बिल्डर श्री एम् एन भट्ट जी ने  Rs 25,000/- उत्तराखंड आपदा प्रभावितों के लिए दान किया!                दोस्तों,     आपदा के इस घडी में उत्तराखंड मूल के प्रसिद्ध बिल्डर श्री माधवा नंदा भट्ट जी ने उत्तराखंड के आपदा पीडितो के लिए Rs 25,000/-  दान दिया है!     भट्ट जी का इससे पहले भी सामाजिक कार्यो में समय -२ में उत्कर्ष्ट योगदान रहा है!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: Joins us to Help Uttarakhandi Landslide Victims On 02 & 03 Oct 2010
« Reply #52 on: October 05, 2010, 07:58:49 AM »

सुनाली गांव में बेघर हो गए 35 परिवार


बड़कोट, जागरण कार्यालय: तहसील बड़कोट के सुनाली गांव पर भारी बारिश से हुई अतिवृष्टि का कहर इस कदर टूटा है कि गांव के बेघर हुए 35 परिवार अन्य ग्रामीणों के यहां शरण लिये हुए हैं। जबकि शासन-प्रशासन की ओर से राहत के नाम पर इन परिवारों को आज तक मात्र दो-तीन तिरपाल ही नसीब हो पाये हैं।

पीड़ितों की समस्यायें सुनने गांव में पहुंचे यमुनोत्री के पूर्व विधायक ने प्रीतम सिंह पंवार ने कहा कि गांव का जियोलाजिकल सर्वे की मांग शासन से करेंगे। बड़कोट तहसील अंतर्गत हुई अतिवृष्टि ने सुनाली गांव के सुरेपाल सिंह, अंबिका, दर्मियान, खेलणु लाल के आवासीय भवन जमींदोह हुए हैं और दर्जनों भवन दरारें आने से जर्जर हो गये जो रहने लायक नहीं है। इन भवन स्वामियों में घर से बेघर हुए 35 परिवारों ने गांव में ही अन्य लोगों के यहां शरण ली हुई है। उन घरों में अब एक ही परिवार के साथ चार से पांच परिवार रहने के सिवा और कोई चारा भी नहीं है। ग्राम प्रधान शकुंतला देवी, सुरेपाल सिंह, दर्मियान सिंह आदि का कहना है कि ग्रामीण पटवारियों की रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं हैं। क्योंकि गांव में जिस भवन में एक से अधिक परिवार रह रहे हैं उन्हें पटवारी द्वारा एक ही परिवार दिखाया जा रहा है, जबकि बेघर दूसरे परिवार भी हुए हैं। उनका कहना है कि शासन-प्रशासन की ओर से अभी तक पीड़ितों को राहत के नाम पर मात्र दो-तीन तिरपाल दिये गये हैं। बेघर हुए परिवारों सहित ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र ही पीड़ितों को उचित मुआवजे की कार्रवाई अमल में नहीं लाई जाती है तो वे तहसील में धरना देने के साथ ही भूख हड़ताल करने को बाध्य होंगे।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6782435.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: Joins us to Help Uttarakhandi Landslide Victims On 02 & 03 Oct 2010
« Reply #53 on: October 07, 2010, 08:16:00 AM »

For them you should come forward :



कहां जायें क्वीरीजीमिया के पीडि़त


जागरण कार्यालय, मुनस्यारी: आपदा प्रभावित क्वीरीजीमिया के ग्रामीणों का नसीब उनसे रूठ गया है। पहले आपदा ने पुश्तैनी गांव को उजाड़ दिया। प्रदेश के मुखिया के कहने के बाद ग्रामीण आशियाने के लिए जंगलों के मध्य पहुंच रहे हैं तो वन विभाग उजड़े ग्रामीणों को डंडा दिखाकर भगा रहा है। क्वीरीजीमिया के अभागे ग्रामीणों को वन विभाग ने दूसरी बार भी भगा दिया। अब ग्रामीण कहां जायें, इसे लेकर भंवर में फंसे हैं।

तहसील का क्वीरीजीमिया गांव बीते दिनों की आपदा में नष्ट हो गया था। गांव के 36 परिवार बेघर हो गये। ग्रामीणों के पास न तो खेत रहे और न ही घर। मुख्यमंत्री ने गांव का दौरा कर ग्रामीणों को सुरक्षित स्थान पर बसने को कहा। उन्होंने प्रशासन से निकट की वन भूमि पर प्रस्ताव तैयार कर ग्रामीणों को बसाने की प्रक्रिया शुरू करने को कहा। सरकारी प्रक्रिया कब शुरू होगी, कह पाना कठिन है।

क्वीरीजीमिया के ग्रामीण बीते दिनों तहसील मुख्यालय के निकट बलाती फार्म के पास पहुंचे और वहां खाली पड़ी भूमि पर टेंट लगाये। टेंट लगाये 24 घंटे बाद ही वन विभाग ने उन्हें हटा दिया। इससे ग्रामीण पुन: सड़क पर आ गये। एक बार फिर ग्रामीणों ने इसी स्थान पर टेंट लगाये। टेंट लगाने के बाद फिर वन विभाग के अधिकारी मौके पर पहुंचे। वन अधिकारियों द्वारा ग्रामीणों को पुन: उक्त स्थान छोड़ने को कहा गया। उसके बाद ग्राम प्रधान देवेन्द्र सिंह देवा ने उप जिलाधिकारी से भेंट कर वन भूमि का प्रस्ताव शीघ्र बना कर शासन को भेजने की मांग की। साथ ही कहा कि मुनस्यारी में ठंड शुरू हो चुकी है। आवास विहीन हो चुके ग्रामीणों को शीघ्र छत नहीं मिली तो वे बेमौत मारे जायेंगे।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6790834.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 उत्तराखंड में क्यों हार गया पहाड़          अक्टूबर को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा कांड की बरसी थी। यह हादसा उत्तराखंड आंदोलन के लिए लड़ी गई लड़ाई का दुर्भाग्यपूर्ण दिन था। इस दिन राज्य आंदोलनकारी बड़ी संख्या में पुलिस बर्बरता के शिकार हुए। महिलाएं बलात्कार की शिकार हुईं। वे घाव लोगों के मन में अभी भी हरे हैं। सैकड़ों गवाह मौजूद हैं, लेकिन सजा अभी तक किसी को नहीं हुई।
लोग कहने लगे हैं कि राज्य जरूर मिला, लेकिन बदला कुछ नहीं। पहाड़ यूपी के जमाने में कालापानी था और अब भी वैसा ही है। यहां के स्कूलों में उस जमाने में भी शिक्षक नहीं होते थे। हालात आज भी बदले नहीं हैं। अस्पतालों में डॉक्टर तब भी नहीं जाते थे। अब भी नहीं जा रहे हैं। पहाड़ के आम आदमी के संघर्षो में कोई परिवर्तन नहीं दिखाई दिया।
तब एक पर्वतीय विकास विभाग था और उसके पर्यवेक्षण के लिए प्राय: यहीं के विधायक मंत्री होते थे। अब पूरी सरकार अपनी है। विधायकों की संख्या 70 हो गई है। दर्जन भर मंत्री और अफसरों की फौज है। राज्य गठन को दस वर्ष हो चुके हैं। फिर पहाड़ी राज्य का मकसद क्यों पूरा नहीं हुआ। इसमें आने वाली बाधाएं दूर क्यों नहीं हुईं। चमोली, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी अभी भी यह सवाल पूछते हैं कि राज्य गठन का हमें क्या फायदा हुआ?

फायदा तो हरिद्वार, रुद्रपुर और कुछ हद तक देहरादून को हुआ। कई बड़े कारखाने इन्हीं जिलों में लगे। यह और बात है कि स्थानीय लोगों को रोजगार का दिवास्वप्न दिखाकर कारखाना स्थापित करने वाले उद्योगपतियों ने वायदा नहीं निभाया।
इन तीन जिलों का विकास हुआ, इस पर किसी को परेशानी नहीं है। सवाल यह है कि पहाड़ी जिलों तक विकास की किरणें क्यों नहीं पहुंचीं। बातचीत में कई वरिष्ठ आंदोलनकारी कहते हैं- हमें पता था कि चमोली में कोई उद्योगपति कारखाना नहीं लगाएगा क्योंकि वहाँ अलग तरह की दुश्वारियां हैं, लेकिन यह उम्मीद जरूर थी कि जब अपने लोग सरकार में होंगे, फैसले करेंगे तो पहाड़ों का पलायन रोकने के लिए कुछ ठोस प्रयत्न जरूर करेंगे।

यह भी माना गया था कि अपना राज्य होने पर जनता के सामने मामूली चीजों की दिक्कतें नहीं आएंगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो पाया। कई वरिष्ठ आंदोलनकारियों को इस बात का मलाल भी है कि राज्य बनने के बाद से ही आंदोलनकारी नौकरी, पेंशन के लिए मंत्रियों, विधायकों के चक्कर लगा रहे हैं। वहीं शमशेर सिंह बिष्ट, काशी सिंह ऐरी, गिर्दा, राजीव लोचन शाह सरीखे दर्जनों लोगों ने कभी आंदोलनकारी का तमगा हासिल करने के लिए आवेदन भी नहीं किया।
अब एक बार फिर से यह नवोदित राज्य पहाड़-मैदान की पुरानी परिपाटी की ओर तेजी से बढ़ रहा है। संभव है कि 2012 के शुरुआती दिनों में होने वाले विधानसभा चुनाव में इसका असर दिखने लगे। इस राज्य में विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 70 है। इनमें से 36 सीटें मैदानी और 34 पहाड़ी जिलों में हैं।
शायद इसी अंकगणित के सहारे कुछ लोग सहारनपुर, बिजनौर के कुछ हिस्सों को यूपी से काटकर उत्तराखंड में मिलाने की बात कर रहे हैं, जिससे वे फिर से पहाड़ बनाम मैदान की लड़ाई को तेज कर अपना राजनीतिक हित साध सकें। अगर पहाड़ मैदान की यह लड़ाई तेज होती है तो कुमाऊं-गढ़वाल का भेदभाव मिटाने की चुनौती पहाड़ के लोगों के सामने होगी। ऐसे में जीत किसी की हो सकती है, लेकिन पहाड़ का तो नुकसान तय है।
दरअसल, यहां की लीडरशिप के जागने का वक्त आ गया है। पड़ोसी हिमाचल प्रदेश, पूर्वोत्तर राज्यों से सीखना होगा। हमें राज्य की जनता को उसके मूल निवास पर रोकने के उपाय करने होंगे। विकास का जमीनी खाका खींचना होगा। उन्हें आजीविका के साधन देने होंगे। यह कुटीर उद्योगों के जरिए संभव होगा। उन्हें चिकित्सा सुविधा वहीं उपलब्ध करानी होगी। पढ़ाने के लिए योग्य शिक्षक देने होंगे। इसके लिए जरूरत पड़ने पर शिक्षकों-डॉक्टरों की भर्ती ज्यादा पैसे देकर, खासतौर से पहाड़ के जिलों के लिए भी करनी पड़ी तो भी कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए।
राज्य में गोचर, चिन्यालीसौड़ (उत्तरकाशी) और पिथौरागढ़ में हवाई पट्टियां यूपी के जमाने से हैं। इनके जरिए हमें वैकल्पिक परिवहन इंतजाम करने होंगे। इसका लाभ आमजान उठा पाएं, इसके लिए जरूरी है कि उन्हें किराए में छूट भी दी जाए।
अगर शिक्षा, स्वास्थ्य, स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर के साथ ही परिवहन की यह सुविधा मिल जाए तो इसमें कोई दो राय नहीं कि पहाड़ और यहां के लोगों को सुखद अहसास होगा। इसके लिए सभी दलों को एकजुट होना पड़ेगा। एक-दूसरे पर व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोपों से ऊपर उठकर पहाड़ के हितों की बात करनी होगी। अगर ऐसा हो पाए तो रामपुर तिराहा के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

लेखक देहरादून में हिंदुस्तान के स्थानीय संपादक हैं।
 
(Source : http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/57-62-140641.html)
 
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भारी नुकसान से जूझ रहे उत्तराखंड ने  मांगी 21,200 करोड़ की राहत


नई   दिल्ली | बाढ़ व अन्य प्राकृतिक आपदाओं से हुए भारी नुकसान से जूझ रहे   उत्तराखंड ने केंद्र से आपदा राहत व पुनर्वास के लिए 21,200 करोड़ रुपये के   राहत पैकेज की मांग की है। मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने बुधवार   को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व गृह मंत्री पी चिदंबरम से मुलाकात कर   उन्हें राज्य में प्राकृतिक आपदा से हुए नुकसान की जानकारी दी। निशंक ने   कहा कि केंद्रीय राहत निधि के मौजूदा मानक बहुत कम व अव्यवहारिक हैं।   पर्वतीय क्षेत्र की विषम परिस्थितियों को देखते हुए इन मानकों में बदलाव   किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि भीषण बाढ़ व भूस्खलन ने सबसे   ज्यादा तबाही मचाई है। पर्वतीय क्षेत्रों में पेयजल, बिजली, सिंचाई व सड़क   क्षेत्रों में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। प्रदेश की ढांचागत अवसंरचना को   हुए भारी नुकसान के बाद अब उसे फिर से खड़ा करने की जरूरत है। उन्होंने   आपदा के दौरान केंद्र की तरफ से दी गई 500 करोड़ रुपये की तात्कालिक सहायता   राशि का आभार माना, लेकिन अब स्थिति को सामान्य करने के लिए केंद्र से   बड़ी धनराशि की मांग की। निशंक ने कहा कि अभी भी नुकसान का पूर्ण आकलन नहीं   हो सका है, फिर भी सामान्य आकलन के अनुसार प्रदेश को लगभग 21,200 करोड़   रुपये का नुकसान हुआ है। उन्होंने खतरनाक स्थिति में पहुंच चुके प्रदेश के   250 गांवों के पुनर्वास के लिए वनभूमि उपलब्ध कराए जाने की भी मांग की है।   उन्होंने प्रधानमंत्री को यह भी बताया कि नुकसान का जायजा लेने गए केंद्रीय   दल ने सभी 13 जिलों का दौरा किया और वह भी तबाही की भयावहता से   आश्चर्यचकित रहा। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने टिहरी बांध परियोजना में उत्तर   प्रदेश को मिली 25 फीसदी हिस्सेदारी भी उत्तराखंड को सौंपने की मांग की   है। उन्होंने कहा कि राज्य पुनर्गठन कानून के मुताबिक जिस राज्य में   परियोजना का मुख्यालय व संपत्ति होगी, स्वामित्व भी उसी का रहेगा।   प्रधानमंत्री ने निशंक को केंद्र सरकार की तरफ से पूर्ण सहयोग का आश्वासन   दिया है।                                                                                             यह खबर निम्न श्रेणियों पर भी है:                            राष्ट्रीय                                    
लोगों की प्रतिक्रिया

http://www.pressnote.in/national-news_96205.html

sanjupahari

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Re: Joins us to Help Uttarakhandi Landslide Victims On 02 & 03 Oct 2010
« Reply #56 on: October 12, 2010, 11:27:17 PM »
Message from Ms. Saroj Jaiswal :"Hi frenz i hv send my contribution Rs 2500/ through cheque no.?85105 dated 4th oct raiganj uttardinajpur w.B branch....hope it wl reach to needy struck by natural calamity.....kindly intimate me after receiving"

Ms. Jaiswal is principal in a leading school , (website www.durgapurpublicschool.org) and offers job opportunity for Uttarakhandi people....interested applicants may contact her at jaiswal.saroj@rediffmail.com

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Re: Joins us to Help Uttarakhandi Landslide Victims On 02 & 03 Oct 2010
« Reply #57 on: October 27, 2010, 02:23:08 PM »
आपदा पीड़ितों को बांटी रसद

मुनस्यारी (पिथौरागढ़)। उत्तराखंड क्रांति दल ने मंगलवार को यहां आपदा से प्रभावित 58 परिवारों को खाद्यान्न तथा कंबलों का वितरण किया। उक्रांद के प्रवासी संगठनों ने यह सामग्री उपलब्ध कराई और हिलट्रान के माध्यम से यह सामग्री मुनस्यारी तक पहुंचाने की व्यवस्था की गई। उक्रांद के वरिष्ठ नेता काशी सिंह ऐरी ने प्रभावितों को राहत सामग्री देते हुए कहा कि संकट की इस घड़ी में उक्रांद लोगों की पूरी मदद करने के लिए तैयार है।
क्वीरीजिमिया के 36 परिवार राहत सामग्री लेने पहुंचे थे। इसके अलावा गोल्फा, सुरिंग, भैंसकोट, पापड़ी, सेबिला गांव के लोगों ने भी यह सामग्री प्राप्त की। ऐरी ने बताया कि मुंबई में रहने वाले माधावानंद भट्ट ने राहत सामग्री के लिए 25000 रुपये की राशि उपलब्ध कराई थी। इसके अलावा देहरादून की संस्था सिटीजन फार ग्रीन दून ने भी मदद की थी। देहरादून से यह सामग्री मुनस्यारी पहुंचाने के लिए हिलट्रान ने ट्रक की व्यवस्था की। प्रभावितों को आटा, चावल, दाल, तेल, दूध, चीनी, कंबल आदि सामग्री प्रदान की गई।
इस मौके पर उपजिलाधिकारी जेएस राठौर, ब्लाक प्रमुख पार्वती बाछमी, बसंत धामी, लोक बहादुर जंगपांगी, गणेश उपे्रती, विनोद सत्याल, राजेंद्र बृजवाल, क्वीरीजिमिया के प्रधान देवेंद्र देवा समेत तमाम लोग मौजूद थे।
मदद

http://epaper.amarujala.com/svww_index.php

पंकज सिंह महर

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Re: Joins us to Help Uttarakhandi Landslide Victims On 02 & 03 Oct 2010
« Reply #58 on: October 27, 2010, 05:28:09 PM »
आपदा पीड़ितों को बांटी रसद

मुनस्यारी (पिथौरागढ़)। उत्तराखंड क्रांति दल ने मंगलवार को यहां आपदा से प्रभावित 58 परिवारों को खाद्यान्न तथा कंबलों का वितरण किया। उक्रांद के प्रवासी संगठनों ने यह सामग्री उपलब्ध कराई और हिलट्रान के माध्यम से यह सामग्री मुनस्यारी तक पहुंचाने की व्यवस्था की गई। उक्रांद के वरिष्ठ नेता काशी सिंह ऐरी ने प्रभावितों को राहत सामग्री देते हुए कहा कि संकट की इस घड़ी में उक्रांद लोगों की पूरी मदद करने के लिए तैयार है।
क्वीरीजिमिया के 36 परिवार राहत सामग्री लेने पहुंचे थे। इसके अलावा गोल्फा, सुरिंग, भैंसकोट, पापड़ी, सेबिला गांव के लोगों ने भी यह सामग्री प्राप्त की। ऐरी ने बताया कि मुंबई में रहने वाले माधावानंद भट्ट ने राहत सामग्री के लिए 25000 रुपये की राशि उपलब्ध कराई थी। इसके अलावा देहरादून की संस्था सिटीजन फार ग्रीन दून ने भी मदद की थी। देहरादून से यह सामग्री मुनस्यारी पहुंचाने के लिए हिलट्रान ने ट्रक की व्यवस्था की। प्रभावितों को आटा, चावल, दाल, तेल, दूध, चीनी, कंबल आदि सामग्री प्रदान की गई।
इस मौके पर उपजिलाधिकारी जेएस राठौर, ब्लाक प्रमुख पार्वती बाछमी, बसंत धामी, लोक बहादुर जंगपांगी, गणेश उपे्रती, विनोद सत्याल, राजेंद्र बृजवाल, क्वीरीजिमिया के प्रधान देवेंद्र देवा समेत तमाम लोग मौजूद थे।
मदद

http://epaper.amarujala.com/svww_index.php

मेरा पहाड़ ने आपदा राहत के तृतीय चरण में यह कार्य किया, श्री माधवानन्द भट्ट जी ने मुन्स्यारी में राहत कार्य के लिये हमारी संस्था को २५००० रु० प्रदान किये थे तथा हमारे सहयोगी डा० नितिन पाण्डे जी की संस्था सिटीजन फार ग्रीन दून ने भी काफी राहत सामग्री इकट्ठा की थी। इस सहायता सामग्री को मुन्स्यारी पहुंचाने के लिये उक्रांद के वरिष्ठ नेता और हिल्ट्रान अध्यक्ष श्री काशी सिंह ऐरी जी ने पहल की और इस सामान को मुन्स्यारी पहुंचाने का जिम्मा लिया।

इस पुनीत कार्य में सहयोग के लिये म्यर पहाड़ श्री माधवानन्द भट्ट, डा० नितिन पाण्डे एवं श्री काशी सिंह ऐरी जी को हार्दिक धन्यवाद अदा करता है।

पंकज सिंह महर

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Re: Joins us to Help Uttarakhandi Landslide Victims On 02 & 03 Oct 2010
« Reply #59 on: October 28, 2010, 10:27:34 AM »
 
 
Uttarakhand Kranti Dal leaders distribute relief material among victims of natural disaster in Pitthoragarh on Wednesday
 
 
 
  Our Correspondent  Pitthoragarh, October 27
UKD leader Kasi Singh Airy today distributed 10 quintals of relief material among 52 families of Munsiyari subdivision who are living in relief camps. They have been living in these camps since they were shifted from their calamity-prone village last month. “The material included tinned milk, clothes, oil, sugar and blankets, which was received from the Citizens for Green Doon, an NGO of Dehradun, and Madhavanand Bhatt, an Uttarakhandi living in Mumbai,” said Airy.   The transport of the material was managed by Hilton while UKD workers helped in the distribution of material among the 56 families of Golfa, Suring, Bhanskot, Papri and all 36 families of Qurie-Jimia.   The UKD leader said the main problem of the villagers living in these relief camps is of getting a permanent shelter, as the government is providing only Rs 50,000 which is not sufficient to make a new house. “The 12 families of Qurie- Jimia whose houses were damaged partially in the calamity and are not fit for living have not been included in the list of those who need houses,” said Airy.
 
source-http://www.tribuneindia.com/2010/20101028/dun.htm#2

 

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