Mera Pahad > MeraPahad/Apna Uttarakhand: An introduction - मेरा पहाड़/अपना उत्तराखण्ड : एक परिचय

Save Himalaya, Inhabited himalaya Compaign By MeraPahad

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पंकज सिंह महर:
हिमालय बचाओ, हिमालय बसाओ अभियान
 
साथियो,
उत्तराखण्ड के क्रांतिवीर स्व० ऋषिबल्लभ सुन्दरियाल जी ने 1962 के बाद उक्त नारा दिया था, उन्होंने सबसे पहले दुनिया को चेताया था कि अंधे विकास की दौड़ में जिस प्रकार से उच्च हिमालयी क्षेत्र के मूल निवासियों के हक-हकूकों के साथ छेड़छाड़ की जा रही है तथा जिस कारण उस क्षेत्र के लोग पलायन कर रहे हैं। वह भविष्य के लिये खतरनाक साबित होगा, क्योंकि इस क्षेत्र के मूल निवासी ही इस क्षेत्र की हर संरचना से वाकिफ होते हैं और यदि हिमालय को बचाना है तो पहले उस क्षेत्र के मूल निवासियों को वहां पर बसाना होगा। आज हिमालय संरक्षण पर बडे-बड़े सेमिनार आयोजित होते हैं, जिसमें ग्लोबल वार्मिंग जैसे जटिल और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे पर बहस होती हैं, लेकिन कुछ सार्थक होता नजर नहीं आता। इसके पीछे मुख्य कारण और कारक यही है कि हिमालय को भीतर से जानने वालों की उपेक्षा। यदि हिमालय को बचाना है तो पहले उसे बसाना जरुरी है।
 
स्व० सुन्दरियाल जी के इस दूरगामी और सारगर्भित विचार के प्रेरित होकर क्रियेटिव उत्तराखण्ड-म्यर पहाड़ द्वारा "हिमालय बचाओ-हिमालय बसाओ" अभियान शुरु किया है, जिसके पहले चरण में जगह-जगह सेमिनार आयोजित कर लोगों को इस विषय के मूल तत्व से परिचित कराने की पहल की जा रही है।
 
मेरा सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया इस विषय पर अपनी बहुमूल्य राय दें, क्योंकि हमारा उत्तराखण्ड मध्य हिमालय का क्षेत्र है, जो सबसे नया है और अभी विकसित हो ही रहा है। इसे बचाने और बसाने की बहुत जरुरत है और इसके लिये यदि अभी से प्रयास शुरु हों तो भविष्य में एक समृद्ध हिमालय बच और बन सकेगा।

हेम पन्त:
ऋषिबल्लभ सुन्दरियाल जी का "हिमालय बचाओ, हिमालय बसाओ" नारा वर्तमान समय में ज्यादा प्रासंगिक हो गया है. सीमान्त क्षेत्र में चीन की बढती गतिविधियां, बेतहाशा बनाये जा रहे बांध और बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों में हिमालय के निचले क्षेत्रों में लोगों की बस्तियां बसाया जाना और पलायन का शिकार हो रहे लोगों को स्थाई रूप से उनके मूलस्थान पर रोकना बहुत जरूरी हो गया है.

हमारी टीम ("क्रिएटिव उत्तराखण्ड - म्यर पहाड़" और "मेरा पहाड़ नेटवर्क"), "श्री ऋषिबल्लभ सुन्दरियाल विचार मंच", "जनपक्ष आजकल पत्रिका", "म्यर उत्तराखण्ड" तथा अन्य संगठनों के साथ मिलकर "हिमालय बचाओ, हिमालय बसाओ" अभियान के प्रति लोगों को के  बीच जनजागरण चला रही हैं. इस श्रंखला में दिल्ली, चौबट्टाखाल (पौड़ी), टिहरी तथा द्वाराहाट में कई गोष्टियां आयोजित की गई हैं.

पंकज सिंह महर:
इस वर्ष से ९ सितम्बर को हिमालय दिवस में मनाये जाने का संकल्प लिया गया है, जो कि बहुत सराहनीय है। मेरा पहाड़ इस संकल्प को अपना पूरा समर्थन देता है।

उत्तराखण्ड में हिमालय दो भागो में बंटा है-
१- महान हिमालय- यह भू-भाग हमेशा बर्फ से आच्छादित रहता है, इसमें सबसे ऊंची चोटी नन्दा देवी है, जिसकी ऊंचाई ७८१७ मीटर है। इसके अलावा कामेत, गंगोत्री, चौखम्बा, बन्दरपूँछ, केदारनाथ, बद्रीनाथ, त्रिशूल बद्रीनाथ शिखर है जो ६००० मीटर से ऊँचे है। फूलों की घाटी तथा कई बुग्याल भी इसमें शामिल हैं। इस भू-भाग में केदारनाथ, गंगोत्री आदि प्रमुख ग्लेशियर है जो कि गंगोत्री हिमनद, यमनोत्री हिमनद, गंगा-यमुना आदि नदियों के उद्गम स्थल है।

२- मध्य हिमालय- महान हिमालय के दक्षिण में मध्य-हिमालय-भू-भाग फैला हुआ है जो कि ७५ कि.मी. चौड़ी है। इस भू-भाग में कुमाऊँ के अन्तर्गत अल्मोड़ा, गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल तथा नैनीताल का उत्तरी भाग भी सम्मिलित है जो कि ३००० से ५००० मी. तक के भू-भाग में फैले हुए है।
 
इन हिमालयी क्षेत्रों के मूल निवासी शौका, भोटिया और मार्छा लोग हैं, जो मुख्य रुप से पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी के सीमान्त में चीन सीमा से लगे क्षेत्र में निवास करते हैं। लेकिन कुछ समय से यह देखने में आया है कि इस क्षेत्र में स्थाई रुप से रहने वाले लोग आजीविका की तलाश और इन क्षेत्रों में अवस्थापना सुविधायें न होने के कारण में मैदानी या पर्वतीय क्षेत्र के छोटे शहरों में वास करना ज्यादा पसन्द करने लगे हैं। जिस कारण सीमान्त के गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं, जो हिमालय बचाने के लिये ही नहीं वरन सामरिक महत्व से भी चिन्तनीय है। क्योंकि इनर लाइन के ऊपर रहने वाले लोग अवैतनिक प्रहरी की भी भूमिका निभाते रहे हैं। इसलिये जरुरी है कि हिमालय के पास रहने वाले लोगों को वहां के संसाधनों पर आधारित रोजगार लगाकर दिये जांय, वहां पर शिक्षा, स्वास्थ्य और संचार की अच्छी व्यवस्था हो, अवस्थापना सुविधा बढ़ाई जाय। अवैज्ञानिक और अवांछित गतिविधियों (शौकिया पर्वतारोहण आदि, जिससे हिमालय में कचरा फैल रहा है) पर पूर्ण रोक लगाई जाय। वहां के लोगों को मुख्य धारा में लाकर उन्हें वहीं पर आत्मनिर्भरता के साथ बसाया जाय, ताकि हिमालय भी बच सके।

dayal pandey/ दयाल पाण्डे:
अश्युत्ताराश्याँ दिशी देवात्मा: हिमालया: नाम नगाधिराज:
पुर्वापरी तोयनिधि वग्याहंग, स्थित: पृथव्या: ईव मापदंड:
कालिदास ने भी हिमालय को देवताओ ka आत्मा कहा है जो चारो ओर से समुद्र से घिरी पृथ्वी का मापदंड है हिमालय केवल उत्तराखंड का नहीं है या हिमालय केवल भारत वर्ष का नहीं है या हिमालय केवल एशिया का नहीं है बल्कि हिमालय पुरे विश्व का है और पूरा विश्व हिमालय से प्रभावित होता है विश्व का तापमान, बारिस, समुद्र स्तर हिमालय पर निर्भर करता है इस भूमंडलीय दौर में हिमालय के ऊपर बहुत सारे खतरे आ गए हैं इन खतरों का नवारण बहुत जरुरी है नहीं तो विश्व या ब्रह्माण्ड का अस्तित्व गड़बड़ा जायेगा, पिछले ३ सालो से म्योर पहाड़ ने एक मुहीम छिड़ी है हिमालय को बचाने और बसने की, जगह जगह सेमिनार व गोष्टियाँ करके जनमानस को जगाने का प्रयास हो रहा है आप सभी भी इस मुहीम में भागीदार बने और विश्व को बचाने में भागीदार बनें.
दयाल पाण्डेय   

हेम पन्त:
हिमालय को बचाने और बसाने के क्रम में कुछ महत्वपूर्ण कारक निम्न प्रकार से हो सकते हैं-

1. स्थानीय लोगों को जीवनयापन की बेहतर सुविधाएं जैसे - जल, शिक्षा और रोजगार उनके मूल निवास के आसपास उपलब्ध होने चाहिये. जिससे लोग अपने गांवों में रुकेंगे और पलायन पर लगाम लगाना सम्भव हो पायेगा.

2. तेजी से बिगड़ते जा रहे पर्यावरण की सुरक्षा के लिये आम जनमानस को नीतिनिर्धारण का प्रमुख कारक बनाया जाना चाहिये. पहाड़ के लोग परम्परागत तरीकों से वन और जल का संरक्षण कर रहे थे ये तरीके वहां की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप थे. इसलिये जनता को जल-जंगल-जमीन के प्रयोग और संरक्षण का प्रथम अधिकार होना चाहिये.

3. पहाड़ों के साहसी लोग विदेशी ताकतों के बढते कदमों को रोकने में सहायक हो सकते हैं. सीमान्त इलाकों में खाली पड़े हुए गांव एक गम्भीर चुनौती हैं. निर्जन क्षेत्रों का लाभ उठाकर चीन और अन्य दुश्मन राष्ट्र भारत के लिये चिन्ताजनक स्थिति पैदा कर सकते हैं.

4. पहाड़ी क्षेत्रों में बनाये जा रहे बांधों की नीतियों में स्थानीय जनता का पक्ष लिया जाना चाहिये. छोटे बांधों के निर्माण को ही प्राथमिकता दी जानी चाहिये.

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