Mera Pahad > MeraPahad/Apna Uttarakhand: An introduction - मेरा पहाड़/अपना उत्तराखण्ड : एक परिचय

Save Himalayas Compaign -हिमालय बचाओ और हिमालय बसाओ

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dayal pandey/ दयाल पाण्डे:
Chaubattakhaal se khicha gaya drishy

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

हमारी पूरी टीम को इस कार्यकर्म के सफल आयोजन के लिए बधाई

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
    Time has come now to act fast towards saving himalays. The impact of global warming is clearly visible now. State Flower of Uttarakhand “Burash” (Rhododendron) has blossomed before time i.e. 2-3 months. The repercussion of global warming may more dire in coming days. So friends. .. we all should plant trees and take required step.    See the news below ==========================   हिन्दी » समाचार » राज्यों से » विस्तार   खतरे में धरती, समय से पहले खिला बुरांश का फूल     बुधवार, जनवरी 26, 2011,16:48[IST]    Tweet     A A A   Follow us on             Vote this rticle (2)  (0)           देहरादून। ये बात सही है कि पृथ्वी हमें समय -समय पर अपने भीतर चल रहे खतरनाक परिवर्तनों के संकेत भेजती है लेकिन चकाचौंध की झूठी दुनिया में रहने वाला इंसान इन संकेंतों को पहचान नहीं पाता और प्रकृति के गुस्से का शिकार हो जाता है।

कुछ ऐसे ही खतरे के संकेत प्रकृति ने इस बार उत्तराखंड के राज्य वृक्ष बुरांश के माध्यम से हम इंसानों तक भेजे हैं। बुरांख का फूल हमेशा मार्च से अप्रैल महीने में खिलता है। यह फूल अतंयंत दुर्लभ माना जाता है। लेकिन इ स बार यह सुंदर फूल अचानक जनवरी महीने में ही अपने सौंदर्य की छटाएं बिखेर रहा है। वैज्ञानिक और पर्यावरण विद इसे जलवायु परिवर्तन का खतरा मान रहे हैं।

बुरांश अमूमन समुद्र की सतह से पांच से आठ हजार फिट की उंचाई वाले भूभाग में होता है। इस पेड़ पर करीब 15 से 20 दिन के अंदर फूल खिलने की प्रक्रिया संपन्न होती है। बुरांश का जूस हृदय रोगियों के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है।

गोविंद बल्लभ वानिकी एवं कृषि विश्वविद्यालय रानीचौरी के पारिस्थितिकी के वरिष्ठ शोध अधिकारी वी.के. शाह का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और शीतकाल में देर से बारिश होने के चलते बुरांश का फूल समय से पहले खिल गया है। उन्होंने बताया कि इस समय पर्यावरण का तापमान छह डिग्री सेल्सियस के हिसाब से बढ़ रहा है।

नागरिक सम्मानों पद्म श्री, पद्म भूषण से सम्मानित और विश्व विख्यात चिपको आंदोलन के प्रेरक चंडी प्रसाद भट्ट का कहना है कि मौसम में आ रहे बदलावों के कारण हमारी वनस्पति भी इससे प्रभावित हो रही है और इसके कारण ही बुरांश समय से पहले खिल गया है। उन्होंने कहा कि इसका असर फसल चक्र पर पड़ने के साथ ही जीव जंतुओं पर भी पड़ रहा है। पहाड़ी इलाकों में वनस्पतियां धीरे धीरे लुप्त होने लगी हैं। उन्होंने इस बारे में शोध किए जाने की बात कही।  English summary Rhododendron is a state plant of Uttarakhand. Flowers on this plant usually come in March to April month. But this year flowers has come on this plant in the month of January.    http://thatshindi.oneindia.in/news/2011/01/26/nature-dager-rhododendron-blooms-uttarakhand-aid0073.html   

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
देहरादून।। हिमालय को बचाने के लिए समाजसेवियों की पुरजोर मांग है कि केंद्र सरकार 'हिमालय नीति' बनाए। प्रमुख पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा ने कहा कि देश के जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल, मिजोरम, त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय, नगालैंड राज्यों में फैले विशाल हिमालय के हिमनद यदि सूख गए, तो पूरे देश में केवल बालू की रेत ही उडे़गी।

 'चिपको आंदोलन' शुरू करने वाले बहुगुणा ने कहा कि 21वीं सदी में वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी के साथ साथ जल संकट भी बढ़ा है और इस संकट पर काबू पाने के लिये हिमालय की रक्षा ही एकमात्र उपाय है।

 उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को हिमालय की सुरक्षा के लिए तुरंत एक नीति बनानी चाहिए क्योंकि समुचित नीति के अभाव में हिमालय के साथ कई तरफ से खिलवाड़ हो रहा है। हिमालय से निकलने वाली कई नदियों के स्रोत में लगातार कमी आ रही है।

 समाजसेवी कृष्ण कुमार ने बताया कि हिमालयी नदियां देश के लिए 60 प्रतिशत से भी अधिक पानी की सप्लाई करती हैं। इसलिए यह अधिक जरूरी है कि इन्हें संरक्षित किया जाए और इसके अंधाधुंध दोहन पर रोक लगाई जाए।


http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/10114945.cms

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
हिलेगा हिमालय और खतरे में हम!
 
 वाशिगटन। हिमालय की भूस्थिति और सक्रियता का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि दुनिया की इस सबसे नई पर्वत श्रृंखला में अत्यधिक तीव्रता वाले कई भीषण भूकंप आने लगेंगे। इन भीषण भूकंपों का कारण भविष्य में भारतीय चट्टानी प्लेट का एशिया की चट्टानी प्लेट के नीचे दबते जाना होगा।
 
 लिहाजा हिमालय से लगे दक्षिण उपमहाद्वीप के मैदानी इलाके तिब्बती पठार से टूटकर अलग हो जाएंगे।
 
 स्टैनफोर्ड के भूगर्भभौतिक शास्त्रियों के अनुसार हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण ही भारतीय और एशिया महाद्वीप प्लेट के टकराने से हुआ था। कुल बरसों पहले ही वैज्ञानिकों ने शोध में इस तथ्य की पुष्टि की थी। अब हाल के अध्ययनों में ये बात भी सामने आ चुकी है कि भारतीय प्लेट बहुत धीरे-धीरे एशियाई प्लेट के नीचे सरकती जा रही है। हाल ही में वैज्ञानिकों ने स्टैनफोर्ड के अध्ययन पर बयान जारी कर रहा कि इन दो प्लेट के टकराने से मेन हिमालय थ्रस्ट (एमएचटी) के भविष्य में अलग होने संबंधी प्रभावों का गहन अध्ययन किया है। खासकर जिस गतिविधि के कारण ये दो प्लेटें एक-दूसरे से अलग हो जाएंगी इस बारे में वैज्ञानिकों ने व्यापक अध्ययन किया है। पिछले अध्ययनों में पाया गया था कि भारतीय प्लेट किसी गड़बड़ी के कारण कुछ डिग्री उत्तर दिशा की ओर सरक जाएगी। लेकिन स्थिति को और स्पष्ट करने के लिए अब स्टैनफोर्ड के जीयोफिजिक्स के मुख्य अनुसंधानकर्ता वारेन क्लैडवेल ने हिमालय पर्वत श्रृंखला के पिछले दो साल के भूकंपीय गतिविधियों के आकड़े नेशनल जीयोफिजिक्स रीसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से हासिल किए। इन आकड़ों से जो छवि उभरी उसके तहत भारतीय प्लेट में बहुत मामूली यानी दो से चार डिग्री का झुकाव उत्तर की दिशा की ओर था। लेकिन जब इसका और विस्तृत अध्ययन किया गया तो पाया कि भारतीय प्लेट में कुछ हिस्सा काफी अधिक यानी 15 डिग्री नीचे तक (करीब बीस किलोमीटर) झुका हुआ है। उन्होंने बताया कि मेन हिमालय थ्रस्ट (एमएचटी) हर कुछ सौ साल पर 8 से 9 रिक्टर स्केल का भूकंप आने का इतिहास रहा है। उन्होंने कहा कि वह अध्ययन में ये नहीं देख रहे कि भूकंप का चक्र किस-किस इलाके को प्रभावित करेगा। बल्कि वह इस बात को गहराई से देख रहे हैं कि आने वाला भूकंप कितना तीव्र होगा। क्लैडवेल ने कहा कि उनके हिसाब से भूकंप के चक्र में पहले बताए गए इलाके के मुकाबले उत्तर दिशा में कहीं और आगे होगा। क्लैडवेल के सलाहकार और जीयोफिजिक्स के प्रोफेसर सिमोन क्लेमपरर ने बताया कि हाल के चित्रों में मेन हिमालय थ्रस्ट (एमएचटी) में लावा और पानी के नमूनों के आधार पर बताया कि इस भीषण भूकंप के दौरान उपमहाद्वीपीय प्लेट का कुछ हिस्सा टूट जाएगा। इस हलचल के बाद उनके विचार से पृथ्वी की सतह का दक्षिणी सिरा उभर कर आएगा। केमप्लर ने कहा कि इस खोज से मैदानी इलाकों में बसी घनी आबादी के खतरे को भापने और विनाश से उभरने के उपाय करने में मदद मिलेगी। — with Sudhir Dhaundiyal.

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