उत्तराखंड में 'गायब' हुए ग्लेशियर, सिकुड़ रही है बर्फ
उत्तराखंड का जिक्र होते ही बर्फ से ढकी पहाड़ियों की कल्पना करने वालों के माथे पर चिंता की लकीर उभर सकती है।
स्नो कवर घटाउत्तराखंड की पर्यावरण पर जारी हाल की रिपोर्ट बता रही है कि प्रदेश में स्नो कवर करीब 738.34 वर्ग किलोमीटर घट गया है। बर्फ की इस चादर के सिकुड़ने का सिलसिला करीब-करीब हर ग्लेशियर क्षेत्र में देखने को मिला है।
चिंता वाली बात यह भी है कि कुछ नदियों के मुहाने के ग्लेशियर बिल्कुल गायब हो चुके हैं। रिपोर्ट के मुताबिक ग्लेशियर के पीछे खिसकने से नीति के पास धौली गंगा और भागीरथी जल संग्रहण क्षेत्र में दो नई झील भी बनी हुई हैं।
ग्लेशियर के सिकुड़ने से बनने वाली झील उत्तराखंड को 16-17 जून की आपदा के बाद चोराबारी झील की याद भी दिला रही हैं। इसी झील के टूटने से केदारनाथ को तबाही का मंजर देखना पड़ा था।
उत्तराखंड में करीब 11 जल संग्रहण क्षेत्रयूकास्ट (उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से तैयार संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड में करीब 11 जल संग्रहण क्षेत्र हैं। इनमें से हर जल संग्रहण क्षेत्र में स्नो कवर में कमी देखने को मिल रही है।
पर्यावरण अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक स्नो कवर का अध्ययन करने के लिए सेटेलाइट डाटा का उपयोग किया गया। इस अध्ययन से मिले तथ्य वैज्ञानिकों की आशंका की पुष्टि ही कर रही है। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव प्रदेश में बर्फबारी पर ही नहीं बल्कि स्नो कवर पर भी पड़ रहा है।
सरयू के मुहाने पर अब ग्लेशियर नहींयह प्रदेश के हिमालयी क्षेत्रों से निकल रही नदियों की सेहत के लिए भी खतरनाक माना जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक हिमालयी ग्लेशियर से निकलने वाली सरयू के मुहाने पर अब ग्लेशियर नहीं है।
इसी तरह रामगंगा और पिंडर दोनों नदियों के ग्लेशियर क्षेत्र में स्नो कवर घटकर 1.3 और 8.6 प्रतिशत रह गया है।
वहीं, ग्लेशियरों के सिकुड़ने से पिथौरागढ़ जिले में धौली गंगा क्षेत्र में करीब एक वर्ग किलोमीटर की झील बन गई है। पिछले एक दशक का डाटा बता रहा है कि इस झील का आकार बढ़ रहा है।
इसी तरह भागीरथी जल संग्रहण क्षेत्र में करीब 4700 मीटर की ऊं चाई पर भी एक झील बन गई है। 1990 में इस स्थान पर कोई झील नहीं थी। 1999 में करीब 0.25 वर्ग किलोमीटर की झील यहां पर पाई गई। 2010 में इस झील का आकार में वृद्धि पाई गई।
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