Author Topic: Save Himalayas Compaign -हिमालय बचाओ और हिमालय बसाओ  (Read 50638 times)

Ajay Pandey

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our himalaya hills are in dangered on uttarakhand this is a very thinking cause as you know that uttarakhand is a land of gods our himalaya hills are rich in good  ayurvedic medicines such as mritsanjivani , vishalykarni , sanghani ,  kantkari and various medicines we are used for curing our diseases are comes from himalaya but this is a very bad news that our himalaya are in danger this is a thinking cause if we want to prevent himalayas we are taking some steps to prevent the himalayas
1. do not cut the trees
2. do not done fire on himalay hills
3. do not use the polybags
first of all we need to done thinking on himalayas dangered how can be our hills in dangered please think on about and i will first thanks to mera pahad team after seeing the photos of the program that this is a good effort done by mera pahad team for saving our hills all social uttarakhandi groups that please take inspiration from this uttarakhandi organization and think about how can we save himalaya from dangers if we save our himalay our environment will not be polluted and no shortage of ayurvedic medicines will come if we save the himalayas hills from danger i want to request all uttarakhandi organizations that please think about this noble cause and please done the programs for saving the himalayas please done awareness programs on public in uttarakhandi villages after all our himalayas will be saved and our environment will not be polluted and no shortage of medicines will come
thanking you and namaskaar

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चन्द्रशेखर करगेती  गांव बसाओ-हिमालय बचाओ,
 आओ से मुहीम से जुड़े......
 
 पर्वतीय गांवों से पलायन, जल संकट, बिजली परियोजनाएं तथा भू-उपयोग आदि मुद्दों पर जन जागरूकता लाने के लिए ‘ हिमालय बचाओ पदयात्रा ‘ शुरू की गयी है | यह यात्रा 3 से 18 मई तक चलेगी | गांव बसाओ -हिमालय बचाओ ‘ नारे के साथ उत्साहित समाजसेवियों का जत्था पैदल ही गांव -गांव घूम रहा है | गौरतलब है कि इससे पहले भी हिमालय क्षेत्र में पर्यव्रान संरक्षण और खास कर वन संरक्षण को लेकर चिपको जैसे बड़े आंदोलन सफल रहे हैं | हिमालय बचाओ आंदोलन एक शुरुआत है  |.गांव बसाओ-हिमालय बचाओ | जनोक्ति www.janokti.comपर्वतीय गांवों से पलायन, जल संकट, बिजली परियोजनाएं तथा 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चन्द्रशेखर करगेती हिमालय बचाओं आंदोलन के तहत
 
 "गाँव चलो-हक बताओ"
 "गाँव चलो-हल जानो"
 
 हमारा पैसा,
 हमारा हिसाब,
 
 देना होगा, देना होगा,
 
 अब नहीं चलेगा जोर जब,
 अब आया सुचना अधिकार, Photo: हिमालय बचाओं आंदोलन के तहत "गाँव चलो-हक बताओ" "गाँव चलो-हल जानो" हमारा पैसा, हमारा हिसाब, देना होगा, देना होगा, अब नहीं चलेगा जोर जब, अब आया सुचना अधिकार, height=378

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड में 'गायब' हुए ग्लेशियर, सिकुड़ रही है बर्फ

उत्तराखंड का जिक्र होते ही बर्फ से ढकी पहाड़ियों की कल्पना करने वालों के माथे पर चिंता की लकीर उभर सकती है।

स्नो कवर घटा
उत्तराखंड की पर्यावरण पर जारी हाल की रिपोर्ट बता रही है कि प्रदेश में स्नो कवर करीब 738.34 वर्ग किलोमीटर घट गया है। बर्फ की इस चादर के सिकुड़ने का सिलसिला करीब-करीब हर ग्लेशियर क्षेत्र में देखने को मिला है।

चिंता वाली बात यह भी है कि कुछ नदियों के मुहाने के ग्लेशियर बिल्कुल गायब हो चुके हैं। रिपोर्ट के मुताबिक ग्लेशियर के पीछे खिसकने से नीति के पास धौली गंगा और भागीरथी जल संग्रहण क्षेत्र में दो नई झील भी बनी हुई हैं।

ग्लेशियर के सिकुड़ने से बनने वाली झील उत्तराखंड को 16-17 जून की आपदा के बाद चोराबारी झील की याद भी दिला रही हैं। इसी झील के टूटने से केदारनाथ को तबाही का मंजर देखना पड़ा था।

उत्तराखंड में करीब 11 जल संग्रहण क्षेत्र

यूकास्ट (उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से तैयार संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड में करीब 11 जल संग्रहण क्षेत्र हैं। इनमें से हर जल संग्रहण क्षेत्र में स्नो कवर में कमी देखने को मिल रही है।

पर्यावरण अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक स्नो कवर का अध्ययन करने के लिए सेटेलाइट डाटा का उपयोग किया गया। इस अध्ययन से मिले तथ्य वैज्ञानिकों की आशंका की पुष्टि ही कर रही है। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव प्रदेश में बर्फबारी पर ही नहीं बल्कि स्नो कवर पर भी पड़ रहा है।

सरयू के मुहाने पर अब ग्लेशियर नहीं

यह प्रदेश के हिमालयी क्षेत्रों से निकल रही नदियों की सेहत के लिए भी खतरनाक माना जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक हिमालयी ग्लेशियर से निकलने वाली सरयू के मुहाने पर अब ग्लेशियर नहीं है।

इसी तरह रामगंगा और पिंडर दोनों नदियों के ग्लेशियर क्षेत्र में स्नो कवर घटकर 1.3 और 8.6 प्रतिशत रह गया है।

वहीं, ग्लेशियरों के सिकुड़ने से पिथौरागढ़ जिले में धौली गंगा क्षेत्र में करीब एक वर्ग किलोमीटर की झील बन गई है। पिछले एक दशक का डाटा बता रहा है कि इस झील का आकार बढ़ रहा है।

इसी तरह भागीरथी जल संग्रहण क्षेत्र में करीब 4700 मीटर की ऊं चाई पर भी एक झील बन गई है। 1990 में इस स्थान पर कोई झील नहीं थी। 1999 में करीब 0.25 वर्ग किलोमीटर की झील यहां पर पाई गई। 2010 में इस झील का आकार में वृद्धि पाई गई।


http://www.dehradun.amarujala.com

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड समेत 11 हिमालयी राज्यों को अब ग्रीन बोनस मिलेगा। योजना आयोग सदस्य बीके चतुर्वेदी की अध्यक्षता में गठित विशेष समिति ने इन राज्यों को दिए जाने वाले कुल योजना बजट का दो प्रतिशत हर साल देने की सिफारिश की है।

एक हजार करोड़ मिलने की उम्मीद
इस हिसाब से राज्यों को करीब दस हजार करोड़ रुपये हर साल अगले चार साल तक मिलेगा। उत्तराखंड को करीब एक हजार करोड़ रुपये हर साल मिलने की उम्मीद है।

समिति ने यह भी स्पष्ट किया है यह बोनस समय से जारी किया जाएगा और इसका उपयोग अवस्थापना विकास के कार्य के लिए होगा।

योजना आयोग की इसी समिति के सदस्य और उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव डा. आरएस टोलिया के मुताबिक योजना आयोग इन संस्तुतियों को स्वीकार कर चुका है।

समिति का स्पष्ट मानना था कि देश के पर्यावरण के संरक्षण में इन राज्यों का खास योगदान है। पर इस पर्यावरण संरक्षण की कीमत विकास के अवरुद्ध होने के रूप में इन राज्यों को चुकानी पड़ रही है।

और भी कई परेशानियां
पर्वतीय राज्य होने के कारण उत्तराखंड समेत अन्य हिमालयी राज्यों के सामने और भी कई परेशानियां हैं। मसलन विकास कार्य की कीमत पर्वतीय क्षेत्रों में मैदान की तुलना में डेढ़ गुनी अधिक हो जाती है।

मौसम ऐसा है कि निर्माण कार्य के लिए बहुत अधिक समय नहीं मिल पाता। इस स्थिति को देखते हुए समिति की संस्तुति यह भी है कि इन राज्यों को निर्धारित समय में धनराशि जारी की जाए।

खास बात यह भी है कि समिति ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि ग्रीन बोनस की यह राशि राज्य विकास कार्य में अपने हिसाब से खर्च कर सकेंगे।

यह राशि भी कुल बजटीय सपोर्ट का दो प्रतिशत है और 12वीं पंचवर्षीय योजना के दूसरे साल से अगले चार साल तक के लिए मिलेगी। इस हिसाब से पर्वतीय राज्यों का करीब 40 हजार करोड़ रुपये का ग्रीन बोनस अगले चार साल में मिल पाएगा।

आखिरकार मिल गया ग्रीन बोनस
उत्तराखंड पिछले कई साल से ग्रीन बोनस की मांग करता रहा है। इस मद में केंद्रीय वित्तीय आयोगों ने उत्तराखंड को धनराशि जारी की भी है।

यह पहली बार होगा कि हर साल करीब एक हजार करोड़ रुपये से अधिक की राशि उत्तराखंड को मिल पाएगी। अब तक करीब 65 करोड़ रुपये उत्तराखंड को इस मदी में मिले भी हैं। 13वें वित्त आयोग के सामने भी राज्य ने ग्रीन बोनस की मांग की थी और हर साल दो सौ करोड़ रुपये इस मद में मांगा था।

ये है समिति
केंद्रीय योजना आयोग ने प्रधानमंत्री से स्वीकृति मिलने के बाद 25 नवंबर 2011 को इस विशेष समिति का गठन किया था। योजना आयोग के सदस्य बीके चतुर्वेदी की अध्यक्षता में गठित इस समिति ने नवंबर 2013 में अपनी संस्तुतियां योजना आयोग को सौंपी।

ग्रीन बोनस के लिए बदल गया आधार

ग्रीन बोनस निर्धारित करने के लिए समिति ने एक अलग ही तर्कदिया। पहले पर्वावरण सेवाओं जैसे पानी, हवा, जैव विविधता आदि के बदले धनराशि दिए जाने की बात थी। पर मुसीबत यह थी कि इन इकोलॉजिकल सेवाओं को पैसों में आंकना संभव नहीं हो पा रहा था।

ऐसे में ग्रीन बोनस निर्धारित करने के लिए समिति ने पहले डेवलपमेंट डिप्रिवाइजेशन इनडेक्स या डीडीई का विकास किया। इससे यह पता चला कि वन क्षेत्रों� को बचाए रखने की कितनी कीमत प्रदेश को अदा करनी पड़ रही है। इसके अलावा वन क्षेत्रों से मिलने वाले राजस्व और अन्य पहलुओं का भी अध्ययन किया गया।

"हिमालयी राज्यों के सामने एक सबसे बड़ी परेशानी यह भी है कि उनके पास वन क्षेत्र अधिक होने के कारण वित्तीय संसाधनों का अभाव है। विकास कार्य के लिए वित्तीय संसाधन भी चाहिएं।

दूसरी ओर पर्यावरण एक बाधा बनकर सामने खड़ा हो जाता है। ऐसे में ग्रीन बोनस के रुप में इन राज्यों की इस समस्या का यह समाधान हो सकेगा। योजना आयोग ने अपना काम कर दिया है।

अब राज्य सरकारों के पाले में गेंद है। परियोजना का चयन राज्य सरकार और योजना आयोग के बीच में समन्वय के जरिए होगा।
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