Mera Pahad > MeraPahad/Apna Uttarakhand: An introduction - मेरा पहाड़/अपना उत्तराखण्ड : एक परिचय

Save Himalayas Compaign -हिमालय बचाओ और हिमालय बसाओ

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jagmohan singh jayara:
"हिमालय बचावा"

आज आवाज उठणि छ,
कैन करि यनु हाल वैकु,
हे चुचों! यनु त बतावा,
हिम विहीन होणु छ,
जख डाळु नि जम्दु,
हिमालय सी पैलि,
वे हरा भरा पहाड़ बचावा,
बांज, बुरांश, देवदार लगावा,
कुळैं कू मुक्क काळु करा,
जैका कारण लगदि  छ आग,
सुखदु छ छोयों कू पाणी,
अंग्रेजु के देन छ  कुळैं,
पहाड़ हमारा पराण छन,
वैकी  सही  कीमत पछाणा.

कनुकै बचलु हिमालय?
वैका न्योड़ु गाड़ी मोटर न ल्हिजावा,
तीर्थाटन की जगा पर्यटन संस्कृति,
जैका कारण होणु छ प्रदूषण,
पहाड़ की ऊँचाई तक,
ह्वै सकु बिल्कुल न फैलावा.

पहाड़ कूड़ा घर निछ,
प्रकृति का सृंगार मा खलल,
वीं सनै कतै  न सतावा,
ये प्रकार सी प्रयास करिक,
प्यारा  पहाड़ बचावा,
हिंवाळी काँठी "हिमालय बचावा".

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़, पहाड़ी फोरम पर प्रकाशित)
२१.८.२००७ को रचित....दिल्ली प्रवास से

हेम पन्त:
जिज्ञासु जी आपकी इस सुन्दर कविता के लिये धन्यवाद... ऋषिबल्लभ सुन्दरियाल जी ने चीन के युद्ध के बाद "हिमालय बसाओ-हिमालय बचाओ" नारा दिया था.  पलायन से पहाड़ खाली हो रहे हैं, इससे पर्यावरण और चीन के साथ लगने वाले सीमान्त इलाके की रक्षा पर भारी खतरा है. हम सुन्दरियाल जी के इस विचार को आज के परिपेक्ष्य में देखें तो परिस्थितियां और भी जटिल हो चुकी हैं.

पलायन की दर और तेज हो रही है और सामरिक महत्व के सीमान्त गांवों में अब कोई नहीं रह रहा है. इसलिये यदि हिमालय को बचाना है तो यहाँ के मूल निवासियों को पहाड़ों पर बसाना जरूरी है. हिमालय बसेगा, तभी हिमालय बचेगा वरना हिमालय के नाम पर फर्जी रिपोर्टें आती रहेंगी और जनता को बेवकूफ बनाया जाता रहेगा.

jagmohan singh jayara:
 
पन्त जी,
आपको मेरी कविता मन से सुन्दर लगी, कैसे आभार व्यक्त करू आपका.  बहुत सुन्दर परिकल्पना है सुन्दरियाल जी की....क्योंकि हमारा जन्म धरती पर उसके श्रींगार के लिए हुआ है.....आज हिमालय की पुकार है....मुझे बचाओ....उसके दिल से जीवनदायिनी नदियाँ निकल रही हैं जो मानव को सब कुछ दे रही हैं....मानव दे रहा है उसको प्रदूशण....मेरी एक कविता है "हिमालय के आंसू"...जिसमें मैंने हिमालय की पीड़ा को व्यक्त किया है.  मुझे प्रकृति से अथाह प्यार है....मन में एक कसक है.. पहाड़ पर कुछ पेड़ लगाकर....इस धरा से प्रस्थान करूँ.....




 
 
 
 

--- Quote from: हेम पन्त on July 02, 2010, 04:23:26 PM ---जिज्ञासु जी आपकी इस सुन्दर कविता के लिये धन्यवाद... ऋषिबल्लभ सुन्दरियाल जी ने चीन के युद्ध के बाद "हिमालय बसाओ-हिमालय बचाओ" नारा दिया था.  पलायन से पहाड़ खाली हो रहे हैं, इससे पर्यावरण और चीन के साथ लगने वाले सीमान्त इलाके की रक्षा पर भारी खतरा है. हम सुन्दरियाल जी के इस विचार को आज के परिपेक्ष्य में देखें तो परिस्थितियां और भी जटिल हो चुकी हैं.
हेम पन्त जी,


पलायन की दर और तेज हो रही है और सामरिक महत्व के सीमान्त गांवों में अब कोई नहीं रह रहा है. इसलिये यदि हिमालय को बचाना है तो यहाँ के मूल निवासियों को पहाड़ों पर बसाना जरूरी है. हिमालय बसेगा, तभी हिमालय बचेगा वरना हिमालय के नाम पर फर्जी रिपोर्टें आती रहेंगी और जनता को बेवकूफ बनाया जाता रहेगा.

--- End quote ---

dayal pandey/ दयाल पाण्डे:

dayal pandey/ दयाल पाण्डे:

mera pahad team dogadda main,

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