Author Topic: Save Trees & Plant Trees Initiative by Merapahad-पेड़ बचाओ पेड लगाओ  (Read 80481 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Ladies collecting the Pirood here (leafs of pine tree) in the photo. This is one of major factor of fire in jungle of pahad.



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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from   Pooran Kandpal <kandpalp@yahoo.com>
to   M S Mehta <msmehta@merapahad.com>
cc   myoruttrakhand@gmail.com
date   Wed, Jun 2, 2010 at 9:46 PM
subject   Re: Join “Save Trees and Plant Trees Campaign” - An Initiative by Merapahad Dot Com
mailed-by   yahoo.com
signed-by   yahoo.com
   
hide details 9:46 PM (57 minutes ago)
   
Mehta ji aapki initiative bahut achchhi hai.
Hamen paudhon ko bachana hi hoga.
 
Main apne najdik ke park mein kuchchh pondon ko
pratidin pani deta hoon.  Mera vichar hai ki suraj ko
ya mandir mein jal chadane si achchha hai ki kisi
paundhe ko seencha jay aur use bachaya jay.
 
Ek ped bhee ek vyakti bachaye to dharti hari bhari rahegi.
 
Aap jo kar rahe hain, uske liye aap badhaee ke patra hain.
 
Meri shubh kamnayen.
 
Pooran chandra kandpal.
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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  करे  शपथ.. हर इंसान लगाये १० पेड़ हर साल



       

Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

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Good initiative...

ranbeer

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hello namaste, acha kaha aapne apnauttarakhand ji...............pahle apne tradition aur culuture ko save karo phir aur kuch karoge................yadi aap mujhse bat karna chaho to kar sakte ho, meri id hai rskuttaranchal@gmail.com thanks ji.............

पंकज सिंह महर

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प्रिय रणबीर जी,
कृपया फोरम की कार्य प्रणाली को समझें और संबंधित टापिक्स पर ही पोस्ट किया करें।
संस्कृति से संबंधित जानकारी http://www.merapahadforum.com/culture-of-uttarakhand/ यहां पर है और आप जो भी सहयोग करना चाहें विभिन्न टापिक्स पर कर सकते हैं। साथ ही वहां पर अनेक ऐसे टापिक्स हैं जिनपर हम चिन्ता जाहिर करते हैं और अपनी राय दे सकते हैं कि किस प्रकार से संस्कृति का क्षरण रोका जा सके और क्या किया जाय कि लोग अपनी जड़ों से जुड़ने का प्रयास करें। मेरा पहाड़ का जन्म ही इस चीज के लिये हुआ है कि उत्तराखण्ड की नई पीढ़ी और प्रवासी लोगों तक संस्कृति को पहुंचाये। क्योंकि प्रवास पर चले गये लोगों ने आधुनिकीकरण के चक्कर और फैशन में अपने बच्चों को अंग्रेजी-हिन्दी और शहरी परिवेश की परवरिश दी। लेकिन जब वह युवा अपनी पहचान के लिये छटपटाता है तो उसे अपनी संस्कृति की जानकारी यहां से मिल सके।
 
कुछ लिंक जहां पर आप अपनी राय दे सकते हैं कि कैसे संस्कृति को बचाया जाय और जो लोग अपनी संस्कृति को नहीं जानते, उन्हें कैसे अवगत कराया जाय-
 
http://www.merapahadforum.com/culture-of-uttarakhand/what-changes-have-occured-in-our-culture/
 
http://www.merapahadforum.com/culture-of-uttarakhand/footage-of-disappearing-culture/
 
http://www.merapahadforum.com/culture-of-uttarakhand/why-we-are-leaving-our-tradition/
 
http://www.merapahadforum.com/culture-of-uttarakhand/our-tradition-vs-new-generation/
 
 

ranbeer

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pankaj ji aap apna mail id dijiyega phir batata hun kya hal hai uttaranchaliyon ke delhi main, khas kar girls ke...............phir kahana mujhe mujhe main galat hun ya sahi..................and i have given my id........rest upto your understanding................

हलिया

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मेहता जी,
धन्यबाद ठैरा हो आपको।  बाप-रे जिस बात को मैं गांव वालों को बार-बार जोर देकर समझाने की कोशिश कई सालों से कर रहा हूं वही बात आपने भी जोर-सोर से उठाई है।  पेड़ों पोंधों को बचाना-बढा‌ना हमारे लिये कितना जरूरी है यह बात अब सब को समझ में आ जाना चाहिये।  हमारे गांव वालों ने तो अब ये नियम बना दिया है कि यदि बहुत ही जरूरी हुआ तभी कोई पेड़ काटा जायेगा वो भी ग्राम पंचायत की परमिसन ले कर और पहले उस पेड के बदले दस फलदार पेड लगा कर।  खाली पेड़ लगा देने भर से कुछ नहीं होता महाराज! हमने तो ये भी नियम बना दिया है कि जो पेड़ लगायेगा उस पेड़ की देखभाल की जिम्मेदारी भी उसकी ही ठैरी और एक भी पेड़ सूखा या बरबाद हुआ तो जुर्माना भरना पडे‌गा पंचायत में और फिर से दस पेड़ लगाने होंगे।  अब गांव में चारों ओर हरियाली-ही-हरियाली है। बहुत ही अच्छा लग रहा हं।  आप अपने इस नेक काम को जरूर आगे बढाते रहो मैं आपके साथ कंधे से कंधा मिला कर चलने को तैयार ठैरा हर टैम ।  - हलिया ।

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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आज से लगभग २५ साल पाहिले भी गाने के माध्यम से पेड़ बचने का सन्देश दिया गया .....
सरकारी यो धुर जंगला बांजा नि काट लछिमा बांजा नि  काटा,
ओ कटी देला धुर जंगला पड़ोलो अकवा, पाणी पाणी पाणी कुने तिसालो पहाडा
न काटा बांजा, नि कर लछिमा नाशा नि करा,

काश इस गाने को समझा होता तो पहाड़ मैं आज पाणी की कमी नहीं होती , चलो जहाँ जागे वही सबेरा

हेम पन्त

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पर्यावरण का सन्देश देते हुए नरेन्द्र सिंह नेगी जी के कुछ गाने-
 
ना काटा.., तौं डाल्यूं……..
डाल्यूं ना काटा चुचो डाल्यूं ना काटा, तौं डाल्यूं ना काटा दिदों डाल्यूं ना काटा


www.apnauttarakhand.com/na-kata-taun-dalyun-narendra-singh-negi/
 
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साँस छिन आस-औलाद, तुमारी-हमारी डाली झम्म – झम रे
ना काटा यून तुमारु क्या कारि बिचारि डाली – झम्म

 
www.apnauttarakhand.com/sans-chhan-aas-aulad-hamari-narendra-singh-negi/
 
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आवा दिदा भुलौं आवा, नांग धारति की ढकावा , डाळि बनबनी लगावा
आवा दयब्तों का नौंकि, डाळि रोपा पुन्न कमावा
हिटा रम्म- झम्म, चला भै ठम्म – ठम्म

 
www.apnauttarakhand.com/aawa-dida-bhulon-aawa-nang-dhartee-ki-dhakawa-n-s-negi-anuradha-nirala/

 

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