Author Topic: Currupt System in Uttarakhand - ये कैसा भ्रष्टाचार है उत्तराखण्ड में?  (Read 47588 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Uttarakhand government officer-Official held for accepting bribe
« Reply #110 on: August 25, 2011, 03:50:46 AM »
This is the news. -----------------
   Official held for accepting bribePTI | 03:08 PM,Aug 24,2011 Dehra Dun, Aug 24 (PTI) An Uttarakhand government officer has been arrested for allegedly accepting a bribe of Rs 10,000 from a contractor in Haldwani area of Nainital district.S P Singh, a development officer with the integrated cooperative project, was caught by a vigilance team yesterday when he was allegedly accepting Rs 10,000 from Shahid Hussain, the complainant, said Superintendent of Police (Vigilance), Nainital sector.Singh was allegedly demanding a bribe from Hussain for awarding a contract of a godown construction to his firm. Singh was today produced before the Nainital district court, which sent him to jail
 
http://ibnlive.in.com/generalnewsfeed/news/official-held-for-accepting-bribe/798750.html

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250 रुपये के लिए चक्कर हजार
ये है भ्रष्टाचार

हरिद्वार। सरकारी विभागों पर सुस्ती किस कदर हावी है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। जनपद के ब्लाक कार्यालयों में भी हालात अलग नहीं है। आलम यह है कि अभी तक 2005 में हुए पंचायतों चुनावों के लिए जमा की गई जमानत राशि वापस नहीं की गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि अन्ना हजारे की मांग के अनुसार सिटीजन चार्टर क्यों न बनाया जाए?

बहादराबाद ब्लाक के ग्राम गाडोवाली निवासी मो. इदरीस ने पंचायत चुनाव 2005 में उप प्रधान पद के लिए 250 रुपये बतौर जमानत राशि जमा कराए थे। चुनाव हुए 6 साल हो गए और अब दूसरी पंचायत भी गठित हो गई है, लेकिन उन्हें यह राशि वापस नहीं मिली। इदरीस बताते हैं कि 250 रुपयों के लिए वे ब्लाक कार्यालय के हजारों चक्कर काट चुके हैं। उनके अनुसार 12 और पंचायत सदस्यों की भी जमानत धनराशि वापस नहीं की गई है।


http://www.amarujala.com/state/Uttrakhand/32251-2.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 गोपेश्वर, जागरण कार्यालय: प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनने वाली सड़कें इंजीनियरों व ठेकेदारों के लिए दुधारू गाय बनी हैं। जिले के घाट ब्लॉक में प्रकाश में आये मामले से तो यही लगता है। करीब पौने ग्यारह किमी लंबी सड़क बनाने को अभियंताओं ने प्रारंभिक आगणन से भी अधिक खर्चा कर दिया, लेकिन धरातल पर अभी तक पचास प्रतिशत कार्य ही पूरा हो पाया है। अब अभियंता 1 करोड़ 19 लाख रुपये फिर शासन से झटकने की फिराक में है। हालांकि शासन स्तर पर इसकी मुख्य अभियंता स्तर की जांच बैठा दी है।
चमोली जिले में विकास से पिछड़े क्षेत्र घाट के मटई, खलतरा, ग्वाड़, भीमलतला, मल्ला मटई, हितमोली, किरतोली, क्वीराली, बैरासकुंड को सड़क सुविधा से जोड़ने के लिए वर्ष 2004 में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत मोलागाढ़-मटई मोटर मार्ग की स्वीकृति मिली थी। तब अभियंताओं ने 10.84 किमी इस प्रस्तावित सड़क का सर्वे कर इस सड़क के निर्माण सहित पक्कीकरण- डामरीकरण के लिए 1 करोड़ 79 लाख का आगणन प्रस्तुत किया था। सरकार ने भी आगणन के अनुरूप धनराशि स्वीकृत कर निर्माण शुरू कराया। तब सरकार व जनता को जरा भी गुमान नहीं था कि यह राशि बेकार ही जाया होगी। वर्ष 2006 में पीएमजीएसवाइ पोखरी के अभियंताओं ने ठेकेदार से मिलकर यह राशि ठिकाने लगाने जैसा ही काम किया और जेसीबी से बैरासकुंड तक खोदकर कच्ची सड़क निर्माण कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर दी। अभियंताओं ने यह राशि सड़क निर्माण के लिए कम बताते हुये 48 लाख शासन से फिर झटक लिये। सड़क मात्र तीन किलोमीटर से आगे नहीं बढ़ी। बाद में जब ग्रामीण निर्माण एजेंसी के खिलाफ आंदोलन के लिए सड़कों पर उतरे तो तब अभियंताओं ने मोलागाढ़ से तीन किलोमीटर की दूरी पर हार्ड रॉक निकलने का तर्क देकर खुलासा किया कि 1.19 लाख रुपये की मांग शासन से और की गई है। इस सड़क निर्माण पर पीएमजीएसवाइ ने 1 करोड़ 90 लाख का भुगतान भी कर दिया है।
सड़क निर्माण की जमीनी हकीकत सामने आने पर शासन ने भी पीएमजीएसवाइ के अभियंताओं के खिलाफ जांच बैठा दी है। शासन ने मामले की जांच लोक निर्माण विभाग कुमाऊं मंडल के चीफ इंजीनियर स्तर 2 को सौंपते हुये जानना चाहा है कि आखिर जब सड़क को 1 करोड़ 79 लाख में बनना था तो पहले 48 लाख रुपये और अब 1 करोड़ 19 लाख रुपये की मांग अभियंताओं ने क्यों की है। साफ है कि आगणन से दोगुने तक की राशि सरकार से मांगने के इस गोरखधंधे में खाली पीएमजीएसवाइ के अभियंता ही शामिल नहीं है। अब मामले में जनता के आंदोलन व जांच से निर्माण एजेंसी में हड़कंप मचा है।
'इस ग्रामीणों का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि दूरस्थ क्षेत्रों में यातायात सुविधा प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना भी नहीं दिला पाई है। सड़क निर्माण भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका है। और जनता अपने को ठगा सा महसूस कर रही है। निर्माण व जांच के बीच जनता को सड़क सुविधा से वंचित होना पड़ रहा है।'
-भाष्कर पुरोहित, क्षेत्र पंचायत सदस्य,
मटई
'सड़क स्वीकृति के समय हार्ड रॉक 20 क्यूसेक मीटर ही दर्शाया गया था। लेकिन सड़क निर्माण के दौरान हजारों क्यूसेक मीटर पक्की चट्टान होने के चलते सड़क निर्माण आगणन के अनुसार नहीं हो पाया। अब शासन से अतिरिक्त धन की मांग की गई है। शासन ने मुख्य अभियंता स्तर की जांच बैठाई गई है। जांच के बाद ही यह कह पायेंगे कि सड़क निर्माण का कार्य कैसे होगा।'
यतेन्द्र सिंह, अवर अभियंता, पीएमजीएसवाई
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6357428.html

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                   भ्रष्टाचार का बादशाह है उत्तराखंड
 


बिमारु कहे जाने वाले बिहार और नक्सली हिंसा से ग्रस्त झारखंड को पीछे छोड़कर उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड इकोनोमिक टाइम्स के करप्शन इंडेक्स में नम्बर वन बन गये हैं। करप्शन के इस ताज़ का पूरा श्रेय दोनों सूबों के मुख्यमंत्रियों को जाता है।

देवभूमि का भी है जहां जंगल कट रहा है, सुखना भूमि घोटानो के तर्ज पर ज़मीन करप्शन से बिक रही है, जहां के जवानों को रोज़गार नहीं मिलता बस देहरादून जाने पर जेल ज़रुर मिल जाती है। हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट में पानी बिकना और मुख्यमंत्री कविता सुनाते है..पानी और जवानी की..।
 
 
इकोनोमिक टाइम्स के सर्व में यूपी और यूके को करेप्शन में सबसे ज्यादा 8.88 अंक मिले है उसका स्थान आता है बिहार, झारखंड और राजधानी दिल्ली का..। हांलाकि इसके पड़ोसी पंजाब और हरियाणा में कहीं कम भ्रष्टाचार है। इकोनॉमिक टाइम्स की माने तो खाद्य और राशनिंग में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है, उसके बाद नम्बर आता है बिजली और शिक्षा लेकिन खनिज और सड़को पर अच्छा खासा काला धन कमाया जा सकता हैं।

 
इकोनॉमिक टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में विस्तार से बताया है कि कैसे प्रभाव, लॉबिंग और डर दिखाकर नीलामी और टेंडरों में काला धन कमाया जा सकता है। ठीक वैसे ही जैसे नोएडा में बाजार की कीमतों से कहीं कम दामों पर ज़मीन मिल जाती है। सरकारी कीमत और बाजारु कीमत के बीच का काला-धन बंटना है सियासी नेताओं और उद्योगपतियों के बीच..। आजकल सस्ती कीमत पर ज़मीन मिलने के मामले मे कुछ शांति भूषण और प्रशांत भूषण की सुर्खियों में हैं।

 
इस गोरखधंधे में जो पिसता है, वो है आम-आमदी। पहले एक किसान के रुप में जिसके खेती की ज़मीन सरकार ने औने-पौने दामों पर ख़रीद ली और वो सड़क पर आ गया। फिर सड़को के नाम पर नए-नए टेंडरों से घोटाले हुऐ और बिल्डिंग के मुखौटे के पीछे बिल्डरों और नेताओं ने पैसा कमाया। इसके बाद भी आम-आदमी भी पिस्ता है जो अपना पसीना बेचकर पैसा जोड़कर किसानों से सस्ती खरीदी ज़मीन को उंची कीमत देकर खरीदने पर मजबूर हैं।

 
इकोनॉमिक टाइम्स के सर्वे में यूपीए सरकार की हालत भी पतली ही दिखाई देती है, जिसे 77 फीसदी लोग फिक्स या भ्रष्ट मानते हैं। लेकिन आज हालात को लोकपाल बिल बनाने वाली अन्ना की टीम की भी पतली है। यूपी और यूके के सिर भले ही भ्रष्टाचार का ताज़ है लेकिन इस ताज़ में तिनके हमने ही जोड़े हैं, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देकर..।



http://bhadas4uttarakhand.com
 

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इतने घोटालो के बाद भी.. लोक शाशन कर रहे है वहां मजे से !

                   भ्रष्टाचार का बादशाह है उत्तराखंड
 


बिमारु कहे जाने वाले बिहार और नक्सली हिंसा से ग्रस्त झारखंड को पीछे छोड़कर उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड इकोनोमिक टाइम्स के करप्शन इंडेक्स में नम्बर वन बन गये हैं। करप्शन के इस ताज़ का पूरा श्रेय दोनों सूबों के मुख्यमंत्रियों को जाता है।

देवभूमि का भी है जहां जंगल कट रहा है, सुखना भूमि घोटानो के तर्ज पर ज़मीन करप्शन से बिक रही है, जहां के जवानों को रोज़गार नहीं मिलता बस देहरादून जाने पर जेल ज़रुर मिल जाती है। हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट में पानी बिकना और मुख्यमंत्री कविता सुनाते है..पानी और जवानी की..।
 
 
इकोनोमिक टाइम्स के सर्व में यूपी और यूके को करेप्शन में सबसे ज्यादा 8.88 अंक मिले है उसका स्थान आता है बिहार, झारखंड और राजधानी दिल्ली का..। हांलाकि इसके पड़ोसी पंजाब और हरियाणा में कहीं कम भ्रष्टाचार है। इकोनॉमिक टाइम्स की माने तो खाद्य और राशनिंग में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है, उसके बाद नम्बर आता है बिजली और शिक्षा लेकिन खनिज और सड़को पर अच्छा खासा काला धन कमाया जा सकता हैं।

 
इकोनॉमिक टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में विस्तार से बताया है कि कैसे प्रभाव, लॉबिंग और डर दिखाकर नीलामी और टेंडरों में काला धन कमाया जा सकता है। ठीक वैसे ही जैसे नोएडा में बाजार की कीमतों से कहीं कम दामों पर ज़मीन मिल जाती है। सरकारी कीमत और बाजारु कीमत के बीच का काला-धन बंटना है सियासी नेताओं और उद्योगपतियों के बीच..। आजकल सस्ती कीमत पर ज़मीन मिलने के मामले मे कुछ शांति भूषण और प्रशांत भूषण की सुर्खियों में हैं।

 
इस गोरखधंधे में जो पिसता है, वो है आम-आमदी। पहले एक किसान के रुप में जिसके खेती की ज़मीन सरकार ने औने-पौने दामों पर ख़रीद ली और वो सड़क पर आ गया। फिर सड़को के नाम पर नए-नए टेंडरों से घोटाले हुऐ और बिल्डिंग के मुखौटे के पीछे बिल्डरों और नेताओं ने पैसा कमाया। इसके बाद भी आम-आदमी भी पिस्ता है जो अपना पसीना बेचकर पैसा जोड़कर किसानों से सस्ती खरीदी ज़मीन को उंची कीमत देकर खरीदने पर मजबूर हैं।

 
इकोनॉमिक टाइम्स के सर्वे में यूपीए सरकार की हालत भी पतली ही दिखाई देती है, जिसे 77 फीसदी लोग फिक्स या भ्रष्ट मानते हैं। लेकिन आज हालात को लोकपाल बिल बनाने वाली अन्ना की टीम की भी पतली है। यूपी और यूके के सिर भले ही भ्रष्टाचार का ताज़ है लेकिन इस ताज़ में तिनके हमने ही जोड़े हैं, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देकर..।



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गजब: आवास वालों को आवासहीनों का लाभदेहरादून, : मलिन बस्तियों में रह रहे परिवारों को पक्के मकान देने के उद्देश्य से जवाहर लाल नेहरू अर्बन रिन्यूवल मिशन (जेएनयूआरएम) के तहत नगर निगम काठबंगला में 148 आवासीय भवन बना रहा है। इसके लिए लंबी जद्दोजहद के बाद धन अवमुक्त हो चुका है।


कमाल यह है कि जिन लोगों के लिए आवासीय योजना बनाई जा रही है, उनमें से लगभग 20 प्रतिशत पहले से पक्के मकानों में रह रहे हैं और विद्युत, जलकर आदि का भुगतान भी कर रहे हैं। बीते दिनों सूचना के अधिकार के तहत इस मामले में सर्वधर्म सेवा समिति ने जानकारी मांगी थी। सूचना में स्पष्ट कहा गया कि काठबंगला भाग-एक योजना में शामिल है। अब गौर करने वाली बात यह है कि इस भाग में रहने वाले अधिकांश परिवार पक्के मकान बना चुके हैं।


इन घरों में विद्युत व जल कनेक्शन भी हैं और वे इसका भुगतान भी कर रहे हैं। इतना ही नहीं इन भवनों में रहने वाले लोग आवासीय योजना में जाने के बजाय पुराने भवनों में ही रहना चाहते हैं।


ऐसे में सवाल यह है कि पहले से पक्के भवनों में रहने वालों को योजना में शामिल क्यों किया गया। समिति की ओर से सचिव सोमप्रकाश अरोड़ा ने मेयर विनोद चमोली को भेजे पत्र में मांग की कि इन भवनों को जरूरतमंद लोगों को दिया जाना चाहिए न कि पहले से पक्के भवनों में रह रहे लोगों को।

उन्होंने कहा कि मामले में निगम अपने स्तर से जांच करे और इन परिवारों को योजना में शामिल करने के स्थान पर आवासहीन लोगों को शामिल करे।
   

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_8220403.html

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निशंक जी तो सो गए हैं,लेकिन खंडूरी आप तो शायद जाग रहे हो,अगर जाग रहे हो तो देखो क्या हो रहा है,याद रखो अगले साल उतराखंड में चुनाव हैं !पता चला की आपके साथ आपकी कुर्सी भी सो गयी !

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भ्रष्टचार से विकास हुआ अवरुद्ध
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गोपेश्वर : भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव कामरेड समर भंडारी ने कहा कि देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते विकास अवरुद्ध हो गया है।

जिला पंचायत सभागार में आयोजित भाकपा के 19 वें जिला सम्मेलन में उन्होंने कहा कि जिस प्रकार देश में भ्रष्टाचार अपनी जडें जमा चुका है, उससे राष्ट्र की दशा और दिशा बदल गयी है । पार्टी के प्रदेश सहसचिव आनंद सिंह राणा ने कहा कि जल जंगल और जमीन को बचाने के लिए यहां के लोगों ने पृथक राज्य की मांग की थी, लेकिन यहां जल जंगल जमीन को बचाना तो दूर राजनेता ही खुद इन्हें कब्जाने में लगें हैं। इससे पूर्व अधिवेशन में राज्य की स्थायी राजधानी गैरसैंण में बनाये जाने सहित कई प्रस्ताव भी पारित किये गये।

इस मौके पर ज्ञानेन्द्र खंतवाल, विनोद जोशी, नरेन्द्र रावत, महिपाल सिंह,, सुधा नेगी रूप सिंह सहित कई लोगों ने विचार व्यक्त किये ।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_8306030.html

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इसे  भ्रष्टाचार नहीं तो और क्या कहें  कर्णप्रयाग-पोखरी मार्ग पर बनने के साथ उखड़ने लगा है डामर


गोपेश्वर। कर्णप्रयाग-पोखरी मोटर मार्ग पर इन दिनों चल रहा डामरीकरण कार्य अनियमितता की भेंट चढ़ रहा है। स्थिति यह है कि मार्ग पर एक तरफ से डामरीकरण हो रहा है, तो दूसरी तरफ से वह उखड़ रहा है।



कर्णप्रयाग-पोखरी मोटर मार्ग पर डामरीकरण का जिम्मा एडीबी जोशीमठ के पास है। इसके लिए नौ करोड़ रुपये स्वीकृत हुए। इस सड़क पर 55 किमी तक डामरीकरण होना है। अभी मात्र 20 किमी सड़क पर ही डामरीकरण हो पाया है। लेकिन मार्ग पर जहां-जहां डामर बिछाया गया है, वह उखड़ रहा है।


 जिससे मार्ग पर कई जगह गड्ढे पड़ गए हैं। खाल गांव निवासी महेश खाली और नवल किशोर खाली का कहना है कि मार्ग पर जगह-जगह डामर उखड़ रहा है। इसकी जिला प्रशासन से शिकायत भी की गई, लेकिन कुछ नहीं हुआ। डामर उखड़ने से कई बार दुपहिया वाहन चालक रपटकर चोटिल हो गए हैं।

इस मामले में एडीबी के ईई एनएस खोलिया का कहना है कि जिन स्थानों पर डामर उखड़ रहा है, वहां पुन: डामर बिछाया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि कार्य की गुणवत्ता नहीं रखी जा रही है। बरसात से सड़क पर मलबा आने से पानी सड़क की ओर मुड़ गया, जिससे डामर उखड़ गया था। अभी मार्ग पर कार्य गतिमान है।





Source Amarujala
 

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विकास के नाम पर लाखों रुपये डकारने का आरोप
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विकास खंड भिलंगना के अनुसूचित जाति बाहुल्य ग्राम पंचायत चकरेडा मे दस लाख रूपये के विकास कार्यो के गबन का मामला प्रकाश में आया है। ग्रामीणों ने स्वीकृत योजनाओं की जिलाधिकारी से कार्यो की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है ऐसा न करने पर आन्दोलन की चेतावनी दी है

प्रखंड की पट्टी नैलचामी के अनुसूचित जाति बाहुल्य ग्राम पंचायत चकरेड़ा मे गांव मे विकास कार्यों को करने के विधायक निधि से आठ लाख रूपये की धनराशी से गांव में सार्वजनिक शौचालय, दो पैदल पुल, सीसी खड़िंजा व खेल मैदान, का निर्माण किया जाना था, लेकिन कार्यदाई संस्था की मिली भगत के चलते उक्त कार्य महज कागजों पर ही किया गया। ग्रामीण मोहन सिंह गुंसाई ने आरोप लगाते कहा कि गांव में दो पक्के पैदल पुल का निर्माण किया गया है, लेकिन उस पर सीमेंट की दीवार न लगाकर बहार से ही ही लीपापोती कर लाखों रूपये डकारे गये हैं। यहीं नही खेल मैदान धरातल पर बनने के बजाय कागजों मे ही खेल मैदान बना है। शौचालय मे भी कार्यो की गुणवत्ता ठीक नहीं रखी गयी है। ग्रामीणों का कहना है कि विधायक निधि से गांव के विकास कार्यो के लिये स्वीकृत राज्य वित्त से दो लाख 72 हजार व विधायक निधि के आठ लाख के कार्यो को महज खाना पूर्ति कर धन का वारा न्यारा किया गया है।

Source dainik jagran

 

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