Author Topic: Currupt System in Uttarakhand - ये कैसा भ्रष्टाचार है उत्तराखण्ड में?  (Read 47205 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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भगवानपुर के प्रेम राजपुर गांव के लोगों ने प्राइमरी स्कूल हेड मास्टर को स्कूल में रखा सिमेंट का बोरा बेचते रंगे हाथों पकड़ लिया और जमकर हंगामा काटा गांव वालों का कहना है कि हेड मास्टर जी लम्बे वक्त से स्कूल का सरकारी सामान बेचते आ रहे हैं। इतना ही नहीं हेड मास्टर शराब पीकर स्कूल में आते हैं और स्कूल में बच्चों को पढ़ाने की बजाए दिन भर हो हल्ला करते हैं।

अन्नू रावत (9871264699)

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प्रेषित:-
सेवा में
श्रीमान छेत्रीय विधायक श्रीनगर विधान सभा छेत्र
प्रेषक :-        प्रदीप सिंह रावत ग्राम व पोस्ट बुरांसी
                   जिला पौड़ी गढ़वाल  (उत्तराखंड)
बिषय :- नौठा से ग्राम धुलेत नव निर्मित मोटर मार्ग से छतीग्रस्त गौशाला तथा खेतो के कटान का मुवाजा न मिलने के सम्बन्ध में आवेदन पत्र –
महोदय ,
मै प्रदीप सिंह रावत S/O श्री बचन सिंह ग्राम व पोस्ट बुरांसी का मूल निवासी हूँ.  महोदय नौठा से धुलेत नव निर्मित मोटर मार्ग प्रधान मंत्री सड़क योजना के तहत सन 2011-12 के अंतर्गत पूर्ण हो चूका है, मार्ग निर्माण कार्य के दौरान मेरी गौशाला पूर्ण रूप से छतीग्रस्त हो चुकी है जिसकी जानकारी TRG DIV PWD श्रीनगर को ग्राम सभा प्रधान द्वारा सत्यापित आवेदन पत्र के साथ प्रेषित की जा चुकी है,  लकिन अभी तक मुझे छतीग्रस्त गौशाला का मुवाजा नही मिला है,
           अतः महोदय से बिनम्र प्राथर्ना है की उपरोक्त को मध्य नजर रखते हुए शीघ्र प्राथी को छतीग्रस्त गौशाला का उचित मुवाजा देय करा दिया जाय.

                     भवदीय
                     प्रदीप सिंह रावत ग्राम व पोस्ट बुरांसी
                              जिला पौड़ी गढ़वाल  (उत्तराखंड)
                         PIN: - 246123
                        Mo. No. 9958750999

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दस हजार की घूस लेते धरे गए ईओ



जसपुर: नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी दस हजार रुपये की रिश्वत लेते गिरफ्तार कर लिए गए। जेसीबी मशीन स्वामी की शिकायत पर विजिलेंस टीम ने पालिका परिसर में ही जाल बिछाया था। जैसे ही उन्होंने रंग लगे एक-एक हजार के दस नोट हाथ में पकड़े, उन्हें दबोच लिया गया। अचानक हुई इस कार्रवाई से परिसर में हड़कंप मच गया।

जसपुर निवासी हाजी सरफराज हुसैन की जेसीबी मशीन कूड़ा उठाने के लिए लगाई गई थी। बताया जा रहा है कि नगर पालिका पर उनका तीन माह का करीब दो लाख रुपये का भुगतान बकाया था। इनमें से सरफराज को मात्र 88 हजार रुपये ही अदा किए गए।

आरोप है कि शेष लगभग 1.12 लाख के भुगतान की एवज में अधिशासी अधिकारी अजहर अली ने मशीन स्वामी से 25 फीसद धनराशि बतौर रिश्वत मांगी। इससे तंग आकर सरफराज ने पांच दिसंबर को अजहर अली के खिलाफ विजिलेंस में शिकायत दर्ज कराई। एसपी विजिलेंस अशोक भट्ट के मुताबिक शिकायती पत्र की जांच कराई गई तो आरोप सही पाया गया। इस पर शुक्रवार को शिकायतकर्ता सरफराज को पाउडर लगे 1000 के 10 नोट लेकर ईओ के पास भेजा गया।

योजनाबद्ध तरीके से विजिलेंस टीम भी पालिका कार्यालय पहुंची और अजहर अली को दस हजार रुपये रिश्वत लेते रंगेहाथ दबोच लिया गया। टीम उन्हें गिरफ्तार कर अपने साथ हल्द्वानी ले गई। इस कार्रवाई से पालिका कार्यालय में हड़कंप मच गया।


10hjaar ke liye bhi Apna Imaan bhaich diya

विनोद सिंह गढ़िया

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यूपी का रिजेक्टेड चावल खायेंगे उत्तराखंडी।

सांठगांठ : मानकविहीन चावल की खरीद।

उत्तर प्रदेश में जिस चावल को मानकविहीन बता कर खाद्य विभाग व भारतीय खाद्य निगम ने रिजेक्ट कर दिया, वही चावल अब उत्तराखंड के लोगों को खिलाने की तैयारी है। मिलर्स व विपणन निरीक्षकों की मिलीभगत से रिजेक्टेड चावल की बड़ी खेप उत्तराखंड के गोदामों में पहुंच चुकी है।

धान खरीद सत्र में किसानों का धान खरीदने के साथ ही सरकार मिलर्स से चावल खरीदती है। इसमें दो तरह की खरीद की जाती है। एक तो लेवी चावल होता है। मिलर्स द्वारा आढ़ती या किसान से की गई धान की खरीद पर सरकार को हिस्सा देना होता है। मिलर्स अगर 100 कुंतल धान कूटेंगे तो 70 कुंतल चावल राज्य सरकार को सीधे बेचना होगा। दूसरी खरीद सीएमआर (कस्टम मिल राइस) की होती है। इसमें सरकारी एजेंसियों द्वारा किसान से खरीदे गए चावल को मिलों को कुटाई के लिए दिया जाता है। इस बार लेवी चावल की खरीद में यूपी का रिजेक्टेड चावल मिलर्स ने खपाया। मिलर्स से कामन व ग्रेड वन के चावल की जो खरीद खाद्य विभाग व भारतीय खाद्य निगम द्वारा की जा रही है, उसमें अब तक करीब 60 हजार एमटी चावल उत्तर प्रदेश का है। इसमें सर्वाधिक 54 हजार एमटी चावल ऊधमसिंह नगर जिले के मिलर्स ने बेचा है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में राज्य की आवश्यकता की पूर्ति के लिए खाद्य विभाग मिलर्स से कामन लेवी चावल की खरीद कर रहा है, जबकि भारतीय खाद्य निगम ग्रेड वन चावल खरीद रहा है। आलम ये है कि खाद्य विभाग ने अभी तक कुल 4,51179 एमटी चावल की कामन खरीद राइस मिलर्स से की है। इसमें 60665 एमटी चावल उत्तर प्रदेश का है। इसी प्रकार एफसीआइ ने 1,25298 एमटी ग्रेड वन चावल की खरीद की है। इसमें 33053 एमटी चावल यूपी से आया है।

यूपी में क्यों हुआ रिजेक्ट : उत्तर प्रदेश के खाद्य विभाग ने मिलर्स से लेवी चावल खरीद पर रोक लगा दी है। वजह ये है कि चावल 39 से 42 फीसद तक टूट गया है। धान में अधिक नमी होने के बावजूद लक्ष्य पूरा करने की आपाधापी में मिलर्स ने धान की कुटाई कर दी। इससे चावल की गुणवत्ता प्रभावित हो गई। यूपी ने चावल लेने से मना किया तो उत्तराखंड के मिलर्स के माध्यम से वही चावल बेचा जा रहा है।


                                                                                                           सौजन्य : कमलेश पांडेय, हल्द्वानी, दैनिक जागरण

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Sad... there are many reported cases.


यूपी का रिजेक्टेड चावल खायेंगे उत्तराखंडी।

सांठगांठ : मानकविहीन चावल की खरीद।

उत्तर प्रदेश में जिस चावल को मानकविहीन बता कर खाद्य विभाग व भारतीय खाद्य निगम ने रिजेक्ट कर दिया, वही चावल अब उत्तराखंड के लोगों को खिलाने की तैयारी है। मिलर्स व विपणन निरीक्षकों की मिलीभगत से रिजेक्टेड चावल की बड़ी खेप उत्तराखंड के गोदामों में पहुंच चुकी है।

धान खरीद सत्र में किसानों का धान खरीदने के साथ ही सरकार मिलर्स से चावल खरीदती है। इसमें दो तरह की खरीद की जाती है। एक तो लेवी चावल होता है। मिलर्स द्वारा आढ़ती या किसान से की गई धान की खरीद पर सरकार को हिस्सा देना होता है। मिलर्स अगर 100 कुंतल धान कूटेंगे तो 70 कुंतल चावल राज्य सरकार को सीधे बेचना होगा। दूसरी खरीद सीएमआर (कस्टम मिल राइस) की होती है। इसमें सरकारी एजेंसियों द्वारा किसान से खरीदे गए चावल को मिलों को कुटाई के लिए दिया जाता है। इस बार लेवी चावल की खरीद में यूपी का रिजेक्टेड चावल मिलर्स ने खपाया। मिलर्स से कामन व ग्रेड वन के चावल की जो खरीद खाद्य विभाग व भारतीय खाद्य निगम द्वारा की जा रही है, उसमें अब तक करीब 60 हजार एमटी चावल उत्तर प्रदेश का है। इसमें सर्वाधिक 54 हजार एमटी चावल ऊधमसिंह नगर जिले के मिलर्स ने बेचा है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में राज्य की आवश्यकता की पूर्ति के लिए खाद्य विभाग मिलर्स से कामन लेवी चावल की खरीद कर रहा है, जबकि भारतीय खाद्य निगम ग्रेड वन चावल खरीद रहा है। आलम ये है कि खाद्य विभाग ने अभी तक कुल 4,51179 एमटी चावल की कामन खरीद राइस मिलर्स से की है। इसमें 60665 एमटी चावल उत्तर प्रदेश का है। इसी प्रकार एफसीआइ ने 1,25298 एमटी ग्रेड वन चावल की खरीद की है। इसमें 33053 एमटी चावल यूपी से आया है।

यूपी में क्यों हुआ रिजेक्ट : उत्तर प्रदेश के खाद्य विभाग ने मिलर्स से लेवी चावल खरीद पर रोक लगा दी है। वजह ये है कि चावल 39 से 42 फीसद तक टूट गया है। धान में अधिक नमी होने के बावजूद लक्ष्य पूरा करने की आपाधापी में मिलर्स ने धान की कुटाई कर दी। इससे चावल की गुणवत्ता प्रभावित हो गई। यूपी ने चावल लेने से मना किया तो उत्तराखंड के मिलर्स के माध्यम से वही चावल बेचा जा रहा है।


                                                                                                           सौजन्य : कमलेश पांडेय, हल्द्वानी, दैनिक जागरण

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गजब: कार्य अधूरा, भुगतान पूरा


जागरण संवाददाता, कोटद्वार: सरकारी मशीनरी के भ्रष्टाचार का जीता-जागता प्रमाण है प्रखंड नैनीडांडा के अंतर्गत ग्रामपंचायत अपोला का बारातघर। हैरत इस बात की है कि यह बारातघर आज भी अधूरा है, जबकि कार्यदायी संस्था खंड विकास कार्यालय के दस्तावेजों में निर्माण कार्य चार वर्ष पूर्व पूर्ण हो चुका हो चुका है। इतना ही नहीं, ठेकेदारों को भी पूरी धनराशि का भुगतान हो चुका है।
मामला प्रखंड नैनीडांडा के अंतर्गत ग्राम पंचायत अपोला का है। सांसद निधि से वित्तीय वर्ष 2007-08 में बारातघर निर्माण को 6.60 लाख की धनराशि स्वीकृत हुई। कार्य का जिम्मा खंड विकास कार्यालय को सौंपा गया था, एक जनवरी 2008 से इसका निर्माण कार्य भी शुरू हो गया। पांच वर्ष बीत जाने के बाद आज तक बारातघर का निर्माण अधर में लटका है। इस भवन में न तो दरवाजे हैं, न ही खिड़कियां, सीमेंट भी जगह-जगह से झड़ रहा है। हैरानी की बात तो यह है कि कार्य अभी तक अपूर्ण है, लेकिन खंड विकास कार्यालय न सिर्फ पूरा भुगतान कर दिया गया है, बल्कि तीन जनवरी 2009 को कार्य पूर्ण भी दिखा दिया।
ग्रामीणों की शिकायत पर जब जिलाधिकारी कार्यालय से मामले की जांच के आदेश हुए तो विभाग के इस खेल से पर्दाफाश हुआ। दरअसल, जिलाधिकारी के निर्देश पर हुई सहायक खंड विकास अधिकारी (द्वितीय) ने निर्माण कार्यो की जांच कर गत वर्ष 27 जून को अपनी रिपोर्ट खंड विकास अधिकारी को सौंपी। रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि पांच वर्षो बाद भी भवन में दरवाजे, खिड़कियों के शीशे नहीं लगे हैं। साथ ही भवन ग्राम पंचायत को हस्तांतरित नहीं हुआ है।
ऐसे हुआ खेल
कोटद्वार: नियमानुसार सरकारी संस्था एक लाख से अधिक धनराशि के कार्यो के लिए निविदाएं निकालने का प्रावधान है। बावजूद इसके खंड विकास कार्यालय ने करीब साढ़े छह लाख के इस कार्य के कार्यादेश (वर्क आर्डर) जारी किए, जो कि गलत था।
भवन पर अभी तक दरवाजे व खिड़कियों में शीशे नहीं लगे हैं। भवन का प्लास्टर भी जगह-जगह से झड़ रहा है। भवन ग्राम पंचायत को हस्तांतरित नहीं हुआ है। बीएस रावत, ग्राम प्रधान, अपोला
मामला संज्ञान में है। बारातघर का कार्य अपूर्ण है। कार्य पूर्ण क्यों नहीं हुआ, इस संबंध में अवर अभियंता से पूर्ण जानकारी जानकारी ली जाएगी।
आनंद सिंह रावत, प्रभारी खंड विकास अधिकारी, नैनीडांडा
मामला संज्ञान में नहीं है। पूर्ण जानकारी के बाद दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगी।
श्रीमती ज्योति खैरवाल, संयुक्त मजिस्ट्रेट/प्रभारी जिला विकास अधिकारी, पौड़ीhttp://www.jagran.com/uttarakhand/pauri-garhwal-10045960.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चन्द्रशेखर करगेती क्या फिर हो रही स्टरडीया घोटाले की पुनरावृति ?
 
 उत्तराखण्ड राज्य को घोटालों की खान कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी l राज्य के सिडकुल अपनी स्थापना से ही विवाद में रहें हैं,सिडकुल स्थापना में जहां पंतनगर विश्वविद्द्यालय की बेशकीमती जमीन जमीन उद्योगों की स्थापना को लिया जाना एक गलत निर्णय था, और फिर उसे प्लॉट के रूप में औने-पाने दामो में निजी संस्थानों को उद्योग के लिए देना कोढ़ में खाज का काम था, इस पूरी प्रक्रिया में तब के नौकरशाहों-नेताओं ने जमकर माल काटा l
 
 अब माल काटने के खेल की नए सिरे से फिर शुरूआत होने जा रही है, अबकी बार इसके नायक है औद्योगिक विकास प्रमुख सचिव राकेश शर्मा ! बहुगुणा सरकार के इस निर्णय से बहुत सारे प्रश्न और शंकाएं को बल मिल रहा है, जिनका उत्तर हमें तलाशना ही पडेगा, यह ऐसे में और जरूरी हो जाता है जब सन् 2001-2002 से 2010-2011 के बीच में राज्य में 53,027 हेक्टेयर कृषि भूमि खत्म हो जाती है, 2011-2012 के आंकड़े अभी प्राप्त नहीं हुए है, अगर इसके आंकड़ों को भी जोड़ दिया जाये तो स्थिति और भयावह है, इसके विपरीत हमारे पड़ोसी राज्य में साल दर साल कृषि भूमि में इजाफा होता है, और उत्तराखण्ड में साल दर साल घटोती हुई, यह आंकड़े सरकार की नीतियों पर तो एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाती है ही लेकिन साथ ही इस राज्य की जनता की पसंद पर भी कि वह कैसे प्रतिनिधी विधानसभा में भेज रही है ? राज्य में उद्योगों के नाम पर ली गयी बेशकीमती जमीनों के इस बन्दर बाँट से जो प्रश्न खड़े हो रहे हैं उनका जवाब भी हमें ढूंढना है, निम्न प्रश्न आज भी अनुत्तरित है.....
 
 सिडकुल में टाउनशिप बनायी जायेंगी उस जमीन का लैंडयूज नियमों को ताक पर रखकर कैसे परिवर्तित किया जाएगा ?
 जो टाउनशिप बनेगी उसमें रहने वाले लोग कौन होंगे, क्योंकि सिडकुल में स्थायी कर्मकार के रूप में काम करने वाले लोगो में राज्य के मूल निवासियों का प्रतिशत 10 भी नहीं है जबकि सरकार के जीओ के यह व्यवस्था 70% की थी ?
 जमीन को दुबारा बेचने की जरुरत क्यों पड़ रही है ?
 उद्योगों के नाम पर ली गयी उपजाऊ कृषि भूमि पर उद्योग क्यों नहीं स्थापित हो सकते, क्या इन्हें निजी बिल्डर को देना ही एक मात्र विकल्प है ?
 आवासीय कॉलोनी निर्माण को ली गयी जमीन किस मूल्य पर बिल्डरों को दी जायेगी और उनके द्वारा उसे किस मूल्य पर बेचा जाएगा, और उस मुनाफे में सरकार का हिस्सा क्या होगा ?
 क्या यह सरप्लस बची भूमि पहाड़ में आपदा से पीडीत या टिहरी विस्थापितों को क्यों नहीं दी जा सकती ?
 राज्य में आपदा के समय किसी भी अधिकारी को हेलिकोप्टर नहीं दिया गया, लेकिन भूमि तलाश को हेलिकोप्टर दिया गया है इसका खर्च कौन वहन कर रहा है ?
 
 ये बहुत सारे प्रश्न है जिनका उत्तर हमें स्वयं को ही तलाशना होगा सरकार में बैठे मंत्री/विधायक तो इनका उत्तर देने से रहे, और नौकरशाहों से इसकी उम्मीद करना बेमानी है जब वे इस राज्य के निर्वाचित प्रतिनिधियों को कुछ नहीं समझते तो जनता की बिसात ही क्या........
 
 अब इस लेख को पढ़ने वालों पर निर्भर करता है कि वे धरातल पर क्या कर पाते है, नेताओं की तरह गाल बजायेंगे या फिर इस राज्य की बहुमूल्य जमीनों को बचाने के लिए कुछ अलग रास्ते अपनाएंगे यह भी अपने आप में बहुत बड़ा प्रश्न है, उम्मीद है कि इस प्रश्न का उत्तर बहुत ही जल्द मिलगा !



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड के सफेदपोशों और ब्यूरोक्रेट ने कर डाला 500 करोड़ से अधिक का घोटाला
सिडकुल व कृषि विश्वविद्यालय की जमीन पर बनेगा मॉल और मल्टीप्लैक्स
राजेन्द्र जोशी
उत्तराखंड के इतिहास में शायद ही इतना बड़ा घोटाला हुआ हो जो वर्तमान सरकार ने  रूद्रपुर में कर डाला। एक जानकारी के अनुसार लगभग 500 करोड़ से अधिक के इस घोटाले में कई ब्यूरोक्रेट से लेकर सफेदपोश नेताओं की तिजोरियां भरी गई हैं। मामला रूद्रपुर में पंतनगर तथा हरिद्वार  सिडकुल क्षेत्र की भूमियों से जुड़ा है। अरबों की सरकारी भूमि के खुर्द बुर्द के बाद विभागीय अधिकारियों  तथा अफसरशाही का उपर से ये तुर्रा कि औद्योगिक क्षेत्र के इन स्थानों पर लोगों के रहने के लिए आवासीय व्यवस्था पीपीपी मोड में की जायेगी। पहला मामला पंतनगर विश्वविद्यालय की उस भूमि का है जिस पर कृषि विश्वविद्यालय खेती पर प्रयोग करता रहा था बाद में इस भूमि को तिवारी सरकार के शासनकाल में सिडकुल को दे दी गयी थी। जिंदल उद्योग व डावर उद्योग के बीच स्थित  इस भूमि पर एक बड़ा मॉल व आवासीय भवन का विज्ञापन दिल्ली के बड़े बिल्डर द्वारा उसकी बेव साइट पर डाल दी गयी है। जबकि दूसरा महत्वपूर्ण मामला पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय से जुड़ी  उस जमीन का है, जिस पर पूर्व भाजपा सरकार ने यह भूमि विश्वविद्यालय से लेकर मण्डी समिति को 29  जुलाई 2011 को स्थानान्तरित कर खाद्यान व्यापार स्थल एंव अत्याधुनिक कृषि बाजार बनाने के लिए ली थी। सरकार की मंशा पर तब सवालिया निशान लगे जब एक ओर तो कृषि विपणन अनुभाग द्वारा इस 50 एकड़ भूमि पर अत्याधुनिक बहुमंजिला व्यवसायिक भवन सहित सम्मेलन केंद्र व फूलों की खेती केंद्र बनाए जाने के  लिए बैठक बुलायी गई है। वहीं दूसरी ओर इसी भूमि पर बहुमंजिले व्यवसायिक भवन सहित अत्याधुनिक आवासीय भवन व भूखण्ड का विज्ञापन एक निजी संस्थान द्वारा वेबसाइट पर डाला गया है।
        गौरतलब हो कि भाजपा सरकार के शासनकाल के दौरान गोविंद बल्लभ पंत कृषि एंव प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय से वर्ष 2011 में 50 एकड़ भूमि रूद्रपुर में अत्याधुनिक कृषि एंव खाद्यान्न व्यापार भवन हेतु लगभग साढ़े तीन करोड़ रूपये में ली गई थी। जिसका शासनादेश 29 जुलाई 2011 को हुआ था। इस भूमि  पर मण्डी समिति द्वारा कब्जा प्राप्त कर आंशिक स्थल एवं विकास एंव भूमि के मद में कुल मिलाकर 5.50 करोड़ रूपये व्यय किए जा चुके हैं। इतना ही नहीं इस भूमि पर खाद्यान्न मण्डी और टर्मिनल मार्केट के रूप  में फल, फूल व सब्जी के थोक बाजार बनाने की प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी बनायी जा चुकी है जिस पर नेशनल  इंस्टीटयूट ऑफ ऐग्रीकल्चर मार्केट बोर्ड (एनआईएम)  को डीपीआर बनाने के 35 लाख रूपये भी दिये जा  चुके हैं। इतना ही नहीं बीती 20 दिसम्बर 2011 को पूर्व कृषि मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस प्रस्तावित भवन का शिलान्यास भी कर दिया था।
  यहां भी उल्लेखनीय है कि 50 एकड़ भूमि को किसी निजी संस्थान को दिए जाने की सुगबुगाहट जब बीते  विधानसभा सत्र के दौरान क्षेत्रीय विधायक राजकुमार ठुकराल एंव राजेश शुक्ला को हुई तो उन्होंने इस  मामले को ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के दौरान विधानसभा में रखा। जिस पर कृषि मंत्री हरक सिंह रावत व संसदीय कार्य मंत्री डॉ. इन्दिरा हृदयेश पाठक ने सदन में बयान दिया था कि इस भूमि को किसी को नहीं दिया जा रहा है और यहां खाद्यान्न बाजार व अत्याधुनिक मण्डी बनायी जा रही है। विधानसभा में दिये गये इस बयान के उलट राज्य सरकार के कृषि एवं विपणन अनुभाग-एक के पत्रांक 21 दिनांक 8 जनवरी 2013 के अनुसार यह भूमि सरकार द्वारा पीपीपी मोड में दिये जाने का प्रस्ताव की पुष्टि करता है। इतना ही चर्चा तो यहां तक है कि इस भूमि को लेकर प्रमुख सचिव औद्योगिक विकास एंव प्रमुख सचिव कृषि के बीच नोंक -झोंक भी हुई थी। चर्चाओं के अनुसार प्रमुख सचिव औद्योगिक विकास का कृषि सचिव को यह कहना कि क्या वे पंचसितारा होटल के सामने तबेला खोलना चाहते हैं। चर्चा तो यहां तक है कि इस प्रकरण में इस भूमि को निजी हाथों में देने का तानाबाना प्रमुख सचिव औद्योगिक विकास द्वारा ही बुना गया। वहीं यह चर्चा भी आम है कि बीती 17 नवंबर को पोंटी चढ्ढा हत्या कांड से पूर्व राज्य के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की दिल्ली में मौजूदगी इसी जमीन की डीलिंग को लेकर थी। एक ओर सरकार द्वारा इस भूमि पर अत्याधुनिक व्यवसायिक भवन बनाए जाने को लेकर पत्राचार तो दूसरी तरफ इस भूमि को पीपीपी मोड में देने की बात जहां लोगों के गले नहीं उतर रही है वहीं इस भूमि पर सुपरटैक लिमिटेड द्वारा मैट्रो पोलिस मॉल सहित व्यवसायिक संस्थानों के लिए शो-रूम व आवासीय भूखण्ड एंव भवन का विज्ञापन दाल में काला नजर आने के लिए काफी है। इतना ही नहीं सरकार की इस जमीन का मानचित्र भी वेबसाइट पर डाला गया है और सरकार से ली गई इस जमीन की कीमत लगभग सवा लाख रूपया प्रति वर्ग गज की जानकारी भी डाली गयी है। इस वेबसाइट पर यहां बनने वाले बहुमंजिले भवन का ले-आउट प्लान भी डाला गया है। वेबसाइट पर बेसमेंट की भूमि दर जहां 11 हजार रूपया प्रति वर्ग फीट रखी गई है तो भूतल की दर 12 हजार प्रति वर्ग फीट, इसी तरह प्रथम तल की दर 11 हजार प्रति वर्ग, द्वितीय तल की 8 हजार रूपया, तृतीय तल की 6 हजार और चतुर्थ तल की 4 हजार रूपया रखी गई है। इस सब के भुगतान के लिए कम्पनी द्वारा अपने नोएडा कार्यालय का पता दिया गया है।
 मामले में पूर्व कृषि मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि इस सरकार को न तो किसानों की चिंता है और न कृषि की। उन्होंने कहा कि मण्डी समिति के काफी प्रयासों के बाद उसे यह भूमि मिल पायी थी जिसको यह सरकार खुर्द-बुर्द करना चाहती है। जबकि भाजपा शासनकाल में इस भूमि पर अत्याधुनिक मण्डी भवन बनाने का प्रस्ताव अन्तिम दौर में था। उन्होंने कहा कि सरकार की इस मंशा को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा और किसानों के लिए ली गई इस भूमि पर किसानों के हित के कार्य ही होंगे। उन्होंने राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह सरकार पूरे प्रदेश की सम्पतियों को पीपीपी मोड में देने को आखिर क्यों इतनी उतावली है इसकी जांच की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह घोटाला राज्य के इतिहास में सबसे बडा घोटाला साबित होगा जिसमें सरकार के मंत्री व अफसर बराबर के हिस्सेदार हैं।
  हलद्वानी से पेशे से वकील चन्द्र मोहन करगेती का कहना है कि अब माल काटने के खेल की नए सिरे से फिर शुरूआत होने जा रही है, अबकी बार इसके नायक है औद्योगिक विकास विभाग के प्रमुख सचिव, बहुगुणा सरकार के इस निर्णय से बहुत सारे प्रश्न और शंकाएं को बल मिल रहा है, जिनका उत्तर हमें तलाशना ही पडे़गा, यह ऐसे में और जरूरी हो जाता है जब सन् 2001-2002 से 2010-2011 के बीच में राज्य में 53,027 हेक्टेयर कृषि भूमि खत्म हो जाती है, 2011-2012 के आंकड़े अभी प्राप्त नहीं हुए है, अगर इसके आंकड़ों को भी जोड़ दिया जाये तो स्थिति और भयावह है, इसके विपरीत हमारे पड़ोसी राज्य में साल दर साल कृषि भूमि में इजाफा होता है, और उत्तराखण्ड में साल दर साल घटोती हो रही है, यह आंकड़े सरकार की नीतियों पर तो एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाती है ही लेकिन साथ ही इस राज्य की जनता की पसंद पर भी कि वह कैसे प्रतिनिधि विधानसभा में भेज रही है ? राज्य में उद्योगों के नाम पर ली गयी बेशकीमती जमीनों के इस बन्दर बाँट से जो प्रश्न खड़े हो रहे हैं उनका जवाब भी हमें ढूंढना है।
उन्होने कहा निम्न प्रश्न आज भी अनुत्तरित हैं 
सिडकुल में टाउनशिप बनायी जायेंगी उस जमीन का लैंडयूज नियमों को ताक पर रखकर कैसे परिवर्तित किया जाएगा ?
जो टाउनशिप बनेगी उसमें रहने वाले लोग कौन होंगे क्योंकि सिडकुल में स्थायी कर्मकार के रूप में काम करने वाले लोगो का प्रतिशत 10 भी नहीं है जबकि सरकार के जीओ के यह व्यवस्था 70 प्रतिशत की थी ?
जमीन को दोबारा बेचने की जरुरत क्यों पड़ रही है ?
उद्योगों के नाम पर ली गयी उपजाऊ कृषि भूमि पर उद्योग क्यों नहीं स्थापित हो सकते, क्या इन्हें निजी बिल्डर को देना ही एक मात्र विकल्प है ?
आवासीय कॉलोनी निर्माण को ली गयी जमीन किस मूल्य पर बिल्डरों को दी जायेगी और उनके द्वारा उसे किस मूल्य पर बेचा जाएगा, और उस मुनाफे में सरकार का हिस्सा क्या होगा ?
क्या यह सरप्लस बची भूमि पहाड़ में आपदा से पीड़ित या टिहरी विस्थापितों को क्यों नहीं दी जा सकती ?
राज्य में आपदा के समय किसी भी अधिकारी को हेलिकोप्टर नहीं दिया गया, लेकिन भूमि तलाश को हेलिकोप्टर दिया गया है इसका खर्च कौन वहन कर रहा है ?
ये बहुत सारे प्रश्न है जिनका उत्तर हमें स्वयं को ही तलाशना होगा सरकार में बैठे मंत्री व विधायक तो इनका उत्तर देने से रहे, और नौकरशाहों से इसकी उम्मीद करना बेइमानी है जब वे इस राज्य के निर्वाचित प्रतिनिधियों को कुछ नहीं समझते तो जनता की कौन सुनेगा।    Source -
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उत्तराखंड में चिकित्सा शिक्षा विभाग के दो अधिकारी निलंबित
उत्तराखंड के चिकित्सा शिक्षा विभाग के दो अधिकारियों को भ्रष्टाचार करने के आरोप में गुरुवार को निलंबित कर दिया गया. 
राज्य के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कहा कि चिकित्सा शिक्षा विभाग में अंडर सेक्रेटरी सुनील सिंह और सेक्शन अफसर राजेश जैन पर धन लेकर एक निजी नर्सिंग कालेज में 474 सीटें बढ़ाकर उन पर एडमिशन कराने के लिये अनुमोदन दिये जाने के आरोप में निलंबित किया गया है.
     
 मुख्यमंत्री ने कहा कि इस मामले में सर्तकता विभाग से भी जांच करायी जा रही है.
     
 यह पूछे जाने पर कि क्या प्रस्ताव को अनुमोदन देने के लिये चिकित्सा शिक्षा मंत्री हरक सिंह रावत के खिलाफ भी कार्यवाही की जायेगी, बहुगुणा ने कहा कि अगर विभाग से इस तरह की कोई सिफारिश आती है, तो मंत्री उस पर दस्तखत करते ही हैं.
(sahara samay)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is the statement of Uttarakhand Assembly Speaker -
उत्‍तराखण्‍ड में चारो ओर लूट मची है व भ्र्रष्टाचार का शिकजा चारो ओर- गोविन्‍द कुंजवाल

विधानसभा अध्यैक्ष ने कुछ चैनलों से बात करते हुए कहा कि उत्तखराखण्ड में भ्रष्टाुचार चरम सीमा पर है, उत्तकराखण्डो पहले आदर्श राज्य् के रूप में जाना जाता था, अब यहां बिहार से भी बदतर स्थिाति हो चुकी है, जिससे हमको शर्मिन्दगी उठानी पडती है, उन्होंछने उत्ताराखण्ड के शुभचिंतकों से आगे आने की अपील करते हुए कहा कि यह भविष्य के लिए नुकसानदेय साबित होगा, उत्त राखण्डमें किसी भी पार्टी की सरकार रही हो पर भ्रष्टारचार पर अंकुश नहीं लग पाया हैा

 

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