Author Topic: Mega Corruptions cases in Uttrakhand - उत्तराखंड में भ्रष्टाचार के बड़े मुद्दे  (Read 20477 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Yet .. another case... of power scam. .


सौ करोड़ से ज्यादा का है घोटाला!Jan 14, 10:45 

देहरादून, जागरण संवाददाता: जल विद्युत निगम के पूर्व चेयरमैन योगेंद्र प्रसाद के विरुद्ध विजिलेंस का शिकंजा कसता जा रहा है। विजिलेंस सूत्रों की मानें तो मनेरी भाली-2 परियोजना का घोटाला महज 25 करोड़ नहीं बल्कि सौ करोड़ से ऊपर का है। विजिलेंस इसकी अलग से पड़ताल कर रही है। श्रींग कंस्ट्रक्शन मामले के अलावा योगेंद्र प्रसाद पर दर्ज तीन अन्य घोटालों में भी विजिलेंस जल्द से जल्द चार्जशीट की तैयारी कर रही है। उनकी गिरफ्तारी के भी प्रयास तेज हो गए हैं।

जुलाई 2010 में शासन द्वारा जांच सौंपे जाने के बाद विजिलेंस ने सितंबर में योगेंद्र प्रसाद के विरुद्ध करोड़ों के घोटाले में चार अलग-अलग मुकदमे दर्ज किए। अक्टूबर में विजिलेंस ने योगेंद्र की आलीशान कोठी पर छापा मारा था। मनेरी भाली-2 घोटाले में शुक्रवार को विजिलेंस ने चार्जशीट दाखिल कर योगेंद्र प्रसाद की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। विजिलेंस सूत्रों की मानें तो यह घोटाला सौ करोड़ रुपये से ऊपर का है। हालांकि, अभी यह जिक्र चार्जशीट में नहीं है, बल्कि इसकी अलग से जांच की जा रही है।

पीओपी का भुगतान श्रींग ने किया

एसपी विजिलेंस बीके जुयाल ने बताया कि योगेंद्र प्रसाद की आलीशान कोठी में पीओपी (प्लास्टर ऑफ पेरिस) का काम भी श्रींग कंपनी द्वारा कराया गया। काम के बाद ऋषिकेश के ठेकेदार को श्रींग कंपनी की तरफ से एक लाख 40 हजार रुपये का भुगतान किया गया। इस बात का जिक्र भी चार्जशीट में किया गया है।

45 गवाहों में 30 अति महत्वपूर्ण

श्रींग मामले में दाखिल चार्जशीट में विजिलेंस ने 45 लोगों को सरकारी गवाह बनाया है। इनमें 30 लोग यूजेवीएनएल व इरीगेशन के अफसर व कर्मचारी हैं। यह सभी 30 गवाह अति महत्वपूर्ण कैटेगरी में हैं। उन्हें कोई नुकसान न पहुंचा सके, ऐसे में विजिलेंस पहले ही सभी के मजिस्ट्रेटी बयान दर्ज करवा चुकी है।

पूरा फाइनेंसियल सिस्टम तोड़ डाला

विजिलेंस सूत्रों के मुताबिक, घोटालों को अंजाम देने के लिए योगेंद्र प्रसाद द्वारा जल विद्युत निगम का पूरा फाइनेंसियल सिस्टम तोड़ डाला गया। पहले सिंचाई विभाग ही निर्माण कार्यो को देखकर भुगतान के लिए अनुमोदित करता था, लेकिन योगेंद्र प्रसाद ने इसे बदल डाला। वर्ष 2007 में शासन स्तर पर हुई एक बैठक में योगेंद्र ने उन्हें भुगतान की जिम्मेदारी सौंपे जाने की पैरवी की। उन्होंने मनेरी भाली-2 के लिए लिया गया 1100 करोड़ का ऋण का प्रतिदिन का ब्याज 30 लाख बचाने की स्कीम भी बताई और मनेरी भाली-2 प्रोजेक्ट मई-07 तक पूरा करने का दावा किया। जबकि सिंचाई विभाग इसे फरवरी-08 तक पूरा करने की संस्तुति कर चुका था। ऐसे में योगेंद्र अपने प्लान में कामयाब रहे और उन्हें जिम्मेदारी मिल गई। इसके बाद यूजेवीएनएल में कब और किस काम के लिए भुगतान किए जाते रहे, इसका पता निचले अफसरों को नहीं लगा। वे सिर्फ योगेंद्र के कहने पर भुगतान करते रहे। यूजेवीएनएल अफसरों को तो यह तक पता नहीं था कि बिल किस काम के लिए भुगतान हो रहे हैं।

(Source Dainik Jagran)

Devbhoomi,Uttarakhand

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डेढ़ करोड़ ठगी मामले की फिर से होगी जांच
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बिजली चोरों पर एक बार फिर शिकंजा कस दिया गया है। बिजली चोरी के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के तहत देहरादून से आई विजिलेंस टीम और स्थानीय अधिकारियों की टीम ने शुक्रवार को इलाके में छापेमारी की। टीम ने कार्रवाई के दौरान बड़े पैमाने पर बिजली चोरी पकड़ी। एसडीओ ने एक फैक्ट्री मालिक समेत १५ बिजली चोरों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है। विभागीय टीम की इस कार्रवाई को लेकर बिजली चोरों में अफरातफरी का माहौल रहा।
बिजली चोरी रोकने और राजस्व वसूली के लिए विभाग के आला अधिकारियों के निर्देश पर विजिलेंस और स्थानीय अधिकारी जनपद मेें लगातार जांच अभियान चला रहे हैं।
इसी के तहत देहरादून से आई विजिलेस टीम ने स्थानीय अधिकारियों के साथ मिलकर धनपुरा, पथरी, घिस्सूपुरा, बहादरपुर खादर एवं मोहम्मदपुर बुजुर्ग, पुरुषोत्तम नगर जैसे गांवों मेें छापे मारे। चौंकाने वाली बात यह है कि विभागीय अधिकारियों के छापे की भनक बिजली चोरों को लग गई और वह घरों में ताले लगाकर फरार हो गए। इसके बावजूद टीम ने एक फैक्ट्री मालिक समेत १५ ऐसे बिजली चोरों को पकड़ लिया जो बगैर वैध कनेक्शन के बड़े पैमाने पर बिजली चोरी कर रहे थे। कनखल हरिद्वार निवासी फैक्ट्री मालिक १०० मीटर दूरी पर कटिया डालकर बिजली चोरी कर रहा था।
एसडीओ अंजीव कुमार राणा ने बताया कि सभी बिजली चोरों के खिलाफ उत्तराखंड विद्युत चोरी अधिनियम की धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया गया है। विभागीय अधिकारियों के अनुसार आगे भी अभियान जारी रहेगा।
दूसरी ओर विजिलेंस टीम के छापे में स्थानीय अधिकारियों और कर्मचारियों की शिथिलता उजागर हो रही है। सवाल उठता है कि जब इतने बड़े पैमाने पर बिजली चोरी हो रही है तो स्थानीय विभागीय अधिकारी और कर्मचारी क्या कर रहे हैं। सूत्रों की मानें तो बिजली चोरी स्थानीय अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से हो रही है

http://www.amarujala.com/state/Uttrakhand

Anil Arya / अनिल आर्य

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भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को पड़े रोजी-रोटी के लाले
आखिर कोई क्यों लड़े भ्रष्टाचार से!
केस-1 : दून निवासी पीडब्लूडी के ठेकेदार विश्वजीत अग्रवाल के पास दिसंबर 2009 से पूर्व कई ठेके थे। उनकी शिकायत पर 45000 की रिश्वत लेते अवर अभियंता महिपाल सिंह पकड़े गए। उन्होंने एक और सहायक अभियंता को पकड़वा दिया। इसके बाद विभाग ने अग्रवाल को ‘काली सूची’ में डाल दिया।
केस-2 : रुड़की निवासी राजेंद्र सिंह सिंचाई विभाग में ठेकेदार हैं। उनकी शिकायत पर वर्ष 2009 में सहायक अभियंता 20 हजार घूस लेते पकड़ा गया। अब विभाग उन्हें एक भी ठेका नहीं दे रहा है।
केस- 3 : हरिद्वार निवासी रंजन कुमार की शिकायत पर बीते वर्ष विजिलेंस ने ग्रामीण अभियंत्रण सेवा के कैशियर को आठ हजार रुपये घूस लेते पकड़ा था। इसके बाद से विभाग ने उन्हें एक भी काम नहीं दिया।
केस-4 : चमोली निवासी राकेश पंत की शिकायत पर जिला पंचायत के अवर अभियंता को विजिलेंस ने 10 हजार रुपये घूस लेते पकड़ा था। उनके पकड़े जाने के बाद विभाग की ओर से पंत को कोई काम नहीं मिला है।
जांच हो तो कई सफेदपोश हो जाएंगे बेनकाब
दीपेश
देहरादून। भ्रष्टाचार का घुन सिस्टम को कैसे खोखला करता है और इसके खिलाफ अलख जगाने वालों के हौसले कैसे पस्त किए जाते हैं, ये चंद नाम और मामले तो एक बानगी भर हैं। उत्तराखंड में ऐसे हजारों लोग हैं जिन्होंने सरकारी महकमों में अहम पदों पर काबिज भ्रष्ट लोगों और भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगाई, लेकिन ‘तिकड़मी तंत्र’ उन्हें पैदल करके उनकी आवाज का गला घोटने में लगा है। हर सरकारी महकमे में ऐसे लोग विराजमान हैं जिनकी जिंदगी की गाड़ी ‘ऊपरी कमाई’ के पेट्रोल से चलती है। आप कुछ कहिए तो नतीजा वही होगा जैसा ऊपर उल्लेखित कुछ लोगों का हुआ। कई नेता-नेती, मंत्री-संत्री और जनप्रतिनिधि भी भ्रष्टाचारियों के ‘हमसाये’ हैं। अगर इन मामलों की सघन जांच हो जाए तो कई सफेदपोश अफसर बेनकाब हो सकते हैं। अगर भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ जंग छेड़ने वालों का नतीजा ऐसा ही होगा तो कौन हिम्मत करेगा? ऐसे मामलों में शासन प्रशासन की चुप्पी यही साबित करती है कि कुछ भी कर लो सिस्टम तो हम ही चलाएंगे। अब सवाल यह उठता है कि इस भ्रष्टाचार के खिलाफ रमेश पोखरियाल निशंक की सरकार का कदम कैसा होगा।
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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what is all going on in Uttarakhand? - NNI IMPACT उत्तराखंड में हुए महाघोटाले पर अक्रामक हुई कांग्रेस, सरकार को घेरा   Wednesday, 23 February 2011 18:36 NNI  E-mail Print PDF   उत्तराखंड. एनएनआई. 23फरवरी। देवभूमि उत्तराखंड में प्रदेश सरकार द्वारा एक निजी कंपनी से सांठगांठ कर किए गए अरबों के घोटाले के सामने आने के बाद प्रदेश सरकार बुरी तरह से फंसती हुई नज़र आ रही है। आपको बता दें कि कुछ दिन पहले न्यूज़ नेटवर्क ऑफ इंडिया (एनएनआई) ने राज्य सरकार द्वारा गैस बेस्ड एनर्जी प्लांट के नाम पर किए गए अरबों रूपयों के घोटाले का पर्दाफाश किया था। इस मामले को एक राष्ट्रीय समाचार चैनल ने भी प्रमुखता से उठाया था। अब इस मामले ने ऐसा तूल पकड़ा है कि राज्य सरकार चौतरफा घिरती हुई नज़र आ रही है। जहां एक तरफ इस महाघोटाले पर उत्तराखंड की मीडिया मौन बनी हुई थी,  वहीं अब नेताओं ने अपना मुंह खोलना शुरू कर दिया है। नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस डा. हरक सिंह रावत ने आज प्रेस वार्ता के दौरान प्रदेश की घोटालेबाज सरकार पर हमला बोला। इस दौरान कांग्रेस के तेवर अक्रामक नज़र आए।
 
सीबीआई जांच की मांग
नेता प्रतिपक्ष डॉ. हरक सिंह रावत ने राज्य सरकार पर एक बार फिर अरबों का घोटाला करने का आरोप लगाते हुए कहा कि बिना गैस बेस्ड पॉलिसी निर्धारित किए सरकार ने एक निजी कम्पनी को उर्जा प्लांट लगाने की मशीनों पर करोड़ों की कस्टम ड्यूटी पर छूट दी है। इस दौरान उन्होंने मामलें की सीबीआई जांच कराए जाने की मांग की। विधान सभा में पत्रकारों से बात करते हुए नेता प्रतिपक्ष डॉ. रावत ने राज्य सरकार पर प्रदेश के जल, जंगल व जमीन बेचने के आरोप लगाते हुए कहा कि बिना गैस बेस एनर्जी पॉलिसी तैयार किए सरकार ने हरियाणा की एक निजी कम्पनी को 165 मेगावाट की गैस आधारित उर्जा उत्पादन के लिए लगाए जाने वाले प्लांट की स्वीकृति प्रदान कर दी। यही नहीं उर्जा प्लांट के लिए आने वाली मशीनों पर 60 करोड़ की कस्टम ड्यूटी में भी छूट भी आनन-फानन में प्रदान कर दी गई। उन्होंने कहा कि कंपनी द्वारा औद्योगिक विकास विभाग को दिए पत्र में राज्य सरकार को कहा था कि उन्हें गैस अथॉरिटी इण्डिया लि. से गैस आपूर्ति की अनुमति मिल चुकी है। जिस पर परियोजना को लगाने के राज्य सरकार से अनुमति मांगी गई थी। जबकि कंपनी द्वारा ऐसा कोई भी आदेश आवेनद पत्र के साथ नहीं लगाया था। उन्होंने कहा कि महज 100 रुपए के स्टाम्प पेपर पर काशीपुर के किसानों के साथ अनुबंध की प्रतिलिपि लगा दी थी। जिस पर सरकार ने इस पॉवर प्रोजेक्ट को मंजूरी किन पॉलिसी के तहत दे दी यह भी अपने आप में बड़ा सवाल है।
उन्होंने कहा कि पावर प्लांट अधिकारियों की मिलीभगत से अनुमति प्रदान की गई जबकि इस प्लांट को लगाने के लिए उर्जा विभाग को अनुमति दी जानी चाहिए थी। उन्होंने राज्य सरकार पर नियम कानूनों को ताक पर रखकर एक कंपनी को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए कहा कि 60 करोड़ का कस्टम ड्यूटी किस आधार पर माफ कर दिया गया। इसमें कहीं न कहीं बड़े घोटाले की बू आ रही है। उन्होंने यह भी कहा कि कंपनी द्वारा जो तथ्य दिए गए उनका सत्यापन नहीं किया गया। केन्द्र सरकार ने परियोजना केवल 12 हेक्टेयर भूमि क्षेत्रफल पर ही लगाने की अनुमति प्रदान थी। जबकि राज्य सरकार ने 18.2 हैक्टेयर भूमि क्रय करने की अनुमति प्रदान की। नेता प्रतिपक्ष डा. रावत ने राज्य सरकार पर गैस बेस थर्मल पावर प्लांट की अनुमति बिना बनाए देने का भी आरोप लगाते हुए कहा कि ऊर्जा नीति के तहत इस प्लांट से राज्य को रॉयल्टी का नुकसान तो हुआ ही जबकि भूमि उपयोग के साथ-साथ जल संसाधन का भी लगातार दोहन हो रहा है। जिससे इसके एवज में राज्य को इस प्लांट से कुछ भी हासिल नहीं होगा।
 
http://www.nnilive.com/2010-10-12-09-44-21/2711-nni-impact-in-uk-scam.html

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Go through this shameful news.
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 उत्‍तराखंड में सरकारी चाटुकारिता का ठेका ईएमएस को    Wednesday, 23 February 2011 13:59 दीपक आजाद भड़ास4मीडिया - पॉवर-पुलिस E-mail Print PDF   : पिछले पांच सालों में 32 लाख का भुगतान : यह अपने उत्तराखंड में ही हो सकता है कि सरकार मीडिया संस्थानों को अपनी चाटुकारिता में लगाने के लिए सालाना लाखों रुपयों का ठेका देने में भी किसी तरह की कोई शर्म या हया महसूस नहीं करती। सूचना महकमे में सालों से अपनी खबरों के लिए कम, धंधेबाजी के लिए कुख्यात एक्सप्रेस मीडिया सर्विस के साथ मिलकर सूचना विभाग के बाबू यह कमाल दिखा रहे हैं।

राज्य सरकार की स्तुतिगान कराने के लिए बकायदा सूचना विभाग हर साल ईएमएस को अपने पक्ष में खबरें छपवाने के लिए लाखों का ठेका दे रहा है। जब कोई सरकार ही किसी मीडिया संस्थान को अपने पक्ष में खबरें छपवाने के लिए इस तरह ठेका देगी तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि राज्य में मीडिया संस्थान सरकार के हाथों किस हदतक बंधक बने हुए हैं।
उत्तराखंड राज्य गठन के वक्त से ही मीडिया के धंधेबाज सरकार की चाटुकारिता में इतने मशगूल हैं कि उन्हें उसके आगे-पीछे कुछ नहीं सूझता है। राज्य में संसाधनों की खुली लूट में हिस्सेदारी चाहने वाले पत्रकारिता के भेष्‍ा में नौकरशाहों और नेताओं के साथ मिलकर जमकर चांदी काट रहे हैं। जो लोग कल तक फटीचर हाल में थे, वे इन सालों में मालामाल हो गए। ऐसे पत्रकारों में ईएमएस नाम की समाचार एजेंसी के ब्यूरो प्रमुख संजय श्रीवास्तव भी शामिल हैं। राज्य गठन के तत्काल बाद ईएमएस का ब्यूरो प्रमुख बनकर श्रीवास्तव देहरादून आ टपके। कुछ दिन यहां के नेता-नौकरशाहों का मिजाज भांपने के बाद इन साहब ने सूचना विभाग के भ्रष्ट बाबुओं के साथ ऐसी खिचड़ी पकाई कि राज्य सरकार की चाटुकारिता करने के लिए खबरों का सरकारी ठेका ही अपने नाम करवा लिया। हालांकि इसमें ये सज्जन अकेले नहीं थे। ईएमएस की तर्ज पर ही एनएनआई को भी कुछ समय के लिए इसी तरह का ठेका दिया गया था।
ईएमएस ने 2001 में सूचना विभाग को सरकार के पक्ष में राज्य के दर्जनों अखबारों में खबरें छपवाने के लिए प्रस्ताव दिया। सूचना विभाग के बाबुओं ने भी वर्ष 2002 में संजय श्रीवास्तव के प्रस्ताव को हरी झंडी देते हुए ईएमएस को सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं की खबरें छपवाने के लिए जनपदवार 14 हजार रुपये महीने के हिसाब से ठेका दे दिया। इस लिहाज से ईएमएस को महीना 1 लाख 82 हजार रुपये का ठेका दिया गया। वर्ष 2007 तक यह ठेका बिना किसी रोकटोक के चलता रहा। इसी वर्ष सूचना विभाग के सचिव डीके कोटिया ने ईएमएस को इस तरह सरकारी चाटुकारिता में लगाने पर सवाल खड़ा करते हुए इसकी उपयोगिता को ही सिरे से खारिज कर दिया। लेकिन सूचना के धंधेबाजों ने यहां भी ऐसा कमाल दिखाया कि ईएमएस को ठेका दिलाने के लिए संजय श्रीवास्तव को रास्ता दिखाते हुए सीधे मुख्यमंत्री से मंजूरी दिला दी। इसी दौरान मुख्यमंत्री से इस बिहाफ पर मंजूरी दी गई कि ईएमएस सरकारी खबरों को अमर उजाला, जागरण और नवभारत टाइम्स जैसे नामी गिरामी अखबारों के साथ ही पचास से ज्यादा छोटे-बड़े अखबारों में प्रकाशित कराने का काम करेगी।
सूचना का अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2005 से 2009-10 तक ही ईएमएस को सूचना महकमे के बाबुओं ने 32 लाख रुपये का भुगतान किया है। इससे पहले भी ईएमएस को लाखों रुपयों का भुगतान किया गया। यह भुगतान भी कायदे कानूनों को दरकिनार कर किया गया। ठेका शर्तों के अनुसार एजेंसी को प्रत्येक जिले में अपना कार्यालय खोलकर अपने संवाददाता तैनात करने थे, जो सरकार की चाटुकारिता करते हुए खबरें दे सकें। ताकि ईएमएस के जरिये ऐसी खबरों को अखबारों में छपवाया जा सके। खैर कई जिला सूचना अधिकारियों की प्रतिकूल टिप्पणियों के बावजूद हर साल ईएमएस को लाखों रुपयों का चढ़ावा चढ़ाया जा रहा है।
संजय श्रीवास्तव ने जब सूचना विभाग के सामने खबरों का ठेके लेने के लिए आवेदन किया था तो तब एसईएमएस यानी श्रीमंत एक्सप्रेस मीडिया सर्विस के नाम से आवेदन किया था, लेकिन सूचना विभाग से पूरा लेन-देने ईएमएस के नाम पर हो रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि इसमें भी बड़ा गोलमाल हो रहा है। अब यह मुख्यमंत्री निशंक की महिमा है कि जहां सूचना विभाग के बाबुओं के मार्फत वे ईएमएस की प्रतिद्वंद्वी समाचार एजेंसी, जो कुछ साल पहले तक सरकारी ठेके में हिस्सेदार थी, को इन दिनों सरकार विरोधी खबरें जारी करने के लिए सबक सिखाने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। हाल में ही निशंक ने एनएनआई पर सरकार और उनकी छवि धूल-धुसरित करने का आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया है, वहीं दूसरी ओर ईएमएस को वही निशंक सरकार इसलिए पालपोस रही है कि वह सरकार से लाखों रुपये लेकर सरकार के उस सूचना विभाग के बाबुओं की कठपुतली बनी हुई है जो कमीशन भी खा रहे हैं, अपना राजधर्म भी निभा रहे हैं।
दरअसल, उत्तराखंड में मीडिया को सरकारी चाटुकारिता में लगाने के लिए सूचना विभाग के बाबुओं ने महारत हासिल कर ली है। राज्य में पत्रकारों की एक बड़ी जमात ऐसी है जिसके नैनिक पतन के लिए काफी हदतक सूचना के ये बाबू भी जिम्मेदार हैं। इन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन पत्रकार के भेष में धंधेबाजी कर रहा है और कौन नहीं। बल्कि इन्हें वे ही लोग मुफीद लगते हैं, जो विज्ञापनों के एवज में इन बाबुओं को उनका हिस्सा देने में देरी नहीं करते। संजय श्रीवास्तव जैसे शख्स पर सूचना के इन बाबुओं की मेहरबानी को आसानी से समझा जा सकता है। इस सबके बावजूद एक अहम सवाल उठता है कि क्या किसी सरकार को द्वारा इस तरह किसी मीडिया संस्थान को सरकारी खबरें छपवाने के लिए ठेका देना कितना वाजिब है। इस तरह अगर सरकार ठेका देकर खबरें छपवाने का धंधा करेंगी तो पेड न्यूज के सवाल पर मीडिया घरानों को ही कोसने भर से क्या होगा।
लेखक दीपक आजाद हाल-फिलहाल तक दैनिक जागरण, देहरादून में कार्यरत थे. इन दिनों स्वतंत्र पत्रकार के रूप में सक्रिय हैं
 
http://bhadas4media.com/power-police/9430-2011-02-23-08-29-30.html


जिस तरह से उत्तराखंड में बिजली के और अन्य घोटाले सामने आ रहे है वह बहुत ही शर्म की बात है!

आज विकास में सबसे बड़ा रोड़ा भ्रष्टचार है! यही कारण है इन १० साल में उत्तराखंड ने १० % भी विकास नहीं किया है, saare सरकारी पैसे चोरो के पेट में जा रहे न कि विकास पर खर्च हो रहे है !

यह बेहद दुःख की बात है पहाड़ की दुहाई देने वाले लोग ही आज पहाड़ के नाम पर करोडो के घोटाले कर रहे है !


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Uttarakhand has hardly traveled 10 yrs and so many corruuption being emerged is a matter of worry and shameful. The prime issues of Uttarakhand for which this state was formed are almost the same, like :

          -    Employment
          -    Migration
          -    Tourism
          -    Capital Issue
          -    So many others issues

Whosoever are behind these scam must be punished.



जिस तरह से उत्तराखंड में बिजली के और अन्य घोटाले सामने आ रहे है वह बहुत ही शर्म की बात है!

आज विकास में सबसे बड़ा रोड़ा भ्रष्टचार है! यही कारण है इन १० साल में उत्तराखंड ने १० % भी विकास नहीं किया है, saare सरकारी पैसे चोरो के पेट में जा रहे न कि विकास पर खर्च हो रहे है !

यह बेहद दुःख की बात है पहाड़ की दुहाई देने वाले लोग ही आज पहाड़ के नाम पर करोडो के घोटाले कर रहे है !



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There is upror in Uttarakhand assemly due to corruption cases.

Cong to gherao Uttarakhand Assembly on March 15

Dehra Dun, Feb 24 (PTI) Uttarakhand main opposition Congress would gherao the state Assembly during the budget session on March 15 to protest the "anti-people" policies of the BJP government.
Describing the policies of the Ramesh Pokhriyal government as "anti-people and anti-development", state PCC President Yashpal Arya said Congress has decided to gherao the state Assembly on Mar 15.
The budget session of the Assembly begins from March 14.
PTI DPT PAL


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Govt statement on Power Scam case.
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No undue favour to Sravanthi, says UttarakhandShishir Prashant  | 2011-02-25 09:31:00
 
The Uttarakhand government today said it gave no undue benefit to Sravanthi Energy Pvt Ltd, a Gurgoan-based company, for setting up a 225-Mw gas-based power plant in Kashipur as being alleged by the opposition.

"We followed only the existing rules and norms as far as the Sravanthi case is concerned," said Chief Secretary Subhash Kumar. Leader of the opposition Harak Singh Rawat had yesterday claimed the state government notified 46.7 acres of land at Kashipur area for industrial purpose for setting up the Sravanthi plant when the environmental clearance was only for 30 acres and lost the right of 12.5 per cent of free royalty from the proposed project as it was not sanctioned by the power department.

In this regard, Kumar clarified that the government notified 37 acres of land for industrial use of the company under the existing norms of industrial estates where such permission can be granted in case the land is more than 30 acres. Under the central Electricity Act 2003, there is no provision for getting 12 per cent free royalty in gas-based power plants, Kumar emphasised. Kumar also claimed, there is no separate gas quota for Uttarakhand and the company had made its own arrangements for procuring gas from GAIL.

http://www.sify.com/finance/no-undue-favour-to-sravanthi-says-uttarakhand-news-news-lczj5Ufbefj.html

Anil Arya / अनिल आर्य

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एनजीओ संचालक को ढाई वर्ष की सश्रम कैद
विदेशी और देसी संस्थाओं के लाखों रुपये डकारे
देहरादून। समाज सेवा के नाम पर देसी-विदेशी संस्थाओं से लाखों रुपये अनुदान प्राप्त कर डकारने वाले एनजीओ संचालक को कोर्ट ने ढाई वर्ष सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। मुजरिम ने एनजीओ के नाम से नीदरलैंड, आयरलैंड, अमेरिका और भारत की संस्था से लाखों रुपये प्राप्त किए थे, जिसे वह खुद डकार गया।
भारतीय समुदाय विकास संस्थान संचालक गोविंद चंद बर्मन (निवासी श्यामपुर, ऋषिकेश) ने एनजीओ का इस्तेमाल कर विभिन्न देशों में काम कर रही कैथोलिक रिलीफ सर्विस नामक संस्था से गरीबों के उत्थान के लिए नौ लाख 80 हजार का अनुदान प्राप्त किया था। हेल्पेज इंडिया से वृद्ध आश्रम के निर्माण के लिए भी पांच लाख 80 हजार का अनुदान लिया था। वर्ष 2006 में केंद्रीय गृह मंत्रालय के एफसीआरए के निदेशक त्रिथंकर दास ने मामले में सीबीआई जांच के आदेश दिए थे। सीबीआई ने गोविंद को दोषी पाया। दोनों पक्षों को सुनने के बाद विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीबीआई) अनुराधा गर्ग की कोर्ट ने शनिवार को गोविंद चंद बर्मन को कैद और जुर्माने की सजा सुनाई।
http://epaper.amarujala.com//svww_index.php

 

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