Author Topic: Mega Corruptions cases in Uttrakhand - उत्तराखंड में भ्रष्टाचार के बड़े मुद्दे  (Read 20460 times)

chandra prakash

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उत्तराखंड में भ्रष्टाचार के मामले सामने आने पर जांच तो होती है पर दोषियों के खिलाफ अक्सर कोई कार्रवाई नहीं होती. ऐसे में भ्रष्टाचार क्यों न बढ़े? देहरादून से मनोज रावत की रिपोर्ट
उत्तराखंड के चमोली जिले में लोहे के दो पुल पिछले दस साल से स्मारकों की तरह खड़े हैं. एक घने जंगल में बने ये दोनों पुल घाट सुतोल और कनोल नाम के गांवों को जोड़ने वाली सड़क का हिस्सा थे. 32 किलोमीटर लंबी यह सड़क तो बनी नहीं लेकिन पुल बना दिए गए. बाद में एक जांच में पता चला कि इनके निर्माण की आड़ में करीब 1 करोड़ 30 लाख रुपए का घोटाला हुआ था. लेकिन इसके लिए जिम्मेदार इंजीनियरों पर कार्रवाई होना तो दूर, उन्हें उल्टे प्रमोशन दे दिया गया. अब ये पुल जंगली जानवरों के आवागमन का साधन बने हुए हैं.
भ्रष्टाचार के मामलों में जांच तो होती है मगर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती

यह तो सिर्फ एक मामला है. उत्तराखंड में ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे जो बताते हैं कि राज्य में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय किस तरह उसका पोषण किया जा रहा है. दस साल पहले राज्य और राजधानी का निर्माण तुरत-फुरत में हुआ था. उन दिनों देहरादून के होटलों से मंगवाई गई सरकारी रोटियों के दाम की चर्चा पूरे उत्तराखंड में रही थी. खबरें आई थीं कि सरकारी बिलों में एक रोटी का जितना दाम दिखाया गया उतने में एक छोटे परिवार का महीने भर का आटा आ सकता था. शुरुआती सालों में इस तरह की अनियमितताएं कभी-कभार ही चर्चा का विषय बनती थीं लेकिन राज्य बनने के लगभग 10 साल बाद आज भ्रष्टाचार की खबरें आम हो गई हैं. कोढ़ में खाज जैसी यह कि भ्रष्टाचार के मामले सामने आने पर जांच तो होती है मगर ज्यादातर मामलों में दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पाती और अगर दोषी कोई बड़ी मछली हो तो उसे सजा मिलने की संभावना न के बराबर ही होती है. अपवाद के रूप में कुछ मामलों को छोड़ दें तो कांग्रेस सरकार में हुए कई घोटालों की जांच में आरोपितों पर दोष सिद्ध होने के बाद भी उन्हें कोई दंड नहीं मिल पाया. सरकार में आने पर भाजपा ने कांग्रेस शासन में हुए 56 कथित घोटालों की जांच के लिए आयोग तो बना दिया पर तीन साल हो गए, यह किसी भी मामले में जांच पूरी नहीं कर पाया है.
राज्य में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए सतर्कता विभाग (विजिलेंस) है. साथ ही संवैधानिक शक्तियों से लैस लोकायुक्त भी हैं. सतर्कता विभाग ने कई छोटे अधिकारी-कर्मचारियों को घूस लेते रंगे हाथों पकड़ा. मगर पकड़े गए अधिकांश कर्मचारी-अधिकारी वे थे जो शिकायतकर्ता से छोटी-मोटी रकम लेते पकड़े गए. केवल एक मामले में ही एक अधिशासी अभियंता को लाखों रुपए के साथ पकड़ा गया.
उत्तराखंड की नहरों और गूलों में पानी चले या न चले पर इनके जरिये भ्रष्टाचार खूब सींचा जाता है.  राज्य के सिंचाई और लघु सिंचाई विभाग तो अनियमितताओं के लिए कुख्यात रहे हैंउधर, लोकायुक्त ने भी अधिकांश जांचों में आरोपों की तह तक जाने की कोशिश कर शासन को जांच रिपोर्टें भेजीं पर ज्यादातर मामलों में आरोपितों को दंड नहीं मिला. करोड़ों रुपए के गबन के बावजूद उनका कुछ नहीं बिगड़ा. सामाजिक कार्यकर्ता बाबा उदय सिंह कहते हैं, ‘सरकारों के बदलने से भी इन घोटालेबाजों की हैसियत पर कोई फर्क नहीं पड़ता. हर राजनीतिक दल में इनके पैरोकार हैं और हर घोटालेबाज का सरपरस्त कोई न कोई वरिष्ठ नौकरशाह है. कमजोर राजनीतिक नेतृत्व के कारण नौकरशाही का एक तबका अपने अधीनस्थों के विरुद्ध हो रही जांचों को अंजाम तक पहुंचने से पहले ही ठिकाने लगा देता है.’  ‘तहलका’ ने ऐसे कुछ मामलों की पड़ताल की  जिनमें लोकायुक्त ने भारी अनियमितताएं पाते हुए शासन को घोटालेबाजों के विरुद्ध कार्रवाई करने का आदेश दिया था पर शासन ने कोई कार्रवाई नहीं की.
सड़क की बाट जोहते दो पुल
चमोली जिले में स्थित उन दो पुलों का ही उदाहरण लें जिनका जिक्र खबर की शुरुआत में आया है. पूर्व लोकायुक्त न्यायमूर्ति एसएचए रजा ने वर्ष 2006 में अपने एक निर्णय में कहा था, ‘करोड़ों की लागत से अनावश्यक रूप से घने जंगल में बनाए गए ये पुल स्मारक की भांति खड़े हैं और स्वयं के मोटर मार्ग से जुड़ने की बाट जोह रहे हैं.’ दरअसल निर्माण के साल राज्य सरकार ने चमोली जिले के घाट-सुतोल-कनोल मार्ग पर 32 किमी लंबी सड़क के निर्माण के लिए साढ़े छह करोड़ रुपए स्वीकृत किए थे. इस मार्ग पर केवल 18 किमी तक ही सड़क बनी थी कि इंजीनियरों ने 25 तथा 30 किमी पर दो लोहे के पुलों के टेंडर करा दिए जबकि दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में इन स्थानों तक पंहुचने के लिए पैदल रास्ता भी नहीं था. सामाजिक कार्यकर्ता बाबा उदय सिंह कहते हैं, ‘सरकारी धन को खुर्द-बुर्द करने की नीयत से वीरान इलाकों में ये पुल बनाने शुरू किए गए थे.’ लोकायुक्त रजा ने भी अपनी जांच रिपोर्ट में कहा है कि, ‘तत्कालीन इंजीनियरों ने निजी हितों को सर्वोपरि रखते हुए इन पुलों का निर्माण किया.’
लोकायुक्त ने इन दोनों पुलों के निर्माण को गैरजरूरी मानते हुए इनके निर्माण में 129.36 लाख रुपए का घपला पाया था.  जांच अधिकारी ने 2000 से 2005 के बीच प्रांतीय खंड लोकनिर्माण विभाग (लोनिवि), कर्णप्रयाग में तैनात अधिशासी अभियंता कर्ण सिंह, विजय कुमार व डीएन तिवारी के साथ उस समय गोपेश्वर में तैनात अधीक्षण अभियंता तथा पौड़ी में तैनात मुख्य अभियंता को भी इन गड़बड़ियों के लिए दोषी माना था. लोकायुक्त ने सितंबर, 2006 में प्रमुख सचिव, लोनिवि को भेजे प्रतिवेदन में जिम्मेदार अभियंताओं के विरुद्ध तीन महीने के भीतर कार्रवाई करने की संस्तुति भेजी थी, लेकिन इसकी बजाय दोषियों को प्रोन्नति दे दी गई. इस बारे में बात करने पर प्रमुख सचिव, लोनिवि उत्पल कुमार सिंह बताते हैं कि लोकायुक्त की संस्तुतियों को शासन गंभीरता से लेता है और इन अभियंताओं को भी विभाग नियमानुसार वैधानिक प्रक्रिया अपनाकर दंड देगा. लेकिन अब तक की कार्रवाई का ढर्रा देखकर  लगता है कि दंड की प्रक्रिया पूरी होते-होते ये अभियंता एक दो और प्रमोशन लेकर और कुछ और पुलों व सड़कों को डकारकर सम्मान के साथ सेवानिवृत्त हो जाएंगे.
आपदा में भी मलाई
आपदा के नाम पर जेबें भरने का खेल कैसे होता है यह उत्तरकाशी के वरुणावत हादसे से समझा जा सकता है. 24 सितंबर, 2003 को वरुणावत पर्वत से हुए भूस्खलन ने उत्तरकाशी शहर में काफी तबाही मचाई थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने उस समय अपनी देहरादून यात्रा के समय वरुणावत के स्थिरीकरण तथा पुनर्वास के लिए 250 करोड़ रु. का विशेष पैकेज स्वीकृत किया था. लेकिन आपदा राहत के लिए स्वीकृत इस धन से शुरू हुए निर्माण व पुनर्वास के काम खूब विवादास्पद रहे. राहत में हो रही अनियमितताओं की शिकायत शासन और सरकार से करने पर भी कोई कार्रवाई न होने पर उत्तरकाशी शहर के एडवोकेट बुद्धि सिंह पंवार ने उच्च न्यायालय, नैनीताल में याचिका दायर की. अदालत ने पंवार को आदेश दिया कि पहले वे इस मामले की शिकायत लोकायुक्त से करें. शिकायत मिलने पर लोकायुक्त ने पंवार द्वारा उठाए गए बिंदुओं की विस्तार से जांच कराई. जांच रिपोर्ट में कहा गया कि योजना के नियोजन एवं निर्माण के विभिन्न चरणों में गंभीर प्रशासनिक, तकनीकी एवं वित्तीय अनियमितताएं हुई हैं जिनसे शासन को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से नौ करोड़ रुपए की वित्तीय हानि हुई. जांच में सबसे अधिक अनियमितता श्रींग कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा किए जा रहे वरुणावत पर्वत के भूस्खलन के स्थिरीकरण के काम में पाई गई थी. लोकायुक्त ने 2007 में ही जांच के बाद दोषी अधिकारियों को चिह्नित कर उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई के अलावा राहत कार्यों की समीक्षा ‘उच्च अधिकार प्राप्त समिति’ से कराने की सिफारिश भी की. जांच रिपोर्ट आई तो शासन में हड़कंप मच गया था क्योंकि रिपोर्ट के अनुसार अनियमित भुगतान व कार्यों के लिए राज्य के कई वरिष्ठ अधिकारी भी जिम्मेदार थे. शासन ने लोकायुक्त द्वारा जांच में अनियमित भुगतान पाने वाली ‘श्रींग कंसट्रक्शन कंपनी’ से 1.63 करोड़ रुपए से वसूलने के आदेश दिए. लेकिन पंवार केवल ठेकेदार कंपनी पर ही कार्रवाई से संतुष्ट नहीं थे. वे फिर उच्च न्यायालय की शरण में गए. अदालत के कड़े रुख को भांपते हुए शासन ने आश्वासन दिया कि इस मामले में दोषियों को शीघ्र दंड दिया जाएगा. पंवार आरोप लगाते हैं कि दोषियों को दंड देने के मामले में शासन की नीयत ठीक नहीं थी क्योंकि जिस दिन न्यायालय ने मामले को निपटाया उसी दिन शासन ने लोकायुक्त के द्वारा पहले दिए गए फैसले के पुनः परीक्षण की अपील फिर से लोकायुक्त के यहां कर दी. पर लोकायुक्त ने मई, 2010 में इसे खारिज कर प्रमुख सचिव, आपदा प्रबंधन को दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करने का आदेश दिया. पंवार कहते हैं कि यदि अब भी दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई न हुई तो वे न्यायालय की अवमानना की याचिका दायर करेंगे.
उधार के पैसों की भी लूट
उत्तराखंड में बड़ी संख्या में नहरें और गूलें (बहुत छोटी नहरें) बनती हैं. इनमें पानी भले ही न चले पर इनके जरिए भ्रष्टाचार खूब सींचा जाता है. नहरें और गूलें राज्य में सिंचाई व लघु सिंचाई विभाग बनाते हैं. इन दोनों विभागों में हो रही अनियमितताओं के कई मामले पिछले सालों में सुर्खियों में रहे हैं. ज्यादा वक्त नहीं बीता जब पहले सिंचाई विभाग के मुख्य अभियंता के पद से रिटायर हुए सागर चंद पर इच्छाड़ी डैम, देहरादून और बलिया नाले के कार्यों में अनियमितताएं बरतने के साथ सैकड़ों कर्मचारियों को नियम विरुद्ध पदोन्नत करने के आरोप भी लगे थे. इच्छाड़ी डैम में तो उन्होंने डैम के सुरक्षा वाल्वों की सफाई में कोताही बरती थी जो कभी भी डैम की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकते हैं. इस मामले तथा बलिया नाले के मामले में उन्हें प्रारंभिक जांच में दोषी पाया गया था. कर्मचारियों की पदोन्नतियों के मामले में हुई विभागीय जांच में भी वे दोषी पाए गए, पर सरकार ने उन पर कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं की और वे आराम से रिटायर हो गए.
इसी तरह लघु सिंचाई विभाग के विभागाध्यक्ष, असगर अली पर भी सोनला (चमोली) में अधिशासी अभियंता पद पर रहते हुए सिंचाई हेतु बनाई गई हाइड्रम योजना में गंभीर अनियमितताओं के आरोप लगे. कई जांचों के बाद इन हाइड्रम योजनाओं की जांच राज्य के ग्राम्य विकास व सहकारिता सचिव राकेश कुमार ने की. इसमें असगर अली तथा उनके अधीनस्थ इंजीनियरों की टीम पर इस सिंचाई योजना का बेड़ा गर्क करने के आरोप सही पाए गए. पता चला कि लगभग 80 लाख रुपए खर्च कर सिंचाई के लिए बने इन हाइड्रमों से एक भी दिन सिंचाई नहीं हो पाई थी. असगर अली को आरोप पत्र देने के लिए जांच फाइलें न भेजने पर फाइल कब्जे में लेने के लिए एक दिन तत्कालीन विभागीय सचिव विनोद फोनिया को खुद ही असगर के कार्यालय में छापा मारना पड़ा था. यह मामला सरकार में काफी चर्चित भी रहा था. लेकिन कांग्रेस सरकार में हुई इन अनियमितताओं के लिए जिम्मेदार अभियंताओं को भाजपा सरकार में भी इतना  राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था कि इन भ्रष्ट इंजीनियरों से लड़ते हुए फोनिया को ही अपने पद से हाथ धोना पड़ा.
लघु सिंचाई विभाग के ही परमजीत सिंह बग्गा पर भी उत्तरकाशी में अधिशासी अभियंता के रूप में कार्यरत रहते हुए मोरी ब्लॉक में लघु सिंचाई के गूलों के निर्माण कार्यों में धांधली के आरोप लगे थे. उत्तरकाशी निवासी विशंभर दत्त पैन्यूली ने लोकायुक्त से इसकी शिकायत करते हुए आरोप लगाया था कि बग्गा के कार्यकाल में बनी हुई 50 गूलें तथा हाइड्रम परियोजनाएं बंद पड़ी हैं. बग्गा की पहले राज्य के वरिष्ठ अभियंताओं द्वारा तीन बार जांचें की गईं, जिनमें बहाने बनाकर बग्गा को बचा दिया गया. दंडित होने की बजाय बग्गा इस बीच न्यायालय से आदेश प्राप्त कर अपनी पदोन्नति कराने में सफल हो गए थे. लोकायुक्त ने जांच में बग्गा पर लगे आरोपों को सत्य माना. अब शासन ने बग्गा की जांच अपर सचिव मंजुल कुमार जोशी से कराई है. जोशी ने भी जांच के सभी आठ बिंदुओं में बग्गा को दोषी पाया है. रिपोर्ट फिर शासन के पास है. देखना है कि अब बग्गा के विरुद्ध कोई कार्रवाई होती है या वे  बाकियों की तरह जांचों की आंच से स्वयं को सुरक्षित बचा ले जाते हैं. गौरतलब है कि लघु सिंचाई की ये योजनाएं एआईवीपी योजना में मिले ऋण के पैसे से बनती हैं. सिंचाई से संबधित इन दोनों विभागों का सालाना बजट लगभग 450 करोड़ रु. का है.
भ्रष्टाचार की लहलहलाती फसलें
उत्तराखंड के कृषि विभाग में भी भ्रष्टाचार के चर्चे आम हैं. कृषि विभाग के कर्मचारी तथा अधिकारी एक-दूसरे को भ्रष्ट बताने के खेल में शामिल रहते हैं. पिछले साल 50 से अधिक कर्मचारियों पर खाद, उर्वरक, बीज या रसायन के लिए दिए गए बजट में हेरा-फेरी करने के आरोप लगे. उनसे विभाग ने एक करोड़ से अधिक की वसूली भी की. ‘एक-दूसरे को बड़ा भ्रष्ट’ बताते हुए कर्मचारियों तथा विभाग के निदेशक में ठनी रहती है. जांचों के बाद कर्मचारी नेता रमेश चंद चौहान को तो विभाग ने बर्खास्त कर दिया पर निदेशक मदन लाल अपने विरुद्ध हो रही लोकायुक्त की जांचों पर उच्च न्यायालय से स्टे लाने में कामयाब रहे. राज्य में लोकायुक्त की जांच के विरुद्ध स्टे लाने का यह पहला मामला था.
उधर, उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक (सतर्कता) सत्यव्रत इस बात को नकारते हैं कि ऐसे मामलों में मौके पर मौजूद छोटी मछलियां ही पकड़ी जाती हैं. वे कहते हैं, ‘यदि जांच में सबूत मिलता है तो अन्य लोगों पर भी कार्रवाई होती है.’ वे बड़े खिलाड़ियों को पकड़ने में ऊपर से किसी दबाव की बात से भी इनकार करते हैं. हालांकि तथ्यों को देखते हुए उनकी इस बात पर यकीन करना मुश्किल हो जाता है.

Source : Tehelka : http://www.tehelkahindi.com/indinon/national/667.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: mega crupption in uttrakhand
« Reply #1 on: August 31, 2010, 02:14:31 PM »

चन्द्र प्रकाश जी,

सबसे पहले इस मुद्दे को उजागर करने के लिए धन्यवाद! यह एक बहुत ही निंदनीय विषय है, इस विषय पर सरकारी जांच होनी चाहिए,!

हेम पन्त

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Re: mega crupption in uttrakhand
« Reply #2 on: August 31, 2010, 02:25:52 PM »
आपदा प्रभावितों के पैसों में होने वाला घोटाला भ्रष्टाचार का निक्रष्टतम नमूना है... इस मुद्दे को इन्टरनेट के माध्यम से पूरी दुनिया के सामने लाने का आपका यह प्रयास सराहनीय है.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अगर यह रिपोर्ट सत्य है, मै इससे बहुत आहात हूँ! हाँ अगर अपने इलाके एव गाव की बात करू, तो मैंने व्यकतिगत रूप से वहां पर कई इस प्रकार के केसेस को देखा है जिसका में रिपोर्ट करने जा रहा है!

इन चोरो को नहीं छोड़ना चाहिए वही हम को शपथ लेना है !


Rajen

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पहाड के लोग हमेशा अपनी सच्चाई और इमानदारी के लिये जाने जाते हैं, ये भ्रष्टाचार तो सब कुछ मटियामेट कर देगा लगता है.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यहाँ तो हर क्षेत्र में, घोटाले ही घोटाले सामने आ रहे है! वैसे ही राज्य पहले सी फिस्सडी है दुसरे तरफ गरीब जनता और अमर शहीदों के साथ खिलवाड़ हो रहा है!

भ्रष्टाचार पहाड़ के विकास में एक बहुत ही बड़ा रोड़ा है, इसके पीछे भी घर के लोग है.

Devbhoomi,Uttarakhand

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सच्चाई और इमानदारी,यही तो एक ऐसे देवभूमि की दें है जो की हर उस उत्तराखंडी को उत्तराखंडी कहलाने से और पहाड़ी की संज्ञां दी है ! इसी सच्चाई और इमानदारी से दुनिया में लोग उत्तराखंडियों को जानते हैं और पहचानते है,ऐसे चोरों की वजह से उत्तराखंडियों की सच्चाई और इमानदारी शक के घेरे में आ जाती है !

Devbhoomi,Uttarakhand

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ये भर्ष्टाचार नहीं है तो फिर क्या है -------------तीन दशक बाद भी नहीं मिला जमीन का मुआवजा
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नैनीताल: धारी तहसील अंतर्गत कसियालेख-बना-सूपी मोटर मार्ग निर्माण में काश्तकारों की कटी नाप जमीन का तीन दशक बाद भी मुआवजा नहीं मिला। अब काश्तकारों ने नई दरों के आधार पर मुआवजा भुगतान के लिए डीएम का दरवाजा खटखटाया है।

डीएम को भेजे ज्ञापन में लोगों का कहना है कि वर्ष 1978 में लोनिवि द्वारा कसियालेख-बना-सूपी मोटर मार्ग निर्माण के लिए 91 काश्तकारों की भूमि का अधिग्रहण किया गया। पांच काश्तकारों को छोड़कर अन्य को तीन दशक बाद भी मुआवजा नहीं दिया गया। काश्तकारों व क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने कई बार अधिकारियों के समक्ष मुआवजे का मामला उठाया लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। ग्रामीणों का कहना है कि अधिकारियों ने जमीन प्रतिकर की नई संशोधित दरों 32,500 रुपए प्रति नाली के आधार पर मुआवजे की स्वीकृति के लिए शासन को पत्राचार करने का भरोसा दिलाया है। उनका कहना है कि वर्ष 2004 में एक काश्तकार को 31 हजार रुपए प्रति नाली की दर से मुआवजा दिया गया है। ग्रामीणों ने नई संशोधित दरों के आधार पर शीघ्र मुआवजा न मिलने पर आंदोलन की चेतावनी दी है। ज्ञापन देने वालों में प्रधान बीना देवी, बीडीसी सदस्य सुरेद्र बिष्ट, गंगा सिंह बिष्ट, राजेंद्र सिंह, आनंद सिंह, पान सिंह, दीवान सिंह, महेद्र सिंह, चंदन सिंह, नारायण सिंह, धन सिंह, रतन सिंह आदि शामिल है।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7016967.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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टीचर ने बनाया छात्रा का MMS
उत्तराखण्ड के गैरार क्षेत्र में एक टीचर ने छात्रा का रेप कर उसका एमएमएस बना डाला.
46 वर्षीय शिक्षक राजेंद्र थापा ने दो साल पहले 17 साल की आठवीं कक्षा की एक छात्रा का रेप किया था. उसने इस रेप का एमएमएस बनाया और उसे तमाम लोगों को सर्कुलेट कर दिया.
 
 दो साल बाद अब जब लड़की के घरवालों को एमएमएस की जानकारी हुई तो आरोपी शिक्षक के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया. पीड़ित लड़की अब दसवीं की छात्रा है.
पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक बागेश्वर में कैथाट गांव के रहने वाले राजेंद्र थापा ने दो साल पहले छात्रा का गैरार जूनियर हाई स्कूल में रेप किया था.
 
 उसने अपने अपराध का वीडियो भी बनाया था जिसे उसने बाद में सर्कुलेट कर दिया. परिजन ने शिकायत दर्ज कराई कि उसने 17 वर्षीय लडकी से बलात्कार किया और इसका एमएमएस भी बनाया.
रिपोर्ट के मुताबिक जिले के कठैत गांव के रहने वाले थापा ने लडकी से तब बलात्कार किया जब वह गैरार जूनियर उच्च विद्यालय में आठवीं की छात्रा थी और बाद में उसने एमएमएस को कई लोगों को भेजा. लडकी अब दसवीं कक्षा में पढती है.
 
 पुलिस ने कहा कि लड़की के परिवार वालों को जब एमएमस के बारे में जानकारी मिली तब उन्हें बलात्कार का पता चला.
पुलिस ने बताया कि थापा पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज कर आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत गिरफ्तार कर लिया है.

http://www.samaylive.com/regional-news-in-hindi/uttarakhand-news-in-hindi/106961/student-rape-bagheshwer-gairar-area-uttrakhand-teacher-rajendra-.html



 

Anil Arya / अनिल आर्य

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Aise Aise Ghaple
- Tilwada (Rudraprayag) mai motor marg ke ek hi tender par kaee kam diye.
- Doon ke Jaitanwala - Dhoulas ke madhya pul nirman mai bharee takniki khamee.
- Nainital mai Nathuwakhan-Suyalbadee motor marg ke damarikaran mai khamiya.
- Nanakmatta-Tikuri Ransali marg ke chowdikaran mai 27 % jyada dar.
- Pithoragarh mai Madkote Bauna marg mai 25 karaar alag alag thekedaro ke nam.
- Dhouladevi mai Kheti-Jateshwar marg nirman mai kam prachar se budget ka nuksan.
- Tehri ke Kandikhal Saloor Churedna Amaan Sidhhapeeth tak marg nirman mai khel.
- Puliya mai bed lock nahee. Crack bhi aye.
- Uttarkashi mai Yamunotri Dhaam wale paidal marg ke kinare railing kaee jagah tooti.
- Haldwani mai bina manjuri paryatak awas grah ka nirman. wah bhi adhoora pada hai.
- Rudraprayag mai Papdasu - Hedi ke paas Alaknanda par 80 mt. span paidal jhoola pul ka.
- Dek star doob chhetra mai 594 mt. hai, jabki bandh ka prastawit jal star 610 mt. hai.
 
Source- Amar Ujala

 

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