Author Topic: Right to Information Act 2005 by Chandra S Kargeti-सूचना का अधिकार अधिनियम 2005  (Read 4400 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

We are sharing here detailed information on Right to Information Act 2005. This information has been compiled by RTI Activist, famous Advocate & Social Worker Shri Chandra Shekhar Kargeti ji.

I am sure this information will be helpful to you while seeking information from various Dept through RTI Act.


आज विश्व सूचना और संचार क्रान्ति के दौर से गुजर रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी ने सम्पूर्ण विश्व को एक विश्व गाँव में परिवर्तित कर दिया है। इसका किस हद तक प्रजातांत्रिक प्रणाली में उपयोग हो पाया है ? प्रजातांत्रिक प्रणाली में जनसूचना अधिकार की महत्ता किस हद तक है, यह अध्ययन का विषय है। सूचना के अधिकार की औचित्यपूर्णता के सम्बन्ध में हेराल्ड जे0 लास्की और कर्ट आइनजर ने बताया है -

‘‘जिन लोगों को सही सूचनायें प्राप्त नहीं  हो रहीं हैं उनकी आजादी असुरक्षित है । उसे आज नहीं तो कल समाप्त हो ही जाना है । ‘सत्य’ किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी थाती होता है जो लोग, और संस्थायें उसे दबाने, उसे छिपाने का प्रयास करती हैं अथवा उसके प्रकाश में आ जाने से डरती हैं, ध्वस्त और नष्ट हो जाना ही उनकी नियति है ।’’

जनसूचना अधिकार से तात्पर्य सूचना के अधिकार अधिनियम के अधीन योग्य सूचनाएं प्राप्त करने से है जो किसी जन /लोक प्राधिकारी द्वारा उसके नियंत्रण क्षेत्र से प्राप्त किया जा सकता है।

सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ (Right to Information Act 2005)  भारत  के संसद  द्वारा पारित एक कानून है जो 12 अक्तूबर, 2005 को केन्द्र स्तर पर  लागू हुआ जिसे 15 जून, 2005 को संसद ने पास किया था, भारत में इस कानून को  भ्रटाचार रोकने और समाप्त करने के लिये बहुत ही प्रभावी कदम बताया जाता है । इस नियम के द्वारा भारत के सभी नागरिकों को सरकारी रेकार्डों और प्रपत्रों में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया है। जम्मू एवं काश्मीर मे यह जम्मू एवं काश्मीर सूचना का अधिकार अधिनियम के नाम से लागू है । By Chandra Shekhar Kargeti.

M S Mehta
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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सूचना का अधिकार क्या है ?

संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत सूचना का अधिकार मौलिक अधिकारों का एक भाग है. अनुच्छेद 19(1) के अनुसार प्रत्येक नागरिक को बोलने व अभिव्यक्ति का अधिकार है. 1976 में सर्वोच्च न्यायालय ने "राज नारायण विरुद्ध उत्तर प्रदेश सरकार" मामले में कहा है कि लोग कह और अभिव्यक्त नहीं कर सकते जब तक कि वो जान ना लें . इसका कारण सूचना का अधिकार अनुच्छेद 19 में छुपा है. इसी मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा कि भारत एक लोकतंत्र है. भारत के लोग इसके मालिक हैं . इसलिए लोगों को यह जानने का अधिकार है कि सरकारें उनकी सेवा के लिए क्या कर रहीं हैं ?  प्रत्येक नागरिक कर/ टैक्स देता है. यहाँ तक कि एक गली में भीख मांगने वाला भिखारी भी टैक्स देता है जब वो बाज़ार से साबुन खरीदता है तब (बिक्री कर, उत्पाद शुल्क आदि के रूप में). नागरिकों के पास इस प्रकार यह जानने का अधिकार है कि उनका धन किस प्रकार खर्च हो रहा है. इन तीन सिद्धांतों को सर्वोच्च न्यायालय ने रखा कि सूचना का अधिकार हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा हैं.
अधिनियम की धारा 2(1) के अनुसार आम नागरिकों को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त है -

    1    किसी दस्तावेज, पाण्डुलिपि या अभिलेखों का निरीक्षण।
    2    किसी दस्तावेज या अभिलेखों के नोट्स संक्षेपण या सत्यापित प्रतियां प्राप्त करना।
    3    किसी वस्तु का प्रमाणित नमूना प्राप्त करना।
    4    जहां सूचना कम्प्यूटर या किसी अन्य माध्यम में हो तो उसे फ्लापी, सीडी, टेप, विडियो कैसेट आदि रूप में प्राप्त करना।इनमें रिकार्ड,दस्तावेज, ज्ञापन, आदेष, लाग-बुक, अनुबन्ध, रिपोर्ट, पत्रक, नमूना,प्रतिरूप, इलेक्ट्रानिक रूप में डाटा और किसी निजी संस्था से सम्बन्धित जानकारी शामिल है।

यह अधिकार भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार के रूप में अनु0 19 के 1  के अधीन भाषण व अभिव्यक्ति से जुड़ा हुआ है। (क) भारतीय संविधान के अनु0 21 में स्पष्ट शब्दों में लिखा है-

‘‘किसी व्यक्ति को उस के प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है अन्यथा नहीं। तात्पर्य यह कि सूचना प्राप्ति के अधिकार को भारतीय संविधान के दो मौलिक अधिकार अनु0 19 (1) तथा अनु0 21 नागरिकों को दो मौलिक अधिकार उपलब्ध कराते हैं। कुछ ऐसी सूचनायें हैं जिन्हें प्राप्त करने से रोक है। सूचना के अधिकार अधिनियम के अनु0 8 (1) के अनुसार -

    1    जिस सूचना को सार्वजनिक करने से भारत की सम्प्रभुता, अखंडता, सुरक्षा, रणनीति सम्बन्धी हितों, वैज्ञानिक हितों, आर्थिक हितों या विदेशों के सम्बन्धों पर प्रतिकूल असर पड़ता हो या किसी अपराध को करने को उकसावा मिलता हो।
    2    जिस सूचना को प्रकट करने पर अदालत ने रोक लगा रखी हो या जिसे सार्वजनिक करने से अदालत की अवमानना होती हो।
    3    सूचना जिससे किसी तीसरे पक्ष की स्पर्धात्मक क्षति हो, यदि सक्षम अधिकारी संतुष्ट नहीं है कि सूचना देना व्यापक जनहित में है।
    4    वह सूचना जिससे किसी व्यक्ति का जीवन या सुरक्षा खतरे में पड़े या उस स्रोत की जानकारी मिले जिसने कानून व्यवस्था या सुरक्षा के लिये गोपनीयता से जानकारी या सहायता दी है।
    5    सूचना जिससे अपराधी की जाँच, धरपकड़ या उसे सजा देने पर विपरीत प्रभाव पड़े।
    6    मंत्रिमण्डल के ऐसे कागज-पत्र, जिनपर मंत्रियों, सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श की टिप्पणियों का रिकार्ड शामिल है।
    7    जिस सूचना को सार्वजनिक करना न तो लोक हित के लिये जरूरी है और न जिससे सार्वजनिक मकसद
पूरा होता है और जिससे किसी व्यक्ति के निजी जीवन और एकान्त के अधिकार पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
    8    ऐसी सूचना जिसका सार्वजनिक किया जाना भले ही लोक हित में हो मगर जिसे जाहिर करने से संरक्षितों को ज्यादा नुकसान होता हो।

इन सबके बावजूद सार्वजनिक प्राधिकरण सूचना प्रदान करा सकता है यदि वह संतुष्ट है कि सूचना प्रदान करने से होने वाला जनहित उससे होने वाली क्षति से अधिक है।(अनु08(2)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यदि आरटीआई एक मौलिक अधिकार है, तो हमें यह अधिकार देने के लिए एक कानून की आवश्यकता क्यों है ?
ऐसा इसलिए है क्योंकि यदि आप किसी सरकारी विभाग में जाकर किसी अधिकारी से कहते हैं, "आरटीआई मेरा मौलिक अधिकार है, और मैं इस देश का मालिक हूँ. इसलिए मुझे आप कृपया अपनी फाइलें दिखायिए", वह ऐसा नहीं करेगा. व संभवतः वह आपको अपने कमरे से निकाल देगा. इसलिए हमें एक ऐसे तंत्र या प्रक्रिया की आवश्यकता है जिसके तहत हम अपने इस अधिकार का प्रयोग कर सकें. सूचना का अधिकार 2005, जो 13 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ हमें वह तंत्र प्रदान करता है. इस प्रकार सूचना का अधिकार हमें कोई नया अधिकार नहीं देता. यह केवल उस प्रक्रिया का उल्लेख करता है कि हम कैसे सूचना मांगें, कहाँ से मांगे, कितना शुल्क दें आदि.


सूचना का अधिकार कब लागू हुआ ?
केंद्रीय सूचना का अधिकार 12 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ. हालांकि 9 राज्य सरकारें पहले ही राज्य कानून पारित कर चुकीं थीं. ये थीं: जम्मू कश्मीर, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, असम और गोवा.

सूचना के अधिकार के अर्न्तगत कौन से अधिकार आते हैं ?
सूचना का अधिकार 2005 प्रत्येक नागरिक को शक्ति प्रदान करता है कि वो:
 
  • सरकार से कुछ भी पूछे या कोई भी सूचना मांगे.
  • किसी भी सरकारी निर्णय की प्रति ले.
  • किसी भी सरकारी दस्तावेज का निरीक्षण करे.
  • किसी भी सरकारी कार्य का निरीक्षण करे.
  • किसी भी सरकारी कार्य के पदार्थों के नमूने ले.

केन्द्रीय कानून जम्मू कश्मीर राज्य के अतिरिक्त पूरे देश पर लागू होता है. सभी इकाइयां जो संविधान, या अन्य कानून या किसी सरकारी अधिसूचना के अधीन बनी हैं या सभी इकाइयां जिनमें गैर सरकारी संगठन शामिल हैं जो सरकार के हों, सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्त- पोषित किये जाते हों.

"वित्त पोषित" क्या है ?
इसकी परिभाषा न ही सूचना का अधिकार कानून और न ही किसी अन्य कानून में दी गयी है. इसलिए यह मुद्दा समय के साथ शायद किसी न्यायालय के आदेश द्वारा ही सुलझ जायेगा.

क्या निजी इकाइयां सूचना के अधिकार के अर्न्तगत आती हैं ?
सभी निजी इकाइयां, जो कि सरकार की हैं, सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्त- पोषित की जाती हैं सीधे ही इसके अर्न्तगत आती हैं. अन्य अप्रत्यक्ष रूप से इसके अर्न्तगत आती हैं. अर्थात, यदि कोई सरकारी विभाग किसी निजी इकाई से किसी अन्य कानून के तहत सूचना ले सकता हो तो वह सूचना कोई नागरिक सूचना के अधिकार के अर्न्तगत उस सरकारी विभाग से ले सकता है.

क्या सरकारी दस्तावेज गोपनीयता कानून 1923 सूचना के अधिकार में बाधा नहीं है ?
नहीं, सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अनुच्छेद 22 के अनुसार सूचना का अधिकार कानून सभी मौजूदा कानूनों का स्थान ले लेगा.

क्या पीआईओ सूचना देने से मना कर सकता है ?
एक पीआईओ सूचना देने से मना उन 11 विषयों के लिए कर सकता है जो सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद 8 में दिए गए हैं. इनमें विदेशी सरकारों से प्राप्त गोपनीय सूचना, देश की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों की दृष्टि से हानिकारक सूचना, विधायिका के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने वाली सूचनाएं आदि. सूचना का अधिकार अधिनियम की दूसरी अनुसूची में उन 18 अभिकरणों की सूची दी गयी है जिन पर ये लागू नहीं होता. हालांकि उन्हें भी वो सूचनाएं देनी होंगी जो भ्रष्टाचार के आरोपों व मानवाधिकारों के उल्लंघन से सम्बंधित हों.

क्या अधिनियम विभक्त सूचना के लिए कहता है ?
हाँ, सूचना का अधिकार अधिनियम के दसवें अनुभाग के अंतर्गत दस्तावेज के उस भाग तक पहुँच बनायीं जा सकती है जिनमें वे सूचनाएं नहीं होतीं जो इस अधिनियम के तहत भेद प्रकाशन से अलग रखी गयीं हैं.

क्या फाइलों की टिप्पणियों तक पहुँच से मना किया जा सकता है ?
नहीं, फाइलों की टिप्पणियां सरकारी फाइल का अभिन्न अंग हैं व इस अधिनियम के तहत भेद प्रकाशन की विषय वस्तु हैं. ऐसा केंद्रीय सूचना आयोग ने 31 जनवरी 2006 के अपने एक आदेश में स्पष्ट कर दिया है.

मुझे सूचना कौन देगा ?
एक या अधिक अधिकारियों को प्रत्येक सरकारी विभाग में जन/लोक  सूचना अधिकारी (पीआईओ) का पद दिया गया है. ये जन/लोक  सूचना अधिकारी प्रधान अधिकारियों के रूप में कार्य करते हैं. आपको अपनी अर्जी इनके पास दाखिल करनी होती है. यह उनका उत्तरदायित्व होता है कि वे उस विभाग के विभिन्न भागों से आपके द्वारा मांगी गयी जानकारी इकठ्ठा करें व आपको प्रदान करें. इसके अलावा, कई अधिकारियों को सहायक जन/लोक  सूचना अधिकारी के पद पर सेवायोजित किया गया है. उनका कार्य केवल जनता से अर्जियां स्वीकारना व उचित पीआईओ के पास भेजना है.

अपनी अर्जी मैं कहाँ जमा करुँ ?
आप ऐसा पीआईओ या एपीआईओ के पास कर सकते हैं. केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में, 629  डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है. अर्थात् आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई पटल पर अपनी अर्जी व फीस जमा करा सकते हैं. वे आपको एक रसीद व आभार जारी करेंगे और यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व है कि वो उसे उचित पीआईओ के पास भेजे.

क्या इसके लिए कोई फीस है ? मैं इसे कैसे जमा करुँ ?
हाँ, एक अर्ज़ी फीस होती है. केंद्र सरकार के विभागों के लिए यह 10 रु. है. हालांकि विभिन्न राज्यों ने भिन्न-भिन्न  फीस रखीं हैं. सूचना पाने के लिए, आपको 2 रु. प्रति सूचना पृष्ठ केंद्र सरकार के विभागों के लिए देना होता है. यह विभिन्न राज्यों के लिए अलग-अलग है. इसी प्रकार दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए भी फीस का प्रावधान है. निरीक्षण के पहले घंटे की कोई फीस नहीं है लेकिन उसके पश्चात् प्रत्येक घंटे या उसके भाग की 5 रु. प्रतिघंटा फीस होगी. यह केन्द्रीय कानून के अनुसार है. प्रत्येक राज्य के लिए, सम्बंधित राज्य के नियम अलग-अलग हैं. आप फीस नकद में, डीडी या बैंकर चैक या पोस्टल आर्डर जो उस जन/लोक  प्राधिकरण के पक्ष में देय हो, द्वारा जमा कर सकते हैं. कुछ राज्यों में, आप कोर्ट फीस टिकटें खरीद सकते हैं व अपनी अर्ज़ी पर चिपका सकते हैं. ऐसा करने पर आपकी फीस जमा मानी जायेगी. आप अपनी अर्ज़ी स्वयं या डाक से जमा करा सकते हैं.

मुझे क्या करना चाहिए यदि पीआईओ या सम्बंधित विभाग मेरी अर्ज़ी स्वीकार न करे ?
आप इसे डाक द्वारा भेज सकते हैं. आप इसकी औपचारिक शिकायत सम्बंधित सूचना आयोग को भी अनुच्छेद 18 के तहत करें. सूचना आयुक्त को उस अधिकारी पर 25000 रु. का दंड लगाने का अधिकार है जिसने आपकी अर्ज़ी स्वीकार करने से मना किया था.

क्या सूचना पाने के लिए अर्ज़ी का कोई प्रारूप है ?
केंद्र सरकार के विभागों के लिए, कोई प्रारूप नहीं है. आपको एक सादा कागज़ पर एक सामान्य अर्ज़ी की तरह ही अर्ज़ी देनी चाहिए. हालांकि कुछ राज्यों और कुछ मंत्रालयों व विभागों ने प्रारूप निर्धारित किये हैं. आपको इन प्रारूपों पर ही अर्ज़ी देनी चाहिए. कृपया जानने के लिए सम्बंधित राज्य के नियम पढें.

मैं सूचना के लिए कैसे अर्ज़ी दूं ?
एक साधारण कागज़ पर अपनी अर्ज़ी बनाएं और इसे पीआईओ के पास स्वयं या डाक द्वारा जमा करें. (अपनी अर्ज़ी की एक प्रति अपने पास निजी सन्दर्भ के लिए अवश्य रखें)

मैं अपनी अर्ज़ी की फीस कैसे दे सकता हूँ ?
प्रत्येक राज्य का अर्ज़ी फीस जमा करने का अलग तरीका है. साधारणतया, आप अपनी अर्ज़ी की फीस ऐसे दे सकते हैं:
 
  • स्वयं नकद भुगतान द्वारा (अपनी रसीद लेना न भूलें)
  • डाक द्वारा:
डिमांड ड्राफ्ट से
भारतीय पोस्टल आर्डर से
मनी आर्डर से [केवल कुछ राज्यों में]
कोर्ट फीस टिकट से [केवल कुछ राज्यों में]
बैंकर चैक से
 
  • §कुछ राज्य सरकारों ने कुछ खाते निर्धारित किये हैं. आपको अपनी फीस इन खातों में जमा करानी होती है. इसके लिए, आप एसबीआई की किसी शाखा में जा सकते हैं और राशि उस खाते में जमा करा सकते हैं और जमा रसीद अपनी आरटीआई अर्ज़ी के साथ लगा सकते हैं. या आप अपनी आरटीआई अर्ज़ी के साथ उस विभाग के पक्ष में देय डीडी या एक पोस्टल आर्डर भी लगा सकते हैं.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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क्या मैं अपनी अर्जी केवल पीआईओ के पास ही जमा कर सकता हूँ ?
नहीं, पीआईओ के उपलब्ध न होने की स्थिति में आप अपनी अर्जी एपीआईओ या अन्य किसी अर्जी लेने के लिए नियुक्त अधिकारी के पास अर्जी जमा कर सकते हैं.

क्या करूँ यदि मैं  पीआईओ या एपीआईओ का पता न लगा पाऊँ ?
यदि आपको पीआईओ या एपीआईओ का पता लगाने में कठिनाई होती है तो आप अपनी अर्जी पीआईओ c/o विभागाध्यक्ष को प्रेषित कर उस सम्बंधित जन/लोक प्राधिकरण को भेज सकते हैं. विभागाध्यक्ष को वह अर्जी सम्बंधित पीआईओ के पास भेजनी होगी.

क्या मुझे अर्जी देने स्वयं जाना होगा ?
आपके राज्य के फीस जमा करने के नियमानुसार आप अपनी अर्जी सम्बंधित राज्य के विभाग में अर्जी के साथ डीडी, मनी आर्डर, पोस्टल आर्डर या कोर्ट फीस टिकट संलग्न करके डाक द्वारा भेज सकते हैं. केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में, 629  डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है अर्थात् आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई पटल पर अपनी अर्जी व फीस जमा करा सकते हैं. वे आपको एक रसीद व आभार जारी करेंगे और यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व है कि वो उसे उचित पीआईओ के पास भेजे.

क्या सूचना प्राप्ति की कोई समय सीमा है ?
हाँ, यदि आपने अपनी अर्जी पीआईओ को दी है, आपको 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए. यदि आपने अपनी अर्जी सहायक पीआईओ को दी है तो सूचना 35 दिनों के भीतर दी जानी चाहिए. उन मामलों में जहाँ सूचना किसी एकल के जीवन और स्वतंत्रता को प्रभावित करती हो, सूचना 48 घंटों के भीतर उपलब्ध हो जानी चाहिए.

क्या मुझे कारण बताना होगा कि मुझे फलां सूचना क्यों चाहिए ?
बिलकुल नहीं, आपको कोई कारण या अन्य सूचना केवल अपने संपर्क विवरण (जो हैं नाम, पता, फोन न.) के अतिरिक्त देने की आवश्यकता नहीं है. अनुच्छेद 6(2) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से संपर्क विवरण के अतिरिक्त कुछ नहीं पूछा जायेगा.

क्या पीआईओ मेरी आरटीआई अर्जी लेने से मना कर सकता है ?
नहीं, पीआईओ आपकी आरटीआई अर्जी लेने से किसी भी परिस्थिति में मना नहीं कर सकता. चाहें वह सूचना उसके विभाग/ कार्यक्षेत्र में न आती हो, उसे वह स्वीकार करनी होगी. यदि अर्जी उस पीआईओ से सम्बंधित न हो, उसे वह उपयुक्त पीआईओ के पास 5 दिनों के भीतर अनुच्छेद 6(2) के तहत भेजनी होगी.

इस देश में कई अच्छे कानून हैं लेकिन उनमें से कोई कानून कुछ नहीं कर सका. आप कैसे सोचते हैं कि ये कानून करेगा ?
यह कानून पहले ही कर रहा है. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार कोई कानून किसी अधिकारी की अकर्मण्यता के प्रति जवाबदेही निर्धारित करता है. यदि सम्बंधित अधिकारी समय पर सूचना उपलब्ध नहीं कराता है, उस पर 250 रु. प्रतिदिन के हिसाब से सूचना आयुक्त द्वारा जुर्माना लगाया जा सकता है. यदि दी गयी सूचना गलत है तो अधिकतम 25000 रु. तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. जुर्माना आपकी अर्जी गलत कारणों से नकारने या गलत सूचना देने पर भी लगाया जा सकता है. यह जुर्माना उस अधिकारी के निजी वेतन से काटा जाता है.

क्या अब तक कोई जुमाना लगाया गया है ?
हाँ, कुछ अधिकारियों पर केन्द्रीय व राज्यीय सूचना आयुक्तों द्वारा जुर्माना लगाया गया है.

क्या पीआईओ पर लगे जुर्माने की राशि प्रार्थी को दी जाती है ?
नहीं, जुर्माने की राशि सरकारी खजाने में जमा हो जाती है. हांलांकि अनुच्छेद 19 के तहत, प्रार्थी मुआवजा मांग सकता है.

मैं क्या कर सकता हूँ यदि मुझे सूचना न मिले ?
यदि आपको सूचना न मिले या आप प्राप्त सूचना से संतुष्ट न हों, आप अपीलीय अधिकारी के पास सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद 19(1) के तहत एक अपील दायर कर सकते हैं.

पहला अपीलीय अधिकारी कौन होता है ?
प्रत्येक जन/लोक प्राधिकरण को एक पहला अपीलीय अधिकारी बनाना होता है. यह बनाया गया अधिकारी पीआईओ से वरिष्ठ रैंक का होता है.

क्या प्रथम अपील का कोई प्रारूप होता है ?
नहीं, प्रथम अपील का कोई प्रारूप नहीं होता (लेकिन कुछ राज्य सरकारों ने प्रारूप जारी किये हैं). एक सादा पन्ने पर प्रथम अपीली अधिकारी को संबोधित करते हुए अपनी अपीली अर्जी बनाएं. इस अर्जी के साथ अपनी मूल अर्जी व पीआईओ से प्राप्त जैसे भी उत्तर (यदि प्राप्त हुआ हो) की प्रतियाँ लगाना न भूलें.

क्या मुझे प्रथम अपील की कोई फीस देनी होगी ?
नहीं, आपको प्रथम अपील की कोई फीस नहीं देनी होगी, कुछ राज्य सरकारों ने फीस का प्रावधान किया है.

कितने दिनों में मैं अपनी प्रथम अपील दायर कर सकता हूँ ?
आप अपनी प्रथम अपील सूचना प्राप्ति के 30 दिनों व आरटीआई अर्जी दाखिल करने के 60 दिनों के भीतर दायर कर सकते हैं.

क्या करें यदि प्रथम अपीली प्रक्रिया के बाद मुझे सूचना न मिले ?
यदि आपको प्रथम अपील के बाद भी सूचना न मिले तो आप द्वितीय अपीली चरण तक अपना मामला ले जा सकते हैं. आप प्रथम अपील सूचना मिलने के 30 दिनों के भीतर व आरटीआई अर्जी के 60 दिनों के भीतर (यदि कोई सूचना न मिली हो) दायर कर सकते हैं.

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द्वितीय अपील क्या है ?
द्वितीय अपील आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना प्राप्त करने का अंतिम विकल्प है. आप द्वितीय अपील सूचना आयोग के पास दायर कर सकते हैं. केंद्र सरकार के विभागों के विरुद्ध आपके पास केद्रीय सूचना आयोग है. प्रत्येक राज्य सरकार के लिए, राज्य सूचना आयोग हैं.

क्या द्वितीय अपील के लिए कोई प्रारूप है ?
नहीं, द्वितीय अपील के लिए कोई प्रारूप नहीं है (लेकिन राज्य सरकारों ने द्वितीय अपील के लिए भी प्रारूप निर्धारित किए हैं). एक सादा पन्ने पर केद्रीय या राज्य सूचना आयोग को संबोधित करते हुए अपनी अपीली अर्जी बनाएं. द्वितीय अपील दायर करने से पूर्व अपीली नियम ध्यानपूर्वक पढ लें. आपकी द्वितीय अपील निरस्त की जा सकती है यदि वह अपीली नियमों को पूरा नहीं करती है.

क्या मुझे द्वितीय अपील के लिए फीस देनी होगी ?
नहीं, आपको द्वितीय अपील के लिए कोई फीस नहीं देनी होगी. हांलांकि कुछ राज्यों ने इसके लिए फीस निर्धारित की है.

मैं कितने दिनों में द्वितीय अपील दायर कर सकता हूँ ?
आप प्रथम अपील के निष्पादन के 90 दिनों के भीतर या उस तारीख के 90 दिनों के भीतर कि जब तक आपकी प्रथम अपील निष्पादित होनी थी, द्वितीय अपील दायर कर सकते हैं.

यह कानून कैसे मेरे कार्य पूरे होने में मेरी सहायता करता है ?
यह कानून कैसे रुके हुए कार्य पूरे होने में सहायता करता है अर्थात् वह अधिकारी क्यों अब वह आपका रुका कार्य करता है जो वह पहले नहीं कर रहा था ?


एक उदाहरण.............सुचना अधिकार नियम का उपयोग कैसे होता है  ? 
आइए नन्नू का मामला लेते हैं. उसे राशन कार्ड बना कर नहीं दिया जा रहा था बार बार वह विभाग की चक्कर लगा कर परेशान हो चुका था . लेकिन जब उसने आरटीआई के तहत अपने राशन बनाने के बारे में आ रही अड़चन को जानने के लिये अर्जी दी,  उसे एक सप्ताह के भीतर राशन कार्ड बनाकर दे दिया गया. ऐसा क्या हो गया, नन्नू ने ऐसा क्या पूछा कि उसे एक सप्ताह में राशन कार्ड मिल गया ?  सुचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत उसने विभाग से निम्न प्रश्न पूछे थे :
1. मैंने एक राशन कार्ड बनाने के लिए 27-मई-2011 को अर्जी दी थी. कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक प्रगति बताएं अर्थात् मेरी अर्जी किस अधिकारी पर कब पहुंची, उस अधिकारी पर यह कितने समय रही और उसने उतने समय में क्या किया ?
2. नियमों के अनुसार, मेरा राशन कार्ड 10 दिनों के भीतर बन जाना चाहिए था. हांलांकि अब तीन माह से अधिक का समय हो गया है. कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया ?
3. इन अधिकारियों के विरुद्ध अपना कार्य न करने व जनता के शोषण के लिए क्या कार्रवाई की जायेगी ? वह कार्रवाई कब तक की जायेगी ?
4. मुझे कब तक अपना कार्ड मिल जायेगा ?
साधारण परिस्थितियों में, ऐसी एक अर्जी कूड़ेदान में फेंक दी जाती. लेकिन यह कानून कहता है कि सरकार को 30 दिनों में जवाब देना होगा. यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, उनके वेतन में कटौती की जा सकती है. अब ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना आसान नहीं होगा.

पहला प्रश्न है- कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक प्रगति बताएं.
कोई प्रगति हुई ही नहीं है. लेकिन सरकारी अधिकारी यह इन शब्दों में लिख ही नहीं सकते कि उन्होंने कई महीनों से कोई कार्रवाई नहीं की है. वरन यह कागज़ पर गलती स्वीकारने जैसा होगा.

अगला प्रश्न है- कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया.
यदि सरकार उन अधिकारियों के नाम व पद बताती है,  उनका उत्तरदायित्व निर्धारित हो जाता है. एक अधिकारी अपने विरुद्ध इस प्रकार कोई उत्तरदायित्व निर्धारित होने के प्रति काफी सतर्क होता है. इस प्रकार, जब कोई इस तरह अपनी अर्जी देता है, तो  उसका रुका कार्य संपन्न हो जाता है.

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मुझे सूचना प्राप्ति के पश्चात् क्या करना चाहिए ?
इसके लिए कोई एक उत्तर नहीं है. यह आप पर निर्भर करता है कि आपने वह सूचना क्यों मांगी व यह किस प्रकार की सूचना है. प्राय: सूचना पूछने भर से ही कई वस्तुएं रास्ते में आने लगतीं हैं. उदाहरण के लिए, केवल अपनी अर्जी की स्थिति पूछने भर से आपको अपना पासपोर्ट या राशन कार्ड मिल जाता है. कई मामलों में, सड़कों की मरम्मत हो जाती है जैसे ही पिछली कुछ मरम्मतों पर खर्च हुई राशि के बारे में पूछा जाता है. इस तरह, सरकार से सूचना मांगना व प्रश्न पूछना एक महत्वपूर्ण चरण है, जो अपने आप में कई मामलों में पूर्ण है.
लेकिन मानिये यदि आपने आरटीआई से किसी भ्रष्टाचार या गलत कार्य का पर्दाफ़ाश किया है, आप सतर्कता एजेंसियों, सीबीआई को शिकायत कर सकते हैं या एफ़आईआर भी करा सकते हैं. लेकिन देखा गया है कि सरकार दोषी के विरुद्ध बारम्बार शिकायतों के बावजूद भी कोई कार्रवाई नहीं करती. यद्यपि कोई भी सतर्कता एजेंसियों पर शिकायत की स्थिति आरटीआई के तहत पूछकर दवाब अवश्य बना सकता है. हांलांकि गलत कार्यों का पर्दाफाश मीडिया के जरिए भी किया जा सकता है. हांलांकि दोषियों को दंड देने का अनुभव अधिक उत्साहजनक नहीं है. लेकिन एक बात तो पक्की है कि इस प्रकार सूचनाएं मांगना और गलत कामों का पर्दाफाश करना भविष्य को संवारता है. अधिकारियों को स्पष्ट सन्देश मिलता है कि उस क्षेत्र के लोग अधिक सावधान हो गए हैं और भविष्य में इस प्रकार की कोई गलती पूर्व की भांति छुपी नहीं रहेगी. इसलिए उनके पकडे जाने का जोखिम बढ जाता है.

क्या लोगों को निशाना बनाया गया है जिन्होंने आरटीआई का प्रयोग किया व भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया?
हाँ, ऐसे कुछ उदाहरण हैं जिनमें लोगों को शारीरिक हानि पहुंचाई गयी जब उन्होंने भ्रष्टाचार का बड़े पैमाने पर पर्दाफाश किया. लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि प्रार्थी को हमेशा ऐसा भय झेलना होगा. अपनी शिकायत की स्थिति या अन्य समरूपी मामलों की जानकारी लेने के लिए अर्जी लगाने का अर्थ प्रतिकार निमंत्रित करना नहीं है. ऐसा तभी होता है जब सूचना नौकरशाह- ठेकेदार गठजोड़ या किसी प्रकार के माफ़िया का पर्दाफाश कर सकती हो कि प्रतिकार की सम्भावना हो.

तब मैं आरटीआई का प्रयोग क्यों करुँ?
पूरा तंत्र इतना सड़-गल चुका है कि यदि हम सभी अकेले या मिलकर अपना प्रयत्न नहीं करेंगे, यह कभी नहीं सुधरेगा. यदि हम ऐसा नहीं करेंगे, तो कौन करेगा ? हमें करना है. लेकिन हमें ऐसा रणनीति से व जोखिम को कम करके करना होगा. व अनुभव से, कुछ रणनीतियां व सुरक्षाएं उपलब्ध हैं.

ये रणनीतियां क्या हैं ?
कृपया आगे बढें और किसी भी मुद्दे के लिए आरटीआई अर्जी दाखिल करें. साधारणतया, कोई आपके ऊपर एकदम हमला नहीं करेगा. पहले वे आपकी खुशामद करेंगे या आपको जीतेंगे. तो आप जैसे ही कोई असुविधाजनक अर्जी दाखिल करते हैं, कोई आपके पास बड़ी विनम्रता के साथ उस अर्जी को वापिस लेने की विनती करने आएगा. आपको उस व्यक्ति की गंभीरता और स्थिति का अंदाजा लगा लेना चाहिए. यदि आप इसे काफी गंभीर मानते हैं, अपने 15 मित्रों को भी तुंरत उसी जन प्राधिकरण में उसी सुचना के लिए अर्जी देने के लिए कहें. बेहतर होगा यदि ये 15 मित्र भारत के विभिन्न भागों से हों. अब, आपके देश भर के 15 मित्रों को डराना किसी के लिए भी मुश्किल होगा. यदि वे 15 में से किसी एक को भी डराते हैं, तो और लोगों से भी अर्जियां दाखिल कराएं. आपके मित्र भारत के अन्य हिस्सों से अर्जियां डाक से भेज सकते हैं. इसे मीडिया में व्यापक प्रचार दिलाने की कोशिश करें. इससे यह सुनिश्चित होगा कि आपको वांछित जानकारी मिलेगी व आप जोखिमों को कम कर सकेंगे.

क्या लोग जन सेवकों का भयादोहन नहीं करेंगे ?
आईए हम स्वयं से पूछें- आरटीआई क्या करता है ? यह केवल जनता में सच सामने लेकर आता है. यह कोई सूचना उत्पन्न नहीं करता. यह केवल परदे हटाता है व सच जनता के सामने लाता है. क्या वह गलत है ? इसका दुरूपयोग कब किया जा सकता है ? केवल यदि किसी अधिकारी ने कुछ गलत किया हो और यदि यह सूचना जनता में बाहर आ जाये. क्या यह गलत है यदि सरकार में की जाने वाली गलतियाँ जनता में आ जाएं व कागजों में छिपाने की बजाय इनका पर्दाफाश हो सके. हाँ, एक बार ऐसी सूचना किसी को मिल जाए तो वह जा सकता है व अधिकारी को ब्लैकमेल कर सकता है. लेकिन हम गलत अधिकारियों को क्यों बचाना चाहते है ? यदि किसी अन्य को ब्लैकमेल किया जाता है, उसके पास भारतीय दंड संहिता के तहत ब्लैकमेलर के विरुद्ध एफ़आईआर दर्ज करने के विकल्प मौजूद हैं. उस अधिकारी को वह करने दीजिये. हांलांकि हम किसी अधिकारी को किसी ब्लैकमेलर द्वारा ब्लैकमेल किये जाने की संभावनाओं को सभी मांगी गयी सूचनाओं को वेबसाइट पर डालकर कम कर सकते हैं. एक ब्लैकमेलर किसी अधिकारी को तभी ब्लैकमेल कर पायेगा जब केवल वही उस सूचना को ले पायेगा व उसे सार्वजनिक करने की धमकी देगा. लेकिन यदि उसके द्वारा मांगी गयी सूचना वेबसाइट पर डाल दी जाये तो ब्लैकमेल करने की सम्भावना कम हो जाती है.

क्या सरकार के पास आरटीआई अर्जियों की बाढ नहीं आ जायेगी और यह सरकारी तंत्र को जाम नहीं कर देगी ?
ये डर काल्पनिक हैं. 65 से अधिक देशों में आरटीआई कानून हैं. संसद में पारित किए जाने से पूर्व भारत में भी 9 राज्यों में आरटीआई कानून थे. इन में से किसी सरकार में आरटीआई अर्जियों की बाढ नहीं आई. ऐसे डर इस कल्पना से बनते हैं कि लोगों के पास करने को कुछ नहीं है व वे बिलकुल खाली हैं. आरटीआई अर्ज़ी डालने व ध्यान रखने में समय लगता है, मेहनत व संसाधन लगते हैं.
आईये कुछ आंकडे लें. दिल्ली में, 60 से अधिक महीनों में 120 विभागों में 14000 अर्जियां दाखिल हुईं. इसका अर्थ हुआ कि 2 से कम अर्जियां प्रति विभाग प्रति माह. क्या हम कह सकते हैं कि दिल्ली सरकार में आरटीआई अर्जियों की बाढ नहीं आ गई ?  यूएस सरकार को 2003- 04 के दौरान आरटीआई अधिनियम के तहत 3.2 मिलियन अर्जियां प्राप्त हुईं. यह उस तथ्य के बावजूद है कि भारत से उलट, यूएस सरकार की अधिकतर सूचनाएं नेट पर उपलब्ध हैं और लोगों को अर्जियां दाखिल करने की कम आवश्यकता होनी चाहिए. लेकिन यूएस सरकार आरटीआई अधिनियम को समाप्त करने का विचार नहीं कर रही. इसके उलट वे अधिकाधिक संसाधनों को इसे लागू करने में जुटा रहे हैं. इसी वर्ष, उन्होंने 32 मिलियन यूएस डॉलर इसके क्रियान्वयन में खर्च किये.

क्या आरटीआई अधिनियम के क्रियान्वयन में अत्यधिक संसाधन खर्च नहीं होंगे ?
आरटीआई अधिनियम के क्रियान्वयन में खर्च किये गए संसाधन सही खर्च होंगे. यूएस जैसे अधिकांश देशों ने यह पाया है व वे अपनी सरकारों को पारदर्शी बनाने पर अत्यधिक संसाधन खर्च कर रहे हैं. पहला, आरटीआई पर खर्च लागत उसी वर्ष पुनः उस धन से प्राप्त हो जाती है जो सरकार भ्रष्टाचार व गलत कार्यों में कमी से बचा लेती है. उदहारण के लिए, इस बात के ठोस प्रमाण हैं कि कैसे आरटीआई के वृहद् प्रयोग से राजस्थान के सूखा राहत कार्यक्रम और दिल्ली की जन वितरण प्रणाली की अनियमितताएं कम हो पायीं.
दूसरा, आरटीआई लोकतंत्र के लिए बहुत जरुरी है. यह हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा है. जनता की सरकार में भागीदारी से पहले जरुरी है कि वे पहले जानें कि क्या हो रहा है. इसलिए, जिस प्रकार हम संसद के चलने पर होने वाले खर्च को आवश्यक मानते हैं, आरटीआई पर होने वाले खर्च को भी जरुरी माना जाये.

लेकिन प्राय:लोग निजी मामले सुलझाने के लिए अर्जियां देते हैं ?
जैसा कि ऊपर दिया गया है, यह केवल जनता में सच सामने लेकर आता है. यह कोई सूचना उत्पन्न नहीं करता. सच छुपाने या उस पर पर्दा डालने का कोई प्रयास समाज के हित में नहीं हो सकता. किसी लाभदायक उद्देश्य की प्राप्ति से अधिक, गोपनीयता को बढावा देना भ्रष्टाचार और गलत कामों को बढावा देगा. इसलिए, हमारे सभी प्रयास सरकार को पूर्णतः पारदर्शी बनाने के होने चाहिए. हांलांकि, यदि कोई किसी को आगे ब्लैकमेल करता है, कानून में इससे निपटने के प्रचुर प्रावधान हैं. दूसरा, आरटीआई अधिनियम के अनुच्छेद 8 के तहत कई बचाव भी हैं. कोई सूचना जो किसी के निजी/व्यक्तिगत  मामलों से सम्बंधित है व इसका जनहित से कोई लेना- देना नहीं है को प्रकट नहीं किया जायेगा. इसलिए, मौजूदा कानूनों में लोगों के वास्तविक उद्देश्यों से निपटने के पर्याप्त प्रावधान हैं.

लोगों को ओछी/ तुच्छ अर्जियां दाखिल करने से कैसे बचाया जाए ?
कोई अर्ज़ी ओछी/ तुच्छ नहीं होती. ओछा/ तुच्छ क्या है ? मेरा पानी का रुका हुआ कनेक्शन मेरे लिए सबसे संकटपूर्ण हो सकता है, लेकिन एक नौकरशाह के लिए यह ओछा/ तुच्छ हो सकता है. नौकरशाही में निहित कुछ स्वार्थों ने इस ओछी/ तुच्छ अर्जियों के दलदल को बढाया है. वर्तमान में, आरटीआई अधिनियम किसी भी अर्ज़ी को इस आधार पर निरस्त करने की इजाज़त नहीं देता कि वो ओछी/ तुच्छ थी. यदि ऐसा हो, प्रत्येक पीआईओ हर दूसरी अर्ज़ी को ओछी/ तुच्छ बताकर निरस्त कर देगा. यह आरटीआई के लिए जीवीत समाधि के समान होगा.

फाइल टिप्पणियां सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए क्योंकि यह ईमानदार अधिकारियों को ईमानदार सलाह देने से रोकेगा ?
यह गलत है. इसके उलट, हर अधिकारी को अब यह पता होगा कि जो कुछ भी वो लिखता है वह जन-समीक्षा का विषय हो सकता है. यह उस पर उत्तम जनहित में लिखने का दवाब बनाएगा. कुछ ईमानदार नौकरशाहों ने अलग से स्वीकारा है कि आरटीआई ने उनकी राजनीतिक व अन्य प्रभावों को दरकिनार करने में बहुत सहायता की है. अब अधिकारी सीधे तौर पर कहते हैं कि यदि उन्होंने कुछ गलत किया तो उनका पर्दाफाश हो जायेगा यदि किसी ने उसी सूचना के बारे में पूछ लिया. इसलिए, अधिकारियों ने इस बात पर जोर देना शुरू कर दिया है कि वरिष्ठ अधिकारी लिखित में निर्देश दें. सरकार ने भी इस पर मनन करना प्रारंभ कर दिया है कि फाइल टिप्पणियां आरटीआई अधिनियम की सीमा से हटा दी जाएँ. उपरोक्त कारणों से, यह नितांत आवश्यक है कि फाइल टिप्पणियां आरटीआई अधिनियम की सीमा में रहें.

जन सेवक को निर्णय कई दवाबों में लेने होते हैं व जनता इसे नहीं समझेगी ?
जैसा ऊपर बताया गया है, इसके उलट, इससे कई अवैध दवाबों को कम किया जा सकता है.

सरकारी रेकॉर्ड्स सही आकार में नहीं हैं. आरटीआई को कैसे लागू किया जाए ?
आरटीआई तंत्र को अब रेकॉर्ड्स सही आकार में रखने का दवाब डालेगा. वरन अधिकारी को अधिनियम के तहत दंड भुगतना होगा.

विशाल जानकारी मांगने वाली अर्जियां रद्द कर देनी चाहिए ?
यदि मैं कुछ जानकारी चाहता हूँ, जो एक लाख पृष्ठों में आती है, मैं ऐसा तभी करूँगा जब मुझे इसकी आवश्यकता होगी क्योंकि मुझे उसके लिए 2 लाख रुपयों का भुगतान करना होगा. यह एक स्वतः ही हतोत्साह करने वाला उपाय है. यदि अर्ज़ी इस आधार पर रद्द कर दी गयी, तो प्रार्थी इसे तोड़कर प्रत्येक अर्ज़ी में 100 पृष्ठ मांगते हुए 1000 अर्जियां बना लेगा, जिससे किसी का भी लाभ नहीं होगा. इसलिए, इस कारण अर्जियां रद्द नहीं होनी चाहिए कि:
"लोगों को केवल अपने बारे में सूचना मांगने दी जानी चाहिए. उन्हें सरकार के अन्य मामलों के बारे में प्रश्न पूछने की छूट नहीं दी जानी चाहिए", पूर्णतः इससे असंबंधित है:
आरटीआई अधिनियम का अनुच्छेद 6(2) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से यह नहीं पूछा जा सकता कि क्यों वह कोई जानकारी मांग रहा है. किसी भी मामले में, आरटीआई इस तथ्य से उद्धृत होता है कि लोग टैक्स/ कर देते हैं, यह उनका पैसा है और इसीलिए उन्हें यह जानने का अधिकार है कि उनका पैसा कैसे खर्च हो रहा है व कैसे उनकी सरकार चल रही है. इसलिए लोगों को सरकार के प्रत्येक कार्य की प्रत्येक बात जानने का अधिकार है. वे उस मामले से सीधे तौर पर जुड़े हों या न हों. इसलिए, दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति कोई भी सूचना मांग सकता है चाहे वह तमिलनाडु की हो.
आरटीआई अधिनियम का अनुच्छेद 6(2) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से यह नहीं पूछा जा सकता कि क्यों वह कोई जानकारी मांग रहा है. किसी भी मामले में, आरटीआई इस तथ्य से उद्धृत होता है कि लोग टैक्स/ कर देते हैं, यह उनका पैसा है और इसीलिए उन्हें यह जानने का अधिकार है कि उनका पैसा कैसे खर्च हो रहा है व कैसे उनकी सरकार चल रही है. इसलिए लोगों को सरकार के प्रत्येक कार्य की प्रत्येक बात जानने का अधिकार है. वे उस मामले से सीधे तौर पर जुड़े हों या न हों. इसलिए, दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति या देश के किसी भी भू-भाग पर निवास करने वाला भारतीय नागरिक कोई भी सूचना मांग सकता है चाहे वह तमिलनाडु  या केरल की हो.

(स्रोत:विभिन्न इन्टरनेट वेबसाईट, सूचना का अधिकार अधिनियम बेयर एक्ट-२००५)

 

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