Uttarakhand Updates > Articles By Esteemed Guests of Uttarakhand - विशेष आमंत्रित अतिथियों के लेख

Article by Famous Scientiest Ram Prasad Ji - वैज्ञानिक राम प्रसाद जी के लेख

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     गुमोद परिक्रमा
 

      राष्ट्रपति जी स्वतंत्रता दिवस से पहले सांसदों के समक्ष कुछ कहना चाहते थे। सरकार फंस गई।इज़ाज़त नहीं मिली। राष्ट्रपति को तो पिंजड़े में रहना है। यह तो रही औपचारिकता की बात। पर विकास किसी औपचारिकता का बंधक नहीं है। ऐसा नहीं है कि फाइलें घुमाओ और  विकास प्रकट हो जाए। न जादू है न मशीन। विकास तो आदमी द्वारा की गई मेहनत है। मेहनत ग़लत दिशा में भी जा सकती है। विकास सही दिशा में की गई मेहनत है। विकास की अपनी औपचारिकता है। यह औपचारिकता सही दिशा में की गई मेहनत को जमा करती है। साथ ही साथ उल्टी दिशा में की गई मेहनत को सही दिशा देने की कोशिश भी करती है। ऐसा हुआ तो विकास होगा। नहीं तो नहीं।

      उत्तरांचल देश का छोटा सा राज्य है। नया है। नया हुआ तो क्या हुआ। औपचारिकता तो पुरानी है। अंग्रेज़ों के जमाने की है।गोरे गए। काले आए।गोरे गए कहां। फट्टा ड्राइवर नरेंद्र को गोरे के नाम से जानता है।  और नरेंद्र जी फट्टे पर ही रहते हैं। गोरे काले का भेद तो अंग्रेज़ों ने जानबूझ कर, सोच समझ कर किया। वह तन तो गोरा नहीं बना सकते थे। हार्डवेअर तो वही रहेगा जो भगवान ने दिया है। चाहें तो कहें कि जो ख़ुदा ने दिया है। श्चाहें तो कहें कि जो गाॅड ने दिया है। पर साफ्टवेअर तो लादा जा सकता है। ड्राइवर के मन के क्या कहने। क्रिकेट मैच देखने के लिए वह क्या कुछ नहीं करता। अंग्रेज़ यहां अपने नेताओं को नहीं लाए थे। वह लाए थे अफ़सर।हार्डवेअर गोरे से काला हो गया पर साॅफ्टवेअर जैसा था वैसे  का वैसा हैं।

      अंग्रेज़ों के केशव का नाम था ईस्ट इंडिया कंपनी।इस कंपनी ने न तो महात्मा गांधी बनना था न अब्दुल कलाम। इस के हाथ मे उपनिवेशवाद का झंडा था।  इसे उसी झंडे को पकड़े रहना था। वही झंडा यह आज तक पकड़े हुए है। विकास कैसे होगा? अब  वैज्ञानिक राष्ट्रपति बने हैं।  कोई न कोई रास्ता ढूंढ लेंगे।

मैने फट्टे को विज्ञान मंत्री बचीसिंह रावत का पत्र दिखाया। यह पत्र उस हिन्दी पत्र के संदर्भ में था जो मैने उत्तरांचल के सांसदों, पूर्व सांसदों और संबंधित पक्षों को लिखा था। पत्र हिंदी में था। ड्राइवर इसे पढ़ और समझ सकते थे।  मैंने बताया कि बचीसिंह जी की विज्ञान मंत्री के रूप में नियुक्ति उसी समय हुई जिस समय डाक्टर अब्दुल कलाम प्रधान मंत्री के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार बने। संदेश साफ था। प्रधान मंत्री ने उससे कुछ समय पहले जय विज्ञान का नारा दिया था। प्रधान मंत्री चाहते थे कि इस नए नारे का मतलब यह नहीं है कि पुरानी शराब को नई बोतल में पेश किया जाए। ट्नौर्ड वर्षाें से जोर दे रही थी कि ग्रामीण विकास टेक्नोलौजिकल नर्सरियों के माध्यम से ही हो सकता है। रावतजी का पत्र इस बात का संकेत था कि वह इस दिशा में कितने उत्सुक हैं।

      वैज्ञानिक  को ट्नौर्ड से संबंधित कर उन्होंने उत्तरांचल के विकास के लिए एक और रास्ता खोलने का प्रयास किया । उक्त वैज्ञानिक की रिपोर्ट पर आवश्यक कार्यवाही की जा रही है। पहाड़ का  अपना भूगोल है। अपनी जलवायु है। अपना वातावरण है। अपने लोग हैं। अपना इतिहास है। यही विकास के मूल साधन हैं। चुनौती है कि इन साधनों का उपयोग कर विज्ञान क्या कर सकता है। उक्त वैज्ञानिक की भांति दूसरे वैज्ञानिक भी ट्नौर्ड से संबंधित किए जा सकते हैं। 

इसी प्रकार उत्तरांचल के पर्यटन मंत्री जनरल तेजपाल सिंह रावत ने लेंस प्रोजेक्ट के लीडर श्री वी के जैन को अपना प्रतिनिधि बनाने का विश्वास दिलाया है। इस पदवी के मिल जाने के बाद जैन साहब को देहरा दून और धुमाकोट में काम करने की सहूलियतें मिल जाएंगी। संगलिया गांव घुमाकोट से तीन किलोमीटर की दूरी पर है।  यहां पर मूल प्रयोगशाला के भवन निर्माण के लिए जनरल खंडूरीने अपनी सांसद निधि से दो लाख रुपए का अनुदान दिया है।  राज्य सभा सांसद ध्यानी जी ने भी अपनी सांसद निधि से काम के विस्तार के लिए इतनी ही वित्तीय सहायता दी है। उत्तरांचल के दूसरे राज्य सभा सदस्यों से भी इस बारे में संपर्क बनाया जा रहा है।

राष्ट्रपति जी गुजरात जा रहे हैं। भूपाल जाने वाले हैं। रुकावट नहीं आई। यदि वह संगलिया आते हैं तो भी रुकावट नहीं आनी चाहिए। तिवारी जी के लिए बड़ा अवसर है। कभी उन्होंने ट्नौर्ड बनाने के लिए आयोजित गोष्ठी का उद्धाटन किया था। अब वह ट्नौर्ड का उद्धाटन राष्ट्रपति जी से कराएंगे।

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गुमोद परिक्र्रमा

 

गुमोद परिक्रमा उत्तरांचल के एक गांव गुमोद का चक्कर लगा रही है। प्यारा उत्तराखंड साप्ताहिक में श्उत्तरांचल लेंस उद्योग एक कल्पना जो साकार होती जा रही है .गुमोद परिक्रमाश्श् के ष्शीर्षक से छपी। बाद में गुमोद परिक्र्रमा फट्टे की सरकार शीर्षेक से एक नियमित स्तंभ बन गई। यह उस समय की बात है जब कि अमेरिका पर आतंकवादी हमला हुआ ही था। याने 11 सितंबर के बाद की। गुमोद परिक्र्रमा शुरू तो कई महीने पहले ही हो चुकी थी पर छप अब रही थी। पहले यह चक्करबाजी एक प््राकार से गणेशजी  जैसी परिक्रमा थी जिन्होंने घर बैठे ही तीनों लोकों की परिक्रमा कर ली थी। गुमोद गांव के ड्रªाइवर मयूर विहार के समाचार टैक्सी स्टैंड के गढ़वाली फट्टे पर बैठकर सोचते थे कि अपने गाँव का विकास कैसे करें। इस परिचर्चा में वह दूसरे राज्यों से आए हुए सभी ड्राइवरो को भी ष्शामिल करते थे।

      इस प्रकार गुमोद ख़ास गाँव न रह कर आम गाँव बन गया। गुमोद उत्तरांचल का  गाँंव है। इसलिये उत्तरांचल भी खा़स राज्य न रह कर आम राज्य बन गया।  पात्र गुमोद और उत्तरांचल ही रहे। केवल व्यक्तिगत संज्ञा को जातिगत अर्थ मिल गया। सभी ड्ªाइवरों में गुमोद परिक्रमा के लिये एक सा उत्साह था।

      इस माहौल में बनी फट्टे की सरकार याने खेल उत्तरांचल सरकार। मुख्य मंत्री ड्राइवर फणींद्र जी बने। फणींद्र जी बंगाल के भरना गांव के रहने वाले हैं। नित्यानंद स्वामी उस समय असली उत्तरांचल सरकार के मुख्य मंत्री थे। स्वामी जी वैसे तो हैं घोर उत्तरांचली। पर पाॅलिटिक्स है। देहरादून में पैदा हुएं। देहरादून में पढ़े। छात्र नेता बने। देहरादून ही उनका कुरूक्षेत्र रहा। उनके पूर्वज हरियाणा के ज़रूर थे जहां असली कुरूक्षेत्र है। पाॅलिटिक्स ने कहा स्वामी जी बाहर से लाए गए हैं। फट्टे ने इसी कारण फणींद्र जी को मुख्य मंत्री बनाया। कहा कि बंगाल और उत्तरांचल अलग कहां। वह तो गंगा की पवित्र डोरसे बंधे हैं। गंगा पैदा तो उत्तरांचल में हुई है पर पूर्णता उसे बंगाल में मिली। उस समय नारायणसिंह राणा उत्तरांचल के खेल मंत्री थे। फट्टे पर भी एक राणा थे। संतोष राणा।क्या हुआ यदि यह राणा उत्तरांचल के न होकर हिमाचल के हैं तो पहाड़ी। उन्हें खेल मंत्री बना दिया गया। फट्टे के नेता । ड्र्ाइवर भूपाल सिंह को विकास मंत्री बनाया गया। असली उत्तरांचल सरकार में यह भूमिका केदार सिंह फोनिया को मिली थी। पाॅलिटिक्स के अनुसार मुख्य मंत्री पद के असली दावेदार वही थे। कुछ आपसी झगड़े और कुछ मैदानी भागों की शंकाओं को न पनप देने की ज़रूरत। गद्दी स्वामी जी के हाथ आई।

      उधर उत्तरांचल सरकार चलती रही इधर खेल सरकार चलती रही। खेल खेला जाता रहा । विकास का खेल तो खेला ही नहीं गया। स्वामी जी की सरकार गिर गई। कोशियारी जी की सरकार बनी। चुनाव हुए। सरकार हार गई। नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने। उत्साहित प्यारा उत्तराखंड ने स्तम्भ का नाम विज्ञान की सरकार रख दिया। पाठकों ने विरोध किया। प्यारा उत्तराखंड को फट्टे की सरकार को बहाल करना पड़ा।

      गुमोद परिक्रमा ने कभी भी अपने आप को संकीर्ण दायरे में क़ैद नहीं होने दिया। वह विज्ञान पोषित ग्रामीण विकास की पक्षधर हैए पहले भी थी और भविष्य में भी रहेगी। टैक्सी स्टैण्ड के मालिक सरदार अमरीक सिंह का गाँव लाड़ोई है। पंजाब में है। उस की परिक्रमा हो रही है। फणीन्द्र जी के गाँव का नाम श्रना है। बंगाल में है। उस की परिक्रमा हो रही है।   ड्राइवर संतोष राणा का गाँव पंतेहड़ है। हिमाचल में है। उसकी परिक्रमा हो रही है। ड्राइवर विजय मल्लिक हरियाणा के आँवली गाँव के हैं। इस गाँव की परिक्रमा हो रही है। ड्राइवर मनोज बिहार के धमदाहा गाँव के हैं। धमदाहा की परिक्रमा हो रही है। द्रोणाचार्य अपार्टमेंट्स के प्लम्बर कुलमणि प्रधान उड़ीसा के बाडापल्ली गाँव के हैं। इस गाँव की परिक्रमा हो रही है। द्रोणाचार्य अपार्टमेंट्स में ही कपड़ों पर प्रेस का काम करने वाले देशराज जी उत्तर प्रदेश के बहिरगोड़वा और उनके साथी मस्तराम जी सामदगोड़वा के रहने वाले  हैं। इन दोनों गाँवों की परिक्रमा हो रही है।

      विज्ञान इन गाँवों को क्या दे सकता है?   इस प्रष्न का उत्तर गुमोद आप्टिकल फैक्टरी देगी। इस काल्पनिक फैक्टरी के सूत्रधार रमेष चंद्र  शर्मा हैं। वह ड्राइवर केषव के बड़े भाई हैं। उन्होंने जब अपने इरादों के बारे में बताया तो मैंने सोचा कि उनके लिए किसी काम की ष्शुरूआत की जा सकती है। कच्चे डिजायनों पर डिजायन गुमोद परिक्रमा के माध्यम से बनाये गये। षुरू शुरू में उन्हें ष्शायद अपने आप पर भरोसा न था।  इसलिए ट्नौर्ड से खिंचे खिंचे से रहते थे। अब बड़े उत्साह के साथ मैदान में हैं। वह गुमोद परिक्रमा चला सकने की क्षमता रखते हैं। पर तैयारी में समय लग सकता है। पहले वह गुमोद परिक्रमा को ई मेल  ष्द्वारा उत्तराखंड प्रभात जैसे अखबारों को भेज सकते हैं जिनके पास यह सुविधा है।  यह पाक्षिक भी गुमोद परिक्रमा को नियमित रूप से गाँव की फ्लापी शहरी कम्प्यूटर नामक स्तंभ के अंतर्गत स्थान देता है।

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गुमोद परिक्रमा


उत्तरांचल में अभी लेंस उद्योग स्थापित नहीं हुआ है। चेष्टा की जा रही है। चेष्टा ट्नौर्ड नाम की संस्था के माध्यम से हो रही है। मैं ट्नौर्ड का व्यवस्था निदेशक हूँ।

      सरदार प्रताप सिंह कैरों जब पंजाब के मुख्य मंत्री थे तो उन्होंने भारत सरकार पर ज़ोर डाल कर केंद्रीय उपकरण संगठन चंडीगढ़ में स्थापित करवा दिया। मैं इस संगठन में वैज्ञानिक था। संगठन नया नया था। उसको संयुक्त राष्ट्र संघ और स्विस फाउंडेशन से मदद मिली थी। नेहरूजी चंडीगढ़ आए। उन्होंने इंडोस्विस ट्रेनिंग सेंटर का उद्घाटन किया। इस अवसर पर मुझे नेहरूजी से हाथ मिलाने का मौका मिला। बाद में केंद्रीय षिक्षा मंत्री छागला साहब ने संगठन की प्रयोगषाला का उद्घाटन किया। वह मेरे विभाग में भी आए। उन्होंने मेरी और मेरे विभाग की तारीफ़ की।

      मेरे विभाग में दो विदेषी सलाहकार थे । एक थे एफ़ एच बौप। जर्मनी के थे। आर्डनैंस फैक्टरी देहरादून में काम कर चुके थे। दूसरे थे ए सेनहाउज़र। स्विट्ज़रलैंड के थे। पाकिस्तान में काम कर चुके थे। आस्ट्रेलिया के एबल साहब आने वाले थे। उस समय सोलन में एक आप्टिकल फैक्टरी थी। उस फैक्टरी के पार्टनर अंबाला के जैन साहब थे। यह फैक्टरी जर्मनी से लेंस मंगवा कर उनको पीतल के आवरणों में फिट करती थी। उस समय अंबाला में स्कूलों और कालेजों में लगने वाले सारे उपकरण बनते थे। अब भी बनते हैं। मैं, बाॅप साहब और सेनहाउज़र साहब सोलन गए। इस फैक्टरी को देखा। बाॅप और सेनहाउज़र एकमत थे। आप्टिकल फैक्टरी बनाने के लिए सोलन उपयुक्त स्थान था।  हमने हिमाचल सरकार से बात की। वह जानती ही नही थी कि इस उद्योग की क्या उपयोगिताा हो सकती थी।  सोलन की बनी बनाई फैक्टरी को जैन साहब अंबाला ले गए। केंद्रीय उपकरण संगठन की मदद से उन्होंने काम बढ़ाया। हरियाणा सरकार की मदद से अंबाला में ही उपकरण उद्योग के लिए सहायता केंद्र बनाया गया। कष्मीर सरकार ने वायदे तो किए गए पर उनका कोई मतलब न था।

मेरा केंद्रीय उपकरण संगठन के निदेशक से झगड़ा हो गया। मेरी बदली दिल्ली हो गई। तब तक दिल्ली में कंप्यूटर आ गया था। मैं अपने अनुसंधान में जुट गया। जब मैंने महसूस किया कि मेरी रिसर्च के आधार पर लेंस उद्योग आगे बढ़ाया जा सकता है तो मैंने उत्तराखंड आंदोलन का सहारा लिया। टेहरी के महाराजा मानवेंद्र शाह ने दिल्ली में एक बहुत बड़ी गोष्ठी की । उस समय केंद्र में भक्त दर्शन शिक्षा मंत्री थे। वह गढ़वाल क्षेत्र के थे। लखनऊ में मुख्य मंत्री चंद्रभानु गुप्ता रानीखेत क्षेत्र के थे। रतनपुर विकास समिति नामक संस्था के माध्यम से उत्तराखंड में लेंस उद्योग स्थापित किए जाने का प्रयास किया गया। इस प्रयास को भक्त दर्शन जी ने भी सहयोग दिया और चंद्रभानु गुप्ताजी ने भी । रतनपुर विकास समिति गढ़वाल, अल्मोड़ा और नैनीताल जिलों के संलग्न भागों के विकास के लिए कार्य कर रही थी। इसीलिए यह प्रयास क्षेत्रीय रस्साकसी से बाहर रहा। तब उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ जिले नहीं बने थे। चंपावत जिला तो दूर की बात थी।

    आॅप्टिक्स के ऊपर बहुत पैसा बहा। फिर भी तरक्की नहीं हुई। चंडीगढ़ में संयुक्त राष्ट्र की मदद से सहूलियतें बढ़ीं। संयुक्त राष्ट्र की ही मदद से लगभग उतनी ही सुविधाएं अंबाला में भी पैदा की गईं। आॅप्टिक्स बन भी रही है। जैन साहब के प्रयास से उनकी फर्म तरक्की कर रही है। पर फर्म अपना रूपया रिसर्च एंड डेवेलपमेंट में एक हद तक ही लगा सकती है। आगे की प्रगति के लिए सरकार को और अधिक पैसा रिसर्च एंड डेवेेलपमेंट में लगाना होगा। यह रिसर्च एंड डेवेलपमेंट ट्नौर्ड की तर्ज पर होना चाहिए क्योंकि ऐसी ही विधि से चीन ने बड़ी सफलता पाई है। कैरों साहब ने केंद्रीय उपकरण संगठन की मदद की थी। ट्नौर्ड को भी  तिवारी जी से ऐसी ही मदद की आशा है।

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केषव जी के पास एक क़ागज़ का थैला था। उन्होंने यह थैला मुझे दिया। कहा कि लेख  इसमें रखकर लाऊँ। ड्राइवर देवसिंहजी ने वह थैला मुझ से ले लिया। कहा कि थैले में वह अपना खाने का डिब्बा लेकर काम पर जाएँगे। रमेषचन्द्र ष्षर्मा अब प्रतिष्ठित पद पर आ गए हैं। मैंने उन्हें खाने का डिब्बा ले जाते हुए देखा है। तब उन्हें कोई झिझक नहीं होती थी। अब वह एक ऐसे बैग की तलाष में हैं जिससे यह न लगे कि वह खाने का डिब्बा लेकर जा रहे हैं। अब तो वह आध्यात्मवाद की पुस्तकें अपने बैग में रखेंगे। उनका खाने का डिब्बा उन्हें पडे़गा उस खाने को खाकर उन्हें अदृष्य ज्ञान अदृष्य रूप में प्राप्त होगा यही तो है आज का प्रचलन । ड्राइवर देवसिंह अपना डिब्बा कागज में थैले में ले गये हैं। कागज का थैला बाहर से चमकीला है। पर अन्दर से तो है वह पूरा गत्ता। देवसिंह जी के खाने में जो सुगन्ध या ज्ञान होगा। वह पूरा पूरा गत्ता सोख लेगा। वह रह जाएंगे कोरे के कोरे।

मैं केषव जी को अच्छी तरह से जानता हूं। मैं उन्हें कोई पत्र-पत्रिकाएं थैले में भरकर दे देता तो वह इन्हें पढ़ते नहीं । वह एक काम एक बार करते हैं पूरी सफाई के साथ। पढ़ाई करेंगे तो उसी में जुट जाएंगे। वह ट्नौर्ड से जुडे़गे तो बड़ी सफाई के साथ । गुमौद आप्टिकल फैक्ट्री बनाएंगे तो पूरी सफाई के साथ । पता चला कि नेता जी भूपाल सिंह बोहरा के पिताजी बडे़ पण्डित और ज्ञानी हैं। नेताजी ने बताया कि उन्हें षास्त्रों का ज्ञान उन्हीं के द्वारा मिला है। अब बाल नेता बबलू वोहरा और रमेश वोहरा उनकी संगत में हैं। वह दोनों गांव में हैं। न नेता जी की संगत में हैं और न फट्टे की। क्या मालूम अभी से वह दोनों ज्ञानी बन गए हों। महाभारत में जहां ड्ाइवर केशव अर्जुन को गीता का ज्ञान देते हैं वहां बाल संत सनुत कुमारों की  बात भी की जाती है। जहां गीता का अपना महत्व है वहां सनुतजातीय अंश की अवहेलना भी नहीं की ंजा सकतीं । महाभारत तो महाकाव्य है। उसमें जगह जगह ज्ञान व्याख्या की गई है। जब तक गुमोद आॅप्टिकल फैक्टरी नामक महाभारत तैयार होता है तब तक बालनेता बंधु बड़े हो जाएंगे। ज्ञान के साये में पनपे नेता बंधु विकास का नया महाभारत रच सकते हैं ।

रमेश चंद्र शर्मा से महाभारत पर चर्चा हुई। उहें महाभारत का केवल एक पात्र याद है। यह पात्र है अभिमन्यु । मैंने कहा कि यह तो उनके पुत्र का ही नाम है। शर्मा बंधु पांच भाई हैं। पांडव भी पांच भाई थे। अभिमन्यु अर्जुन का पुत्र था। वह तीसरे नंबर के भाई थे। रमेश जी भी तीसरे नंबर के भाई हैं। पहले भाई जगदीश जी युद्विष्ठिर हुए। दूसरे नंबर के भाई वहां भीम थे यहां भी भीम हैं। अब आते हैं रमेश जी। अर्जुन थे अर्जुन हैं और अर्जुन ही रहेंगे। महाभारत के नकुल और सहदेव अश्विनी कुमारों के पुत्र कहे जाते हैं। अश्विनी कुमार उस युग के डाक्टर थे। नकुल पशुओं की देखरेख करते थे और सहदेव दवादारू की।  मैंने रमेष जी को बताया कि इन पांचों भाइयों की एक पत्नी थी। नाम था द्रौपदी। बोले कितनी अच्छी व्यवस्था थी। झगड़े की जड़ ही नहीं रही तो शांति ही शांति। मैंने कहा कि महाभारत तो कहानी ही कलह अैार यु,द्व की है। ष्शांति पर्व तो महाभारत का अंतिम पड़ाव है। शायद तब बहुपति प््राथा आम थी। पांडवों के पिता पांडु की दो पत्नियां थीं। पहले तीन भाई कुंती की कोख से पैदा हुए थे और अंतिम दो भाइयों की माता का नाम माद्री था।माद्री अपने दोनों पुत्रों को कुंती को सौंप कर पांडु के साथ सती हो गई थी। इस प््राकार कुंती पांच पांडवों की मां थी। कुंती विवाह से पहले भी एक बार मां बन चुकी थी। बच्चे का नाम कर्ण था। मां ने उसे नदी में बहा दिया। उस समय के ड्ाइवर रथ चलाते थे। एक ड्ाइवर ने बहते बच्चे को बचा लिया । ड्ाइवर परिवार में पला यह कुंती पुत्र उतना ही पराक्रमी था जितना अर्जुन। अर्जुन ने स्वयंवर के माध्यम से द्रौपदी को प््रााप्त किया था। कुंती के कहने से द्रौपदी पांचों भाइयों की पत्नी बनी। पांडु किसी भी पांडव का शाररिक पिता न था।  द्रौपदी के पांच पुत्र थे । पर अभिमन्यु उन में से न था। वह अर्जुन की दूसरी पत्नी सुभद्रा का पुत्र था। सुभद्रा कष्ण और बलराम की बहिन थी।

यह वर्णन इसलिए देना पड़ा कि आज के अर्जुन रमेश चंद्र शर्मा को महाभारत के बारे में इतना कम पता है और फिर भी वह आध्यात्मवाद पर पकड़ बनाना चाहते हैंा जिन आध्यात्मवादी लोगों से वह संपर्क बना रहे हैं उनके तर्क आसानी से काटे जा सकते हैं। गीता महाभारत के बहुत से अंशो में से एक है। कितनी ही महत्वपूर्ण क्यों न हो है तो वह एक अंश ही। पर रमेश चंद्र शर्मा के आध्यात्मवादी गुरू महाभारत पर डाका डालकर गीता का अपहरण करना चाहते हैं। कहते हैं कि गीता के रचियता तो स्वयं भगवान शिव हैं। यह भगवान शिव वह नहीं हैं जिंन्हे आम आदमी शंकर या महेश के रूप में जानता है। यह आध्यात्मवादी वही काम कर रहे हैं जोकि आज के राजनेता कर रहे हैं। वास्तविक परिवर्तन वह चाहते नहीं। इसके लिए बहुत खोजबीन करनी पड़ती है । माथापच्ची से आसान तरीका दूसरों से तू तू मैं मैं कर काम चलाना है। इससे अच्छा तो यह है कि रमेश चंद्र जैसे कंप्यूटर विशेषज्ञों से क़ाग़ज़ के थैले डिज़ायन करवा लिए जांए। नए थैले में पुराना माल खूब जंचता है। विश्वास पुरानी मान्यताओं पर होता है पर चमक नए विज्ञापनों की होती है। इन दोनों का मेल तात्कालिक सफलता दे सकता है।

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गुमोद परिक्र्रमा


गुमोद परिक्रमा उत्तरांचल के एक गांव गुमोद का चक्कर लगा रही है। प्यारा उत्तराखंड साप्ताहिक में श्उत्तरांचल लेंस उद्योग एक कल्पना जो साकार होती जा रही है .गुमोद परिक्रमाश्श् के ष्शीर्षक से छपी। बाद में गुमोद परिक्र्रमा फट्टे की सरकार शीर्षेक से एक नियमित स्तंभ बन गई। यह उस समय की बात है जब कि अमेरिका पर आतंकवादी हमला हुआ ही था। याने 11 सितंबर के बाद की। गुमोद परिक्र्रमा शुरू तो कई महीने पहले ही हो चुकी थी पर छप अब रही थी। पहले यह चक्करबाजी एक प््राकार से गणेशजी  जैसी परिक्रमा थी जिन्होंने घर बैठे ही तीनों लोकों की परिक्रमा कर ली थी। गुमोद गांव के ड्रªाइवर मयूर विहार के समाचार टैक्सी स्टैंड के गढ़वाली फट्टे पर बैठकर सोचते थे कि अपने गाँव का विकास कैसे करें। इस परिचर्चा में वह दूसरे राज्यों से आए हुए सभी ड्राइवरो को भी ष्शामिल करते थे।

      इस प्रकार गुमोद ख़ास गाँव न रह कर आम गाँव बन गया। गुमोद उत्तरांचल का  गाँंव है। इसलिये उत्तरांचल भी खा़स राज्य न रह कर आम राज्य बन गया।  पात्र गुमोद और उत्तरांचल ही रहे। केवल व्यक्तिगत संज्ञा को जातिगत अर्थ मिल गया। सभी ड्ªाइवरों में गुमोद परिक्रमा के लिये एक सा उत्साह था।

      इस माहौल में बनी फट्टे की सरकार याने खेल उत्तरांचल सरकार। मुख्य मंत्री ड्राइवर फणींद्र जी बने। फणींद्र जी बंगाल के भरना गांव के रहने वाले हैं। नित्यानंद स्वामी उस समय असली उत्तरांचल सरकार के मुख्य मंत्री थे। स्वामी जी वैसे तो हैं घोर उत्तरांचली। पर पाॅलिटिक्स है। देहरादून में पैदा हुएं। देहरादून में पढ़े। छात्र नेता बने। देहरादून ही उनका कुरूक्षेत्र रहा। उनके पूर्वज हरियाणा के ज़रूर थे जहां असली कुरूक्षेत्र है। पाॅलिटिक्स ने कहा स्वामी जी बाहर से लाए गए हैं। फट्टे ने इसी कारण फणींद्र जी को मुख्य मंत्री बनाया। कहा कि बंगाल और उत्तरांचल अलग कहां। वह तो गंगा की पवित्र डोरसे बंधे हैं। गंगा पैदा तो उत्तरांचल में हुई है पर पूर्णता उसे बंगाल में मिली। उस समय नारायणसिंह राणा उत्तरांचल के खेल मंत्री थे। फट्टे पर भी एक राणा थे। सुभाष राणा।क्या हुआ यदि यह राणा उत्तरांचल के न होकर हिमाचल के हैं तो पहाड़ी। उन्हें खेल मंत्री बना दिया गया। फट्टे के नेता । ड्र्ाइवर भूपाल सिंह को विकास मंत्री बनाया गया। असली उत्तरांचल सरकार में यह भूमिका केदार सिंह फोनिया को मिली थी। पाॅलिटिक्स के अनुसार मुख्य मंत्री पद के असली दावेदार वही थे। कुछ आपसी झगड़े और कुछ मैदानी भागों की शंकाओं को न पनप देने की ज़रूरत। गद्दी स्वामी जी के हाथ आई।

      उधर उत्तरांचल सरकार चलती रही इधर खेल सरकार चलती रही। खेल खेला जाता रहा । विकास का खेल तो खेला ही नहीं गया। स्वामी जी की सरकार गिर गई। कोशियारी जी की सरकार बनी। चुनाव हुए। सरकार हार गई। नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने। उत्साहित प्यारा उत्तराखंड ने स्तम्भ का नाम विज्ञान की सरकार रख दिया। पाठकों ने विरोध किया। प्यारा उत्तराखंड  को फट्टे की सरकार को बहाल करना पड़ा।

      गुमोद परिक्रमा ने कभी भी अपने आप को संकीर्ण दायरे में क़ैद नहीं होने दिया। वह विज्ञान पोषित ग्रामीण विकास की पक्षधर है, पहले भी थी और भविष्य में भी रहेगी। टैक्सी स्टैण्ड के मालिक सरदार अमरीक सिंह का गाँव लाड़ोई है। पंजाब में है। उस की परिक्रमा हो रही है। फणीन्द्र जी के गाँव का नाम श्रना है। बंगाल में है। उस की परिक्रमा हो रही है।   ड्राइवर सुभाष राणा का गाँव पंतेहड़ है। हिमाचल में है। उसकी परिक्रमा हो रही है। ड्राइवर विजय मल्लिक हरियाणा के आँवली गाँव के हैं। इस गाँव की परिक्रमा हो रही है। ड्राइवर मनोज बिहार के धमदाहा गाँव के हैं। धमदाहा की परिक्रमा हो रही है। द्रोणाचार्य अपार्टमेंट्स के प्लम्बर कुलमणि प्रधान उड़ीसा के बाडापल्ली गाँव के हैं। इस गाँव की परिक्रमा हो रही है। द्रोणाचार्य अपार्टमेंट्स में ही कपड़ों पर प्रेस का काम करने वाले देशराज जी उत्तर प्रदेश के बहिरगोड़वा और उनके साथी मस्तराम जी सामदगोड़वा के रहने वाले  हैं। इन दोनों गाँवों की परिक्रमा हो रही है।

      विज्ञान इन गाँवों को क्या दे सकता है?   इस प्रष्न का उत्तर गुमोद आप्टिकल फैक्टरी देगी। इस काल्पनिक फैक्टरी के सूत्रधार रमेष चंद्र  शर्मा हैं। वह ड्राइवर केषव के बड़े भाई हैं। उन्होंने जब अपने इरादों के बारे में बताया तो मैंने सोचा कि उनके लिए किसी काम की ष्शुरूआत की जा सकती है। कच्चे डिजायनों पर डिजायन गुमोद परिक्रमा के माध्यम से बनाये गये। षुरू शुरू में उन्हें ष्शायद अपने आप पर भरोसा न था।  इसलिए ट्नौर्ड से खिंचे खिंचे से रहते थे। अब बड़े उत्साह के साथ मैदान में हैं। वह गुमोद परिक्रमा चला सकने की क्षमता रखते हैं। पर तैयारी में समय लग सकता है। पहले वह गुमोद परिक्रमा को ई मेल  ष्द्वारा उत्तराखंड प्रभात जैसे अखबारों को भेज सकते हैं जिनके पास यह सुविधा है।  यह पाक्षिक भी गुमोद परिक्रमा को नियमित रूप से गाँव की फ्लापी शहरी कम्प्यूटर नामक स्तंभ के अंतर्गत स्थान देता है।

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