Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 721984 times)

Bhishma Kukreti

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 ब्रिटिश काल में हरिद्वार के प्रसिद्ध मंदिर /धार्मिक स्थल


Famous Temple and  Religious Places of Haridwar in British Period
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  75

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  75             

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--179)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 179

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

      हरिद्वार या गंगा द्वार महाभारत काल से ही धार्मिक स्थल रहा है।  हरिद्वार का नाम मध्य युग में मायापुर था।  ब्रिटिश काल में हरिद्वार जनपद में निम्न मंदिरों व प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों की सूचना उपलब्ध है।

 हर की पैड़ी -हरिद्वार
विल्वककेश्वर मंदिर -- हरिद्वार
नीलेश्वर महादेव - नील पर्वत
दक्षेश्वर मंदिर -कनखल
राधाकृष्ण मंदिर ----राजघाट
मायादेवी मंदिर -हरिद्वार
मनसा देवी मंदिर -हरिद्वार
चंडी देवी मंदिर - हरिद्वार
सुरेश्वरि मंदिर - हरिद्वार
सिद्धेश्वर मंदिर - रुड़की
शिव मंदिर- पहाड़ी बजार रुड़की , काली मंदिर , आदि
पंचलेश्वर मंदिर -लक्सर
पत्थरेश्वर मंदिर -लक्सर
शिव मंदिर राम दरबार -लक्सर
शिव मठ - लंढौर

एक गुरुद्वारा भी प्राचीन मना जाता है
मुस्लिम धार्मिकस्थल
पिरान कलियर - रुड़की
काठापीर - लक्सर



 (संदर्भ व साभार -डा  हेमा उनियाल , केदारखंड )


Copyright @ Bhishma Kukreti  17 /4 //2018

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

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 उत्तरकाशी के प्राचीन मंदिर

 Old Temples of Uttarkashi
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  76

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -    76             

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series-- 180)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -180

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

    उत्तरकाशी के निम्न प्राचीन मंदिर प्रसिद्ध हैं -
यमुनोत्री
गंगोत्री
पोखू महाराज -नैटवाड
समेश्वर मंदिर कोटगांव व अन्य यामुन शैली के मंदिर
लव कुश मंदिर - कोटगांव
समेश्वर देव मंदिर जखोळ
कमलेश्वर -रामसेराइ
कपिल मुनि आश्रम -मुंदियाट गाँव
देवढुंगा -पुरोला
कॉलिंग नाग मंदिर - सरबडियाड़
लुद्रेश्वर - देवराड़ा  डांडा
शिव गुफा -बड़कोट
भद्रकाली -पौंटी
रघुनाथ मंदिर -पुजैली
यमदग्नि ठान -थान
सोमेश्वर -खरसाली


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(संदर्भ, व आभार डा हेमा उनियाल, केदारखंड पृष्ठ 279 316

Copyright @ Bhishma Kukreti  /4 //2018

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

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        समुद्रगुप्त शासन में हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर
Ancient  Samudra Gupta Gupta Era History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part
                   
Ancient   History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Par -206
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 206               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

   चन्द्रगुप्त प्रथम ने अपने  जीवनकाल में ही समुद्रगुप्त  (340 -380  ) को योग्यता बल पर राज्य सौंप दिया था। समुद्रगुप्त को मघद व पूर्वी उत्तर प्रदेश का भूभाग मिला था।  समुद्रगुप्त ने मध्य देश जीतकर फिर कामरूप , नेपाल , कर्तृपुर जीता व  अपना साम्राज्य यमुना पूर्व तट तक विस्तार किया।  यमुना पश्चिम में कई गणराज्य थे। कई गणराज्यों पर अधिपत्य जमकर समुद्रगुप्त ने दक्षिण की ओर विश्तार किया।  समुद्रगुप्त कलिंग तक पंहुच गया था।
 मध्य देश जीतना व यमुना पूर्व तट तक पंहुचने का अर्थ है कि बिजनौर , हरिद्वार व सहारनपुर समुद्रगुप्त के आधीन आ गए थे।
                      समुद्रगुप्त का व्यक्तित्व

  समुद्रगुप्त महत्वाकांक्षी व्यक्तित्व का स्वामी था जिसके शरीर पर पर युद्ध में दसियों घाव लगे थे। याने समुद्रगुप्त लीडिंग फ्रॉम  फ्रंट में विश्वास करता था. युद्ध अभिलाषी होने के बाद भी सामाजिक हितों का रक्षक था। समुद्रगुप्त संगीत प्रेमी था व कवियों का आदर करता था।  उसके एक मुद्रा में उसे वीणा बजाते दिखाया गया है।  उसकी प्रसस्ति पत्र का कवि महादंडनायक हरिषेण था।
     दिग्विजय के पश्चात उसने अश्वमेध यज्ञ सम्पन किया जिसमे विजिट राजाओं ने भाग लिया।  अश्वमेध यज्ञ अवसर पर समुद्रगुप्त ने स्वर्ण मुद्राएं प्रचारित की थीं जिनके अग्र भाग में 'राजाधिराज पृथ्वीम वित्वा दिविजयत्याहृत ' व पश्च भाग में 'अश्वमेध पराक्रम: अंकित है।
           समुद्रगुप्त के प्रशस्ति पत्र व मुद्राओं से पता चलता है कि वः सुखी परिवार का स्वामी था व उसके योग्य पुत्र व योग्य पौत्र थे व सुयोग्य पुतर्वधहुएँ थी।
       





Copyright@ Bhishma Kukreti  Mumbai, India  2018

   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


      Ancient  History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;   seohara , Bijnor History Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
कनखल , हरिद्वार  इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार  इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार  इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार  इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार  इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार  इतिहास ;लक्सर हरिद्वार  इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार  इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार  इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार  इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार  इतिहास ;ससेवहारा  बिजनौर , बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास; देवबंद सहारनपुर इतिहास , बेहत सहारनपुर इतिहास , नकुर सहरानपुर इतिहास Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas


Bhishma Kukreti

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 - टिहरी गढ़वाल व देहरादून के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल

 Temples of Dehradun and Tehri Garhwal
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )

  -

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  77

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  - 77                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--181)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 181

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

      ब्रिटिश काल संदर्भ में देहरादून में निम्न प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं -
 गुरुराम राय दरबार , देहरादून
टपकेश्वर मंदिर -देहरादून
लक्ष्मण सिद्ध
भरत मंदिर ऋषिकेश

बाबा कमलीवाला क्षेत्र
वीर भद्र क्षेत्र
जगतग्राम के यज्ञ स्थल व देव स्थल
शिव मंदिर लाखामंडल
केदार मंदिर लाखामंडल
महासू मंदिर हनोल

  ब्रिटिश काल संदर्भ में टिहरी गढ़वाल में निम्न मंदिर प्रसिद्ध हैं -
 पुरानी टिहरी में कई मंदिर राजाओं ने निर्मित किये थे
रघुनाथ मंदिर देवप्रयाग
संगम
चंद्रवदनि मंदिर
पलेठी के सूर्य मंदिर
सुरकंडा मंदिर
कुंजापुरी बूढ़ा केदार
बालखिलेश्वर मंदिर
ज्वालामुखी
सेम मुखेम
किलकिलेश्वर
घंटाकर्ण
जाख देवता कांडा
  ( साभार , डा हेमा उनियाल , केदारखंड )





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1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


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 - टिहरी गढ़वाल व देहरादून के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल

 Temples of Dehradun and Tehri Garhwal
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  77

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  - 77                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--181)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 181

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

      ब्रिटिश काल संदर्भ में देहरादून में निम्न प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं -
 गुरुराम राय दरबार , देहरादून
टपकेश्वर मंदिर -देहरादून
लक्ष्मण सिद्ध
भरत मंदिर ऋषिकेश

बाबा कमलीवाला क्षेत्र
वीर भद्र क्षेत्र
जगतग्राम के यज्ञ स्थल व देव स्थल
शिव मंदिर लाखामंडल
केदार मंदिर लाखामंडल
महासू मंदिर हनोल

  ब्रिटिश काल संदर्भ में टिहरी गढ़वाल में निम्न मंदिर प्रसिद्ध हैं -
 पुरानी टिहरी में कई मंदिर राजाओं ने निर्मित किये थे
रघुनाथ मंदिर देवप्रयाग
संगम
चंद्रवदनि मंदिर
पलेठी के सूर्य मंदिर
सुरकंडा मंदिर
कुंजापुरी बूढ़ा केदार
बालखिलेश्वर मंदिर
ज्वालामुखी
सेम मुखेम
किलकिलेश्वर
घंटाकर्ण
जाख देवता कांडा

शिवानन्द आश्रम
  ( साभार , डा हेमा उनियाल , केदारखंड )





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1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


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  कुछ नए  अनाज , सब्जी , फल, पेय पदार्थ जिन्होंने उत्तराखंड की आर्थिक दशा बदली

  New Crops of British Period those changed Uttarakhand Economics
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -78

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  - 78                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--182)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -182

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

    कृषि , अनाज , फल किसी भी भूभाग के पर्यटन को परोक्ष व अपरोक्ष रूप से न्यूनाधिक प्रभावित करते हैं।  ब्रिटिश काल में उत्तराखंड में कई आर्थिक परिवर्तन हुये उनमे से एक था वनों को कृषि भूमि में परिवर्तन व दूसरा कुछ अनाज या भोज्य पदार्थों का आगमन -
                         तम्बाकू
                  पुर्तगाली या स्पेनी व्यापारियों के कारण तम्बाकू पेय ग्रामीण उत्तराखंड में पंहुचा व पहाड़ों की कृषि का एक अहम हिस्सा ही नहीं बना अपितु तम्बाकू आगमन से हुक्का निर्माण को भी बल मिला। कई गाँव हुक्का निर्माण के लिए प्रसिद्ध हो गए और हुक्का ने शिल्पकारों हेतु नया आर्थिक सोपान खोला। तम्बाकू ब्रिटिश काल से पहले ही उत्तराखंड में प्रचलित हो चूका था। ब्रिटिश काल में बीड़ी -सिगरेट का प्रचलन शुरू हुआ।
        चाय
 ग्रामीण उत्तराखंड में चाय प्रचलन भी ब्रिटिश काल की देन है।  ब्रिटिश व यूरोपीय व्यापारियों ने उत्तराखंड में चाय बगान भी निर्मित किये किन्तु रूस की आयात नीति व कुमाउनी व गढ़वालियों द्वारा चाय बगानों  में कठिन  परिश्रम में न आने से चाय बगान बंद पड़ गए।  किन्तु चाय की मांग बढ़ गयी और चाय पर्यटन का एक प्रमुख अंग बन गया।  शक़्कर उपभोग में वृद्धि भी ब्रिटिश काल की देन है।  लूण -गूड़ आयात के साथ चाय चिन्नी भी आयात में शुमार हो गए।
      मक्का /मकई /मुंगरी
मक्का को लैटिन अमेरिका या नई दुनिया से पुरानी दुनिया में प्रवेश करा ने का श्रेय कलमबस को जाता है। भारत में मक्का ब्रिटिश काल से पहले ही प्रवेश कर चूका था. बुचनान हैमिलटन 1819  में लिखता है कि कांगड़ा में गरीबों का भोजन मक्का है। किन्तु लगता है उत्तराखंड में ब्रिटिश काल के बाद ही आया।  मक्का ने उत्तराखंड की कृषि व आर्थिक स्थिति में आमूल चूल परिवर्तन ला दिया।  मक्के ने ओगळ जैसे अनाज की खेती ही बंद करवा दी।
      सेव
   हिमाचल जैसे ही क्रिश्चियन पादरियों ने सेव रोपण  1850 में अल्मोड़ा में शुरू किया था और उत्तराखंड के कई पहाड़ी क्षेत्र में बगीचे भी लगाए थे।  एक व्यापारी ने हरसिल में सेव के बगीचे भी लगाए थे (मनोज इष्टवाल की वाल से ) . किन्तु उत्तराखंड वासियों ने सेव कृषि की सदा से ही अवहेलना की।  इसका मुख्य कारण है कि उत्तराखंड वासी पेट भराऊ अनाज को महत्व देते रहे हैं और जो पेड़ पांच साल में फल दे उसको कतई महत्व नहीं देते हैं।
पपीता
 पपीता कृषि भी उत्तराखंड में ब्रिटिश काल में ही प्रचलित हुयी।  यद्यपि पहाड़ों में पपीता कम ही उगाया जाता था किन्तु भाभर क्षेत्र में पपीता एक व्यापारिक कृषि या कैश क्रॉप  है।

   गोभी
  गोभी के बगैर आज उत्तराखंड पर्यटन सोचना मुश्किल है।  1822 में ईस्ट इंडिया  कम्पनी के डा जेम्सन ने सर्वपर्थम सहारनपुर बगीचे में उगाया।  व अनुमान लगाया जाता है कि 1823 में मसूरी या देहरादून जो कि सहारनपुर डिवीजन के अंतर्गत था में भी उगाया गया।  उसके बाद गोभी सारे भारत में फ़ैल गयी। गोभी उत्तराखंड की पहाड़ियों में नहीं उगाई जाती थी किन्तु भाभर क्षेत्र में गोभी ने कृषि में आर्थिक क्रान्ति लायी।
 आलू
आलू भी भारत में पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा आया किन्तु उत्तरी भारत में आलू कृषि का श्रीगणेश कैप्टेन यंग को जाता है जिसने 1823 (1820 ??) में मसूरी में सर्वपर्थम आलू उगाय।  इसके पश्चात आलू शिमला होते हुए पूरे उत्तरी भारत में छा गया।  . आलू ने कई पहाड़ी गाँवों ही नहीं नहीं अपितु पर्यटन भोजन में क्रान्ति ला दी थी।  आज आलू के बगैर उत्तराखंड पर्यटन भोजन की कल्पना नहीं की जा सकती है।
  स्क्वैश
  उत्तराखंड कृषि  में स्क्वैश प्रवेश भी ब्रिटिश काल की देन है।  यद्यपि स्क्वैश को पहाड़ी जनता ने नहीं अपनाया किन्तु कई परिवारों हेतु स्वैश एक वैकल्पिक भोजन /सब्जी रही है।

     कद्दू /खीरा /भोपड़ा Pumpkin

    उत्तराखंड में ही नहीं अपितु  भारत के अन्य क्षेत्रों में कद्दू की सब्जी को बार्षिक श्राद्ध में महत्वपूर्ण स्थान है तथापि यह कम ही लोग जानते हैं कि दक्षिण अमेरिका का फल कद्दू /खीरा पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा भारत लाया गया था।  कद्दू ने भी उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति को बदला था।
       राजमा दाल  Kidney beans

  राजमा या लुब्या कृषि  कब उत्तराखंड में शुरू हुयी पर कोई साहित्य उपलब्ध नहीं है।  किन्तु इसमें दो राय नहीं हैं कि राजमा का प्रचार प्रसार ब्रिटिश काल में ही हुआ।  राजमा ने कई गाँवों की आर्थिक स्थिति भी बदली। राजमा भात आज उत्तराखंड पर्यटन भोजन का महत्वपूर्ण भोजन है।

   अमरुद
  अमरुद भी पुर्तगालियों द्वारा सर्वपर्थम गोवा में सत्रहवीं सदी में लाया  गया।  शायद उत्तराखंड में अठारहवीं सदी में कहीं कहीं बोया भी गया होगा किन्तु प्रचार व प्रसार ब्रिटिश काल में ही हुआ होगा।  भाभर क्षेत्र की कृषि आर्थिक स्थिति को बदलने का श्रेय भी अमरुद को जाता है। अमरुद भी पर्यटन  विकास हेतु आवश्यक फल है।
  टमाटर
टमाटर भारत में सोलहवीं , सत्तरहवीं सदी में पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा आ गया था किन्तु उत्तराखंड में ब्रिटिश काल में टमाटर कृषि का प्रसार हुआ।  भाभर क्षेत्र में टमाटर एक महत्वपूर्ण लाभदायी फल साबित हुआ।
 
  रामबांस
 रामबांस कोई अनाज या फल नहीं है किन्तु रामबांस प्रवेश ने उत्तराखंड को रेशे उत्पाद हेतु कुछ काल तक एक संबल दिया व साबुन का विकल्प के रूप में दसियों साल तक रामबांस का महत्व बना रहा।  रामबांस बाड़ के लिए आज भी महत्वपूर्ण वनस्पति है। 

  लैन्टीना या कुरी घास
 क्रिश्चियन पादरी लैन्टीना को बगीचे  हेतु लाये थे किन्तु आज लैन्टीना  एक आफत बन गया है। 


( संदर्भ - भीष्म कुकरेती के लेख 'उत्तराखंड की कृषि व भोजन इतिहास )

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     रामगुप्त और हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर का इतिहास
 Gupta Era History of Haridwar , bijnor, Saharanpr
        Ancient   History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  207
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -                 


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


       
  समुद्रगुप्त के बाद उसके जेष्ठ पुत्र शर्मगुप्त या राम गुप्त को सिंहसन मिला।  रममगुप्त ने साम्राज्य वृद्धि हेतु प्रत्यंत प्रदेशों को मिलाने हेतु योजना बनाई। एक नाटक देवी चन्द्रगुप्त अनुसार रामगुप्त ने कर्तृपुर पर आक्रमण किया किन्तु किसी घात पर संकट में फंस गया।  कर्तृपुर नरेश को अपनी पत्नी देकर रामगुप्त को संधि करनी पड़ी।  रामगुप्त के भाई चन्द्रगुप्त ने खशाधिपति को खड्ग से मारा।  नाटक अनुसार चन्द्रगुप्त द्वितीय ने रामगुप्त की हत्त्या की व सिंहासन पर बैठा।





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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


      Ancient  History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;   seohara , Bijnor History Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
कनखल , हरिद्वार  इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार  इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार  इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार  इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार  इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार  इतिहास ;लक्सर हरिद्वार  इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार  इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार  इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार  इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार  इतिहास ;ससेवहारा  बिजनौर , बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास; देवबंद सहारनपुर इतिहास , बेहत सहारनपुर इतिहास , नकुर सहरानपुर इतिहास Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas


Bhishma Kukreti

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 उत्तराखंड का आयुर्वेद साहित्य में योगदान
 
Ayurveda  Literature from Uttarakhand
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -79

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  - 79                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--183)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 183

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

    उत्तराखंड प्राचीन काल से ही संस्कृत पोषक रहा है।  यद्यपि उत्तराखंड में चिकित्सा आयुर्वेद अनुसार ही होती थी और छात्र नकल सिद्धांत से आयुर्वेद पुस्तक को अपने लिए लिखते थे फिर उस गुरु का छात्र नकल करता था।  आयुर्वेद में अवश्य ही साहित्य रचा गया होगा किन्तु भौगोलिक व अन्य कारणों से लिखित साहित्य कालगर्त में समा  गया है जैसे श्रीनगर में प्राकृतिक आपदा /विध्वंस , गोरखाओं द्वारा रिकॉर्ड जलाना या कुमाऊं पर रोहिला आक्रमण में रिकॉर्ड समाप्ति।
   ब्रिटिश काल व   बाद में  साधन व प्रकाशन व्यवस्था के कारण  वर्तमान में  उत्तराखंडियों द्वारा रचित आयुर्वेद साहित्य उपलब्ध है।
             रस रंगिण
       
  रसरंगिण आयुर्वेद पपुस्तक के रचयिता सदानंद घिल्डियाल हैं (जन्म खोला , 1898 -1928 ) हैं।  सदानंद का  आयुर्वेद ज्ञान प्रसंसनीय है।  सदा नंद घिल्डियाल के आयुर्वेद संबंधी पद्यात्मक लेख 'वैद्य बंधु ' पत्रिका में प्रकाशित होते थे। सदा नंद कृत 'महाकषाय षट्कम ; भी वैद्य बंधु ' ने प्रकाशित किया था।
           रसरंगिण 24 तरंगों में विभक्त 4000 पद्यों का संकलन है जिसमे रससिद्धांत वर्णित है। रसशास्त्र की परम्परा में यह पुस्तक श्रेष्ठ पुस्तकों में मानी जाती है जिसमे विधि प्रयोग , विविध औषधि यंत्र निर्माण आदि महत्वपूर्ण अनुच्छेद हैं।
              पथ्यापथ्य विमर्श
       भोजन द्वारा स्वास्थ्य रक्षा विषयी पुस्तक के रचयिता महा ग्यानी , वैद्यरत्न , वैद्य विद्यासागर , वैद्य वाचस्पति  परमा नंद पांडेय (जन्म दियूली  , कीर्तिनगर , टिहरी गढ़वाल , 1901 ) हैं।  पथ्यापथ्य के अतिरिक्त आयुर्वेद कॉलेज आचार्य परमा नंद पांडेय ने त्रिदोष विज्ञान पुस्तक भी प्रकाशित की है। पथ्यापथ्य में 13 प्रकरण हैं।  हरणतः में भोजनों का वैज्ञानिक वेवचना की गयी है।

           आयुर्वेदीय पदार्थ विज्ञान व आयुर्वेद इतिहास
      सुरेशा नंद थपलियाल (थाला , नागनाथ पोखरि , चमोली , 1931 ) कृत 'आयुर्वेद पदार्थ विज्ञान ' में आयुर्वेद अवतरण , पदार्थ वर्णन , द्रव्य विज्ञान ,प्रमाण विज्ञानं , गन निरूपण , तत्व निरूपण , षड्दर्शन के अतिरिक्त आयुर्वेद का इतिहास समाहित हैं।

  आयुर्वेदीय क्रिया शरीर

  शिव चरण ध्यानी (खंद्वारी , मल्ला इड़ियाकोट , पौड़ी गढ़वाल, 1931  ) कृत आयुर्वेदीय क्रिया शरीर में शरीर परिभाषा व अध्ययन की आवश्यकता , प्रत्यक्ष अनुमान , आप्योपदेश , युक्तिज्ञान , अग्नि भेदोपभेद , पोष्य -पोषक कल्पना , शारीरिक -मानशिक दोष , भोजन पाचन भेद , मूत्र निर्माण आदि अध्याय हैं।
     
            उपोक्त साहित्य व रचयिताओं का जीवन परिचय द्योतक है कि उत्तराखंड में आज भी आयुर्वेद की जड़े गहरी हैं।   
           


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1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - डा प्रेम दत्त चमोली , गढ़वाल की संस्कृत साहित्य को देन
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


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 चन्द्रगुप्त II विक्रमादित्य शासन में हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर -खंड -1

        Chandragupta Vikramaditya and Ancient  Gupta Era History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -   208             



                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

 

  रामगुप्त के बारे में विशाखदत्त कृत देवचन्द्रगुप्त नाटक व दुर्जनपुर (विदिशा , मध्य पदेश ) अभिलेख से कुछ विवरण मिलता है।  इसके अतिरिक्त वहीं रामगुप्त की मुद्राएं भी मिली है. रामगुप्त ने महराजधिराज विरुद धारण किया था
  चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य (380 -415 CE )
 चन्द्रगुप्त रामगुप्त का लघु भ्राता था।  चन्द्रगुप्त ने विक्रमादित्य विरुद धारण किया था।  इलाहाबाद अभिलेख अनुसार चन्द्रगुप्त की एक पत्नी कुबेरनामा दक्षिण के किसी नाग नरेश की राजकुमारी थी।  इस रानी की पुत्री का विवाह प्रभावती का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन से हुआ था।  व नाटक अनुसार दूसरी पत्नी ध्रुवस्वामिनी थी जिसके कुमारगुप्त व गोविन्दगुप्त थे।
        शक विजय यात्रा
 यद्यपि  वासुदेव मृत्यु के पश्चात कुषाण वंश की समाप्ति हो चुकी थी किन्तु सौराष्ट्र गुजरात व मालव पर शक नरेशों का अधिपत्य तब भी था।  चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने इन  अधिपतियों का उत्पाटन किया व सौराष्ट्र व मालव को होने शासन में मिला लिया।  पश्चिम भारत जीतने के बाद चन्द्रगुप्त ने 'शकारि ' विरुद धारण किया
     उज्जयनी राजधानी
पश्चिम भारत पर सबल प्रभुत्व रखने हेतु चन्द्रगुप्त ने अपनी राजधानी उज्जयनी को बना लिया था। उज्जयनी का उल्लेख चन्द्रगुप्त अथवा कुमारगुप्त कालीन भाण 'पादतडितम ' में भी मिलता है।

        सप्त सिंधु विजय
  दिल्ली के कुतुबमीनार निकट लौह स्तम्भ से ंदाज लगता है पश्चिम भारत अधिपत्य के बाद चन्द्रगुप्त ने सिंधु के सातों मुखों को पार कर वाह्विकों को परास्त किया।
        दिल्ली का लौह स्तम्भ
ऐसा अनुमान है कि दिल्ली का लौह स्तम्भ चन्द्रगुप्त ने बनवाया था और निर्माण कार्य हेतु गढ़वाल के शिल्पकारों ने किया था (वासुदेव उपाध्याय , गुप्त साम्राज्य का इतिहास प्रथम भाग पृष्ठ -85 )


  (चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य -शेष अगले भाग में )




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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


      Ancient  History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;   seohara , Bijnor History Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
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गैर सरकारी संस्थानों का उत्तराखंड चिकित्सा में योगदान

Institution famous for Medical services in British Uttarakhand
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( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -80

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  80               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--183)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -183

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

    ब्रिटिश युग में क्रिश्चियन मिशनरियों व ब्रिटिश सरकार द्वारा चिकित्सा जागरण से उत्तराखंड की जनता में चिकित्सा साधनों की और ध्यान गया।
     क्रिश्चियन मिशिनरियों ने कुमाऊं व गढ़वाल में कई चिकित्सालय खोले। उत्तराखंडी मिशनरियों के योगदान को कभी नहीं भूलेंगे।
           बाबा कमली वाले
  यात्रा मार्ग पर बाबा कमली वाले संस्थान का चिकित्सा योगदान अविस्मरणीय है।  धर्मशालों के अतिरिक्त बाबा कमली वाले क्षेत्र आयुर्वेदिक औषधि भी यात्रियों को बांटते थे।  ब्रिटिश काल में बाबा कमली वाले के आयुर्वेदिक औषधि निरान शाला ऋषिकेश व स्वर्गाश्रम में थे।
     शिवानंद आश्रम
  शिवानंद आश्रम , शिवानंद नगर टिहरी की स्थापना चिकित्स्क शिवानंद ने 1936 में की थ।  शिवानंद आश्रम का आयुर्वेद औषधि निरानशाला के अतिरिक्त एक धर्मार्थ चिकत्सालय भी था। शिवानंद आश्रम के खुलने से देस विदेशों में उत्तराखंड की छवि वर्धन हुआ। योग को अंतर्राष्ट्रीय छवि प्रदान करने में शिवानंद आश्रम का महत्वपूर्ण योगदान है।  शिवानंद आश्रम चिकित्सालय ने गढ़वाल की विशिष्ठ सेवा की और यह योगदान अतुलनीय है।  शिवानंद आश्रम में कई आयुर्वेदिक औषधि निर्माण भी होता आया है।
    रामकृष्ण परमहंस फॉउंडेशन  चिकित्सालय

 1888 -1889 के लगभग स्वामी विवेकानंद ऋषिकेश यात्रा पर आये थे।  यहां उन्होंने चिकत्सा की कमी अनुभव किया और शिष्यों को परमार्थ चिकित्सालय खोलने की सलाह दी।  रामकृष्ण सेवाश्रम कनखल की स्थापना सन 1901 में हुयी और तब से रामकृष्ण ट्रस्ट चिकित्सा क्षेत्र में सतत योगदान देता आ रहा है।  प्रतिवर्ष लाखों लोग चिकित्सा लाभ उठाते हैं।

  गुरुकुल कांगड़ी संस्थान

   आर्य समाज का उत्तराखंड में योगदान शिक्षा ही नहीं अपितु सामाजिक उत्थान में महत्वपूर्ण है. आर्य समाज ने कई स्कूल गानों में खोले थे और कुछ चिकित्सालय भी खोले थे।  स्वामी श्रद्धानन्द का अकाल समय पीड़ितों की सेवा अविस्मरणीय है।  स्वामी श्रद्धानन्द ने हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना 1922 में की और तभी आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज की भी स्थापना हुयी।  गुरुकुल आयुर्वेद कॉलेज भारत का प्राचीन आयुर्वेद महाविद्यालयों में से एक महाविद्यालय है। गुरुकुल कांगड़ी संस्थान ने जनता को चिकत्सा प्रदान तो की ही उत्तराखंडियों को चिकित्स्क बनने का अवसर भी प्रदान किया।  आज भी यहां आयुर्वेद संबंधी कई अन्वेषण होते रहते हैं।  उत्तराखंड के औषधि वनस्पतियों का रसायनिक अन्वेषण भी गुरुकुल कांगड़ी महविद्यालय ने किये।
    गुरुकुल कांगड़ी फार्मेसी में आयुर्वेदिक औषधि निर्माण भी होता है।
       शिवा नंद आश्रम व गुरुकुल कांगड़ी ने कभी भी व्यवसायिक विपणन पर

  उपरोक्त संस्थाओं ने पर्यटकों को चिकित्सा सुविधा तो दी ही साथ साथ में मेडिकल पर्यटन को भी संबल दिया।
 हरिद्वार -ऋषिकेश में कई आश्रमों व अखाड़ों ने भी चिकित्सा क्षेत्र में अपना योगदान दिया व देते आ रहे हैं। 
     
   



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1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6


 

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