Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 723690 times)

Bhishma Kukreti

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 ब्रिटिश काल में कुम्भ मेला प्रबंधन

( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )-81

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -   81             

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--184)   
    उत्तराखंड में पर्यटन , मेडिकल पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -184

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

    देखा जाय तो प्राचीन साहित्य या अभिलेखों में कुम्भ वर्णन नहीं है।  स्कन्द पुराण में कौन से स्थान में कब कुम्भ मेला या माघ मेला होगा का वर्णन मिलता है।  ऐसा लगता है हरिद्वार कुम्भ मेला शुरू होने के पश्चात ही अनुरकरण सिद्धांत के अनुसा प्रयाग , उज्जैन आदि में कुम्भ मेला शुरू हुआ।
      हरिद्वार में मेला का वर्णन हर्ष वर्धन काल में चीनी यात्री हुयेन सांग के यात्रा वर्णन में मिलता है।  यह माघ मेला था या कुम्भ निश्चित नहीं कहा जा सकता है। तुलसीदास ने भी रामचरित मानस (बालकाण्ड 43 ) में माघ मेले का उल्लेख किया है प्रयाग के कुम्भ मेले का नहीं।   मुगल कालीन बादशाहों ने भी प्रयाग  की महत्ता का सम्मान किया और कहा जाता है कि औरंगजेब ने कुछ गाँव दिए थे। ( जे एस  मिश्रा , महाकुम्भ )
 ऐसा लगता है कि मुगल काल में कुम्भ मेला प्रबंधन नागा अखाड़ों के हाथ में था और सिख व नागाओं की 1796 की लड़ाई तो इतिहास प्रसिद्ध है।
     1804 का हरिद्वार कुम्भ मेला - 1804 में हरिद्वार मराठा शासन के अंतर्गत था।  मराठा परिवहन माध्यमों पर कर लेते थे किन्तु कुम्भ या अन्य मेलों का प्रबंधन अखाडाओं पर ही छोड़ देते थे। अखाड़ा यात्रियों से कर आदि लेते थे , न्याय भी करते थे व अन्य प्रबंध भी करते थे।
   ब्रिटिश राज के प्रशाशकों के लिए कुम्भ मेला प्रबंधन केवल प्रशाशनिक प्रक्रिया न थी अपितु एक भय  स्रोत्र भी था।  सारे भारत से बिना किसी प्रचार प्रसार व सुविधाओं के लोग जुड़ते थे और फिर बद्रीनाथ आदि की यात्रा भी करते थे।  कुम्भ मेला अनेकता का प्रतीक न होकर वास्तव में केवल एकता का ही प्रतीक  था जो ब्रिटिश राज के लिए खतरा भी हो सकता था।  ईस्ट इण्डिया कम्पनी व बाद में ब्रिटिश राज के लिए सबसे बड़ी समस्या अखाडाओं के प्रभुत्व भी था। आज भी कुम्भ में धार्मिक अखाड़ेबाजी ही नहीं होती अपितु राजनैतिक अखाड़ेबाजी भी होती है। 
1808 का मेला - ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने अधिक सैनिकों का प्रबंध किया जिससे 1796 वाली मार काट की पंरावृति न हो।
1814 का अर्ध कुम्भ - इस अर्ध कुम्भ में सरडाना बेगम समृ के साथ आये मिसनरी चेमबरलीन ने भषण दिए जो सरकार को पसंद नहीं आये और दबाब में बेगम समृ को चेमबरलीन को हटाना पड़ा।
1820 कुम्भ में भगदड़ मच गयी थी व 430 यात्रियों की मृत्यु हुयी थी।  इसके उपरान्त प्रशासन ने सड़कों  व पुलों का निर्माणही नहीं करवायाअपितु घाटों का जीर्णोद्धार भी किया जिसकी जनता ने प्रशंसा की।
            शौचालय व बीमारियों की रोकथाम प्रबंध
ब्रिटिश प्रशासन के लिए कुम्भ मेला प्रबंधन में मानव प्रबंधन कठिन न था किन्तु छुवाछुत की बीमारी जैसे प्लेग व हैजा रोकथाम सबसे कठिन समस्या थी।  , हैजा केवल हरिद्वार तक सीमित नहीं रहता था अपितु यात्रियों द्वारा गढ़वाल-कुमाऊं  तक भी पंहुच जाता था। हैजा से यात्रियों की मृत्यु के आंकड़े इस प्रकार हैं - (हेनरी वॉटर बेलो , 1885 द हिस्ट्री ऑफ़ कॉलरा इन इंडिया 1867 -1881 व दासगुप्ता ए नोट्स ऑन कॉलरा इन यूनाटेड प्रोविन्स व बनर्जी - वही रिपोर्ट )
वर्ष ------मेला ---- यात्री मृत्यु
1879 -----कुम्भ ------35892
1885 -----अर्ध कुम्भ ---63457
1891 -------कुम्भ ------1690 13
1921 -------अर्ध कुम्भ ----149 667
1933 ---अर्ध कुम्भ ---1915
1945 -----अर्ध कुम्भ -----77345
  हर कुम्भ या अर्ध कुम्भ में ब्रिटिश सरकार कुछ न कुछ सुधार करती थी किन्तु 1891 व 1921 के कुम्भ भयानक ही सिद्ध हुए -
हरिद्वार कुम्भ का मुख्य प्रशाशक सहारनपुर जिले का जिलाधिकारी होता था। प्रशासन कभी कभी बीमार यात्रियों को हरिद्वार छोड़ने की आज्ञा भी देते  थे व कई बार अन्य स्थानों से यात्रियों को हरिद्वार आने से रोका जाता था।  कभी कभी हरिद्वार स्टेशन से ही यात्रियों को वापिस भेजा जाता था।  हरिद्वार से लेकर बद्रीनाथ तक गाँवों में जागरण कार्य किया जाता था.
यद्यपि वालदिमोर हॉफकिन ने हैजा टीके का आविष्कार कर लिया था तथापि ब्रिटिश प्रशासन जनता के धार्मिक प्रतिरोध व राजनैतिक कारणों  (जैसे बाल गंगाधर तिलक सरीखे टीका विरोधी थे ) से जबरदस्ती टीकाकरण के सलाह को नहीं मान रहा था।  धीरे धीरे टीकारण आम जनता में प्रचारित हुआ व जनता की समझ में आ गया कि टीका लाभदायी है तो जनता टीकीकरण समर्थक हो गयी।  मेले में टीकाकरण का दस्तूर शायद सन 1960 तक बदस्तूर चलता रहा। 
  ब्रिटिश अधिकारियों ने अनाज विक्री पर भी ध्यान दिया कि जनता को भोज्य सामग्री उचित दामों पर मिले।
   ब्रिटिश शासन ने कुम्भ मेला प्रबंधन में सफाई -शौचालय पर ध्यान दिया व चिकत्सालयों का प्रबंध भी किया।  पुलिस व अन्य बल प्रबंधन से अपराधियों पर लगाम लगाई गयी।  रेल व बस आने से परिहवन व्यवस्था में तेजी आयी तो नए नए संचार माध्यम जैसे टेलीफोन , पुलिस टेली संचार व्यवस्था , तार , डाकघरों का भी उपयोग कुम्भ मेले में होने लगा।  उद्घोषणाओं के प्रयोग से यात्रियों को नई सुविधा मिलीं। हिन्दू धर्म के प्रचारक व अन्य धर्मों के प्रचारक भी हरिद्वार पंहुचते थे तो प्रशासन को ऐसी संथाओं का भी संभालना होता था। हिन्दू महासभा की स्थापना  भी हरिद्वार कुम्भ अप्रैल 1915 में ही हुआ।

  कुम्भ मेले अवसर पर राजा महाराजा व उनका लाव लश्कर और अन्य विशिष्ठ व्यक्ति भी हरिद्वार पंहुचते थे प्रशासन को उनका विशेष प्रबंधन भी करना होता था। (मिश्रा , वही ) डा हेमा उनियाल ने निम्न सूचना दी है -
कुम्भ विषयक महत्वपूर्ण जानकारी आपने दी है।कुछ अन्य जानकारी इस प्रकार भी प्राप्त होती है......
१०,००० ईसापूर्व (ईपू)' - इतिहासकार एस बी रॉय ने अनुष्ठानिक नदी स्नान को स्वसिद्ध किया।
६०० ईपू - बौद्ध लेखों में नदी मेलों की उपस्थिति।
४०० ईपू - सम्राट चन्द्रगुप्त के दरबार में यूनानी दूत ने एक मेले को प्रतिवेदित किया।
ईपू ३०० ईस्वी - रॉय मानते हैं कि मेले के वर्तमान स्वरूप ने इसी काल में स्वरूप लिया था। विभिन्न पुराणों और अन्य प्राचीन मौखिक परम्पराओं पर आधारित पाठों में पृथ्वी पर चार विभिन्न स्थानों पर अमृत गिरने का उल्लेख हुआ है। सर्व प्रथम आगम अखाड़े की स्थापना हुई कालांतर मे विखंडन होकर अन्य अखाड़े बने
५४७ - अभान नामक सबसे प्रारम्भिक अखाड़े का लिखित प्रतिवेदन इसी समय का है।
६०० - चीनी यात्री ह्यान-सेंग ने प्रयाग (वर्तमान इलाहाबाद) पर सम्राट हर्ष द्वारा आयोजित कुम्भ में स्नान किया।
९०४ - निरन्जनी अखाड़े का गठन।
११४६ - जूना अखाड़े का गठन।
१३०० - कानफटा योगी चरमपंथी साधु राजस्थान सेना में कार्यरत।
१३९८ - तैमूर, हिन्दुओं के प्रति सुल्तान की सहिष्णुता के दण्ड स्वरूप दिल्ली को ध्वस्त करता है और फिर हरिद्वार मेले की ओर कूच करता है और हजा़रों श्रद्धालुओं का नरसंहार करता है। विस्तार से - १३९८ हरिद्वार महाकुम्भ नरसंहार
१५६५ - मधुसूदन सरस्वती द्वारा दसनामी व्यव्स्था की लड़ाका इकाइयों का गठन।
१६८४ - फ़्रांसीसी यात्री तवेर्निए नें भारत में १२ लाख हिन्दू साधुओं के होने का अनुमान लगाया।
१६९० - नासिक में शैव और वैष्णव साम्प्रदायों में संघर्ष; ६०,००० मरे।
१७६० - शैवों और वैष्णवों के बीच हरिद्वार मेलें में संघर्ष; १,८०० मरे।
१७८० - ब्रिटिशों द्वारा मठवासी समूहों के शाही स्नान के लिए व्यवस्था की स्थापना।
१८२० -हरिद्वार मेले में हुई भगदड़ से ४३० लोग मारे गए।
१९०६- ब्रिटिश कलवारी ने साधुओं के बीच मेला में हुई लड़ाई में बीचबचाव किया।
१९५४ - चालीस लाख लोगों अर्थात भारत की १% जनसंख्या ने इलाहाबाद में आयोजित कुम्भ में भागीदारी की; भगदड़ में कई सौ लोग मरे।
१९८९ - गिनिज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने ६ फ़रवरी के इलाहाबाद मेले में १.५ करोड़ लोगों की उपस्थिति प्रमाणित की, जोकी उस समय तक किसी एक उद्देश्य के लिए एकत्रित लोगों की सबसे बड़ी भीड़ थी।
१९९५ - इलाहाबाद के “अर्धकुम्भ” के दौरान ३० जनवरी के स्नान दिवस को २ करोड़ लोगों की उपस्थिति।
१९९८ - हरिद्वार महाकुम्भ में ५ करोड़ से अधिक श्रद्धालु चार महीनों के दौरान पधारे; १४ अप्रैल के एक दिन में १ करोड़ लोग उपस्थित।
२००१ - इलाहाबाद के मेले में छः सप्ताहों के दौरान ७ करोड़ श्रद्धालु, २४ जनवरी के अकेले दिन ३ करोड़ लोग उपस्थित।
२००३ - नासिक मेले में मुख्य स्नान दिवस पर ६० लाख लोग उपस्थित।
२००४ - उज्जैन मेला; मुख्य दिवस ५, १९, २२, २४ अप्रैल और ४ मई।
२००७ - इलाहाबाद में अर्धकुम्भ। पवित्र नगरी इलाबाद में अर्धकुम्भ का आयोजन ३ जनवरी २००७ से २६ फ़रवरी २००७ तक हुआ।
२०१० - हरिद्वार में महाकुम्भ प्रारम्भ हुआ जो १४ जनवरी २०१० से २८ अप्रैल २०१० तक आयोजित किया गया। विस्तार से - २०१० हरिद्वार महाकुम्भ
२०१५ - नाशिक और त्रयंबकेश्वर में एक साथ जुलाई १४ ,२०१५ को प्रातः ६:१६ पर वर्ष २०१५ का कुम्भ मेला प्रारम्भ हुआ और सितम्बर २५,२०१५ को कुम्भ मेला समाप्त हो गया। [4]
२०१६ - उज्जैन में २२ अप्रैल से आरम्भ हुआ।ज्ञात होता है कि आने वाला महाकुंभ 2021 हरिद्वार में ही होगा।


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1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;






Bhishma Kukreti

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   चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा विद्वानों को आश्रय

        Ancient  Gupta Era History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 209               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


         कहा जाता है कि चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की सभा में विद्वानों का सम्मान किया जाता था और चन्द्रगुप्त विद्वानों को आश्रय देता था।  चन्द्रगुप्त की सभा का एक रत्न कालिदास भी था।
       विद्वान् अनुमान लगाते हैं कि रघुवंश में रघु का युद्ध यात्रा समुद्रगुप्त के दिग्विजय पर आधारित है। विक्रमोर्वशी नाटक में कहीं न कहीं कुछ घटनाएं कालिदास ने गुप्त काल से ली हैं।
         कहा जाता है कि कुमार सम्भव की रचना कुमार गुप्त के जन्मोत्सव पर की थी। 
 चीनी यात्री फाय हान  चन्द्रगुप्त विक्रमाद्त्य काल में भारत आया था व उसने उस काल के बौद्ध धर्म पर प्रकाश डाला है।




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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


      Ancient  History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;   seohara , Bijnor History Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
कनखल , हरिद्वार  इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार  इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार  इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार  इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार  इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार  इतिहास ;लक्सर हरिद्वार  इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार  इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार  इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार  इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार  इतिहास ;ससेवहारा  बिजनौर , बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास; देवबंद सहारनपुर इतिहास , बेहत सहारनपुर इतिहास , नकुर सहरानपुर इतिहास Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas


Bhishma Kukreti

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 ग्रामीण उत्तराखंड में कुछ जल स्रोत्रों का महत्व याने  जल चिकित्सा लिंक 

( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -82

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  82               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--185)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -185

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

    मानव ने अपने जन्म से ही जल चिकित्सा Water Therapy प्रयोग शुरू कर दी थी।
        उत्तराखंड में प्राचीन काल से जन साधारण जल चिकित्सा का प्रयोग करता आ रहा है और बहुत से जल स्रोत्रों का नाम तो स्वास्थ्य संबंधी नाम हैं।  उत्तराखंड में जल चिकत्सा सदियों से चली आ रही है यथा -
   एलर्जी होने पर शरीर में गंगा जल छिड़कना आज भी प्रचलित है। मुमबई में आज भी अचानक एलर्जी होने पर कई उत्तराखंडी शरीर पर गंगा जल छिड़कते हैं और आराम पाते हैं। दाद आदि पर तो नियमित रूप से गंगा जल बहाया  जाता था।
 ततार - अधपके या पके घावों पर सिंवळ के पत्तों की सहायता से पानी बहाया जाता है और आज भी ततार देने का प्रचलन विद्यमान है।
प्रातःकाल जल सेवन - भारत के अन्य क्षेत्रों की भाँती उत्तराखंड में सुबह सुबह रिक्त पेट के जल सेवन स्वास्थ्यकारी माना जाता है। रात को ताम्बे के बर्तन में जल रखना और सुबह पीना जल चिकत्सा है।
 योग में मुंह से  पानी पीकर  नाक से बाहर करने  की प्रक्रिया जल चिकित्सा ही है।
कादैं में - जब किसी पर  कादैं (पैर  या हाथ में अँगुलियों की जड़ों में फंगस /फंफूंदी लगना ) लग जाय तो कादैं  पर गरम  पानी बहाया जाता था।
 भूत लगने या देवता आने की स्थिति में पानी का छिड़काव भी जल चिकित्सा अंग है।
एनीमा  लेना भी जल चिकित्सा ही है।
 गरारे करना भी जल चिकित्सा ही है।
आँख आने या ऑंखें लाल होने पर आँखों को बार बार धोना जल चिकित्सा अंग ही है।
   गंगा स्नान आदि भी मानसिक जल चिकित्सा है।
व्रतों में केवल जल सेवन करना जल चिकित्सा का अंग है।
अपच , पेट पीड़ा या सर्दी जुकाम में गरम जल सेवन जल चिकित्सा है।
  जलने या अंग कटने पर प्रभावित स्थान पर जल बहाव भी जल चिकित्सा ही है।
 बहुत से जल स्रोत्रों को पण्यों लगण वळ पानी माना जाता है (जिस पानी सेवन से पानी पीने की और इच्छा हो ) तथा बहुत से जल स्त्रोत्रों के जल सेवन से तीस नहीं बुझती है। 

      ग्रामीण उत्तराखंड में जल स्रोत्रों के बारे में धारणाएं

      हर गाँव में प्रत्येक जल स्रोत्र की चिकित्सा विशेषता हेतु कुछ न कुछ नाम दिए जाते हैं।
  मेरे गाँव में एक पानी है इकर का बारामासी पानी।  यह जल स्रोत्र एक छोटे गड्ढे तक सीमित है।  किन्तु जब मैं युवा था तो यदि इकर के पास जाएँ तो उस पानी को  पीना एक कम्पल्सन माना जाता था।  धारणा थी कि इस स्रोत्र के जल सेवन से पेट की बीमारियां नहीं होती हैं।  इसी तरह गाँव के निकट एक बहते पानी को न पीने की हिदायत दी जाती थी।  किसी पानी को जुंकळ पानी नाम दिया जाता है जिसके दो अर्थ होते हैं - जहां जूंक अधिक होती हैं या बच्चे वाले स्त्री द्वारा जिसके पानी पीने से बच्चे को जूंक चढ़ने का खतरा होता हो।  अधिकतर जिस पानी के स्रोत्र के पास पापड़ी (जंगली पिंडालू ) पैदा होता है उसे स्वास्थ्यवर्धक पानी नहीं माना जाता था।
     कुछ क्षेत्र के पानी को भोजन हेतु प्रयोग नहीं करते हैं।  जैसे कांडी (बिछले ढांगू ) के पानी के बारे में धारणा  थी कि इस गाँव के पानी में उड़द की दाल नहीं गलती।
  कुछ जल स्रोत्रों को सर्दी जुकाम का पानी माना जाता था और सर्दियों में इन स्रोत्रों के जल  प्रयोग नहीं किया जाता था।
   कुछ जल स्रोत्रों को पथरी बिमारी का जड़ माना जाता था।
   देहरादून में सहस्त्र धारा में स्नान को त्वचा रोग ठीक करने का जल माना जाता रहा है।
  अमूनन बांज के जंगल के नीचे वाले जल स्रोत्र को स्वास्थ्यवर्धक पानी माना जाता था।
पिंडर नदी में रोज स्नान को अहितकर माना जाता है।

  जल स्रोत्रों की धारणाओं को अंध विश्वास न माना जाय

 हर गाँव में जल स्रोत्रों के बारे में स्वास्थ्य दृस्टि से जो भी धारणाएं हैं उन्हें अंध विश्वास नाम देना स्वयं को धोखा देना है। आज आवश्यकता है उन जल स्रोत्रों के रसायनिक विश्लेषण करना और यदि वे जल स्रोत्र स्वास्थ्य वर्धक हैं तो उन्हें पर्यटन गामी बनाना।




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1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
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  कुमारगुप्त साम्राज्य में हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर
        Ancient  Gupta Era History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  210               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


       
          चन्द्रगुप्त विक्रममादित्य के बाद उसका जेष्ठ पुत्र कुमारगुप्त गद्दी पर बैठा। कुमारगुप्त ने 42 वर्षों तक राज्य किया किन्तु कोई क्षेत्र विजिट न किया।  कुमारगुप्त के शासन में शांति व समृद्धि थी।  मंदसौर अभिलेख से पता चलता है कि कुमारगुप्त का साम्राज्य कैलास -सुमेरु तक था याने उत्तराखंड , हिरद्वार , बिजनौर व सहारनपुर कुमारगुप्त काल में गुप्त साम्राज्य अंतर्गत थे।
    विदिशा अभिलेख में कुमारगुप्त युग की कई सूचनाएं मिलती हैं
 कुमारगुप्त योग्य , वीर , बुद्धिमान व विद्वानों का सत्कार करने वाला शाशक था। कुमारगुप्त प्रजावत्सल शासक था।
  कुमारगुप्त के शासन काल में कला व शिल्प का आदर था। कौशल हेतु शिक्षा व प्रशिक्षण केंद्र थे।
        कुमारगुप्त ने यद्यपि राज्य विस्तार नहीं किया किन्तु एक स्वर्ण मुद्रा से पट चलता है कि कुमारगुप्त ने अश्वमेध यज्ञ किया था। भीतरी स्तम्भ लेख में कुमार गुप्त की प्रशंसा है।
      पुष्यमित्रों का आक्रमण
 कुमारगुप्त के शासन के अंतिम दिनों में पुष्यवंशी शत्रुओं के सामंतों ने दक्षिण में आक्रमण किया।  राजकुमार स्कंदगुप्त ने बड़ी कठिनाई से  किया।  पुष्यमित्र सामंत नर्मदा के दक्षिण में बसे थे। पुष्यमित्र सामंत समृद्ध व युद्ध शास्त्र युक्त थे।
 




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( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग

 
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3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;
   


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गढ़वाली  राजाओं व गोरखा शासन में मंदिरों को कर मुक्त मुवाफ़ी गाँव दिए गए थे।  गूंठ भूमि राजस्व से मंदिरों में पूजा व कर्मचारियों का वेतन प्रबंध होता था। इसके अतिरिक्त सदाव्रत गाँव भी थे जिनकी आय से श्रीनगर , जोशीमठ में यात्रियों हेतु मुफ्त भोजन व्यवस्था भी होती थी। 1816 में गढ़वाल के सहायक कमिश्नर ने सलाह दी थी कि गूंठ  या मंदिर गाँवों की आय का कुछ भाग यात्रियों की सुविधाओं हेतु प्रयोग होना चाहिए।
  केदारनाथ के रावल द्वारा अमानत में खयानत से अधिकारियों ने रावलों या पुजारियों से सदाव्रत गाँवों से आय व उपयोग का अधिकार छीनकर स्वंतंत्र कमेटी 'लोकल एजेंसी 'बना दी।  सदाव्रत गाँवों की आय से हरिद्वार -बद्रीनाथ यात्रा मार्ग चौड़ा किया गया।  सदाव्रत गाँवों के राजस्व से यात्रिओं को मुफ्त भोजन व्यवस्था , यात्री चिकित्सा,  मरोम्मत कार्य में तेजी लायी गयी। मार्ग मरमत कार्य अब नियमित व सुचारु रूप से होने लगा था.
  ट्रेल के उत्तराधिकारियों द्वारा सदाव्रत पट्टियों  की आय से निम्न मार्ग निर्मित हुए या उनका पुनर्निर्माण हुआ
जोशीमठ -नीती
अल्मोड़ा से लाभा -गढ़वाल
श्रीनगर से नजीबाबाद मार्ग
   1927 -28 में ट्रेल ने गाँव वालों से बेगार लेकर (मुफ्त मजदूरी ) हरिद्वार -बद्रीनाथ मार्ग निर्माण कार्य करवाया।  वह स्वयं भी मार्ग निर्माण निरीक्षण करता था।  1855 तक निम्न यात्रा मार्ग भी निर्मित हो चुके थे -
रुद्रप्रयाग से -केदारनाथ
उखीमठ से चमोली
कर्णप्रयाग से चांदपुर
 बेकेटभूव्यवस्था में गूंठ व सदाव्रत भूमि की विधिवत व्यवस्था की गयी थी।  डा डबराल ने लिखा है कि मंदिरों के साथ अन्याय भी हुआ।  कुछ मंदिरों की भूमि भी छीन ली गयी थी।
     सदाव्रत गाँवों से बेकेट भूव्यवस्था में  वार्षिक राजस्व 100013 रुपयाथा।  सदाव्रत व गूंठ गाँव की संख्या 535 थी व 1863 में इन गाँवों का क्षेत्रफल 8074 बीसी नाली थ


   स्ट्रेचों की रिपोर्ट सलाह मानते हुए ब्रिटिश शासन ने सदाव्रती पट्टियों के सदाव्रत भूमि राजस्व  का उपयोग तीर्थयात्री मार्ग निर्माण , पुनर्णिर्माण  , तीर्थ यात्रियों हेतु औषधालय निर्माण , औषधि वितरण , पर होने लगा।  इन तीर्थ यात्री सुविधाओं से भारत के अन्य भागों में अपने आप उत्तराखंड छवि वृद्धि हुयी और तीर्थ यात्रियों की संख्या में वृद्धि होने लगी।

         गाँवों में श्रमदान से मार्ग निर्माण में तेजी
       तीर्थ यात्रा मार्गों में सुधार से प्रेरित हो गढ़वाल के अन्य क्षेत्रों में श्रमदान से ग्रामवासी मार्ग निर्माण करने लगे। ग्रामवासी अपने गाँव को लघु मार्गों द्वारा मुख्य यात्रा मार्ग से स्वयं जोड़ने लगे।


    पौड़ी गढ़वाल पर्यटन में पिछड़ा जनपद है
  पौड़ी गढ़वाल में स्वर्गाश्रम , लक्ष्मण झूला व श्रीनगर को छोड़ दें तो पौड़ी में धार्मिक पर्यटन नगण्य हैं।  यदि उत्तराखंड पर्यटन वृशि करनी है तो पिथौरागढ़ व पौड़ी जनपदों को को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटन जनपद विकसित करने ही होंगे।  इसके लिए श्रीनगर -कोटद्वार मार्ग को प्रसिद्धि आवश्यक है।
      श्रीनगर -कोटद्वार रुट हेतु प्रवासियों का योगदान ही विकल्प है
 यदि श्रीनगर -कोटद्वार मार्ग को राट्रीय स्तर का पर्यटन मार्ग बनाना है तो श्रीनगर -कोटद्वार मार्ग के गाँवों को विशिष्ठ पर्यटक क्षेत्र निर्मित करना होगा जिसमे प्रवासियों की भूमिका के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है।  प्रवासी निम्न स्तर पर अपना योगदान दे सकते हैं
१- वैचारिक स्तर पर अपने गाँव में विशिष्ठ पर्यटन आकर्षी प्रोडक्ट निर्माण
२- ग्रामवासियों को तैयार करना - आजकल एक बीमारी फैली है कि हर भारतीय शासन से सब कुछ चाहता है किन्तु अपने योगदान के बारे मबौग सार देता है। प्रवासी यह जड़ता तोड़ सकते हैं
3 -पर्यटन प्रोडक्ट निर्माण में निवेश कर प्रवासी अपनी भूमिका निर्धारित कर सके हैं। प्रवासी श्रीनगर -कोटद्वार मार्ग पर रिजॉर्ट , म्यूजियम , बाल क्रीड़ा केंद्र , हनी मून हाऊसेज , हॉस्पिटल आदि खोल सकते हैं।


Copyright @ Bhishma Kukreti  3/4 //2018



Copyright @ Bhishma Kukreti  /4 //2018


ब्रिटिश काल में परिवहन योजनाएं और वर्तमान में वोट और विभाग अहम प्रेरित परिहवन योजनाएं
 Transportation improvement in British Period in Uttarakhand

Temple Management in British  Era
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -60

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  - 60                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--166)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 166

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

   गढ़वाल कुमाऊं में बार बार अन्नकाल पड़ते थे।  ऐसे समय में निर्यातित अनाज को सदूर गाँवों में पंहुचना टेढ़ी खीर थी। पहाड़ों में बैलगाड़ी जाना आज भी संभव नहीं है।  तो घोड़ों व खच्चरों से लदान संभव था या है। किन्तु गढ़वाल राजाओं व क्रूर गोरखाओं ने कर लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी किन्तु सड़कें नहीं बनवायीं।  ब्रिटिश शासन ने आंतरिक परिवहन को सुदृढ़ करने हेतु कुछ कदम उठाये।
 1948 में कुमाऊं में अल्मोड़ा में 180 मील , नैनीताल में 80 मील लम्बी सड़कें निर्माण का काम हाथ में लिया गया। सर्वपर्थम कोटद्वार -फतेहपुर सड़क पर ध्यान दिया गया।  लैंसडाउन छा वनी बनने से भी दक्षिण गढ़वाल में परिहवन सुलभ हुआ। 

    In Garhwal, there was no plan for road construction till 1828.

       Trail started road construction from Haridwar to Badrinath in 1827-1828. Trail did not take help from any engineer for planning. Trail himself used to supervise the works. it is said that Trail used to cut or dig stone when there was steep stone hurdle. He used to go for marking on steep hill with the help of roped basket. Trail used to sit in roped  basket and helpers used to take rope and he used to jump here and there for marking. Trail travelled from Badrinath to Kedarnath for road survey.

    Trail also discovered a road from Kumaon to Mansarovar. Church officials criticized Trail for that he was promoting idol worshipping.

   By 1834, Haridwar –Badrinath road was completed. Animals and men could cross each other on that road. By 1835, government constructed roads from Rudraprayag to Kedarnath, Ukhimath to Chamoli, Chandpur to Kumaon via Lobha. Kumaon was connected to Ruhelkhand. So Ruhelkhand was connected to Badrinath via Kumaon. The length of such roads was 300 miles and cost was Rs. 25000.Sadavrat tax was used on road construction.

    The successors of Trail kept road construction works alive. Workers completed road construction from Joshimath to Neeti in 1840. There was road from Shrinagar to Almora and Shrinagar to Kotdwara to Nazibabad by 1841.

 कोटद्वारा , हल्द्वानी , ऋषिकेश व देहरादून, हरिद्वार  को रेल से जोड़ने का जो कार्य ब्रिटिश शासन ने किया था उसमे भारत सरकार ने एक इंच भी वृद्धि नहीं क।  रेल मार्ग ने तो पर्यटन उद्यम त्र में क्रान्ति ला दी थी
ऋषिकेश -देवप्रयाग मोटर मार्ग ने भी उत्तराखंड पर्यटन की काया पलट ही कर दी।  प्राचीन काल से चलने वाला ऋषिकेश -बद्रीनाथ मार्ग तो बंद ही हो गया।
    गढ़वाल में 1948 में डिस्ट्रिक्ट बोर्ड की मुख्य सड़कें इस प्रकार थीं -
तपोवन घाट -नारायण बगड़ -लोहाबा -बुंगीधार -44 मील
बुवाखाल -कैन्यूर -44 मील
रामणी बाण -देवाल -ग्वालदम -38 मील
दनगल -पोखड़ा -बैजरों --२६ मील
नंद प्रयाग -बाट मार्ग -12 मील
 दोगड्डा -द्वारीखाल -पौखाल -डाडामंडी पैदल मार्ग भी ब्रिटिश देन है. व्यासचट्टी , महादेव चट्टी जैसे घाटों को अच्छी सड़कों (घोडा सड़क ) गाँवों से जोड़ने का प्रशंसनीय कार्य भी ब्रिटिश काल में शुरू हुए।
इन सड़कों के निर्माण ने आंतरिक पर्यटन व वाह्य पर्यटन विकास की आधार शिला रखी। इन सड़कों पर ऐसे पल बने हैं जो अभी भी सही सलामत हैं।
    गंगा व सहयोगी नदियों पर पल भी ब्रिटिश काल में बने जिन पुलों ने पर्यटन को नई दशा व दिशा दीं।  श्रीनगर गुमखाल मोटर मार्ग भी ब्रिटिश काल देन है।
 ऋषिकेश कोटद्वार मार्ग भी ब्रिटिश काल में निर्मित हुआ।
     वन सड़कें - ब्रिटिश काल में वनों के अंदर आवागमन हेतु कई सड़कें बनीं।  अब तो सार्वजनिक विभाग व वन विभग्ग की खींचातानी में चलते मार्ग भी अवरुद्ध किये जा रहे हैं हरिद्वार -कोटद्वार मोटर मार्ग का इतिहास यही कहानी बयान करता है।
   ब्रिटिश अधिकारियों पर बहुत से अभियोग लगते हैं किन्तु यह अभियोग नहीं लगता कि उन्होंने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ हेतु सड़क योजनाएं बनायीं।  आज तो हर सड़क की योजना वोट निश्चित करने हेतु बन रही हैं।  वोट बैंक सामने आ गया है और पर्यटन नेपथ्य में चला गया है।  सड़क व पुलों का शुभारम्भ भी नेताओं की फोटोजनी हेतु होते हैं समाजहित नेपथ्य में चला जाता है।


ब्रिटिश काल में प्रमुख रोग और  समयगत मृत्यु आंकड़े

Diseases and Treatments Uttarakhand  in British  Era
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  61

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म -61                   

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--167)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 167

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

 ब्रिटिश काल में उत्तराखंड में प्रमुख रोगों में प्लेग (महामारी ), हज्या , चेचक , भाभर में मलेरिय, विभिन्न बुखार , चेचक , दस्त , व प्रसव समय जच्चा -बच्चा मृत्यु प्रमुख व्याधियां थीं।
  महामारी या अन्य बीमारियों जैसे बुखार के कारण भोटिया व्यापारी श्रीनगर तक ही पंहुच पाते थे व तिब्बत सरकार भी कभी कभी भोटिया व्यापारियों पर तिब्बत प्रवेश पर रोक लगा देती थी।  1823 में प्लेग पंजाब से फैलता फैलता कुमाऊं तक फ़ैल गया था।  हजारों उत्तराखंडी मृत्युलोक चले गए थे।
 प्लेग , हैजा कुम्भ व हरिद्वार में बैशाखी मेले से यात्रियों द्वारा प्रसारित हो गढ़वाल में फ़ैल जाता था।
 ब्रिटिश शासन ने रोग प्रसारण न हो हेतु कई प्रशंसनीय कदम उठाये।  गाँवों में सफाई पर जोर देने जैसे चौक में कूड़े के ढेर , मकान के पास भांग न बोना , गौशालाएं गांव से बाहर निर्माण करने जैसे कई जन जागरण के कार्य किये।  प्लेग फैलने पर भी जन जागरण के कई कार्य किये गए।  1852 में एक कमेटी बनवायी गयी जिसके सलाहों पर कार्य किये गए व कई कदम उठाये गए।  टीकाकरण पर जोर दिया गया। डा पियरसन की रिपोर्ट ग्रामीण व्याधि निदान हेतु आज भी औचित्यपूर्ण रिपोर्ट है।
  विभिन्न रोगों से मृत्यु आंकड़े  इस प्रकार हैं  (बेकेट गढ़वाल सेटलमेंट)-

   There is following Government report on year wise disease wise deaths in Garhwal from 1867-1906 (Garhwal gazetteer)-

 

Year-----Cholera -----S. pox--------Fever------Indigestion-----Injury—Misc.----Total

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1867-------351-------------47------------1722----------------------------------2038-------4138

68-----------20--------------8-------------1650-----------------------------------2915--------4602

69----------------------------2--------------1992---------1237-------------------1282------4513

70------------6--------------1---------------2134---------------------------------2673-------4820

71----------------------------6---------------255----------2071--------208-------563-------5414

72--------------------------74---------------2356--------2576---------288------563--------5856

73------------27------------28--------------2865--------2207--------------------713-------6201

74----------------------------31--------------3069-------2027----------393-----580-------6070

75------------587----------167--------------2269-------2376-----------262------639------6640

76--------------------------------------------3246--------2500-----------257------560------6513

77--------------------------------------------2719---------2042----------248-------753---->5000

78----------17----------------14-------------3214--------3143----------296--------403--->-7000

79-----------3473------------6---------------2743-------1712----------225--------342--- > 8000

80----------------------------------------------3935--------2384-------344---------247------ >6900

81--------------659------------2---------------3474--------2796-------244--------350---------7525

82------------------------------2----------------4046--------3331-----238---------294---------7921

83-----------------------------9---------------3683----------3824------243---------370---------8129

84---------------------------11----------------3722----------3118-------210-------165--------7226

85-------------33----------5------------------4100-----------3611--------219-----186--------8254

86---------------------------1------------------3835-----------2991--------232-----136-------7195

87------------567----------2------------------4759-----------3925--------200------219-------9211

88-------------3-------------17---------------4779-----------3982----------227-----203-------9211

89-------------109----------1-----------------4656-----------3610---------229------175------8780

90---------------620--------1-----------------6123------------3276---------224-----175------10419

91--------------66-----------13---------------6977------------3232--------236--------189----10713

92------------5943-----------3---------------8966-------------3108--------242-------224-----18481

93------------1525----------13--------------5447--------------3099--------203-------213-----10500

94-------------10-----------124--------------7691--------------4119-------242--------328-----12514

95----------------------------13----------------8845------------3970--------240--------309----13377

96--------------1033----------------------------9987-----------3632

97-------------------------------------------------9687-----------3632

98-------------40-----------------------------------6821---------------2824

99------------659------------------------------------6636-------------3587

1900----------107-----------------------------------5603---------------3132

01-------------129-----------------------------------6012---------------3034

02--------------806-----------------------------------6294---------------3494

03-------------4017------------------------------------7264--------------4309

04---------------188-----------------------------------7194---------------3458

05-------------------------------------------------------8184---------------4897

06-----------------3429---------------------------------6648----------------3941

07------------------2--------------------------------------7382--------------4064

08------------------2924---------------------------------9625---------------3601

09--------------------1736---------------------------------7259--------------2963

 

 



Copyright @ Bhishma Kukreti  5/4 //2018

ब्रिटिश काल में उत्तराखंड में चिकित्सा व चिकित्सालय -- -

 Hospitals in British  Era in Uttarakhand
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  63               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--168)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 168

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  सदाव्रत व सरकारी चिकित्सालयों को छोड़कर ग्रामीण उत्तराखंड में कर्मकांडी ब्राह्मण ही आयुर्वेद चिकित्सा स्रोत्र थे।  ये ब्राह्मण अपने बच्चों को ज्योतिष , कर्मकांड के अतिरिक्त आयुर्वेद शिक्षा भी देते थे।  ब्राह्मण का गृह ही चिकित्सा शिक्षण संस्थान भी थे।  ये पारम्परिक वैद ही गाँव गाँव जाकर रोग निदान करते थे या लोग इनके पास आकर औषधि ले जाते थे।  चलण स्यूं में झाला गाँव इस क्षेत्र में वैदकी के लिए प्रसिद्ध था।
  ढांगू उदयपुर में निम्न गाँव वैदकी हेतु प्रसिद्ध थे
   झैड़
नौड -वरगडी
कठूड़
ठंठोली
गडमोला
तैड़ी
घट्टूगाड
किमसार
कांडाखाल
बरसुड़ी
डाबर
अमालडू

कंडवाल स्यूं में बागी
    इन वैद्यों की सबसे बड़ी समस्या साहित्य उपलब्धि की थी।
                        हरिद्वार  यात्रा मार्ग पर बाबा कमली वालों के धर्मार्थ चिकित्सालय भी थे
      मिशन हॉस्पिटल चोपड़ा
पादरी मेसमोर ने 1903 के आसपास चोपड़ा में एक धर्मार्थ चिकित्सालय खोला।  इस चिकित्सालय ने पौड़ी की बड़ी सेवा की और मिसनरी वाले वास्तव में बड़े जुझारू थे।
   सरकारी चिकत्सालय
 कमिश्नर ट्रेल ने सदाव्रत फंड से सरकारी स्तर पर चिकित्सालय स्थापना करना शुरू किया।  सदाव्रत से 1907 तक सात चिकित्सालय श्रीनगर , उखीमठ , बद्रीनाथ , चमोली , जोशीमठ , कर्णप्रयाग में हरिद्वार -बद्रीनाथ यात्रा मार्ग पर खुल चुके थे -1907 में कांडी (बिछला  ढांगू ) में चिकित्सालय खुला।
 1890 से 1909 तक डिस्ट्रिक्ट बोर्ड ने चिकित्सा पर निम्न राशियां खर्च किये -

                         Expenses on Health Care from 1890-1909

  The government spent on health care following money(in Rs.) from 1890-1909-

 

Year -------Rs.------------Year -----------------Rs.--------------------Year -----------Rs.

1890- 91- 1176-----------1891-92------------1121--------------------1892-93------2990

1893-94----2939-----------1892-93-----------2516---------------------95-96--------2716

96-97--------2721------------97-98------------4385---------------------98-99---------3145

99-1990------3391---------1900-01-----------3413----------------------01-02---------3645

02—03-------4191---------03-04--------------4345---------------------04-05-----------3923

05-06-----------5362---------06-07------------9760---------------------07-08----------11615

08-09-----------12565
  यात्रा मार्ग में चिकित्सालयों में यात्रिओं को निम्न व्याधियों हेतु औषधि दी गयीं या चिकित्सा की गयीं  (आदम , रिपोर्ट ऑन दि पिलग्रिम्स पृष्ठ 41 )

Nos of patients Treated in Pilgrim road Government Hospitals from 1903-1912

 

      The pilgrims used to face indigestion, malaria and diarrhea besides choler. Local people took also advantages of hospitals opened on pilgrims road.  Following data are available for patients treated in different hospitals on pilgrim roads from 1903-1912-

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Year ---Shrinagar—Ukhimath-----Joshimath-----Chamoli-----Karnaprayag—Galai---Kandi

1903

Malaria----2400---------480-------------385------------848----------729------------559

Indigestion- 191---------39--------------77--------------102---------94---------------65

Diarrhea-----488---------57--------------39---------------88----------151--------------39

1904

Malaria -----3393--------648------------521-------------521----------630-------------558

Indigestion—582---------81-------------149-------------111----------128-------------88

Diarrhea------363----------46--------------64--------------94-------------54------------22

1905

Malaria ----- 3250---------482-------------392------------323-----------602------------635

Indigestion----648-----------93-------------129--------------42------------69-------------82

Diarrhea--------459----------53--------------59-------------33---------------88-----------79

1906

Malaria ------3787------------464-------------333-----------458-----------707------------438

Indigestion---642---------------77----------------63-----------95-----------83--------------86

Diarrhea------797---------------68---------------53------------29------------112-----------52

1907

Malaria ------2886-------------565------------440------------473-----------252----------493-----238

Indigestion-- 507---------------88-------------82--------------136----------37------------126-------38

Diarrhea------567---------------46-------------46-------------65------------116------------44------50

1908

Malaria ------3938-------------812-------------345-----------751-----------901-----------790----481

Indigestion- -655---------------33----------------82------------49------------32------------44------11

Diarrhea-------87----------------55----------------59---------187-------------14------------90-----66

1909

Malaria ------3149--------------760------------582----------834------------765-----------537-----330

Indigestion- ---793--------------187------------84-----------266------------98------------291-----82

Diarrhea------505---------------57-------------97-------------218----------144------------58---------30

1910

Malaria -----3623--------------801----------497-------------995----------817------------588-------327

Indigestion---840---------------70------------80-------------741----------205-------------330------78

Diarrhea-------889--------------66------------34-------------136----------166-------------90---------52

1911

Malaria -----2542----------------856----------582------------760----------715------------544-------408

Indigestion- 779-----------------70------------110------------568----------274-----------113---------64

Diarrhea------975----------------86------------82--------------93-----------148------------67---------53

1912

 

Malaria -----1608--------------1041----------375-------------976----------803-----------740--------333

Indigestion- -156----------------81-----------157-------------380-----------92------------229--------61

Diarrhea------437----------------118----------70--------------69------------110-----------118--------95

 

    बद्री दत्त पांडे ने यात्रा मार्ग (कुमाऊं से बद्रीनाथ ) के निम्न चिकित्सालयों का उल्लेख किया है ( कुमाऊं क इतिहस १९२३, पृष्ठ 143 -144 )-

अल्मोड़ा अस्पताल

अल्मोड़ा सदर अस्पताल

अल्मोड़ा जनाना अस्पताल

पि थौरागढ़

लोहाघाट

भीकियासैण - विशेषतः यात्रा मार्ग हेतु

गणाई - यात्रा हेतु

बैजनाथ जो चाय बगान हेतु शुरू हुआ था

बागेश्वर

  इसी तरह बैजनाथ , नैनीनाग , द्वारहाट , झूलाघाट , धारचूला , कपकोड , मनीला , जैंती , लमगड़ा , खेतीखान , देवलथल , मांसी , नैनीताल में भी अस्पताल खुल गए थे

  भंवासी  में क्षय चिकित्सालय खुल गया था यहां 150 रोगी रह सकते थे। तिबरी में जनाना सेनोटेरियम भी था।


 

Copyright @ Bhishma Kukreti  /64 //2018



 ब्रिटिश काल में यात्रा मार्ग पर चट्टी प्रबंध (काला लोगों द्वारा विशेष र्यटन प्रबंधन )

Chatti management  in British  Era
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  65

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  65               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--169)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 169

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

 बद्रिकाश्रम व केदारेश्वर यात्रा माह्भारत संकलन -सम्पादन काल से भी शस्त्र वर्ष पहले से चली आ रही हैं। इतने सालों तक ऋषिकेश -देवप्रयाग मोटर मार्ग बनने से पहले ऋषिकेश से बद्रीनाथ जाने का एक ही पैदल मार्ग था और वह था पौड़ी गढ़वाल में गंगा  तट का।  मार्ग।   सहस्त्रों वर्षों तक यही मार्ग बना रहा।  सहस्त्रों  सालों में पर्यटक सुविधा हेतु एक व्यवस्था निर्मित हुयी जिसे चट्टी व्यवस्था कहते हैं।  चट्टी शब्द द्रविड़ शब्द से बना शब्द है जिसका अर्थ है दुकान अथवा दुकानदारी।  चट्टी के मालिक को चट्टीवाला कहा जाता था।
  चट्टियां ऋषिकेश -बद्रीनाथ के मध्य , कर्णप्रयाग से  से पुनवाखाल कुमाऊं की और जाने वाले मार्ग व रुद्रप्रयाग से गंगोत्री -यमनोत्री -वाले मार्ग पर चार या तीन से चार मील के अंतराल में बनी थी. इससे पहाड़ी प्रदेश से अनभिज्ञ मैदानी यात्रियों को सुविधा सुलभ हो जाती थीं।
                  छट्टियों में चट्टी भवन
 यह एक आश्चर्य ही है कि अधिकतर चट्टियों में भवन या दुकाने एक जैसे ही बनाये जाते थे।  भवन चट्टी मालिक अपने धन से निर्मित करवाते थे।  भवन भूमि से दो फिट ऊँचे आधार पर बनवाये जाते थे। एक मंजिला भवन का बड़ा लम्बा कक्ष द्वार विहीन होता था जो मुख्य मार्ग की  ओर खुलता था। बरामदे के एक भाग में दुकान  कक्ष व दुकानदार हेतु शयन कक्ष होता था।  सर्दियों में भोजन पकाने हेतु एक चूल्हा भी होता था।  छतें या तो घासफूस या पत्थरों की होती थीं।  कुछ छतें पर चददरों की बनीं होते थे।
    दुकान से बाहर क्यारियां होती थीं। हर क्यारी के किनारे एक चौकी व चूल्हा होता था।  यात्री चट्टी दुकान से मन माफिक  खरीदकर अपना भोजन स्वयं बनाते थे।  चट्टी मालिक चूल्हों की आज लिपाई करता था। चट्टी  मालिक बर्तन ,शयन हेतु कपड़े , लकड़ी का प्रबंध करता था उसके लिए मूल्य निर्धारित थे।  मांश मदिरा सेवन चट्टियों में सर्वथा वर्जित था।  साधुओ के लिए भांग पीने की छूट थी।  चट्टी मालिक तम्बाकू का प्रबंध भी करता था।  हुक्के की छूट नहीं थी।  चट्टी मालिक चिलम रखते थे या पत्ती की चिलम बनाकर यात्रियों को देते थे। अनाज खरदने वाले यात्रियों से शयन व विस्तर मुफ्त था। शयन कीमत एक या दो आना प्रति रात था।
    यदि चट्टी गंगा किनारे हो तो मंदिर भी थे जैसे महादेव चट्टी , व्यासचट्टी आदि।  यदि कोई यात्री रुग्णावस्था में हो तो चट्टी मालिकपास के गाँवों से वैद्य  बुलाते थे।
      यदि किसी यात्री को   थी तो चट्टी मालिक डंडी , पिंस , डोला व घोड़ों की व्यवस्था भी करता था।
         बहुत से यात्री अपना सामान चट्टी में छोड़ आते थे व लौटते समय अपना सामान ले जाते थे।  गढ़वाली चट्टी मालिकों की ईमानदारी की कथाएं सारे भारत में प्रचलित थीं अतः यात्री गढ़वाल यात्रा में चोरी व डकैती से कभी भय नहीं खाते थे।  यात्री रात में भी बिना भी के यात्रा कर लेते थे। यात्रा मार्ग के आस पास के ग्रामीण भी यात्रियों का शोषण नहीं करते थे व समय पड़ने पर बिना शुल्क सहायता करते थे।
  ब्रिटिश शासन में कुछ अंतराल के बाद सरकार ने सफाई कर्मचारी नियुक्त किये जो चट्टियों में सफाई कार्य करते थे। 
 ब्रिटिश काल में निम्न चट्टियां कार्यरत थी।

             Chattis on Lakshmanjhula –Badrinath Road

  SN.    Chatti -----Distance---Shops, Nos- SN.    Chatti -----Distance---Shops, Nos

1-Lakshmanjhula------0--------13---------------2------Khairari--------2----------0

3-Fulvari-----------------2---------10--------------4-------Ghattugad-----2---------6

5-Nai Mohan (Chatti)- 3----------3---------------6----Chhoti Bijni-----1----------8

7-Bari Bijni-------------1 ----------8---------------8- Kund---------------3-----------3

9-Banderbhel----------3-------------7--------------10—Mhadev ---------1.5--------18

11- Simwal------------3.5-----------8---------------12--Am-----------------0.25------1

13- Kandi--------------2.5-----------5----------------14-Vyasghat-----------4.5-------10

15-Chhaluri--------------3------------3--------------------16—Umrasu-------------3----2

17—Saur----------------3--------------2-------------------18---Vah (devPrayag)---1---21

19—Ranibag-------------7--------------5------------------20-Rampur------------4-------15

21-Vilvakedar-----------4--------------3-----------------22—Shrinagar-------3---------Big Bazar

23—Sukarta-------------5---------------3-----------------24—Devalgadan ---1.5------1

25-Bhattisera------------1.3--------------7------------------26- Chhantikhal ----1--------1

27- Khankara------------  1 -------------8--------------------28- Narkot------------3 ------4

29- Gulabrai --------------2.5-----------2---------------30- Punar (Rudraprayag)- 1---12

31- Shivanandi -----------7--------------4---------------------32 Kamera ------------4---1

33- Chatwapipal----------5---------------6 ----------------------34Karnaprayag ----4----20

35- Kald--------------------1---------------1-------------------------36 Umta---------------1-----1

37- Jaikandi -------------2------------------1-------------------38- Uttaraul ------------0.25-----1

39- Langasu---------------2----------------4----------------------40- Biroligadhera------2-----------2

41-Sonla--------------------3----------------6-----------------------42- Nandprayag-------3-------24

43-Pursari-----------------1-------------------1----------------------44- Maithana ---------2--------7

45-Kuher----------------- 2--------------------3------------------46- Bayar------------------ 0------1

47- Chamoli--------------2------------------13------------------48-Math-------------------2-------5

49- Mathgadan------------0------------------3-------------------50-Chhinka--------------1-------4

51- Baunla------------------1-----------------6---------------------52-Siyasain-----------2----------7

53-Dhobighat--------------1----------------5--------------------54-Pipalkoti -----------2-----------24

55-Gauriganga--------------3--------------4----------------------56-Tangani--------------2.25-----5

57-Patalganga---------------2--------------7----------------------58- Gulabkoti------------2---------4

59-Helang (Kumarchatti)-2.25----------15---------------------60-Khanoti--------------2.25--------9

61-Jharkuli----------------1----------------2-----------------------62-Singdhara----------2-----------3

63-Chunar (Joshimath)-1-----------------4------------------------64-Vishnuprayag------1------------4

65-Chaldua-------------------------------1-------------------------66-Ghat—4---------------10

67-Nandkeshwar-----------------------3-------------------------68-Pandukeshwar---2----12

69-Bamanganv------------------------3----------------5--------70-Hanumanchatti---2--------5

71- Badrinath --------------------4.25----------------5

Mana ?

 

  The following Chattis (Staying places for Pilgrims) on Rudraprayag to Kedarnath rout-

SN- Chatti---------Distance----Nos Shop------SN. Chatti-----------Distance ------Nos. Shop

72-Rudraprayag------------0----------4--------------73-Chhatoli---------6 ----------------7

74-Tilwara------------------0------------1-------------75-Math------------2------------------1

76- Rampur- ---------------2------------7------------77-Agustmuni ----3-------------------8

78-Sauri--------------------2--------------4------------79-Kunjgarh/Chandrapuri---2-------12

80-Bhiri------------------3----------------10-----------81-Kund-----------4-------------------5

82-Guptkashi-----------2-----------------10--------------83-Nala ---------1-------------------3

84-Bhet------------------1-----------------8------------------85—Kantva-----2-----------------7

86- Malla----------------0.2--------------2------------------87—Fata ---------3---------------16

88-Badasu--------------2-----------------4-------------------89- Badalpur-------1-------------6

90- Rampur------------2------------------16-----------------91- Trijugi-----------5-----------10

92-Gaurikund----------5-------------------15----------------93- Chirpatiya Bhairav—2--------4

94- Ramwara ------------2---------------- 15----------------95—Kedarnath --------4-----------10

                            *Distance in miles, mile=1.6 kilo meter

 

Pilgrims used to visit Badrinath from Kedarnath too through Guptakashi to Chamoli . The following Chattis were there from Guptakashi to Chamoli rout-

SN- Chatti---------Distance----Nos Shop------SN. Chatti-----------Distance ------Nos. Shop

96-Nala---------------0--------------3---------------97- Ukhimath----------2.5------------10

98-Kanath--------------3-------------10--------------99-Gwali Bagar----------2------------5

100-Gaira----------------1--------------3-------------101-Godh-------------------0------------1

102- Vyas-----------------0---------------2------------103-Pothivasa------------2-----------12

104-DogliBheent ----------1.5-----------1---------------105-Baniya Kund------0.5-------4

106-Chopta------------------1--------------7--------------107-Jhunkana------------3----------8

108-Bhinodiya--------------1---------------3---------------109-Pangarvasa---------4----------6

110-Mandal-----------------4-------------21 (?)--------------111-Bairagana------------2-----------1

112-Nirau------------------0.5-----------------2----------------113- Kholti-------------0.5----------3

114-Sentuna-----------------1------------------5-----------------115- Gopeshwar----------2----------5

116-Kotiyal Ganv --------2------------------2--------------------117- Chamoli -----------1----------14

 

     

Pilgrims used to go towards east (through Almora ) from Badrinath to Panuvakhal (last Chatti in Garhwal) via Karnaprayag . The following Chattis were there from  Karnaprayag to Panuvakhal  rout-

SN- Chatti---------Distance----Nos Shop------SN. Chatti-----------Distance ------Nos. Shop

118-Karnaprayag ------0-------------20-----------119- Puli -----------------------------1

120- Ram- --------------0---------------1----------121- Simali--------------4------------12

122-Siroli-----------------2--------------8-----------123-Bharoli------------2-------------7

124-Pipal--------------------------------1-------------125-Adibadari---------4-----------16

126-Kheti---------------9---------------5-------------127-Jangalchatti--------2------------11

128-Devali--------------2---------------4-------------129----Genthabanj------0.5----------2

130-Kalamati-----------1.25-----------2--------------131-Basiyagad---------0.25----------3

132-Gwargadan---------1.50-----------1---------------133- Chunarghat-------1.25---------10

133-Isai Chatti-----------1.25-----------3---------------135—Sainja---------------1--------2

135-Melgwar --------------0.25----------2-----------------137-Agarpanwar ki dukan –0.25—1

137- Mehalchaunri --------1.50----------5----------------139-Punavakhal----3-----------3

Punvakhal was last Chatti for entering into Kumaon .

 In Kumaon, there were 42 Chattis between Punavakhal and Ramnagar.

 कुमाऊं में 42 चट्टियां थीं
                      *Distance in miles, mile=1.6 kilo meter


            सुमाड़ी के कालाओं का विशेष प्रबंधन

  श्रीनगर के पास कालाओं का गाँव है सुमाड़ी।  कुणिंद शासन के कुणिंद मुद्राओं के सुमाड़ी व भैड़ गाँव (दोनों काला जाति गाँव ) में मिलने से अनुमान लगता है कि काला गढ़वाल में सातवीं आठवीं सदी में बस गए थे किन्तु उन्हें पंवार वंशी राजाओं के यहां कोई बड़ा पद नहीं मिला था।
               कला लोगों का  प्रबंधन में
   काला लोगों का चट्टी प्रबंधन अभिनव था।  उस समय चाय प्रचलन  हुआ था तो यात्रयों हेतु त्वरित ऊर्जा हेतु कोई पेय उपलब्ध न था।  चूँकि अधिकतर यात्रा ग्रीष्म ऋतू में होतीं थी तो दूध रखना संबंद्व न था।  जबकि दूध की बड़ी मांग थी।
          कला लोगों की श्रीनगर से नंद प्रयाग तक चट्टियां थीं।  सुमाड़ी के काला यात्रा सीजन शुरू होने से पहले दुधारू भैंस चट्टियों में ही ले जाते थे।  यात्रियों को ताजा दूध मिलने से श्रीनगर से नंद प्रयाग की चट्टियों का नाम भारत के कोने कोने में विशेष छवि बन गयी थी जिसका जिक्र आदम ने रिपोर्ट ऑन पिलग्रिम रुट किया है।  एक अन्य आश्चर्य यह भी है कि यद्द्यपि यात्रियों की दूध हेतु बड़ी मांग थी किन्तु कालाओं   को छोड़ अन्य लोग चट्टियों में भैंस नहीं रखते थे कालाओं में बहुत से वैद व  तो वैदकी भी कर लेते थे।
    ब्रिटिश शासन ने आदम को यात्रा मार्ग में सुधार हेतु रिपोर्ट बनाने आदेश दिया और आदम ने चट्टी प्रबंधन को सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था करार दिया तथा लिखा कि  गढ़वाल में किसी सुधार की आवश्यकता ही नहीं है । सुरक्षा , यात्रा  सुविधा  प्रबंधन ही तो पर्यटन प्रवंधन है जो चट्टी मालिक करते थे.
           बाबा   काली कमली वालों का योगदान
 बाबा कमली वालों की धर्मशालाओं व औषधालयों का गढ़वाल पर्यटन में बड़ा योगदान है। 
 

Copyright @ Bhishma Kukreti  7/4 //2018

टिहरी रियासत में पर्यटन तंत्र  भाग -1

 Laws for Tourism Development in Tehri Riyasat
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

  -

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -66

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  66               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--170)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 170

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  टिहरी रियासत  काल 1816 -1948 तक को अधिकतर जन शोषण काल माना जाता है किन्तु टिहरी रियासत काल में सुचारु उत्तराखंड पर्यटन हेतु कई पग भी उठाये गए थे।

                मोटर मार्ग

1937 -38 में ऋषिकेश से देवप्रयाग मोटर मार्ग निर्मित हुआ पीछे इस मार्ग का  कीर्तिनगर तक विस्तार विटार किया गया
   1921 में ऋषिकेश से नरेंद्र नगर मोटर मार्ग का कार्य प्रारम्भ हुआ पीछे मोटर मार्ग टिहरी तक पंहुचाया गया।
     मानवेन्द्र शाह काल में टिहरी से धरासू तक मोटर मार्ग निर्मित हुआ।
            1940 में टिहरी रियासत में निम्न मुख्य मार्ग थे -
ऋषिकेश नरेंद्र नगर मोटर मार्ग-53 मील
ऋषिकेश देवप्रयाग -कीर्तिनगर मोटर मार्ग -63 मील
 टिहरी मसूरी अश्व मार्ग -40 मील
 अन्य कच्ची सड़कें 844 मील
             राज्य बंगले
टिहरी रियासत के राजकीय बंगले - कौड़िया , धनोल्टी , पौ , डांगचौरा , धरासू , नाकुरी  बड़ाहाट , भटवाड़ी , हरसिल , जांगला , देवलसारी , मगरा , बड़कोट ,पुरोला , बडियार , फाकोट , नागणी , चमुवा , टिहरी , प्रता

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                    Shrinagar Social Structure   -2
                  British Administration in Garhwal   -147
       -
History of British Rule/Administration over Kumaun and Garhwal (1815-1947) -167
-
 
            History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -1001
-
                              By: Bhishma Kukreti (History Student)
In 1820, Hamilton wrote, “Shrinagar is situated in the middle of Shrinagar valley. It is oval shape. The length is 6 ferlang but width is very less. The houses are built by stone and cemented by mud. Most of the houses are two stories roofed by grey flat stones. The Ex-King palace is in the middle of the town. The palace was built by big granite stones. It is highest storied building in town.1803 Earthquake destroyed the palace.  The ruined is so dangerous that it is dangerous to be near the ruined palace.  Whatever are left shows that the hill architecture was best example. It seems that palace was big and drawings were drawn on palace outer walls.”
 Further Hamilton described Shrinagar in following words. There was only one road and bazars were on both the sides of road. The road was two furlang long and set by stones. The houses on both the sides were of two story buildings. The shops were there on the ground floor and oeple stayed on first story. At present he business was negligible. Only, hemp and woolen clothes were made here in negligible quantity. There were two major temples in the town. There was Dharmshala in Shrinagar. The tourists, pilgrims used to stay in Dharmshala. There used to be regular maintenance of Dharmshala.
    There was a small human settlement near bazar. The houses were so near that there was no place in between two houses. The road was so narrow that only two persons could pass together. In 1815, British army entered into Shrinagar and it was in ruined position. Baldock built his house nearby palace in lonely place.
 
   


xxx   
References 
1-Shiv Prasad Dabral ‘Charan’, Uttarakhand ka Itihas, Part -7 Garhwal par British -Shasan, part -1, page- 332-456
2-Haimilton, description of Hindustan vol. 2 page 639







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                    Shrinagar Social Structure   -4
                  British Administration in Garhwal   -149
       -
History of British Rule/Administration over Kumaun and Garhwal (1815-1947) -169
-
 
            History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -1003
-
                              By: Bhishma Kukreti (History Student)
    There was Nagraja temple at upper side in north of Joshi house. The Dangwal houses, their garden and farms   were there in south of Nagraja temple. Craftsmen had houses in west of Dangwal house after crossing the road. There was a garden and a huge Dak bungalow on east of road. Perhaps Baldock built the bungalow. There was a tomb of English deputy collector. There was a Sanskrit school nearby Dak bungalow.
              Police station was there in a big house situated in south of Bazar and bazar was in north of Dak Bungalow.
            In Garhwal Kings time, police station chief was called ‘Barakandaj’ and now, he was called Thanedar. On courtyard of Thane (police station), there was a big wood log. Hakim or police used to hook criminal’s feet on that wood. Trail stopped that custom and started cuffing hands and keeping them in prison. In that big hose, there were Tehsil, cash locker and court. There used to be judicial hearing and decision for Garhwal in that  court at initial British rule period.   
     Below, Police Station, there was big kotha of Saklani community. The doors were very wide and on top of them, there were carved elephants. The Kaunsi ( Baithak, conference room or drawing room)  was on third floor and was very decorative. No house was marvelous as Saklani Kotha in Shrinagar.
  In west of Bazar, there was a banyan tree. Hanuman idol was there under banyan tree. Later on Hanuman idol was established on the wall of Dharmashala of Ganesh bazar.

xxx   
References 
1-Shiv Prasad Dabral ‘Charan’, Uttarakhand ka Itihas, Part -7 Garhwal par British -Shasan, part -1, page- 332-456
2-Dangwal, Punyasthal, Shrinagar







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                    Shrinagar Social Structure   -5
                  British Administration in Garhwal   -150
       -
History of British Rule/Administration over Kumaun and Garhwal (1815-1947) -170
-
 
            History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -1004
-
                              By: Bhishma Kukreti (History Student)
.
             There was a temple at corner of Kui ka bagan. In west of street of temple, there was palace.  The palace was one ferlang long and slightly lesser wide. The tourists from Jaipur, Delhi and other places used to surprise watching four storied building built by stones and decoration of palace.   
     Ranivas (queen’s rooms) was at Lal Mori part in palace. The servants used to stay in rooms at either sides. The main door was built only by four huge stones. The King used to enter into palace through elephant. The door was so strong; it was as it was in Birhi River flood. The door fled in 1924 flood. At south corner, there was Hathikhana elephant yard. In an excavation, people found three elephant skeletons.
  Khanduri’s Chakkarkhola was in north of east of Hathikhana. Dangwal khwal was in south of Khanduri’s Chakkarkhola.
    Nearby bazar, there was Guru mandir. Perhaps Fatteshah built that temple for Guru Ram Rai. Nearby Guru temple, there were Uniyal’s Khwal and Gairolas khwal.
     There was Jogi settlement called ‘Chunyamunya in the east of Ramghat. In east of Chunyamunya muhlla, Keshoray ji built a big temple and five small temples. He called Lakshmi Narayan , Ganesh, Shiv, Vishnu , Surya idols for those temples. Idols reached to Shrinagar. However, Keshoraoy died suddenly. Idols could not be established in temples. Nobody could arrange rituals in those temples. Temples ruined with time. The temple was the biggest in Shrinagar. There was scripture on door of temple that showed time samvat 1682 (1825 AD). It means the temples were built in Mahipat period.
  In east of Keshoray Math, there was ‘Tamotyana’ ( metal smith community houses). Tamota used to produce and repair metal vessels.
    Further of ‘Tamotyana’, crossing rivulet, there was a dharamshala. People established a garud idol near Dharamshala. Later on, people brought  Garud idol at main Shrinagar. Theives theft the idol. 
   
   
xxx   
References 
1-Shiv Prasad Dabral ‘Charan’, Uttarakhand ka Itihas, Part -7 Garhwal par British -Shasan, part -1, page- 332-456
2-Dangwal, Punyasthal, Shrinagar

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                    Shrinagar Social Structure   -6
                  British Administration in Garhwal   -151
       -
History of British Rule/Administration over Kumaun and Garhwal (1815-1947) -171
-
 
            History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -1005
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                              By: Bhishma Kukreti (History Student)
     There were four shops owned by prosperous Agarwal on north row of Market. Initially, British opened post office and telegraph office in two Agarwal shops.  Shopkeepers from plains first time brought kerosene match boxes and lantern for Agarwal shop keeper.  Tamota (bronz smith) , Thanthera, iron smith had shops in Kui Bagan.
     The elites as Khanduris, Bahugunas, Dobhal, Saklani, Nautiyal, Gairola, Dangwal, Uniyal had bungalows and gardens in Shrinagar.
  The houses and gardens of a few Bartwal, Naithani, Puri, Gusain, Kathait, Maithani below present Kirtinagar-Shrinagar road.
    Vishnoi brothers Kadua-Budhva built a Dharmshala in Shrinagar. Jains built a ‘Arhant temple and well in Shrinagar. Girdhari Mishra built a Shiva temple.
     Dangwal stated that due to building of Dharmshala, Jain temple and Shiva temple were built in inauspicious time and those caused fled of Shrinagar in Birahi Ganga flood.
   Towrds Kirtinagar, there was rope bride. People crossed Ganga for going and coming to Ranihat. The hills above Shrinagar were flora less. However, fames were beautiful there.
   
xxx   
References 
1-Shiv Prasad Dabral ‘Charan’, Uttarakhand ka Itihas, Part -7 Garhwal par British -Shasan, part -1, page- 332-456
2-Dangwal, Punyasthal, Shrinagar









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                    Joshimath  Social Structure   
                  British Administration in Garhwal   -152
       -
History of British Rule/Administration over Kumaun and Garhwal (1815-1947) -172
-
 
            History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -1006
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                              By: Bhishma Kukreti (History Student)

      Joshimath was said to be beautiful place. Joshimath was an auspicious pilgrimage place and still is important religious place . The houses were built by brown stone and roofs were built by grey flat stone (Patal). The houses were beautiful.  Hamilton stated that there were 150 houses in Joshimath. Trail informed about 119 houses and those numbers would be correct.
          The Joshimath street roads were of stone.
 There were water driven flour mills in rows in ascending ways. The water was carried by engraved wood canals. 
  There was winter house for chief priest of Badrinath (Rawal). Narsinh temple was near Rawal house. There were idols of Vishnu, Sun, Ganesh, Naudurga in various temples.
    There were oak and pine forests surrounding hills of Joshimath.
  Vishnuprayag the conferencing of Alaknanda and Vishnu Ganga  Rivers was near Joshimath. There was rope way bridge on Dhauliganga (Alkananda). However, there was no temple at this Prayag.
    xxx   
References 
1-Shiv Prasad Dabral ‘Charan’, Uttarakhand ka Itihas, Part -7 Garhwal par British -Shasan, part -1, page- 332-456
2 Hamilton, Description of Hindustan, Vol 2, page 639-48





 

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