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( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Tourism History ) -
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--)
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
Copyright @ Bhishma Kukreti /4 //2018
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150 अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास part -6
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Medical Tourism History Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Uttarkashi, Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Dehradun, Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;
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गढ़वाली राजाओं व गोरखा शासन में मंदिरों को कर मुक्त मुवाफ़ी गाँव दिए गए थे। गूंठ भूमि राजस्व से मंदिरों में पूजा व कर्मचारियों का वेतन प्रबंध होता था। इसके अतिरिक्त सदाव्रत गाँव भी थे जिनकी आय से श्रीनगर , जोशीमठ में यात्रियों हेतु मुफ्त भोजन व्यवस्था भी होती थी। 1816 में गढ़वाल के सहायक कमिश्नर ने सलाह दी थी कि गूंठ या मंदिर गाँवों की आय का कुछ भाग यात्रियों की सुविधाओं हेतु प्रयोग होना चाहिए।
केदारनाथ के रावल द्वारा अमानत में खयानत से अधिकारियों ने रावलों या पुजारियों से सदाव्रत गाँवों से आय व उपयोग का अधिकार छीनकर स्वंतंत्र कमेटी 'लोकल एजेंसी 'बना दी। सदाव्रत गाँवों की आय से हरिद्वार -बद्रीनाथ यात्रा मार्ग चौड़ा किया गया। सदाव्रत गाँवों के राजस्व से यात्रिओं को मुफ्त भोजन व्यवस्था , यात्री चिकित्सा, मरोम्मत कार्य में तेजी लायी गयी। मार्ग मरमत कार्य अब नियमित व सुचारु रूप से होने लगा था.
ट्रेल के उत्तराधिकारियों द्वारा सदाव्रत पट्टियों की आय से निम्न मार्ग निर्मित हुए या उनका पुनर्निर्माण हुआ
जोशीमठ -नीती
अल्मोड़ा से लाभा -गढ़वाल
श्रीनगर से नजीबाबाद मार्ग
1927 -28 में ट्रेल ने गाँव वालों से बेगार लेकर (मुफ्त मजदूरी ) हरिद्वार -बद्रीनाथ मार्ग निर्माण कार्य करवाया। वह स्वयं भी मार्ग निर्माण निरीक्षण करता था। 1855 तक निम्न यात्रा मार्ग भी निर्मित हो चुके थे -
रुद्रप्रयाग से -केदारनाथ
उखीमठ से चमोली
कर्णप्रयाग से चांदपुर
बेकेटभूव्यवस्था में गूंठ व सदाव्रत भूमि की विधिवत व्यवस्था की गयी थी। डा डबराल ने लिखा है कि मंदिरों के साथ अन्याय भी हुआ। कुछ मंदिरों की भूमि भी छीन ली गयी थी।
सदाव्रत गाँवों से बेकेट भूव्यवस्था में वार्षिक राजस्व 100013 रुपयाथा। सदाव्रत व गूंठ गाँव की संख्या 535 थी व 1863 में इन गाँवों का क्षेत्रफल 8074 बीसी नाली थ
स्ट्रेचों की रिपोर्ट सलाह मानते हुए ब्रिटिश शासन ने सदाव्रती पट्टियों के सदाव्रत भूमि राजस्व का उपयोग तीर्थयात्री मार्ग निर्माण , पुनर्णिर्माण , तीर्थ यात्रियों हेतु औषधालय निर्माण , औषधि वितरण , पर होने लगा। इन तीर्थ यात्री सुविधाओं से भारत के अन्य भागों में अपने आप उत्तराखंड छवि वृद्धि हुयी और तीर्थ यात्रियों की संख्या में वृद्धि होने लगी।
गाँवों में श्रमदान से मार्ग निर्माण में तेजी
तीर्थ यात्रा मार्गों में सुधार से प्रेरित हो गढ़वाल के अन्य क्षेत्रों में श्रमदान से ग्रामवासी मार्ग निर्माण करने लगे। ग्रामवासी अपने गाँव को लघु मार्गों द्वारा मुख्य यात्रा मार्ग से स्वयं जोड़ने लगे।
पौड़ी गढ़वाल पर्यटन में पिछड़ा जनपद है
पौड़ी गढ़वाल में स्वर्गाश्रम , लक्ष्मण झूला व श्रीनगर को छोड़ दें तो पौड़ी में धार्मिक पर्यटन नगण्य हैं। यदि उत्तराखंड पर्यटन वृशि करनी है तो पिथौरागढ़ व पौड़ी जनपदों को को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटन जनपद विकसित करने ही होंगे। इसके लिए श्रीनगर -कोटद्वार मार्ग को प्रसिद्धि आवश्यक है।
श्रीनगर -कोटद्वार रुट हेतु प्रवासियों का योगदान ही विकल्प है
यदि श्रीनगर -कोटद्वार मार्ग को राट्रीय स्तर का पर्यटन मार्ग बनाना है तो श्रीनगर -कोटद्वार मार्ग के गाँवों को विशिष्ठ पर्यटक क्षेत्र निर्मित करना होगा जिसमे प्रवासियों की भूमिका के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है। प्रवासी निम्न स्तर पर अपना योगदान दे सकते हैं
१- वैचारिक स्तर पर अपने गाँव में विशिष्ठ पर्यटन आकर्षी प्रोडक्ट निर्माण
२- ग्रामवासियों को तैयार करना - आजकल एक बीमारी फैली है कि हर भारतीय शासन से सब कुछ चाहता है किन्तु अपने योगदान के बारे मबौग सार देता है। प्रवासी यह जड़ता तोड़ सकते हैं
3 -पर्यटन प्रोडक्ट निर्माण में निवेश कर प्रवासी अपनी भूमिका निर्धारित कर सके हैं। प्रवासी श्रीनगर -कोटद्वार मार्ग पर रिजॉर्ट , म्यूजियम , बाल क्रीड़ा केंद्र , हनी मून हाऊसेज , हॉस्पिटल आदि खोल सकते हैं।
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ब्रिटिश काल में परिवहन योजनाएं और वर्तमान में वोट और विभाग अहम प्रेरित परिहवन योजनाएं
Transportation improvement in British Period in Uttarakhand
Temple Management in British Era
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -60
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Tourism History ) - 60
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--166)
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 166
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
गढ़वाल कुमाऊं में बार बार अन्नकाल पड़ते थे। ऐसे समय में निर्यातित अनाज को सदूर गाँवों में पंहुचना टेढ़ी खीर थी। पहाड़ों में बैलगाड़ी जाना आज भी संभव नहीं है। तो घोड़ों व खच्चरों से लदान संभव था या है। किन्तु गढ़वाल राजाओं व क्रूर गोरखाओं ने कर लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी किन्तु सड़कें नहीं बनवायीं। ब्रिटिश शासन ने आंतरिक परिवहन को सुदृढ़ करने हेतु कुछ कदम उठाये।
1948 में कुमाऊं में अल्मोड़ा में 180 मील , नैनीताल में 80 मील लम्बी सड़कें निर्माण का काम हाथ में लिया गया। सर्वपर्थम कोटद्वार -फतेहपुर सड़क पर ध्यान दिया गया। लैंसडाउन छा वनी बनने से भी दक्षिण गढ़वाल में परिहवन सुलभ हुआ।
In Garhwal, there was no plan for road construction till 1828.
Trail started road construction from Haridwar to Badrinath in 1827-1828. Trail did not take help from any engineer for planning. Trail himself used to supervise the works. it is said that Trail used to cut or dig stone when there was steep stone hurdle. He used to go for marking on steep hill with the help of roped basket. Trail used to sit in roped basket and helpers used to take rope and he used to jump here and there for marking. Trail travelled from Badrinath to Kedarnath for road survey.
Trail also discovered a road from Kumaon to Mansarovar. Church officials criticized Trail for that he was promoting idol worshipping.
By 1834, Haridwar –Badrinath road was completed. Animals and men could cross each other on that road. By 1835, government constructed roads from Rudraprayag to Kedarnath, Ukhimath to Chamoli, Chandpur to Kumaon via Lobha. Kumaon was connected to Ruhelkhand. So Ruhelkhand was connected to Badrinath via Kumaon. The length of such roads was 300 miles and cost was Rs. 25000.Sadavrat tax was used on road construction.
The successors of Trail kept road construction works alive. Workers completed road construction from Joshimath to Neeti in 1840. There was road from Shrinagar to Almora and Shrinagar to Kotdwara to Nazibabad by 1841.
कोटद्वारा , हल्द्वानी , ऋषिकेश व देहरादून, हरिद्वार को रेल से जोड़ने का जो कार्य ब्रिटिश शासन ने किया था उसमे भारत सरकार ने एक इंच भी वृद्धि नहीं क। रेल मार्ग ने तो पर्यटन उद्यम त्र में क्रान्ति ला दी थी
ऋषिकेश -देवप्रयाग मोटर मार्ग ने भी उत्तराखंड पर्यटन की काया पलट ही कर दी। प्राचीन काल से चलने वाला ऋषिकेश -बद्रीनाथ मार्ग तो बंद ही हो गया।
गढ़वाल में 1948 में डिस्ट्रिक्ट बोर्ड की मुख्य सड़कें इस प्रकार थीं -
तपोवन घाट -नारायण बगड़ -लोहाबा -बुंगीधार -44 मील
बुवाखाल -कैन्यूर -44 मील
रामणी बाण -देवाल -ग्वालदम -38 मील
दनगल -पोखड़ा -बैजरों --२६ मील
नंद प्रयाग -बाट मार्ग -12 मील
दोगड्डा -द्वारीखाल -पौखाल -डाडामंडी पैदल मार्ग भी ब्रिटिश देन है. व्यासचट्टी , महादेव चट्टी जैसे घाटों को अच्छी सड़कों (घोडा सड़क ) गाँवों से जोड़ने का प्रशंसनीय कार्य भी ब्रिटिश काल में शुरू हुए।
इन सड़कों के निर्माण ने आंतरिक पर्यटन व वाह्य पर्यटन विकास की आधार शिला रखी। इन सड़कों पर ऐसे पल बने हैं जो अभी भी सही सलामत हैं।
गंगा व सहयोगी नदियों पर पल भी ब्रिटिश काल में बने जिन पुलों ने पर्यटन को नई दशा व दिशा दीं। श्रीनगर गुमखाल मोटर मार्ग भी ब्रिटिश काल देन है।
ऋषिकेश कोटद्वार मार्ग भी ब्रिटिश काल में निर्मित हुआ।
वन सड़कें - ब्रिटिश काल में वनों के अंदर आवागमन हेतु कई सड़कें बनीं। अब तो सार्वजनिक विभाग व वन विभग्ग की खींचातानी में चलते मार्ग भी अवरुद्ध किये जा रहे हैं हरिद्वार -कोटद्वार मोटर मार्ग का इतिहास यही कहानी बयान करता है।
ब्रिटिश अधिकारियों पर बहुत से अभियोग लगते हैं किन्तु यह अभियोग नहीं लगता कि उन्होंने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ हेतु सड़क योजनाएं बनायीं। आज तो हर सड़क की योजना वोट निश्चित करने हेतु बन रही हैं। वोट बैंक सामने आ गया है और पर्यटन नेपथ्य में चला गया है। सड़क व पुलों का शुभारम्भ भी नेताओं की फोटोजनी हेतु होते हैं समाजहित नेपथ्य में चला जाता है।
ब्रिटिश काल में प्रमुख रोग और समयगत मृत्यु आंकड़े
Diseases and Treatments Uttarakhand in British Era
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Tourism History ) 61
उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म -61
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--167)
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 167
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
ब्रिटिश काल में उत्तराखंड में प्रमुख रोगों में प्लेग (महामारी ), हज्या , चेचक , भाभर में मलेरिय, विभिन्न बुखार , चेचक , दस्त , व प्रसव समय जच्चा -बच्चा मृत्यु प्रमुख व्याधियां थीं।
महामारी या अन्य बीमारियों जैसे बुखार के कारण भोटिया व्यापारी श्रीनगर तक ही पंहुच पाते थे व तिब्बत सरकार भी कभी कभी भोटिया व्यापारियों पर तिब्बत प्रवेश पर रोक लगा देती थी। 1823 में प्लेग पंजाब से फैलता फैलता कुमाऊं तक फ़ैल गया था। हजारों उत्तराखंडी मृत्युलोक चले गए थे।
प्लेग , हैजा कुम्भ व हरिद्वार में बैशाखी मेले से यात्रियों द्वारा प्रसारित हो गढ़वाल में फ़ैल जाता था।
ब्रिटिश शासन ने रोग प्रसारण न हो हेतु कई प्रशंसनीय कदम उठाये। गाँवों में सफाई पर जोर देने जैसे चौक में कूड़े के ढेर , मकान के पास भांग न बोना , गौशालाएं गांव से बाहर निर्माण करने जैसे कई जन जागरण के कार्य किये। प्लेग फैलने पर भी जन जागरण के कई कार्य किये गए। 1852 में एक कमेटी बनवायी गयी जिसके सलाहों पर कार्य किये गए व कई कदम उठाये गए। टीकाकरण पर जोर दिया गया। डा पियरसन की रिपोर्ट ग्रामीण व्याधि निदान हेतु आज भी औचित्यपूर्ण रिपोर्ट है।
विभिन्न रोगों से मृत्यु आंकड़े इस प्रकार हैं (बेकेट गढ़वाल सेटलमेंट)-
There is following Government report on year wise disease wise deaths in Garhwal from 1867-1906 (Garhwal gazetteer)-
Year-----Cholera -----S. pox--------Fever------Indigestion-----Injury—Misc.----Total
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1867-------351-------------47------------1722----------------------------------2038-------4138
68-----------20--------------8-------------1650-----------------------------------2915--------4602
69----------------------------2--------------1992---------1237-------------------1282------4513
70------------6--------------1---------------2134---------------------------------2673-------4820
71----------------------------6---------------255----------2071--------208-------563-------5414
72--------------------------74---------------2356--------2576---------288------563--------5856
73------------27------------28--------------2865--------2207--------------------713-------6201
74----------------------------31--------------3069-------2027----------393-----580-------6070
75------------587----------167--------------2269-------2376-----------262------639------6640
76--------------------------------------------3246--------2500-----------257------560------6513
77--------------------------------------------2719---------2042----------248-------753---->5000
78----------17----------------14-------------3214--------3143----------296--------403--->-7000
79-----------3473------------6---------------2743-------1712----------225--------342--- > 8000
80----------------------------------------------3935--------2384-------344---------247------ >6900
81--------------659------------2---------------3474--------2796-------244--------350---------7525
82------------------------------2----------------4046--------3331-----238---------294---------7921
83-----------------------------9---------------3683----------3824------243---------370---------8129
84---------------------------11----------------3722----------3118-------210-------165--------7226
85-------------33----------5------------------4100-----------3611--------219-----186--------8254
86---------------------------1------------------3835-----------2991--------232-----136-------7195
87------------567----------2------------------4759-----------3925--------200------219-------9211
88-------------3-------------17---------------4779-----------3982----------227-----203-------9211
89-------------109----------1-----------------4656-----------3610---------229------175------8780
90---------------620--------1-----------------6123------------3276---------224-----175------10419
91--------------66-----------13---------------6977------------3232--------236--------189----10713
92------------5943-----------3---------------8966-------------3108--------242-------224-----18481
93------------1525----------13--------------5447--------------3099--------203-------213-----10500
94-------------10-----------124--------------7691--------------4119-------242--------328-----12514
95----------------------------13----------------8845------------3970--------240--------309----13377
96--------------1033----------------------------9987-----------3632
97-------------------------------------------------9687-----------3632
98-------------40-----------------------------------6821---------------2824
99------------659------------------------------------6636-------------3587
1900----------107-----------------------------------5603---------------3132
01-------------129-----------------------------------6012---------------3034
02--------------806-----------------------------------6294---------------3494
03-------------4017------------------------------------7264--------------4309
04---------------188-----------------------------------7194---------------3458
05-------------------------------------------------------8184---------------4897
06-----------------3429---------------------------------6648----------------3941
07------------------2--------------------------------------7382--------------4064
08------------------2924---------------------------------9625---------------3601
09--------------------1736---------------------------------7259--------------2963
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ब्रिटिश काल में उत्तराखंड में चिकित्सा व चिकित्सालय -- -
Hospitals in British Era in Uttarakhand
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Tourism History ) - 63
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--168)
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 168
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
सदाव्रत व सरकारी चिकित्सालयों को छोड़कर ग्रामीण उत्तराखंड में कर्मकांडी ब्राह्मण ही आयुर्वेद चिकित्सा स्रोत्र थे। ये ब्राह्मण अपने बच्चों को ज्योतिष , कर्मकांड के अतिरिक्त आयुर्वेद शिक्षा भी देते थे। ब्राह्मण का गृह ही चिकित्सा शिक्षण संस्थान भी थे। ये पारम्परिक वैद ही गाँव गाँव जाकर रोग निदान करते थे या लोग इनके पास आकर औषधि ले जाते थे। चलण स्यूं में झाला गाँव इस क्षेत्र में वैदकी के लिए प्रसिद्ध था।
ढांगू उदयपुर में निम्न गाँव वैदकी हेतु प्रसिद्ध थे
झैड़
नौड -वरगडी
कठूड़
ठंठोली
गडमोला
तैड़ी
घट्टूगाड
किमसार
कांडाखाल
बरसुड़ी
डाबर
अमालडू
कंडवाल स्यूं में बागी
इन वैद्यों की सबसे बड़ी समस्या साहित्य उपलब्धि की थी।
हरिद्वार यात्रा मार्ग पर बाबा कमली वालों के धर्मार्थ चिकित्सालय भी थे
मिशन हॉस्पिटल चोपड़ा
पादरी मेसमोर ने 1903 के आसपास चोपड़ा में एक धर्मार्थ चिकित्सालय खोला। इस चिकित्सालय ने पौड़ी की बड़ी सेवा की और मिसनरी वाले वास्तव में बड़े जुझारू थे।
सरकारी चिकत्सालय
कमिश्नर ट्रेल ने सदाव्रत फंड से सरकारी स्तर पर चिकित्सालय स्थापना करना शुरू किया। सदाव्रत से 1907 तक सात चिकित्सालय श्रीनगर , उखीमठ , बद्रीनाथ , चमोली , जोशीमठ , कर्णप्रयाग में हरिद्वार -बद्रीनाथ यात्रा मार्ग पर खुल चुके थे -1907 में कांडी (बिछला ढांगू ) में चिकित्सालय खुला।
1890 से 1909 तक डिस्ट्रिक्ट बोर्ड ने चिकित्सा पर निम्न राशियां खर्च किये -
Expenses on Health Care from 1890-1909
The government spent on health care following money(in Rs.) from 1890-1909-
Year -------Rs.------------Year -----------------Rs.--------------------Year -----------Rs.
1890- 91- 1176-----------1891-92------------1121--------------------1892-93------2990
1893-94----2939-----------1892-93-----------2516---------------------95-96--------2716
96-97--------2721------------97-98------------4385---------------------98-99---------3145
99-1990------3391---------1900-01-----------3413----------------------01-02---------3645
02—03-------4191---------03-04--------------4345---------------------04-05-----------3923
05-06-----------5362---------06-07------------9760---------------------07-08----------11615
08-09-----------12565
यात्रा मार्ग में चिकित्सालयों में यात्रिओं को निम्न व्याधियों हेतु औषधि दी गयीं या चिकित्सा की गयीं (आदम , रिपोर्ट ऑन दि पिलग्रिम्स पृष्ठ 41 )
Nos of patients Treated in Pilgrim road Government Hospitals from 1903-1912
The pilgrims used to face indigestion, malaria and diarrhea besides choler. Local people took also advantages of hospitals opened on pilgrims road. Following data are available for patients treated in different hospitals on pilgrim roads from 1903-1912-
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Year ---Shrinagar—Ukhimath-----Joshimath-----Chamoli-----Karnaprayag—Galai---Kandi
1903
Malaria----2400---------480-------------385------------848----------729------------559
Indigestion- 191---------39--------------77--------------102---------94---------------65
Diarrhea-----488---------57--------------39---------------88----------151--------------39
1904
Malaria -----3393--------648------------521-------------521----------630-------------558
Indigestion—582---------81-------------149-------------111----------128-------------88
Diarrhea------363----------46--------------64--------------94-------------54------------22
1905
Malaria ----- 3250---------482-------------392------------323-----------602------------635
Indigestion----648-----------93-------------129--------------42------------69-------------82
Diarrhea--------459----------53--------------59-------------33---------------88-----------79
1906
Malaria ------3787------------464-------------333-----------458-----------707------------438
Indigestion---642---------------77----------------63-----------95-----------83--------------86
Diarrhea------797---------------68---------------53------------29------------112-----------52
1907
Malaria ------2886-------------565------------440------------473-----------252----------493-----238
Indigestion-- 507---------------88-------------82--------------136----------37------------126-------38
Diarrhea------567---------------46-------------46-------------65------------116------------44------50
1908
Malaria ------3938-------------812-------------345-----------751-----------901-----------790----481
Indigestion- -655---------------33----------------82------------49------------32------------44------11
Diarrhea-------87----------------55----------------59---------187-------------14------------90-----66
1909
Malaria ------3149--------------760------------582----------834------------765-----------537-----330
Indigestion- ---793--------------187------------84-----------266------------98------------291-----82
Diarrhea------505---------------57-------------97-------------218----------144------------58---------30
1910
Malaria -----3623--------------801----------497-------------995----------817------------588-------327
Indigestion---840---------------70------------80-------------741----------205-------------330------78
Diarrhea-------889--------------66------------34-------------136----------166-------------90---------52
1911
Malaria -----2542----------------856----------582------------760----------715------------544-------408
Indigestion- 779-----------------70------------110------------568----------274-----------113---------64
Diarrhea------975----------------86------------82--------------93-----------148------------67---------53
1912
Malaria -----1608--------------1041----------375-------------976----------803-----------740--------333
Indigestion- -156----------------81-----------157-------------380-----------92------------229--------61
Diarrhea------437----------------118----------70--------------69------------110-----------118--------95
बद्री दत्त पांडे ने यात्रा मार्ग (कुमाऊं से बद्रीनाथ ) के निम्न चिकित्सालयों का उल्लेख किया है ( कुमाऊं क इतिहस १९२३, पृष्ठ 143 -144 )-
अल्मोड़ा अस्पताल
अल्मोड़ा सदर अस्पताल
अल्मोड़ा जनाना अस्पताल
पि थौरागढ़
लोहाघाट
भीकियासैण - विशेषतः यात्रा मार्ग हेतु
गणाई - यात्रा हेतु
बैजनाथ जो चाय बगान हेतु शुरू हुआ था
बागेश्वर
इसी तरह बैजनाथ , नैनीनाग , द्वारहाट , झूलाघाट , धारचूला , कपकोड , मनीला , जैंती , लमगड़ा , खेतीखान , देवलथल , मांसी , नैनीताल में भी अस्पताल खुल गए थे
भंवासी में क्षय चिकित्सालय खुल गया था यहां 150 रोगी रह सकते थे। तिबरी में जनाना सेनोटेरियम भी था।
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ब्रिटिश काल में यात्रा मार्ग पर चट्टी प्रबंध (काला लोगों द्वारा विशेष र्यटन प्रबंधन )
Chatti management in British Era
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) 65
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Tourism History ) - 65
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--169)
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 169
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
बद्रिकाश्रम व केदारेश्वर यात्रा माह्भारत संकलन -सम्पादन काल से भी शस्त्र वर्ष पहले से चली आ रही हैं। इतने सालों तक ऋषिकेश -देवप्रयाग मोटर मार्ग बनने से पहले ऋषिकेश से बद्रीनाथ जाने का एक ही पैदल मार्ग था और वह था पौड़ी गढ़वाल में गंगा तट का। मार्ग। सहस्त्रों वर्षों तक यही मार्ग बना रहा। सहस्त्रों सालों में पर्यटक सुविधा हेतु एक व्यवस्था निर्मित हुयी जिसे चट्टी व्यवस्था कहते हैं। चट्टी शब्द द्रविड़ शब्द से बना शब्द है जिसका अर्थ है दुकान अथवा दुकानदारी। चट्टी के मालिक को चट्टीवाला कहा जाता था।
चट्टियां ऋषिकेश -बद्रीनाथ के मध्य , कर्णप्रयाग से से पुनवाखाल कुमाऊं की और जाने वाले मार्ग व रुद्रप्रयाग से गंगोत्री -यमनोत्री -वाले मार्ग पर चार या तीन से चार मील के अंतराल में बनी थी. इससे पहाड़ी प्रदेश से अनभिज्ञ मैदानी यात्रियों को सुविधा सुलभ हो जाती थीं।
छट्टियों में चट्टी भवन
यह एक आश्चर्य ही है कि अधिकतर चट्टियों में भवन या दुकाने एक जैसे ही बनाये जाते थे। भवन चट्टी मालिक अपने धन से निर्मित करवाते थे। भवन भूमि से दो फिट ऊँचे आधार पर बनवाये जाते थे। एक मंजिला भवन का बड़ा लम्बा कक्ष द्वार विहीन होता था जो मुख्य मार्ग की ओर खुलता था। बरामदे के एक भाग में दुकान कक्ष व दुकानदार हेतु शयन कक्ष होता था। सर्दियों में भोजन पकाने हेतु एक चूल्हा भी होता था। छतें या तो घासफूस या पत्थरों की होती थीं। कुछ छतें पर चददरों की बनीं होते थे।
दुकान से बाहर क्यारियां होती थीं। हर क्यारी के किनारे एक चौकी व चूल्हा होता था। यात्री चट्टी दुकान से मन माफिक खरीदकर अपना भोजन स्वयं बनाते थे। चट्टी मालिक चूल्हों की आज लिपाई करता था। चट्टी मालिक बर्तन ,शयन हेतु कपड़े , लकड़ी का प्रबंध करता था उसके लिए मूल्य निर्धारित थे। मांश मदिरा सेवन चट्टियों में सर्वथा वर्जित था। साधुओ के लिए भांग पीने की छूट थी। चट्टी मालिक तम्बाकू का प्रबंध भी करता था। हुक्के की छूट नहीं थी। चट्टी मालिक चिलम रखते थे या पत्ती की चिलम बनाकर यात्रियों को देते थे। अनाज खरदने वाले यात्रियों से शयन व विस्तर मुफ्त था। शयन कीमत एक या दो आना प्रति रात था।
यदि चट्टी गंगा किनारे हो तो मंदिर भी थे जैसे महादेव चट्टी , व्यासचट्टी आदि। यदि कोई यात्री रुग्णावस्था में हो तो चट्टी मालिकपास के गाँवों से वैद्य बुलाते थे।
यदि किसी यात्री को थी तो चट्टी मालिक डंडी , पिंस , डोला व घोड़ों की व्यवस्था भी करता था।
बहुत से यात्री अपना सामान चट्टी में छोड़ आते थे व लौटते समय अपना सामान ले जाते थे। गढ़वाली चट्टी मालिकों की ईमानदारी की कथाएं सारे भारत में प्रचलित थीं अतः यात्री गढ़वाल यात्रा में चोरी व डकैती से कभी भय नहीं खाते थे। यात्री रात में भी बिना भी के यात्रा कर लेते थे। यात्रा मार्ग के आस पास के ग्रामीण भी यात्रियों का शोषण नहीं करते थे व समय पड़ने पर बिना शुल्क सहायता करते थे।
ब्रिटिश शासन में कुछ अंतराल के बाद सरकार ने सफाई कर्मचारी नियुक्त किये जो चट्टियों में सफाई कार्य करते थे।
ब्रिटिश काल में निम्न चट्टियां कार्यरत थी।
Chattis on Lakshmanjhula –Badrinath Road
SN. Chatti -----Distance---Shops, Nos- SN. Chatti -----Distance---Shops, Nos
1-Lakshmanjhula------0--------13---------------2------Khairari--------2----------0
3-Fulvari-----------------2---------10--------------4-------Ghattugad-----2---------6
5-Nai Mohan (Chatti)- 3----------3---------------6----Chhoti Bijni-----1----------8
7-Bari Bijni-------------1 ----------8---------------8- Kund---------------3-----------3
9-Banderbhel----------3-------------7--------------10—Mhadev ---------1.5--------18
11- Simwal------------3.5-----------8---------------12--Am-----------------0.25------1
13- Kandi--------------2.5-----------5----------------14-Vyasghat-----------4.5-------10
15-Chhaluri--------------3------------3--------------------16—Umrasu-------------3----2
17—Saur----------------3--------------2-------------------18---Vah (devPrayag)---1---21
19—Ranibag-------------7--------------5------------------20-Rampur------------4-------15
21-Vilvakedar-----------4--------------3-----------------22—Shrinagar-------3---------Big Bazar
23—Sukarta-------------5---------------3-----------------24—Devalgadan ---1.5------1
25-Bhattisera------------1.3--------------7------------------26- Chhantikhal ----1--------1
27- Khankara------------ 1 -------------8--------------------28- Narkot------------3 ------4
29- Gulabrai --------------2.5-----------2---------------30- Punar (Rudraprayag)- 1---12
31- Shivanandi -----------7--------------4---------------------32 Kamera ------------4---1
33- Chatwapipal----------5---------------6 ----------------------34Karnaprayag ----4----20
35- Kald--------------------1---------------1-------------------------36 Umta---------------1-----1
37- Jaikandi -------------2------------------1-------------------38- Uttaraul ------------0.25-----1
39- Langasu---------------2----------------4----------------------40- Biroligadhera------2-----------2
41-Sonla--------------------3----------------6-----------------------42- Nandprayag-------3-------24
43-Pursari-----------------1-------------------1----------------------44- Maithana ---------2--------7
45-Kuher----------------- 2--------------------3------------------46- Bayar------------------ 0------1
47- Chamoli--------------2------------------13------------------48-Math-------------------2-------5
49- Mathgadan------------0------------------3-------------------50-Chhinka--------------1-------4
51- Baunla------------------1-----------------6---------------------52-Siyasain-----------2----------7
53-Dhobighat--------------1----------------5--------------------54-Pipalkoti -----------2-----------24
55-Gauriganga--------------3--------------4----------------------56-Tangani--------------2.25-----5
57-Patalganga---------------2--------------7----------------------58- Gulabkoti------------2---------4
59-Helang (Kumarchatti)-2.25----------15---------------------60-Khanoti--------------2.25--------9
61-Jharkuli----------------1----------------2-----------------------62-Singdhara----------2-----------3
63-Chunar (Joshimath)-1-----------------4------------------------64-Vishnuprayag------1------------4
65-Chaldua-------------------------------1-------------------------66-Ghat—4---------------10
67-Nandkeshwar-----------------------3-------------------------68-Pandukeshwar---2----12
69-Bamanganv------------------------3----------------5--------70-Hanumanchatti---2--------5
71- Badrinath --------------------4.25----------------5
Mana ?
The following Chattis (Staying places for Pilgrims) on Rudraprayag to Kedarnath rout-
SN- Chatti---------Distance----Nos Shop------SN. Chatti-----------Distance ------Nos. Shop
72-Rudraprayag------------0----------4--------------73-Chhatoli---------6 ----------------7
74-Tilwara------------------0------------1-------------75-Math------------2------------------1
76- Rampur- ---------------2------------7------------77-Agustmuni ----3-------------------8
78-Sauri--------------------2--------------4------------79-Kunjgarh/Chandrapuri---2-------12
80-Bhiri------------------3----------------10-----------81-Kund-----------4-------------------5
82-Guptkashi-----------2-----------------10--------------83-Nala ---------1-------------------3
84-Bhet------------------1-----------------8------------------85—Kantva-----2-----------------7
86- Malla----------------0.2--------------2------------------87—Fata ---------3---------------16
88-Badasu--------------2-----------------4-------------------89- Badalpur-------1-------------6
90- Rampur------------2------------------16-----------------91- Trijugi-----------5-----------10
92-Gaurikund----------5-------------------15----------------93- Chirpatiya Bhairav—2--------4
94- Ramwara ------------2---------------- 15----------------95—Kedarnath --------4-----------10
*Distance in miles, mile=1.6 kilo meter
Pilgrims used to visit Badrinath from Kedarnath too through Guptakashi to Chamoli . The following Chattis were there from Guptakashi to Chamoli rout-
SN- Chatti---------Distance----Nos Shop------SN. Chatti-----------Distance ------Nos. Shop
96-Nala---------------0--------------3---------------97- Ukhimath----------2.5------------10
98-Kanath--------------3-------------10--------------99-Gwali Bagar----------2------------5
100-Gaira----------------1--------------3-------------101-Godh-------------------0------------1
102- Vyas-----------------0---------------2------------103-Pothivasa------------2-----------12
104-DogliBheent ----------1.5-----------1---------------105-Baniya Kund------0.5-------4
106-Chopta------------------1--------------7--------------107-Jhunkana------------3----------8
108-Bhinodiya--------------1---------------3---------------109-Pangarvasa---------4----------6
110-Mandal-----------------4-------------21 (?)--------------111-Bairagana------------2-----------1
112-Nirau------------------0.5-----------------2----------------113- Kholti-------------0.5----------3
114-Sentuna-----------------1------------------5-----------------115- Gopeshwar----------2----------5
116-Kotiyal Ganv --------2------------------2--------------------117- Chamoli -----------1----------14
Pilgrims used to go towards east (through Almora ) from Badrinath to Panuvakhal (last Chatti in Garhwal) via Karnaprayag . The following Chattis were there from Karnaprayag to Panuvakhal rout-
SN- Chatti---------Distance----Nos Shop------SN. Chatti-----------Distance ------Nos. Shop
118-Karnaprayag ------0-------------20-----------119- Puli -----------------------------1
120- Ram- --------------0---------------1----------121- Simali--------------4------------12
122-Siroli-----------------2--------------8-----------123-Bharoli------------2-------------7
124-Pipal--------------------------------1-------------125-Adibadari---------4-----------16
126-Kheti---------------9---------------5-------------127-Jangalchatti--------2------------11
128-Devali--------------2---------------4-------------129----Genthabanj------0.5----------2
130-Kalamati-----------1.25-----------2--------------131-Basiyagad---------0.25----------3
132-Gwargadan---------1.50-----------1---------------133- Chunarghat-------1.25---------10
133-Isai Chatti-----------1.25-----------3---------------135—Sainja---------------1--------2
135-Melgwar --------------0.25----------2-----------------137-Agarpanwar ki dukan –0.25—1
137- Mehalchaunri --------1.50----------5----------------139-Punavakhal----3-----------3
Punvakhal was last Chatti for entering into Kumaon .
In Kumaon, there were 42 Chattis between Punavakhal and Ramnagar.
कुमाऊं में 42 चट्टियां थीं
*Distance in miles, mile=1.6 kilo meter
सुमाड़ी के कालाओं का विशेष प्रबंधन
श्रीनगर के पास कालाओं का गाँव है सुमाड़ी। कुणिंद शासन के कुणिंद मुद्राओं के सुमाड़ी व भैड़ गाँव (दोनों काला जाति गाँव ) में मिलने से अनुमान लगता है कि काला गढ़वाल में सातवीं आठवीं सदी में बस गए थे किन्तु उन्हें पंवार वंशी राजाओं के यहां कोई बड़ा पद नहीं मिला था।
कला लोगों का प्रबंधन में
काला लोगों का चट्टी प्रबंधन अभिनव था। उस समय चाय प्रचलन हुआ था तो यात्रयों हेतु त्वरित ऊर्जा हेतु कोई पेय उपलब्ध न था। चूँकि अधिकतर यात्रा ग्रीष्म ऋतू में होतीं थी तो दूध रखना संबंद्व न था। जबकि दूध की बड़ी मांग थी।
कला लोगों की श्रीनगर से नंद प्रयाग तक चट्टियां थीं। सुमाड़ी के काला यात्रा सीजन शुरू होने से पहले दुधारू भैंस चट्टियों में ही ले जाते थे। यात्रियों को ताजा दूध मिलने से श्रीनगर से नंद प्रयाग की चट्टियों का नाम भारत के कोने कोने में विशेष छवि बन गयी थी जिसका जिक्र आदम ने रिपोर्ट ऑन पिलग्रिम रुट किया है। एक अन्य आश्चर्य यह भी है कि यद्द्यपि यात्रियों की दूध हेतु बड़ी मांग थी किन्तु कालाओं को छोड़ अन्य लोग चट्टियों में भैंस नहीं रखते थे कालाओं में बहुत से वैद व तो वैदकी भी कर लेते थे।
ब्रिटिश शासन ने आदम को यात्रा मार्ग में सुधार हेतु रिपोर्ट बनाने आदेश दिया और आदम ने चट्टी प्रबंधन को सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था करार दिया तथा लिखा कि गढ़वाल में किसी सुधार की आवश्यकता ही नहीं है । सुरक्षा , यात्रा सुविधा प्रबंधन ही तो पर्यटन प्रवंधन है जो चट्टी मालिक करते थे.
बाबा काली कमली वालों का योगदान
बाबा कमली वालों की धर्मशालाओं व औषधालयों का गढ़वाल पर्यटन में बड़ा योगदान है।
Copyright @ Bhishma Kukreti 7/4 //2018
टिहरी रियासत में पर्यटन तंत्र भाग -1
Laws for Tourism Development in Tehri Riyasat
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -66
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Tourism History ) - 66
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--170)
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 170
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
टिहरी रियासत काल 1816 -1948 तक को अधिकतर जन शोषण काल माना जाता है किन्तु टिहरी रियासत काल में सुचारु उत्तराखंड पर्यटन हेतु कई पग भी उठाये गए थे।
मोटर मार्ग
1937 -38 में ऋषिकेश से देवप्रयाग मोटर मार्ग निर्मित हुआ पीछे इस मार्ग का कीर्तिनगर तक विस्तार विटार किया गया
1921 में ऋषिकेश से नरेंद्र नगर मोटर मार्ग का कार्य प्रारम्भ हुआ पीछे मोटर मार्ग टिहरी तक पंहुचाया गया।
मानवेन्द्र शाह काल में टिहरी से धरासू तक मोटर मार्ग निर्मित हुआ।
1940 में टिहरी रियासत में निम्न मुख्य मार्ग थे -
ऋषिकेश नरेंद्र नगर मोटर मार्ग-53 मील
ऋषिकेश देवप्रयाग -कीर्तिनगर मोटर मार्ग -63 मील
टिहरी मसूरी अश्व मार्ग -40 मील
अन्य कच्ची सड़कें 844 मील
राज्य बंगले
टिहरी रियासत के राजकीय बंगले - कौड़िया , धनोल्टी , पौ , डांगचौरा , धरासू , नाकुरी बड़ाहाट , भटवाड़ी , हरसिल , जांगला , देवलसारी , मगरा , बड़कोट ,पुरोला , बडियार , फाकोट , नागणी , चमुवा , टिहरी , प्रता