Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 722076 times)

Bhishma Kukreti

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हिमाचल से प्रतियोगिता अवश्यम्भावी है
 Uttarakhand has to Compete with Himachal


उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  -100

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  - 100                 

Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series-- 202
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 202

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  धार्मिक पर्यटन छोड़ हर पर्यटन में हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड का प्रबल प्रतियोगी है , गैर धार्मिक पर्यटन में हिमाचल उत्तराखंड से आगे ही है। आम ग्राहकों के मन में भी हिमाचल की छवि अच्छी ही है।
 सन 2005 में हिमाचल सरकार ने मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु हिमाचल की ताकत व कमजोरियों का विश्लेषण इस प्रकार किया था।  देखें ये ताकतें व कमजोरियां उत्तराखंड परिपेक्ष्य में क्या  हैं
मेडिकल टूरिज्म में हिमाचल की ताकत
ताकत ----------------------------------------------------------  उत्तराखंड संबंध में टिप्पणी
दुनिया में दुर्लभ 5  प्रकार की जलवायु -------------------------------  वही
राजनीतिक व सामाजिक स्थायित्व -------------------------------------  वही
शांतिप्रिय व आतिथ्य पूर्ण राज्य ------------------------------------ वही
प्रदूषण मुक्त --------------------------------------------------------------- वही
दुर्लभ साहसिक , इकोटूरिज्म , आस्था , संस्कृति , हेरिटेज पर्यटन आदि  प्रसिद्ध ---- वही
ठीक ठाक शिक्षा ------------------------------------------------------------ वही
धार्मिक टूरिज्म विशेष बौद्ध धर्मी ------------------------------------------------   हिन्दू धार्मिक पर्यटन
ठीक ठाक इंफ्रास्ट्रक्चर --------------------------------------------------------वही , कुछ बेहतर
सेवों  व अन्य फलों की प्रसिद्धि --------------------------------------------------- कुछ  भी नहीं

कमजोरियां
हवाई  यात्रा ------------------------------------------------------------------------ वही
कठिन जलवायु में पर्यटकों की परेशानी ----------------------------------------वही
प्रशिक्षित गाइडों की कमी  ------------------------------------------------------वही
कम विदेशी पर्यटकों आगमन --------------------------------------------------वही
बहुत से स्थानों में पर्याप्त पार्किंग की  व्यवस्था न होना ------------------------वही
कमजोर मार्केटिंग विदेशों व देश में  -------------------------------------------वही
कोई नया पर्यटक स्थल न आना -----------------------------------------------टिहरी झील
लैंड एक्विजेशन समस्या -------------------------------------------------------- वही
वनों  का  निर्वनीकरण की समस्या ------------------------------------------------वही
 समुचित फंड की कमी ------------------------------------------------------------वही
याने कि हिमाचल हर बिंदु  में उत्तराखंड जैसा ही है।  ऐसे में उत्तराखंड की विशेष पग उठाने आवश्यक हैं।
 ऐसा लगता है हिमाचल ने इस दिशा में कुछ कदम उठाने शुरू कर दिए हैं किन्तु  मेडिकल टूरिज्म बाबत उत्तराखंड  शासन नीति स्पष्ट नहीं है।  भगवान भरोसे ही है शासन
   हिमाचल में कृषि हिमाचल की ताकत हैं और पहाड़ी उत्तराखंड में कृषि उत्तराखंड की कमजोर।  हिमाचल पलायन  मार ऐसे नहीं झेल रहा है जैसे उत्तराखंड। उत्तराखंड में प्रवासियों के बाहर होने से  मानवीय व बौद्धिक श्रमिक सबसे बड़ी समस्या है।  यदि हिमाचल की ताकत वासी हैं तो उत्तराखंड  ताकत प्रवासी .



Copyright @ Bhishma Kukreti  25/5 //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
-
 
 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

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      गुप्त काल में कर प्रशासन व सामन्य सुरक्षा प्रशासन

Revenue and Police in   Gupta Era , History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 219               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


          गुप्त काल में कर एकत्रीकरण व सामन्य सुरक्षा बल अलग अलग विभाग नहीं थे।  जैसे उत्तराखंड में पटवारी कर भी उगाहता है और  देखता है उसी तरह गुप्त काल में भी था।  इन विभागों के मुख्य अधिकारी -उपारिक , दशपराधिक , चौरोधारणिक , दंडिक , दण्डपाशिक , गौल्मिक , क्षेत्प्रांतपाल, कोटपाल , अंगरक्षक , और अयुक्तक, विनयुक्तक , राजक।
      उपारिक शब्द पर विद्वानों मध्य मतैक्य है।  बिहार पाषाण अभिलेख में उपरीक उपरीक कुमारआमात्य से पहले पयोग हुआ है। एक अन्य अभिलेख में उपरीक शब्द कुमार आमात्य व राजस्थानीय के पश्चात प्रयोग हुआ है। इतिहासकार भट्टाचार्य अनुसार उपरीक राजयपालों का अध्यक्ष होता था।

संदर्भ -वी डी महाजन - ऐन्शिएंट इंडिया पृष्ठ 527
 





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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


      Ancient  History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;   seohara , Bijnor History Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
कनखल , हरिद्वार  इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार  इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार  इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार  इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार  इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार  इतिहास ;लक्सर हरिद्वार  इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार  इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार  इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार  इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार  इतिहास ;ससेवहारा  बिजनौर , बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास; देवबंद सहारनपुर इतिहास , बेहत सहारनपुर इतिहास , नकुर सहरानपुर इतिहास Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas


Bhishma Kukreti

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श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना


 Making Godeshwar a national Tourist Place
             

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--203 
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 203

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

   ( यह लेख मेरे कुल पुरोहित ठंठोली के सभी कण्डवालों  को समर्पित )

 अभी अभी कुछ दिन पहले मैं गाँव गया था तो जिसे देखो वही हमारे क्षेत्र में विकास का रोना रोते  ही मिला। सही भी है जहां अब गाँव  खाली हो गए हों , बंदरों व सुंगरों से निजात पाना संभव न हो वहां विकास के लिए ह्यळी ही गाडी जायेगी।  मुझे विकास ह्यळी अच्छी लगती है क्योंकि चेतना का नाम ह्यळी है। पर जब पूछा जाता है कि विकास क्या होना चाहिए तो सभी सामने के गाँवों की ओर देखने लगते हैं।  शयद विकास कोई सरकारी सब्सिडी होगी जो सामने के गाँव को मिलती है और मेरे गाँव को नहीं।  एक तरफ हमारे क्षेत्र के लोग माळा -बिजनी   शिवपुरी के विकास का गाना गाते  हैं  दूसरी ओर अपसंस्कृति का भी अलाप जोर जोर से करते नजर आते हैं।  मुंबई में भी मुंबई वालों को विकास के बारे में नहीं पता कि अब मुंबई हेतु विकास मार्ग क्या है।  विकास चक्षुहीनो  हेतु हाथी वर्णन हो गया है।
     मेरे अनुसार विकास अगले दस वर्षों हेतु उत्पादनशीलता वृद्धि हेतु काय होते हैं।  यदि बिजली सड़क पानी से उत्पादनशीलता में वृद्धि न हो तो उसे विकास कतई  नहीं कहा जाना चाहिए।  यह तो बस सुविधा आबंटन मात्र है। 
 
     मूल मुद्दा मल्ला ढांगू विकास

मल्ला ढांगू ऋषिकेश कोटद्वार मोटर मार्ग पर  गैंडखाळ से परसुली वाला क्षेत्र है और ब्रिटिश काल में भी उपेक्षित क्षेत्र था तो उत्तर प्रदेश सरकार काल में भी उपेक्षा शिकार था तो उत्तराकंड सरकार भी पीछे नहीं।  सभी जन मल्ला ढांगू का विकास चाहते हैं किन्तु क्या विकास हो के मामले में सर्वथा अनभिज्ञ हैं।
    मुंबई आने के बाद से  व्यापार से जुड़ने  के बाद अनुभव से पता चला कि पर्यटन ही एक ऐसा उद्यम लगता है जो उत्तराखंड का काया पलट कर सकता है।  शिवपुरी के निकट तल्ला ढांगू का विकास (अप संस्कृति नाम पड़  गया है ) इसका जीता जागता उदाहरण है।  मल्ला ढांगू में भी यदि विकास चाहिए तो पर्यटन ही एक ऐसा उद्यम है जो मल्ला ढांगू का काया पलट कर सकता है।  एक उदहारण अभी हमारे गाँव जसपुर  में मई में सामूहिक नागराजा पूजन था जिसमे जसपुर वालों ने कुल मिलाकर कम से कम पांच से सात लाख व्यय किया होगा याने धार्मिक पर्यटन में पांच से सात  लाख का टर्न ओवर।  तीन लाख के लगभग तो मल्ला ढांगू में व्यय हुआ ही होगा, डेढ़ लाख तो पूजा में ही व्यय हुआ।  इसी तरह पुजारियों , जगरियों,  ढोल वादकों की दक्षिणायें , सर्यूळों , टैक्सी चालकों की भी अच्छी खासी कमाई हुयी, जसपुर , सिलोगी , जाखणी धार व गूमखाळ  के दुकानदारों की आय अलग से हुयी। 

      शुरुवात कहाँ से करें ?

   प्रश्न उठता है कि मल्ला ढांगू में पर्यटन उद्यम विकास की शुरुवात कहाँ से की जाय ? पर्यटन कोई फैक्ट्री तो है  नहीं कि फैक्ट्री लगाई और माल बनना शुरू।  पर्यटन हेतु एक  स्थल आवश्यक है। मेरी दृष्टि में मल्ला ढांगू में गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर ही एक ऐसा स्थल है जिसे राष्ट्रीय स्तर पर पर्यटक क्षेत्र के रूप में विकसित कर इस क्षेत्र में पैसे की बरसात करवाई जा सकती है छन छन।

      श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ शिव मंदिर भूगोल
  स्व भैरव दत्त कण्डवाल भेषज जी व स्व सत्य प्रसाद बहगुणा गुरु जी अनुसार गोदेश्वर मंदिर एक प्राचीन सिद्ध पीठ है।  श्री अतुल कंडवाल अनुसार सिद्ध पीठ मंदिर सत्रहवीं सदी से भी कहीं पुराना मंदिर है।  भीष्म कुकरेती अनुसार गोदेश्वर मंदिर कभी धार में नहीं अपितु एक गदन के किनारे था, यहां तब क्षेत्र वालों का श्मशान  था।   और गोरखा काल से पहले या बहुत पहले जसपुर व गोदेश्वर मध्य भयंकर भूस्खलन आया और  गोदेश्वर मंदिर क्षेत्र धार में परिवर्तित हो गया। 
   गोदेश्वर शिव मंदिर कंडार वृक्षों के मध्य ठंठोली ग्राम के बेलदार -थळधार क्षेत्र में ऋषिकेश -कोटद्वार मोटर मार्ग में जाखणी बस स्थल से दक्षिण में दो किलो मीटर  की दूरी पर स्थित है।  बेलदार व थळधार दोनों शिव भूमि की ओर इंगित करते हैं थलधार मतलब (देव) +स्थल+ धार ।  गोदेश्वर के निकट कठूड़ गाँव के देवी व शिव मंदिर हैं व निकटवर्ती स्थानों के नाम भी खस देवों  के नाम हैं जैसे जाखणी (यक्षणी ), गणिका , नगेळा , पुर्यत , भटिंड ,माड़ीधार , गुडगुड्यार , इकर आदि व नाथ।  कठूड़ से लेकर सभी उपरोक्त  नाम खस संस्कृति (2000 वर्ष पहले ) के द्योतक हैं और कहीं न कहीं देव स्थल नाम हैं जो इस क्षेत्र को देव क्षेत्र बतलाते हैं।  महाभारत में धौम्य ऋषि प्रकरण में वर्णन है कि कनखल से दो पर्वत श्रेणियां हिमालय की ओर निकलती हैं एक भृगु श्रृंग श्रेणी उदयपुर पट्टी , नीलकंदठ श्रेणी व दूसरा पुरु श्रृंग श्रेणी।   यदि हम विश्लेषण करें तो पाएंगे कि पुरु श्रृंग श्रेणी ही जसपुर का पुर्यत  पर्वत श्रेणी है (कोटद्वार ऋषिकेश  मोटर मार्ग पर ) । सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं बल धार्मिक मामले में गोदेश्वर सिद्ध पीठ प्राचीनतम धार्मिक क्षेत्र है ।  दक्षिण गढ़वाल में होने से व रोहिल्ला आक्रमणों छापा मारी से इस प्राचीन क्षेत्र को वह प्रसिद्धि न मिल सकी जिसका यह क्षेत्र अधिकारी था।
  गोदेश्वर  में शिव लिंग के ऊपर छत नहीं है खुले में है व शिव मंदिर की मान्यता है कि यहां निस्संतान दम्पतियों को संतान प्राप्ति होती है।  अतुल कंडवाल ने कई वृत्तांत गोदेश्वर द्वारा संतान प्राप्ति के दिए हैं और पौराणिक उद्धहरणों से सिद्ध किया है बल गोदेश्वर नाम के पीछे भी सूनी गोद भरने से अर्थ है।

               कैसे गोदेश्वर को राष्ट्रीय पर्यटक क्षेत्र बनाया जाय ?

मेरा मानना है कि गोदेश्वर जैसे क्षेत्र जो ऋषिकेश से दो ढाई घंटे की यात्रा के अंतराल पर हो उसे सरकार नहीं अपितु समाज ही विकसित कर सकता है। पर्यटन विकास में सरकार नीति निर्धारित करती है बाकी कार्य समाज करता है। मल्ला ढांगू समाज ही गोदेश्वर सिद्ध पीठ को राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध कर सकता है।

    मेरा गाँव मेरी सड़क तहत मोटर मार्ग
जाखणी से गोदेश्वर मंदिर तक मोटर मार्ग आज एक आवश्यकता है और मेरा गाँव मेरी सड़क योजना तहत यह कार्य हो सकता है।  जब मित्र ग्राम व ग्वील में इस सिद्धांत से मार्ग बन सकते हैं तो जाखणी -गोदेश्वर में  भी यह संभव है।

   आंतरिक पर्यटन से बाह्य पर्यटन की ओर याने मल्ला ढांगू के युवाओं में प्रचार

 मैं अभी जब गाँव में था तो मेरी वय  के तीन चार जनों ने गोदेश्वर मंदिर जाने की इच्छा जाहिर की।  मेरे बत्तीस वर्षीय पुत्र व भतीजे ने मेरे से प्रश्न किया कि गोदेश्वर मंदिर है क्या ? मैंने  घर से ही दिखाया कि सामने पश्चिम में गोदेश्वर मंदिर दिख रहा है।  मेरे लिए व मेरी पत्नी के लिए दो क्या एक किलोमीटर  यात्रा भी कठिन है तो गोदेश्वर यात्रा रह गयी किन्तु कार  सर्विस होने से कई मील दूर डांडा नागराजा यात्रा उन्होंने की। ढांगू के युवा दम्पंतियों के मध्य गोदेश्वर सिद्ध पीठ का माहात्म्य प्रचारित होना ही चाहिए  . सर्व प्रथम गोदेश्वर को प्रवासी ढांगू युवाओं में प्रचार अति आवश्यक है।  सर्व प्रथम गोदेश्वर सिद्ध पीठ का प्रचार ढांगू के युवाओं में आवश्यक है।
      श्री विवेका नंद बहुगुणा जी से सीख लेनी चाहिए
  मल्ला ढांगू में बहुगुणा , कंडवाल , कुकरेती व बिंजोला जाति के पंडित हैं जिनका प्रभाव अभी भी प्रवासियों पर है।  ये पंडित जी यदि कह दें तो जजमान साड़ी रात एक टांग  पर खड़ा रह जाएगा।  यदि सभी पंडित अपने जजमानों को गोदेश्वर मंदिर में पूजा हेतु प्रेरित करें तो गोदेश्वर मंदिर में आंतरिक पर्यटन विकसित होगा।
     एक उदाहरण देने से सिद्ध हो जाएगा कि कैसे आंतरिक पर्यटन विकसित होता है।  जसपुर के श्री विवेका नंद बहुगुणा जी के ग्वील के यजमान श्री अनिल कुकरेती (मध्य प्रदेश निवासी ) की सुपुत्री आकांक्षा का विवाह भटियाणा (चमोली ) के श्री राकेश जोशी के साथ मुंबई में हुआ।  श्री विवेका नंद बहुगुणा जी ने इन दोनों नव दम्पंतियों को प्रेरित किया कि गोदेश्वर सिद्ध पीठ पूजा आवश्यक है और दोनों नव दम्पति मुंबई से गोदेश्वर पूजा हेतु पंहुचे।  हाँ बाकी प्रबंध श्री विवेका नंद बहुगुणा जी ने किया हुआ था।  यदि बहुगुणा , कंडवाल , कठूड़ के कुकरेती व बिंजोला पंडित इस दिशा में कार्य करें तो गोदेश्वर मंदिर में पर्यटन विकसित होगा।
   शिव रात्रि पर मल्ला ढांगू के प्रवासियों का आने हेतु प्रेरणा
दिल्ली देहरादून आदि निकटवर्ती शहरों में रहने वाले प्रवासियों को शिव रात्रि अनुष्ठान सम्मलित होने हेतु प्रेरित किया जाना चाहिए जैसे थलनदी आदि में गेंद मेले हेतु प्रवसियों को प्रेरित किया जाता है।
 
       अन्य ग्रामीण सामहिक पूजाओं के समय गोदेश्वर सिद्ध पीठ में  धार्मिक अनुष्ठान

  गोदेश्वर सिद्ध पीठ क्षेत्र में अधिकतर गावो में कुछ अंतराल पर सामूहिक पूजाएं होती हैं जैसे - जसपुर में नागराजा पूजा , मित्रग्राम में इस वर्ष से सामूहिक भागवद , ग्वील में भ्रातृ सम्मलेन या रामलीला व कठूड़  में देवी पूजा प्रायोजन ।  मेरी राय में उसी समय श्री अतुल कंडवाल जी सरीखे जन को गोदेश्वर सिद्ध पीठ में कोई भंडारा या अनुष्ठान उरयाणा चाहिए जिससे उस गाँव के युवा भी शरीक हों और गोदेश्वर सिद्ध पीठ से परिचित हो सकें।
     संतोषी माँ  की तर्ज पर गोदेश्वर सिद्धपीठ का प्रचार
   धार्मिक स्थल विश्वास के बल पर ही प्रचारित होते हैं। गोदेश्वर सिद्धपीठ मंदिर का प्रचार कुछ कुछ संतोषी माता या सत्य नारायण जैसे प्रचारित होना आवश्यक है।   संतान प्राप्ति तो श्री गोदेश्वर सिद्धपीठ का मूल विश्वास है।
       गोदेश्वर सिद्धपीठ की प्रार्थना लिखी जानी चाहिए
  ठंठोली के श्री अतुल कंडवाल ने सूचना दी है कि गोदेश्वर सिद्ध पीठ पर पुस्तक भी प्रकाशित है।  मेरी राय में गोदेश्वर सिद्ध पीठ की कथा सत्य नारायण तर्ज पर लिखी जानी चाहिए व उसकी विशेष प्रार्थना लिखी जानी चाहिए व यूट्यूब पर प्रार्थना प्रचारित होनी चाहिए।
      जाखणी , सिलोगी में आधार भूत सुविधाएं
   श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ को पर्यटक स्थल बनाने हेतु जाखणी धार व सिलोगी बजार में आधार भूत सुविधाएं आवश्यक हैं।  जाखणी धार अब क्षेत्रीय पंचायत केंद्र भी हो गया है तो सरकार ने भी यहां कई सुविधाएं देनी ही हैं।
      भविष्य का धार्मिक पर्यटन सर्किट
  भविष्य में एक बहुत ही कारगर धार्मिक सर्किट के अवसर हैं।  कठूड़ के देवी मंदिर , शिव मंदिर , भैरव मंदिर , श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ , जसपुर नागराज (शिल्प , कला व साहित्य वृद्धि कारक देवता ) , बड़ेथ देवी मंदिर  कड़ती का सिलसू मंदिर , कैडूळ का सती सावित्री मंदिर व लंगूर गढ़ का भैरों मंदिर एक सर्किट बनते हैं और यह  सर्किट ऋषिकेश व कोटद्वारा से सामान दूरी पर हैं।  या नीलकंठ सर्किट से गोदेश्वर सिद्ध पीठ जोड़ा जाय।

  आंतरिक पर्यटन विकसित होने के बाद बाह्य पर्यटन पर जोर
   जब भी कोई पर्यटक क्षेत्र आंतरिक पर्यटन क्षेत्र रूप में प्रसिद्ध हो जाता है तो स्वमेव ही बाह्य पर्यटन विकसित हो उठता है।  शिरडी के साईं बाबा मंदिर पहले पहल नासिक , अहमदनगर में प्रसिद्ध हुआ फिर महराष्ट्र में प्रसिद्ध हुआ और अब राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो गया है।
    श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ का सोशल मीडिया में संतान प्राप्ति सिद्ध पीठ रूप में भी प्रचारण आवश्यक है।
  एक बार सिद्ध पीठ गोडेश्वर प्रसिद्ध हो जाय तो मल्ला ढांगू में स्वयमेव कई पर्यटन प्रोडक्ट विकसित हो जाएंगे जैसे नीलकंठ मंदिर के आस पास। 
  ग्राम प्रधानों व पंचायत मंत्रियों को भी इस कार्य में सम्मलित किया जाना चाहिए।
       कुम्भ मेले से यात्रियों को गोदेश्वर सिद्ध पीठ लाना
    सही समय कुम्भ मेला है कि हरिद्वार में आये यात्रियों को गोदेश्वर आने के लिए प्रेरित किया जाय।  प्रचार प्रसारण हेतु  फंडिंग हेतु किसी धनी  भक्त की सहायता  आवश्यक है .
 
 
   




Copyright @ Bhishma Kukreti  /265 //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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  ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना ; ठंठोली ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना ; जसपुर ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना ; कठूड़ ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना ; बड़ेथ ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना ; ग्वील ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना ; मित्रग्रम ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना ; बन्नी ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना ; खैंडुड़ी ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना , सौड़ ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;



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  गुप्त काल में न्यायपालिका और हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास

        Judiciary in   Gupta Era & History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -   220             


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


          अभिलेखों से गुप्त काल के न्याय विधान पर भी प्रकाश पड़ता है। न्यायिक अधिकारियों को महादण्ड नायक या महाक्षपतालिक कहा जाता था। ऐसा प्रतीत होता है कि महादण्ड नायक न्यायधीश व सेनापति का कार्य सम्भालते थे। महाक्षपतालिक संभवतया रिकॉर्ड कीपर या लेखवार होते थे।
     डा सालतोर अनुसार , अधिकारणा  संभवतया न्यायाय को कहा गया है। कुमारआमात्य,  भोंडगर व धनद पाक्षिक उपरीक के पद , अधिकार वा कार्य अलग अलग थे। ऐसा माना गया है कि अधिकारणा न्यायालय था जहां भूमि विवाद व अन्य विवाद सुलझाए जाते थे।  कालिदास ने धर्मस्थान का उल्लेख किया है संभवतया राजा जब न्याय करते थे उस स्थल को धर्मस्थल कहा जाता रहा होगा।
 

संदर्भ वी डी महाजन ऐनसियंट इण्डिया पृष्ठ 528 , 529




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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


      Ancient  History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;   seohara , Bijnor History Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
कनखल , हरिद्वार  इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार  इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार  इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार  इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार  इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार  इतिहास ;लक्सर हरिद्वार  इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार  इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार  इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार  इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार  इतिहास ;ससेवहारा  बिजनौर , बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास; देवबंद सहारनपुर इतिहास , बेहत सहारनपुर इतिहास , नकुर सहरानपुर इतिहास Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas


Bhishma Kukreti

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  पहाड़ों में कृषि बौड़ाई हेतु औषधि पादप उगाई  (मेडकिल टूरिज्म विश्लेषण )

 Ayurveda Based medical Tourism in Uttarakhand

  -

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  101

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -  101               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series-204-)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 204

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

    पिछले अध्यायों में इस लेखक ने सिद्ध करने का प्रयत्न  किया कि उत्तराखंड को वर्तमान पर्यटन को सहारा देने हेतु मेडिकल टूरिज्म आवश्यक है और वैकल्पिक चिकित्सा ही उत्तराखंड हेतु लाभदायी प्रोडक्ट्स हैं।
   मेडिकल टूरिज्म अब केवल चिकित्सा तक ही सीमित नहीं रह गया है अपितु चिकित्सा हेतु औषधि निर्माण व चिकित्सा प्रदान के प्रत्येक अवयव भी मेडकिल टूरिज्म के महत्व पूर्ण  अंग होते हैं।
  मोटे मोटे  रूप में निम्न अवयव आयुर्वेद मेडिकल टूरिज्म के महत्वपूर्ण अंग -
  आयुर्वेद चिकित्सालय
  आयुर्वेद चिकित्सा शिक्षण संस्थान
 आयुर्वेद चिकित्सा प्रशिक्षण संस्थान
   आयुर्वेद औषधि निर्माण, निर्माण  , औषधि परीक्षण , शिक्षण व प्रशिक्षण संस्थान
चिकित्सा हेतु उपकरणों का निर्माण
आयुर्वेद औषधि विपणन व वितरण के भाग
  आयुर्वेद औषधि हेतु वनस्पति उत्पादन             
   पहाड़ों की  मूलभूत कृषि समस्या को अवसर में परिवर्तन के लाभदायी अवसर

 पलायन के कारण उत्तराखंड के पहाड़ी गाँव बंजर धरती की समस्या  से जूझ रहे हैं बंदर , सुंगर व अन्य वनैले जानवर घ्वीड़ -काखड़ , मोर भी कृषि हेतु समस्या बने हैं। इसके साथ साथ लैन्टीना घास - कुरी व धरती की उत्पादनशीलता कम करने वाले अन्य पादप भी समस्या  बने हैं।
 यह एक सत्य है कि पहाड़ों में कृषि भूमि की 80 % मिल्कियत प्रवासियों की है।  यह जो एक कठिनाई है किन्तु  प्रसन्नता की बात है कि इसे अवसरों  में बदला जा सकता  है। प्रवासियों के पास निवेश की क्षमता का लाभ उठाया जा सकता है।  इसमें संदेह नहीं करना चाहिए बल जो प्रवासी अपने गाँव में एक उनुत्पादन शील मकान पर सात आठ लाख लगा सकता है वही प्रवासी औषधि पादप उत्पादन में भी भागीदारी कर सकता है।
   पहाड़ों में कृषि बौड़ायी  हेतु आयुर्वेद औषधि पादप उगाई सबसे महत्वपूर्ण पथ है।  बहुत सी औषधि पादपों को बंदर , सुंगर आदि से हानि नहीं पंहुचा सकते है तो ऐसे पादप उत्पादन कृषि को पुनर्जीवित कर सकते हैं।
  आगामी अध्यायों में हम जान्ने का प्रयत्न  करेंगे कि कौन कौन सी औषधि वनस्पति कृषि साधनों के बल पर उत्पादित की जा सकती हैं।  हम यह भी विश्लेषण करेंगे कि किन किन वनस्पतियों के उत्पादन में प्रवासी भी योगदान दे सकते हैं और प्रवासी कैसे आयुर्वेद औषधि वनपस्ति बिना पहाड़ आये उत्पादन  कर सकते हैं
 सम्पूर्ण विश्व में कृषि में वः लाभ नहीं रह गया है जो अन्य व्यापार या रोजगार में है।  अतः अब समय आ गया है कि उन पादपों की जानकारी ली जाय जो प्रीमियम कीमत में विकट हैं जिससे प्रवासियों को ऐसी कृषि से लाभ हो और वे पहाड़ों में औषधि पादप उत्पादन में निष्कंटक निवेश कर सकें।
    सम्पूर्ण भारत में कृषि के अंर्तगत एक नई कठिनाई भी आ खड़ी है और वह है मजदूरी वृद्धि जो सही भी है।  अब हमें उन पादपों को चुनना है जो बढ़ी मजदूरी को भी पचा सके याने यहां भी प्रीमियम पादपों का ही चुनाव करना है जिससे प्रवासी निवेश कर सकें।
  औषधि पादप उत्पादन ही सब कुछ नहीं है अपितु औषधि निर्माण हेतु पादप के विभिन्न अंग प्रयोग में आते हैं जैसे पत्तियां , सूखी पत्तियां , छाल , जड़ें , तने आदि ।  हमें उन रास्तों को भी खोजना है जो औषधि पादपों के अंगों को विक्री हेतु सुरक्षित रख सकें और उसमे प्रवासी को मैदानों से पहाड़ न आना पड़े। 
  हमें यह भी सोचना होगा कि एक क्षेत्र में एक ही पादप अधिक उत्पादन हो जिससे वहां जनसंख्या   , कृषि मजदूर प्रवीण सकें।
  सबसे कठिन कार्य है पहाड़ियों में  वर्तमान रोजगार के अतिरिक्त अतिरिक्त कमाई के साधन हेतु मानसिकता।
 एक अन्य कठिनाई यह भी है कि कई प्रवासियों की आय इतनी अधिक है कि उनके लिए कृषि कमाई का लाभकारी साधन नहीं है।  इस स्थिति का भी विश्लेषण कर हमें समुचित समाधान ढूँढना है और आगामी अध्यायों में इन बिंदुओं पर भी चर्चा होगी।
 ग्राम प्रधान व ग्राम पंचायत मंत्री या स्थानीय निकायों के सदस्यों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है इन सदस्यों को भी प्रशिक्षण व प्रेरण आवश्यक है।
   वनस्पति पादप विक्री प्रबंध पर भी आगे चिंतन मनन होगा।




Copyright @ Bhishma Kukreti 27 /5 //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
-
 
 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


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मेडिकल टूरिज्म विकास में राजकीय  शासन  की भूमिका

Role of State  in Developing Medical Tourism --

  -

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  102

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -  102               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--205 
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 205

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

     मेडिकल टूरिज्म में शासन /प्रशासन की अहम् भूमिका होती है।
 पशासन को मेडिकल टूरिज्म में गैर सरकारी संस्थानों से प्रतियोगिता के स्थान पर उन्हें संबल देना होता है। यहां पर ध्यान देना आवश्यक है कि सरकारें आती हैं जाती हैं किन्तु शासन या प्रशासन स्थिर होता है।
 शासन का उद्देश्य सरकारी चिकित्सा संस्थानों से लाभ कमाने की कामना नहीं होनी चाहिए अपितु सेवा व आवश्यक पड़ने पर गैर सरकारी चिकित्सा संस्थानों की सहायता देनी होती है।
 शासन को समझना चाहिए कि राजकीय चिकिसा संस्थाओं का कार्य जनता को मूलभूत चिकत्सा पर्दा करवाना है न कि  मेडिकल टूरिज्म के माध्यम से लाभ कमाना।
 शासन को  साफ़ साफ़ मेडिकल टूरिज्म विकास नीति बनानी चाहिए और साथ में भागीदारों को उनके अधिकार व कर्तव्यों से अवगत कराना आवश्यक होता है। नीतियों में विदेश नीति , चिकत्सा नीतियां , चिकित्सा नियम , वीसा आदि आते हैं।   चूँकि चिकत्स्कों व् चिकित्सालय अविसे विगयपन प्रचारित नहीं कर सकते हिन् जैसे व्यापारिक ब्रैंड्स तो प्रचार प्रसार में शासन की अहम भूमिका होती है
 शासन को मेडिकल टूरिज्म हेतु व्यापारिक कूटनीति /कॉमर्शियल डिप्लोमेसी में पहल करनी होती है।
 शासन को आवश्यक नियम बनाने चाहिए जो मेडिकल टूरिज्म को संबल दें किन्तु नीति व पर्यावरण को हानि न पंहुचायें
 शासन मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु समय बढ़ योजनाएं बनाकर उन्हें संचालित कर , क्रियावन्नित करता है और आवसश्यक पड़ने पर आवश्यक कदम उठता है।
 शासन का कार्य मूल बहुत सुविधा इन्फ्रास्ट्रक्चर जुटाना होता ही है। लैंड एक्विजेशन बिल जैसे कार्य इंफ्रास्ट्रक्चर व नीति के अंग हैं
  शासन की  मेडिकल टूरिज्म विकास में निम्न भूमिका अहम है -
    १- चिकित्सा सेवाओं का वर्गीकरण या यह निर्णय लेना कि किन किन चिकित्सा सेवाओं को मेडिकल पर्यटन हेतु विकसित करवाना है
   २- सभी छितरी सेवाओं का समाकलन करना
   ३ - प्रशासन संभालना
  ४- विकास व विकास पर दृष्टि
 ५- प्रचार प्रसार
  ६- आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करवाना
  ७- चिकित्सा टूरिज्म विकास हेतु संस्थाओं की खोज व उन्हें मेडिकल टूरिज्म में भागीदार बनाना
  ७- भागीदारों हेतु फंडिंग व्यवस्था यदि आवश्यक पड़े तो विशेष बैंक की स्थापना
   समय समय पर कई प्रेरणादायक व उत्प्रेरक काय कर विकास को दिशा देना भी शासन का कर्तव्य होता है।
  शासन का  सबसे महत्वपूर्ण कार्य मेडिकल टूरिज्म हेतु योजनाओं की शुरुवात है व समाज को मेडिकल टूरिज्म में इन्वॉल्व करना है
 




Copyright @ Bhishma Kukreti 28 /5 //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
-
 
 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;




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       हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास परपेक्ष्य में गुप्त काल में  सामाजिक व्यवस्था

Social and Economic Condition in   Gupta Era and History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  221               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


         प्राचीन काल सामान ही हिन्दू तीन भागों में बनते थे - ब्राह्मण , क्षत्रिय , बणिक  शिल्पका।   चार आश्रम नियम लागू थे।  राजा समाज का सर्वोच्च मानव था। राजा को वर्णव्यवस्था रक्षक कहा गया है।
   विवाह सगोत्री होते थे किन्तु अन्य गोत्र में विवाह अमान्य नहीं थे याने अंतर्जातीय विवाह अमान्य नहीं थे।
    ब्राह्मण व वैश्यों उच्च सम्मान प्राप्त था।  ब्राह्मण व क्षत्रियों मध्य सरल व गाढ़े संबंध थे। ब्राह्मण को उच्च सामाजिक सम्मान प्राप्त था।
    ब्राह्मण  शिक्षा अनुसार कई उपजातियों में बनते थे जैसे यजुर्वेदी , चतुर्वेदी , सामवेदी , अथर्वेदी आदि
        ब्राह्मणों को क्षत्रिय जमींदार बिना कर के भूमि देते थे व ब्राह्मण शिक्षा व चिकित्सा प्रदान करते थे। ब्राह्मणों में भारद्वाज , कश्यप , कण्व आदि गोत्र प्रचलित थे।
      क्षत्रिय द्विज याने यज्ञोपवीत धारण कर सकते थे।
 शिल्पकारों (शूद्र ) में कई जातियां कार्य अनुसार थे और चांडाल सबसे कमजोर जाती थी जो नगर से बाहर निवास करते थे किन्तु उनके बगैर किसी द्विज का कार्य संभव न था। छुवाछुत का बाहुल्य था। 




Copyright@ Bhishma Kukreti  Mumbai, India  2018

   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


      Ancient  History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;   seohara , Bijnor History Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
कनखल , हरिद्वार  इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार  इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार  इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार  इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार  इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार  इतिहास ;लक्सर हरिद्वार  इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार  इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार  इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार  इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार  इतिहास ;ससेवहारा  बिजनौर , बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास; देवबंद सहारनपुर इतिहास , बेहत सहारनपुर इतिहास , नकुर सहरानपुर इतिहास Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas


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Medical, Wellness Tourism in Indus Valley Civilization part -1
History of Medical, health and Wellness Tourism in India, South Asia   -3
 By: Bhishma Kukreti (Medical Tourism Historian)
   Indus Civilization developed and flourished in Afghanistan, Pakistan and North West India from Gujrat to Rajasthan to Meerut near Saharanpur Uttar Pradesh. The Archeology Survey of India Head  started excavation at Harappa site and still researches and excavation is going on . The following sites are in the map of Indus valley civilization (3300-1300 BCE and mature age 2600-1900 BCE)
 As per Frankfort , (Foulies de Shortughai page 75, Vol 7) , by 22008, there were 1000 Indus Valley civilization sites discovered of which 406 are in Pakistan and 616 in India .
   Most of historians divide Indus valley Civilization into four eras  (1)–
 Early Food producing Era – 7000-5500 BCE Mehargarh era belongs to this era.
The Regionalization Era-4000-2300 BCE or Early Harappa Civilization
Integration era or late Era

    Major Characteristics of Indus Valley Civilization
(Summarized from Mahajan)
  The people were agriculturists.
The very important characteristics are road planning, hygiene and cleanliness that even lacking today in Indian subcontinent, constructing building by burnt bricks, ceramics , metal extraction, metal forging, producing cotton and textiles.
Mohenjo-Daro remains prove that people used bathrooms, drainage and believed in personal hygiene.
There was occasional warfare therefore, people were conscious plant medicines.
There was homogenous indigenous culture.
 The deities were Shiva, Brahma, Pashupati.
Nakshtra name are of  Indus Valley Civlization  time.
The seal are very important
Decimal system was used in weight and measures.
 They had knowledge of Lunar astrology.
Their rectangular bath suggest religious society  and a religion .
 Harappa people could make painted potteries glazed potteries, burnt clay, terracotta .
 The archeologists found  planned shipyard at Kalibangan and Lothal sites . It means the society had trade and export relation with other civilization as with Sumerian civilization , Mesopotamia  and Egypt
 Archeologists found Certain Medicated and contemplative postures of people available among terracotta figurines That suggest that people developed Physical and mental l science with high degree.


References
1-Cunningham and Young  , Archeology of South Asia: from Indus to Asoka 6500 BCE-200CE, Cambridge press)
2- V.D.  Mahajan , 1998Ancient India pages from 54-95, S. Chand & Company

   
Copyright @ Bhishma Kukreti, 21/5/2018
  History of Medical, health and Wellness Tourism in India will be continued in –4
History of Medical, health and Wellness Tourism in India  , North India , South Asia;, History of Medical, health and Wellness Tourism in India  , South India; South Asia, History of Medical, health and Wellness Tourism in India , East India, History of Medical, health and Wellness Tourism in India  , West India, South Asia; History of Medical, health and Wellness Tourism in India  , Central India, South Asia; ;  History of Medical, health and Wellness Tourism in India  , North East India , South Asia;  History of Medical, health and Wellness Tourism in India , Bangladesh , South Asia; History of Medical, health and Wellness Tourism in India, Pakistan , South Asia;  History of Medical, health and Wellness Tourism in India  , Myanmar, South Asia; ;  History of Medical, health and Wellness Tourism in India  , Afghanistan , South Asia ; ;  History of Medical, health and Wellness Tourism in India  , Baluchistan, South Asia,  to be continued 



Bhishma Kukreti

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सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण आयुर्वेद पर्यटन हेतु एक आवश्यकता

 Medical Plant Forestation is Must for Ayurveda Tourism  in Uttarakhand

  सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण -1
 Community Medical Plant Forestation -1

  -

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  103

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -    103               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series-206 - 
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 206

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

    यदि उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकसित करना है तो आयुर्वेद चिकित्सा पर्यटन ही महत्वपूर्ण विकल्प है।  आयुर्वेद चिकित्सा पर्यटन से बांज पड़ी  धरती के हरी भरी होने के पूरे के पूरे अवसर हैं।  आयुर्वेद चिकित्सा हेतु दसियों वन पादपों की आवश्यकता होती है अतः यह आवश्यक है कि उत्तराखंड का हर इंच वन औषधि पादपों से आच्छादित हो।  राज्य सरकार को वन अधिनियमों में परिवर्तन करने पड़े तो करे।
  बहुत से पंडितों का आकलन है कि ग्रामवासी नई पद्धति को शीघ्र नहीं अपनाते।  मुझे लगता है वे भूतकाल में खोये रहते हैं।  वर्तमान ग्रामवासी मुंबई , कनाडा के प्रवासियों से अधिक अनुकूलितीकरण  में विश्वास करते हैं। जरा पहाड़ी गाँवों में जाईयेगा तो पाएंगे कि अब गाँवों में हर व्यक्ति 50 दिन में तैयार होने वाली राजमा बोता है।  याने यदि ग्रामवासी को सही माने में आर्थिक लाभ दिखता है तो वह  तुरंत उस तकनीक को अपना  लेता है।
       उत्तराखंड राज्य का कायापलट आयुर्वेद पर्यटन ही कर सकता है।  आयुर्वेद पर्यटन में  निम्न संस्थाओं की आवश्यकता पड़ेगी जो नए से नए आजीविका  देने में समर्थ रहेंगे
आयुर्वेद औषधि निर्माण
 आयुर्वेद चिकित्सालय कम से कम दस प्रकार के विशेष चिकित्सालय
आयुर्वेद चिकित्सा पर्यटन विपणन संस्थान
    आयुर्वेद औषधि विक्री संस्थान
  आयुर्वेद औषधि पादप विक्री संस्थान
   कृषि भूमि औषधि पादप उत्पादक
  सार्वजनिक या ग्राम सभा वनों में औषधि पादप उत्पादन
  राज्य वनों में औषधि पादप उत्पादन
  जरा सोचिये उपरोक्त कार्यों हेतु कितने हजार मनुष्यों   की आवश्यकता पड़ेगी यह संख्या लाखों में जायेगी।  जहां तक श्रम शक्ति का प्रश्न है यदि पहाड़ों में श्रम  शक्ति उपलब्ध नहीं है तो आउटसोर्सिंग बुरा नहीं है।  मैं नेपाली , पूर्वी उत्तर प्रदेश या बंग्लादेशियों के कभी खिलाफ नहीं रहा हूँ।  उत्तराखंडियों का मुख्य ध्येय आयुर्वेद चिकित्सा व्यवसाय होना चाहिए ना कि श्रम शक्ति पर अनावश्यक बहस।
   खाली पड़े वनों के एक एक इंच का औषधि पादपों माध्यम से दोहन आवश्यक है ।  वनों में आज आग लग रही हैं पर जरा सोचिये बल यदि वनों में ग्रामवासियों के औषधि पादप होते तो क्या वे आग फैलने देते जी नहीं वे अग्निशामन  का पबंध कर ही लेते।  चूँकि वनों पर अब गाँवों का अधिकार नहीं है तो वन जलें  तो जलें वाली मानसिकता से वन अधिक जल रहे हैं।
    ग्राम  सभा वनों में जबरन औषधि पादप वन लगने चाहिए।  जी हाँ जबरन औषधि वन लगाए जाने चाहिए।  एक तूंग केवल लकड़ी देता हैं किन्तु खैर लकड़ी , चारा व मुनाफ़ा आदि देता है तो ऐसे बनों में तूंग के स्थान पर खैर या टिमरू के पेड़ नहीं होने चाहिए ? चीड़ के स्थान कोई अन्य औषधीय पेड़ लगेंगे तो अधिक मुनाफ़ा होगा।  क्या भेंवळ को वन लायक नहीं ढाला जा सकता है ? क्या कुछ वनों में बेडु -तिमलु  नहीं उगाया जा सकता है ? क्या तूंग वन हरड़ , बयड़  या आंवला  वनों में परिवर्तित नहीं हो सकते है ? ऐसे कुछ प्रश्न हैं जिनके बारे में  शासन , समाज को सोचना ही होगा। शिल्पकारों के पास भूमि कम है क्या उन्हें ग्राम वन अदरक , हल्दी , वन प्याज उगाने नहीं दिया जा सकता है ?  यदि किसी शिल्पकार को ग्राम सभा के एक एकड़ भूमि पर हल्दी -अदरक कृषि करने दिया जाय तो सूअरों की शामत  नहीं आ जायेगी ?   यदि वनों में उगे टिमरू से ग्राम सभा को प्रति वर्ष एक लाख से अधिक लाभ होना निश्चित हो तो वन टिमरूमय न हो जाएगा ?
 आगामी अध्यायों में उन  वन पादपों के बारे में चिंतन होगा जो चिकित्सा पर्यटन में महत्वपूर्ण योगदान देंगे।

   कल पढ़िए - कैसे तूंग वनों में व गंगा तटों पर खैर पादप उगाया जा सकता है



Copyright @ Bhishma Kukreti  29 /5 //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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Bhishma Kukreti

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       हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास परिपेक्ष्य में गुप्त काल का प्रशासनिक ढांचा

Administration in  Gupta Era  & History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  222               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

  गुप्त काल में प्रशासन अनुकरमगत रूप से उप्पर से नीचे तक विभाजित था।
 सबसे ऊपरी पायदान में राज्य था जिसे राज्य , देश , राष्ट्र , पृथ्वी या अवानी  कहा जाता था।  राज्य प्रदेशों या भुक्तियों अथवा प्रदेशों में विभाजित था। प्रांत या भुक्ति विषयों में विभक्त किये गए थे।  विषयों के प्रशासकों को विषयपति कहा जाता था।  विषयपति की सहायता हेतु चार अधिकरण्य होते थे जिन्हे नगरश्रेष्ठ , सार्थवाहा , प्रार्थमकुलिका , प्रार्थम कायस्थ कहा जाता था।  नगरश्रेष्ट वैश्यों  प्रतिनिधि होता था। सार्थवहा व्यापरियों का प्रतिनिधि होता , था प्रथम कुलिका कलाकारों का प्रतिनिधि होता था तो प्रथम कायस्थ लिपिक होता था।
  विषयक के भाग को वीथी कहते थे तो गाँवों के संघ को पेठका या सौरक कहते थे।  गाँव के निम्न भागों को अग्रहारा या पुट्ट कहा जाता था।
       





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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


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