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Articles By Dinesh Dhyani(Poet & Writer) - कवि एव लेखक श्री दिनेश ध्यानी के लेख

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Dinesh Dhyani
March 21 at 3:23pm ·
घर-गौं
बरसौं पैली घौर छोडी द्यसु बस्यां
अज्यों तलक बी उपरि धरति म नि रच्यां।
रोटी-रोजगार की खातिर छां अयां
क्वी बि बौडिकि मुल्क जाण नि लग्यां।
आस्था-बीस्था कै कमै यख देसु म
धीत हमरि अजि बि अपणा मुल्क चा।
देवि-द्यबता , पितृ अपणां पुज्दा छां
रीति-रिवाज तीज त्यौहार मनदा छां।
याद औणी कूडी, पुंगडी छनुडी की
खुद लगीं मीं अपणां पांडा, वोबरा की।
मन पराण अपणां पाड म छन बस्यां
बाळि सगोडी आंख्यों छन रिटणां।
भलु सुभौ भला मनखि छन मेरा पाड़ का
कनी भली छै हवा पाणी पाड की।
याद औणी कफ्फू हिलांस, घुघती की
अपण्य पर्यौ अर बाळपन का दगड्यौं की।
दिनेश ध्यानी। 21, मार्च, 2016

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Dinesh Dhyani 

March 18 at 12:48pm ·

घोडा सियासत कि बिसात ह्वेगे
राजनीति कतना मजाक ह्वेगे,
सत्ता का बान रुणा छन नेता
विकास का सुपिन्यों को ख़ैमान ह्वेगे।
दिनेश ध्यानी। १८/३/१६

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Dinesh Dhyani
April 7 at 10:49am
दिल्ली एनसीआर में पहली बार गढ़वाली-कुमांउनी भाषा सिखाने हेतु एक पहल।
मित्रों उत्तराखण्ड लोकभाषा साहित्य मंच, दिल्ली के तत्वाधान में दिल्ली पैरामेडीकल एण्ड मैनेजमेंट इन्स्टीट्यूट एवं हिमालयन न्यूज की संयुक्त पहल से दिल्ली में पहली बार उत्तराखण्ड के नौनिहालों को गढ़वाली-कुमांउनी भाषा सिखाने के लिए दिल्ली पैरामेडीकल एण्ड मैनेजमेंट इन्स्टीट्यूट कैम्पस, न्यू अशोक नगर में ग्रीष्मकालीन कक्षाओं की शुरूआत किये जाने का विचार है।
इन कक्षाओं में गढ़वाली-कुमांउनी भाषाओं का लिखित ज्ञान एवं हमारी भाषओं का इतिहास, मुख्य साहित्यकारों के बारे में जानकारी एवं भाषा एवं बोली को मूल ज्ञान दिये जाने का प्रयास किया जायेगा। ताकि हमारी पीढी अपनी बोली-भाषाओं के जुड सके और दैनिक बोल चाल सहित लेखन में अपनी भाषाओं को अपना सके। देहरादून में इस प्रकार की पहल गढगौरव एवं सुप्रसिद्ध लोक गायक श्री नरेन्द्र सिंह नेगी एवं गढवाली के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, चिट्ठी के संपादक एवं सुप्रसिद्ध सिने कलाकार श्री मदन मोहन डुकलांण जी के सफल नेतृत्व में शुरू हो चुकी है।
इस हेतु हमें हमारे भाषा विद् एवं साहित्यकारों एवं समाज का सक्रिय सहयोग अपेक्षित है। आपके सुझावों का हमें इन्तजार रहेगा। गढ़वाली-कुमांउनी बोली-भाषा सीखने के इच्छुक युवाओं से भी हमारा अनुरोध है कि अधिक से अधिक संख्या में गढ़वाली-कुमांउनी भाषा सीखने हेतु पहल करें।
सादर,
निवेदक
दिनेश ध्यानी, जयपाल सिंह रावत, अनिल पंत,
उत्तराखण्ड लोकभाषा साहित्य मंच दिल्ली।
9968502496, 9818342205, 9868372933,

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Dinesh Dhyani
23 hrs
भाषा का सल्लि
गढ़ भारती धाद लगौणी
कख भाषा का सल्लि छां
हर्चदि जाणीं बोली-भाषा
तुम राजनीति मा टल्ली छां।
रीति-रिवाज तीज त्यौहार
जरा-जरा कै तुम छ्वडणां छां
ंअपणि बोलि-भाषा से तुम
किलै बिरूट होणां छां?
देश विदेशू नाम कमौणां
अगनै-अगनै बढणां छां
अपणी बोली अपणी भाषै
क्यो समाळ नि करणां छां।
जै सामज कि बोलि गूंगी चा
भाषा जैकि उन्नत नी चा
वै समाज की यीं दुन्या म
मान मर्यादा बचीं नि रैंदा।
गढ़वळि भाषा की मर्यादा
ये कु साहित्य भण्डार प्रगाढ चा
जरर्वत अमणी सत समाळ की
गढ़वळि कै भाषा से कम चा?
सर्वाधिकार/ दिनेश ध्यानी

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