इतिहास के पन्नो तक सिमटता गांव
उत्तराखण्ड प्रदेश मे गढ़वाल कुमाऊं सीमा से कुछ किलोमीटर दूरी पर चारों तरफ उन्ची चोटियों से घिरा मेर गावं खेतू जो विकाश खण्ड बीरोंखाल और पट्टी खाटली के अन्तर्गत आता है ! लम्बे चोड़े खेत चरागाह विशाल जंगल पूरी हरियाली के बीच बसा मेरा गावं आज अपनों के लिए बान्हें पसारे खड़ा है ! गावं की चोटी पर बैठकर मन्द मन्द हवा के झोंकों के साथ हिमालय दर्शन का आनन्द लिया जा सकता है ! लम्बे चोड़े खेतों के बीच पौराणिक कला को बिखेरती आलिशान बंगले और तिबारियां हैं ! कई परिवारों द्वारा गावं छोड जाने के पश्चात यहाँ तिवारी तथा बंगले वर्तमान मे खण्डहर मे तब्दील हो गए हैं ! मेरे गावं मे आज कुछ ही परिवार हैं जो गावं छोड कर जा चुके परिवारों को गावं आने पर आश्रय प्रदान करते हैं ! गावं अधिक उंचाई पर है गावं का क्षेत्रफल अधिक होने के कारण गावं की भूमि से तीन गधेरे नुमा नदियाँ निकलती हैं जिनमे पानी के श्रोत तो हैं जो कुछ भुकम्पन के बाद रिसाव होने के कारण अपना स्थान बादल देते हैं ! इन् स्रोतों द्वारा केवल पीने के लिए ही पानी उपलब्ध हो पाता है ! सिंचाई न होने के कारण गावं को दोनों खेतियों के लिए इन्द्रदेव के भरोसे बारीश पर ही निर्भर रहना पडता है ! गावं के बडे चरागाह और परिवारों के अपने निजी जंगल होने से प्रत्येक परिवार पर्याप्त मवेशी पालता है लम्बी चौड़ी खेतिबाड़ी वा पशु पालन होने से गावं मे कभी अन्न धन की कमी नहीं रही !
मुझे बचपन की याद आती है जब गावं के अड्तालीश मवार हिस्से होते थे लेकिन जैसे जैसे नगरों महानगरों की सान शौकत और चकाचोंद की बाते सुनी जाती थी तथा गावं मे स्वास्थ्य वा शिक्षा की समस्या होने के कारण गावं खाली होता गया रख रखाव के अभाव मे बंगले तथा तिवारी खण्डहर मे बदलते गए !
मेरा गावं मुख्य मोटर मार्ग से लगभग तीन किलोमीटर दूर है ! गावं के अगल बागल वाले नौलापुर और केदारगली गावं भी मोटर मार्ग से बन्चित हैं ! सन् १९७४ मे केदारगाली के पूर्व स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी तथा पूर्व जिला अध्यक्ष रह चुके स्वर्गीय हरि शर्मा ने बीरोंखाल केदारगली खेतू कलिंका जोगीमाधी तक मोटर मार्ग स्वीकृत करवाय था दुफुटी बनने के बाद पहले टेन्डर के लिए बीरोंखाल से निर्माण आरम्भ हो गया था परन्तु ग्राम डुमैला वासियों ने अपने जंगल बचाने के लिए मोटर मार्ग बन्द करवा दिया ! तब से आज तक यह मार्ग आरम्भ नहीं हो सका ! फलश्वरूप इस क्षेत्र के लोग मोटरमार्ग के लिए दुखी हैं !
मेरे गावं मे जहाँ सतगुरु बाबा की सन्त कुटी थी जिसमे बाबा के शिष्य आस पास गावं के बच्चों को पढ़ाया करते थे आज वह गावं एक अद प्राथमिक विद्यालय के लिए तरस रहा है! यहाँ के नोनिहल दो किलोमीटर दूर दूसरे गावं केदारगली तथा ढौर के आधारिक विद्यालयों मे पढने के लिए जाते हैं ! हाइ स्कूल और इन्टर कोलेज की बात तो दूर है ! गावं से तीन किलोमीटर पर हाइ स्कूल घोडियाना खाल तथा इन्टर कोलेज बीरोंखाल हैं ! इन् सभी स्कूलों के निर्माण मे मेरे गावं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई !
मेरा गावं आज भी कई बुनियादी समस्याओं के लिए तरस रहा है ! यहाँ के वाशिंदे अपनी मेहनत के बल पर शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र मे आगे बढ रहे हैं ! इन् मे सबसे पहले राष्ट्रिय आन्दोलन से जुड़े उस व्यक्ति का नाम प्रथम है अध्यातमिक गुरु सचिदानन्द शास्त्री "सतगुरु बाबा" के दूसरे नम्बर के पुत्र श्री महेश चन्द शर्मा बचपन से ही प्रतिभाशाली थे ! डी ए बी कलेज बीरोंखाल से शिक्षा ग्रहण कर आगे की पढाई के लिए अपने बडे भई ईश्वरीचन्द शर्मा के साथ कराँची चले गए ! सन् १९३० मे अपनी पढाई छोड़कर महात्मा गान्धी से प्रेरित होकर राष्ट्रिय आन्दोलन के कूद पडे ! आन्दोलन मे रहते हुए अन्ग्रेगी पत्रिका "प्रोसेशी" तथा तथा हिन्दी गुजराती पत्रिका "भविष्यबाणी" का कुशल सम्पादन किया !पत्रिकाओं मे आन्दोलन की उत्प्रेरक खबर छपने पर कई बार उन्हें जेल भेज गया ! वे सन् १९३२ मे अफ्रीका पहुँचे तथा उसके बाद फ्रान्स चले गए ! सन् १९३८ मे वापस कराँची आकार दुबारा पत्रिका आरम्भ कर दी ! सन् १९४२ मे भारत छोडो आन्दोलन मे भाग लिया ! इनको बन्दी बनाकर कराँची जेल मे डाल दिया गया जहाँ से १९४५ मे रिहा हुए ! शर्मा जी राष्ट्रिय आन्दोलन के दोरान कई संस्थाओं से जुड़े रहे ! जैसे सिन्ध फार्वर्ड ब्लोक के उपप्रधान, आगरा अवध प्रान्तीय सभा, गढ़वाल सभा, चपरासी सभा, विद्यार्थी एसोसिएसन सिन्ध, आर्य समाज, थियोसोफिकल सोसाइटी आदि कई सभाओं के सभापति रहे ! गांव के श्री रामसिंह बछेला रावत जिम कार्बेट के मुन्सी थे भवानी दत्त जुयाल, दुर्गा दत्त जलंधरी, तोता राम ध्यानी, गोबिन्द राम जुयाल, किशन दत्त जलन्धरी, राजेश्वर धौलाखंडी, नारायण दत्त जुयाल, रामकिशन जुयाल, गीता राम ध्यानी, राष्ट्रपति से संचार श्री अवार्ड प्राप्त महेशा नन्द जलन्धरी, सालिक राम ध्यानी, गुना नन्द ध्यानी, आदि दिवंगत लोगों ने अपने क्षेत्र मे कीर्तिमान स्थापित किए !
वर्तमान की विडम्बना और हमारे पुर्खों का अपने परिवार की ओर लापरवाही यहाँ स्पष्ठ होती है कि जीवन भर कार्बेट के मुशी रहे राम सिंह के पुर्त श्री उमेद सिंह रावत लगातार छः बार गावं फोरस्पन्चायत के प्रधान रहे ! परन्तु अशिक्षा और सुझबूझ न होने के कारण वह गावं के लिए सरकारी योजनाओं द्वारा प्रदत धन से रती भर सदुपयोग नहीं कर पाए ! फोरसपंचायत होने से अकेले गावं की ग्रामसभा का बज़ट भी अन्य ग्राम सभाओं के अनुसार ही था परतु वावजूद इस गावं की स्थिति बद्तर है ! वर्तमान मे गांव के होनहार डॉ. दिनेश चन्द्र ध्यानी उत्तराखण्ड राज्य के मुख्य चिकित्सा अधिकारी के पद से सेवा निवृत हुए, प्रोफ आनन्द स्वरूप शर्मा डी ए बी कालेज देहरादून से सेवा निवृत होकर देहरादून कोर्ट मे वकालत कर रहे हैं, श्री सुरेशा नन्द जलन्धरी ग्रीफ से पेनियर इन्जीनियर पद से सेवानिवृत होकर गावं विकाश कर्यों मे चाड बढ कर भाग ले रहे हैं, टेरितोरियल आर्मी से सेवानिवृत होकर गोबिन्द सिंह रावत, ओमप्रकाश जुयाल, जयानंद धौलाखंडी, किरोडिमल कालेज मे उच्च पदस्थ हरिचन्द ध्यानी, सुपर बाजार मे बासुदेव ध्यानी तथा मोहन सिंह रावत, जगदीश जुयाल, रमेश धौलाखंडी आदि का ध्यान ग्राम सुधार के कर्यों के लिए अग्रेषित है !
उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद गावं से फोर्सपंचायत छिन गई है जो अब ग्राम सभा सिन्दुड़ी के साथ मर्ज कर दी गई है ! मुख्य मोटर मार्ग से गाव तक जाने के लिए पहुँच के लिए इस गावं के लिए एक खच्चर बटिया अभी तक नहीं बन पाई है गावं से नवयुवक १०वी तथा १२वी कक्षा पास करने के बाद रोजगार की तलाश मे लगातार निकलते जा रहे हैं गावं धीर धीरे खाली होने के कगार पर है ! यही स्थिति रही तो आने वाले समय मे इस ऐतिहासिक स्मृति वाले गावं मे केवल पूर्बजों की धरोहर अवशेष मात्र न रह जायेगी !
(डॉ. बिहारीलाल जलंधरी)
"गऊँ आखरों" के सृजक, (उत्तराखण्ड की भाषा गढ़वाली कुमाउनी के स्थानीय ध्वनियों को अक्षर के रुप मे देवनागरी लिपि मे स्थान दिलाने के लिए हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्व विद्यालय से कार्यरत-ताकी उत्तराखंडी भाषा अपनी पूर्ण ध्वनियों के साथ देवनागरी लिपि मे लिखी जा सके), एबम प्रधान संपादक देवभूमि की पुकार, पूर्व केन्द्रीय कार्यकारिणी पदाधिकारी उक्रांद, संस्थापक सदस्य मुख्य सचेतक अखिल भारतीय उत्तराखण्ड महासभा, प्रधान तुग्लाकाबाद गाव, महासचिव उत्तरान्चल परिवार, संरक्षक उत्तांचल सांस्कृतिक मंच सङ्गम विहार,