Uttarakhand Updates > Articles By Esteemed Guests of Uttarakhand - विशेष आमंत्रित अतिथियों के लेख

Articles By Hem Pandey - हेम पाण्डेय जी के लेख

<< < (2/10) > >>

pcjoshi65:
PANDEYJI  "DEBIYA " ARTICLE TO HAM SAB PRAVASI PARVATIYON KI KAHANI HAI.
SABHI MEMBERS NE PARNA CHAHIYE.

Mohan Bisht -Thet Pahadi/मोहन बिष्ट-ठेठ पहाडी:
सच मे देवेन्द्र जी ये एक सच्चाई है.. इस लेख को पढ कर मजा आ गया  और ओ अपने बिते दिन भी  याद आगये..

जै हो आपकी...

Rajen:
सिंपली मार्वलस ठैरा हो महाराज. गजब .  थैंक यु है देवकीनंदन पांडे उर्फ़  डी. एन. पांडे  पुत्र गंगा दत्त पांडे जी आपको  और  हेम पाण्डेय जी को भी इस लेख को हमारे तलक पहुँचाने के लिए. .



--- Quote from: hem on September 27, 2008, 01:38:42 PM ---                                      देबिया
 
--- End quote ---

umeshbani:
Dear dev ji har Pahdi bande ke andar ek debua hai jiska bas ahhsas karna hota hai jo Aapne karaya......... waaki bahut sunder lek hai jo har pahdi bande ke dil tak maar karta hai or usko sochane par majbur kr deta hai ke terre andar bhi ek de..... hai...

hem:
                                             देबिया की मौत
             अभी कुछ दिन पहले मैं कुछ सोचता हुआ उस सड़क पर चला जा रहा था कि अचानक मेरे कानों में आवाज आई -'राम नाम सत्य है,सत्य बोले गत्य है' | मैंने ध्यान से सुनने की कोशिश की |  हाँ यही वाक्य दोहराया जा रहा था जो किसी की मृत्यु का सूचक था | उत्सुकतावश मैंने जनाजे के पास जाकर देखने की कोशिश की | देखा तो जनाजे में शामिल सारे ही लोग पहाड़ी दिखे, जिनमें से कुछ को मैं पहचानता था | एक परिचित से पूछा -'के हो को ख़तम भौ ?'
उत्तर मिला -देबी |
- को देबी ?
-उई पर्यटन निगम वाल |
मुझे काटो तो खून नहीं | देबिया पूरी तरह स्वस्थ और जवान था |  अभी कुछ दिन पहले उसका प्रमोशन भी हुआ था | देबिया एक खुशमिजाज और मिलनसार व्यक्ति था|उसकी एक खूबसूरत बीबी और दो छोटे-छोटे प्यारे बच्चे थे | हाँ यह जरूर सुना था कि उसकी बीबी ससुर के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती |यदि ससुर की मौत की ख़बर होती तो कोई आश्चर्य की बात नहीं थी क्योंकि देबिया के पिताजी की उम्र अठत्तर के आसपास थी और बहुत स्वस्थ भी नहीं थे | वास्तव में देबिया की आकस्मिक मौत ने मुझे अन्दर तक झकझोर दिया | जीवन की क्षणभंगुरता का यह जीता-जागता उदाहरण था | मुझे उसके बीबी-बच्चों का ध्यान बार-बार आता | इस घटना के बाद कुछ दिन बाद तक मैं अन्यमनस्क सा रहा | लेकिन एक बात मुझे बहुत अटपटी लगी थी कि देबिया के जनाजे में सभी लोग पहाड़ी थे और वे भी केवल ठेठ  पहाड़ी | देबिया के परिचय क्षेत्र में अन्य पहाड़ी भी थे जो अच्छे पदों पर थे,वे लोग और उसके आफिस के,पड़ोस के अन्य गैर पहाड़ी उस जनाजे से गायब थे |

धीरे-धीरे सब सामान्य होने लगा | रोजमर्रा की जिन्दगी अपने ढर्रे पर चलने लगी | एक शाम मैं दोस्तों के साथ सैर को निकला |हम सब एक खुली जीप में  तालाब के किनारे बोट क्लब जा पहुंचे और मौज-मस्ती करने लगे | वहाँ अचानक मैंने एक व्यक्ति को एक महिला और दो बच्चों के साथ क्रूज पर चढ़ते देखा | उनको देख कर मैं अचंभित हो गया| मैंने दौड़ कर उन्हें पास से देखने की कोशिश की | वे क्रूज की सवारियों के साथ भीड़ में चले गए और  धीरे-धीरे मेरी आंखों से ओझल हो गए | जहाँ तक मैंने देखा, मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ वह देबिया और उसके बच्चे थे |

इस घटना ने मुझे बुरी तरह व्यथित कर दिया | उस दिन देबिया का वह जनाजा सत्य था या आज का जीता-जागता देबिया | मैं स्वयं के मानसिक संतुलन पर भ्रमित होने लगा | हाँ उस दिन के जनाजे में एक विचित्र बात जरूर थी कि पहाडियों का एक सीमित वर्ग ही उसमें शामिल था | पांडेजी थे -जिनकी मां अपने जीवन के अन्तिम पन्द्रह वर्ष पलंग पर ही पड़ी रहीं और पांडेजी ने उनकी भरपूर सेवा की थी |  सनवाल जी थे- जिनके पिता मरने से कुछ वर्ष पहले अपनी याददाश्त खो चुके थे और खाना खा लेने के कुछ ही मिनटों के बाद सनवाल जी और उनके बच्चों को इस लिए गाली देते थे कि उन्होंने बुढापे में उन्हें भूखों मार डाला है |  बोरा जी थे- जो आए दिन दफ्तर में देर से आने के लिए फटकार खाते थे क्योंकि उन्हें बूढ़े मां-बाप की सेवा के चक्कर में प्रायः ही देर हो जाया करती थी |  बूढ़े मां-बाप के कारण ही उन्होंने प्रमोशन नहीं लिया था | क्योंकि प्रमोशन होने पर उन्हें बाहर जाना पड़ता जिससे मां-बाप की उचित देख-भाल नहीं हो पाती |         


      जीवन फ़िर उसी सामान्य गति से चलने लगा | मैं प्रतिदिन सुबह  प्रात:  भ्रमण पर निकलता था | रास्ते में 'आसरा' नाम का वृद्धाश्रम पड़ता था,जिसके गेट पर दो चार वृद्ध हमेशा चहलकदमी करते मिल जाते थे |  एक दिन अचानक उन वृद्धों में मुझे देबिया के बाबू नजर आए | सहसा विश्वास नहीं हुआ | पास जा कर देखा | वे ही थे |

उनसे विस्तार में ढेर सारी बातें हुईं | एक- एक परिचित की कुशल उन्होने पूछी | वृद्धाश्रम में आने के बाद उनसे मिलने वाला पहला परिचित व्यक्ति मैं ही था| इस परदेश में होली के दिनों में रौनक ला देने वाले वे प्रमुख व्यक्ति थे | होली निकट थी और उन्हें अफ़सोस था कि इस बार वे न बैठ होली के महफिलों में होंगे और न छलड़ी के रंग में |

देबिया के बाबू की बातों का सारांश यह था कि देबिया की बीबी देबिया के बाबू को अपने साथ एडजस्ट नहीं कर पा रही थी | इस बात को ले कर देबिया और उसकी बीबी में भी कहा-सुनी हो जाती थी | देबिया के बाबू को भी यह नागवार गुजरता | अंत में रोज की चक-चक से तंग आकर देबिया के बाबू ने ही वृद्धाश्रम में रहना उचित समझा | देबिया लगभग हर हफ्ते में एक बार उनसे मिल जाया करता था | देबिया के बाबू को किसी से कोई शिकायत नहीं थी | लिकिन उनके दिल का दर्द उनके हाव-भाव से झलक ही जाता था |  होली में उनसे मिलने का वादा करके मैं भारी मन से लौट आया |

मैं सोचता जा रहा था- देबिया क्या हो गया तुझे ? तू तो पहाड़ी समाज का आदर्श था | मातृ-पितृ भक्ति के लिए तेरा नाम पांडेजी, सनवालजी और बोरा जी के साथ लिया जाता था | तू तो बड़ा कर्मकांडी था और प्रतिदिन मंत्रोच्चारण करता था - मातृ-पितृ चरण कमलेभ्यो नमः | क्या हुआ रे उस मन्त्र का ? सहसा मुझे लगा देबिया मुझे बाइबिल की उक्ति पढा रहा है -     
    Man will leave his father and mother and wil unite with his wife and the two will become one .                               

Navigation

[0] Message Index

[#] Next page

[*] Previous page

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 
Go to full version