Author Topic: Articles by Mani Ram Sharma -मनी राम शर्मा जी के लेख  (Read 27233 times)

Mani Ram Sharma

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जिस भ्रष्ट  राजनीति की लम्बी लम्बी बातें आदरणीय मोदीजी कर रहे हैं उसका आगाज दिल्ली के रामलीला मैदान में आप ने किया था और उसी मंच पर भारत के लगभग सभी राजनैतिक दल भाजपा सहित , यूपीए को छोड़कर , शामिल रहे हैं | मोदीजी एक अच्छे  वक्ता और धुरंधर राजनेता हैं जिन्हें जोड़तोड़  की राजनीति का अच्छा  ज्ञान है  यह ओवैसी, शिव सेना और राकपा  ने साबित कर भी दिया है | किन्तु जनता इन भाषणों को आखिर कितने समय  तक सुनने का संयम रख पाएगी | मोदीजी अच्छे राजनेता हैं किन्तु बुरे प्रशासक हैं | टाटा  स्टील के अध्यक्ष पद से  रुसी मोदी  को हटाकर जब इरानी को अध्यक्ष बनाया गया था तब उन्होंने कहा था कि  इरानी अच्छा स्टील तो बनाना जानते हैं किन्तु  अच्छे  आदमी नहीं | मोदीजी का भी हाल कुछ ऐसा ही है | बेशक राजनैतिक समीकरणों के वे अच्छे ज्ञाता हैं किन्तु  धरातल स्तर  पर एक भी सुधार   का कार्य उन्होंने नहीं किया है |
प्रधान मंत्री जी के संवाद कौशल की राजनीति के अन्त की अब शुरुआत है, अगर उनके पिछले इतिहास पर गौर की जाए तो उन्होंने आजतक जिस सीढ़ी के डंडे पर पैर रखकर ऊपर गये वहां पहुंचते  ही सबसे पहला कार्य पिछली सीढ़ी को तोडने का करते हैं।गुजरात में विश्व हिंदू परिषद और गुजरात भाजपा, फिर राजनाथ पर पैर रखकर आडवाणी, जोशी, सुषमा, जेटली, फिर मीडिया, सोशल मीडिया सहयोगी पार्टियों पर पैर रखकर पी एम की कुर्सी पर पहुंचे, पहुंचते ही राजनाथ का हश्र, शिव सेना की गत, जुकरबर्ग से मुलाकात, और समाज में लगातार गिरता मीडिया का स्तर और उसपर से जनता का उठता विश्वास, टीवी 18 की खरीदारी आदि ये साबित करने के लिए काफी है कि  ये शाहजहाँ जिन हाथों से ताजमहल बनवाते है उन्हें दूसरा ताजमहल बनाने लायक नहीं छोडते| 2019 तक टॉम  एन जैरी की जगह बच्चे न्यूज चैनल देखने की जिद करने लगे तो कोई अचरज की बात नहीं होगी|

 उनके विचारों में राजनीति की अप्रिय बू आती  है जो जन संवाद की  बजाय व्यक्तिगत संपर्क रखने और उसके माध्यम से अपना जनाधार या पंथ प्रसार पर बल देते हैं कि लोगों को काम करवाना हो तो पार्टी से संपर्क रखें, उसके सदस्य बने | वे पार्टी के ज्यादा और जनता के कम प्रतिनिधि  हैं| नाम तो हिन्दुत्व का लेते हैं और हाथ  अवैसी से मिलाते हैं जो कहते हैं  कि 15   मिनट   के लिए पुलिस हटा ली  जाए  तो 100  करोड़ हिन्दुओं को साफ़ कर देंगे | प्रचंड बहुमत मिलना भी इस बात का कोई निश्चायक  प्रमाण नहीं है कि वह व्यक्ति जन प्रिय, संवेदनशील है तथा तानाशाह नहीं है | इस तथ्य का मूल्यांकन एक बार इंदिरा गांधी के चरित्र   के परिपेक्ष्य में करके देखें| मोदीजी भी इंदिराजी  का एक हिन्दू संस्करण हैं |

दवा की कीमतों और रेल भाड़े में वृद्धि तथा श्रम कानूनों में हाल के संशोधनों से आने वाले अच्छे  दिनों को झलक मिलती है | जो व्यक्ति लिखे हुए आवेदन को पढ़कर कोई समुचित कार्यवाही नहीं कर सकता  विश्वास नहीं होता की वह व्यक्तिगत मिलने पर कोई हल निकालेगा|

Mani Ram Sharma

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भाजपा सुशासन  का दावा करते समय यह कहती है कि  60  वर्षों से  देश  के हालत बिगड़ते गए हैं जबकि  भाजपा तो स्वयम रामराज्य करने का  दावा करती है  और अभी कांग्रेस को लगातार मात्र 10 साल हुए हैं |इससे पहले तो स्वयं भाजपा 5  साल शासन कर चुकी है  | इस अवधि में इन्होंने कौनसा  टिकाऊ  या मौलिक सुधार किया ? या यदि इन्होंने  कोई ऐसा सुधार किया जो 10 साल भी नहीं टिक सका तो फिर ऐसे सुधार को   क्या कोरी सस्ती लोकप्रियता की लिए कदम नहीं कहा जाए |  गत चुनाव में दिल्ली में शत प्रतिशत सीटें जीतने वाली पार्टी विधान सभा चुनावों  में क्या इसे बरकरार रख पाएगी ?  यदि अभी संसद के लिए पुन: मतदान तो भाजपा 10%  से अधिक सीटें खो देगी |यदि भाजपा अपने 5  साल के शासन में कुछ नहीं सुधर सकी तो कांग्रेस को 10 साल के शासन के लिए ज्यादा दोष नहीं दिया जा सकता |
 
मोदीजी जैसे व्यक्ति का जीतना उनके लिए सौभाग्य और जनता के लिए दुर्भाग्य की  बात है क्योंकि देश की राजनीति में कोई विकल्प नहीं है और न ही कोई विकल्प पनपने दिया गया | जिस प्रकार पूर्व देश में ( जहां कोई वृक्ष नहीं होता ) वहां एरंड ही वृक्ष कहलाता है | देश की राजनीति तो एक दलदल है जो इसमें से निकालने के लिए जितना   जोर लगाएगा उतना ही अंदर धंसता जाएगा| ये  वही मोदीजी हैं जो सत्ता में आने से पहले शेर की तरह दहाड़ते थे और शशि थरूर की बीबी को करोड़ों  की बीबी बताते थे |
देश में लगभग 70प्रतिशत  लोग गरीब हैं 10प्रतिशत  धनी  और 20प्रतिशत  मध्य वर्गीय हैं | ऊपरी उद्योगपतियों को सरकारी अनुदान दिया जाता है और निचले लोगों को भी अनुदान किन्तु मध्यम वर्ग  को कोई लाभ उपलब्ध नहीं हैं है| गुजरात में 40प्रतिशत  शहरी और  व्यापारी हैं जिनका उन्हें समर्थन प्राप्त  है |  आदर्श  ग्राम योजना भी एक छलावा मात्र है  | एक सांसद के क्षेत्र  में लगभग एक हजार गाँव हैं  तो इतने गाँवों के विकास में कितनी पीढियां लगेंगी , अनुमान लगाया जा सकता है | स्वच्छ   भारत अभियान भी इसी कड़ी  का एक हिस्सा है और प्रशासन की विफलता का द्योतक है कि  वे नगर निकायों से काम नहीं  ले सकते | दूसरी पार्टियों या राजनेताओं  पर आरोप लगाने से भी भाजपा उज्जवल  नहीं हो  जाती है बल्कि यह तो इस बात की  पुष्टि है कि  हम भी  उन जैसे  ही हैं जबकि अलग  चाल ,चरित्र और चेहरे   का दावा खोखला है |
केंद्र सरकार के सचिवालयों में आज भी बात करें कि मोदीजी ने यह कहा है तो वे निर्भय होकर कहते हैं हम तो यों ही काम करेंगे आप मोदीजी से शिकायत कर  दें या उनसे काम करवा लें|भारत में  प्रधान मंत्री   का तो पद खाली है  और दो विदेश मंत्री कार्यरत   हैं | पी एम ओ ( प्रधान मंत्री कार्यालय )  पहले भी पोस्टमैन   का कार्यालय था और अब भी यही है | जनता से प्राप्त शिकायतों को सम्बंधित मंत्रालय को डाकिये की भांति आगे भेज दिया  जाता है और उस पर इस बात कोई निगरानी नहीं रखी जाती कि उसका समय पर व  समुचित निपटान हो रहा है |  दिन में 20 घंट  काम तो मोदीजी अवश्य करते होंगे किन्तु इस अवधि में राजनैतिक जोड़तोड़  पर चिंतन ही करते हैं और राकापा, शिव सेना, ओवैसी  आदि के साथ अपवित्र गठबंधन करने में अपना समय और ऊर्जा लगाते हैं  किन्तु जन हित चिंतन उनके  स्वभाव  का  अंग नहीं है |जो अम्बानी से हाथ मिलाएगा वह विकास तो अम्बानी का ही करेगा आम जनता का  नहीं |अम्बानी तो व्यापारी हैं पहले इनके  पिता तात्कालीन वित्त  मंत्री  प्रणब मुखर्जी के ख़ास थे,  फिर मुलायम के और अब मोदी के|  ये पैसे  के अतिरिक्त किसके  ख़ास हो सकते  हैं|  यदि चाय बेचने वाला कोई प्रधान मंत्री बन जाये तो उससे विकास तो उसका ही हुआ है न कि  देश का | रेलवे  स्टेशन पर खुम्चे वाले आज कई बड़े धनपति बने बैठे हैं –इससे  क्या फर्क पड़ता है आम जनता की नियती तो वही रहती है |  हवाई जहाज में उड़ने और डिज़ाइनर कपड़ों के लिए लोग पहले रिक्शे में चलते हैं |

Mani Ram Sharma

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मतदान  का प्रश्न  उठायें तो देश में लगभग 60प्रतिशत  मतदान होता है और मोदीजी की सरकार को 25प्रतिशत  से अधिक मत नहीं मिले हैं अर्थात वे 75प्रतिशत  लोगों को पसंद नहीं हैं |यह तो इस देश का मतदान ढांचा ही ऐसा है कि  अप्रिय लोग भी सत्ता पर काबिज हो जाते हैं | न्यायाधिपति काटजू ने कहा था कि  देश की 90प्रतिशत   जनता नासमझ है | विकल्प के अभाव में वह विवश भी है क्योंकि इस प्रशासनिक ढांचे और संविधान के अंतर्गत कोई उपचार उपलब्ध नहीं हैं | अरुणा राय, अरुंधती, मेधा पाटकर, अन्ना , केजरीवाल , बाबा रामदेव , किरण बेदी आदि  कई लोगों ने प्रयास करके देख लिए हैं लेकिन शायद सफलता अभी भी कोसों दूर है |देश   की राजनीति   तो  एक चूहेदानी   हैं जिसमें चुपड़ी रोटी लगाकर चूहों को पकड़ा जाता है |

भारत की राजनीति में भाग लेना सबसे बड़ा  अधर्म  और चुनाव लड़ना नरक का टिकट बुक करवाना है  |मुझे मोदीजी या अन्य किसी भी पार्टी से न तो लगाव है न पूर्वाग्रह क्योंकि मैं गैर राजनैतिक व्यक्ति हूँ तथा अन्य पार्टियों की पूर्ववर्ती सरकारों की कमियों की ओर  भी समान रूप से ध्यान  आकर्षित करने का प्रयास करता रहा हूँ | देश की  विकलांग न्याय  व  शासन व्यवस्था का जब  तक पूरी तरह से सत्यानाश  नहीं हो  जाता तब तक कोई क्रांति भी  नहीं होगी | यह कार्य हमने  आदरणीय  के हाथों  में सौंप दिया है और शायद वे यह कार्य अपने शासन काल   में अवश्य पूरा करके गुजरात के समान ही एक पूर्ण तानाशाही स्थापित कर देंगे| किन्तु  सुधार तो तब तक नहीं होगा जब तक आम नागरिक ऐसी चर्चा में सक्रीय भागीदार नहीं बन जाता और यह अभ्यास कम से कम 20 वर्ष और लेगा| फिर भी  जनता को  निराशवादी नहीं होना चाहिए और न ही हवा के झोंके के साथ उड़ने वाला  तिनका –बल्कि वास्तविकता में विश्वास कर रखना चाहिए |
वैसे तो  पारदर्शिता और जनतंत्र के विकास के लिए यह आवश्यक है कि शासन की सफलताएं और विफलताएं दोनों को सार्वजनिक किया जाए किन्तु विफलताओं को सार्वजनिक नहीं किया जाता और सफलताओं पर भी मुल्लम्मा चढ़ाकर पेश किया जता है जिससे जनता के सामने वास्तविक तस्वीर कभी नहीं आ पाती है | सफलताओं के गुणगान तो समर्थक ही काफी कर देते हैं और सत्तासीन लोगों की विफलताओं  का ज्ञान होना आवश्यक है ताकि उनमें सुधार के लिए जमीन तैयार की जा सके | सफलताओं के जिक्र से जनता को कोई लाभ भी नहीं बल्कि सत्तासीन पार्टी को ही लाभ हो सकता है | कार्य तो सत्तासीन ही कर सकते हैं अत: आलोचना भी उसी की होगी  सत्ता से वंचित इस व्यवस्था में न तो कुछ कर सकते और न ही उनकी आलोचना से जनता  को कोई लाभ होना है |यदि आम  नागरिक  गुणगान   में अपनी सीमित ऊर्जा  लगा दे  तो फिर कमियों कि और ध्यान कैसे जाएगा|

जिस व्यक्ति ने अपने वरिष्ठ  साथियों तक को दर किनार कर कर दिया वह आम नागरिक को साथ लेकर कैसे चल सकता है| जिसे  प्रकाश नहीं अन्धेरा पसंद हो  -जन संवाद नहीं  एकाधिकार पसंद हो वह जनता का कोई भला कैसे कर सकता है |  मोदीजी जहां एक और इ-गवर्नेंस  की बातें करते हैं वहीँ  आदरणीय के आने के बाद  उनके कार्यालय के सारे इमेल  आई डी  जनता के लिए बंद कर दिए गए हैं और किसी भी अधिकारी का इमेल आई डी  वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है | शायद  जल्द ही ये अपने सभी विभागों, मंत्रालयों, उपक्रमों और कार्यालयों की इमेल आई डी बंद करदें तो भी आश्चर्य नहीं करना चाहिए|  जनता के लिए मात्र दो वेबसाइट /लिंक दिए गए हैं जिनके लिए सिर्फ 500  अक्षरों की सीमा है और वह भी आप 72  घंटे के बाद ही दूसरा सन्देश भेज सकते हैं |इस प्रकार मोदीजी ने चुनाव जीतते ही आम नागरिक से दूरी बढ़ा ली गयी और सिर्फ उनके व्यक्तिगत संपर्क वाले ही उनसे संपर्क कर सकते हैं और उनको तो विदेश यात्राओं के प्रतिक्षण सचित्र विवरण मिलते रहते हैं| यही मोदीजी के प्रजातंत्र का असली मोडल है |किसी  कार्य में सफलता हमें तभी मिल   सकती है जब उसे पूर्ण मनोयोग – मन, वचन एवं कर्म से किया जाए| किन्तु मोदीजी की इ-गवर्नस  में तो इसका कोई  तालमेल नजर नहीं आता | जब वे लिखे हुए पर ध्यान नहीं दें तो कैसे विश्वास किया जाए कि   वे व्यक्तिगत मिलने पर दुःख दर्द सुनेगें | वैसे उमा भारती  से मिलने गयी मेधा पाटकर को लौटते  समय  पुलिस ने गिरफ्तार  भी कर लिया था|जिस तेज गति से   मोदीजी  की  छवि में सुधार  हुआ है  शायद उससे तेज गति से यह छवि धूमिल   हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं |

Mani Ram Sharma

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देश के कुछ तथाकथित अति बुद्धिमान लोगों का यह भी मत है कि जनता में  सक्रियता नहीं है | मेरा उनसे एक प्रश्न है कि  आम जनता में सक्रियता है या नहीं अलग बात हो सकती है किन्तु जो सक्रीय हैं उनके अधिकाँश आवेदन भी तो किसी न किसी  बनावटी बहाने से रद्दी की  टोकरी की भेंट चढ़ रहे या असामयिक अंत झेल रहे हैं  जो नीतिगत मामला  मंत्री को तय करना चाहिए उसे सचिव  ही निरस्त कर रहे हैं | यदि सचिव  ही नीतिगत मामले  पर  निर्णय लेने हेतु सक्षम हो तो फिर मंत्री  की  क्या भूमिका हो सकती  है|  जनता के सामान्य स्वर को नजर अंदाज किया जाता  है और ऊँचे स्वर को पुलिस की गोली, लात घूंसे और लाठियों से कुचल दिया जता है | यही अंग्रेज करते थे, यही कांग्रेस और यही भाजपा | देश में गरीबी बहुत अधिक है  और   मात्र 3प्रतिशत  लोग ही आयकर दाता है  तथा  70प्रतिशत  लोगों को दो जून  की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है , बेरोजगारी, भ्रष्टाचार  और महंगाई सुरसा की तरह मुंह बाए  खड़े है | ऎसी  स्थिति में आंम  नागरिक क्या करेगा ? जनता की  सक्रियता में और क्या होना चाहिए या क्या कमी है यह कोई बता सकता है क्या?  जब जन प्रतिनिधियों को जनता की आवाज उठाने के लिए चुनकर भेज दिया गया तो जनता की बात को अपना स्वर देना उनका कर्तव्य है |  यदि वे ऐसा नहीं करते तो फिर चुनाव का भारी खर्चा क्यों किया जाए ? फिर अंग्रेजों के राज में और इस तथाकथित लोकतंत्र में फर्क क्या रह  जाता है | क्या इसी तरह शासन संचालित होने के लिए हमारे पूर्वजों ने क्रांति की थी ?

शायद  कुछ लोगों को परिवर्तन  की आशा हो किन्तु इस देश में कोई क्रांति भी नहीं होगी |क्रांति के लिए जनता का अति पीड़ित होना आवश्यक है जोकि ये राजनेता कभी नहीं होने देंगे | जनता को थोडा थोड़ा आराम देते रहेंगे| प्यासे को चमच  से पानी पिलाते  रहेंगे  ताकि न  तो उसकी प्यास बुझे और न उसकी प्यास बुझाने कि दिलासा   टूटे|  यह हमें लगातार गुलाम बनाए रखने की एक सुनियोजित कूटनीति का हिस्सा है | अमेरिका में भी रोटरी क्लब का गठन रूस की क्रांति के बाद इसीलिए हुआ था कि कहीं गरीब लोग दुखी होकर रूस की  तरह क्रांति नहीं कर दें इसलिए इनकी थोड़ी थोड़ी मदद करते रहे हो ताकि इनके मन में यह विचार रहे कि धनवान उनके प्रति हमदर्दी रखते हैं| सरकारों के लुभावने नारे और सुधार कार्यक्रम मौसमी और वायरल बुखार की तरह हैं जो कुछ दिनों बाद शून्य  परिणाम  के साथ अपने आप उतर जाते  हैं |
कहने को तो सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दे रखें  हैं कि नारी सुरक्षा हेतु सिटी बसों में सादा वर्दी में पुलिस को तैनात किया जाए किन्तु स्वयं दिल्ली पुलिस में ही सौ से अधिक बलात्कार  के आरोपी कार्यरत हैं| पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी अपनी कनिष्ठ  महिला पुलिस कर्मी से प्रणय निवेदन करते हैं और वे यदि इस पर सहमत न हों  तो उसकी ड्यूटी ऐसे विषम समय और स्थान पर लगाते  हैं कि उसे कठिनाई  हो और वह समर्पण कर दे | उसे कहा जाता है कि  वह कुछ समय वरिष्ठ  के बिस्तर की शोभा बनकर  अपना शेष दाम्पत्य जीवन भोग सकती है अन्यथा उसकी ड्यूटी रात में लगा दी  जाती है| न  केवल  महिला  कर्मियों बल्कि कनिष्ठ पुलिस कर्मियों की भी ड्यूटी ऐसी विषम परिस्थितियों और समय में लगाई जाती है ताकि वे अपना सुखमय दाम्पत्य जीवन व्यतीत नहीं कर सकें |  अपना यदि वे अपना सुखमय दाम्पत्य जीवन  चाहें तो उनसे अपेक्षा की   जाती है कि   वे अपनी बीबी को उन वरिष्ठ के बिस्तर की शोभा बनाएं| वैसे  पुलिस वालों को खुद को पता है कि उनकी समाज में कितनी इज्ज़त है इसलिए वे फेसबुक पर प्रोफाइल में कहीं  भी अपना पुलिसिया काम नहीं लिखते| ऐसा करने पर कोई उनसे दोस्ती नहीं करना चाहेगा|वरिष्ठ पुलिस अधिकारी गिल और राठोर ने भी पुलिस का नाम काफी रोशन किया   है| न्यायाधिपति स्वतंत्र कुमार और गांगुली भी इसी श्रृंखला का हिस्सा रह चुके हैं |कानून  को चाहे कितना ही सख्त बना दिया जाए आखिर वह रसूख और पैसे के दम पर नरम  हो  जाता है |

Mani Ram Sharma

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न्यायपालिका सहित , आज  देश का पूरा शासन तंत्र, और सारे राजनैतिक दल  जन विरोधी लगते हैं | इस देश में पञ्च तत्वों के अपवित्र गठबंधन का  शासन है - संगठित अपराधी, धन्ना सेठ , राजनेता, अधिकारी और न्यायाधीश | नागरिक के पास तो 5 वर्ष में वोट डालने के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता | उसकी शिकायतें तो रद्दी की टोकरी की भेंट चढ़ जाती हैं - शासन चाहे किसी भी पार्टी को है - इस गुणधर्म और चरित्र  में कोई अंतर नहीं आता |  भारत   के मुख्य  चुनाव आयुक्त शेषन ने लगभग 20 वर्ष पूर्व  कहा था कि लोकतंत्र के चार स्तम्भ होते हैं और उनमें से साढ़े तीन क्षतिग्रस्त हो चुके हैं  --अब  तक कितने बचे हैं अनुमान लगाया   जा सकता है | गरीबी के विषय में भी इन लोगों  का कुतर्क होता है कि  धन मेहनत से कमाया   जा सकता है |मेरा इन धनिकों से निवेदन है की क्या वे एक मजदूर से ज्यादा मेहनत करते हैं जो दिन भर पसीना बहाने के बावजूद मूलभूत सुविधाओं से वह और उसका परिवार वंचित रहता है | वस्तु स्थिति तो  यह है कि  धन संचय , तो बेईमानी, और दूसरों का हक छीन कर ही किया जा सकता है | दूसरों की वस्तुएं और सेवाएं कौड़ियों के दाम सस्ती लेकर उन्हें महँगी बेचकर संचय ब्लैक करके , कृत्रिम कमी करके मुनाफाखोरी से ही यह संभव है | और पूंजी भी तो संचित श्रम ही है क्योंकि सभी वस्तुएं  तो प्रकृति ने सृष्टि  में निशुल्क उपलब्ध करवाई हैं  |
आम नागरिक को ट्रैफिक की तरह सभी राजनैतिक दलों से समान और सुरक्षित दूरी रखनी चाहिए  क्योंकि  राजनेताओं  का यह पेशा है उससे ही उनकी आजीविका चलती है  |  पार्टी कार्यालयों को चंदे के नाम पर भारी प्रोटेक्शन मनी मिलती है जिनसे पार्टी कार्यालयों के खर्चे चलते हैं  अन्यथा जो कार्यकर्ता पार्टी कार्यालयों  में जुटे रहते हैं उनके  जीवन यापन और चुनावी खर्च  का कौनसा स्वतंत्र  आधार है |   जहां तक जागरूकता का प्रश्न है तो देश में अभी मात्र 6 करोड़ लोग ही ग्रेजुएट या अधिक शिक्षित हैं |
बदसूरत व्यक्ति को यदि शीशा दिखाओ तो अगर वो समझदार होगा तो अपने स्वरूप को स्वीकार करेगा । यदि मूर्ख या पागल हुआ तो शीशा तोड़ने को आएगा । स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने करतार सिंह बनाम पंजाब राज्य (1956 AIR  541) के मामले में कहा है कि जो कोई लोक पद धारण करता हो उसे उस पद से जुड़े आलोचना के हमले को, यद्यपि दुखदायी है, स्वीकार करना चाहिए| 

Mani Ram Sharma

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जय मूर्छित लोकतन्त्र की!!
« Reply #115 on: January 21, 2015, 09:38:40 AM »
लालू यादव के परिजनों ने  सुप्रीम कोर्ट में 1 मार्च 2007 को रिव्यु याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट द्वारा केन्द्रीय  अन्वेषण ब्यूरो को राज्य सरकार की सहमति के बिना जांच का आदेश देने को क्षेत्राधिकार से बाहर बताया और कहा कि यह राजनीति से प्रेरित है | याचिका पर न्यायाधिपतिगण कबीर और दत्तु ने सुनवाई  की और 17 फरवरी  2011 को निर्णय सुरक्षित रखा लिया | यह निर्णय 13  दिसंबर 2012 को घोषित किया गया और धारित किया कि उक्त आदेश सही था | यह विलम्ब इसलिए किया गया कि इस बीच होने वाले वाले चुनावों पर इसका राजनैतिक प्रभाव न   पड़े |  क्या न्यायाधीश राजनीति से मुक्त हैं ..? देश हित से ज्यादा किसी राजनेता का भविष्य इस महान भारत में ज्यादा महत्वपूर्ण है | 
हाल ही आशाराम ने बीमारी के आधार पर जमानत मांगी तो उसे यह कहा गया कि उसे ऐसी   कोई बीमारी नहीं है जिसके लिए ऑपरेशन करवाना पड़े या  इलाज के लिए घर जाना पड़े | किन्तु प्रश्न यह है कि  क्या यही प्रश्न राजनेताओं को जमानत के वक्त भी पूछा जाता है ? और संजय दत्त को तो उसकी बहन के प्रसव काल में मदद के लिए भी जमानत दे दी जाती है | संसारचन्द्र  गंभीर बीमारियों से जूझता हुआ मर जाता है लेकिन उसे इलाज के लिए  जमानत नहीं दी जाती |इसी तरह एक साध्वी गंभीर बीमारियों से जूझ रही है परन्तु जमानत नहीं मिली |  अक्षरधाम के अभियुक्तों को सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए मुक्त किया है कि निर्दोष लोगों को फंसाया गया है किन्तु  इस बीच लगभग अनुचित रूप से भुगती गयी जेल यातनाओं के लिए उन्हें कोई मुआवजा नहीं दिया गया है | आपराधिक मामलों में किसी को दोषी तभी ठहराया जाता है जब वह तर्कसंगत संदेह से परे दोषी  पाया गया हो|  तर्क संगत संदेह से परे दोषी  पाए जाने और  निर्दोष को फंसाए जाने में जमीन  आसमान का अंतर होता है और इसे महज मत  का अंतर ( Difference of opinion ) कहना सही नहीं   होगा और न ही इसे कोई मानवीय भूल के आवरण से ढका जा सकता | इस प्रकरण में  आपराधिक न्यायालय और गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को किस आधार पर सही ठहराया जा सकता है  व माना जा सकता है कि वे स्वतंत्र और निष्पक्ष हैं | कुछ विद्वान् यह भी  कह सकते हैं कि अक्षरधाम के अभियुक्तों ने मुआवजा की  मांग नहीं की थी किन्तु सुप्रीम कोर्ट तो पूर्ण न्याय करने के लिए कोई भी राहत स्वीकार कर सकता है और कई मामलों में बिना मांगी राहतें भी दी हैं | वैसे याची अपनी याचिका में परम्परा के तौर पर यह निवेदन भी करते हैं | इस प्रकरण में भी जिन अभियुक्तों ने अपील नहीं की  थी उनको भी दोषमुक्त किया है | सुप्रीम कोर्ट भी मांगी गयी सभी राहतें स्वीकार नहीं करता तो फिर बिना मांगे राहत भी तो दी जा सकती है | दूसरी परंपरा यह है कि  ज्यादा राहत माँगने पर सम्पूर्ण याचिका को भी खारिज कर दिया जाता  है इसलिए इस अंदेशे से बचने के लिए पक्षकार ज्यादा राहतें माँगते भी नहीं हैं |
यदि ऐसा मानवीय भूल के कारण हो तो फिर आम नागरिक के पक्ष में और प्रभावशाली लोगों के हित के विरुद्ध ऐसी भूलें कभी क्यों नहीं होती | यदि मानवीय भूल क्षम्य हो तो फिर चिकित्सकीय लापरवाही के लिए भी दंड और मुआवजा क्यों दिया जाता है | अक्सर न्यायाधीशों के अनुचित फैसलों  का यह कहकर बचाव किया जाता है कि अपील में उन्हें सुधारा जा सकता है और यही बात दोहराते हुए यदि अपीलीय न्यायालय अनुचित फैसला दे दे तो फिर न्याय किस स्तर और मंच पर मिलेगा | और यदि यही बात एक चिकित्सक कहे कि उसके द्वारा हुई मानवीय भूल को किसी अन्य चिकित्सक से इलाज करवाकर सुधारा जा सकता था तो फिर क्या इसे न्यायालय स्वीकार कर लेंगे |
हाल ही में पीके फिल्म पर रोक लगाने से इन्कार करते हुए भी कहा गया कि रोक लगाने से जो व्यक्ति इसे देखना चाहते हैं उनके अधिकार प्रभावित होंगे इसलिए रोक नहीं लगाई जा सकती | किन्तु यही तर्क फिर पोर्न फिल्मों और वेबसाइटों के विषय में भी तो लिया जा सकता है |राजस्थान सरकार ने एक सुनियोजित कूटनीतिक चाल के तहत पंचायत राज अधिनियम में एक अध्यादेश के जरिये संशोधन करके अशिक्षित लोगों को चुनाव लड़ने से रोक दिया जिसके विरुद्ध अनुच्छेद 32 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी | अनुच्छेद 32 में याचिका दायर करना संविधान में मूल अधिकार बताया गया  है किन्तु सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को वापिस कर दिया और उच्च न्यायालय जाने को कहा जबकि उच्च न्यायालय के लिए अनुच्छेद   226 में याचिका स्वीकारना विवेकाधिकार माना जता है | यह समझ से बाहर है कि जब अनुच्छेद 32 में याचिका दायर करना मूल अधिकार  है तो फिर सुप्रीम कोर्ट इससे मना कैसे कर सकता है | 
आपराधिक मामलों में जमानत देने की  शक्ति निचले स्तर के न्यायालयों , सत्र न्यायालयों और उच्च न्यायलयों में निहित  है किन्तु तसलीमा नसरीन ने  जमानत के लिए सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दयार की  और सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दे डाली  और उसे यह कभी नहीं कहा गया कि वह पहले निचली सीढियां पार करके इस स्तर तक पहुंचे | दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका स्वास्थ्य सेवाओं के नियमन , सुधार और डॉक्टरों की  कमीशन खोरी रोकने के लिए दायर की गयी किन्तु दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि   इस सम्बन्ध में सरकारी मशीनरी है इसलिए उनके पास जाएँ | प्रश्न यह है कि दिखावट  के तौर पर सरकारी मशीनरी तो लगभग हर मामले के लिए है और उसे उनके अधिनस्थों  कि कार्यशैली का ज्ञान होता है व होना चाहिए किन्तु वे  कोई निराकरण नहीं करते |  यदि सरकारी मशीनरी ही निराकण कर दे तो रिट याचिकाएं दायर ही क्यों होंगी जबकि उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट के लगभग 75% मामलों में सरकारें ही पक्षकार  होती हैं |
बिहार में भागलपुर में पीठासीन सत्र न्यायाधीश पर पुलिसवालों ने व्यक्तिगत हमला कर दिया जिसके लिए अवमान का मामला दर्ज कर उन्हें 2 माह के भीतर ही सजा सुना दी गयी किन्तु अरुण शोरी द्वारा दिनांक  13.8.90 को इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित सम्पादकीय के विरुद्ध दायर अवमान याचिका पर आखिर  24 वर्ष बाद  निर्णय देकर अभियुक्त को मुक्त किया गया है |जबकि न्यायाधीशों को यह मानना था कि यह प्रकाशन न्यायपालिका की  अस्मिता पर आक्रमण है | कारण चाहे कुछ भी रहे हों किन्तु जनता के मन में न्यापालिका के प्रति संदेह होना स्वाभाविक है कि इतने विलम्ब के पीछे क्या छिपे हुए उद्देश्य रहे होंगे | जहाँ अनुकूल बेंच का इंतज़ार भारत   में सामान्य बात मानी  जाती है  वहीँ न्यापालिका भी किसी के विरुद्ध अवमान का मामला लम्बे समय तक विचाराधीन रखते हुए उसे भयभीत रख सकती है और आगे भविष्य में न्यायपालिका के विरुद्ध कुछ भी विचार प्रकट रखने से रोक सकती है क्योंकि उसके सर पर तलवार लटकी हुई है इस प्रकार विलम्ब करके  एक दूसरे को ब्लैकमेल करके दोनों लाभ उठा सकते हैं |अहमदाबाद के मजिस्ट्रेट ब्रह्मभट्ट  पर आरोप था कि उसने चालीस हजार रूपये लेकर 4 प्रमुख व्यक्तियों के नाम वारंट जारी किये  किन्तु  एक सप्ताह में रिपोर्ट मिलने  के बावजूद मामला में सुप्रीम कोर्ट में 10 साल से विचाराधीन है | मेरे स्वतंत्र  मत में, अपवादों को छोड़कर ,सभी  स्तर के  भारतीय न्यायाधीश न तो विद्वान हैं और न ही भले हैं |
भारत में न्याय के ये तो कुछ नमूने मात्र हैं , असली कहानी तो न्यायार्थी बेहतर जानते हैं |

Mani Ram Sharma

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शर्म जो इनको आती नहीं ..!!
« Reply #116 on: January 21, 2015, 09:40:33 AM »
हमारे सांसदों को मुफ्त का आवास, नौकर चाकर, दो दो सेक्रटरी , बिजली,पानी,  फोन , वाहन भत्ता  आदि लाखों रूपये प्रतिमाह की सुविधाएं जनता के खून पसीने की   कमाई से मिलते हैं | मुफ्त का आवास सुलभ न हो तो पांच सितारा होटलों  में ठहरते हैं और वहां क्या क्या करते हैं यह भी जनता जानती है | सांसद कोटे भी आय का अच्छा  और नया स्त्रोत है | प्रश्न पूछने और न पूछने ( चुप रहने ) के लिए भी धन मिल जाता  है | फिर भी   देश के सांसदों का प्रतिमाह वेतन, वर्ष जो 2005 तक 4000 रूपये था, को दिनांक 12.09.2006 से 16000  और शीघ्र ही दिनांक 18.05.09 से बढाकर 50000 रूपये कर दिया गया है!
बैंक कर्मचारियों का वेतन समझौता दिनांक 01.11. 12 से बकाया है | तात्कालीन वित्त मंत्री  चिदंबरम ( जिन्हें छोटे बचे आडम्बरम  कहते हैं) ने कहा कि क्या सारा मुनाफा कर्मचारियों को ही दे दें | मान्यवर जो अन्य कर्मचारी कोई   मुनाफा नहीं कमाते फिर उनको क्या और क्यों  देते हो !पुलिस के मामलों में सिर्फ 2% में ही सजा होती है फिर उनके बारे में क्या कहना चाहेंगे ?अब सरकार का कहना है कि 5 साल के बाद  10% वेतन बढवा लो | आपने तो 4 साल में ही अपना वेतन 1200% बढ़ा लिया तब ये सारे प्रश्न कहाँ   चले गए और आप लोग जो 67  साल से काम कर रहे हो उसे भी जनता देख रही है | क्या बैंक कर्मचारी आप एमपी (  एक अर्थ  मलेरिया पैरासाइट भी होता है)  को देने के लिए लाभ कमा करके दें ? बैंक लाभ कहाँ से   कमाएंगे जब आप अदानी जैसे लोगों को ऋण दिलवाते हो  और सस्ती लोकप्रियता और  राजनैतिक लक्ष्यों की  पूर्ति के लिए ऋण दिलवाते हैं | बिना जमा के खाते खुलवाते हैं  और खातों में सिर्फ 300  रुपये महिना गैस सब्सिडी जमा हो व उसे ग्राहक तुरंत निकाल ले | बदले में आप लागत का आधा भी पूर्ति नहीं करते | देश में मात्र 3% आयकर देने वाले हैं  -तब बैंक में जमा करवाने की  हैसियत कितने लोगों की है |
सब्सिडी जब सिलिंडर की  कीमत में से सीधे घटाकर मिल रही थी तब क्या परेशानी थी | रहा सवाल फर्जी का तो जो लोग आपके सानिद्य में फर्जी सिलिंडर लेते हैं,  वे फर्जी और कई खाते भी खुलवा लेंगे | माननीय   जन प्रतिनिधियों के घरों पर ही 15-20  सिलिंडर एक साथ मिल जाते हैं| आधार  में आंकड़ों की  सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है और वह भी आसानी से बनते नहीं | लोग 3-4 चक्कर लगा चुके हैं लेकिन पूरा दिन खराब करने और ऑटो के पैसे खर्च करने के बावजूद भीड़ के कारण आधार कार्ड नहीं बनवा पाये हैं | फिर डीबीटीएल योजना तो  दीर्घकाल में जनता के साथ एक छलावा साबित होगी | अभी यदि आप सब्सिडी बंद कर देंगे तो बवाल उठ जाएगा इसलिए इसे धीरे धीरे कम करके बंद कर सकते हैं | एक दिन कह देंगे कि हमारे पास  बजट नहीं सब्सिडी के लिए जबकि निजी विमानन कंपनियों को उधार देने के लिए आपके पास काफी महँगा इंधन भी है  |

Mani Ram Sharma

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जिस व्यक्ति का भारत के न्यायालयों से कोई वास्ता नहीं पडा हो उनके लिए वे बहुत सम्मानजनक स्थान रखते हैं | मेरे मन में भी कुछ ऐसा ही भ्रम था किन्तु लगभग 20 आपराधिक और सिविल मामले सरकारी अधिकारियों और प्रभावशाली लोगों के विरूद्ध देश के विभिन्न स्तर के न्यायालयों में दायर करने के बाद मेरा यह भ्रम टूट गया | इनमें से ज्यादातर का प्रारम्भिक स्तर पर ही असामयिक अंत कर दिया गया ...न्याय एक में भी नहीं मिला | सरकारी पक्ष के विषय में न्यायालयों की यह अवधारणा पायी गयी कि  वह ठीक होता है |

एक रोचक मामला इस प्रकार है | राज्य परिवहन की बस में एक बार यात्रा कर रहा था जिसमें 36 सवारियां बेटिकट थी अचानक चेकिंग आई, गाडी रुकवाकर निरीक्षण किया गया | चेकिंग दल ने सिर्फ 18 सवारियां बेटिकट का रिमार्क दिया |  कंडक्टर और ड्राईवर गाड़ी को लेकर आगे बढे | अब कंडक्टर को आगे चेकिंग का कोई भय नहीं  था इसलिए रास्ते में एक भी सवारी को टिकट नहीं दी |   दो दिनों तक वह बिना व्यवधान के चलता रहा | आखिर मेरी शिकायत और सूचनार्थ आवेदन पहुँचने के बाद उसे निलम्बित किया गया | बेटिकट यात्रा करवाने के मामले में मैंने सम्बंधित मजिस्ट्रेट के यहाँ शिकायत भेजी और उसके समर्थन में मेरा व मेरे एक सह यात्री का शपथ –पत्र भी प्रस्तुत किया | दंड प्रक्रिया संहिता में यह प्रावधान है कि किसी लोक सेवक पर आरोप लगाए जाए तो उसके लिए शपथ पत्र दिया जा सकता है ताकि उसके चरित्र के बारे में खुली चर्चा न हो |  ठीक इसी प्रकार दंड प्रक्रिया  संहिता के अनुसार मजिस्ट्रेट  से मौखिक शिकायत  भी की  जा सकती है और  किसी गुमनाम अपराधी के विषय में भी शिकायत की जा सकती है क्योंकि  संज्ञान अपराध का लिया जाता है न कि शिकायतकर्ता या अपराधी का | जबकि मजिस्ट्रेट  पक्षकारों को तंग परेशान और हैरान करने के लिए जहां मौखिक का प्रावधान हो वहां लिखित और जहां लिखित का प्रावधान हो वहां मौखिक पर जोर देकर अपनी शक्ति का बेजा प्रदर्शन करते हैं | न्यायालयों में मंत्रालयिक स्तर पर भ्रष्टाचार को वे जानते हैं और उनको जानना चाहिए किन्तु फिर भी सब यथावत चलता है | भारत में तो न्यायालय के मंत्रालयिक कर्मचारियों के लिए तारीख पेशी देना, जैसा कि रजिस्ट्रार जनरलों की एक मीटिंग में कहा गया था, एक आकर्षक धंधा है और इससे न्यायालयों की बहुत बदनामी हो रही है|
किन्तु  मजिस्ट्रेट ने न केवल मेरी  शिकायत को इस आधार पर निरस्त कर दिया कि वहां उपस्थित होकर बयान नहीं दिए और अपराधी का नाम नहीं था  बल्कि मुझ पर खर्चा ( अर्थदंड)  भी लगा दिया गया | निचले न्यायालयों की  शक्तियां सम्बंधित कानून के अनुसार ही होती हैं और दंड प्रक्रिया संहिता में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है कि एक शिकायतकर्ता पर खर्चा लगाया जा सके | मामले में  सत्र न्यायालय, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में भी याचिकाएं क्रमश: दायर की गयी किन्तु कहीं से कोई राहत नहीं मिली | अब मामला पुन: मजिस्ट्रेट के पास खर्चे की  वसूली के लिए आ गया और मुझे नोटिस जारी किया गया | मैंने मजिस्ट्रेट न्यायालय को निवेदन किया कि  इस न्यायालय को अर्थदंड लगाने का कोई  अधिकार ही नहीं है  तब जाकर  कार्यवाही रोकी गयी  किन्तु फिर भी परिवहन निगम के दोषी कार्मिकों पर कोई  कार्यवाही नहीं की गयी |

क्या कोई विधिवेता बता सकता है कि देश में कैसा कानून और न्याय है , किस स्तर के न्यायाधीशों को कानून का कोई ज्ञान है ...?  अब जनता कानून की मदद कैसे, कब और क्यों कर सकती है ..? ऐसे लगता है देश के न्यायालय जनता की  सेवा के लिए नहीं अपितु पीड़ित पक्षों का और उत्पीडन के लिए बनाए गए नयी तकनीक के यातना गृह हैं |

Mani Ram Sharma

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वैसे तो  अब केजरीवाल की  कई महिमा गाथाएं मीडिया में उपलब्ध हैं और वे अपने आपको आम आदमी बता रहे हैं | केजरीवाल ने सूचना  कानून आने के बाद  सक्रियता दिखाई और कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों – फिल्म स्टारों , क्रिकेटरों  आदि के सानिद्य में कई सभाएं की  और भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़े नजर आये | इच्छुक व  संभावित भागीदार व्यक्तियों  को डाक द्वारा और फोन से भी आमंत्रण भेजे गए थे |  उनके कार्यालय में होने वाली फोन कालों का जवाब भी दिया जाता था | उनके ही एक सहयोगी श्री सोमनाथ भारती ने दिनांक 12.2.12 को मुझे भी अपनी टीम में शामिल होने का निमंत्रण दिया था |  किन्तु मैंने अपनी आशंकाएं व्यक्त की – “Though I have no hesitation to join a team with real Cause. But I see there is no organisation in India which has dealt ANY PROBLEM from grass root level. Most of the organisations (backed by this or that party) are prestige hungry and hardly do any social work except exhibitive nature superfluous jobs. If any organisation would have bailed out India from the problem, the legislatures are the best organisations even elected by people. If associations of elected representatives in India can't make any dent it can't be believed that any organisation on Bharatbhumi may do conceptual work of sustainable nature.”

किन्तु  गत बार मुख्य मंत्री बन जाने के बाद घंटों तक इंतज़ार के बावजूद उनसे विमर्श नहीं हो सका | मेरे  एक दिल्ली निवासी मित्र ने भी पुलिस, प्रशासन और न्याय व्यवस्था में सुधार के लिए कई  बार उनसे संपर्क का प्रयास किया |   किन्तु वे सभी निरर्थक रहे | अब  वे कितने आम हैं और जनता के दुखदर्द में कितने भागीदार होंगे , भविष्य के गर्भ में है | भारतीय जनता पार्टी को  हराना कोई बड़ी बात नहीं है | राजनारायण ने भी इंदिरा गाँधी को टक्कर  दी थी किन्तु उनका सृजनात्मक  योगदान क्या रहा  |

राजनेता चुनाव में पैसा इस लिए खर्च करते  हैं, क्योंकि इन्हे जनप्रतिनिधि बनना है, विधान सभा, लोकसभा या स्थानीय निकायों में जनप्रतिनिधि बनकर इनका कहना है, कि  ये जनता की सेवा करेंगे, बिना जनप्रतिनिधि बने ये कोई सेवा नही कर सकते, क्योंकि सेवा करना इनकी आदत में नही है, कभी आम जनता के प्रश्न  पर आंदोलन करते हुए नही देखे गये, मुहल्ले में लोगों के भले में काम करते हुए नही देखे गये, मज़दूर और किसान की बात चुनाव के दौरान ही करते देखे जा रहे हैं, वरना निजी ज़िंदगी मज़दूरों से नफ़रत करते हुए गुज़री है, किसानों को जाहिल गँवार कहते हुए इनके मुँह से अक्सर सुना जाता है, ऐसे कितने ही प्रत्याशी हैं, जो निजी स्वार्थ के लिए, अपने काले धंधे छुपाने और सरकारी अधिकारियों पर धौंस जमाने के लिए चुनाव लड़ते हैं, एक बार चुनाव लड़ने के बाद नेता होने का लेबल इनके नाम के साथ जुड़ जाता है, जीतें या हारें, लेकिन फिर वो गैर क़ानूनी धंधे धड़ल्ले से कर सकते हैं, क्योंकि प्रशासन इनसे ख़ौफ़ खाएगा, मुहल्ले के गुंडे इनके दोस्त बन जाएँगे| तमाम नाजायज़ कार्य करने की इनको छूट मिल जाएगी, ऐसी है चुनाव लड़ने के पीछे मानसिकता, तमाम घाघ किस्म के लोग राजनीति को कितना भ्रष्ट और गंदा करेंगे, कुछ कहा नही जा सकता."

Mani Ram Sharma

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केजरीवाल जी आपने  जनता को काफी कुछ मुफ्त में देने और भ्रष्टाचारमुक्त शासन देने का वादा  किया है | लोकपाल कानून तो आपके दायरे में ही नहीं है और  इस कानून से भी जनता का कितना  भला हो सकता है मैं नहीं जानता किन्तु यह अवश्य जानता हूँ कि राजस्थान में लोकायुक्त कानून 40 से अधिक वर्षों से बना हुआ है और वहां कितना भ्रष्टाचार है  आप जानते ही होंगे | कानून तो जनता को भ्रमित करने के लिए बुना जाने वाला वह मकडजाल है जिसमें जनता को मछली की तरह फंसाया जा सके | दिल्ली सरकार तो एक स्थानीय निकाय से अधिक कुछ भी नहीं  है  जिसके पास बिजली, पानी , सफाई, परिवहन आदि मुद्दे ही हैं  और वे भी केंद्र सरकार के रहमोकरम   पर निर्भर  है | उसके पास न न्यायालय है न पुलिस .. फिर भ्रष्टाचारियों को कौन पकड़ेगा  ..कौन दंड देगा ..   फिर ...आपके पास तो वही सरकारी मशीनरी –उपकरण हैं जो आज तक थे | पूर्व में  जो मुख्य सचिव आपको मिले थे वे  शीला दीक्षित सरकार में स्कूलों में  कंप्यूटर घोटाले में मुख्य भूमिका निभाने वालों में से एक थे | क्या आप  कोई अधिकारी विदेशों से आयात करेंगे ? स्मरण रहे जंग खाए हुए और  भोंथरे औजारों से युद्ध नहीं जीता जा सकता | जनता के लिए सबसे बड़ा सरदर्द दिल्ली पुलिस ही है जिसमें 100  तो बलात्कार के आरोपी कार्यरत हैं | पुलिस और प्रशासनिक पद तो सरकारों में लगभग नीलाम होते हैं जो ऊँची बोली लगाने वाले को मिलते हैं | आपके पास अपना स्वतंत्र कौनसा तंत्र है ? आपके सदस्यों में भी एक तिहाई दागी हैं | जिस समुदाय विशेष का आपको समर्थन मिला है, आंकड़े बताते हैं कि वे भी  आम भारतीय से 24% अधिक अपराधी हैं | आपकी पार्टी पर यह भी आरोप है कि उत्तराखंड के बाढ़ पीड़ित लोगों के लिए इकठा किया गया चन्दा भी आपने उनको नहीं दिया है |  शीला दीक्षित के घोटालों की फाइलें आपके पास काफी लम्बे अरसे से हैं किन्तु आपने उन पर कोई कार्यवाही नहीं की –शायद  अब राजनीतिक लाभ मिल सके | आपने पहले गडकरी पर आरोप लगाए औए बाद में उनसे माफ़ी मांगी |
जनता पर आपको कर लगाने के बहुत ही सीमित अधिकार हैं | पिछलीबार  जब हाई कोर्ट की  फीस बढाई गयी थी उसे भी दिल्ली सरकार के दायरे से बाहर मानकर उसे निरस्त कर दिया था | अब नए वर्ष से जीएसटी  लागू हो रहा है –केंद्र का सिकंजा कसेगा , राज्यों की मुश्किलें और बढ़ जायेंगी | इस वर्ष व्यापार और उद्योग लगभग ठप हैं, कर संग्रहण  मात्र  आधा ही हो  पाया है | ऐसी स्थिति में राज्य  कर और केंद्र से मिलने वाली राशि में कटौती ही होगी फिर आपके इन वादों का क्या होगा | जनता आपके  इन लुभावने भाषणों को कितने दिनों तक सुनेगी ? जनता को भाषण नहीं राशन चाहिए अब तक तो आपको भी पता लग गया होगा | जहां तक  केंद्र से सहयोग मिलने का प्रश्न है सो शीला दीक्षित भी केंद्र  को कोसती रहती थी जबकि केंद्र में उनकी ही पार्टी का शासन था | केंद्र में अब तो आपका कोई विशेष हस्तक्षेप भी नहीं है |
आम नागरिक इस देश में स्वभावतः बेईमान नहीं है और उनको बेईमान बनाने का श्रेय भी राजनेताओं को ही जाता है | एक भूखे द्वारा अपने पेट की  भूख मिटाने और ऐश के लिए चोरी करने में अंतर होता है | मेरा अनुभव है कि वर्षा व फसल अच्छी   होने पर खेत  में रास्ते पर  पड़े फलों को भी यहाँ कोई नहीं उठाता है | वैसे भी 20000 रुपये महीना या अधिक कमाने वाले इस देश में मात्र 3% लोग ही हैं और उनमें से भी 70% तो संगठित क्षेत्र के कर्मचारी हैं | देश की 70% जनसंख्या सब्सिडी से मिलने वाले अन्न से अपना पेट भरती है | इस क्षुद्र राजनीति के परिवेश में में आप क्या कुछ  कर पाएंगे?  न्यायाधीश जगमोहन लाला सिन्हा जब इंदिराजी के विरुद्ध निर्णय देने वाले थे तो उनकी जान को भी ख़तरा था और मजबूरन  निर्णय उनको स्वयं ही टाइप करना पडा था | इंदिरा सरकार को नसबंदी ले डूबी और मोरारजी को नशाबंदी |   एक शराब निर्माता ने 6 करोड़ रूपये खर्च करके मोराजी सरकार गिरा दी थी और चरणसिंह जी प्रधान मंत्री बने थे  किन्तु वे तो जांच आयोग  और कमिटी की फाइलों में ही उलझकर रह गए , कभी संसद के दर्शन भी नहीं कर पाए और वे सारी जांचें भी धरी रह गयी थी

 

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