Uttarakhand Updates > Articles By Esteemed Guests of Uttarakhand - विशेष आमंत्रित अतिथियों के लेख

Articles by Mani Ram Sharma -मनी राम शर्मा जी के लेख

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Mani Ram Sharma:
जिस भ्रष्ट  राजनीति की लम्बी लम्बी बातें आदरणीय मोदीजी कर रहे हैं उसका आगाज दिल्ली के रामलीला मैदान में आप ने किया था और उसी मंच पर भारत के लगभग सभी राजनैतिक दल भाजपा सहित , यूपीए को छोड़कर , शामिल रहे हैं | मोदीजी एक अच्छे  वक्ता और धुरंधर राजनेता हैं जिन्हें जोड़तोड़  की राजनीति का अच्छा  ज्ञान है  यह ओवैसी, शिव सेना और राकपा  ने साबित कर भी दिया है | किन्तु जनता इन भाषणों को आखिर कितने समय  तक सुनने का संयम रख पाएगी | मोदीजी अच्छे राजनेता हैं किन्तु बुरे प्रशासक हैं | टाटा  स्टील के अध्यक्ष पद से  रुसी मोदी  को हटाकर जब इरानी को अध्यक्ष बनाया गया था तब उन्होंने कहा था कि  इरानी अच्छा स्टील तो बनाना जानते हैं किन्तु  अच्छे  आदमी नहीं | मोदीजी का भी हाल कुछ ऐसा ही है | बेशक राजनैतिक समीकरणों के वे अच्छे ज्ञाता हैं किन्तु  धरातल स्तर  पर एक भी सुधार   का कार्य उन्होंने नहीं किया है |
प्रधान मंत्री जी के संवाद कौशल की राजनीति के अन्त की अब शुरुआत है, अगर उनके पिछले इतिहास पर गौर की जाए तो उन्होंने आजतक जिस सीढ़ी के डंडे पर पैर रखकर ऊपर गये वहां पहुंचते  ही सबसे पहला कार्य पिछली सीढ़ी को तोडने का करते हैं।गुजरात में विश्व हिंदू परिषद और गुजरात भाजपा, फिर राजनाथ पर पैर रखकर आडवाणी, जोशी, सुषमा, जेटली, फिर मीडिया, सोशल मीडिया सहयोगी पार्टियों पर पैर रखकर पी एम की कुर्सी पर पहुंचे, पहुंचते ही राजनाथ का हश्र, शिव सेना की गत, जुकरबर्ग से मुलाकात, और समाज में लगातार गिरता मीडिया का स्तर और उसपर से जनता का उठता विश्वास, टीवी 18 की खरीदारी आदि ये साबित करने के लिए काफी है कि  ये शाहजहाँ जिन हाथों से ताजमहल बनवाते है उन्हें दूसरा ताजमहल बनाने लायक नहीं छोडते| 2019 तक टॉम  एन जैरी की जगह बच्चे न्यूज चैनल देखने की जिद करने लगे तो कोई अचरज की बात नहीं होगी|

 उनके विचारों में राजनीति की अप्रिय बू आती  है जो जन संवाद की  बजाय व्यक्तिगत संपर्क रखने और उसके माध्यम से अपना जनाधार या पंथ प्रसार पर बल देते हैं कि लोगों को काम करवाना हो तो पार्टी से संपर्क रखें, उसके सदस्य बने | वे पार्टी के ज्यादा और जनता के कम प्रतिनिधि  हैं| नाम तो हिन्दुत्व का लेते हैं और हाथ  अवैसी से मिलाते हैं जो कहते हैं  कि 15   मिनट   के लिए पुलिस हटा ली  जाए  तो 100  करोड़ हिन्दुओं को साफ़ कर देंगे | प्रचंड बहुमत मिलना भी इस बात का कोई निश्चायक  प्रमाण नहीं है कि वह व्यक्ति जन प्रिय, संवेदनशील है तथा तानाशाह नहीं है | इस तथ्य का मूल्यांकन एक बार इंदिरा गांधी के चरित्र   के परिपेक्ष्य में करके देखें| मोदीजी भी इंदिराजी  का एक हिन्दू संस्करण हैं |

दवा की कीमतों और रेल भाड़े में वृद्धि तथा श्रम कानूनों में हाल के संशोधनों से आने वाले अच्छे  दिनों को झलक मिलती है | जो व्यक्ति लिखे हुए आवेदन को पढ़कर कोई समुचित कार्यवाही नहीं कर सकता  विश्वास नहीं होता की वह व्यक्तिगत मिलने पर कोई हल निकालेगा|

Mani Ram Sharma:
भाजपा सुशासन  का दावा करते समय यह कहती है कि  60  वर्षों से  देश  के हालत बिगड़ते गए हैं जबकि  भाजपा तो स्वयम रामराज्य करने का  दावा करती है  और अभी कांग्रेस को लगातार मात्र 10 साल हुए हैं |इससे पहले तो स्वयं भाजपा 5  साल शासन कर चुकी है  | इस अवधि में इन्होंने कौनसा  टिकाऊ  या मौलिक सुधार किया ? या यदि इन्होंने  कोई ऐसा सुधार किया जो 10 साल भी नहीं टिक सका तो फिर ऐसे सुधार को   क्या कोरी सस्ती लोकप्रियता की लिए कदम नहीं कहा जाए |  गत चुनाव में दिल्ली में शत प्रतिशत सीटें जीतने वाली पार्टी विधान सभा चुनावों  में क्या इसे बरकरार रख पाएगी ?  यदि अभी संसद के लिए पुन: मतदान तो भाजपा 10%  से अधिक सीटें खो देगी |यदि भाजपा अपने 5  साल के शासन में कुछ नहीं सुधर सकी तो कांग्रेस को 10 साल के शासन के लिए ज्यादा दोष नहीं दिया जा सकता |
 
मोदीजी जैसे व्यक्ति का जीतना उनके लिए सौभाग्य और जनता के लिए दुर्भाग्य की  बात है क्योंकि देश की राजनीति में कोई विकल्प नहीं है और न ही कोई विकल्प पनपने दिया गया | जिस प्रकार पूर्व देश में ( जहां कोई वृक्ष नहीं होता ) वहां एरंड ही वृक्ष कहलाता है | देश की राजनीति तो एक दलदल है जो इसमें से निकालने के लिए जितना   जोर लगाएगा उतना ही अंदर धंसता जाएगा| ये  वही मोदीजी हैं जो सत्ता में आने से पहले शेर की तरह दहाड़ते थे और शशि थरूर की बीबी को करोड़ों  की बीबी बताते थे |
देश में लगभग 70प्रतिशत  लोग गरीब हैं 10प्रतिशत  धनी  और 20प्रतिशत  मध्य वर्गीय हैं | ऊपरी उद्योगपतियों को सरकारी अनुदान दिया जाता है और निचले लोगों को भी अनुदान किन्तु मध्यम वर्ग  को कोई लाभ उपलब्ध नहीं हैं है| गुजरात में 40प्रतिशत  शहरी और  व्यापारी हैं जिनका उन्हें समर्थन प्राप्त  है |  आदर्श  ग्राम योजना भी एक छलावा मात्र है  | एक सांसद के क्षेत्र  में लगभग एक हजार गाँव हैं  तो इतने गाँवों के विकास में कितनी पीढियां लगेंगी , अनुमान लगाया जा सकता है | स्वच्छ   भारत अभियान भी इसी कड़ी  का एक हिस्सा है और प्रशासन की विफलता का द्योतक है कि  वे नगर निकायों से काम नहीं  ले सकते | दूसरी पार्टियों या राजनेताओं  पर आरोप लगाने से भी भाजपा उज्जवल  नहीं हो  जाती है बल्कि यह तो इस बात की  पुष्टि है कि  हम भी  उन जैसे  ही हैं जबकि अलग  चाल ,चरित्र और चेहरे   का दावा खोखला है |
केंद्र सरकार के सचिवालयों में आज भी बात करें कि मोदीजी ने यह कहा है तो वे निर्भय होकर कहते हैं हम तो यों ही काम करेंगे आप मोदीजी से शिकायत कर  दें या उनसे काम करवा लें|भारत में  प्रधान मंत्री   का तो पद खाली है  और दो विदेश मंत्री कार्यरत   हैं | पी एम ओ ( प्रधान मंत्री कार्यालय )  पहले भी पोस्टमैन   का कार्यालय था और अब भी यही है | जनता से प्राप्त शिकायतों को सम्बंधित मंत्रालय को डाकिये की भांति आगे भेज दिया  जाता है और उस पर इस बात कोई निगरानी नहीं रखी जाती कि उसका समय पर व  समुचित निपटान हो रहा है |  दिन में 20 घंट  काम तो मोदीजी अवश्य करते होंगे किन्तु इस अवधि में राजनैतिक जोड़तोड़  पर चिंतन ही करते हैं और राकापा, शिव सेना, ओवैसी  आदि के साथ अपवित्र गठबंधन करने में अपना समय और ऊर्जा लगाते हैं  किन्तु जन हित चिंतन उनके  स्वभाव  का  अंग नहीं है |जो अम्बानी से हाथ मिलाएगा वह विकास तो अम्बानी का ही करेगा आम जनता का  नहीं |अम्बानी तो व्यापारी हैं पहले इनके  पिता तात्कालीन वित्त  मंत्री  प्रणब मुखर्जी के ख़ास थे,  फिर मुलायम के और अब मोदी के|  ये पैसे  के अतिरिक्त किसके  ख़ास हो सकते  हैं|  यदि चाय बेचने वाला कोई प्रधान मंत्री बन जाये तो उससे विकास तो उसका ही हुआ है न कि  देश का | रेलवे  स्टेशन पर खुम्चे वाले आज कई बड़े धनपति बने बैठे हैं –इससे  क्या फर्क पड़ता है आम जनता की नियती तो वही रहती है |  हवाई जहाज में उड़ने और डिज़ाइनर कपड़ों के लिए लोग पहले रिक्शे में चलते हैं |

Mani Ram Sharma:
मतदान  का प्रश्न  उठायें तो देश में लगभग 60प्रतिशत  मतदान होता है और मोदीजी की सरकार को 25प्रतिशत  से अधिक मत नहीं मिले हैं अर्थात वे 75प्रतिशत  लोगों को पसंद नहीं हैं |यह तो इस देश का मतदान ढांचा ही ऐसा है कि  अप्रिय लोग भी सत्ता पर काबिज हो जाते हैं | न्यायाधिपति काटजू ने कहा था कि  देश की 90प्रतिशत   जनता नासमझ है | विकल्प के अभाव में वह विवश भी है क्योंकि इस प्रशासनिक ढांचे और संविधान के अंतर्गत कोई उपचार उपलब्ध नहीं हैं | अरुणा राय, अरुंधती, मेधा पाटकर, अन्ना , केजरीवाल , बाबा रामदेव , किरण बेदी आदि  कई लोगों ने प्रयास करके देख लिए हैं लेकिन शायद सफलता अभी भी कोसों दूर है |देश   की राजनीति   तो  एक चूहेदानी   हैं जिसमें चुपड़ी रोटी लगाकर चूहों को पकड़ा जाता है |

भारत की राजनीति में भाग लेना सबसे बड़ा  अधर्म  और चुनाव लड़ना नरक का टिकट बुक करवाना है  |मुझे मोदीजी या अन्य किसी भी पार्टी से न तो लगाव है न पूर्वाग्रह क्योंकि मैं गैर राजनैतिक व्यक्ति हूँ तथा अन्य पार्टियों की पूर्ववर्ती सरकारों की कमियों की ओर  भी समान रूप से ध्यान  आकर्षित करने का प्रयास करता रहा हूँ | देश की  विकलांग न्याय  व  शासन व्यवस्था का जब  तक पूरी तरह से सत्यानाश  नहीं हो  जाता तब तक कोई क्रांति भी  नहीं होगी | यह कार्य हमने  आदरणीय  के हाथों  में सौंप दिया है और शायद वे यह कार्य अपने शासन काल   में अवश्य पूरा करके गुजरात के समान ही एक पूर्ण तानाशाही स्थापित कर देंगे| किन्तु  सुधार तो तब तक नहीं होगा जब तक आम नागरिक ऐसी चर्चा में सक्रीय भागीदार नहीं बन जाता और यह अभ्यास कम से कम 20 वर्ष और लेगा| फिर भी  जनता को  निराशवादी नहीं होना चाहिए और न ही हवा के झोंके के साथ उड़ने वाला  तिनका –बल्कि वास्तविकता में विश्वास कर रखना चाहिए |
वैसे तो  पारदर्शिता और जनतंत्र के विकास के लिए यह आवश्यक है कि शासन की सफलताएं और विफलताएं दोनों को सार्वजनिक किया जाए किन्तु विफलताओं को सार्वजनिक नहीं किया जाता और सफलताओं पर भी मुल्लम्मा चढ़ाकर पेश किया जता है जिससे जनता के सामने वास्तविक तस्वीर कभी नहीं आ पाती है | सफलताओं के गुणगान तो समर्थक ही काफी कर देते हैं और सत्तासीन लोगों की विफलताओं  का ज्ञान होना आवश्यक है ताकि उनमें सुधार के लिए जमीन तैयार की जा सके | सफलताओं के जिक्र से जनता को कोई लाभ भी नहीं बल्कि सत्तासीन पार्टी को ही लाभ हो सकता है | कार्य तो सत्तासीन ही कर सकते हैं अत: आलोचना भी उसी की होगी  सत्ता से वंचित इस व्यवस्था में न तो कुछ कर सकते और न ही उनकी आलोचना से जनता  को कोई लाभ होना है |यदि आम  नागरिक  गुणगान   में अपनी सीमित ऊर्जा  लगा दे  तो फिर कमियों कि और ध्यान कैसे जाएगा|

जिस व्यक्ति ने अपने वरिष्ठ  साथियों तक को दर किनार कर कर दिया वह आम नागरिक को साथ लेकर कैसे चल सकता है| जिसे  प्रकाश नहीं अन्धेरा पसंद हो  -जन संवाद नहीं  एकाधिकार पसंद हो वह जनता का कोई भला कैसे कर सकता है |  मोदीजी जहां एक और इ-गवर्नेंस  की बातें करते हैं वहीँ  आदरणीय के आने के बाद  उनके कार्यालय के सारे इमेल  आई डी  जनता के लिए बंद कर दिए गए हैं और किसी भी अधिकारी का इमेल आई डी  वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है | शायद  जल्द ही ये अपने सभी विभागों, मंत्रालयों, उपक्रमों और कार्यालयों की इमेल आई डी बंद करदें तो भी आश्चर्य नहीं करना चाहिए|  जनता के लिए मात्र दो वेबसाइट /लिंक दिए गए हैं जिनके लिए सिर्फ 500  अक्षरों की सीमा है और वह भी आप 72  घंटे के बाद ही दूसरा सन्देश भेज सकते हैं |इस प्रकार मोदीजी ने चुनाव जीतते ही आम नागरिक से दूरी बढ़ा ली गयी और सिर्फ उनके व्यक्तिगत संपर्क वाले ही उनसे संपर्क कर सकते हैं और उनको तो विदेश यात्राओं के प्रतिक्षण सचित्र विवरण मिलते रहते हैं| यही मोदीजी के प्रजातंत्र का असली मोडल है |किसी  कार्य में सफलता हमें तभी मिल   सकती है जब उसे पूर्ण मनोयोग – मन, वचन एवं कर्म से किया जाए| किन्तु मोदीजी की इ-गवर्नस  में तो इसका कोई  तालमेल नजर नहीं आता | जब वे लिखे हुए पर ध्यान नहीं दें तो कैसे विश्वास किया जाए कि   वे व्यक्तिगत मिलने पर दुःख दर्द सुनेगें | वैसे उमा भारती  से मिलने गयी मेधा पाटकर को लौटते  समय  पुलिस ने गिरफ्तार  भी कर लिया था|जिस तेज गति से   मोदीजी  की  छवि में सुधार  हुआ है  शायद उससे तेज गति से यह छवि धूमिल   हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं |

Mani Ram Sharma:
देश के कुछ तथाकथित अति बुद्धिमान लोगों का यह भी मत है कि जनता में  सक्रियता नहीं है | मेरा उनसे एक प्रश्न है कि  आम जनता में सक्रियता है या नहीं अलग बात हो सकती है किन्तु जो सक्रीय हैं उनके अधिकाँश आवेदन भी तो किसी न किसी  बनावटी बहाने से रद्दी की  टोकरी की भेंट चढ़ रहे या असामयिक अंत झेल रहे हैं  जो नीतिगत मामला  मंत्री को तय करना चाहिए उसे सचिव  ही निरस्त कर रहे हैं | यदि सचिव  ही नीतिगत मामले  पर  निर्णय लेने हेतु सक्षम हो तो फिर मंत्री  की  क्या भूमिका हो सकती  है|  जनता के सामान्य स्वर को नजर अंदाज किया जाता  है और ऊँचे स्वर को पुलिस की गोली, लात घूंसे और लाठियों से कुचल दिया जता है | यही अंग्रेज करते थे, यही कांग्रेस और यही भाजपा | देश में गरीबी बहुत अधिक है  और   मात्र 3प्रतिशत  लोग ही आयकर दाता है  तथा  70प्रतिशत  लोगों को दो जून  की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है , बेरोजगारी, भ्रष्टाचार  और महंगाई सुरसा की तरह मुंह बाए  खड़े है | ऎसी  स्थिति में आंम  नागरिक क्या करेगा ? जनता की  सक्रियता में और क्या होना चाहिए या क्या कमी है यह कोई बता सकता है क्या?  जब जन प्रतिनिधियों को जनता की आवाज उठाने के लिए चुनकर भेज दिया गया तो जनता की बात को अपना स्वर देना उनका कर्तव्य है |  यदि वे ऐसा नहीं करते तो फिर चुनाव का भारी खर्चा क्यों किया जाए ? फिर अंग्रेजों के राज में और इस तथाकथित लोकतंत्र में फर्क क्या रह  जाता है | क्या इसी तरह शासन संचालित होने के लिए हमारे पूर्वजों ने क्रांति की थी ?

शायद  कुछ लोगों को परिवर्तन  की आशा हो किन्तु इस देश में कोई क्रांति भी नहीं होगी |क्रांति के लिए जनता का अति पीड़ित होना आवश्यक है जोकि ये राजनेता कभी नहीं होने देंगे | जनता को थोडा थोड़ा आराम देते रहेंगे| प्यासे को चमच  से पानी पिलाते  रहेंगे  ताकि न  तो उसकी प्यास बुझे और न उसकी प्यास बुझाने कि दिलासा   टूटे|  यह हमें लगातार गुलाम बनाए रखने की एक सुनियोजित कूटनीति का हिस्सा है | अमेरिका में भी रोटरी क्लब का गठन रूस की क्रांति के बाद इसीलिए हुआ था कि कहीं गरीब लोग दुखी होकर रूस की  तरह क्रांति नहीं कर दें इसलिए इनकी थोड़ी थोड़ी मदद करते रहे हो ताकि इनके मन में यह विचार रहे कि धनवान उनके प्रति हमदर्दी रखते हैं| सरकारों के लुभावने नारे और सुधार कार्यक्रम मौसमी और वायरल बुखार की तरह हैं जो कुछ दिनों बाद शून्य  परिणाम  के साथ अपने आप उतर जाते  हैं |
कहने को तो सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दे रखें  हैं कि नारी सुरक्षा हेतु सिटी बसों में सादा वर्दी में पुलिस को तैनात किया जाए किन्तु स्वयं दिल्ली पुलिस में ही सौ से अधिक बलात्कार  के आरोपी कार्यरत हैं| पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी अपनी कनिष्ठ  महिला पुलिस कर्मी से प्रणय निवेदन करते हैं और वे यदि इस पर सहमत न हों  तो उसकी ड्यूटी ऐसे विषम समय और स्थान पर लगाते  हैं कि उसे कठिनाई  हो और वह समर्पण कर दे | उसे कहा जाता है कि  वह कुछ समय वरिष्ठ  के बिस्तर की शोभा बनकर  अपना शेष दाम्पत्य जीवन भोग सकती है अन्यथा उसकी ड्यूटी रात में लगा दी  जाती है| न  केवल  महिला  कर्मियों बल्कि कनिष्ठ पुलिस कर्मियों की भी ड्यूटी ऐसी विषम परिस्थितियों और समय में लगाई जाती है ताकि वे अपना सुखमय दाम्पत्य जीवन व्यतीत नहीं कर सकें |  अपना यदि वे अपना सुखमय दाम्पत्य जीवन  चाहें तो उनसे अपेक्षा की   जाती है कि   वे अपनी बीबी को उन वरिष्ठ के बिस्तर की शोभा बनाएं| वैसे  पुलिस वालों को खुद को पता है कि उनकी समाज में कितनी इज्ज़त है इसलिए वे फेसबुक पर प्रोफाइल में कहीं  भी अपना पुलिसिया काम नहीं लिखते| ऐसा करने पर कोई उनसे दोस्ती नहीं करना चाहेगा|वरिष्ठ पुलिस अधिकारी गिल और राठोर ने भी पुलिस का नाम काफी रोशन किया   है| न्यायाधिपति स्वतंत्र कुमार और गांगुली भी इसी श्रृंखला का हिस्सा रह चुके हैं |कानून  को चाहे कितना ही सख्त बना दिया जाए आखिर वह रसूख और पैसे के दम पर नरम  हो  जाता है |

Mani Ram Sharma:
न्यायपालिका सहित , आज  देश का पूरा शासन तंत्र, और सारे राजनैतिक दल  जन विरोधी लगते हैं | इस देश में पञ्च तत्वों के अपवित्र गठबंधन का  शासन है - संगठित अपराधी, धन्ना सेठ , राजनेता, अधिकारी और न्यायाधीश | नागरिक के पास तो 5 वर्ष में वोट डालने के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता | उसकी शिकायतें तो रद्दी की टोकरी की भेंट चढ़ जाती हैं - शासन चाहे किसी भी पार्टी को है - इस गुणधर्म और चरित्र  में कोई अंतर नहीं आता |  भारत   के मुख्य  चुनाव आयुक्त शेषन ने लगभग 20 वर्ष पूर्व  कहा था कि लोकतंत्र के चार स्तम्भ होते हैं और उनमें से साढ़े तीन क्षतिग्रस्त हो चुके हैं  --अब  तक कितने बचे हैं अनुमान लगाया   जा सकता है | गरीबी के विषय में भी इन लोगों  का कुतर्क होता है कि  धन मेहनत से कमाया   जा सकता है |मेरा इन धनिकों से निवेदन है की क्या वे एक मजदूर से ज्यादा मेहनत करते हैं जो दिन भर पसीना बहाने के बावजूद मूलभूत सुविधाओं से वह और उसका परिवार वंचित रहता है | वस्तु स्थिति तो  यह है कि  धन संचय , तो बेईमानी, और दूसरों का हक छीन कर ही किया जा सकता है | दूसरों की वस्तुएं और सेवाएं कौड़ियों के दाम सस्ती लेकर उन्हें महँगी बेचकर संचय ब्लैक करके , कृत्रिम कमी करके मुनाफाखोरी से ही यह संभव है | और पूंजी भी तो संचित श्रम ही है क्योंकि सभी वस्तुएं  तो प्रकृति ने सृष्टि  में निशुल्क उपलब्ध करवाई हैं  |
आम नागरिक को ट्रैफिक की तरह सभी राजनैतिक दलों से समान और सुरक्षित दूरी रखनी चाहिए  क्योंकि  राजनेताओं  का यह पेशा है उससे ही उनकी आजीविका चलती है  |  पार्टी कार्यालयों को चंदे के नाम पर भारी प्रोटेक्शन मनी मिलती है जिनसे पार्टी कार्यालयों के खर्चे चलते हैं  अन्यथा जो कार्यकर्ता पार्टी कार्यालयों  में जुटे रहते हैं उनके  जीवन यापन और चुनावी खर्च  का कौनसा स्वतंत्र  आधार है |   जहां तक जागरूकता का प्रश्न है तो देश में अभी मात्र 6 करोड़ लोग ही ग्रेजुएट या अधिक शिक्षित हैं |
बदसूरत व्यक्ति को यदि शीशा दिखाओ तो अगर वो समझदार होगा तो अपने स्वरूप को स्वीकार करेगा । यदि मूर्ख या पागल हुआ तो शीशा तोड़ने को आएगा । स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने करतार सिंह बनाम पंजाब राज्य (1956 AIR  541) के मामले में कहा है कि जो कोई लोक पद धारण करता हो उसे उस पद से जुड़े आलोचना के हमले को, यद्यपि दुखदायी है, स्वीकार करना चाहिए| 

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