Author Topic: Articles By Mera Pahad Members - मेरापहाड़ के सदस्यों के द्वारा लिखे लेख  (Read 15373 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Thanks u sir for this eye opening articles.

It is really disheartening to note that during these 9 years. We have not made any significant progress as expected.

One of the major succes / development is that we have produced as many as 5 CMs in the state whereas even 2 tenure of CM post have not completed.

There is race of chair only and important issues like :

    -   Employment
    -   Shifting of Capital
    -   Stopping migration
    -   Promoting tourism etc

are nowhere in the priority of our Leaders.

God save us from currupt people.


आज भी वो आँखें वही सपना देख रही हैं जो की नौ साल पहले देखा था आज भी कही गाँव ऐसे हैं जो की अभी सपने देख रहें की उनके गाँव और घर मैं भी कभी किसी रात को एक ६० वाट का वल्ब जलेगा कभी कभी तो सपने मैं भी लोग, घर के आगे जो दो खम्बो पर एक लम्बा सा तार एक छोर इ दुसरे छोर तक बाँधा होता है!
 कपडे सुखाने के लिए, तो सपने दयुरानी जेठानी आपस मैं एक दुसरे को कहती हैं कि दीदी उस तार को मत छूना उसमें करंट होगा लेकिन उनको क्या मालुम कि वे अभी भी सपना देख रही हैं, क्योंकि ये सपना हम लोगों ने नौ साल पहले भी देखा था और आज भी वही सपने देख रहे हैं और ना जाने कब तक देखते रहेंगे!



Pooran Chandra Kandpal

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 प्रिय उत्तराखंडी भाईयो,
               
                      राजधानी गैरसैण नि गयी, रैगे देहरादून
                      राजधानी आयोगक कान में घुसिगिन पिरुवाक बून
                      मुज्जफ़्फ़र्नगराक पिशाचों पर नि लाग कानून
                      शहीद पुछेन्राई किलै बहा हमुल आपण खून
                      को सुनूँ उनरी जै पर बीती
                      को हौ शहीद मेंकें के खबर न्हीती
 
              (राजधानी गैरसैण नहीं गयी, धोखा दिया. नरपिशाचों को सजा नहीं दी, धोखा किया,
              शहीद पूँछ रहे हैं हमने अपना खून क्यों बहाया? आज शहीद परिवारों पर क्या बीत रही
              होगी इसकी खबर किसे है ?)
                                                                                    पूरन चन्द्र कांडपाल
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Very correct Kanpdal JI. This has become one kind of political game now.

प्रिय उत्तराखंडी भाईयो,
               
                      राजधानी गैरसैण नि गयी, रैगे देहरादून
                      राजधानी आयोगक कान में घुसिगिन पिरुवाक बून
                      मुज्जफ़्फ़र्नगराक पिशाचों पर नि लाग कानून
                      शहीद पुछेन्राई किलै बहा हमुल आपण खून
                      को सुनूँ उनरी जै पर बीती
                      को हौ शहीद मेंकें के खबर न्हीती
 
              (राजधानी गैरसैण नहीं गयी, धोखा दिया. नरपिशाचों को सजा नहीं दी, धोखा किया,
              शहीद पूँछ रहे हैं हमने अपना खून क्यों बहाया? आज शहीद परिवारों पर क्या बीत रही
              होगी इसकी खबर किसे है ?)
                                                                                    पूरन चन्द्र कांडपाल
 


Pooran Chandra Kandpal

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                                          8/27/09, Pooran Kandpal <kandpalp@yahoo.com> wrote:
निराश न हों.
                     कभी कभी लोग कहते हैं हमारे देश का क्या होगा, हमारे राज्य का क्या होगा
           ' एक ही उल्लू काफी था बर्बाद गुलिस्तान  करने को
 
           हर शाख पै उल्लू बैठा है अंजाम ए गुलिस्तान क्या होगा'
                      मैं कहता हूँ -  उठ जाग अब मत सुप्त रह
                         मातृ भूमि कह रही,
                                   भगाओ इन उल्लूओं को, kyon shakh mer dhah rahi
                                    desh ka mil raag gaa
                         मत अलग ढपली लड़ा ,
                                           संस्कृति खतरे में पड़ी
                         जब देश खतरे में पड़ा.
                                                                  पूरन चन्द्र कांडपाल
                                                               

Pooran Chandra Kandpal

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                                               रूढिवाद को समझो

                रक्षाबंधन के दिन (५ अगस्त) बग्वाल मेला चम्पावत में देविधूरा मंदिर प्रांगन में खूनी पाषाण युद्घ में लगभग चार दर्जन लोग घायल हो गए. मेला बंद के बाद भी वहां पत्थरबाजी चलती रही. कुछ लोग इस खून खराबे को महिमामंडित करते हैं.  कुछ वर्ष पूर्व तक जिला अल्मोडा की तहसील रानीखेत पट्टी चौगाँव के ग्राम सिलंगी नामक स्थान पर भी ऐसा ही पत्थर मार मेला लगता था.  स्थानीय कई गाँव दो धडों में बंट जाते थे और बैशाखी के दिन संध्या से पूर्व दोनों ऑर से भंयंकर पत्थर बाजी होती थी.  खून बहता था और अंग भंग भी हो जाते थे. यह  खून देवी के नाम पर बहाया जाता था.
                           
                             शिक्षा के प्रसार के साथ स्थानीय लोगों ने इसे बंद करना चाहा तो इसके समर्थकों ने कहा 'खून नहीं बहा तो क्षेत्र में बीमारी फ़ैल जायेगी.  अंततः शिक्षा की जीत हुयी, वहां पर पत्थर बाजी बंद करके लोकगीत गाए जाने लगे.  समय के साथ यह बात आई गयी हो गयी और किसी को कोई दुःख बीमारी नहीं हुयी.

                             हमारे देश में ग्रामीण धरातल पर मेले लगते हैं, वहां खेल कूद होते हैं.  चम्पावत में भी इस पत्थर बाजी की जगह खेलकूद होने चाहिए.  खामों को विभिन्न खेलों की टीमें बनानी चाहिए और जीतने वाली टीम को ट्रोफी दे जानी चाहिए.  हम इस पत्थर बाजी कब तक खून बहाते रहेंगे.  देवी देवताओं के नाम पर कभी पशुबलि , कभी पत्थर बाजी, कभी जागर मशान अनुचित है.  इन रुदिवादी परम्पराओं पर हमें मंथन करना चाहिए. देवी को खुश करने के लिए मनुष्य का खून चढाना स्वयं देवी देवताओं को भी अच्छा नहीं लगता होगा.  इस बात को समझना होगा की अच्छे कार्य करने और प्रार्थना करने से ही देवी देवता प्रसन्न होते हैं.

                                                                   puran chandra kandpal kandpal                                                                                                                                                                                                               30/08/2009




Devbhoomi,Uttarakhand

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उत्तराखंड ,कितना अच्छा नाम है और लितने अच्छे  लोग थे वो जिन्होंने इस धरती मैं जन्म लिया और जिह्नोने अपने प्राणों का बलिदान दिया इस उत्तराखंड के खातिर, अपने परिवार और बच्चों की प्रवाह न करते हुए अपनी कुर्बानी दी लेकिन अब देखो इस देवभूमि को कैसी हालत है इसकी ,उत्तराखंड को देवभूमि कहा जात है लेकिन अब ये देवभूमि नहीं रही है दानव भूमि बनकर रह गयी है !देवभूमि ये तब थी जब यहाँ देवताओं का वास था!

जब यहाँ वस्ति थी सुमित्रानंदन पन्त, गोरादेवी ,इंदर मणि बडोनी,श्री देव सुमन,और महान विभूतियाँ जो इस देवभूमि को दानवों के हवाले करके चले गए ! क्या सोचा हमने क्या ये द्व्भूमि हमेशा देवभूमि ही रहेगी,आज जब मैं गान जाता हूं तो तो लगत है की अभी भी हम वही हैं जो नौ साल पहले थे !

वही सड़कें वही पानी भरने के धारे ,वही लोग और वही गाँव जो की आज भी बिना बिजली के हैं और रात होते ही फिर वही अँधेरी रात और गाँव मैं रहने वाले लोगों को वही डर, की रात हो गयी है!

 कहीं कोई बाघ या चिता न आ जाय, क्यों आजकल भी गांवों मैं लोग चीड के पेड से लकडी निकलती है उसे जलाकर उजाला करते हैं (गढ़वाली मैं उस लकडी को दली कहते है!

या तो लोग दली जलाकर रहते हैं ओत या भीमल के केडे जलाकर अपनी रात गुजारते है ), लेकिन किसी को क्या पड़ी है की पहाडों मैं रहने वाले लोग कैसे अपना जीवन ब्यतीत कर रहे हैं,चाहे वो कोई नेता हो या कोई मंत्री ,वो तो बस चुनाव के समय आयेंगें इस गांवों वोटों की भीक मांगने और गांवों मैं रहने वाले हम जैसे गरीबों एक सपना दिखाकर चले जायेंगे,

गांवों जब कभी भी लोग बीमार होते हैं तो पूरा गाँव एक दुसरे की मदद करने को दोड़ता है, कभी किसी ने सोचा की अगर रात को कभी किसी परिवार मैं अगर किसी का बच्चा बीमार हो जाय तो क्या करता होगा वो इंसान जिसके पास न तो आने जाने का साधन है और उन अँधेरी रातों मैं कहन जायेगा वो बीमार बच्चे को लेकर न ही गान मैं बिजली है और नहीं आने जाने के साधन हैं !

मेरा कहने का मतलब ये नहीं है कि उत्तराखंड सरकार कुछ विकास नहीं किया है ये सरासर गलत होगा लेकिन विकास सरकार ने वहीं किया जहाँ कि पहले से कुछ हद तक पहले से ही है !मैं या आप ल्प्ग क्यों ये वकवास कर रहे हैं,हम सब लोग बस लिका सकते है बोला सकते है ये ही नहीं बल्कि कुछ कर भी सकते हैं!

उत्तराखंड मैं इतने सारे संघठन है कि जिनकी कोई गिनती नहीं है लेकिन ये संघठन कुछ काम के नहीं हैं ,आज जो लोग गांवों को छोड़कर मैंदानों मैं बसकर रहने लगें हैं वो सायद ही जानते होंगें कि उनके उस गाँव मैं क्या हो रहा होगा जिसे वो छोड़कर आये है !

जय उत्तराखंड
देवभूमि

C.P. Nautiyal

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"पहाड़ में भू-माफियाओं के बढते कदम"
 
पहाड़ की भूमि अधिग्रहण एक चिंता का विषय  बन चूका है जिस पर शीघ्र ध्यान देने की जरुरत है. जिस तरह से बाहर के ब्यक्ति लगातार पहाड़ की भूमि को खरीद रहे है उससे यहाँ की आतंरिक सुरक्षा, पर्यावरण के खतरे, कृषि भूमि के पतन एवं अतिक्रमण के बड़ने (land grabing) की समस्या बड़ने का अंदेशा प्रतीत होता है.  उदाहरण के तौर पर टिहरी गढ़वाल के छेत्र को ही लिया जाय तो मसूरी से सुवाखोली और धनोल्टी तक अधिकांश बंजर भूमि / चारागाह वाले पहाड़ बाहर के लोग खरीद चुके है. और अब इनके बड़ते कदम हमारे गाँव तक ही नहीं बल्कि हमारे छानियों (Dando) तक भी पहुँच चुके है.  जिसका उदाहरण  मौर्याना पर्वत चोटी में देखने को मिलता है. मौर्याना मार्ग ऊँचे पर्वत से होकर उत्तरकाशी के लिए जाता है जिसे राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किया जा चूका है. इस पर्वत चोटी में जो गाँव के लोगों के बगीचे तथा जमीन थी उसे प्रलोभन देकर बाहर के लोग  खरीद चुके है.
इसी क्रम में अगला कदम इनका देवलसारी एवं नागटिब्बा पर्वत चोटी के लिए प्रसस्त है, क्योंकि जौनपुर छेत्र में स्थित  नागटिब्बा  पहाड़ की सबसे ऊँची पर्वत चोटी है तथा घने जंगल से सरोबार है. इस पर्वत चोटी की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग  ६६०० मीटर है.

आकर्षण का मुख्य कारण:-
 
1) जौनपुर छेत्र में स्थित   नागटिब्बा पहाड़ कि  सबसे ऊँची पर्वत चोटी है  तथा समीप में ही देवलसारी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है.

2) देवलसारी, घने देवदार के वृक्षों से हरा भरा जंगल है साथ ही Govt. का टूरिस्ट बंगलो की सुविधा भी उपलब्ध है.  साथ में भगवान नागदेवता का प्राचीन मंदिर इस पवित्र देवभूमि की शोभा पर चार चाँद लगाता है.
 
3) प्राकृतिक शौन्दर्यता से ओतप्रोत घाटी तथा बीच में निरंतर कल कल बहती नदी, देवदार के वृक्षों से रोमांचित देवलसारी तथा ऊँची ऊँची गगनचुम्बी पर्वत चोटियां यहाँ मुख्य आकर्षण का केंद्र है. इस शौन्दर्यता का परचम देश ही नहीं विदेशों तक लहरा रहा है जिसके चलते यहाँ विदेशी पर्यटकों का ताँता लगा रहता है. ये टूरिस्ट यहाँ अपने तंबुओ में रहते है. इन पर्यटकों से बिजनेस का स्कोप को देखते हुए  यहाँ बाहरी हस्तक्षेप होने लगा है. स्कोप को देखते हुए क्षेत्र से बाहर के व्यक्ति यहाँ पर होटल एवं गेस्ट हॉउस खोलने के उदेश्य से जमीन खरीद रहे है.
 
·    इसी क्षेत्र के आस पास की भूमि कुछ बहरी व्यक्तियों ने खरीद भी ली है. और यहाँ पर यह कहने की आवश्यकता नहीं है की इस प्रकार के क़दमों से न केवल यहाँ की शौदर्यता प्रभावित होगी बल्कि यहाँ का पर्यावरण भी दूषित होगा. उदाहरण के तौर पर हाल ही में अमरनाथ में होलिकप्टर सेवा से हिम शिवलिंग तेजी से पिघलने लगा था. 
तथ्य के आधार पर देखें तो :-
=> उत्तराखंड का कुल छेत्रफल है                        = 53, 483 Sq KM
=> जिसमे जंगल (वन) चारागाह को मिलाकर है   = 54%
=> और कुल कृषि योग्य भूमि है                       = 46%
=> तथा शिक्षित वर्ग है                                    = 71.62%


अर्थात कृषि  भूमि  पहले  ही  जंगल  की  अपेक्षा कम  है. बढती जनसँख्या और  घटते  संसाधनों  के  चलते एवं  बहरी हस्तक्षेप  से वनों  को खतरा एक गहन  चिंता  का बिषय  है 

इसके दुष्परिणाम:

1)  पर्यावरण पर इसका दुष्प्रभाव
2)  कृषि भूमि उत्पादन में गिरावट
3)  भुमिहर किसानों की बढोतरी के आशार
4)  पशुपालन में गिरावट के खतरे, क्योंकि जब चारागाह ही समाप्त हो जायेंगे तो पशुपालन प्रभावित   होना स्वाभाविक ही है.
5)  चारागाह की कमी- बंजर भूमि एवं चारागाह पर होटल्स तथा गेस्ट हाउस निर्माण से चारागाह की कमी के कारन स्वभावतः पशुपालन में कमी आएगी.
6)  बेगारी तथा बेरोजगारी की समस्या और प्रबल हो जायेगी.
7)  गावों से शहर पलायन बढेगा.
8)  कृषि भूमि के कोमेर्सिअल यूज़ से प्राकृतिक शौन्दर्यता छिन्न होगी. और इसे यदि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की संज्ञा भी दी जाये  तो कोई अतिशयोक्ति न होगी.
9)  वाहय हस्तछेप से पहाड़ की संस्कृति तथा सभ्यता के विलुप्त होने का खतरा प्रतीत होता है.
11)  बढती जनसंख्या और घटती जमीन, लिहाज़ा लोग अतिक्रमण को मजबूर होंगे जिससे वनों के छति होने का  खतरा प्रतीत होता है.

 
भूमि को बेचने से बचाने के कुछ सुझाव :

1) भूमि का उपयोग कृषि में हो जैसे- खेतीबाड़ी, फल उत्पादन, उद्योगों के लिए कच्चे मॉल का उत्पादन लघु उद्योग, हस्तकला, पशुपालन इत्यादी.

2) इस भूमि का ब्यावसायिक उपयोग ना हो अर्थात होटल्स, रेस्टोरेंट्स गेस्टहाउस आदि के निर्माण का बाहिस्कार किया जाये.
 
3) यदि कोई क्षेत्र से बहार का ब्यक्ति इस भूमि को कृषि भूमि  में प्रयोग करता है और तकनीकी सुविधाओं का प्रयोग करके कम समय में अधिक उत्पादन करके कृषि के  छेत्र  में क्रांति लाता है और किसानो को लाभान्वित करता है तो ऐसे सकारात्मक कार्यों का हमें स्वागत करना चाहिए.  और इस प्रकार के कार्यों को बढ़ावा देना चाहिए.

4) पहाड़ छेत्र में करीब करीब सड़कों का जाल बिछ चुका है और ऐसे में सरकार को इस प्रकार के कार्यों को बढ़ावा देना चाहिए जिससे छेत्र के लोगो को रोजगार भी मिल जाये और पर्यटन को बढ़ावा भी  जैसे कि, पहाड़ छेत्र के सड़क मार्ग में हर 2-3 KM. कि दूरी पर पर्यटकों के लिए जलपान कि ब्यवस्था होनी चाहिए और इस प्रकार की ब्यवस्था के लिए 4-5 दुकानों का प्रावधान होना चाहिए. और साथ ही इन दुकानों में छेत्रिय उपज के भोजन, एवं खान-पान की ब्यवस्था  हो ताकि पर्यटकों के लिए यह आकर्षण की चीज हो. इस प्रकार के सकारात्मक कदमों से न केवल पर्यटन को बढावा मिलेगा बल्कि किसानों का कृषि में ज्यादा रुझान होगा और छेत्र में ही बेहतर लाभ से शहर पलायन को रोकने में सहायक सिद्ध होगा. 
 
5) हमें चिप्स में हवा भरने की कला को सीखने की जरुरत है. कहने का अर्थ यह है की बेहतर से बेहतर आलू का उत्पादन हमारे पहाड़ में होता है परन्तु हमें तकनिकी जानकारियों के आभाव में उसे नीलामी के भाव बाज़ार में बेचना पड़ता है और यही आलू शहर में चिप्स बनकर तथा पैकेट में हवा भरकर वापस हमें ५० ग्राम करीब २० रुपये में बेचा जाता है. तो निष्कर्ष यह है की हमें जरुरत है हवा भरने की कला सीखने की.   यहाँ पर हवा भरने की की कला से मेरा अर्थ तकनिकी जानकारियों से है.
 
6) पर्यटन को बढ़ावा देना चाहिए और पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए छेत्र के शौन्दर्यीकरण के लिए सकारात्मक कार्यों को कार्यान्वित करना चाहिए नाकि कोमर्सिअल यूज़ को.
 
·        मै अपने पहाड़ के बारे में  यह सोचता हूँ आप क्या सोचतें है ?  जरुर लिखियेगा मुझे आपके सुझाओं का इंतजार रहेगा.
 
धन्यवाद
चंडी प्रसाद नौटियाल
सम्पर्क सूत्र : 9811573182

C.P. Nautiyal

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Exellent Article Nautiyal ji.

This is real situation of pahad at present scenario.

There is need to implement the suggestions given you urgently.


"पहाड़ में भू-माफियाओं के बढते कदम"
 
पहाड़ की भूमि अधिग्रहण एक चिंता का विषय  बन चूका है जिस पर शीघ्र ध्यान देने की जरुरत है. जिस तरह से बाहर के ब्यक्ति लगातार पहाड़ की भूमि को खरीद रहे है उससे यहाँ की आतंरिक सुरक्षा, पर्यावरण के खतरे, कृषि भूमि के पतन एवं अतिक्रमण के बड़ने (land grabing) की समस्या बड़ने का अंदेशा प्रतीत होता है.  उदाहरण के तौर पर टिहरी गढ़वाल के छेत्र को ही लिया जाय तो मसूरी से सुवाखोली और धनोल्टी तक अधिकांश बंजर भूमि / चारागाह वाले पहाड़ बाहर के लोग खरीद चुके है. और अब इनके बड़ते कदम हमारे गाँव तक ही नहीं बल्कि हमारे छानियों (Dando) तक भी पहुँच चुके है.  जिसका उदाहरण  मौर्याना पर्वत चोटी में देखने को मिलता है. मौर्याना मार्ग ऊँचे पर्वत से होकर उत्तरकाशी के लिए जाता है जिसे राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किया जा चूका है. इस पर्वत चोटी में जो गाँव के लोगों के बगीचे तथा जमीन थी उसे प्रलोभन देकर बाहर के लोग  खरीद चुके है.
इसी क्रम में अगला कदम इनका देवलसारी एवं नागटिब्बा पर्वत चोटी के लिए प्रसस्त है, क्योंकि जौनपुर छेत्र में स्थित  नागटिब्बा  पहाड़ की सबसे ऊँची पर्वत चोटी है तथा घने जंगल से सरोबार है. इस पर्वत चोटी की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग  ६६०० मीटर है.

आकर्षण का मुख्य कारण:-
 
1) जौनपुर छेत्र में स्थित   नागटिब्बा पहाड़ कि  सबसे ऊँची पर्वत चोटी है  तथा समीप में ही देवलसारी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है.

2) देवलसारी, घने देवदार के वृक्षों से हरा भरा जंगल है साथ ही Govt. का टूरिस्ट बंगलो की सुविधा भी उपलब्ध है.  साथ में भगवान नागदेवता का प्राचीन मंदिर इस पवित्र देवभूमि की शोभा पर चार चाँद लगाता है.
 
3) प्राकृतिक शौन्दर्यता से ओतप्रोत घाटी तथा बीच में निरंतर कल कल बहती नदी, देवदार के वृक्षों से रोमांचित देवलसारी तथा ऊँची ऊँची गगनचुम्बी पर्वत चोटियां यहाँ मुख्य आकर्षण का केंद्र है. इस शौन्दर्यता का परचम देश ही नहीं विदेशों तक लहरा रहा है जिसके चलते यहाँ विदेशी पर्यटकों का ताँता लगा रहता है. ये टूरिस्ट यहाँ अपने तंबुओ में रहते है. इन पर्यटकों से बिजनेस का स्कोप को देखते हुए  यहाँ बाहरी हस्तक्षेप होने लगा है. स्कोप को देखते हुए क्षेत्र से बाहर के व्यक्ति यहाँ पर होटल एवं गेस्ट हॉउस खोलने के उदेश्य से जमीन खरीद रहे है.
 
·    इसी क्षेत्र के आस पास की भूमि कुछ बहरी व्यक्तियों ने खरीद भी ली है. और यहाँ पर यह कहने की आवश्यकता नहीं है की इस प्रकार के क़दमों से न केवल यहाँ की शौदर्यता प्रभावित होगी बल्कि यहाँ का पर्यावरण भी दूषित होगा. उदाहरण के तौर पर हाल ही में अमरनाथ में होलिकप्टर सेवा से हिम शिवलिंग तेजी से पिघलने लगा था. 
तथ्य के आधार पर देखें तो :-
=> उत्तराखंड का कुल छेत्रफल है                        = 53, 483 Sq KM
=> जिसमे जंगल (वन) चारागाह को मिलाकर है   = 54%
=> और कुल कृषि योग्य भूमि है                       = 46%
=> तथा शिक्षित वर्ग है                                    = 71.62%


अर्थात कृषि  भूमि  पहले  ही  जंगल  की  अपेक्षा कम  है. बढती जनसँख्या और  घटते  संसाधनों  के  चलते एवं  बहरी हस्तक्षेप  से वनों  को खतरा एक गहन  चिंता  का बिषय  है 

इसके दुष्परिणाम:

1)  पर्यावरण पर इसका दुष्प्रभाव
2)  कृषि भूमि उत्पादन में गिरावट
3)  भुमिहर किसानों की बढोतरी के आशार
4)  पशुपालन में गिरावट के खतरे, क्योंकि जब चारागाह ही समाप्त हो जायेंगे तो पशुपालन प्रभावित   होना स्वाभाविक ही है.
5)  चारागाह की कमी- बंजर भूमि एवं चारागाह पर होटल्स तथा गेस्ट हाउस निर्माण से चारागाह की कमी के कारन स्वभावतः पशुपालन में कमी आएगी.
6)  बेगारी तथा बेरोजगारी की समस्या और प्रबल हो जायेगी.
7)  गावों से शहर पलायन बढेगा.
8)  कृषि भूमि के कोमेर्सिअल यूज़ से प्राकृतिक शौन्दर्यता छिन्न होगी. और इसे यदि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की संज्ञा भी दी जाये  तो कोई अतिशयोक्ति न होगी.
9)  वाहय हस्तछेप से पहाड़ की संस्कृति तथा सभ्यता के विलुप्त होने का खतरा प्रतीत होता है.
11)  बढती जनसंख्या और घटती जमीन, लिहाज़ा लोग अतिक्रमण को मजबूर होंगे जिससे वनों के छति होने का  खतरा प्रतीत होता है.

 
भूमि को बेचने से बचाने के कुछ सुझाव :

1) भूमि का उपयोग कृषि में हो जैसे- खेतीबाड़ी, फल उत्पादन, उद्योगों के लिए कच्चे मॉल का उत्पादन लघु उद्योग, हस्तकला, पशुपालन इत्यादी.

2) इस भूमि का ब्यावसायिक उपयोग ना हो अर्थात होटल्स, रेस्टोरेंट्स गेस्टहाउस आदि के निर्माण का बाहिस्कार किया जाये.
 
3) यदि कोई क्षेत्र से बहार का ब्यक्ति इस भूमि को कृषि भूमि  में प्रयोग करता है और तकनीकी सुविधाओं का प्रयोग करके कम समय में अधिक उत्पादन करके कृषि के  छेत्र  में क्रांति लाता है और किसानो को लाभान्वित करता है तो ऐसे सकारात्मक कार्यों का हमें स्वागत करना चाहिए.  और इस प्रकार के कार्यों को बढ़ावा देना चाहिए.

4) पहाड़ छेत्र में करीब करीब सड़कों का जाल बिछ चुका है और ऐसे में सरकार को इस प्रकार के कार्यों को बढ़ावा देना चाहिए जिससे छेत्र के लोगो को रोजगार भी मिल जाये और पर्यटन को बढ़ावा भी  जैसे कि, पहाड़ छेत्र के सड़क मार्ग में हर 2-3 KM. कि दूरी पर पर्यटकों के लिए जलपान कि ब्यवस्था होनी चाहिए और इस प्रकार की ब्यवस्था के लिए 4-5 दुकानों का प्रावधान होना चाहिए. और साथ ही इन दुकानों में छेत्रिय उपज के भोजन, एवं खान-पान की ब्यवस्था  हो ताकि पर्यटकों के लिए यह आकर्षण की चीज हो. इस प्रकार के सकारात्मक कदमों से न केवल पर्यटन को बढावा मिलेगा बल्कि किसानों का कृषि में ज्यादा रुझान होगा और छेत्र में ही बेहतर लाभ से शहर पलायन को रोकने में सहायक सिद्ध होगा. 
 
5) हमें चिप्स में हवा भरने की कला को सीखने की जरुरत है. कहने का अर्थ यह है की बेहतर से बेहतर आलू का उत्पादन हमारे पहाड़ में होता है परन्तु हमें तकनिकी जानकारियों के आभाव में उसे नीलामी के भाव बाज़ार में बेचना पड़ता है और यही आलू शहर में चिप्स बनकर तथा पैकेट में हवा भरकर वापस हमें ५० ग्राम करीब २० रुपये में बेचा जाता है. तो निष्कर्ष यह है की हमें जरुरत है हवा भरने की कला सीखने की.   यहाँ पर हवा भरने की की कला से मेरा अर्थ तकनिकी जानकारियों से है.
 
6) पर्यटन को बढ़ावा देना चाहिए और पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए छेत्र के शौन्दर्यीकरण के लिए सकारात्मक कार्यों को कार्यान्वित करना चाहिए नाकि कोमर्सिअल यूज़ को.
 
·        मै अपने पहाड़ के बारे में  यह सोचता हूँ आप क्या सोचतें है ?  जरुर लिखियेगा मुझे आपके सुझाओं का इंतजार रहेगा.
 
धन्यवाद
चंडी प्रसाद नौटियाल
सम्पर्क सूत्र : 9811573182



 

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