"पहाड़ में भू-माफियाओं के बढते कदम"
पहाड़ की भूमि अधिग्रहण एक चिंता का विषय बन चूका है जिस पर शीघ्र ध्यान देने की जरुरत है. जिस तरह से बाहर के ब्यक्ति लगातार पहाड़ की भूमि को खरीद रहे है उससे यहाँ की आतंरिक सुरक्षा, पर्यावरण के खतरे, कृषि भूमि के पतन एवं अतिक्रमण के बड़ने (land grabing) की समस्या बड़ने का अंदेशा प्रतीत होता है. उदाहरण के तौर पर टिहरी गढ़वाल के छेत्र को ही लिया जाय तो मसूरी से सुवाखोली और धनोल्टी तक अधिकांश बंजर भूमि / चारागाह वाले पहाड़ बाहर के लोग खरीद चुके है. और अब इनके बड़ते कदम हमारे गाँव तक ही नहीं बल्कि हमारे छानियों (Dando) तक भी पहुँच चुके है. जिसका उदाहरण मौर्याना पर्वत चोटी में देखने को मिलता है. मौर्याना मार्ग ऊँचे पर्वत से होकर उत्तरकाशी के लिए जाता है जिसे राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किया जा चूका है. इस पर्वत चोटी में जो गाँव के लोगों के बगीचे तथा जमीन थी उसे प्रलोभन देकर बाहर के लोग खरीद चुके है.
इसी क्रम में अगला कदम इनका देवलसारी एवं नागटिब्बा पर्वत चोटी के लिए प्रसस्त है, क्योंकि जौनपुर छेत्र में स्थित नागटिब्बा पहाड़ की सबसे ऊँची पर्वत चोटी है तथा घने जंगल से सरोबार है. इस पर्वत चोटी की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग ६६०० मीटर है.
आकर्षण का मुख्य कारण:-
1) जौनपुर छेत्र में स्थित नागटिब्बा पहाड़ कि सबसे ऊँची पर्वत चोटी है तथा समीप में ही देवलसारी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है.
2) देवलसारी, घने देवदार के वृक्षों से हरा भरा जंगल है साथ ही Govt. का टूरिस्ट बंगलो की सुविधा भी उपलब्ध है. साथ में भगवान नागदेवता का प्राचीन मंदिर इस पवित्र देवभूमि की शोभा पर चार चाँद लगाता है.
3) प्राकृतिक शौन्दर्यता से ओतप्रोत घाटी तथा बीच में निरंतर कल कल बहती नदी, देवदार के वृक्षों से रोमांचित देवलसारी तथा ऊँची ऊँची गगनचुम्बी पर्वत चोटियां यहाँ मुख्य आकर्षण का केंद्र है. इस शौन्दर्यता का परचम देश ही नहीं विदेशों तक लहरा रहा है जिसके चलते यहाँ विदेशी पर्यटकों का ताँता लगा रहता है. ये टूरिस्ट यहाँ अपने तंबुओ में रहते है. इन पर्यटकों से बिजनेस का स्कोप को देखते हुए यहाँ बाहरी हस्तक्षेप होने लगा है. स्कोप को देखते हुए क्षेत्र से बाहर के व्यक्ति यहाँ पर होटल एवं गेस्ट हॉउस खोलने के उदेश्य से जमीन खरीद रहे है.
· इसी क्षेत्र के आस पास की भूमि कुछ बहरी व्यक्तियों ने खरीद भी ली है. और यहाँ पर यह कहने की आवश्यकता नहीं है की इस प्रकार के क़दमों से न केवल यहाँ की शौदर्यता प्रभावित होगी बल्कि यहाँ का पर्यावरण भी दूषित होगा. उदाहरण के तौर पर हाल ही में अमरनाथ में होलिकप्टर सेवा से हिम शिवलिंग तेजी से पिघलने लगा था.
तथ्य के आधार पर देखें तो :-
=> उत्तराखंड का कुल छेत्रफल है = 53, 483 Sq KM
=> जिसमे जंगल (वन) चारागाह को मिलाकर है = 54%
=> और कुल कृषि योग्य भूमि है = 46%
=> तथा शिक्षित वर्ग है = 71.62%
अर्थात कृषि भूमि पहले ही जंगल की अपेक्षा कम है. बढती जनसँख्या और घटते संसाधनों के चलते एवं बहरी हस्तक्षेप से वनों को खतरा एक गहन चिंता का बिषय है
इसके दुष्परिणाम:
1) पर्यावरण पर इसका दुष्प्रभाव
2) कृषि भूमि उत्पादन में गिरावट
3) भुमिहर किसानों की बढोतरी के आशार
4) पशुपालन में गिरावट के खतरे, क्योंकि जब चारागाह ही समाप्त हो जायेंगे तो पशुपालन प्रभावित होना स्वाभाविक ही है.
5) चारागाह की कमी- बंजर भूमि एवं चारागाह पर होटल्स तथा गेस्ट हाउस निर्माण से चारागाह की कमी के कारन स्वभावतः पशुपालन में कमी आएगी.
6) बेगारी तथा बेरोजगारी की समस्या और प्रबल हो जायेगी.
7) गावों से शहर पलायन बढेगा.
कृषि भूमि के कोमेर्सिअल यूज़ से प्राकृतिक शौन्दर्यता छिन्न होगी. और इसे यदि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की संज्ञा भी दी जाये तो कोई अतिशयोक्ति न होगी.
9) वाहय हस्तछेप से पहाड़ की संस्कृति तथा सभ्यता के विलुप्त होने का खतरा प्रतीत होता है.
11) बढती जनसंख्या और घटती जमीन, लिहाज़ा लोग अतिक्रमण को मजबूर होंगे जिससे वनों के छति होने का खतरा प्रतीत होता है.
भूमि को बेचने से बचाने के कुछ सुझाव :
1) भूमि का उपयोग कृषि में हो जैसे- खेतीबाड़ी, फल उत्पादन, उद्योगों के लिए कच्चे मॉल का उत्पादन लघु उद्योग, हस्तकला, पशुपालन इत्यादी.
2) इस भूमि का ब्यावसायिक उपयोग ना हो अर्थात होटल्स, रेस्टोरेंट्स गेस्टहाउस आदि के निर्माण का बाहिस्कार किया जाये.
3) यदि कोई क्षेत्र से बहार का ब्यक्ति इस भूमि को कृषि भूमि में प्रयोग करता है और तकनीकी सुविधाओं का प्रयोग करके कम समय में अधिक उत्पादन करके कृषि के छेत्र में क्रांति लाता है और किसानो को लाभान्वित करता है तो ऐसे सकारात्मक कार्यों का हमें स्वागत करना चाहिए. और इस प्रकार के कार्यों को बढ़ावा देना चाहिए.
4) पहाड़ छेत्र में करीब करीब सड़कों का जाल बिछ चुका है और ऐसे में सरकार को इस प्रकार के कार्यों को बढ़ावा देना चाहिए जिससे छेत्र के लोगो को रोजगार भी मिल जाये और पर्यटन को बढ़ावा भी जैसे कि, पहाड़ छेत्र के सड़क मार्ग में हर 2-3 KM. कि दूरी पर पर्यटकों के लिए जलपान कि ब्यवस्था होनी चाहिए और इस प्रकार की ब्यवस्था के लिए 4-5 दुकानों का प्रावधान होना चाहिए. और साथ ही इन दुकानों में छेत्रिय उपज के भोजन, एवं खान-पान की ब्यवस्था हो ताकि पर्यटकों के लिए यह आकर्षण की चीज हो. इस प्रकार के सकारात्मक कदमों से न केवल पर्यटन को बढावा मिलेगा बल्कि किसानों का कृषि में ज्यादा रुझान होगा और छेत्र में ही बेहतर लाभ से शहर पलायन को रोकने में सहायक सिद्ध होगा.
5) हमें चिप्स में हवा भरने की कला को सीखने की जरुरत है. कहने का अर्थ यह है की बेहतर से बेहतर आलू का उत्पादन हमारे पहाड़ में होता है परन्तु हमें तकनिकी जानकारियों के आभाव में उसे नीलामी के भाव बाज़ार में बेचना पड़ता है और यही आलू शहर में चिप्स बनकर तथा पैकेट में हवा भरकर वापस हमें ५० ग्राम करीब २० रुपये में बेचा जाता है. तो निष्कर्ष यह है की हमें जरुरत है हवा भरने की कला सीखने की. यहाँ पर हवा भरने की की कला से मेरा अर्थ तकनिकी जानकारियों से है.
6) पर्यटन को बढ़ावा देना चाहिए और पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए छेत्र के शौन्दर्यीकरण के लिए सकारात्मक कार्यों को कार्यान्वित करना चाहिए नाकि कोमर्सिअल यूज़ को.
· मै अपने पहाड़ के बारे में यह सोचता हूँ आप क्या सोचतें है ? जरुर लिखियेगा मुझे आपके सुझाओं का इंतजार रहेगा.
धन्यवाद
चंडी प्रसाद नौटियाल
सम्पर्क सूत्र : 9811573182
Email: nautiyal.cp@gmail.com