स्वतंत्रता दिवस की तयारियां जोरों पर हैं प्राथमिक शाला से लेकर लाल किला तक, गाँव की गलियों से लेकर शहर के चौराहों तक, बच्चों से लेकर बूढों तक, १५ अगस्त इस दिन पूरा देश राष्ट भक्ति मैं रंग जाता हैं, चरों तरफ देश भक्ति के गीत ही सुनाई देते है, देश भक्ति के नारे लगाते हुए स्कूली बच्चे हाथों मैं तिरंगा लिए कितने प्यारे लगते हैं, इस दिन लोगों मैं कितना उत्साह दिखाई देता हैं हर किसी की जुबान से देश भक्ति की ही बातें सुनने को मिलती हैं लोगों मैं एक दुसरे के प्रति कितना प्रेम दीखता हैं, जिनका नाम कभी किसी की जुबान पर नहीं आता हैं इस दिन उनके ही चर्चे सुनने को मिलते है कही गाँधी जी के तो कही नेताजी के कही आज़ाद के तो कही भगत सिंह के, इस दिन ऊँच नीच, छोटा बड़ा, मजदूर अधिकारी, अमीर गरीब, सब एक सामान दिखाई देते हैं किसी को किसी के प्रति भेद भाव नहीं दीखता, इस दिन सभी लोगों के चेहरे पर कितनी मुस्कान दिखाई देती हैं,चरों तरफ कितनी खुशहाली नजर आती हैं.....इस दिन तो सच मैं लगता हैं..... "सरे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा"
जैसे ही १६ अगस्त का सूरज उदय होता हैं सड़कों के किनारे धूल मैं पड़े छोटे छोटे तिरंगे दिखाई देते हैं यहाँ तक की लोग इनके उप्पर पैर रखकर आगे बढ़ जाते हैं फिर वही दिन्चारिया सुरु हो जाती है कही पर राष्ट भक्ति की बातें सुनने को नहीं मिलती कोई देश भक्ति की बातें करता भी हैं तो चार लोग मजाक करने वाले मिल जायंगे देखो गाँधी जी आ गए ये देश का उद्धार करंगे, हर एक दुसरे को नफरत भरी निगाहों से देखता हैं, ग्राहक को दुकानदार लूट रहे हैं ठेकेदार मजदूरों को लूट रहे है ठेकेदारों को अधिकारी लूट रहे हैं अधिकारीयों को नेता लूट रहे हैं जहाँ भी जाओ बिना रिश्वत के कुछ काम नहीं होता चपरासी से लेकर अधिकारी तक का % फिक्स हैं किसी भी दफ्तर मैं जाओ मिनट का कम घंटों मैं घंटे का काम दिनों मैं दिन का काम महीनो मैं महीने का काम सालों मैं होता हैं, आम आदमियों को तो छोटे से कम के लिए दफ्तरों के इतने चक्कर कटवाए जाते हैं आज साहब बिजी हैं दुसरे दिन साहब मीटिंग मैं हैं तीसरे दिन साहब छुट्टी मैं हैं चौथे दिन साहब अभी आये नहीं पांचवे दिन साहब... मजबूर होकर रिश्वत देना ही पड़ता हैं नहीं तो काटते रहो चक्कर पे चक्कर, सफ़ेद, खाकी. और काले कोट के चक्कर मैं जो फंस गया सायद ही उससे बड़ा कोई दुखी इंशान दूसरा कोई हो, जहाँ भी देखो छोटा बड़ा,तेरा मेरा,लड़ाई झगडे,लूट पाट,चोरी डगैती,मार धाड,गुंडा गर्दी,न किसी की इज्जत न किसी का सम्मान, अखबार पढो या टीवी देखो वहां भी कही बलात्कार तो कही भ्रष्टाचार कही हत्या तो कही अत्याचार कही बम धमाके कही अक्सिडेंट, नेताओं का तो एक ही काम हैं तुम भी खावो मैं भी खाऊँ दोनों की बहार.... ये सब देखकर तो एक फ़िल्मी डयलोग याद आ जाता हैं "सौ मैं से अस्सी बेमान फिर भी मेरा देश महान"